Sunday 31 July 2016

बांग-ए-दरा 50




बांग-ए-दरा

ईमान

सिने बलूगत से पहले मैं ईमान का मतलब माली लेन देन की पुख्तगी को समझता रहा 
मगर जब मुस्लिम समाज में प्रचलित शब्द "ईमान" को जाना तो मालूम हुवा कि 
"कलमाए शहादत", 
पर यक़ीन रखना ही इस्लामी इस्तेलाह (परिभाषा) में ईमान है, 
जिसका माली लेन देन से कोई वास्ता नहीं. 
कलमाए शहादत का निचोड़ है अल्लाह, रसूल, कुरआन और इनके फ़रमूदात पर आस्था के साथ यकीन रखना, ईमान कहलाता है. 
सिने बलूगत आने पर एहसास ने इस पर अटल रहने से बगावत करना शुरू कर दिया 
कि इन की बातें माफौकुल फितरत (अप्राकृतिक और अलौकिक) हैं. 
मुझे इस बात से मायूसी हुई कि लेन देन का पुख्ता होना ईमान नहीं है 
जिसे आज तक मैं समझता था. 
बस्ती के बड़े बड़े मौलानाओं की बेईमानी पर मैं हैरान हो जाता कि ये कैसे मुसलमान हैं? मुश्किल रोज़ बरोज़ बढती गई कि इन बे-ईमानियों पर ईमान रखना होगा.? 
धीरे धीरे अल्लाह, रसूल और कुरानी फरमानों का मैं मुनकिर होता गया और 
ईमाने-अस्ल मेरा ईमान बनता गया कि कुदरती सच ही सच है. 
ज़मीर की आवाज़ ही हक है.
हम ज़मीन को अपनी आँखों से गोल देखते है जो सूरज के गिर्द चक्कर लगाती है, 
इस तरह दिन और रत हुवा करते हैं. 
अल्लाह, रसूल, कुरान और इनके फ़रमूदात पर यकीन करके इसे रोटी की तरह चिपटी माने, और सूरज को रात  के वक़्त अल्लाह को सजदा करने चले जाना, 
अल्लाह का उसको मशरिक की तरफ से वापस करना - - -  
ये मुझको क़ुबूल न हो सका. 
मेरी हैरत की इन्तहा बढती गई कि मुसलमानों का ईमान कितना कमज़ोर है. 
कुछ लोग दोनों बातो को मानते हैं, 
इस्लाम के रू से वह लोग मुनाफ़िक़ हुए यानी दोगले. दोगला बनना भी मुझे मंज़ूर न हुवा.
मुसलमानों! 
मेरी इस उम्रे-नादानी से सिने-बलूगत के सफ़र में आप भी शामिल हो जाइए और 
मुझे अकली पैमाने पर टोकिए, जहाँ मैं ग़लत लगूँ. 
इस सफ़र में मैं मुस्लिम से मोमिन हो गया, जिसका ईमान, 
सदाक़त पर अपने अकले-सलीम के साथ सवार है. 
आपको दावते-ईमान है कि आप भी मोमिन बनिए और आने वाले बुरे वक्त से नजात पाइए. आजके परिवेश में देखिए कि मुस्लमान खुद मुसलमानों का दुश्मन बना हुआ है, 
वह भी पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईराक और दीगर मुस्लिम मुमालिक में. 
बाक़ी जगह गैर मुस्लिमो को वह अपना दुश्मन बनाए हुए है. 
कुरान के नाक़िस पैगाम अब दुन्या के सामने अपने असली रूप में नाजिल और हाजिर हैं. इंसानियत की राह में हक़ परस्त लोग इसको क़ायम नहीं रहने देंगे, 
वह सब मिलकर इस गुमराह कुन इबारत को गारत कर देंगे, 
उसके फ़ौरन बाद आप का नंबर होगा. जागिए मोमिन हो जाने का पहले क़स्द करिए, 
 मोमिन बनना आसान भी नहीं, सच बोलने और सच जीने में लोहे के चने चबाने पड़ते हैं. 
मोमिन बन जाने के बाद  सब आसान हो जाता है, 
इसके बाद तरके-इस्लाम का एलान कर दीजिए.
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