Friday, 29 July 2016

बांग-ए-दरा 48





बांग-ए-दरा

योग 
(+) (-) गुणा और भाग द्वारा छेड़े बिना कोई संख्या =योग नहीं बनती, योगी निरा अयोग्य होते हुए योगी कहलाता है. 
हमारे भारतीय सभ्यता की यही त्रासदी है. 
मानव जाति कोई संख्या नहीं, एक जीव है. फिर भी इसका मुकममल योग तभी बन सकता है, जब यह विपरीत लिंग से मिले. 
स्त्री पुरुष मिलन किए बिना न योगी होते हैं न योगं. 
इन्हें आयोग कहना दुरुस्त होगा.
योगी कहे जाने वाले अक्सर विवाहित ही नहीं होते, 
अगर किसी दबाव से हो भी  गए तो, 
नियोग की ज़रुरत पड जाती है. 
नियोग भारतीय संस्कृति पुराना चलन है, 
जिससे परिणाम स्वरूप बड़े महान स्तित्व में आए हैं. 
इनके लिए बड़े बड़े पराक्रमी ऋषि मुनि हायर किए जाते थे, 
जो दर अस्ल सांड हुवा करते थे. 
मैंने कई आश्रम में रह कर देखा है कि योगी और योगन मिल कर  
किस तरह का नंगा नाच नाचते हैं. 
यह लोग बड़े शयाने होते हैं, घर परिवार की ज़िम्मेदार्यों से बचने के लिए योग मार्ग अपनाते हैं. 
इनका खर्च खराबा और कुकृतियाँ समाज ढोता है.

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नील गाय 
 किसानों की ज्वलंत समस्या पहली बार जोर शोर से मंज़र ए आप पर आई है. सूखा और बाढ़ पर तो इंसान का अभी तक कोई बस नहीं रहा मगर जिन पर बस है, वह धर्म और फिलासफी के ताने बाने में फंसे हुए हैं.
नील गाय का आतंक मैंने अपने आँखों से देखा हुवा है, 
देख कर खून के आंसू बहने लगे. 
सरकार ने शूटरों के ज़रिए नील गायों की सफाई का कम जो शुरू किया है, वह फौरी हल है, इसका मुश्तकिल हल बहुत से हैं. 
जैसे भारत के मांस एक्सपोटर गाय, बैल, भैंस और अन्य जानवरों का मांस एक्सपोर्ट करते हैं, वैसे ही नील गायों को उनके हवाले कर दिया जाए . 
अरबी नाम रख कर ८५% इसके हिन्दू एक्सपोर्टर हैं, 
भगुवा ब्रिगेड को इस पर कोई एतराज़ नहीं, 
वह तो ग़रीब ट्रक ड्राईवर और क्लीनर को नंगा कर के देखते हैं, 
फिर जानवरों की तरह उन्हें पीट पीट कर मार देते हैं 
और उनके सर पर अपने जूते रख कर ISIS के विजई की तरह फोटो खिंचवाते हैं, उन्हें कोई डर नहीं कि सरकारें उन्हें इसकी छूट देती हैं.
इन गरीबों के बाल बच्चे घर में इनके मुन्तजिर रहते हैं कि अब्बू रात को कुछ खाने ला रहे होंगे.
हमारे किसानों का दुर्भाग्य है कि वह भी इन्हीं नील गायों की तरह ही शाकाहार हैं, वरना घर आई मुफ्त की गिज़ा इनके लिए उपहार होता. बिना चर्बी का, रूखा गोश्त सेहत के लिए अच्छा होता है.
नील गायों के बचाव के पक्ष में जो धर्म भीरु नेता और दलीलों के दलाल आते हैं, उनको उनके एयर कंडीशन घरों से निकाल कर उन गावों में किसानी करने की सजा दी जाए, जिनकी फसलें रात भर में जानवर बर्बाद कर देते हैं. 
इंसान अशरफुल मखलूकात हैं, 
अगर तमाम जीव खतरे में आ जाएं तो पहले इंसान को बचाना चाहिए, क्योंकि इंसान ही तमाम प्रजातियों को बचा रखने की सलाहियत रखता है. जानवरों की प्रजातियां एक दूसरे को ख़त्म करने के फिराक में रहती हैं.
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