Tuesday 30 July 2013

Hadeesi Hadse 95


जब अबू मूसा हाकिम बना 
मुहम्मद ने अबू मूसा और मुआज़ इब्न जबल को यमन की तरफ़ हाकिम बनाकर भेजा और नसीहत की कि लोगों के साथ नरमी और शिफ़्क़त से पेश आएं.  
एक रोज़ मुआज़ खैरियत लेने अबू मूसा की तरफ़ निकल पड़े, वहां पहुँच कर देखा कि अबू मूसा अपने खच्चर पर बैठे हुए हैं और उनके गिर्द हुजूम इकठ्ठा है और एक शख्स के दोनों हाथ उसके पुश्त पर बंधे हुए हैं और वह ज़मीन पर बैठा हुवा है . मालूम हुवा कि इसने इस्लाम क़ुबूल करने के बाद फिर कुफ्र पर रागिब हो गया है. मूसा की ज़िद थी कि जब तक इसे कोई क़त्ल नहीं करता, मैं खच्चर से नहीं उतरूँगा। जब इसे क़त्ल किया गया तब मूसा ज़मीन पर आए
(बुख़ारी 1619

ऐसे ऐसे घामड के हाथों में इस्लाम की बागडोर हुवा करती थी और इस तरह इस्लामी फरमान मनवाए जाते थे। आजके ओलिमा ऐसे हाकिमो की मिसालें अपनी तकरीरो में फखरिया बयां करते है . 
जब कि क़ाबिले ज़िक्र बात ये है कि ऐसे लोग भी हुए हैं जिन्हों ने झूट और शर के आगे अपनी गर्दनें कटवा दीं. 

जब अर्श पर पानी था 
मुहम्मद कहते हैं अल्लाह तअला ने जब मख्लूक़ की तकदीर लिखी, ज़मीं और आसमान बनाने से पचास हज़ार साल पहले,. इस वक़्त अल्लाह तअला का अर्श पानी पर था
(मुस्लिम - - - किताबुल क़दीर)

और पानी किस फर्श पर क़ायम रहा होगा ?
या रसूल अल्लाह यह ख़बरें कौन आपको फ़राहम कराता था ?
क्या आप परले दर्जे के झूठे नहीं थे ?
मुसलमान आपके मक्र के चक्र में सदियों से मुब्तिला है .
आपने अपनी उम्मत की सोच को कुत्ते की दम की तरह हमेशा के लिए टेढा कर गिया है .

क़ासिद जर्रीर का मुशरिक को मुसलमान बनाना 
यमन में एक मरकज़ी मकान था जहाँ पर मुख्तलिफ़ अक़ायद के बुत रखे हुए थे. उनकी लोग पूजा किया करते थे. वहीँ पर एक शख्स बैठता था जो तीरों से फ़ाल निकाला करता था. एक दिन वहां मुहम्मद का क़ासिद जर्रीर पहुंचा और उससे कहा तीरों को तोड़ डाल नहीं तो मैं तेरी गर्दन उड़ा दूँगा और इस अम्र की गवाही दे कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं है. यह सुनते ही उसने अपने तीर तोड़ डाले और मुसलमान हो गया. 
(बुख़ारी 1624)  

* गौर तलब है कि इस तरह लोगों के सरों पर तलवार लटका कर उन्हें मुसलमान बनाया गया, यही नहीं उनसे अल्लाह के एक होने की झूटी गवाही भी दिलवाई गई . नमाज़ों से पहले अजानों में मुअज़ज़िन से भी इसी किस्म की झूटी गवाही दिलवाई जाती है. यह अजानें दिन में पांच बार दुन्या की हजारो मस्जिद से रिले की जाती है. इन अजानों में एक झूट और जोड़ दिया जाता है "मुहम्मदुर रसूल अल्लाह" यानि मुहम्मद अल्लाह के दूत हैं .   
झूट और ब आवाज़ बुलंद 
कहो समामा तुम्हारे क्या हाल हैं ?
अबू हरीरा कहते है कि मुहम्मद ने नज्द के जानिब कुछ सवार रवाना किया जो समामा को क़ैद करके लाए और मस्जिद ए नबवी में उसे बाँध दिया. मुहम्मद उधर से गुज़रे और उससे कहा 
कहो समामा तुम्हारे क्या हाल हैं ?
समामा बोला या रसूल अल्लाह मैं खैरियत रखता हूँ, आप चाहें तो मुझे क़त्ल कर दें जिस गरज़ से मुझे लाया गया है और अगर मुआफ़ कर दें, ज़िन्दगी भर आपका एहसान रहेगा, और अगर माल की ज़रुरत हो तो, जिस क़द्र चाहिए फ़रमा दीजिए . 
मुहम्मद ख़ामोशी के साथ आगे बढ़ गए . 
दूसरे दिन आकर फिर खैरियत दरयाफ्त की 
कहो समामा तुम्हारे क्या हाल हैं ?
फिर समामा की फ़रयाद को अनसुना करके आगे बढ़ गए . 
तीसरे दिन मुहम्मद उधर से फिर गुज़रे और बदस्तूर अपना जुमला दोहराया . 
कहो समामा तुम्हारे क्या हाल हैं ?
उसने फिर मुहम्मद से मिन्नत समाजत की . 
महम्मद ने इसे रिहा कर देने का हुक्म दिया।
समामा ने गुसल किया और कलिमा ए मुहम्मदी की गवाही दिया
(बुख़ारी १६२९)  

समामा ने तब तक मुहम्मदुर रसूल लिल्लाह को तस्लीम नहीं किया था, इस बात की खबर मुहम्मद को पहुंची तो उन्होंने यह तरीका ए कार अख्तियार किया . 
अरब के खित्ते में बहुत से समामा जैसे आज़ाद तबअ लोग रहा करते थे. मुहम्मद ने एक एक कर के सब को सीधा किया क़िसी को साज़िश करके क़त्ल करा दिया, किसी को सजा देकर कलमा पढने पर मजबूर किया. इंसानियत के खिलाफ उनके किरदार खुले दागदार हैं जिसे ओलिमा उल्टा जामा ही पहनाते हैं. 


जीम. मोमिन 

Tuesday 23 July 2013

Hadeesi Hadse 94


फ़तह मक्का 
मुसलमानों का काफला क़बीले वार जब मक्का के करीब पहुंचा तो अबू सुफियान ख़बर गीरी के लिए मक्का से बाहर निकला . मुकाम मजहरान में मशालों की रौशनी देख कर वह और उसके साथी रुके, काफले का अंदाज़ा कर ही रहे थे कि मुहम्मद के मुखबिरों ने इन्हें गिरफ्तार कर लिया और लेकर मुहम्मद के पास गए.
 अवामी हुजूम देख कर अबू सुफ़्यान उसी वक़्त मुसलमान हो गया. मुहम्मद ने अपने लोगों को हुक्म दिया कि इनको यहीं लेकर खड़े रहो. अबू सुफ़्यान वहीँ पर खड़ा खड़ा क़बीलों के क़तार दर क़तार देखता रहा. हर क़बीले के बारे में दरयाफ्त करता रहा 'यह कौन लोग हैं? 
अब्बास क़बीले का नाम बतलाते तो पूछता 
इनसे हम लोगों की क्या गरज़ है ?
आखीर में कबीला ए अंसार निकला जिसका परचम साद इब्न इबादा उठाए हुए थे. उन्होंने अबू सुफ़्यान को देख कर कहा  
अबू सुफ्यान ! आज बड़ा घमसान का दिन है . 
अबू सुफ्यान ने जवाब में कहा, हाँ इबादा, आज हलाक़त का बड़ा दिन है. उसी वक़्त उनके करीब मुहम्मद आए और कहा घबराओ मत, आज कोई घमसान नहीं होगा, आज सिर्फ काबे का ग़लाफ़ बदला जाएगा . 
(बुख़ारी १६०६)  

*मुहम्मद मक्के को खैबर की तरह बर्बाद करना नहीं चाहते थे, क्योंकि मक्के में इनका कबीला और इनकी कौम बस्ती थी , उनका कोई भी नुकसान उनको गवारा नहीं था . 
काबे का गिलाफ उतारा जरहा था तो एक मक्की बाशिंदा इब्न खतल गिलाफ को पकड़ कर ज़ार ओ कतार रो रहा था और गिलाफ को छोड़ नहीं रहा था, लोग मुहम्मद के पास आए और वाकिए की इत्तेला दी . 
मुहम्मद ने हुक्म दिया कि इसे क़त्ल कर दो 
हुजूम और मुहम्मद के ऐसे तेवर को देख कर किसकी हिम्मत थी खुद कशी करता ?
आलिमान इस्लाम गाते हैं की उस दिन कोई खून खराबा नहीं हुआ, गोया लोग ने हैबत में आकर इस्लाम को कुबूल कर लिया।
फ़तह मक्का इंसानियत के लिए बद तरीन दिन था कि इस दिन इस्लाम, इंसानियत पर ग़ालिब हो गया. चौदह सौ सालों से करोड़ों इंसानी जानें इस्लाम के नज़र हो गईं.   
तो जंग जीत ली जाएगी - - - 
मुहम्मद ने कहा एक ज़माना आएगा कि लोग जंग करेगे, झुण्ड के झुण्ड और आपस में एक दूसरे से दरयाफ्त करेगे कि क्या आप लोगों में किसी ने रसूल को देखा है ? 
अगर किसी ने कहा हाँ ! मैंने देखा है, 
तो वह जंग जीत ली जाएगी. 
इसके बाद ज़माना आएगा, जिहाद में लोग पूछेंगे क्या तुम में से किसी ने रसूल के सहाबियों को देखा है ? 
उनमे से अगर कोई कहेगा हाँ ! 
तो उस जंग में फ़तह होगी.  
एक वक़्त आएगा लोग जंग में पूछेंगे कि क्या तुम में से किसी ने ताबेईन को देखा है ? 
उनमे से अगर किसी ने कहा हाँ मैं ने देखा है, 
तो वह जंग जीत ली जाएगी। 
फिर वक़्त आएगा कि तबा ताबेईन को देखने वाले जंग जू जंग जीत लेंगे . (मुस्लिम - - - किताबुल फ़ज़ायल) 

 अजीब ओ गरीब था वह शख्स जो मरने के भी कुश्त खून के लिए निशान दही और अलामतें कायम कर गया . मुस्लिम दुन्या को सर जोड़ कर इस मुजरिम पर गौर करने की ज़रूरत है और इसका सही सही मुक़ाम तय करना चाहिए। मुस्लिम ओलिमा को दर किनार करके जिनका रोटी और रोज़ी इस्लाम है, को दूर रखना होगा। इनके ही छलावे में जो नव जवान हैं उनका रहनुमाई की ज़रुरत है. गैर मुस्लिम दुन्या को भी इस्लाम के बारे में एक न एक दिन सोचना और की कुछ करना होगा। हुकूक इंसानी (हयूमन राइट्स) का तअय्युन अज़ सरे-नव हो जिस में इस्लाम को भी मुजरिम मन जाना चाहिए.      
बुत शिकन 
हदीस है कि जिस दिन मुहम्मद मक्का में दाखिल हुए, ख़ाना ए काबा में 360 बुत थे, मुहम्मद के हाथ में छड़ी थी, इन पर लगाते जाते और एक कुरानी आयत पढ़ते जाते. 
(बुख़ारी १६०७)
मुहम्मद ने ३६० पत्थर के बुत हटा कर एक हवा का बुत काबे में नस्ब कर दिया,उसका नाम वहदानियत रखा. वह ३६० बुत नहीं थे बल्कि दुन्या के ३६० तबकों और तहजीबों की अलामतें थीं, जैसे आज अक़वाम मुत्तह्दा में उसके मेंबर देशों के परचम लहरा रहे हैं. मुहम्मद को इतना शऊर कहाँ था, इतनी वसअत कहाँ थी कि इस बारीकी को समझते. इनकी उम्मत इनकी बख्शी हुई उम्मियत को ही 1400 सालों से जी रही है . 


जीम. मोमिन 

Tuesday 16 July 2013

Hadeesi Hadse 93


अज़ल औरत के साथ
सहाबी अबू सईद खिज़री कहते हैं कि  जब हम लोग गिज़वः (जिन लूट मार में मुहम्मद शामिल हुए उन्हें गिज़वः कहते हैं ) के सफ़र में थे तो हमारे साथ गिज़वः के कुछ कैदी थे. उस वक़्त हम लोगों को औरतों की कुछ ज्यादह ही ज़रुरत महसूस हुई क्योंकि हमारे साथ हमारी बीवियाँ न थीं. हमने बाँदियों के साथ अज़ल करने का इरादा किया. इस फ़ेल के बाद मुहम्मद से दरयाफ्त किया. उनहोंने कहा तुम लोगों को अज़ल करने में कोई नुकसान नहीं, क्योंकि जो रूह पैदा होने वाली है, वह होकर रहेगी .
(बुख़ारी १५७८)

अबू सईद खिदरी कहते हैं कि हम लोगों को कुछ औरतें क़ैदी मिलीं और हम उनके साथ अज़ल करने लगे. मुहम्मद से पू छा, उन्हों ने कहा तुम ये करते ही रहोगे, जो रूह पैदा होने वाली है वह क़यामत के दिन तक ज़रूर पैदा होगी.
(मुस्लिम - - - किताबुल निकाह)
*अज़ल औरत के साथ ऐसे मुबाश्रत को कहते है कि ख़ुरूज से पहले तानासुल को बाहर कर लिया जाय जिससे हमल का अंदेशा नहीं रहता. देखिए कि मुहम्मद का ज़ेहनी मेयार क्या है। इस्लाम में औरत को मुकामी दर्जा है, इस पर सफ़हात रंगने वालों के मुंह पर अजली गलाज़त मल  देनी चाहिए.  जिना पर सौ कोड़े की सजा मुक़ररर करने वाले पैगम्बर बतलाएं कि  क़ैदी  और बांदी बन जाने वाली औरतें क्या माँ और बहने नहीं रह जातीं ? पैगम्बरी मर्तबा तो ये है कि मजलूम औरतों की इज्ज़त दोहरी हो जाए और वह इसलाम में आने के बाद महफूज़ हो जाय .  
ज़ालिम पैग़म्बर
अनस कहता है कि खैबर में रात के वक़्त मुहम्मद ने मफ्तूहीन को क़त्ल करने के बाद इनके बीवी बच्चों को क़ैद कर लिया . 
(बुख़ारी १५८९)

ये है इस्लामी पैगम्बर का इंसानी किरदार जिसकी मिसाल दुन्या में कहीं नहीं मिलेगी.फ़तह पाने के बाद उमूमन मुखालिफ को क़ैद कर लिया जाता था और बाल बच्चों का तो कोई कुसूर ही नहीं होता जिनको क़ैद करके मुसलमान खुले बाज़ार में नीलाम और फरोख्त किया करते थे. ऐसे ज़ालिम शख्स की पैरवी मुसलामानों को आज की दुन्या में कैसे सुर्ख रु कर सकती है .  

अबू सुफ़्यान का ख़्वाब
अब्दुल्ला बिन अब्बास से हदीस है कि अबू सुफ़्यान मुहम्मद से कई बार लड़ा था और मुहम्मद का बद तरीन दुश्मन था . एक दिन मुहम्मद से बोला - - - ऐ अल्लाह के नबी मेरी तीन बातें मानिए।
 मुहम्मद ने कहा, कहो. 
उसने कहा पहली बात मेरी बेटी हबीबा से, जोकि दुनयाँ की खूब सूरत तरीन औरत है, निकाह कर लीजिए. 
मुहम्मद ने कहा अच्छा ! 
फिर उसने कहा मेरे बेटे माविया को अपना मुंशी बना लीजिए. 
मुहम्मद ने कहा अच्छा ! 
फिर कहा मुझे काफ़िरों के साथ जंग करने की इजाज़त दीजिए, जैसा कि क़ब्ल इस्लाम मैं मुसलमानों के साथ लड़ता था. मुहम्मद ने कहा अच्छा !
(मुस्लिम - - - किताबुल फ़ज़ाइल)

मुहम्मद के हर अच्छा पर उनके मन में लड्डू फूटते थे, सुफ़्यान तो उनके दिल की बातें ही शर्त बना कर रखता था. मुहम्मद ने उसकी सारी बातें मान लीं.
 मुहम्मद की विरासत के लिए अबू सुफ़ियान, अली के मुक़ाबिले में बेहतर ही था, अली मुहम्मद के लेपालक थे और अबू सुफ़ियान मद्द ए मुक़ाबिल था. इस्लाम का बद तरीन दुश्मन होने के बाद भी मुहम्मद को अज़ीज़ था. मुहम्मद उसकी नस्लों के ख़ैर ख्वाह थे जिसने बारह पुश्तों तक हुकूमत की. उनको गुमान भी नहीं रहा होगा की अमीर माविया एक दिन क़बरस और यूनान तक अपना परचम लहराएगा . 

मुसलमान होने का पछतावा 
ओसामा बिन ज़ैद से हदीस है कि मुहम्मद ने लोगों को कबीला ए ख़ज़ाआ खिरका से जंग के लिए भेजा। जब कुफ़्फ़ार पर हम लोग ग़ालिब होने लगे तब मैं और एक अंसार ने मिल कर एक काफ़िर का पीछा करने लगे. उसने हमें ग़ालिब होता देख कर फ़ौरन कलिमा लाइलाह पढ़ लिया. ये सुन कर मेरे साथी ने पेश कदमी रोक ली लेकिन मैं ने अपना नेज़ा बढ़ा कर उसको क़त्ल कर दिया. 
जंग से वापस आकर पूरा वाक़ेआ ओसामा ने मुहम्मद को सुनाया. सुनकर मुहम्मद ने कहा 
ओसामा तुमने कालिमा पढ़ लेने के बाद भी उसको क़त्ल कर दिया ? 
ओसामा ने कहा उसने अपनी जान बचाने के लिए कालिमा पढ़ा था लेकिन मुहम्मद ने कल़ाम को इस क़दर दोहराया कि मैंने दिल में कहा 
'काश मैं इस दिन से पहले मुसलमान न हुवा होता. 
(बुख़ारी १६०१)

* मुहम्मद की हठ धर्मी पर ओसामा के दिल में एक बग़ावत की आवाज़ पैदा हुई कि मुहम्मद किस दर्ज खुद पसंद थे कि उनके नाम का झूटा सहारा भी कोई ले रहा हो तो उसे क्यों मार जाए. 
इस हदीस को ओलिमा अक्सर दोहराते हैं मगर अधूरी. कभी भी ओसामा के दिल में उठने वाला दर्द मंज़र ए आम पर नहीं लाते. 


जीम. मोमिन 

Tuesday 9 July 2013

Hadeesi Hadse 92



बुख़ारी 1560
कअब बिन अशरफ़ से बदला 

 हदीस है कि मुहम्मद ने अपने सहाबियों को मुखातिब होकर कहा तुम में से कौन ऐसा शख्स है जो कअब बिन अशरफ़ की तरफ से मेरे दिल को खुश करे ? क्योंकि इसने अल्लाह और अल्लाह के रसूल को तकलीफ दी है . 
यह सुनकर मुहम्मद इब्न मुस्लिमा ने पूछा या रसूलिल्लाह क्या आप चाहते है उसे क़त्ल कर दिया जाय ?
मुहम्मद ने कहा हाँ .
मुहम्मद बिन मुसल्लिमा ने एक साज़िश रची और कअब बिन अशरफ़ के पास गया और कहा मुहम्मद ने मुझे एक मुसीबत में डाल दिया है , वह हम से सदका तलब करता है , तुम मुझे एक या दो दशक खजूरें क़र्ज़ दो ताकि मेरी जान छूटे . 
कअब बिन अशरफ़ ने इसके बदले उसकी बीवी और बच्चों को रहन रखने की शर्त रखी जिसे वह टाल गया मगर अपने हथ्यार रहन रखने पर राज़ी हो गया और रात को आने का वादा करके चला गया . 
रात को जब वह कअब बिन अशरफ़ के घर पहुंचा तो उसके रिश्ते का भाई अबू नायला इसकी साजिश में शामिल हो गया । अबू नायला ने कअब बिन अशरफ़ को आवाज़ लगाई और मुस्लिम के आने की इत्तेला दी . 
कअब बिन अशरफ़ अपने रजाई भाई की आवाज़ सुन कर मुतमईन हो गया और दरवाज़ा खोल दिया। कुछ देर बाद ही दोनों ने मिल कर कअब बिन अशरफ़ का काम तमाम कर दिया .
  
**मुन्ताकिम अल्लाह के मुन्ताकिम रसूल की बातनी सूरत देखिए जिनको मुसलमान सरवरे कायनात कहते हैं कि अपनी ही उम्मत से कितना बोग्ज़ रखते थे , किस क़दर कीना परवर थे . सहाबए किराम का घटिया तरीन किरदार देखिए कि जिन्हें आप अपने ईमान का मीनार तसुव्वर करते हैं , किस कद्र गलीज़ हुवा करते थे . ज़्यादः तर मुहम्मद के साथी ऐसे ही थे जिनका हम गुणगान करते करते नहीं थकते . यह सब उन ओलिमा की बरकत है जिनको मैं "अपनी माँ के ख़सम" लिखता हूँ .
 मुहम्मद अपने रकीब को क़त्ल करके दिल की ठंडक महसूस करते हैं और दावा करते हैं पैगम्बरी का , आज के माहौल में इसे माफिया सरगना का कारनामा कहा जाता है . इनकी पैरवी करते हुए अरब हुक्मरानों ने अपने हरीफ के साथ हमेशा यही सुलूक किया है . तारीख इस्लाम देखें , पाएँगे कि बहुत कम हुक्मरानों ने लंबी उम्र और फितरी मौत पाई है . अफ़सोस और हैरत का मुक़ाम यह है कि मुहम्मद जिनके अन्दर दूर दूर तक आला इंसानी क़दरों की झलक तक नहीं थी , उनकी बड़ी उम्मत मौजूद है, ऐसे रहनुमा की उम्मत का जो हशर होना चाहिए वह मुसलमानो की शक्ल में मौजूद है . मुसलमानों की पस्ती की वजह इनका पैगम्बर है और उसकी रची हुई कुरआन सामने है , कहीं जाने की ज़रुरत नहीं है 
मुस्लिम - - - किताबुल मसाइल 

अब्दुल्ला बिन उमर कहते हैं कि हम ज़ैद बिन हारसा को ज़ैद बिन मुहम्मद कहा करते थे , इस लिए कि आपने_(मुहम्मद ने) इसे गोद लिया था , यहाँ तक कि कुरान में उतरा 
"पुकारो इन्हें इनके बापों की तरफ निस्बत करके , यह अच्छा है अल्लाह के नज़दीक . "
*यह अब्दुल्ला बिन उम्र की मुस्तनद गवाही है की ज़ैद एक ज़माने तक मुहम्मद का बेटा रहा जिसकी बीवी जैनब से मुहम्मद ने नाजायज रिश्ता बना लिया थ। बाद में इसे बिन ब्याही बीवी बना कर जिंदगी भर इस्लामी कानून के एतबार से हराम कारी करते रहे ऐसे सैकड़ों मुआमले हैं जिसके तहत मुहम्मद पर बार बार संग सारी की जा सकती है. 
 
बुख़ारी १५६१ 
मुन्तक़िम रसूल 

मुहम्मद का एक कट्टर मुखालिफ अबू राफ़े नाम का एक ताजिर हुवा करता था जो कि बड़ा मुखय्यर था और मदीने में किला बनवाकर रहता था . इक़्तेदार में आने के बाद मुहम्मद ने इसे सजा देने की ठान ली . उन्होंने उसे क़त्ल कर देने का मंसूबा बनाया . इसके लिए उन्हों ने अब्दुल्ला इब्न अतीक के साथ कुछ अंसारियों को रवाना किया . दिन ढल रहा था , उसने अपने साथियों को किले के बाहर छिपा दिया और खुद दरबान को एतमाद में लेकर किले के अन्दर दाखिल हो गया . इसने अन्दर जाकर देखा कि अबू राफे अपने अहबाब के साथ किस्सा गोई का लुत्फ़ ले रहा है .वह वहीँ दुबक कर बैठ गया और महफ़िल के ख़त्म होने का इंतज़ार करने लगा . जब सब चले गए तो अबू राफे अपने बाल बच्चों से मह्व गुफ्तुगू था . अतीक चराग बुझने का इंतज़ार करने लगा , अँधेरा होते ही उसने अबू राफ़े को क़त्ल कर दिया और क़िला फांद कर बाहर आ गया, जिसमे इसका एक पैर भी टूट गया . इसने मुहम्मद के पास आकर पूरी रूदाद सुनाई और शाबाशी भी इनाम के साथ साथ लिया . 

  *क्या यह ओछी हरकत किसी पैगम्बराना शान के शायान ए शान है ?
मुहम्मद को इनके जाँ निसार मुहसिन ए इंसानियत कहते हैं जब कि मुहम्मद अपने मुखालिफों के बद  तरीन दुश्मन थे . उनकी ज़ालिमाना फितरत का आइना दार क़ुरआन है जो इन्तेकामी आग से भरा हुवा है . मुहम्मद को अपना अदना से अदना मुखालिफ भी गवारा न था . 

बुखारी १५६४ 
तुझ पर मेरे माँ बाप कुर्बान 

सहाबी सईद इब्न वेक़ास कहते हैं कि मुहम्मद जंगे ओहद के दिन अपने तमाम तीर तरकश से निकाल निकाल कर हमें देते जाते थे और कहते जाते थे कि तुझ पर मेरे माँ बाप कुर्बान , तीर मारे जा. 
**मुहम्मद की माँ इनके पैदा होने के कुछ साल बाद ही अल्लाह को प्यारी हो गई थीं और बाप इनकी विलादत से पहले ही बीमार होकर मर गए थे . यही इनकी बद नसीबी है. अगर मां बाप का साया इन के सर पर इनकी उम्र पयंबरी तक कायम रहता तो यह उनको एक एक तीर पर कुर्बान न करते, जिनके पैरों तले बच्चों की जन्नत दबी हुई होती है उनकी शान में ऐसा मुहाविरा रायज न करते . 
इसी तरह उनकी कोई बड़ी या छोटी बहन होती तो औरतों के हक में ऐसी नाज़ेबा हदीसें न बघारते . सच तो यह है क़ि मुहम्मद अपने भाई बहन जैसे खूनी रिश्तों से महरूम रहे हैं ,जिस से फर्द में हुब्ब और एहतराम का जज्बा पनपता है . वह इसी लिए हर मौके पर इंसानी खून के प्यासे नज़र आते हैं उनमे एक बद तरीन खू यह थी कि वह अपने बुजुर्गों और मोह्सिनो के हक़ में एहसान फरामोश थे . अबू लहब उनके ऐसे चचा थे जिन्होंने इनकी विलादत की ख़ुशी में अपनी बांदी को आज़ाद कर दिया था और उसे भतीजे के लिए दूध पिल़ाने की नौकरी दे दी थी , वजह ये कि मुहहम्मद उनके मरहूम भाई अब्दुल्ला की निशानी थे.  
उनहोंने मुहम्मद को इतना निभाया कि मुहम्मद की दो बेटियों को अपनी बहू बना लिया था . अबू लहब का कुसूर सिर्फ इतना था कि जब मुहम्मद ने अपने पयंबरी का जब एलान किया तो उन्हों ने इनको झिड़क दिया था . दर असल यह तो उसका कोई कुसूर ही न था. अबू लहब पर सूरह लहब उतार कर मुसलमानों की नज़र में हमेशा के लिए उनको रुसवा कर गए मगर उनकी एक पहचान बन गई कि वह अमर हो गए. 
अबू लहब इंसानियत के आईने में एक मजलूम तरीन इंसान है जिसको सुलूकों और एहसानों के बदले मुहम्मद ने उनको वह सजा दी है कि जिसकी मिसाल नहीं मिलती. कहते है कि मरने के बाद उनके घर पर संगसारी इस क़दर कराइ कि  उनका घर दफन हो गया. 


जीम. मोमिन 

Wednesday 3 July 2013

Hadeesi Hadse 91 --१५४७-


मुस्लिम - - - किताबुल फ़ज़ाइल 
सहाबी अनस कहता है - - -
मुहम्मद ने पानी माँगा तो एक कडा लाया गया , फैला हुवा, लोग इसमें से वजू करने लगे . मैंने अंदाज़ा लगाया तो 60से 80 लोग थे . मैं पानी को देख रहा था जो आपकी (मुहम्मद की) उँगलियों से फ़ूट रहा था
हदीसों की दुन्या में अनस झूठा तरीन इंसान था. कई हदीसें इससे मंसूब हैं . इसका ज़रीया मुआश गालिबन हदीस तराशी रहा होगा . मक्का से हिजरत में मुहम्मद भूक और प्यास के शिकार जब अपने लिए कुछ न कर पाए तो ऐसी हदीसें क्या मानी रखती हैं .  
 बुखारी १५४७ 
जंग बदर में मुहम्मद की क़ल्ब सियाही
हदीस है कि जंग ए बदर की फतह के बाद मुहम्मद ने कुरैश सरदारों की बीस लाशें एक पक्के कुवें में फिकवा दिया . मुहम्मद का क़ायदा था क़ि जब किसी कौम पर फतह पाते तो उस मुकाम पर तीन दिन कयाम करते थे, तीसरे दिन मुहम्मद घोड़े पर सवार होकर लोगों के साथ उस कुवें पर गए जिसे लाशों से पटवा चुके थे. वहां उन्होंने सभी मक्तूलीन का नाम मय उनकी वल्दियत के साथ पुकारा और कहा " ऐ फलां इब्न ए फलां क्या तुम्हें अब मालूम हुवा कि तुम्हारे लिए अल्लाह और उसके रसूल की इताअत अच्छी थी ? हमने तो अपने रब के वादे को पूरा पाया , क्या तुमने भी इसके वादे को पूरा देख लिया ?"
यह खिताब सुन कर खलीफा उमर आगे बढे और अर्ज़ किया "या रसूल अल्लाह आप ऐसे जिस्मों को ख़िताब कर रहे हैं जिनमें रूह नहीं "  
मुहम्मद ने कहा उस जात की क़सम जिसके कब्जे में मेरी जान है ,यह लोग जितना मेरी बातें सुनते हैं उतना तुम भी नहीं सुन सकते , सिर्फ इतनी सी बात है कि यह जवाब नहीं दे सकते ."
दूसरी हदीस 
 किताबुल जन्नत वसिफ़्ता
*अनस बिन मालिक से रवायत है की मुहम्मद ने जंग बदर में  मकतूलीन की लाशें तीन दिनों तक मैदान में पड़ी रहने दिया और सडती रहने दिया , फिर लाशों के पास जाकर नाम बनाम एक एक को अपने रिसालत की कामयाबी जतलाई . इसके बाद सभी को बदर के कुवें में फिंकवा दिया .

अभी हाल में ही कारगिल की जंग में बरामद होने वाली पाकिस्तानी फौजियों की मय्यतों को भारतीय फौजजियों ने बाद नमाज़ जनाज़ा दफन कर दिया ,यह था एक गैर इस्लामी मुल्क का किरदार . इंसानों के लिए अल्लाह के रसूल का दावा करने वाले मुहम्मद ने उन इंसानी लाशों के साथ जो सुलूक क्या उसे सुन कर सर शर्म से झुक जाता है . वह लाशें जो मुहम्मद के बुजुर्गों और अजीजों की थीं .
यह तो थी उनकी इन्फ्रादियत के साथ सियाह क़ल्बी , और इज्तेमैयत के साथ उनका जुर्म यह था कि अरब के कीमती कुएँ को लाशों से पटना , वह भी अरब जैसे वीरान मुल्क का कीमती कुवाँ जो कि पक्का हुवा करता था . मुहम्मद की तहरीक का कोई हिस्सा भी तामीरी नहीं है . न कुँए की तामीर न शाहराहों की तामीर न शजर कारी न सरायं न अवाम के लिए फलाह ओ बहबूद के कोई काम . हैरत का मुकाम है कि ऐसे मूजी शख्स को लोग सदियों से दरूद ओ सलाम भेज रहे हैं . 
ज़मीनी सच्चाई यह है कि किसी चोर डकैत और लुटेरे की लूटी हुई दौलत उसके औलादों के काम नहीं आती बल्कि नफी में उल्टा ले जाती है . इसी तरह ज़ुल्म ओ ज्यादती और झूट पर कायम मज़हब इसकी उम्मत के लिए मुज़िर ही साबित होगा . इस्लाम ने जितनी भी ज्यादतियां इन्सान और इंसानियत के साथ की हैं , सब इसके मानने वालों को भुगतना पद रहा है . इस्लाम को जल्द अज जल्द तर्क करने की ज़रुरत है .    
बुखारी १५५८ 
पेड़ भी काफिर 
इब्न ए उम्र से रवायत है कि मुहम्मद ने बनू नुज़ैर के मुकाम बवेरा में तमाम बाग़ात में आग लगा दी थी और तमाम दरख़्त काट कर फेंक दिए थे और कहा यह अल्लाह का कुरानी हुक्म था . 
शख्सियत के पुजारियों ! अगर पूजा ही तुम्हारी खुराक है तो किसी हस्ती ए सिदक की पूजा करो. मुहम्मद की दारोग तरीन ज़िदा बुत की पूजा क्यों ?  पेड़ को काट डालना और बागात को आग के हवाले करना अज़ाब ए जारिया है , जिस अल्लाह ने इस काम की राय दी होगी वह खुद में गुनाहगार और मरदूद है.  


जीम. मोमिन