Friday 27 February 2015

Hadeesi hadse 33


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हदीसी हादसे 
बुखारी 1165 
मुहम्मद कहते हैं कि जब किसी शख्स को खुद की राह में कोई ज़ख्म लगता है, 
खुदा की कौन सी राह कि जिसमें इंसान ज़ख़्मी होता है ? 
मुहम्मद के जेहन में एक सवाल पैदा होता है - - -
यह तो अल्लाह को ही बेहतर मालूम है , 
खुद जवाब देते हैं .
कहते हैं क़यामत के दिन उस शख्स के ज़ख्म से ताजः ताजः खून बहता हुआ नज़र आएगा जिस से मुश्क की कुश्बू फूटेगी .
* मुहम्मद जब झूट के पुल बांधते थे तो यह बात भूल जाते थे कि कुछ लोग इतने बेवकूफ नहीं हैं कि उनकी बातों का यकीन करें। जब मुहम्मद को अल्लाह की वह राह ही मालूम नहीं है तो यह कैसे मालूम हुवा की ज़ख़्मी बन्दा अपने ज़ख्मों के घाव ढोता कयामत के दिन रुसवाई उठाएगा और अपने ज़ख्मों को लोगों को सुंघाता फिरेगा कि 
"ऐ लोगो ! मेरे ज़ख्म से बेजार मत होइए , सूंघिए कि इसमें से मुश्क की खुश्बू आ रही है। पता नहीं कौन सा मेरा काम पसंद आया कि अल्लाह ने यह ज़िल्लत ढोने की सजा मुझे दी है?
मुहम्मद इन हदीसों में अव्वल दर्जे के कठ मुल्ले लगते हैं जो मुस्लिम कौम के तकदीर बने हुए हैं।
बुखारी 1169
एक खातून मुहम्मद के सामने हाज़िर हुईं जिन का बेटा जंगे-बदर में मारा गया था 
उसने पूछा , या रसूल अल्लाह मेरा लड़का जंग में शहीद हुवा , क्या वह जन्नत में दाखिल हुवा?
अगर ऐसा नहीं हुवा होगा तो मैं खूब रोउंगी और चिल्ला चिल्ला कर शोर मचाऊंगी।
मुहम्मद बोले वह जन्नतों में जन्नत , जन्नतुल-फिरदोस में गया .
* यह मुहम्मद का झूट ही नहीं था बल्कि लोगों के साथ दगा बाज़ी थी जिसका यकीन कर के उन्हें मुफ्त में लुटेरे और डाकू मिल जाते थे जो जिहाद के नाम पर बस्तियों में डाका डालते और लूट का माल सरदार मुहम्मद के हवाले करते। चौदह सौ सालों के बाद भी आज मुस्लिम ओलिमा जिहाद की अजमत बयान करते है। और तालिबान जिहादी आज भी मलाला जैसी मासूम पर जिनसे-नाज़ुक पर गोलीयाँ बरसते हैं। इस्लामी मुजाहिद अपनी नामर्दी को जिहाद कहते हैं।

बुखारी 1171
आयशा कहती हैं उनके शौहर मुहम्मद जंगे-खंदक से फारिग हो कर जूं ही घर लौटे और हथ्यार रख ही रहे थे कि हज़रात जिब्रील आए और बोले या रसूल आप ने हथ्यार रख दिए क्या ? 
मुहम्मद बोले क्यों कही और जंग होनी है ?
जिब्रील ने कहा जी हाँ ! बनी क़रीफला में .
मुहम्मद ने हथ्यार उठाए और जंग के लिए निकल गए।
*आयशा मुहम्मद की मौत के बाद ही बालिग़ हुई थीं , उस वक़्त उनकी उम्र थी 18 साल थीं। जब जेहनी तौर पर बालिग़ हुईं तो अपने शौहर की बखान में हदीसें बघारने लगी,.
मुहम्मद की शरीक-हयात मुहम्मद 'शरीके-दारोग' बन गईं। 
आलिमान दीन उन के हर झूट को खूब जानते हैं मगर उनके नाम के साथ रज़ी अल्लाह अन्हा लगाना नहीं भूलते। 
एक दूसरी हदीस आगे आएगी जिसमे बैठे बैठे मुहम्मद कहते हैं - - 
"आयशा जिब्रील अलैहिस्सलाम तुम को सलाम अर्ज़ करते हैं"
वालेकुम अस्सलाम कहते हुए आयशा कहती है जिब्रील अलैहिस्सलाम आपको ही दिखाई और सुनाई पड़ते हैं , मुझे क्यों नहीं ? - - - 
यह हदीस साबित करती है कि आयशा किस कद्र झूटी और मक्कार औरत थीं। 
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जीम. मोमिन 

Wednesday 18 February 2015

Hadeesi Hadse 32


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हदीसी हादसे 32
बुखारी 1157
किसी ने मुहम्मद से पूछा कि कौन सा काम अफज़ल और बेहतर है? 
जवाब था जिहाद, अपनी जान और माल के साथ। 
इसके बाद?
किसी पहाड़ी घाटी में मसरुफे-इबादत रहना .
*जिहाद जिसमे इंसानी जिंदगी का सफ़ाया , यहाँ तक ही मासूम बच्चों और अबला औरतों को भी मौत के घाट उतार देना , उसके बाद भी उनके माल मता को लूट लेना . उनकी खेती बड़ी में आग लगा के तबाह ओ बर्बाद कर देना . 
अली मौला तो इस से भी आगे बढ़ गए थे कि उन्होंने समूची बस्ती को बमय इंसानी जानों के , के हवाले कर दिया था। उनके चाचा अब्बास ने उनकी इस हरकत की मज़म्मत की कि अली ने बन्दों को वह सजा दी है जो सिर्फ अल्लाह को हक है। 
पहाड़ी घटी में मसरूफ ए इबादत रहना कोई ऐसा काम नहीं जिस से मखलूक का कोई भला होता हो। यह महज़ खुद फरेबी है या फिर नाकार्गी . मुहम्मद भी गारे-हिरा में मुराक्बा में जाते थे, ज़हनों में साजिशी मंसूबे बनाते थे जो बिल-आखिर इस्लामी तबाही बन कर पूरी दुन्य के लिए एक अज़ाब साबित हुवा।

बुखारी 1159
मुहम्मद कहते हैं जन्नत के सौ दर्जात अल्लाह ने मुरत्तब किए है जो जिहादियों के लिए मखसूस हैं , इनमें से एक दूसरे में फासला इतना है जितना ज़मीं ओ आसमान के बीच का होता है। जन्नाओं में अफज़ल जन्नत , जन्नतुल फिरदोस है जो सातवें आसमान पर अल्लाह के साथ है और जन्नतों की तमाम नहरें इसी से निकली हुई हैं .
* मुहम्मद बेकारी में बैठे बैठे कुछ न कुछ गढ़ंत गढ़ा करते।उनकी बातों को सोच कर हैरानी होती है की इंसानी जेहन उसे कुबूल कैसे करता? पहले यह बातें तलवार के साए में रहने वाले मजबूरी में मान लिया करते थे, उस के बाद उनकी नस्लों को तालीम-नाकिस ने मनवाया। आज के ज्यादह हिस्सा मुसलमान मुहम्मद को अल्लाह का राजदार मानता है कि अल्लाह ही मुहम्मद को इन बातों का इल्म देता रहा होगा।
यह लोग कैसे सोच सकते हैं की मुहम्मदी अल्लाह खुद मुहम्मद का रचा हुवा है .
अफ़सोस कि मुहम्मद ने मानव समाज की सदियों की सदियाँ ज़ाए कर दिया .
बुखारी 1161
मुहम्मद कहते हैं जिहादी सफ़र के लिए सूरज निकलने और डूबने के दरमियान निकलना ख़ैर ओ बरकत का वक़्त होता है .
*यह तो घर से दिनों दिन जिहाद के लिए निकलने की राय देते हैं मगर काफिरों पर हमले का वक़्त रात का चौथा पहर बतलाया है जब कि लोग आखरी नींद ले रहे हों। ज़ाहिर है कि वह इस आलम में जवाबी हमले की तय्यारी कैसे कर सकते है। डाकुओं का गिरोह हुवा करता था, सुब्ह सुब्ह बस्ती पर यलगार करके बस्ती को तहे-तैग कर देते। जवानो को चुन चुन कर मारते, औरतें और बच्चे गुलाम और लौंडी बना लिए जाते।
बुखारी 1162 
मुहम्मद कहते हैं अगर जन्नत से कोई हूर नीचे ज़मीं पर झाँक ले तो उसके हुस्ने- जमाल से तमाम कायनात रौशन और मुअत्तर हो जाए . सके सर की ओढनी दुन्या और माफिया , दोनों से आला और अफज़ल है .
*अय्याश तबअ खुद साख्ता रसूल ख्बाबों की जन्नत की सैर हर रहे हैं . 


जीम. मोमिन 

Wednesday 11 February 2015

Hadeesi Hadse 31


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हदीसी हादसे 
बुखारी 1142
दो शख्स मुहम्मद के पास आते हैं और अर्ज़ करते है कि हम दोनों के मामले को आप अल्लाह के किताब के हिसाब से निपटा दीजिए . उनमें से पहला बयान करता है कि मेरे बेटे ने इसकी बीवी के साथ जिना कर डाला है, इसके लिए मैंने सौ बकरियां जुरमाना अदा किया और एक गुलाम आज़ाद किया . अब ओलिमा कह रहे है कि मेरे बेटे को सौ कोड़े तो लगेगे ही .
मुहम्मद ने मुक़दमा सुनने के बाद कहा कि तुम्हारे बेटे को सौ कोड़े तो लगेंगे है और एक साल की शहर बद्री भी होगी . तुम्हारी सौ बकरियां तुमको वापस मिल जाएंगी .
इसके बाद मुहम्मद उस औरत के पास गए जिसने जिना कराया था , उसने अपना गुनाह कबूल कर लिया और उसको संग सार करके मौत के घाट उतर दिया गया .
*खुद मुहम्मद की अय्याशियाँ और जिना कारियां रवाँ दवां थी और मुहम्मद लोगों से कहते फिरते कि अल्लाह ने उनकी अगली और पिछली सारी गलतियाँ माफ़ किए हुए है।

 बुखारी 1144`
क़रार हदीबिया का ज़िक्र इस से पहले के अबवाब में आ चुका है, यहाँ पर मैं अबूबकर की जुबान दानी को उजागर करना चाहूँगा और मुहम्मद की नियत को भी .
अबुबकर इरवा से कहते हैं
" भाग जा अपने माबूद की शर्म गाह (लिंग) जाकर चूस "
इरवा ने लोगों से दरयाफ्त किया, यह कौन है?
लोगों ने कहा अबुबकर , इरवा नाम सुनकर बोला तेरे कुछ एहसान हम पर हैं वर्ना मैं तुझको तेरे लब  ओ लहजे में ही जवाब देता।
इरवा फिर मुहम्मद से मुखातिब हुवा , वह अपनी हर बात पर मुहम्मद की दाढ़ी में हाथ लगा देता, यह देख कर मुगीरा इब्न शोएबः ने कहा
हुज़ूर अक्दस  की दाढ़ी से हाथ अलग रख। ये सुन कर उसने लोगों से पूछा कि
ये कौन है?
लोगों ने बतलाया ये मुगीरा इब्न शोएबः है।
इरवा ने कहा " ऐ दगा बाज़ ! क्या मैं तेरी गद्दारी की दफीयः में कोशिश न की थी (मुगीरा का वाकिया यूं हुवा था कि ये एक गिरोह का हमराही बन गया था , फिर इन लोगों को सोते में क़त्ल करके और उनका सारा मॉल लेकर फरार हो गया था .उसके बाद सीधा मुहम्मद के पास पहुंचा और इस शर्त पर इस्लाम क़ुबूल करने की बात की कि वह अपने लूटे हुए मॉल में से उन को कोई हिस्सा न देगा . मुहम्मद को ऐसे लोगों की सख्त ज़रूरत थी जो क़त्ल के हुनर को और मक्र ओ फ़रेब में यकता हो ,गरज़ मुगीरा को उन्हों ने गले लगाया।
इसी हदीस में एक नामी लुटेरे डाकू अबू बसीर का भी ज़िक्र है।
सुलह हदीबिया के तहत मुहम्मद और कुरैश के दरमियान एक मुआहिदा हुआ था कि मक्का और मदीने से जो लोग  एक जगह से दूसरे के हद में दाखिल हों उन्हें दोनों फरीक अपने यहाँ से वापस उसके हद में भेज दे।
इसी दौरान अबू बसीर मक्के से मदीना आ गया था। इसे वापस करने के लिए कुरैशियों ने दो शख्स मदीना भेजा , मुहम्मद ने क़रार के मुताबिक अबू बसीर को उनके हवाले कर दिया।
रस्ते में दोनों हकवारों को घता बतला कर अबू बसीर उनकी तलवार ले लेता है और एक को क़त्ल कर के भाग जाता है . वह मदीने पहुँच कर मुहम्मद से मिलता है और कहता है
आपने अपने करार के मुताबिक मुझे मक्कियों के हवाले कर दिया, बस आपकी जिम्मे दारी ख़त्म हुई .
उसी वक़्त दूसरा हक्वारा आ जाता है।
अबू बसीर ने खुद को फिर उसके हवाले करने का मुहम्मद की मंशा देखा तो वहां से भाग खड़ा हुवा , वह साहिले-दरया पहुँचा .
उसकी खबर सुन कर मदीने का एक मुजरिम अबू जिंदाल भी उसके पास पहुँच गया। दोनों ने मिल कर कुरैश क़बीलों को लूटना शुरू किया, तो नौबत यहाँ तक आ पहुंची कि  कुरैशियों ने मुहम्मद को इत्तेला किया कि अबू बसीर को बेहतर होगा कि आप अपने पास बुला लें।
इस तरह इस्लाम के सहाबिए किराम इंफ्रादी तौर पर बद किरदार लुटेरे और समाजी मुजरिम हुवा करते थे जिन पर हम दरूद ओ सलाम भेजा करते हैं .
हदीस तवील है जो ग़ैर ज़रूरी है।


जीम. मोमिन