Tuesday 30 December 2014

Hadeesi Hadse 26


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हदीसी हादसे 26

बुखारी ९४१
मुहम्मद की बीवी खदीजा ने अपने शौहर से पूछा कि लोग गोश्त हमें भेज देते है, पता नहीं हलाल होता भी है ? मुहम्मद ने कहा बिस्मिल्लाह करके खा लिया करो.
*मगर आजका मुसलमान ग़ैर हलाल गोश्त को किसी हाल में नहीं खायगा,भले शराब गले तक पी ले.                          
बुखारी ९४६
मुहम्मद कहते है कि अपने हाथ की कमाई हुई रोज़ी ही सब से बढ़ कर है. आगे कहते हैं कि दाऊद खुद मशक्क़त की रोज़ी कमाते थे.
*पहली बात तो ठीक है मगर दाऊद एक लुटेरा डाकू से बादशाह बन गया, आप जनाब इसकी हकीकत से नावाकिफ़ हैं.बस उड़ाते हैं.
बुखारी ९५६
सहाबी जाबिर कहता है कि एक जिहाद के बाद मैं मुहम्मद के साथ घर वापस हो रहा था, मुहम्मद ने पूछा कि शादी कर लिया है?
मैंने कहा हाँ,
कहा कुंवारी से या ब्याहता से?
मैं ने कहा ब्याहता से . 
कहने लगे कुंवारी से किया होता, तुम उसके साथ खेलते, वह तुमहारे साथ खेलती.
*इसी वजेह से इन्हें रंगीला रसूल कहा जाता है. और ओलिमा इन्हें बेवाओं का मसीहा बतलाते हैं.
 बुखारी ९४०
बड़े भाई इतबा ने छोटे भाई साद को वसीहत की थी कि ज़िमा की लौड़ी का बच्चा मेरे नुतफे से है,जब वह पैदा हो तो तुम उसे ले लेना. फ़तेह मक्का में इतबा मारे गए और लौंडी ने बच्चा जना, गोया साद उसको लेने पहुंचे. ज़िमा के बेटे ने बच्चे को देने से इनकार कर दिया और दलील दी कि बच्चा मेरा भाई है क्योंकि मेरे बाप की मातहती में पैदा हुवा हैं इस लिए मेरा हुवा. मुआमला मुहम्मद तक पहुँच तो उन्हों ने कहा बच्चा इब्ने ज़िमा का है हलाकि बच्चे की मुशाबिहत इतबा से मिल रही थी. कहा ज़ानी के लिए तो पत्थर है.
*मुहम्मद अपने मुआमले को भूल गए जब लौड़ी मार्या से बेटा इब्राहीम पैदा हुवा और एलान्या उसे अपनी औलाद कहा और उसका अकीक़ा भी किया.
कहते हैं हम अल्लाह के रसूल ठहरे,  इस लिए मेरे सारे गुनाह मुआफ. ऐसे ढीठ थे तुमहारे पैगम्बर, ऐ मुसलमानों!
बुखारी ९०४
मुहम्मद ने दौरान सफ़र देखा कि एक जगह लोगों का अजदहाम है, मुआमला जानना चाहा, लोगों ने बतलाया कि एक रोज़ेदार पर लोग साया किए हुए हैं. उन्हों ने कहा सफ़र में रोज़ा कोई नेक काम नहीं है, अपनी जन को हलाक़त में मत डालो.
बुखारी ९४०
एक शख्स आया और मुहम्मद से कहा 
मैं तो मर गया, रोज़े के आलम में बीवी के साथ मुबाश्रत कर बैठा? 
मुहम्मद ने उससे पूछा तुम दो गुलाम आज़ाद कर सकते हो? 
कहा नहीं. 
पूछा दो महीने रोज़े रख सकते हो? 
बोला नहीं.
फिर पूछा ६० मोहताजों को खाना खिला सकते हो? बोला नहीं.
इसी दौरान एक थैला सदक़े का खजूर कोई ले आया, मुहम्मद ने थैला किसी को थमाते हुए कहा ये लो सदक़ा गरीबों में तकसीम करदो. 
वह बोला या रसूल अल्लाह मुझ से बड़ा गरीब मदीने में कोई नहीं. 
मुहम्मद मुस्कुरा पड़े और उसे दे दिया कि लो अपने बच्चों को खिलाओ.
*ऐसी भी हुवा करती थी मुहम्मदी उम्मत .
जीम. मोमिन 

Tuesday 23 December 2014

Hadeesi Hadse 25


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बुखारी ९९४ 
अबू सुफ्यान की बीवी ने मुहम्मद से पूछा कि अपने बखील शौहर की जेब से कुछ रक़म चुरा लिया करूं तो कोई मुज़ाईक़ा तो नहीं?
जवाब था "हाँ! अपने बाल बच्चो की ज़रुरत भर चुरा लिया करो."
यही मुहम्मद एक ज़ईफा जो कि खुद इनके खानदान से तअल्लुक़ रखती थीं, की तीन पैसे की मामूली चोरी पर अपने हाथों से उनका हाथ कट दिया था.
दोहरा मेयार मुहम्मद की खू रहा. 
 
अब देखिए की इस्लामी हदीसें क्या क्या बकती हैं - - -

बुखारी ९७७
मुहम्मद कहते हैं कि अगर किसी लौंडी के ज़िना कराने का इल्म उसके आक़ा को हो जाय, उसे सिर्फ समझाने  बुझाने की किफ़ायत न करे बल्कि कोड़े से उसकी खबर ले, और अगर दोबारा वह ज़िना करे तो भी कोड़े बरसाए , तीसरी बार अगर ज़िना करे तो उसको किसी के हाथ एक बाल की रस्सी के एवज़ बेच दे.  
*ऐमन से लेकर मारया के साथ दर्जनों लौंडियों से खुद ज़िना कारी के मुजरिम मुहम्मद किस मुंह से दूसरे को कोड़े की सजा तजवीज़ करते हैं.                                         
बुखारी ९५९
आयशा ने अपने शौहर मुहम्मद के लिए एक तोशक खरीदी जिस पर बेल बूटे और परिंदों की तस्वीरें थीं, कि उनको तोहफा देंगे. मुहम्मद उसे देख कर कबीदा खातिर हुए, कहा कि क़यामत के रोज़ इन तस्वीरों में जान डालना पड़ेगा. आयशा  की खुशियाँ काफूर हो गईं.
*पूरे मुस्लिम कौम की खुशियाँ इस हदीस से महरूम हैं.कि तस्वीर बनाना और घरों में सजाना गुनाह समझते हैं.
बुखारी ९६२
मुहम्मद ने अपनी बीवी आयशा से कहा एक रोज़ कोई लश्कर आएगा कि काबा पर चढ़ाई करने की नियत रख्खेगा, मुकाम बैदा में ज़मीन में धंस जाएगा. आयशा ने पूछा क्या वह लोग भी धंस जाएँगे जिनकी नियत जंग की न होगी, तिजारत की होगी?
*मुहम्मद का जवाब गोल मॉल था, कहा कि क़यामत के दिन सबको उनकी नियत ए नेक या नियत ए बद के हिसाब से उठाया जाएगा
बुखारी ९६3 
बाज़ार में मुहम्मद को छेड़ते हुए एक शख्स ने उनके पीछे से आवाज़ दी "अबू कासिम !"
मुहम्मद ने गर्दन मोड़ कर पीछे देखा तो आवाज़ देने वाले ने कहा " मैं ने आप को नहीं बुलाया, कोई और है."
मुहम्मद ने कहा "मेरा नाम रखा जा सकता है, मेरी कुन्नियत नहीं."
* मुहम्मद की कद्रो-कीमत ऐसी थी कि लोग राह चलते उन्हें छेड़ते.


जीम. मोमिन 

Tuesday 9 December 2014

Hadeesi hadse 24


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हदीसी हादसे 24

बुखारी १०६४ 
मुहम्मद कहते हैं क़यामत के दिन ईमान दारों को दोज़ख और जन्नत के दरमियाँ एक पुल पर खड़ा किया जायगा. वह जब दुन्या के मज़ालिम को आपस में अदला बदली करके पाक साफ़ हो जाएँगे तो उस वक़्त उनको जन्नत में दाखिल किया जाएगा. इस मौके पर मुहम्मद ग़ैर ज़रूरी क़सम भी खाते हैं 
"उस ज़ात की क़सम कि जिसके क़ब्ज़ा ए कुदरत में मुहम्मद की जान है, कि इन्सान अपने अपने मकानों को दुन्या के मकानों से ज्यादा पहचानता होगा" 
* गोया स्टोक एक्सचंज का नकशा पेश करते हुए मज़ालिम की अदला बदली करने के बाद पाक साफ़ हो जाएँगे? कैसे भला ?
कोई उम्मी के दिमागी कैफियत समझ सके तो मुझे भी समझाए. मुहम्मद इतनी बड़ी क़सम, ज़रा सी बात के लिए. 
बड़े झूट के लिए है बड़ी कसमों की ज़रुरत. 
बुखारी १०६५ 
ऐसी ही एक हदीस है कि क़यामत के दिन अल्लाह मुस्लमान को अपने करीब बुलाएगा और उसके साथ खुसुर फुसुर करेगा कि तूने यह यह गुनाह किए थे जो ज़ाहिर न हो सके और मुस्लमान हरेक गुनाह का एतराफ कर लेगा. अल्लाह सब गुनाहों को मुआफ करता हुवा उसकी की गई नेकियों की किताब उसके हाथ में रक्खेगा जो काफिरों और मुनाफेकीन पर गवाही होगी कि ये लोग हैं जिन्हों ने अल्लाह के हक में झूट बोला था. 
याद रख्खो ज़ुल्म करने वालों पर अल्लाह की लअनत है. 
* मुसलमानों! 
कोई क़यामत ऐसी नहीं होगी जिसमे दुन्या की रोज़े अव्वल से ल्रकर आज तक की आबादी इकठ्ठा होगी और अल्लाह फर्दन फर्दन मुसलमानों से काना फूसी करेगा. 
मुहम्मद और उनका अल्लाह उनकी बेहूदा कुरानी बातों को न मानने वालों को ज़ालिम कहते हैं और जिहाद जैसे ज़ुल्म को नेकी कहते हैं. इनके जाल से बहार निकलें.
बुख़ारी १०६६
मुहम्मद कहते हैं कि मुसलमान एक दूसरे के भाई हैं. इनको चाहिए कि एक दूसरे को ईज़ा न पहुँचाए, इस पर ज़ुल्म करने पर आमदः न हो. अपने किसी भाई की हाजत में कोशां रहे, अल्लाह तअला क़यामत के रोज़ उसकी पर्दा पोशी करेगा - - -
*इस दुन्या को तअस्सुब और जानिब दारी इस्लाम ने सब से ज़्यादा सिखलाई है, उल्टा मुसलमान दीगरों को तअस्सुबी कहने में पेश पेश रहता है. यह वबा आलमी पैमाने पर फैली हुई है. मुसलमानों को झूठे तरीके समझाने वाला खुद अपनों का शिकार देखा गया है. मुसलमान जहाँ भी काबिज़ है हमेशा आपस में जंग ओ जदाल में मुब्तिला रहते हैं. मुहम्मद अपने साथ साथ अपने अल्लाह की भी मिटटी पिलीद किए हुए हैं. देखिए कहते हैं 
"अल्लाह तअला क़यामत के रोज़ उसकी पर्दा पोशी करेगा"
पर्दा पोशी ऐबों की की जाती है जो अल्लाह करेगा.

बुखारी १०९6 
उमर के बेटे अब्दुल्ला लिखते हैं कि जब मुहम्मद ने बनी मुस्तलिक की गारत गरी का इरादा किया तो उस वक़्त ये लोग ग़फलत की हालत में थे और अपने मवेशियों को पानी पिला रहे थे. इनमें कुछ लोग क़त्ल हुए कुछ लोग क़ैद किए गए , बच्चों और औरतों को भी क़ैद कर लिया गया. इस गनीमत में आपको (मुहम्मद को) बांदी ज्योरिया मिली.
* खुद हदीसें गवाह है कि मुहम्मद किस कद्र ज़ालिम शख्स और शैतान तबअ थे कि गाफिल बस्तियों को लूट और कत्ल ए आम का शिकार बनाते थे. इस क़दर बे रहम इन्सान कि सिंफे-नाज़ुक पर भी ज़ुल्म करते थे, बच्चों को क़ैद करना इस्लामी तारीख बतलाती है या फिर मूसा की ज़ात इसमें शामिल है. 
यही यहूदी औरत ज्योरिया मुहम्मद की जौजियत में शामिल हुई 


जीम. मोमिन 

Tuesday 2 December 2014

Hadeesi Hadse 23


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हदीसी हादसे 23
  
बुखारी १००० 
मुहम्मद ने अपने खुतबे में कहा 
"अल्लाह तअला ने मुरदार, खिंजीर (सुवर) और शराब को हराम क़रार दे दिया है."
किसी ने पूछा कि 
"मुरदार की ख़ाल और चर्बी जो चमड़े और उसके रंगने के काम आती है, उसके बारे में क्या फरमा रहे हैं,"
बोले "सब के सब हराम हुए." 
फिर बोले "अल्लाह की लअनत यहूदियों और नसारा (ईसाई) पर जो इसे हलाल किए हुए है."
*मुसलमानों मुहम्मद जो कुछ बोलते थे वह खुदा की ज़बान और अल्लाह का कलाम हो जाया करता था. मुहम्मद किसी के सवाल का जवाब दे रहे हैं, न वहिय, न इल्हाम हुए बिना, ये इनकी ज़ाती बात थी मगर झूट के पुतले मुहम्मद में अल्लाह बन जाने की खाहिश थी. बेहतर था की वह खुद को अल्लाह होने का एलान कर देते जैसे हिदुओं में कई खुद साख्ता भगवान बने बैठे हैं. मगर न उनमे इतना हुनर था न इतनी अक्ल . 
बुखारी ९९७ 
मुहम्मद कहते हैं 
"ईसा का नुजूल होगा, वह साफ़ सुथरी हुकूमत क़ायम करेंगे, खिंजीर को मार कर ख़त्म कर देंगे, कोई खिंजीर खाने वाला न होगा."
आगे कहते हैं कि 
"एक दिन आएगा कि लोगों के पास इतना मॉल हो जाएगा कि इसे लेने वाला कोई न होगा." 
*डेनमार्क जैसे देश में जहाँ मकूलियत ईसा बन गई है, हर आदमी ईसा बन जायगा, जो इस्लाम को हिकारत से देखते हैं.
*माल कितना भी हो जाए मगर इंसान लालची फ़ितरत हा बंदा है, माल से कभी न ऊबेगा., हत्ता कि मुहम्मदी अल्लाह भी नहीं जो हर जंग में मिले माले-गनीमत से अपना २०% का हिस्सा पहले धरा लेता था.
बुखारी ९९८ 
इब्ने-अब्बास कहते हैं कि उनके पास एक शख्स आया और कहने लगा कि मेरी गुज़र औकात, मेरी फनकारी पर ही मुनहसिर है, मैं तस्वीरें बना कर ही गुज़र करता हूँ, मेरे लिए क्या हुक्म है? 
इब्न-अब्बास ने कहा सूरत निगारी को हुज़ूर ने मना किया है कि जो शख्स तस्वीरें बनाएगा उसको क़यामत तक उनमें रूह भरना पड़ेगा. उन्हों ने कहा तुम दरख्तों और फूल पत्तियों की तस्वीर बनाओ, जिनमें रूह नहीं होती. 
*मुस्लमान फुनून लतीफा से महरूम कर दिया गया है. कोई फ़िदा हुसैन जब इस्लाम से ख़ारिज होने का अज्म करते हैं तो शोहरत किई दुनया में अमर हो जाते है. शुक्र है कि खाड़ी में ख़लील जिब्रान ईसाई था जो इस फन को उरूज तक ले जाता है.. अल्लाह इतना भी दूर अंदेश न था कि जनता कि आने वाले वक्तों में कोई हज भी नहीं कर पाएगा, अगर फोटो से परहेज़ करेगा. 
बुखारी ९९६
*तौरेती वाकिया है कि बाप की राय पर अब्राहम ने अपनी बीवी सारा और भतीजे लूत के साथ हिजरत किया, परेशनी के आलम में बादशाह ए मिस्र के यहाँ फ़रयाद की और सारा को अपनी बहन बतलाया. सारा हसीं थीं, बादशाह ने इसको अपने हरम में रख लिया. कुछ दिनों बाद बादशाह को सच्चाई का पता चला तो उसने डाट फटकार के बाद अब्राहम को अपनी हल्के से निकल दिया, मगर साथ में सारा को कुछ इमदाद भी किया.
मुहम्मद ने इस वाकिए को किस बे ढंगे पन से बयान किया है. कहते हैं कि 
"बादशाह बहुत ज़ालिम था, अपनी सल्तनत की खूब रू औरतों को उठवा लिया करता था. दो बार उसने सारा की इज्ज़त लूटनी चाही मगर सारा की बद दुआओं से दोनों बार उसकी सासें बंद होने लगी. वह घबराया और उन्हें आज़ाद कर दिया. साथ में एक लौंडी हाजिरा को भी दिया." 
* हर वाकिए को रद्द ओ बदल कर पेश करना मुहम्मद क़ी होश्यारी थी. 
 


जीम. मोमिन 

Tuesday 25 November 2014

Hadeesi Hadse 22


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बुखारी 868

मफरूज़ा अल्लाह के खुद साख्ता रसूल कहते है की ईमान मदीने में ऐसा समिट कर आएगा जैसे साँप अपने सूराख में सिमट कर जाता है.
*अनजाने में मुहम्मद ठीक ही कह गए हैं कि इस्लाम का ज़हर इंसानियत के लिए ज़हर ही है. ये ज़हर दुन्या में मदीने से फैला है, मदीन में नेश्त  नाबूद होकर बिल में दफ़्न हो जाएगा.

बुखारी ८६९-७०-७१-७२

मुहम्मद ने मक्के से भागकर पैगम्बरी की शुरुआत मदीना से किया. मदीने के बारे में बहुत सी आएं बाएँ शायं बका है. कभी कहते हैं मदीना एक दिन वहशी जानवरों का मरकज़ हो जाएगा तो कभी कहते हैं कि मदीने वालों को धोका देने वाले नमक की तरह पिघल जाएँगे.
कहते है फ़रिश्ते इसके मुहाफ़िज़ है, दज्जाल और ताऊन इसमें दाखिल नहीं हो सकते.
फ़िलहाल यहूदियों से मदीना बच जाए तो बहुत है.

बुखारी ६५४

फतह मक्का के बाद किसी ने मुहम्मद को खबर दी की इब्ने-खतल काबे के परदे से लिपटा हुवा है. मुहम्मद ने कहा इसे क़त्ल करदो.

* इतनी सस्ती थी इंसानी जिंदगी मुहम्मद के लिए? बहुत आसान था खतल को किसी तरह आसानी से समझाया जा सकता था.
बदमाश ओलिमा कहते हैं कि मुहम्मद ने कभी अपने हाथों से किसी का क़त्ल नहीं किया.
उनकी ज़बान ही उनका हाथ थी.

बुखारी-७८५

मुहम्मद ने अबुबकर को अमीर-ए-जमाअत बना कर हज के लिए भेजा और इस हज में कहा कि एलान करना कि कोई भी मुशरिक और नंगा शख्स हज में शरीक न हो.
*कितना सितम था कि सदियों से सब को आज़ादी थी कि खाने-काबा सारी कौमों के लिए मुक़द्दस था, जोकि धीरे धीरे सब के लिए इसके दरवाजे बंद कर दिए गए, हत्ता कि शहर मक्का में भी कोई गैर मुस्लिम नहीं जा सकता.
अगर यहूदी अपने बुजुर्गों की इबादत गाह की बाज़्याबी चाहते हैं तो इसमें ग़लत क्या है?

बुखारी ७७३-

उमर ने काबा को बोसा लेते हुवे कहा
"खुदा की कसम मैं तेरा बोसा लेना हरगिज़ न गवारा करता अगर रसूल को तेरा बोसा लेते हुवे मैं ने देखा न होता. तू मिटटी और पत्थर के सिवा कुछ भी नहीं."
उमर साहब आपको 'नहीं' करना भी सीखना चाहिए था. आप जैसे लोगो ने इस बुत परस्ती को इस्लाम में छिपा दिया.
*काबे में संग अस्वाद को मुहम्मद इस लिए चूमते थे कि इसने इनको पैगम्बरी का ख्वाब दिखलाया. संग अस्वाद को मुहम्मद ने काबे में अपने हाथों से नस्ब किया, वह भी चल घात से. तभी तमाम उम्र उसका एहसान उतारा, वह भी चूम चाट कर.

बुखारी ७७४- ७७५-
मुहम्मद बुत भरे काबा में गए, गोया बुत खाना में गए. लोगों ने उनसे दरयाफ्त किया, वह इंकार कर गए. यानी सरीहन झूट बोले.लोगों ने उनके झूट को नज़र कर दिया.
* खनेइकब में ३६० बुत थे जोकि उस वक़्त की दुन्या की तमाम तहजीबों की अलामतें थीं. इब्राहीम और इस्माईल की तस्वीरे राम की तरह तीर ओ कमान की थीं, जिससे ज़ाहिर है कि वह लोग उस से शिकार करते थे. मुहम्मद ने उन सभी को हटा दिया था, उसके बाद काबे में दाखिल होकर हवाई बुत की नमाज़ें पढ़ीं.

बुखारी ७७६-७७-७८-७९-८०

फतह मक्का के बाद जब मुस्लिम हज शुरू हुवा तो मुहम्मद ने लोगों को कहा कि काबे की पहली तीन तवाफे फातेह की तरह अकड कर किया करें, खुद भी वह अकड कर चलते थे. बाद में लोगों को ये किब्रयाई रास न आई और उनका हुक्म ज़ायल हो गया.


जीम. मोमिन 

Tuesday 18 November 2014

Hadeesi Hadse 21


*8*
हदीसी हादसे 21 
 
बुखारी १०४६ 
मुन्तकिम अल्लाह के मुन्तकिम रसूल अपनी इन्तेकामी फ़ितरत से इस क़दर लबरेज़ हैं कि कहते हैं

"मैं हौज़ कौसर से कुछ लोगों को इस तरह भगा दूंगा जैसे अजनबी ऊँट को पानी पीने की जगह से भगा दिया जाता है."
हौज़ कौसर क्या हैं ?
मुहम्मद के नाजायज़ बेटे लौंडी जादे इब्राहीम कि मौत जब लोहार के घर धुंए से दम घुटने पर हो गई तो अहले मदीना की औरतों ने 
मुहम्मद को बड़े तअने दिए थे कि "बनते हैं अल्लाह के नबी, बुढ़ापे में एक लड़का हुवा तो उसे भी इनका अल्लाह न बचा सका"
खिस्याए मुहहम्मद ने सूरह ए कौसर अल्लाह से उतरवाई कि 
"ऐ मुहम्मद ! तू ग़म न कर तुझको मैंने अपनी जन्नत में फैले हौज़ ए कौसर का निगरान बनाया."
वह ऐसे निगरानी करेंगे कि जन्नत्यों को भी अजनबी ऊंटों की तरह बैरंग वापस कर देंगे.
दूसरी तरफ यही उम्मी कहते हैं कि जन्नत में कोई भूखा प्यासा नहीं रहेगा, दिल चाहेगा शराब पिने का, शराब हूर ओ गिलमा लिए हाज़िर होंगे. 
यहाँ कहते हैं लोग प्यासे ऊँट की तरह पानी के लिए जन्नत में भटकते होंगे.
मज़े की बात ये है कि मुसलमान ऐसी मुतज़ाद बातों पर यकीन भी करते हैं. 

बुखारी १०४७
मुहम्मद कहते हैं अल्लाह उस शख्स से राज़ी नहीं होगा जो पानी रखते हुए प्यासे को न पिलाए.

अभी पिछली हदीस में मुहम्मद प्यासों को अजनबी ऊँट की तरह भगाते हैं. गोया नादानी में खुद जहन्नम रसीदा हुए.

बुखारी १०५० 
अली कहते हैं कि जंग ए बदर में मुझे एक ऊँट ग़नीमत में मिला था और एक उनके ससुर मुहम्मद ने बतौर अतिया दिया था. मेरा मंसूबा यह बना कि इन ऊंटों पर मैं अजखर घास लाद कर लाया करूंगा, इसे बाज़ार में फरोख्त कर के पैसे इकठ्ठा करूंगा फिर उसके बाद फ़ातिमा का वलीमा करूंगा जो कि अभी तक बाकी चला आ रहा था. मैं मंसूबा बंदी कर ही रहा था कि बग़ल के मकान में हम्ज़ा बैठे शराब पी रहे थे और सामने एक रक्कासा गाने गा रही थी जिसके बोल कुछ यूँ थे कि वह पड़ोस में बंधे ऊंटों का कबाब खाना चाहती है. हम्ज़ा नशे के आलम में गए और ऊंटों को ज़बा कर दिया. यह ऊँट अली के थे जिनको लेकर वह क्या क्या मंसूबा बना रहे थे. अली यह देख कर दोड़ते हुए मुहम्मद के पास गए और मुआमला बयान किया. वहां ज़ैद बिन हरसा भी मौजूद था, तीनो एक साथ हमज़ा के पास गए . उनको देख कर हमज़ा ने कहा तुम सब मेरे बाप के गुलाम हो. यह सुन का मुहम्मद वहां से चले आए. यह वाकिया तब का है जब शराब हलाल हुवा करती थी.

इस हदीस को पढने के बाद दो अहम् बातें निकल कर सामने आती हैं जिन पर आज मुसलमानों को गौर करना पडेगा. पहली ये कि मुहम्मद के ज़ाती मुआमले के बाईस मुसलमानों को शराब जैसी नेमत से महरूम कर दिया. ज़रा सा मुआमला ये कि दो ऊंटों का मुहम्मद के दामाद अली का नुकसान. क्या इस ज़रा सी बात पर दुन्या की कामों का मकबूल तरीन मशरूब हराम कर देना चाहिए? 
(शराब नोशी को हलाह रखने की बात अलग है जिसके लिए पूरी किताब तहरीर हो सकती है.)
दूसरी बात अली कि इल्मी और शखसी हैसियत क्या थी कि घास खोद कर बेचना जैसा अमल उनका ज़रिया मुआश था. उनकी इल्मी लियाक़त कि आज उनके फ़रमूदात की लाइब्रेरियाँ भरी हुई हैं.
कितना पोल ख़त है इस्लामी अक्दास में ? 


जीम. मोमिन 

Tuesday 11 November 2014

Hadeesi hadse 20


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हदीसी हादसे 

बुखारी ७१३-१४
सैकड़ों हदीसें ज़कात ओ खैरात और सदके की हैं, वह वक़्त का तक़ाज़ा रहा होगा. उनमें से ही एक हदीस जो मुझे जमी, है कि 
"तुम में से किसी शख्स का रस्सी लेकर जंगल जाना और लकड़ी लाद कर लाना बेहतर रोज़ी हैं कि तुम कोई चीज़ तलब करो और ज़बान खली जाए."

बुखारी ७१५-
हकीम इब्ने-हुज्ज़ाम ने एक बार मुहम्मद से कुछ तलब किया जिसे मुहम्मद ने उन्हें दे दिया. दोबारा फिर तलब किया, फिर दे दिया, मगर देने के बाद उनको इसका आदि न होने का सबक इस तरह से दिया कि  उसके बाद हकीम साहब ने मरते दम तक किसी से कुछ तलब न किया, यहाँ तक कि अबू बकर और उमर  का दौर आया और उन लोगों ने उन्हें इमदाद करनी चाही मगर उनकी गैरत कायम रही.

 बुखारी ६७३-
मुहम्मद का इन्तेक़ाल हो गया तो अहले अरब आज़ाद हो गए, उनके ज़हनों से खौफ़ जाता रहा और वह अपने आबाई मज़हब की तरफ रागिब होने लगे. अबूबकर और उमर इस बाबत बहस करते रहे. बकर ने उनसे (काफिरों से)जिहाद की ठानी मगर उमर इस पर राज़ी न हुए कि जिसने "लाइलाहा इल्लिल्लाह " पढ़ लिया वह हमारी तरफ़ से महफ़ूज़ हो गया. बकर ने कहा खुदा की क़सम जिसने मुहम्मद को एक बकरी का बच्चा भी दिया हो, वह हमें क्यूं न देगा.
* इस तरह दोनों में खिंचाव इशारा करता है कि इस्लामी तहरीक का ईमान था लूट-पाट. उमर की हिकमते-अमली से इस्लाम बच गया वर्ना मुहम्मद के बाद ही यह फितना एक फ़साना बन कर रह जाता.

बुखारी ६७४
मुहम्मद क़यामती पुडिया खोलते हुए बकते हैं कि ऊँट क़यामत के दिन इतने मोटे और भारी जिस्म के हो जाएँगे कि अपने मालकों को पैरों से रौदेगे और बकरियां इतनी फ़रबा हो जाएंगी कि अपने खुरों से पालने  वालों से इन्तेकाम लेंगी.
* मज़ीद बकवास इसी हदीस में खुद पढ़ें.

बुखारी ४७५
मुहम्मद कहते हैं जिस शख्स ने अल्लाह की राह में माल न दिया होगा और ज़कात अदा न किया होगा, इसके सामने चार आँखों वाला गंजा अजदहा लाया जायगा, उसके दोनों कल्लों में झाग भरी होगी और वह उसके गले में डाल दिया जाएगा. उसके दोनों जबड़े फाड़ते ही वह कहेगा, मैं तेरा मॉल हूँ, जिसे तूने अल्लाह की राह में खर्च न किया.
*अल्लाह का कोई हाथ नहीं है जिससे वह ज़कात वसूले जैसा कि मुहम्मद जंगों में लूट के मॉल में से २०% अल्लाह के नाम से ऐंठते थे और २०% उसके रसूल के नाम से वसूलते थे.उनकी नस्लें उनके बाद हसन, यजीद और माविया ही तरह बड़ी बड़ी रियासतों के मालिक हो गए थे.
 आगा खान, सय्य्दना जैसे मालदार आजतक चले आ रहे हैं.

बुखारी ६५७-५८ 
मुहम्मद एक बार जंगे-बदर के कुँए क़लीब से गुज़रे तो अपने ही मरे हुए रिश्ते दारों को, जिन्हें उन्हों ने जंग के बाद कुँए में फिकवाया था, मुखातिब करके कहा 
"तुमने अपने रब के वादे को सच्चा पाया?" 
लोगों ने कहा आप मुर्दों से बातें करते हैं, 
"जवाब था खुदा की क़सम! ये तुमसे ज्यादह सुनते हैं." 
मुहम्मद खुद अपनी उम्मत में वहम फैलाते थे, जिसको ओलिमा गुनाह बतलाते हैं. खुद उनकी बीवी आयशा इसकी तरदीद करती हैं. 

बुखारी ६५९ -६६०-६१-६२ 
मुहम्मद शाम के वक़्त अपने घर में घुसे कि एक धमाके की आवाज़ सुनी, कहा - - -
" कब्र में यहूदियों पर अज़ाब नाजिल हो रहा है." 
*मुहम्मद हर मौके पर कोई न कोई मन गढ़ंत कायम करते थे जिसे लोग उनके गलबा की वजह से बर्दाश्त करते थे. सितम ये है कि इस्लामी आलिम इसे अकीदे और सच्चाई में पिरोते हैं. 

बुखारी ६३ ?
मुहम्मद कहते हैं कि उनका ( नाजायज़) बेटा इब्राहीम मरा तो जन्नत में उन्होंने उसके लिए दूध पिलाने वाली दाई मुक़र्रर किया. 
*दुनया में उनका बस न चला तो रोने लगे और जन्नत पर इतना क़ब्ज़ा है कि बेटे के लिए दाइयां मुक़र्रर करते फिर रहे हैं. 
ऐ खबीस की औलादो! 
आलिमान दीन !! 
क्या कहते हो? 


जीम. मोमिन 

Tuesday 4 November 2014

Hadeesi hadse 19


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हदीसी हादसे 19
बुखारी १०२४

मुहम्मद का ख़याल बल्कि ईमान था कि जिस घर में खेती के औज़ार होते है, उस घर में नेकी के फ़रिश्ते नहीं आते. 
* हमारे हिन्दुतानी मुआशरे में किसान को अन्न दाता कहा गया है क्योकि उसकी मेहनत से ही अवाम और खवास का पेट भरता है. इस्लाम की कोई भी तजवीज़ इंसानियत कुश है.

बुखारी १०२५

मुहम्मद कहते हैं जो शख्स कुत्ता पलेगा उस को एक कैरट गुनाह होगा, उसकी नेकियों से कट जायगा मगर किसान को कुत्ता पालने की छूट है.

* कैसी मुत्ज़ाद(विरोधा भाषी) जात थी जो कहता है कि हल बैल नहूसत की अलामत है मगर उसके मालिकों को कुत्ता पलने की इजाज़त है. दूसरों को एक किरात योमया गुनाह ? 

मुसलमानों! कैसा सर फिरा था तुम्हारा गाऊदी रसूल, जिसको तुम सरवरे-कायनात कहते हो.

बुखारी-१०२८ 

अबू हरीरा कहते हैं एक शख्स गाय पर सवार मुहम्मद के सामने से निकला, गाय ने फ़रियाद की 
" या रसूल लिल्लाह मैं सवारी के लिए नहीं पैदा की गई, बल्कि खेती के लिए मखलूक हूँ." मुहम्मद ने कहा 
"हाँ! मैं, अबू बकर और उमर इस बात के गवाह हैं." 
इसके बाद एक भेडिया बकरी ले भगा, चरवाहे ने इसका पीछा किया, भेडिए ने कहा 
"योम ए जज़ा कौन इसकी हिफाज़त करेगा. उस दिन सिवाए मेरे इसका कोई निगहबान न होगा." 
मुहम्मद ने कहा "हाँ मै, अबू बकर और उम्र इसकी गवाही देंगे." 
अबू हरीरा कहते हैं कि उस वक़्त वहां अबू बकर या उमर कोई मौजूद नहीं था. 
*अव्वल तो हदीस ही बेहूदा है कि चलती हुई गाय और भागता हुवा भेड़िया मुहम्मद से गुफतुगू करते है. इसमें भेडिए की दलील तो किसी फलसफे में नहीं आती कि वह कयामत के दिन बकरी का निगेहबान होगा. 
अबू हरीरा हैरान हैं कि उस वक़्त वहां अबू बकर और उमर मौजूद नहीं थे. मैं हदीस गो अबू हरीरा की बातों पर हैरान हूँ कि उसने गाय और भेडिए को मुहम्मद से बातें करते हुए देखा? 
इस्लाम का पूरा पूरा ढांचा ही झूटी गवाहियों पर कायम है. मुआज्ज़िन कहता है कि 
"मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं." 
अबू बकर और उमर को लेकर मुहम्मद ने तीन गवाहियाँ कर लीं ताकि झूट में पुख्तगी आ जाए. 
मुहम्मद मुसलमानों के लिए बद तरीन रहनुमा हैं. इस्लाम को झूटों से सजाने के लिए कैसी कैसी बे सिर पैर की बातें गढ़ते हैं. 

बुखारी १०३१-१०३5 

फ़तेह खैबर के बाद वहां की खेती की आधी पैदा वर मुहम्मद ने अपनी बीवियों के हक में मखसूस कर दिया था, वह भी मुक़र्रर कर दिया था कि कम से कम मिकदार. 
* यहूदियों की आबादी से भरपूर, खैबर पर पूरी किताब लिखी जा सकती है जो मुहम्मद के ज़ुल्म से भरी हुई होगी. आज यहूदी इन मुहम्मदियों पर जितना बी ज़्यादती करें कम होगी. 
मुल्लाओं ने कितना झूठा प्रचार कर रखा है कि माल ओ मता से बे नयाज़ मुहम्मद मरने के बाद सिर्फ सात डरहम विरासत में छोड़ा? उनकी बेगमात फाका पर फाका करतीं.

बुखारी १०३९
मुहम्मद तक़रीर कर रहे थे कि उनके पास एक देहाती बैठा था. उसको शिकार करते हुए तक़रीर खेती बाड़ी पर आ गई. कहा "जन्नत में एक किसान ने ख्वाहिश ज़ाहिर की कि जन्नत में क्या खेती हो सकती है?"
अल्लाह ने कहा "क्यों यहाँ तुझे क्या कमी है? "
"उसने कहा मुझे खेती बहुत अच्छी लगती है" ( ताकि हम कोई चीज़ अपनी ज़ात से तकमील करते है) 
फरमान होगा "अच्छा जा करके देख."
दहकान ज़मीन में बीज बोता रहा और दूसरे छोर पर पहुँचा तो बोए हुए बीजों की फसल तैयार थी.
फरमान होगा "ए इब्न ए आदम तू हरीस है कि तू किसी चीज़ से मुतमईन नहीं होता."
दहकान जिस पर मुहम्मद वार कर रहे थे, बोला 
"वह शख्स कोई कुरैश होगा या फिर अंसार."
उसके जवाब से मुहम्मद खिसयानी हँसी हसने लगे.
कई हदीस गवाह हैं कि मुहम्मद अन्न दाता किसान को पसंद नहीं करते थे.
जिहाद को हर काम से बेहतर ख़याल करते.

बुखारी १०४४

मुहम्मद कहते हैं उनका अल्लाह उन तीन किस्म के बन्दों से कभी राज़ी नहीं होगा, १+२ तो बस यूँ ही हैं मगर तीसरी काबिले ज़िक्र है ?
"जो शख्स असर के वक़्त दुकान सजाएगा और झूटी क़सम खाएगा कि मुझे फलाँ सामान के इतने मिल रहे थे.
मुस्लमान अपने पैगम्बर की हर बात पर वाह वाह करते हैं मगर उसकी गहराई में नहीं जाते. क्या अस्र बाद ही सच बोलना चाहिए? पूरे दिन क्यों न ईमान दारी से तिजारत करनी चाहिए.


जीम. मोमिन 

Tuesday 28 October 2014

Hadeesi hadse 18


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हदीसी हादसे 18

बुखारी १००१ 

"मुहम्मद का कहना है कि कुत्ते की तिजारत, भडुवा गीरी, और काहनों की बाटी हुई मिठाई खाना हराम है." 
* क़ुरानी फ़रमान में मुहम्मदी अल्लाह कहता है कि
 "लौंडियों की जिस्म फ़रोशी से मिलने वाले फ़ायदे हैं तो मना है, फिर भी इसके लिए अल्लाह मेहरबान मुआफ करने वाला है."? 
इस्लामी तज़ाद (विरोधाभास) का खुला द्वार। 
बुखारी अ००७ 

मुहम्मद ने कहा अल्लाह तअला जिसे अपना नबी मबऊस करता है, वह बकरियां को ज़रूर चराए हुए होता है. किसी ने पूछा क्या आप भी? कहा "हाँ मैं भी मक्का में चन्द दिरहम के एवज़  बकरियां चराइं ." 
*बकरियां चराने के दौरान मुहम्मद ने पैगम्बरी का ख्वाब भी देखा. मुराद पूरी होने पर दुन्या के बड़े हिस्से को किसी चरवाहे का इल्मे-जिहालत तकसीम किया जो दुन्या के लिए अजाब बना हुवा है. 

बुख्क्री १००८ 
मुहम्मद एक मिसाल पेश करते हैं कि 
" किसी ने एक काम पूरा करने के लिए कुछ लोगों को काम पर रखा मगर काम पूरा करने से पहले वह थक हार के अपनी उजरत मुआफ करते हुए चले गए. 
इसी तरह वह शख्स तीन बार मजदूरों को रखता है मगर हर बार मज़दूर हिम्मत हारके चले जाते हैं. चौथी बार उसने जिस गिरोह को सूरज डूबने से पहले काम पर लगता है, वह काम को पूरा कर देते हैं और पूरी उजरत लेकर चले जाते हैं. 
मुहम्मद इस्लाम कुबूल करने वालों को चौथा गिरोह मानते हैं." 

यह मिसाल अपने आप में मुसलमानों को क्या रुतबा देती है कि तीन मेहनत कशों का हक इन्हें मुफ्त मिल गया.? क्या इनका अल्लाह उस शख्स की तरह है जो तीन गिरोहों की उजरत घोटते को जायज़ समझे और चौथे को मुफ्त देदे? ये तो बहुत ही नामाकूल अल्लाह है. 
मुहम्मद का जेहनी मेयार कुछ यूँ ही था. 

बुखारी १०१० 
कुछ लोग सफ़र में थे कि रात हो गई, पास की बस्ती में रुक जाने का फैसला किया. बस्ती पहुँच कर बसती वालों से अपनी मेहमान दारी करने की फ़रमाइश की जिसे बस्ती वालों ने इनकार कर दिया. 
इत्तिफ़ाक से उस बस्ती के मुख्या को किसी ज़हरीले जानवर ने डंस लिया. वह लोग परेशान हो गए, कोई इलाज काम न आ रहा था. मश्विरह ये हुवा कि चलो बस्ती में टिके मुसाफिरों से दरयाफ्त किया जाए कि उनको शायद कोई मंतर मालूम हो. उनके पास जाकर माजरा बयान किया और पूछा कि आप लोगों के पास कोई मंतर है?
उनमें से एक बोला मंतर तो है मगर उसका मावज़ा अदा करना पड़ेगा क्योंकि तुम लोगों ने हमारी मेहमानी करने से इंकार कर दिया था. मुआमला बकरयो के एक रेवड़ पर तै हुवा. मुसाफिर में एक ने 'अल्हम्द' पढना और मुखिया पर दम करना शुरू कर दिया इत्तेफाक से वह मुखिया ठीक होने लगा और कुछ देर में एकदम ठीक हो गया,
 गोया उन लोगो को उन्हों ने बकरियों का एक रेवड़ दिया ज़िसको उन लोगों ने आपस में बाँटना चाहा कि उनमें से एक ने कहा चलो रसूल अल्लाह के पास मुआमले को बतलाएं फिर बाटें.
वह लोग मुहम्मद के पास आए और मुआमला बयान किया दिल चस्प वाकिए पर मुहम्मद हँसे और उन से पूंछा कि तुम को कैसे मालूम हुवा कि 'अल्हम्द' में मंतर छिपा है? कहा, खैर तुम लोग हिस्सा बाँट लो मगर उसमे मेरा हिस्द्सा भी लगेगा.

*दो बातें सामने आईं कि मुहम्मद अल्हम्द के मुसन्निफ़! हैरत में पड़ गए कि मेरी रचना मंतर का काम भी करती है?
दूसरे यह कि मुहम्मद की नियत का अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि जायज़ नाजायज़ मॉल हजम करने में कितने चाक चौबंद थे.

बुखारी १०११
`"मुहम्मद ने नर को मादा पर चढाने से और इसके बदले पैसा लेने से इंकार कर दिया."

*यह आम तौर पर पेशा हुवा करता था और आज भी है कि लोग नर को पाले रहते हैं कि ये नसले बढ़ने के काम आएगा और इसकी उजरत भी लेते है क्योंकि उन्हें पलने में कुछ लगत है. जायज़ पेशा हुवा.
मुहम्मद की पैगम्बरी अक्ल की पनाह चाहती है कि उजरत न लेते मगर कुदरत के मुआमले में अपनी जिहालत न भरते. अव्वल तो पैगम्बरी शान पर ये ज़ेबा ही नहीं देता कि नर पाले वह भी अन्डू. फिर इस नाज़ेब्गी को अवाम के काम न आने दें. अपनी इसी नज़रिए के चलते वह सांड पालने वालों पर भी बरहम हुवा करते थे और उनको जहन्नमी कहते थे.

बुखारी १०१२
मुहम्मद कहते हैं कि जब कोई तुमको किसी मालदार का हवाला दे तो चाहिए कि तुम उसके पीछे लग जाओ. उसका लाख हीला हवाला उसके काम न आने दो.

* यह मुहम्मद की नाकिस सोंच थी. एक तरफ़ तो उनका कोई मेहनत कशी का पैगाम नहीं है दूसरी तरफ़ मेहनत और हिकमत से मॉल कमाने वालों के पीछे मुफ्त खोर गुंडों को लगा दो?
लूट खसोट मुहम्मद के वजूद में शामिल है.


जीम. मोमिन 

Tuesday 21 October 2014

Hadeesi hadse 17


हदीसी हादसे 17
बुखारी 649
उमर के बेटे अब्दुल्ला कहते हैं कि एक रोज़ मुहम्मद, उमर इब्ने सय्याद की तरफ चले. बनू मुगाला के पास इसको बच्चों में खेलता हुवा पाया जो बालिग होने के क़रीब हो चुका था. इसको मुहम्मद के आने की खबर न हुई, जब मुहम्मद ने इसे हाथ से थपका तो इसको पता चला. मुहम्मद ने कहा
"तू इस बात की गवाही देता है कि मैं अल्लाह का रसूल हूँ ?"
 इसने मुहम्मद की तरफ देख कर कहा कि
"हाँ! मैं इस बात की गवाही देता हूँ कि आप जाहिलों के रसूल हैं."
 इसके बाद वह कहने लगा कि
"क्या आप इस बात की गवाही देते हैं कि अल्लाह का रसूल हूँ?"
 मुहम्मद ने उसके सवाल पर कन्नी काटी और कहा,
"मैं अल्लाह के सभी बर हक रसूलों पर ईमान रखता हूँ."
 फिर मुहम्मद ने उससे दरयाफ्त किया
"तुझको क्या मालूम होता है?"
उसने कहा "मुझको झूटी और सच्ची दोनों तरह की ख़बरें मालूम होती हैं."
" मुहम्मद ने कहा तुझ पर मुआमला मखलूत हो गया है"
फिर कहा "मैं ने तुझ से पूछने के लिए एक बात पोशीदा रक्खी है?"
उसने कहा "वह दुख़ है."
मुहम्मद ने कहा "दूर हो तू अपने मर्तबे से हरगिज़ तजाउज़ नहीं कर सकेगा."
उमर ने कहा
"या रसूल लिल्लाह अगर इजाज़त हो तो मैं इसे क़त्ल कर दूं?"
मुहम्मद ने कहा "अगर ये वही दज्जाल है तो तुम इसके क़त्ल पर क़ादिर  नहीं हो सकते, और अगर ये दज्जाल नहीं तो इसको मारने से क्या हासिल?"
राहे-फ़रार के सिवा मुहम्मद को कोई राह न मिली.
इब्ने सय्याद का नाम एसाफ़ था.
*शाबाश " एसाफ़ " तू अपने वक़्त का हीरो था, जिसे मुहम्मद को उनकी हक़ीक़त  समझा दी.
तुझको मोमिन सलाम करता है.




जीम. मोमिन 

Tuesday 14 October 2014

Hadeesi hadse 16


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बुखारी ६६५ 
मुहम्मद नमाज़ से फारिग होने के बाद लोगों से पूछा करते थे कि अगर उन्होंने कोई ख़्वाब देखा हो कि वह उसकी ताबीर बतला दें. रोज़ की उनकी बकवास सुनते सुनते लोग बेजार हो गए तो एक दिन ऐसा आया कि किसी ने कोई ख्वाब ही नहीं देखा. इस पर मुहम्मद ने कहा मैं ने एक ख़्वाब देखा सुनो - - - 
1-मैंने देखा कि एक मुक़द्दस ज़मीन की तरफ़ मुझे ले जाया गया, ले जाने वाले दो थे. मैं ने देखा कि एक शख्स हाथ में ज़मबूर लिए दूसरे का कल्ला चीर रहा था, ज़म्बूर मुंह से निकलते ही उसका कल्ला सालिम हो जाता तब वह डूसरे गलफरे को चीरता है . . .
पूछा माजरा क्या है? 
दोनों ने कहा आगे चलो. 
२- आगे मैं ने देखा कि एक चित लेटे आदमी पर दूसरा पत्थर मारता है कि सर फट जाता है, वह पत्थर उठाने जाता है कि उसका सर फिर से सलिम हो जाता है. 
मैंने माजरा जानना चाह तो कहा आगे चलो. 
३-आगे मैंने देखा कि दो मर्द और औरत नंगे एक तंदूर में जल रहे हैं. तंदूर जब उफनता है तो दोनों ऊपर तक आ जाते हैं मगर बाहर नहीं निकल पाते और फिर नीचे चले जाते हैं. मैंने माजरा जानना चाहा तो कहा आगे चलो. 
४- आगे मैंने देखा कि एक शख्स नहर में फंसा हुवा है और नहर के दोनों कनारे पर दो लोग पत्थर लिए खड़े हैं. वह एक कनारे पर निकलने को जाता है तो उस पर पहला पथराव करता है और दूसरे कनारे पर जाता है तो दूसरा उस पर पथराव कर के वापस कर देता है. मैंने उन से इसका माजरा पूछा तो वह लोग मुझे एक शानदार बाग में ले गए जिसमे एक बूढा बैठा था और बाग में एक आली शान माकन था ,फिर दूसरा माकन था, जिसमें बच्चे जवान और बूढ़े बकसरत भरे हुए है, मेरे तजस्सुस पर उन दोनों ने कहा 
१- पहला जिसका कल्ला चीरा जा रहा था वह झूटी बातों की खबर फैलता था .
२- दूसरा जिसे ज़ख़्मी किया जा रह था, वह कुरान पाकर भी उसकी तिलावत नहीं करता था.
३- जिन जोड़े को आपने तंदूर में देखा, वह दोनों ज़िना कार थे. 
४-जो शख्स नाहर में फंसा था वह सूद खोर था.
इन चरों को क़यामत तक यूं ही सज़ा जरी रहेगी.
बाग में बैठे ज़ईफ हज़रात इब्राहीम अलेहिस सलाम थे. 
मकानों में उनके जन्नती औलादें थीं और दूसरे में शहीद ए जिहाद थे.
बाद में दोनों ने बतलाया हम लोग जिब्रील और मीकाईल हैं.
उन्हों ने ऊपर अब्र पर इशारा करके बतलाया कि ऊपर आप का मकान है, 
मैने कहा तो मुझे मेरे माकन ले चलो तो उन लोगों ने कहा अभी नहीं अभी आपकी उम्र बाकी है.
यह हदीस मुहम्मद की मन गढ़ंत है. सबसे पहले इनका क़ल्ला चीरा जाना था, मगर मोहताज अवाम की इतनी हिम्मत कहाँ कि वह झूठे पैगाबर के खिलाफ लब कुशाई करते .
बल्कि इन चारो सज़ाओं के मुजरिम खुद मुहमद होते हैं. 
अपने बहू के साथ ज़िना करते, बेटे ने देख लिया था, फिर उसे बगैर निकाह के ज़िन्दगी भर रखैल बना कर रखा, जिसकी तबलीग ओलिमा उनके हक़ में करते रहे, ये उनकी मजबूरी है कि मुसलमान यही सुनना चाहते है.
इतना बड़ा ख्वाब जो दूसरे दिन इस तरह बयान किया जय? इसकी पेश बंदी बतलाती है कि यह दिन में मुहम्मद ने खुली आँखों से देखा. 
मुसलमानों! 
क्या तुम कहाँ हो, क्या तुम्हारा रहनुमा इतना झूठा हो सकता है? 

जीम. मोमिन 

Tuesday 7 October 2014

Hadeesi hadse 15


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हदीसी हादसे 15

बुखारी६४९
मुहम्मद के चाचा अबू तालिब का जब वक़्त आखीर आया तो मुहम्मद उनको देखने गए. वहां पर उनके दूसरे चचा अबू जेहल और कुछ लोगों को मौजूद पाया. मुहम्मद ने कहा,
" चाचा! कहो ला इलाहा इल्लिल्लाह, इस कलिमे से मैं खुदा के सामने तुम्हारी गवाही दूंगा."
इस पर अबू जेहल और ईद इब्न उम्मीद ने कहा, "
"अबू तालिब क्या तुम अपने बाप अबू मुत्तलिब के दीन से मुन्हरिफ़ हो रहे हो?"
अबू तालिब ने कहा,
"मैं अपने बाप अबू मुततालिब के दीन पर क़ायम हूँ."
इस पर मुहम्मद ने कहा
"खुदा की क़सम मैं तुम्हारे लिए मग्फ़िरत की दुआ करता रहूँगा"
अबू तालिब ने मुहम्मद को पाला पोसा और तमाम उम्र मुहम्मद के सर परस्त रहे . उन्हें भी अपनी झूटी पैगम्बरी की दावत दी. 
दूसरी तरफ मुहम्मद ने अपनी उम्मत को मना किया है कि अपने काफ़िर रिश्ते दारों के लिए मग्फ़िरत की दुआ मत किया करो. हर जगह मुहम्मद दोगले साबित हुए हैं.

बुखारी६५०
मुहम्मद किसी जनाज़े में शरीक थे कि  ज़मीन पर बैठ गए, दूसरे लोग  भी  इनके गिर्द बैठ गए. लोगों ने देखा कि वह अपनी छड़ी से ज़मीन पर कुछ नक्श कर रहे थे, कहा,
"लोगो! तुम में हर फ़र्द  की हक में दोज़ख और जन्नत मुक़द्दर में लिखी हुई है."
किसी ने कहा
"अगर ऐसा ही है तो आमाल की ज़रुरत कैसी? जब पहले ही मुक़द्दर लिख दिया गया है."
कहा "जो शख्स फ़रमा बरदार है उसके किए फ़रमा बरदारी और नाफ़रमान  के लिए नाफ़रमानी के अमल आसान कर दिए गए हैं."
सवाल उठता है इस में शिकायत का अज़ाला कहाँ है? बात वहीँ पर कायम है. बहुत से लोगों को मुहम्मद के जवाब पर सवाल करने की हिम्मत न थी.  अल्लाह उनके लिए अमल आसन क्यों कर देता है? पैदा होते ही पेट से अगर फ़र्द पर दोज़ख और जन्नत लिख दी गई है तो यह इंसान के साथ अल्लाह की बे ईमानी है और हठ धर्मी है.
फ़र्द तो बे कुसूर है.

बुखारी ६५१-५२-५३
इस्लामी फार्मूला है कि बन्दों की किस्मत अल्लाह हमल में ही लिख देता है,
फिर बन्दे के आमाल क्यों दर्ज किए जाते हैं?
इस मौज़ू  पर ओलिमा तरह तरह की दलील गढ़ते हैं.
अल्लाह कहता है कि जिस तदबीर से बन्दा खुद कशी करता है उसी तरकीब से अल्लाह जहन्नम में उसको अज़ीयत पहुंचाएगा. मसलन किसी  बन्दे ने फाँसी लगा कर खुद कशी की है तो जहन्नम में उसे फँसी की अज़ीयत नाक मौत का सिलसिला चलता रहेगा वह भी हमेशा, मौत तो दोज़ख में है ही नहीं.  



जीम. मोमिन 

Monday 29 September 2014

Hadeesi hadse 14


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हदीसी हादसे 14

बुखारी ६४२ 
हदीस है कि मय्यत को दफ़नाने के बाद जब लोगों की वापसी से जूतों की आवाज़ आएगी तो फ़रिश्ते कब्र में नाजिल होंगे, मुर्दे को उठा कर बैठा देंगे और उससे पूछेंगे कि मुहम्मद के बारे में तेरा क्या ख़याल है? वह कहेगा कि अल्लाह के बन्दे और अल्लाह के रसूल थे. फ़रिश्ते कहेंगे देख तेरा मुकाम पहले दोज़ख में था मगर अब तुझको जन्नत अता होती है. मुहम्मद कहते हैं उसको ये दोनों मुकाम दिखलाए जाएँगे. 
इनके बाद जो मुनाफ़िक़ होंगे वह कहेगे कि जैसा लोग कहते थे वैसा ही मैं भी कहता था, उन के सर पर हथौड़ा चलेगा कि जिसकी आवाज़ जिन्स और इन्सान न सुन पाएँगे बाकी सब सुनेंगे. 

बुखारी ६३९ 
मुहम्मद ने मर्ज़ ए वफात में अपनी बीवी आयशा से कहा यहूदियों और ईसाइयों पर खुदा की मार कि जिनहों ने अपने नबियों की क़ब्रों को सजदा गाह बना रख्खा है. 
आयशा ने कहा हाँ! मुझे खफ़ है कि कहीं आपकी कब्र को भी सजदागाह न बना लिया जाए. 
शायद यह बात गलत है कि मरते वक़्त इंसान के दिल में बुग्ज़ और झूट की कोई जगह नहीं रहती. यह हज़रत कुदूरत के पुतले थे. 

बुखारी ६१७-१८ 
मुहम्मद ने किसी मिटटी में औरतों को शरीक होने से महरूम कर दिया और कहा जो शख्स अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान रखता है, उसे चाहिए की मौतों का सदमा तीन दिन से ज़्यादः न किया करे. 

बुखारी ६३० 
मुहम्मद अपने लौंडी जने बेटे की खबर लेने चले जो युसूफ लोहार के यहाँ पल रहा था लोहार के घर उसकी भट्टी का धुवाँ भरा हुवा था और बच्चा गालिबन धुवां को बर्दाश्त नहीं कर परः था, वह बेचैन था. मुहम्मद के गोद में आकर बच्चे इब्राहीम ने दम तोड़ दिया. जिसे मुहम्मद ने अल्लाह की मर्ज़ी जाना. लोहार पर कोई इलज़ाम न दिया जिसकी वजेह से बच्चा मर गया,. 
मुहम्मद साहिबे हसियत थे, बच्चा उनकी निगरानी में पल सकता था. 

बुखारी ६15 

अब्गुल्ला बिन अबी एक मुनाफ़िक़ था जो मुहम्मद की वजेह से मदीने का हाकिम न बन सका. उसने कई बार मुसलमान होने से पहले मुहम्मद से पंगा लिया था. आयशा पर इलज़ाम लगाने का काम इसी ने किया था. दरपर्दा मुहम्मद का जानी दुश्मन था, बावजूद इस्लाम कुबूल करने के. 
मुहम्मद ने उसके मरने के बाद उसके मुंह में थूक कर
 अपनी पैगम्बरी निभाई थी या दुश्मनी, इस बात को वह खूब जानते हैं.

बुखारी ५४१
मुहम्मद के दिमाग में फितूर जगा और उसके तहत दौरान नमाज़ वह एक क़दम आगे बढे फिर वापस आकर अपनी जगह पर कायम हो गए. ज़ाहिर है उनकी इस हरकत को उनके पीछे खड़े नमाजियों ने देखा. बाद नमाज़ लोगों ने इसकी वजेह पूछी? कहने लगे नमाज़ में पहले मेरे सामने जन्नत पेश की गई , मैं आगे बढ़ा कि इस में से एक अंगूर का खूष तोड़ लूँ, अगर मैं तोड़ लेता तो क़यामत तक तुम लोग इसको खाते.
उसके बाद मुझे दोज़ख दिखलाई गई, कहा इस जैसा मंज़र मैंने कोई नहीं देखा. इसमें रहने वाली अक्सर औरतें दिखाई दीं, सवाल उट्ठा क्यों?
कहा ये नाशुकुरी ज़्यादः होती हैं लोगों ने पूछा क्या खुदा की नाशुकुरी करती हैं?
बोले -- अपने खाविंद की नाशुकुरी ज्यादः करती हैं, एहसान फरामोश होती हैं. अगर तुम इनमें से किसी के साथ एहसान करते रहो, लेकिन वह ज़रा सी बे उन्वानी की बात पर कह देती हैं हमने तुम में कोई अच्छाई नहीं देखी.

जीम. मोमिन 

Tuesday 23 September 2014

Hadeesi hadse 13



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बुखारी 539 
हदीस है एक यहूदन ने मुहम्मद से दौरान गुफ्तुगू बार कहती कि अल्लाह कब्र के अज़ाब से बचाए, मुहम्मद इस बात से इतना मुतासिर हुए कि उनको मौसमी फल की तरह कब्र का अज़ाब मिल गया. वह बहुत दिनों तक लोगों से कब्र का अजाब गाते रहे.
मै बार बार कहता हूँ कि इस्लाम यहूदियत की भोंडी नक्ल है. 

बुखारी ५३८ 
मुहम्मद फ़रमाते हैं क़ुसूफ़ ए शम्सी (सूर्य ग्रहण) और क़ुसूफ़ ए क़मरी (चन्द्र ग्रहण अल्लाह) अल्लाह अपने बन्दों को डराने के लिए ज़ाहिर करता है, नाकि इसका तअल्लुक़ किसी के मौत ओ ज़िदगी से होता है. जब तक चाँद और सूरज पर गहन पड़े, मुसलमानों को चाहिए नमाज़ पढ़ें और सद्का दिया करें. 
*ग्रहणों की अफवाहें तकरीबन हर कौम में होती थी और हन्दुओं में खास कर. जो कौमे जगी हुई है, वह जानते है कि इनकी वजह क्या है. 

मुहम्मद कहते हैं खुदा को अपने बन्दे और बंदियों के ज़िना करने से जितनी शर्म आती है, उतनी और किसी बात पर नहीं आती. 

*ए उम्मते-मुहम्मदी ! खुदा की क़सम अगर तुमको इन बातों का इल्म होता जिन बातों का मुझको है, तो तुम हँसते कम और रोते ज्यादः. 

*मुहम्मदी अल्लाह जो अपने बन्दों और बंदियों से ज़िना कराता क्यों है, दर असल बन्दों के लिए यह काबिले शर्म बात है. कुरआन कहता है बगैर अल्लाह के हम एक पत्ता भी नहीं हिल सकता. 
इस्लाम एक चूं चूँ का मुरब्बा है जिसे खाकर कोई भी शख्स इस्लामी पागल हो सकता है.

बुख़ारी ५३७ 
मुहम्मद की हदीस में है कि रहम (गर्भ) में क्या है? ये अल्लाह के सिवा किसी को नहीं पता.
*आज हर एक को पता है कि शिकम ऐ मादरी में लड़का है कि लड़की.
जैसे यह बात गलत साबित हुई है, वैसे ही पूरा इस्लाम आज काबिले यकीन नहीं.

बुख़ारी ५३६ 
मुहम्मद शाम और यमन के लिए अपने अल्लाह से दुआ करते हैं कि वह उन पर बरकत अता करे. लोगों ने एतराज़ किया कि वह तो नज्दी हैं? फिर वही दुआ की.
फिर लोगों ने एतराज़ किया कि वह तो नज्दी हैं? मुहम्मद ने कहा - - - इस मुकाम पर ज़लज़ले और फ़ितने पैदा होंगे, वहां शैतानी सींग तुलू होता है.
*फ़ितना परवर मुल्क के लिए दुवा कैसी? है न अल्लाह के मफ्रूज़ा नबी पर नशे का गलबा. कुछ भी बक सक्कते है.

बुख़ारी ४९९ 
जुमे की नमाज़ हो रही थी, मुहम्मद नमाज़ पढ़ा रहे थे. ताजिर काफ़िला आया तो नमाजियों की भीड़ नमाज़ को छोड़ कर उसकी तरफ भागी, सिर्फ बारह लोग खड़े रहे. ऐसे में मुहम्मद ने अपने अल्लाह से एक आयत उतरवाई 
"जब लोग तिजारत और लह्व लुआब की बात देखते हैं तो आपको खड़ा हुवा छोड़ कर उधर भागते हैं." 
सहबाए किरम की असलियत ये आयत बतलाती है

बुख़ारी ५२६ 
मुहम्मद ने देखा कि कुछ लोग इस्लाम की नाफ़रमानी कर रहे हैं तो उन्हें बद दुआ देते हुए कहा कि ऐ खुदावंद! इन पर कहत नाज़िल फरमा. इन पर सात साल युसूफ के सालों जैसा करदे. चुनांच सात सालों तक ऐसा कहत पड़ा कि लोग मुरदार खाने लगे, अबू सुफ्यान मुहम्मद के पास पहुंचे और कहा ऐ मुहम्मद आप अल्लाह के इताअत का हुक्म देते है और सिलह रहमी करते हैं और आपकी कौम हलाक़ हुई जाती है. आप अल्लाह से दुआ कीजिए - - - 
*ये हदीस पूरी तरह से गढ़ी हुई है. न अरब में सात साल का कहत कभी पड़ा न खुद मुहम्मद को इसका सामना करना पड़ा. इस गढ़ंत में मिस्र के सात साला कहत को नक्ल करना और दौर को इस्लाम में शामिल करना है. 
 

जीम. मोमिन 

Thursday 11 September 2014

Hadeesi hadse 12


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हदीसी हादसे 12


बुखारी ४७४ 
रेशमी हुल्लाह (एक किस्म का लिबास) मुहम्मद के हिसाब से मुसलामानों पर हराम है. किसी ने इनको इसका तोहफः दिया जिसे उन्हों ने लेकर अपने ख़लीफ़ा उमर को भिजवा दिया.उसे वापस लेकर उमर मुहम्मद के पास आए और सवाल किया कि जब रेशमी कपडे खुद अपने पर आप हराम करार देते हैं तो मुझे किस इरादे से भिजवाया? (मुहम्मद कशमकश में पड़ गए, कोई जवाब न था.
उमर ने उस कुरते को अपने भाई को मक्का में भेज दिया को अभी तक काफ़िर था. सारे मुआमले झूठे ईमान की अलामत हैं.


बुखारी ४७५ 
मुहम्मद कहते हैं कि अगर उनको अपनी उम्मत की तकलीफ का ख़याल न होता तो वह हर नमाज़ से पहले उनसे मिस्वाक कराते . 
*रमजानों में मिस्वाक दिन भर नहीं क्यूंकि अल्लह रोज्दारों के मुंह की बदबू को पसंद करता है. 

बुखारी ४८३-४८४ 
मुहम्मद बयक वक़्त दो बातें करते है जो आपस में मुख्तलिफ होती हैं, जुमे के रोज़ मदीने के गरीब मजदूरों के जिस्म से पसीने की बदबू को सूंघ कर कहते हैं कि कम से कम आज तो नहा लिया होता. वहीँ दूसरी तरफ मदीने के मुज़ाफ़त से आने वाले नमाजियों से कहते है कि तुम्हारे गर्द आलूद कपड़ों को देख कर अल्लह तुम पर दोज़ख की आग हरम कर देगा. 
मुहम्मद को हर वक़्त बोलते रहना है चाहे बात में ताजाद ही क्यूं न हो. 

बुखारी ४९० 
बण्डल बाज़ सहाबी अनस कहता है कि मुहम्मद पहले मस्जिद के खम्बे में टेक लगा कर खुतबा दिया करते, फिर जब मिम्बर तैयार हो गया तो उसमें टेक लगा कर बोलते. 
आगे कहता है कि उस मिम्बर से ऐसी रोने की आवाज़ आती थी गोया दस महीने की गाभिन ऊंटनी की रोने की आवाज़ आती हो.

बुखारी ४९६ 
झूठा अनस कहता है एक अरबी क़हत साली के आलम में मस्जिद में मुहम्मद से बयान किया कि या रसूल अल्लाह हम लोग भयानक कहत का सामना कर रहे हैं, अल्लाह से दुवा कीजे कि पानी बरसे. 
अनस कहता है कि मदीने में मूसला धर बारिश हुई, यहाँ तक कि लोगों के बहुत से घर गिरने लगे. वह अगले जुमे को आया और अर्ज़ किया कि या रसूल अल्लाह बरसात रोकिए कि हम तबाह हो रहे है. मुहम्मद ने हाथ उठा कर दुआ की तो मदीने से बदल छत गए. 
अरब में इस क़दर बरसात आलमी तवारीख में तो नहीं हुई कि बाढ़ जैसे हालत हो जाएँ.

जीम. मोमिन 

Tuesday 2 September 2014

Hadeesi hadse 11


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हदीसी हादसे 11


बुखारी ४७१ -७२-७३ 
मुहम्मद मुसलमानों के लिए सवाबों का मिक़दार मुक़र्रर करते है, कहते हैं जो शक्स जुमे की नमाज़ के लिए नहा धो कर पहली साइत चला उसको एक ऊँट की क़ुरबानी का सवाब मिलता है. दूसरी साइत में चला उसको एक गाय की क़ुरबानी का सवाब मिलता है, जो तीसरे साइत चलता है उसे एक सींग दार बकरी की क़ुरबानी का सवाब मिलता है, चौथी साइत चलने वाले को एक मुर्गी की क़ुरबानी का सवाब मिलता है और पांचवीं साइत जाने वाले को एक अंडे के सदके का सवाब मिलता है. 
* मुहम्मद ने बतलाया ही नहीं कि जुमे की नमाज़ ही न पढने वाले को कितना अज़ाब मिलता है? शायद एक हाथी के बराबर का अज़ाब. 
मुसलामानों ने मुहम्मदी अल्लाह के सवाबों और अज़ाबों का वज़न किस तरह उनके अल्लाह ने मुक़र्रर क्या? कभी कोह ए सफ़ा के बराबर तो कभी एक अंडे के बराबर. इन घामडों को इस्लाम के अक्ल का अँधा बना रख्खा है.
मुहम्मद कहते हैं जुमा से जुमा तक साबित कदमी से खशबू लगाकर नमाज़ अदा करने वालों के तमाम हफ्तावारी गुनाह मुआफ हो जाते हैं.

बुखारी ४६३ 
लहसुन 
मुहम्मद ने कहा जो शख्स लहसुन खाकर मस्जिद में आए, वह मेरे साथ नमाज़ों में शरीक न हो. 
*हिदू मैथोलोजी लहसुन को अमृत मानती है मगर इसे राक्षस का उगला हुवा मानती है जो कि सागर मंथन से दस्तयाब हुवा था. 
आज भी लहसुन दस्यों मरज़ की दवा बनी हुई है. इसके आलावा लहसुन टेस्ट मेकर है, मसालों में लहसुन अपना मुक़ाम रखती है. मुहम्मद को फायदे मंद चीजों में नुकसान नज़र आता है और मुज़िर में फायदा. 

बुखारी ४४२ 
किसी ने मुहम्मद से पूछा कि क्या क़यामत के दिन हम लोग अल्लाह का दीदार कर सकते हैं? जवाब था कि क्या बगैर अब्र छाए चाँद को देखने में तुम्हें कोई शक है? लोगों कहा कहा नहीं नहीं. फिर मुहम्मद ने कहा बस क़यामत के दिन बिना शक शुबहा अल्लाह का दीदार होगा. हिदायत होगी हर गिरोह उसके साथ हो जाय जिसकी इबादत करता था, बअज़ आफ़ताब के साथ होंगे, बअज़ माहताब. बअज़ शयातीन ले साथ, अलगरज़ सिर्फ यही उम्मत मय मुनाफ़िकीन के बाकी रहेगी. इस वक़्त खुदाय तअला इनके सामने आयगा. इरशाद होगा हम तुम्हारे रब है, वह कहेगे हम पहचानते हैं. इसके बाद दोज़ख पर पुल रखा जायगा. तमाम रसूलों में जो सब से पहले इस पुल से गुजरेंगे वह मैं हूँगा. इस दिन सब रसूलों का कौल होगा "ऐ खुदा हम को सलामत रखना. ऐ खुदा हम को सलामत रखना. " दोज़ख में सादान के काँटों के मानिंद आंकड़े होंगे. अर्ज़ होगा, हाँ! 
फ़रमाया बस वह सादान के काँटों की तरह ही हैं इनके बड़े होने का मिकदार खुदा ही जनता है. 
हर एक के आमाल के मुताबिक वह खीँच लेगे - - - 
*तहरीर बेलगाम बहुत तवील है जिसे न हम झेल पा रहे है न आप ही झेल पाएँगे. इसका सारांश क्या है ? एक पागल की बड़ जो फिल बदी बकता चला जाता है. 
मुसलमान इसी में उलझे हुए हैं की ये बला है क्या ? 

बुखारी ३९५ -४०४
कठ्बैठे मुहम्मद कहते हैं "जो शख्स नमाज़ में पेश इमाम से पहले सजदे से सर उठता है, उसको इस बात का खौफ़ नहीं रहता कि खुदा उसका सर गधे के सर की तरह कर देगा ." 
*नमाज़ों की पाबंदी रखने वाला मुसलमान सजदे में पड़ा हुआ है, उसे कैसे मालूम हो कि पेश इमाम ने सर उठाया या नहीं. मगर मुहम्मदी अल्लाह सब के सरों की निगरानी करता रहता है. वह ज़ालिम दरोगा की तरह बन्दों की हरकत पर नज़र किए रहता है. इसी तरह मुहम्मद कहते हैं कि "नमाज़ों में अपनी सफ्हें सही कर लिया करो वर्ना अल्लाह तअला तुम्हारे चेहरों में मुखालफत कर देगा." 
इससे मुसलामानों को जिस कद्र जल्द हो सके पीछा छुडाएं ,

 बुखारी ३८० 
मुहम्मद ने कहा "जो शख्स सुब्ह ओ शाम जब नमाज़ के लिए जाता है तो अल्लाह उस के लिए जन्नत में तय्यारी करता है." 
*मुहम्मदी अल्लाह को कायनात की निजामत से कोई मतलब नहीं, वह ऐसे की कामों में लगा रहता कि कौन शख्स क्या कर रहा है. 


जीम. मोमिन