Tuesday 24 September 2013

Hadeesi Hadsa 103


छू मंतर को भी नुक़ाम 
मुहम्मद की एक बीवी उम्म सलमा कहती हैं मुहम्मद ने ज़हर उतारने के लिए मंतर की इजाज़त दी . कहती हैं कि उनके घर में एक लड़की को देखा जिसका रंग ज़हर के असर से सियाह हो रहा था , बोले लड़की को नज़र लग गई है , इसके वास्ते मंतर किया जाए .
(बुख़ारी १९०९-१ ०-१ १) 
कुफ्र और शिर्क कहाँ इससे हट कर है , जब कि इस्लाम का पैगाम इससे हटकर है . इस्लाम की रू से मुहम्मद बुनयादी तौर पर खुद काफ़िर ओ मुशरिक थे.

अज़ीयत पसंद 
मुहम्मद कहते हैं मुसलामानों को जो रंज ओ अलम , ग़म और तकलीफ़ होती है , यहाँ तक कि कांटा भी लग जाता है तो इसके एवज़ में अल्लाह उसके गुनाह मुआफ़ कर देता है . अल्लाह मुसलमानों की बेहतरी चाहता है , तभी उसको मुसीबत में डालता है।
(१८८५-८६-८७)
मुहम्मद ने जो इस्लाम के बीज बोए है उनके पेड़ में मुसीबत के फल ही फलेंगे . मुहम्मद इंसानी नफ़्सियात का फ़ायदा हासिल कर रहे हैं कि मुसलमान अज़ीयत पसंद बने रहें , बिना चूं चरा किए हुए उनके जेहादी मुसीबतों को झेलते रहें . उनकी कबीलाई नस्लें हुक्मरान बन कर ऐश करती रहें और अवाम रूखी सूखी खाकर भी खुश रहे कि आक़्बत में वह नफे में जा रहा है . 
खिलाफ़त अबुबकर को 
एक दिन आयशा के सर में दर्द था , वह कराह रही थीं कि हाय हाय मेरा सर !हाय हाय मेरा सर !!
मुहम्मद ने कहा तुम घबरा क्यों रही हो ? मेरे सामने मर गईं तो मैं तुम्हारे लिए दुआए इस्तग्फ़ार करूँगा .
आयशा ने कहा मैं खूब समझती हूँ कि मैं मर जो गई तो किसी को दुल्हन बना कर बैठोगे .
मुहम्मद ने कहा तुम अपने आपको छोड़ो , मैंने सोचा है अबुबकर और उनके बेटे को बुला कर उनके नाम ख़िलाफ़त की वसीयत कर दूँ लेकिन फिर ये ख़याल करके कि अल्लाह खुद अबुबकर के अलावा किसी के लिए खिलाफत पसंद नहीं करेगा . वह इनको ख़लीफा बना देगा . लोग किसी दूसरे की ख़िलाफ़त पर राज़ी नहीं होंगे .
(बुख़ारी १८९२) 
बेशक अबुबकर के आलावा किसी को ख़िलाफ़त का हक पहुँचता भी नहीं . तन मन धन से चाहे मुहम्मद की मदद जिसने भी की हो मगर ज़मीर को बेचकर मुहम्मद की मदद सिर्फ अबुबकर ने ही की थी .अपनी छ साला बेटी को पचास साला बूढ़े के लिए कौन बाप दे सकता है ? तब जब कि मुहम्मद रनडुवे हो गए थे . आयशा सिर्फ १८ साल की उम्र में बेवा हो गई थी जबकि ऐन जवान थी . बद नसीबी यह थी कि मुहम्मद ने वसीयत कर दिया था की उनकी तमाम बीवियाँ , उनके बाद उम्मुल मोमनीन यानी उम्मत की माएं होगी .
यह खुलफ़ा ए राशदीन सारे के सारे बे पेंदी के लोटे हुवा करते थे , सब आपस में एक दूसरे के ससुर और दामाद थे .

खुद सिताई 
इब्न अब्बास से हदीस है कि मुहम्मद ने कहा मेरे सामने तमाम उम्मतें पेश की गईं . बाज़ उम्मतें मुख़्तसर तो बाज़ कुछ ज़ायद , मगर मूसा की उम्मत ज़मीन पर ता हद्दे नज़र . इसके बाद मुहम्मद की उम्मत ता हद्दे आसमान . मुहम्मद ने कहा मेरी उम्मत के सत्तर हज़ार ( मुहम्मद का पसंदीदा शुमार ) लोग तो बग़ैर हिसाब ओ किताब जन्नत में दाखिल हो जाएँगे , कहकर अपने हुजरे में चले गए . 
लोगों में आपस में चर्चा होने लगी कि यार हम लोग पहले ईमान लाने वालों में हैं तो इमकान हमारे ही होंगे . हम न सही कि दौर जिहालत में पैदा हुए हैं मगर हमारी औलादें यकीनन होंगी .
मुहम्मद हुजरे से बाहर आए और कहा जी नहीं , जो लोग मंतर नहीं करते,बद फ़ाली पर यकीन नहीं रखते , अपने जिस्मों को दागने से बचते हैं - - - "
(बुख़ारी १९०३) 
इसके बर अक्स हदीस १९०६ देखें और समझें कि मुहम्मद क्या थे 
अनस कहते हैं कि मुहम्मद ने अन्सारियों को ज़हरीले जानवर के काटने पर मंतर की इजाज़त दी थी . खुद अनस को अल्जनब की बीमारी हो गई थी . वह कहते हैं कि इसके इलाज के सिसिले में अबू ताहा ने मुहम्मद के सामने मेरे जिस्म पर दाग़ लगाए .
(बुख़ारी १९०६) 

हदीस १९०३ और हदीस १९०६ में मुहम्मद की पयंबरी में तज़ाद देखें। 

अबू हरीरा कहते हैं कि वह मुहम्मद के साथ थे कि एक धमाके की आवाज़ आई , कहा 
जानते हो क्या है यह ?
अबू हरीरा ने कहा अल्लाह या इसका रसूल ही बेहतर जानता है .
कहा एक पत्थर है जो जहन्नुम में फेंका गया था सत्तर बरस पहले , वह जा रहा था अब उसकी सतह पर पहुंचा है .
(किताबुल जन्नत वस्फितः)

मुहम्मद हर लम्हा झूट गढ़ने पर आमादा रहते , लोग खामोश रहते तो वह उनको छेड़ कर सवाल पूछते , लोग उनकी फितरत को समझ गए थे, कहते 
" अल्लाह या इसका रसूल ही बेहतर जानता है ."
उनके हौसले और बढ़ जाते . किसी की मजाल न थी कि दोनों जहान के मालिक से उनके जवाब पर सवाल करता . मुहम्मद का पसंदीदा हिन्दसा 70 था जो शुमार के ज़ुमरे में उनका तकिया कलाम बन गया था।

कोढियो से नफ़रत 
मुहम्मद ने कहा बीमारी का उड़ कर लगना , बद फाली खोपड़ी का उल्व सफ़र की बलाएँ ,सब बेहूदा बातें हैं , अलबत्ता जुज़ामी से इस तरह भागो जैसे शेर से भागा करते हो .
(बुख़ारी १९०४)

 यह है मुहसिन ए इंसानियत कहे जाने वाले क़ल्ब ए सियाह का इंसानियत के लिए नफ़रत का पैग़ाम . जो लोग हमदर्दी और मदद के लिए ज्यादा मुस्तहक़ होते हैं उनसे दूर भागने की सलाह .
तअज्जुब होता है कि ऐसे ख़याल रखने वाले शख्स की लोग तारीफ़ों के पुल बाँधते हैं . मुहम्मद से बेहतर तो आज की मेडिकल साइंस की नर्सें हैं जो कोढियों की खिदमत करती हैं 
यह हदीस मुहम्मद को आज की इंसानी क़द्रों के आईने में मुजरिम करार देती है .
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जीम. मोमिन 

Tuesday 17 September 2013

Hadeesi Hadse 102


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मुंह के बल चलना ?
एक शख्स ने मुहम्मद की कही हुई हदीस पर वजाहत चाही कि 
कयामत के दिन काफिरों को मुंह के बल चलाना क्या होता है ?
मुहम्मद का जवाब था 
जिसने इनको दुन्या में पाँव के बल चलाया , क्या इस बात की कुदरत नहीं रखता कि मुंह के बल चलाए .
(सही मुस्लिम शरह नववी)

 मुंह के बल चलना एक मुहाविरा है , पूछने वाले ने मुहम्मद को चुटकी ली थी कि देखे कितने ज़हीन हैं . जनाब मुहाविरे को अमली जामा पहना रहे हैं और वह भी अल्लाह की कुदरत के हवाले से . अगर अल्लाह काफिरों को मुंह के बल चला सकता है तो इसमें सजा और जज़ा का कोई मुआमला न रहा .
एक देहाती मुहाविरा है चूतडों से घोडा खोलना 
कहीं अल्लाह इस पर भी तो कादिर नहीं है ?
हाथों को कुछ राहत मिले।

 मदीने की खजूरें 
मुहम्मद कहते हैं जो शख्स सुब्ह उठ कर मदीने की सात खजूरे खा लिया करेगा , उस पर ज़हर या जादू का असर नहीं होगा 
(बुख़ारी १६४३)

* मुहम्मद बार बार जादू के असर को तस्लीम कर रहे है . कुरआन की दो सूरतें ही जादू पर है जिसमे मुहम्मद जादू गरों से अल्लाह की पनाह मंगते हैं . ओलिमा जादू को झूट और कुफ्र करार देते हैं . इस्लाम का यह दोगला पन मुसलामानों को शर्मसार करता है .
इस्लाम ज़िदगी के लिए अधूरा निज़ाम ए हयात है . मुसलमान जब तक इस्लाम से लिपटे रहेंगे जिहालत उनको नहीं छोड़ेगी .
शराब रेशम और बाजा 
मुहम्मद ने कहा कुछ लोग उम्मत में ऐसे होंगे जो शराब रेशम और बाजा को हलाल करार दे देंगे . ऐसे लोग पहाड़ के दमन में रहेंगे . अल्लाह तअला इनमे से कुछ लोगों पर पहाड़ गिरा कर हलाक कर देगा . दूसरों को बन्दर और सुवरों को शक्ल में कर देगा . यह सब क़यामत के करीब होगा .
(बुख़ारी १८७०)  

रेशम क्यों हराम किया मुहम्मद ने , इसके पीछे कोई वजह , कोई फलसफा या कोई दलील नहीं दी है . इन्सान की सदियों पुरानी काविशों का नतीजा है यह नाज़ुक और खूब सूरत तनपोशी रेशम . जद्दो  जिहद में मशगूल दर पर्दा छिपी हुई मखलूक़ी मजदूर के कारनामों का फल है यह रेशम , इन्सान के लिए आँखों को खैरा कर देने वाला नायाब तोहफा है रेशम . किसानों , मजदूरों , दस्तकारों और दुकानदारों के लिए ज़रीया मुआश है रेशम। रेशम को हराम करार देकर तमाम मखलूक को भूख के मुंह में ढकेल रहे है आप .
बाजा इंसानी रूह की गिज़ा है 
शराब वह शय है कि जिसे जन्नत में तोह्फतन परोसा जायगा।  

पहला मुस्लिम हमला 
यहूदियों के खुश हाल क़बीले बनी नुजैर पर मुहम्मद की पहली जंग का एक नमूना था . हमले के लिए एक सोची समझी मंसूबे बंदी की थी .
यहूदियों ने मुहम्मद की दावत की . बस्ती की किसी माकूल इमारत में दावत का एहतेमाम किया . मुहम्मद पहली बार ऐसी खुश हाल बस्ती देख रहे थे और अपने दिमाग में नापाक इरादे की मंसूबा बंदी कर रहे थे कि इस पर हमला किया जा सकता है , समझ में नहीं आ रहा था कि हमले की वजेह क्या बतलाई जाए कि अचानक खाना छोड़ कर उठ खड़े हुए और मदीने की रह पकड़ी . इसे फरमान इलाही कहा . मदीने पहुँच कर एलान किया कि यहूदियों ने इमारत के ऊपर से पत्थर गिर कर मुझे मार देने का खेल रचा था कि मेरे पास अल्लाह की वह्यी आ गई कि भागो यहाँ से . लोगों को भड़का कर बनी नुजैर पर हमला बोलने के लिए तैयार कर लिया और दूसरे दिन बस्ती पर अज़ाब बनकर नाजिल थे .
हमला इतना शदीद था कि मुहम्मद अपना आप खो बैठे और ज़ालिम मूसा का तर्ज़ ए अमल अख्तियार किया यहूदियों को लूटने के बाद उन्हें कब्जे में करके खुद उनके हाथों से उनके घरों में आग लगवाई और उनकी खड़ी फसलें जलवा दीं . उनके बागात के दरख़्त जड़ से कटवा कर ज़मीं दोज़ कर दिए . कुछ साफ़ दिल कुरैश भी मुहम्मद के इस अमल पर तड़प उट्ठे थे कि क्या पेड़ पौदे भी काफ़िर और यहूदी हुवा करते हैं ? जवाब में मुहम्मद का इल्हामी खेल शुरू हो गया कि अल्लाह का हुक्म नाजिल हो गया था .
लूट पाट का ज़्यादः से ज़्यादः हिस्सा खुद मुहम्मद हड़प कर गए यह कहते हुए कि सब अल्लाह और उसके रसूल का हिस्सा है . एक सहाबी लिखता है कि नुजैर के माल ए गनीमत से सबसे पहले मुहम्मद ने अपने नौ बीवियों के घरों के खर्च खराबे का एक साल का इंतज़ाम किया उसके बाद बागात और खेत की आमदनी से अगले सालों का इंतज़ाम किया . जंग के शुर्का अंसारी और मुहाजिर अल्लाह के रसूल का मुंह तकते रह गए .
आज यहूदी अपने बुजुर्गो, बनी नुजैर का बदला अगर मुसलमानों से ले रहे हैं तो गलत क्या है ? दुन्या भर के नादान मुसलमान इस्लामी झंडा लेकर उनके हक में खड़े हो जाते हैं . यही हठ धरमी हर मुसलमान के पूरवजों के साथ हुई है जिसे लाशऊरी तौर पर वह ठीक समझते हैं।

मुकम्मल निज़ाम ए हयात 
एक सहाबी की बीवी मुहम्मद की खिदमत में हजिर हुई , कहा मेरे शौहर ने मुझे तलाक़ ए मुगल्लिज़ा दे दिया था , इसके बाद मैंने दूसरे शख्स से निकाह कर लिया , लेकिन वह किसी काबिल नहीं (यानी नामर्द) .
मुहम्मद ने कहा शायद तू चाहती है कि पहले शौहर से फिर तेरा अक़्द हो जाय ?
उसने कहा जी हाँ !
मुहम्मद ने कहा यह नहीं हो सकता जब तक कि मौजूदा शौहर से तेरी हम बिस्तरी न हो जाय .
(बुख़ारी १८१५) 

खातून की जिंदगी में टेढ़ा मोड़ आ गया है .उसके मौजूदा शौहर के हाथ में है कि कब तक इसको नचाता रहे . ऐसे मामले आज भी कसरत से पाए जाते हैं . शरीफ और बेबस औरत अपनी फितरी जज़्बात से उम्र भर महरूम रहती है और बाग़ी औरतें अन्दरूरी बग़ावत करके समाज को ठोकर मार कर अपना रास्ता खुद बना लेती हैं . शरई क़ानून खड़े खड़े मुंह तकते रह जाते हैं .
कितनी सितम ज़रीफी है कि मुहम्मद कहते है 
"जब तक कि मौजूदा शौहर से तेरी हम बिस्तरी न हो जाय ."
और दूसरा मर्द नामर्द है . 
कहाँ है मुकम्मल निजाम ए हयात ?
जीम. मोमिन 

Tuesday 10 September 2013

Hadeesi Hadse 101


शहजादी दुखतर ए जॉन पर डोरे डाले 
अबू सईद से रिवायत है कि जब दुखतर ए जॉन को मुहम्मद की खिदमत में दाखिल किया गया तो उसकी दाया भी उसके साथ में थी . मुहम्मद ने उससे कहा ,
तू अपने नफस को मुझको हिबा कर दे 
उसने कहा कहीं शहज़ादियां भी अपनी रगबत से अपने नफस को हिबा किया करती है ?
मुहम्मद ने उसका गुस्सा दबाने के लिए उसकी तरफ हाथ बढाया .
उसने कहा मैं आपसे अल्लाह की पनाह मांगती हूँ .
मुहम्मद ने कहा तूने बहुत बड़ी ज़ात की पनाह माँगी है . 
फिर मुहम्मद मेरे पास आए और मुझ से कहा इसको सफ़ैद कतान के दो थान देकर इसके खानदान की तरफ रवाना कर दो 
(बुख़ारी १८१३-१४)  

शहजादी के हुस्न पर मुअहम्मद की नियत डांवां डोल हो गई थी . उसके साथ पेश कदमी भी की . उसके जाह ओ जलाल की ताब न लाकर पीछे हो गए . अगर वह अपने नफस को मुहम्मद के हवाले कर देती तो मुहम्मद उसके साथ जिना कारी करते , इस एलान के साथ कि अल्लाह ने इनके सारे अगले और पिछले गुनाह मुआफ़ किए हुए है .
अगर बिल जब्र ये हादसा हो गया होता तो ईसाई बादशाह से जंग भी खड़ी हो सकती थी . अपने ज़िल्लत आमोज अंजाम को देखते हुए मुहम्मद ने अपने नफस पर काबू रक्खा .
  
देवर तो मौत है 
मुहम्मद कहते हैं औरतों में जाने से निहायत परहेज़ किया करो . किसी ने पूछा ,
क्या देवर अपनी भाभी के पास जा सकता है ?
कहा देवर तो मौत ही है .
यानी इस से सब से बड़ा अंदेशा है .
{बुख़ारी १८०७)
*मुहम्मद माँ बाप भाई बहेन जैसे हर रिश्ते से महरूम थे , लिहाज़ा उनकी सोच इस दर्ज़ा घटिया थी . उनका कोई छोटा भाई होता तो हदीसें ऐसी न हुवा करतीं .
मुतअ (अस्थाई निकाह) 
एक सहाबी कहते हैं कि मुहम्मद ने हमें मुतअ करने की इजाज़त दी तो मैं और मेरे एक साथी औरत की तलाश में निकले . कबीला ए बनी आमिर की एक औरत को देखा जो जवान ऊँटनी पर सवार थी और उसकी गर्दन सुराही दार थी .
मैंने खुद को पेश किया , बोली क्या दोगे ?
मैं ने कहा मेरी चादर हाज़िर है . 
मेरे साथी ने कहा मैं और मेरी चादर हाज़िर है .
उसकी चादर मेरी चादर से बेहतर थी मगर मैं उससे बेह्तर और जवान था 
दोनों का मुआज़ना करने के बाद उसने मुझसे कहा , तू और तेरी चादर मुझे अच्छी लगी .
वह मेरे पास तीन दिन तक रही . 
उसके बाद मुहम्मद ने कहा जिनके पास ऐसी औरतें हैं वह उन्हें छोड़ दें . 
(मुस्लिम - - - किताबुल निकाह)
*मुतअ का तारीका उस वक़्त का कबीलाई कानून था जो आज तक मुस्लिम समाज में कहीं कहीं लुका छिपी करते हुए रायज है . औरत और मर्द में बिना किसी गवाह के कुछ लेन देन के बाद निश्चित समय के लिए यह शादी हो जाती है . इसी को ओशो आश्रम में बिना रोक टोक ऐड रहित के शर्त पर मान्यता मिली हुई है .

अल्लाह साबिर ?
मुहम्मद ने कहा अल्लाह तअला से ज्यादा कोई ईज़ा पर सब्र करने वाला नहीं .
(मुस्लिम - - - शरह नववी)
अल्लाह अपने ऊपर पहुँचाई ईज़ा पर सब्र करे जब कि क़ह्हार खुद है . वह बहुत बड़ा मुन्तक़िम भी है . यह दोहरा मेयार मुहम्मदी अल्लाह का ही हो सकता है .
मुहम्मद अपनी कामयाबी पर कई जगह अल्लाह नज़र आते हैं , कई जगह उनको बर्दाश्त भी करना पड़ा था . उन्हीं अवजान का मीजान करने के बाद अपनी रूदाद बयां कर रहे हैं .

 पहले अपने घर भरे 
एक सहाबी कहते हैं कि मुहम्मद बनी नुज़ैर के बागों को फरोख्त करके अपने अह्ल के वास्ते एक साल का सामान मुहय्या करते।
(बुख़ारी १८२५)

इस हदीस का सूरह हश्र से तअल्लुक़ है . मुहम्मद ने अन्सारियों को मुनज्ज़म करके सबसे पहले बनी नुजैर पर हमला किया था जिसमे बस्ती बनी नुजैर को लूट पाट करके तबाह ओ बर्बाद कर दिया था . बाग़ात पर क़ब्ज़ा कर लिया था . लूट के माल को लगभग सब का सब खुद पी गए थे। जंग के शुर्का ने काफी हंगामा आराई किया था तो बड़ी बेशर्मी से अपने मफ्रूज़ा अल्लाह की कुरानी आयतें उतरवा लीं थीं . इस बात को अबुल खत्ताब ने तस्दीक किया कि मुहम्मद ने सब से पहले अपनी नव अदद बीवियों के घरों के सालाना अख्राजात का इंतज़ाम किया .
मुहम्मद की असलियत को समझने के लिए उस वक़्त के मुआशी हालात को समझने की ज़रुरत है . उस वक़्त अरबों का ज़रीआ मुआश बेहद मुश्किल हुवा करता था . अना, ज़मीर और खुद्दारी नाम की कोई चीज़ बाक़ी नहीं रह गई थी .मुहम्मद लुटेरे गिरोह के मुअज्ज़िज़  ही नहीं , मुक़द्दस भी बन गए थे . इनको दिल से नहीं , बेदिली से ही सही , अल्लाह का रसूल मान लेना अवाम की मजबूरी थी .

जीम. मोमिन 

Tuesday 3 September 2013

Hadeesi Hadse 100


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मक्का के ज़लील लोग 

ज़ैद बिन अर्कम कहते हैं कि किसी जंग से हम लोग वापस आ रहे थे कि अब्दुल्ला इब्न अबी सलूल ने कहा ,
खुदा की क़सम मदीने पहुँच कर हम बाइज्ज़त लोग ज़लील लोगों को मदीने से निकाल देंगे , इस से पहले इन पर कुछ खर्च मत करो .
यह बात बाद में मुहम्मद के कानों तक पहुँची तो उन्हों ने अब्दुल्ला इब्न अबी सलूल को बुलवाया और तहक़ीक़  की . वह साफ़ मुकर गया कि ऐसी कोई बात मैंने नहीं की .
ज़ैद कहते हैं हम को बुलवाया गया . मैंने गवाही दी कि अब्दुल्ला इब्न अबी सलूल ने यह बात ऐसे ऐसे की है .
अब्दुल्ला इब्न अबी सलूल ने मुझे भी झूठा साबित कर दिया और मुहम्मद उसकी बात मान गए . मुझको इसका बहुत ही रंज रहा . बाद में मुझको बुलवाया और एक आयत पढ़ी कि अल्लाह ने तुमको सच्चा ठहराया .
(बुख़ारी १७ ३१)  

मक्कियों की मदीने में हालत जैसी थी यह हदीस गवाह है . मुहम्मद वाटर आफ इंडिया की तरह कुरानी आयतें  अल्लाह से उतरवा लेते . हर वक़्त अल्लाह वाटर आफ इंडिया लिए खड़ा रहता . मुहम्मद अगर सियासत दान होते तो कोई इलज़ाम न था, मगर पैगम्बरी झूट से दुन्या को गुमराह किया है जिसका खाम्याज़ा मुसलमान सदियों से उठाए हुए हैं .
अब्दुल्ला इब्न अबी सलूल मुहम्मद से पहले मदीने की हुक्मरानी का एक पक्का उम्मीदवार था . इसने जगह जगह पर मुहम्मद से पंगा लिया . बाद मरने के मुहम्मद ने इसे कब्र से निकलवा कर इसके मुंह में थूका .

चश्म दीद गवाह 
मुहम्मद ने कहा अल्लाह तअला ने मिटटी को सनीचर के दिन पैदा किया ,
इतवार को इसमें पहाड़ों को ,
पीर के दिन दरख्तों को ,
मंगल के दिन इस पर काम काज के चीज़ों को , 
बुध को रौशनी को ,
 जुमेरात को इस पर जानवर फ़ैलाए 
जुमा को आदम को असर के बाद पैदा किया 
(किताब मुस्लिम - - -सिफ़ातल्मुन्फकीन)

*तौरेत के सुने सुनाए  किस्से को मुहम्मद सही सही तरतीब भी नहीं दे पाए . उम्मी थे , इन वक़ेआत की खबर इनको किसने दी ? इन चीज़ों के आलावा ज़मीन पर हजारों अश्या का वजूद है जिनकी खोज में हमारे साइंसदान लगे हुए है. 
मुहम्मद की उम्मियत को मुसलमान सच मान कर इस पर यकीन करते है .
आयशा कुँवारी 
एक रोज़ मुहम्मद की कमसिन बीवी आयशा ने मुहम्मद से पूछा कि अगर आप ऐसे जंगल में उतरे हो कि जहाँ पर दो पेड़ हों, एक वह की जिसे जानवरों ने चरा हो , दूसरे वह कि जिसे जानवरों ने मुंह भी न लगाया हो तो आप अपना ऊँट किस दरख्त में बांधेंगे ? 
मुहम्मद ने कहा जिसमे जानवरों ने मुंह न लगाया हो . 
मतलब यह था कि आयशा मुहम्मद की बीवियों में अकेली कुँवारी थीं .
(बुख़ारी १७७०)

* ला शऊरी तौर पर आयशा ने मुहम्मद को ऊँट कह ही दिया है जो उसको सात साल की उम्र में चर गया . वह पूरी दरख़्त भी नहीं बन पाई थी की १ ८ साल की उम्र में बेवा हो गई . एक ६३ साल के शौहर की बेवा .

हर मौक़े की दुआ 
मुहम्मद के चचा ज़ाद भाई इब्न अब्बास बतलाते हैं कि मुहम्मद ने एक दुआ बतलाई जिसको कि बीवी से क़ुर्बत से क़ब्ल अगर पढ़ ली जाए तो होने वाली औलाद शैतान के बुरे असरों से महफूज़ हो जाती है .
(बुख़ारी १७९३) 

वक़्त शैतानी भी शैतान से हिफाज़त ?
 अरबियों की खू  है की वह हर वक़्त दुआ किया करे ताकि उनका अल्लाह उनको हर अच्छे बुरे काम में मदद गार रहे .

बग़ैर इजाज़त 
मुहम्मद ने कहा बग़ैर इजाज़त किसी बेवा से अक़्द नहीं करना चाहिए . इसी तरह कुँवारी से भी इजाज़त लेनी चाहिए .
लोगों ने पूछा किस तरह ?
कहा इसकी ख़ामोशी ही इसकी इजाज़त है .
(मुस्लिम - - - किताबुल निकाह +बुख़ारी १७८६)

क्या निकाह बग़ैर इजाज़त बिल जब्र भी होता था ? आजके माहौल में यह बात मुनासिब नहीं . शादी तो फरीकैन की रज़ा मंदी से होती है . हाँ अगर कभी कसीदगी का महल हो तो कुवांरी की रज़ा मंदी ज़रूरी हो जाती है .

पाबन्दियाँ 
मुहम्मद ने कहा शौहर की इजाज़त के बग़ैर रोज़ा रखना , किसी को अन्दर आने की इजाज़त देना या कोई चीज़ इसके इजाज़त के बग़ैर सर्फ़ करना जायज़ नहीं, क्योंकि निस्फ़ उज्र मर्द को भी दिया जाता है .
(बुख़ारी १७९४)

औरतों को इस्लाम में कहीं पर कोई आज़ादी नहीं है , भले ही वह छोटे छोटे खानगी मुआमले ही क्यों न हों , यहाँ तक कि उसकी मज़हबी आज़ादी भी मरदों के हाथ में है . मर्द पर मर्दानगी ग़ालिब हुई तो उसको रोज़ा तोड़ देना भी लाजिम होगा . इसमें मुसलमान मर्दों का आज भी फायदा है . इसी लिए वह इसमें कोई बदलाव नहीं चाहते। 
डेनमार्क की एक मैगजीन में कार्टून आया, किसी लेटी हुई औरत की नंगी पीठ पर कुरानी आयत नक्श थी . पूरी दुन्या के मुसलमानों ने जमकर इसके खिलाफ मुज़ाहिरा किया , पुतले जलाए गए मगर किसी ने यह जानने की कोशिश नहीं की कि लिखी हुई आयत क्या थी , उसका मतलब क्या था . आयत थी - -- 
"औरतें तुम्हारी खेतियाँ हैं , इसमें चाहे जहाँ से जाओ "
शायद इसे जानकार भी मुसलामानों में अपनी माँ बहन और बेटियों के लिए गैरत न जगे .
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जीम. मोमिन