Thursday 28 May 2015

Haseesi Hadse -157


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हदीसी हादसे 46
बुखारी १००१ 
"मुहम्मद का कहना है कि कुत्ते की तिजारत, भडुवा गीरी, और काहनों की बाटी हुई मिठाई खाना हराम है." 
* क़ुरानी फ़रमान में मुहम्मदी अल्लाह कहता है कि
 "लौंडियों की जिस्म फ़रोशी से मिलने वाले फ़ायदे हैं तो मना  है, फिर भी इसके लिए अल्लाह मेहरबान मुआफ करने वाला है."? 
बुखारी अ००७ 
मुहम्मद ने कहा अल्लाह तअला जिसे अपना नबी मबऊस करता है, वह बकरियां को ज़रूर चराए हुए होता है. किसी ने पूछा क्या आप भी? कहा "हाँ मैं भी मक्का में चन्द दिरहम के एवाज़ बकरियां चराइं ." 

*बकरियां चराने के दौरान मुहम्मद ने पैगम्बरी का ख्वाब भी देखा. मुराद पूरी होने पर दुन्या के बड़े हिस्से को किसी चरवाहे का इल्मे-जिहालत तकसीम किया जो दुन्या के लिए अजाब बना हुवा है. 
बुख्क्री १००८ 
मुहम्मद एक मिसाल पेश करते हैं कि 
" किसी ने एक काम पूरा करने के लिए कुछ लोगों को काम पर रखा मगर काम पूरा करने से पहले वह थक हार के अपनी उजरत मुआफ करते हुए चले गए. 
इसी तरह वह शख्स तीन बार मजदूरों को रखता है मगर हर बार मज़दूर हिम्मत हारके चले जाते हैं. चौथी बार उसने जिस गिरोह को सूरज डूबने से पहले काम पर लगता है, वह काम को पूरा कर देते हैं और पूरी उजरत लेकर चले जाते हैं. 
मुहहम्मद इस्लाम कुबूल करने वालों को चौथा गिरोह मानते हैं." 
यह मिसाल अपने आप में मुसलमानों को क्या रुतबा देती है कि तीन मेहनत कशों का हक इन्हें मुफ्त मिल गया.? क्या इनका अल्लाह उस शख्स की तरह है जो तीन गिरोहों की उजरत घोटते को जायज़ समझे और चुठे को मुफ्त देदे? ये तो बहुत ही नामाकूल अल्लाह है. 
मुहम्मद का जेहनी मेयार कुछ यूँ ही था. 


जीम. मोमिन 

Wednesday 20 May 2015

Hadeesi Hadse 44/156


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हदीसी हादसे 45

हदीसी हादसे   
बुखारी १००० 
मुहम्मद ने अपने खुतबे में कहा 
"अल्लाह तअला ने मुरदार, खिंजीर (सुवर) और शराब को हराम क़रार दे दिया है."
किसी ने पूछा कि 
"मुरदार की ख़ाल और चर्बी जो चमड़े और उसके रंगने के काम आती है, उसके बारे में क्या फरमा रहे हैं,"
बोले "सब के सब हराम हुए." 
फिर बोले "अल्लाह की लअनत यहूदियों और नसारा (ईसाई) पर जो इसे हलाल किए हुए है."
*मुसलमानों मुहम्मद जो कुछ बोलते थे वह खुदा की ज़बान और अल्लाह का कलाम हो जाया करता था. मुहम्मद किसी के सवाल का जवाब दे रहे हैं, न वहिय, न इल्हाम हुए बिना, ये इनकी ज़ाती बात थी मगर झूट के पुतले मुहम्मद में अल्लाह बन जाने की खाहिश थी. बेहतर था की वह खुद को अल्लाह होने का एलान कर देते जैसे हिदुओं में कई खुद साख्ता भगवान बने बैठे हैं. मगर न उनमे इतना हुनर था न इतनी अक्ल . 
बुखारी ९९७ 
मुहम्मद कहते हैं 
"ईसा का नुजूल होगा, वह साफ़ सुथरी हुकूमत क़ायम करेंगे, खिंजीर को मार कर ख़त्म कर देंगे, कोई खिंजीर खाने वाला न होगा."
आगे कहते हैं कि 
"एक दिन आएगा कि लोगों के पास इतना मॉल हो जाएगा कि इसे लेने वाला कोई न होगा." 
*डेनमार्क जैसे देश में जहाँ मकूलियत ईसा बन गई है, हर आदमी ईसा बन जायगा, जो इस्लाम को हिकारत से देखते हैं.
*माल कितना भी हो जाए मगर इंसान लालची फ़ितरत हा बंदा है, माल से कभी न ऊबेगा., हत्ता कि मुहम्मदी अल्लाह भी नहीं जो हर जंग में मिले माले-गनीमत से अपना २०% का हिस्सा पहले धरा लेता था.
बुखारी ९९८ 
इब्ने-अब्बास कहते हैं कि उनके पास एक शख्स आया और कहने लगा कि मेरी गुज़र औकात, मेरी फनकारी पर ही मुनहसिर है, मैं तस्वीरें बना कर ही गुज़र करता हूँ, मेरे लिए क्या हुक्म है? 
इब्न-अब्बास ने कहा सूरत निगारी को हुज़ूर ने मना किया है कि जो शख्स तस्वीरें बनाएगा उसको क़यामत तक उनमें रूह भरना पड़ेगा. उन्हों ने कहा तुम दरख्तों और फूल पत्तियों की तस्वीर बनाओ, जिनमें रूह नहीं होती. 

*मुस्लमान फुनून लतीफा से महरूम कर दिया गया है. कोई फ़िदा हुसैन जब इस्लाम से ख़ारिज होने का अज्म करते हैं तो शोहरत किई दुनया में अमर हो जाते है. शुक्र है कि खाड़ी में ख़लील जिब्रान ईसाई था जो इस फन को उरूज तक ले जाता है.. अल्लाह इतना भी दूर अंदेश न था कि जनता कि आने वाले वक्तों में कोई हज भी नहीं कर पाएगा, अगर फोटो से परहेज़ करेगा. 

जीम. मोमिन 

Wednesday 13 May 2015

Hadeesi Hadse 155


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हदीसी हादसे 44
बुख़ारी 1289
हदीस है कि ख़लीफा उमर ने लुक़मान इब्न मक़रन को सिपह सालार बना कर मुल्क कसरा (ईरान) पर चढ़ाई का हुक्म दिया, जिसके मुक़ाबिले में कसरा की चालीस हज़ार फ़ौज सामने आ खड़ी हुई . इसमें से एक तर्जुमान बाहर आया और पूछा 
"कौन लोग हो ? हमसे तुम्हारा मतलब क्या है? तुम में से कोई एक बहार आकर हम से कलाम करेगा ?
जवाब में मुग़ीरा नाम का एक सहाबी बाहर आया और बोला - - - 
क्या जानना चाहता है ?
उसने दर्याफ़्त किया, कौन लोग हो ?
मुग़ीरा बोला - - हम लोग अरब के रहने वाले हैं .
 हम लोग बड़ी तंग दस्ती और मुसीबत में थे .
 भूक के मारे चमड़े और खजूर की गुठलियाँ चूस चूस कर गुज़र अवक़ात किया करते थे। ऊन और बाल हमारी पोशाकें थीं। 
हम दरख्तों और पत्थरों की पूजा किया करते थे। 
ऐसे में अल्लाह ने अपनी जानिब से हम लोगों के लिए एक रसूल भेजा ,  उसी ने हम लोगों को तुम से लड़ने का हुक्म दिया .
उस वक़्त तक कि तुम एक अल्लाह की इबादत न करने लगो, 
या फिर हमें जजया देना क़ुबूल न करो .
उसी ने हमें परवर दिगार की तरफ़ से इत्तेला दी है कि जो जिहाद में क़त्ल हो जाएगा , वह जन्नत जाएगा और जो ज़िंदा रह जाएगा , वह तुम्हारी गर्दनों का मालिक होगा " 

इस हदीस में इस्लाम की सच्ची रूहे-बद समाई हुई है।मुग़ीरा का सीधा सादा और सच्चा बयान है।
(हालाँकि इसकी हक़ीक़त यह है कि सफ़र में यह एक क़बीले को धोका देकर उनका हम सफ़र बन गया था और उनका एतमाद हासिल करके रात में इनको क़त्ल कर दिया था। इनका तमाम माल लूट कर मुहम्मद के पास आकर इस शर्त पर मुसलमान हो गया था कि इसके लूट में किसी का कोई दख़ल न होगा। मुहम्मद ने इसकी शर्त मान ली थी और इसे मुसलमान बना लिया था, क्योकि ऐसे लोगों की ही मुहम्मद को हमेशा ज़रुरत रही है .)
इस्लाम से पहले अरब अवाम के ऐसे ही हालात थे ,जैसा मुग़ीरा ने बयान किया, यहाँ तक कि वह अपनी बेटियों को ज़िन्दा दफ़्न कर दिया करते थे कि उनकी परवरिश मुहाल हुवा करती थी।
मुग़ीरा अपने क़ौम का माज़ी बयान करता है जिससे अब वह नजात पा चुका है। उनके हाल  पर अल्लाह का करम है कि वह जिहाद से खुश हाल हो गए हैं।
सवाल उठता है कि अरबों पर खुश हाली आई कहाँ से ?
दीगरों को बद हाल करके ?
या मुहम्मद ने फ़रिश्तों से कह कर इनकी खेतियाँ जुतवा दी थीं ? हक़ीक़त यह है कि मुहम्मद ने पहले अरबों को और बाद में मुसलमानों को पक्का क़ज़ज़ाक़ और लुटेरे बना दिया था। अफ़सोस कि मज़लूमों का कोई एक मुवर्रिख़  नहीं हुवा कि उनका मातम करने वाला होता और इस्लाम के लाखों टिकिया चोर मुवर्रिख़ और ओलिमा बैठे हुए हैं। 
माले-ग़नीमत ने मुसलमानों को मालामाल कर दिया।
कितना मासूमाना और शरीफ़ाना सवाल था उस कसरा फ़ौज के तर्जुमान का कि 
"कौन लोग हो ? हमसे तुम्हारा मतलब क्या है? 
और कितनी जारहय्यत थी इस्लाम की कि 
"ऐसे में अल्लाह ने अपनी जानिब से हम लोगों के लिए एक रसूल भेजा ,  उसी ने हम लोगों को तुम से लड़ने का हुक्म दिया .
उस वक़्त तक कि तुम एक अल्लाह की इबादत न करने लगो, 
या फिर हमें जजया देना क़ुबूल न करो .
उसी ने हमें परवर दिगार की तरफ़ से इत्तेला दी है कि जो जिहाद में क़त्ल हो जाएगा , वह जन्नत जाएगा और जो ज़िंदा रह जाएगा , वह तुम्हारी गर्दनों का मालिक होगा " 
ज़ाहिर है कोई भी हुक्मरान अपना आबाई दीन को तर्क कर के मुसलमान तो हो नहीं जाएगा।
और न थाली में सजाकर उन्हें जज़िया देने लगेगा . यह दोनों कम तो लूट मार के बाद ही हुवा करते थे।
इस तरह दुन्या में फैला इस्लाम जिसे कि आज कोर दबने पर इस्लामी आलिमान सैकुलर क़दरों का सहारा ले रहे हैं।
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जीम. मोमिन 

Wednesday 6 May 2015

Hadeesi Hadse 42


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हदीसी हादसे 43
बुख़ारी 1280 
अबू जेहल का खात्मः
जंग ए बदर में दो अंसारी नव जवानों ने सहाबी अब्दुर रहमान से दरयाफ्त किया कि क्या वह अबू जेहल को पहचानते हैं ? अब्दुर रहमान ने कहा हाँ !नव जवानों ने कहा जब वह दिखें तो हमें बतला देना। कुछ देर बाद अबू जेहल जब उन्हें दिखे तो उन्होंने ने उन नव जवानों को इशारा करके बतला दिया। वह दोनों आनन् फानन में अबू जेहल के पास पहुँचे और उनका काम तमाम कर दिया और इस खबर को जाकर मुहम्मद को दी।
मुहम्मद ने दोनों नव जवानों से पूछा कि तुम में से किसने क़त्ल किया ? दोनों ने अपना अपना दावा पेश किया . मुहम्मद ने दरयाफ्त किया कि क्या तुमने अपनी तलवारों का खून साफ़ किया ? जवाब था नहीं . जब तलवारें देखी गईं तो सच पाई गईं। 
मुहम्मद ने इनाम के तौर पर दोनों नव जवानों को मकतूल का घोडा और साज़ ओ सामान दे दिया।
* वाज़ह हो कि अबू जेहल मुहम्मद के सगे चचा थे और क़बीला ए कुरैश के सरदार थे। उन्हों ने हमेशा मुहम्मद की मुख़ालिफ़त की और अपने क़बीले को इस्लाम न कुबूल करने दिया, हत्ता कि मुहम्मद के सर परस्त चचा अबी तालिब को भी इससे बअज़ रखा। 
"उनका नाम "अबू जेहल", जिसके मअनी होते हैं " जेहालत की अवलाद " यह इस्लाम का बख्श हुवा नाम है जो इतना बोला गया कि झूट सच हो गया।"
 इनका असली नाम "उमरू बिन हुश्शाम " था।
मुर्दा उमरू बिन हुश्शाम की दाढ़ी पकड़ के मुहम्म्द लाश से गुफ्तुगू करते हैं और अपनी बरतरीबयान करते है, फिर लाश को बदर के कुएँ में फिकवा देते हैं।
 मुहम्मद के इस कुफ्र को मुसलमानों को ओलिमा नहीं देखने और समझने देते

मुस्लिम - - - किताबुल हुदूद 
 मख़ज़ूमी क़बीले की एक ख़ातून को मुहम्मद ने चोरी के जुर्म में पकड़ा और ख़ुद उसका हाथ अपने हाथों से क़लम किया।
 इसके लिए लोगों ने काफ़ी कोशिश की कि ख़ातून एक मुअज़ज़िज़ क़बीले की फ़र्द थीं और चोरी बहुत मामूली थी, लोगों ने मुहम्मद के चहीते ओसामा से भी सिफ़ारिश कराई मगर मुहम्मद न म़ाने। 
बोले शरीफ़ को सज़ा न दी जायगी तो रज़ील एतराज़ करेंगे. बरहाल कसाई तबअ मुहम्मद ने उस सिन्फ़ ए नाज़ुक के हाथ कट डाले।
* बड़ा सवाल ये उठता है कि जेहाद के पहाड़ जैसे डाका को वह हक़ बजानिब ठहराते थे और राई जैसी चोरी को बड़ा जुर्म। मुहम्मद को इस जिहादी डाके की सज़ा इनकी सर क़लमी से वसूली जाती, अगर वह किसी डाके में नाकाम होकर गिरफ्तार होते। 


जीम. मोमिन