Thursday 7 November 2013

Hadeesi Hadse 108 - - - Last


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अल्लाह को किसने पैदा किया 
मुहम्मद ने कहा लोग हमेशा छान बीन में रहेंगे , हत्ता कि ऐसा ज़माना आएगा कि कहेंगे 
फलाँ चीज़ अल्लाह ने पैदा किया , फलाँ चीज़ अल्लाह ने पैदा किया ,
तो अल्लाह को किसने पैदा किया ?
(बुख़ारी २ २ ४ ०) 
अपने ज़माने में क़ुरआनी अल्लाह को आपने पैदा किया जिसकी वजह से यह सवाल उठता है कि अल्लाह को किसने पैदा किया।
जहाँ तक ज़माने की बात है वह तो हमेशा से खोजबीन में लगा रहता है . आप ज़रूर अपनी उम्मत की फ़िक्र पर कुफल डाल चुके हैं बल्कि उसको मुन्जमिद कर चुके हैं . दीगर क़ौमें खोज बीन के चलते ख़ला में आबाद हो रही हैं। हर बशर को खुदा की तलाश है , शर्त ये है कि तलाश सदाक़त के पैमाने से हो। जो सच को पा जाए , वही खुदा का जुज़व है . अनल हक़ में भी अल्लाह था और God is nothing में भी अल्लाह मौजूद है , देखने की बात ये है कि मतलाशी की तलाश में कितना सच है कितनी पाकीज़गी है . 
सदाक़त के नशे में डूबे हुए इंसान कि तलाश जो कुछ भी होगी वह अल्लाह का जुज़व होगा , चाहे वह कोई ईजाद हो , चाहे कोई निज़ाम हो चाहे इलाज हो या हिकमत . उसका हर पैग़ाम अल्लाह की आवाज़ है।
ऐसे खोजी और मतलाशी ही खुदा के सच्चे पैग़ंबर हैं , नकि मुहम्मद जैसे मुजस्सम बातिल।
जब तक मुहम्मदी पयंबरी के झूठे नक़श मुसलमानो के ज़ेहनों में बाक़ी रहेंगे , क़ौम को पाताल में जाने से कोई नहीं रोक सकता .
इज्तेहाद (परिवर्तन) 
मुहम्मद कहते हैं कि जब हाकिम कोई हुक्म करता है और उसमें इज्तेहाद से काम लेता हो तो , अगर उसमें वह सही रस्ते पर पहुचता है तो उसको दो सवाब अता होंगे , अगर गलती हुई तो एक सवाब कहीं नहीं गया।
(बुख़ारी २ १ ४ ४) 
मशविरा तो ठीक ही है। इस्लामी क़ानून की सख्ती और क़ुरआनी दकिया नूसियत हाकिम को इजाज़त देंगे ? फतुवे ही बेड़ियां पाँव में डाल दी जाएँगी।
मुसलमानों के कई तबक़े हैं जो इज्तेहाद (परिवर्तन ) को अपना कर क़ुरआनी बंधन से आज़ाद हो चुके हैं, बहुत आगे निकल गए हैं .
इस्लाम को इज्तेहाद कि नहीं बल्कि सद्द बाब(समापति) की ज़रुरत है .
देव और देवियाँ फिर पूजी जाएँगी 
आयशा के मुताबिक़ मुहम्मद ने कहा 
रात और दिन ख़त्म न होंगे जब तक लात और उज़ज़ा (पुराने देव और देवियाँ) फिर से न पूजे जाएंगे।
मैंने अर्ज़ किया , या रसूलल्लाह मैं तो यह समझी थी कि जब अल्लाह तअला ने यह आयत उतार दी कि अपने रसूल को सच्चा दीन देकर भेजा ताकि इसको ग़ालिब करे सब दीनो पर।
आपने कहा ऐसा होगा जब तक अल्लाह तअला को मंज़ूर है ,
फिर अल्लाह तअला एक पाकीज़ा हवा भेजेगा जिसकी वजह से हर मोमिन मर जाएगा , यहाँ तक कि वह शख्स जिसके दिल में दाने बराबर भी ईमान होगा , मर जाएगा।
वह लोग बाक़ी रह जाएँगे जिनके दिलों में भलाई नहीं है . फिर वह लोग अपने बाप दादा के दीन पर लौट जाएंगे।
(मुस्लिम - - - किताबुल फ़ितन असरतुल सायता )
*  इस हदीस में मुहम्मद ने अपने दिल का खदशा ज़ाहिर किया है , बस मुस्लिम कि जगह मोमिन कहा है जो ग़लत है . जब इस ज़मीन पर ईमान ए हक़ीक़ी रखने वाले मोमिन ग़ालिब हो जाएंगे तब झूट और दरोग़ रखने वाले मुस्लिम खुद बखुद ख़त्म हो जाएंगे . मुहम्मद फ़ासिक़ और दरोग़ थे , इसका एहसास इनको था और अंजाम भी जानते थे कि झूट कि मौत यक़ीनी है , सो अपनी शरीक़ ए हयात से दिल कि बात कह गए।


हदीसी हादसे 
मेरे एतबार से मुन्तखिब हदीसें ख़त्म हुईं . जो बाक़ी रह जाती हैं वह सब क़ाबिल ए ज़िक्र भी नहीं।
झूठे और अक़ल से पैदल मुहद्दिस लिखते हैं कि बुख़ारी को चार लाख हदीसें याद थीं जिसमे दो लाख हदीसें उन्होंने ज़ईफ़ क़रार दिया . लिखने बैठे तो सिर्फ लगभग साढ़े सात हज़ार ही लिख पाए . उसमे से तजदीदियों ने साढ़े इक्कीस सौ हदीस को ही चुना बाक़ी " एक ही बात को दोहराया गया है" 
  मैं ने देखा तो इसमें भी सिर्फ चार सौ नाक़िस बाते मुहम्मद की मिलीं जिस पर मैंने तब्सरा किया . 

  


जीम. मोमिन 

Tuesday 29 October 2013

Hadeesi Hadse 107




जीम. मोमिन 
काफूरी मेदा 
मुहम्मद कहते हैं,
जन्नत में लोग खाएँगे पिएँगे , न पाखाना करेगे न पेशाब करेंगे , न थूकेंगे न नाक छिन्केंगे . लोगों ने पूछा ,
तब खाना कहाँ जाएगा ?
कहा एक डकार आएगी और पसीना होगा , इसमें मुश्क की खुशबू होगी , बस डकार और पसीने से खाना तहलील हो जाएगा और तस्बीह और तहमीद का इनको इल्हाम होगा .
(मुस्लिम - - - किताबुत-तौबा)

* पाखाने और पेशाब की तरह ही हैं मुहम्मद की यह बातें गलीज़ हैं क्योंकि झूट सबसे बड़ी गलाज़त है . अरब की अज़ीम फ़िक्र को मिटा कर इस्लाम उस पर झूट का मुलम्मा फेर दिया .

नेक बन्दा 
एक बार मुहम्मद  ने एक शराबी पर कोड़े लगवाए जो कि अक्सर उनको हंसाया करता था . कोड़े खाकर फिर वह मुहम्मद के सामने हाज़िर हो गया . उस पर लोगों ने लानत मलामत की , मुहम्मद ने लोगों को रोका ,
खबरदार , मैं इसको जनता हूँ , यह अल्लाह और उसके रसूल से मुहब्बत करने वाला नेक बन्दा है।
(बुख़ारी - - - २ ० ५ ८)
शराबी तो अकसर अल्लाह के नेक बन्दे ही होते हैं . नमाजियों और रोज़ दारों से कुजा बेहतर . अली के दो ऊंटों को शराब के नशे में हमज़ा ने माशूक के कहने पर ज़िबह कर दिया था , बस उसी दिन मुहम्मद ने शराब को हराम क़रार दे दिया था , इस हसीन  तोहफ़े से मुसलमान महरूम हो गए।

बुशरात 
मुहम्मद ने कहा नबूवत ख़त्म हुई , सिर्फ़ बुशरात बाक़ी है .
लोगों ने पूछा , यह बुशरात क्या है ?
बोले , मुझको ख़्वाब में देखना गोया जागने में मुझे देखना क्योंकि शैतान मेरी शक्ल में नमूदार हो नहीं सकता।
(बुख़ारी २ ० ७ ७ )  
मुहम्मद के गिर्द अक्सर जाहिलों की जमघट होती , पढ़े लिखे उनसे दूर ही रहते, वह हर उस लफ्ज़ का मतलब पूछते जो मुहम्मद गढ़ते , लफ्ज़ में मनमानी करके मानी भरते जो उनकी पैगम्बरी को चमका सके .
 सानेहा यह है कि मुसलमानों में मुहम्मद के गढ़े हुए मानी ही रायज हैं . बुशरात के लुग्वी मानी हैं खुश खबरी . इस्लाम के मुताबिक़ इसके माने हो गए हैं "मुहम्मद को ख्वाब में देखना"
कठ मुल्लाई कहती है जिसने मुहम्मद को ख़्वाब में देखा उस पर दोज़ख हराम हुई . किस कद्र मुसलमानों की घेरा बंदी की गई है . 

नंगे नागाओं की भीड़ 
आयशा कहती हैं कि उनके शौहर ने कहा ,
क़यामत के रोज़ लोग हश्र के लिए नंगे पाँव जाएँगे ,
नंगे बदन होंगे , बिना खतना किए .
मैंने मुहम्मद से पूछा मर्द औरत एक साथ होंगे ?
तो क्या एक दूसरे को देखेंगे नहीं ?
कहा आयशा ! वहाँ की मुसीबत ऐसी सख्त होगी कि कोई किसी को देखेगा नहीं।
(मुस्लिम किताबुल जन्नत व् सिफता)

अल्लहड़ आयशा की शोखी को बुड्ढा शौहर टाल गया .
रोमांस की जगह मुहम्मद शोख आयशा से इसी किस्म की बातें करके उसे बहलाए और दहलाए रहते।

हुक्म बरदार रहो 
मुहम्मद कहते हैं ,
हाकिम अगर कोई तकलीफ़ पहुँचाए तो सब्र करना चाहिए ,
नाफरमान जाहिल्यत की मौत मरेगा।
(बुख़ारी २ ० ८ ४ )
मुहम्मद ठीक ही कहते हैं , उनके नाती हुसैन ने नाफ़रमानी की , कुत्ते की मौत मारे गए . सिर्फ सर बचा . हसन ने सब्र किया अय्याशी की दुन्या में वसीक़े के साथ आबाद रहे .
मुहम्मद की हर बात अल्लाह का कलाम या रसूल की हदीस बनी हुई मुसलामानों को जिहालत में मुब्तिला किए हुए है।
मुसलमानों को चाहिए कि वह अपने ईमान ए बोसीदः को बदलें . जिसे वह ईमान मान बैठे हैं वह दर अस्ल बे ईमानी और गुमराही है।
इस्लाम को वह तस्लीम किए हुए हैं जो ईमान तो है ही नहीं .
ईमान बोसीदा होता है न फरसूदा , वह तो हमेशा ताज़ा होता है .
मुसलमानो ! अपने दिमाग़ के बंद दरीचे को खोलें और ईमान ए ताज़ा तर दाख़िल होने दें। 

 फरेबी सदाएं 
मुअम्मद ने कहा 
पुकारेगा पुकारने वाला ,
जन्नत के लोगों को ,
मुक़ररर तुम्हारे लिए यह ठहर चुका है कि तुम तंदरुस्त हो गए ,
कभी बीमार न पड़ोगे और मुक़ररर तुम ज़िन्दा हो गए ,
कभी मरोगे नहीं , मुक़ररर तुम जवान हो गए ,
कभी तुम बूढ़े नहीं होगे और मुक़ररर तुम ऐश और चैन में रहोगे ,
कभी रंज नहीं होगा और यही मतलब है खुदा के इस कौल का ,
कि बहिश्त वाले यह आवाज़ दिए जाएँगे कि यह तुम्हारी बहिश्त है ,
जिसके तुम वारिस हो गए , इस लिए कि तुम नेक आमाल किया करते थे .
(मुस्लिम - - - किताबुल जन्नत व सिफ्ता)  

मुहम्मद के यह छलावे मुसलमानों का यकीन और तकदीर बन गए हैं . इन्हीं फरेबों में मुब्तिला सदियों से दीगर कौमों की गुलामी में पड़े हुए हैं .

Tuesday 22 October 2013

Hadeesi Hadse 106


मुहम्मद का हौज़ 
मुहम्मद कहते हैं कि उनका हौज़ इतना बड़ा होगा कि सनआ और यमन का जो फ़ासला है , और इसमें पानी पीने वाले कूज़े आसमान में चमकते हुए सितारे के बराबर होंगे ,
(बुख़ारी - - - २०३४)

 मुहम्मद का एक नाजायज़ बेटा लौंडी मारिया से हुवा था , ढाई बरस की उम्र में वह चल बसा, मोहल्ले की औरतें तअना ज़न हुईं कि बुढ़ापे में एक औलाद नरीना हुई , उसे भी न बचा पाए, बनते हैं अल्लाह के रसूल . खिसयाने मुहम्मद ने ज़बान जिलाई कि उन को अल्लाह ने इत्तेला दी कि उसके बदले में तुमहें जन्नत में कौसर नाम का हौज़ एलाट किया गया जिसके निगराँ तुम हुए . मुहम्मद हौज़ की लंबाई चौड़ाई तो एक शहर से दूसरे शहर तक की बतलाई है मगर उसमे पानी पीने के कूज़े तारों के बराबर बतलाया . मुहम्मद के अल्लाह को इस बात का पता नहीं कि तारे अक्सर ज़मीन से कई गुना बड़े होते हैं . इन कूज़ों से पाँच फिटा बन्दा कैसे पानी पिएगा ?
जन्नत में हौज़ की निगरानी करेगे और कुछ लोगों को ऐसा भगाएँगे जैसे पनघट से अनचाहे ऊंटों को भगाया जाता है (एक दूसरी हदीस) 
जन्नत में तो सब मुसलमान ही होंगे , उनसे भी बुगज़ और कीना ? यह मुहम्मद की फितरत थी .
इस्लाम की बुन्याद इन्हीं ऊट पटांग बातों पर राखी हुई है .

ताकि ताक झाँक हो सके 
मुहम्मद ने कहा जन्नत के लोग खिडकियों से एक दूसरे ऐसा तकेंगे जैसे तुम लोग खिडकियों से आसमान के तारों को देखते हो .
(मुलिम - - - किताबुल जन्नत ओ वाशिफ्ता)

जन्नत में कोई काम तो होगा नहीं , जन्नती कितना खाएँगे , कितनी शराब पियेंगे , कितनी अय्याशी करेगे ? इन तमाम चीज़ों से जी ऊब जाएगा तो एक दूसरे के घर ताक झांक करेगे।
मुहम्मद दूसरी हदीस में कहते है कि ताक झाँक करने वाले की आँख फोड़ दो . तुम पर कोई इलज़ाम नहीं। 
यही दुराहा भास् मुसलमानों की फितरत और ईमान बन गए है।  

आँखें फोड़ दो 
मुहम्मद ने कहा कोई तेरे घर झांकता हो तो कंकड़ी मार के उसकी आँखें फोड़ दे , तेरे जिम्मे कोई जुर्म नहीं।
(बुख़ारी - - - २०१७)  

मुहम्मद की शिद्दत पसंदी हर जगह नज़र आती है , चाहे ज़रा सी चोरी पर हाथ काट देना हो या ताक झाँक करने पर आँख फोड़ देना। क्या मुहम्मद इंसानी फितरत को भी समझते थे या सिर्फ पयंबरी।

ग़ैर को बाप बनाना 
मुहम्मद कहते हैं जो शख्स ग़ैर को अपना बाप बनाएगा , ये जानते हुए कि ग़ैर उसका बाप नहीं है , अल्लाह तअला उस पर जन्नत हराम कर देगा।
(बुख़ारी २०५६)  
इस हदीस का तअल्लुक़ २१वें पारे के ३३वें सूरह अहज़ाब से है जोकि ज़ैद बिन हारसा के सर फोड़ी गई है जिसका मुआमला यह है कि मुहम्मद ने इसे आठ साल की उम्र में गोद लिया था और भरी मह्फ़िल में अपना बेटा बनाया था . इस मासूम ने जवानी तक मुहम्मद को अपना बाप माना . मुहम्मद ने इसकी शादी अपनी फूफी ज़ाद बहन जैनब से की और फिर उससे अपना जिंसी राबता क़ायम कर लिया था जिसे ज़ैद बिन हारसा ने मुहम्मद और ज़ैनब को रंगे हाथों पकड़ लिया था . मुहम्मद ने ज़ैद को लाख समझाया बुझाया कि वह इसी हालत में अपनी अजवाज कायम रखे , दोनों का काम चलता रहे मगर वह एक न माना . नतीजतन मुहम्मद ने उसके ख़िलाफ़ यह हदीस उगली।
गैर वह जोकि अभी मासूम बच्चा था, कैसे किसी को अपना बाप बना लेगा ? 
खुद मुहम्मद इसके बाप बने थे . जन्नत हराम तो इन जैसे पापियों पर होना चाहिए जो ज़ैद को गोद में उठा कर क़सम खाते हैं कि आज से ज़ैद मेरा बेटा हुवा और मैं इसका बाप . फिर जब वह जवान हुवा तो अपनी रखैल से उसकी शादी कराते हैं।
फिर उस गोद लिए बेटे पर जन्नत हराम करते हैं।  
मुहम्मद की रखैल उम्मे सलीम और उनकी नजायज औलाद अनस कहता है कि ज़ैद के तलाक के बाद जब जैनब की इद्दत पूरी हो गई तो मुहम्मद ने ज़ैद से कहा कि वह खुद अपनी मतलूका को मेरा पैग़ाम दे . ज़ैद राज़ी हो गए . 
जब जैनब के पास पहुँचे तो वह आटे में ख़मीर कर रही थी . उनको देख कर ज़ैद के दिल में उनकी अजमत इतनी बढ़ गई कि नज़र उठा कर इनको देख न सके और कहा आपको रसूलल्लाह ने याद किया है .
(ये कमाल ईमान की बात थी और निहायत सआदत मंदी की कि ज़ैद के दिल में इस ख़याल से कि रसूल अल्लाह ने पैग़ाम भेजा है , इस कद्र अजमत और हैबत इन के दिल में छा गई कि नज़र न उठा सके और अफ़सोस इस वक़्त है लोगों पर कि हदीस ए मुहम्मद की अजमत और बड़ाई पर कुछ भी न ख्याल आया और बेतकल्लुफ़ झूटी तावीलें और यह ख़याल नहीं करते कि यह खास ज़बान वह्यी की तरजुमानी से निकली है जिसकी एक शान है।)  
ज़ैद के मुंह से अनस कहता है ,
गरज़ मैं ने अपनी पीठ मोड़ी और अपनी एडियों के बल लौटा और अर्ज़ किया कि ऐ जैनब ! रसूल अल्लाह ने आपको पैग़ाम भेज है और आपको याद करते हैं और जैनब ने कहा ,
जैनब बोली , मैं कोई काम नहीं करती जब तक मशविरा नहीं ले लेती अपने परवर दिगार से (यानी इस्तिखारा नहीं लेती) और उसी वक़्त वह अपनी नमाज़ की जगह खड़ी हो गईं . 
कुरआन उतरा और रसूल अल्लाह बगैर किसी इज़्न के दाखिल हो गए . 
(आयत) ब्याह दिया हमने जैनब को तुझको ताकि मोमिनों को हर्ज न हो अपने लेपालकों की बीवियों से निकाह करने में , जब वह अपनी हाजत इनसे पूरी कर चुकें, 
और रावी ने देखा रसूल ने लोगों को रोटी गोश्त खूब खिलाया , यहाँ तक कि दिन चढ़ गया . खा पी कर लोग बाहर चले गए और कई लोग रह गए जो घर में बातें करते रहे , बीवियाँ पूछती हैं कि कैसी पाई नई बीवी को - - - 
(मुस्लिम किताबुन-निकाह) 

*मुअम्मद की ज़िन्दगी का सब से बड़ा नाक़ाबिले-फरामोश वक़ेआ है कि उनहोंने अपने गोद लिए हुए और मुंह बोले बेटे की बीवी को अपने हवस का शिकार बनाया जिसे एक दिन बेटे ने मुअम्मद को रंगे हाथों पकड़ा , तब बेटे को समझाया बुझाया कि वह राज़ी हो जाय , ताकि दोनों का काम चलता रहे . जब बेटा न माना तो एलान कर दिया कि जैनब मेरी बीवी है , इसका अक़्द मेरे साथ अर्श पर हुवा था . अल्लाह ने निकाह पढ़ाया था और जिब्रील ने शहादत दी थी।
 मुअम्मद की इस मजमूम हरकत के तहत क़ुरानी आयतें मौक़ूफ़ हुईं बदले में मुसलमानों को नई वाकिफ्यत दी . अल्लाह भी बन्दों की तरह अपनी ग़लती सुधार रहा है।
मुअम्मद के इस अम्ल ए हराम के चलते उसकी उम्मत हर हराम काम को हलाल किए हुए है और पूरी दुन्या में ज़िल्लत की ज़िन्दगी जी रही है। 


जीम. मोमिन 

Tuesday 15 October 2013

Hadeesi Hadse 105


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ज़बान और तानासुल पर काबू नहीं 
मुहम्मद ने कहा जो शख्स मेरे लिए दो चीजों का जामिन हो जाए , एक दोनों जबड़ों के बीच ज़बान है , दूसरे दोनों टांगों के बीच जो शर्म गाह है , मैं उसके वास्ते जन्नत का ज़ामिन दार हो जाऊँगा।
(बुखारी २००७)   

मुहम्मद ने इस हदीस में अपनी फितरत की तर्जुमानी , ला शऊरी तौर पर बड़ी ईमानदारी के साथ की है . इनकी ज़बान खामोश रहना तो जानती ही नहीं थी . कुरआन बेसिर पैर की बातों का लामत्नाही सिलसिला है , इनकी ही ज़बान है . कुरआन जितना महफूज़ है , इससे ज्यादह उस्मान गनी ने इसे मुरत्तब करते वक़्त रद्दी की टोकरी में डाल  दिया था .
 इसके बाद मुहम्मद ने बेलगाम और जिहालत से भरपूर हदीसें बकी हैं।
बेशक इनकी ज़बान में कोई लगाम लगा देता तो अज खुद बेहिश्ती होता , मुहम्मद की कोई ज़मानत की ज़रुरत न होती।
दूसरा मुहम्मद का जिन्सी मुआमला है . 
माँ की उम्र की बेवा से शादी की जो मालदार भी थी और बाअसर भी . इस शादी में निकम्मे और फक्कड़ इंसान की कोई अजमत नहीं थी बल्कि इसमें उसकी लालच और तन आसानी की नियत छिपी हुई थी . 
खदीजा की मौत के बाद आज़ाद हुए तो अपनी अय्याश तबअ में नमूदार हुए , बयक वक़्त दो दो शादियाँ कीं . एक जवान से और दूसरी नादान कमसिन सात साल की बच्ची आयशा से , जिससे बूढ़े ने जिंसी बेराह रवी कायम किया . इसे इंसानियत कभी मुआफ़ नहीं कर सकती . 
इसके बाद भी मुहम्मद ने नव शादियाँ मज़ीद कीं , इनके अलावा लौंडियाँ बांदियां और रखैल हुवा करती थीं . उनहोंने कई मुताह किए , जहाँ मौक़ा मिला मुंह मारा जिसकी ओलिमा पर्दा पोशी करते फिरते हैं .
मुहम्मद ने अल्लाह से लातादाद शादियों की छूट ले रखी थी , इस रिआयत के लिए अपने ऊपर कुरानी आयत भी उतरवा लिया था कि दुन्या की कोई भी मुसलमान औरत इनकी मर्ज़ी के बाद इनके अक़्द में आ सकती है . अपने लिए मुहम्मद ने अपनी भांजियां और भातीजियाँ भी जायज़ करा रख्खी थीं , शुक्र है कि इनका सगा भाई बहन कोई नहीं था।
मुहम्मद की जिन्स परस्ती इससे भी आगे जाती है जो नागुफ्तनी है।
सच मुच वह जन्नत का मुस्तहक होता जो मुहम्मद की शर्मगाह पर काबू पाता।   

हदीसी ड्रामा 
अल्लाह कहता है - - - "ऐ जन्नतियो !
जन्नती कहते हैं  - - -  "ऐ रब ! हम हाज़िर हैं तेरी खिदमत में और सब                                         भलाई तेरे हाथों में है , पाक परवर दिगार "
अल्लाह कहता है - - - "तुम राज़ी हुए ?"
जन्नती कहते हैं  - - - "हम कैसे राज़ी न होंगे . हमको तो तूने वह दिया है                                     कि इतना अपनी मखलूक में किसी को न दिया।"
 अल्लाह कहता है - - - "क्या मैं तुमको इससे भी अच्छी चीज़ दूं ?"
जन्नती कहते हैं  - - - " दे रब ! इससे अच्छी कौन सी चीज़ है ?"
अल्लाह कहता है - - - '' मैं ने तुम पर अपनी रजा मंदी उतार दी. अब इसके                                  बाद तुम पर कभी गुस्सा नहीं करूंगा।" 
(मुस्लिम - - - शिद्दत ओ तईमहा)

इस किस्म की बातें मुसलमानों की ईमान बन चुकी हैं , कौम को कैसे वक़्त के साथ जोड़ा जा सकता है कि अजखुद अफीम की आदी बनी बैठी है .कोई चीनी इन्कलाब ही इनको बेदार कर सकता है , हिंदुत्व के पाखण्ड के दोश बदोश इस्लाम मज़बूत ही होता जाएगा . दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। 

  बालाम के कलेजे से जन्नतियों की ज्याफ़त 
मुहम्मद कुछ लोगों के बीच बैठे हदीस बयान कर रहे थे कि क़यामत के दिन ज़मीन रोटी की तरह होगी . अल्लाह तअला इसे अपनी दस्त ए कुदरत में लेकर इस तरह उलट पलट करेगा जैसे तुम में से लोग रोटी को सेंकने के लिए करते हैं।
इसी बीच एक यहूदी मुहम्मद की हदीस में दख्ल अन्दाजी करते हुए कहने लगा ,
मैं बतलाऊँ कि अहले जन्नत की मेहमानी किस चीज़ से होगी ?
क़यामत के दिन ज़मीन रोटी की तरह होगी , अहले जन्नत का सालन भी बतलाए देता हूँ , मछली और बालाम होगा .
लोगों ने पूछा यह बालाम क्या बला है ?
उसने कहा यह बैल है जिसके जिगर का एक टुकड़ा ही सत्तर हज़ार लोगों के लिए काफी होगा।
यह सुन कर मुहम्मद को इतनी हंसी आई कि इनकी केचुलियाँ नमूदार हो गईं।
(बुख़ारी - - - २०२०) 

अल्लाह का कलाम हो या मुहम्मद की हदीस , इन्हें सुन कर ऐसा ही मजाक बनता था जो सामने पेश है।
सुनते हैं एक जमाअत अहले हदीस हुवा करती है जिसने हदीस को कुरान से पहले मुअत्बर करार दिया है , ख़त्म कुरआन की तरह इनमें ख़त्म बुख़ारी शरीफ का जश्न मनाया जाता है . इनके शिद्दत का यह आलम है तो इनकी अहलियत का अंदाज़ा लगाया जा सकता है . मैंने इन मुहम्मदी दीवानों के मुंह से सुना है ,
मुहम्मद की लगजिशों की जवाब दही अल्लाह की होगी क्योंकि अल्लाह के हुक्म के बगैर कुछ नहीं हो सकता।
इन दीवानों को अल्लाह अक्ल ए सलीम अता करे।
मैं अगर इनसे पूछूं कि क्या मेरी दहरियत अल्लाह के हुक्म के बगैर है ???
अल्लाह कुरआन में बार बार कहता है कि उसे तमस्खुर (मजाक ) पसंद नहीं मगर यहूदी की बर्जस्तगी ने मुहम्मद को भी गुदगुदा दिया , ऐसा हँसे कि उनकी केचुलियाँ नमूदार हो गईं . मुहम्मद को हंसी अपने उस पहाड़ जैसे झूट पर आई जो उनकी तहरीक थी .
 देखिए  उनकी उम्मत को उन पर और उनके अल्लाह पर कब हंसी आती है। 

जीम. मोमिन 

Friday 11 October 2013

Hadeesi Hadse 104




जीम. मोमिन 

मख्खी 
हदीस है कि मख्खी अगर सालन में गिर जाए तो उसे चुटकी में लेकर पूरी तरह सालन में डुबो कर बाहर फेंक देना चाहिए , फिर सालन को खाया जा जा सकता है . कहते हैं कि कि मख्खी के एक पर में बीमारी होती है तो दूसरे पर में शिफा . गोया दोनों पर डूब गए तो किसी नुकसान का अंदेशा नहीं।
(बुखारी १९१८)

यह रवायत अरबों में पहले से ही चली आ रही है जिसको मुहम्मद ने हदीस करके मुसलामानों का तरीक़ा बना दिया है . दोनों परों में अलग अलग तासीर है , इसका कोई साइंसटिफिक सुबूत नहीं है . मख्खी गलाज़त पर बैठती है जिससे उसमें बीमारी के जरासीम तो होते ही हैं . चाय दूध या दुसरे तरल को मख्खी के पड़ जाने पर फैंक देना चाहिए , दाल या सालन में चम्मच से पूरे एरिया को निकल कर फेंक देना चाहिए कि उस पर लागत ज्यादा होती है . पूरा का पूरा फेंकना मुनासिब नहीं।
हिजड़े 
मुहम्मद हिजड़ों को सख्त नापसंद करते थे . मुताल्कीन से कहते , इनको घरों में मत आने दिया करो।
(बुख़ारी १९३१)  
क्या यह किसी पैगम्बरी की अलामत हो सकती है कि अल्लाह की बनाई हुई मखलूक से नफरत करे ? तहकीक जदीद कहती है कि इनको समाज में रहने का हक है , वह इनके लिए कोई काम तलाश रही है ताकि यह खुद को मिली हुई घिनावनी पहचान से दूर कर सकें .

ख़याली रफ़्तार 
मुहम्मद ने कहा जन्नत में एक दरख़्त है जिसके साए में बरसों तेज़ रफ़्तार घोड़े से सफ़र किया जाए तब भी इसका साया ख़त्म नहीं होता।
(मुलिम - - - किताबुल जन्नत) 

मुहम्मद की जितनी हदीसें हैं सब इनकी जेहनी इख्तरा हैं . वह इनको बक कर अपनी पैगम्बरी चमकाते थे , उनके बाद अपने कठ मुल्लों को रोज़ी दे गए हैं कि वह भूखों न मरें  और मुसलमानों को जिहालत में मुब्तिला रख्खें.

काफ़िर न कहो 
मुहम्मद कहते हैं कोई किसी को काफ़िर या फ़ासिक न कहे , अगर वह ऐसा नहीं है तो अल्फ़ाज़ कहने वाले पर ओद करेंगे।
(बुख़ारी १९६३)  

दूसरों को नसीहत करने वाले मफरूज़ा रसूल बज़ात खुद इस मरज़ में मुब्तिला थे . बात बात पर अपने खुद सर साथियों को काफ़िर कह दिया करते थे . उन्हीं के नक्श क़दम पर आम मुसलमान है . जो अपनी सूझ बूझ से कम करता है उसको यह लक़ब मिल जाता है।

शायर को भी नहीं बख्शा 
मुहम्मद कहते हैं बअज़ शेरों में हिकमत भरी रहती है , फिर पलट कर कहते हैं , इंसान का शेरों से पेट भरे , इस से बेहतर है कि इसका पेट पीप से भर जाए।
  (बुख़ारी १९८०-८१)

मुहम्मद का पूरा कुरान उनकी फूहड़ और बकवास शायरी ही है मगर दूसरों के शायरी ही नहीं तमाम फुनून ए लतीफा उन्हें फूटी आँख नहीं भाते .

छींक 
अबू बुरदा से रवायत है कि मुहम्मद कहते हैं अल्लाह को छींक पसंद है और जमुहाई नापसंद . छींक आने पर अलहम्दो लिलिल्लाह कहना चाहिए सुनने वाले को यरहमुकल्लाह कहना चाहिए और जम्हाई मिन जानिब शैतान है आने पर हत्तुल इमकान उसे रोकना चाहिए . इस पर शैतान को हंसी आती है।
(बुख़ारी १९८९)

इस सिलसिले में दूसरी हदीस है कि फज़ल इब्न अब्बास की बेटी उम् कुलसूम पत्नी अबू मूसा (जिनको इमाम हसन ने तलाक़ दे दिया था अक़्द सानी मूसा से हुवा) के घर मैं गया . मैं छींका तो अबू मूसा ने कोई जवाब न दिया यानी यरहमुकल्लाह न कहा . इसके बाद वह छींकीं तो उनको जवाब दिया . अबू बुरदा कहते है कि लम्बी यह्कीक के बाद मालूम हुवा कि छींक आने पर अलहम्दो लिलिल्लाह कहना चाहिए सुनने वाले को यरहमुकल्लाह कहना चाहिए 
(मुस्लिम - - - किताबुल ज़ोह्द )

यह छींक और पाद सदियों से इस्लामी आलिमों का मौज़ू ए तहकीक रहा है . इसी दौरान दूसरी कौमें मखलूक के हक में तह्कीकी और तामीरी काम करती रहीं जिसे इस्लाम माद्दियत परस्ती कहता रहा . आज इसी माद्दियत परस्ती के आगे इस्लामी दुन्या नाक रगड़ रही है . बगैर टेली फोन के काम नहीं चलता , हवाई जहाज़ के बिना सफ़र नहीं कर पाते .
   इस हदीस में ज़िक्र आया है अब्बास की बेटी उम् कुलसूम पत्नी अबू मूसा का जो कि मुहम्मद के नवासे हसन की तलाक़ ज़दा थीं . हसन ने ७२ निकाह किए थे हर चौथी बीवी को तलाक़ देते हुए एक नई दुल्हन लाते . इनके आलावा उनकी बेशुमार लौंडियाँ हुवा करती थीं .


Tuesday 1 October 2013

Hadeesi Hadse 104


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मुगीरा इब्न शअबा 
इन हदीस निगारों में कैसे कैसे लोग थे ? सहाबा ए किराम में कैसी कैसी हस्तियाँ थीं ? जान कर तुमको हैरत होगी . इन्हीं में एक मुहम्मद के चहीते और जांबाज़ सहाबी हज़रात मुगीरा इब्न शअबा हुवा करते थे . इनकी दगाबाजी का मुआमला यह था कि यह हज़रात दौरान सफ़र एक गिरोह के हमराही बन गए थे . पहले अपने हुस्न इखलाक से गिरोह का एतमाद हासिल किया फिर रात को मौक़ा पाकर इनको क़त्ल कर दिया और इनका सारा माल ओ असबाब लेकर फरार हो गए . 
मुगीरा इब्न शअबा इस बड़े जुर्म के बाद मज़बूत पनाह चाहता था जो मुहम्मद के खेमे में इसे मिली . इसने मुहम्मद को तमाम रूदाद साफ साफ सुना दिया और इस शर्त पर इस्लाम कुबूल किया कि इसके लूटे हुए माल से मुहम्मद का कोई लेना देना नहीं होगा .. मुहम्मद को ऐसे बहादुर हत्यारे की तलाश हुवा करती थी . मुगीरा इब्न शअबा ने कालिमा पढ़ा और मुसलमान हो गया।
इसी मुगीरा इब्न शअबा को मुहम्मद के मरने के बाद दूसरे खलीफा उमर ने चालीस हज़ार फ़ौज का सर बराह बना कर कसरा (ईरान) पर हमला करने के लिए भेजा . ईरानी फौजी कमांडर से इस जाहिल की दिल चस्प गुफ्तुगू आप हदीस नं १२८९में देख सकते हैं।  

मुहम्मद के आकथू 
 ज़िक्र है मुहम्मद उमरे के सफ़र थे कि राह में कुछ कुरैश खेमा जन मिले . दोनों को एक दुसरे से खदशा महसूस हुवा। इसी सिलसिले में कुरैश के लोगों ने इरवा नाम के शख्स को मुहम्मद की टोली का जायजा लेने भेजा . इरवा और मुहम्मदी टोली के दरमियान गुफ्तुगू तकरार में बदल गई . इसी बीच इरवा ने देखा जब मुहम्मद थूकते हैं तो कोई न कोई उनका साथी थूक को हाथो हाथ लेकर थूक को अपने चेहरे और जिस्म पर मल लेता है . 
(बुखारी ११४४)

*इस घिनावनी अकीदत या मुआशी मजबूरी को क्या कहा जा सकता है . इन्हीं लोगों को आम मुसलमान सहाबी यानी मुहम्मद कालीन कहते हैं और बड़े एहतराम के साथ इनका नाम लेते हैं।  

लाल बुझक्कड़ 
मुहम्मद कहते हैं क़यामत के दिन सूरज ज़मीन से इतना करीब , यहाँ तक कि एक मील करीब आ जायगा , तो लोग अपने आमाल के मुवाफिक पसीने में डूबे होंगे . कोई तो टुख्नों तक डूबा होगा , कोई घुटनों तक , कोई इज़ार बंद बाँधने की जगह तक . किसी को पसीने की लगाम होगी यानी मुंह तक .
( मुस्लिम - - - किताबुल जन्नत ओ सिफ़्ता )

*मुहम्मद के दीवानों और पागलो !
इस हदीस को पढ़कर अंदाज़ा लगा सकते हो कि तुम्हारे मुहम्मद पैगम्बर थे या लाल बुझक्कड़ या तुम भी मुहम्मद की तरह अक्ल के पैदल हो ? 
पसीना मानिंद ओस होता है , हवा के झोके में उड़ जाता है , न बहता है न ही नदी और तालाब बनता है . सूरज हमसे करोडो मील दूर है . इस हालत में हम उसकी गर्मी से झुलस जाते हैं . इसकी लपटें लाखों किलो मीटर दूर तक फैलती हैं और लाल बुझक्कड़ कहते हैं कि उसका फासला सरों से एक मील रह जायगा , नतीजतन पसीने की दरया बह जायगी , जो इंसानों के जिस्म से निकलेगा , जिस्म जो दोज़ख की आग में जलते रहने के लिए सही सलामत बचा रहेगा .
यह मुसलमान कहे जाने वाली मखलूक कब तक बाकी बचा रहेगा ?

लाफ़ानी मौत 
मुहम्मद कहते हैं जो शख्स जिस तरह से खुद कुशी करता है , बोज़ख में इस पर वैसा ही रद्द-अमल होता है . पहाड़ से कूद कर मरा होगा तो दोझख में उसी अंदाज़ से गिरता रहेगा . ज़हर पीकर खुद कुशी की है तो दोज़ख में ज़हर ही पीता रहेगा . जिस हथियार को भोंक कर ख़ुद कुशी की होगी , वही हथियार दोज़ख में खुद को भोंकता रहेगा .
(बुख़ारी १९१७)

*फ़िल्मी दुन्या के लिए बहतरीन मौक़ा है कि इस हदीस को फिल्माएं और ऐसे नज़ारे दर्शकों को दें कि दोज़खी मुसलमान क्या क्या नज़ारे पेश करते हैं। 
खून बेसबब
मुहम्मद ने कहा क़सम खुद कि जिसके कब्जे में मेरी जान है, एक ज़माना आएगा कि क़त्ल करने वाला न जानेगा कि इसने क़त्ल क्यों किया और मकतूल न जानेगा कि वह क़त्ल क्यों किया जा रहा है .
(मुस्लिम - - - किताबुल फितन अशरातुल साइता )

 वह ज़माना तो आप के दफन होते ही आ गया . आपकी चाहीती बीवी आयशा और निखट्टू दामाद अली के दरमियान जंग ए जमल हुई जिसमे ताज़े ताज़े आपकी उम्मत के एक लाख मुसलमान मारे गए . जिसमे मारने वालों को पता था वह सामने वाले को इस्लाम क़ुबूल करने की सजा दे रहा है और मरने वाला भी समझ रहा था की वह इस्लाम कुबूल करने के जुर्म में मारे जा रहा है .
आज चौदा सौ सालों से मुसलमानों में आपसी जंगें हो रही हैं और एक दूसरे को इस्लाम में रहने की सजा दे रहे हैं .

मुर्दे की गवाही 
मुहम्मद कहते हैं बन्दा जब कब्र में रखा जाता है तो अपने साथियों की जूतियों की आवाज़ सुनता है , तब इसके पास दो फ़रिश्ते आते हैं और उसे उठा कर बिठा देते हैं और पूछते हैं कि तू मुहम्मद के बारे में क्या जानता है ? मोमिन कहता है मैं गवाही देता हूँ कि वह अल्लाह के बन्दे और अल्लाह के रसूल थे `अल्लाह तअला अपनी रहमत भेजे उन पर और सलाम . तो अपना ठिकाना देख जहन्नम में अल्लाह तअला ने तुझको जन्नत दिया . इसकी कब्र सत्तर हाथ चौड़ी हो जाती है और सबजी से भर जाती है , क़यामत तक .
( मुस्लिम - - - किताबुल जन्नत ओ सिफ़्ता )

 यह हदीस सब से पहले मुहम्मद ने अपनी साली इस्मा पर आजमाई थी उसके बाद आम लोगों से बतलाना शुरू किया . काश कि इस पर यकीन न करके मुहम्मद पर सवालों के बौछार लगा कर उन्हें नंगा कर देती कि जो आपसे पहले मरे वह आपकी गवाही कैसे देते?
 या हमारी झूटी गवाही को फ़रिश्ते मान जाते कि वह बिलकुल गधे होते हैं ?
मैं ने कब देखा है कि अल्लाह तुमको अपना रसूल बना रहा है ?


जीम. मोमिन 

Tuesday 24 September 2013

Hadeesi Hadsa 103


छू मंतर को भी नुक़ाम 
मुहम्मद की एक बीवी उम्म सलमा कहती हैं मुहम्मद ने ज़हर उतारने के लिए मंतर की इजाज़त दी . कहती हैं कि उनके घर में एक लड़की को देखा जिसका रंग ज़हर के असर से सियाह हो रहा था , बोले लड़की को नज़र लग गई है , इसके वास्ते मंतर किया जाए .
(बुख़ारी १९०९-१ ०-१ १) 
कुफ्र और शिर्क कहाँ इससे हट कर है , जब कि इस्लाम का पैगाम इससे हटकर है . इस्लाम की रू से मुहम्मद बुनयादी तौर पर खुद काफ़िर ओ मुशरिक थे.

अज़ीयत पसंद 
मुहम्मद कहते हैं मुसलामानों को जो रंज ओ अलम , ग़म और तकलीफ़ होती है , यहाँ तक कि कांटा भी लग जाता है तो इसके एवज़ में अल्लाह उसके गुनाह मुआफ़ कर देता है . अल्लाह मुसलमानों की बेहतरी चाहता है , तभी उसको मुसीबत में डालता है।
(१८८५-८६-८७)
मुहम्मद ने जो इस्लाम के बीज बोए है उनके पेड़ में मुसीबत के फल ही फलेंगे . मुहम्मद इंसानी नफ़्सियात का फ़ायदा हासिल कर रहे हैं कि मुसलमान अज़ीयत पसंद बने रहें , बिना चूं चरा किए हुए उनके जेहादी मुसीबतों को झेलते रहें . उनकी कबीलाई नस्लें हुक्मरान बन कर ऐश करती रहें और अवाम रूखी सूखी खाकर भी खुश रहे कि आक़्बत में वह नफे में जा रहा है . 
खिलाफ़त अबुबकर को 
एक दिन आयशा के सर में दर्द था , वह कराह रही थीं कि हाय हाय मेरा सर !हाय हाय मेरा सर !!
मुहम्मद ने कहा तुम घबरा क्यों रही हो ? मेरे सामने मर गईं तो मैं तुम्हारे लिए दुआए इस्तग्फ़ार करूँगा .
आयशा ने कहा मैं खूब समझती हूँ कि मैं मर जो गई तो किसी को दुल्हन बना कर बैठोगे .
मुहम्मद ने कहा तुम अपने आपको छोड़ो , मैंने सोचा है अबुबकर और उनके बेटे को बुला कर उनके नाम ख़िलाफ़त की वसीयत कर दूँ लेकिन फिर ये ख़याल करके कि अल्लाह खुद अबुबकर के अलावा किसी के लिए खिलाफत पसंद नहीं करेगा . वह इनको ख़लीफा बना देगा . लोग किसी दूसरे की ख़िलाफ़त पर राज़ी नहीं होंगे .
(बुख़ारी १८९२) 
बेशक अबुबकर के आलावा किसी को ख़िलाफ़त का हक पहुँचता भी नहीं . तन मन धन से चाहे मुहम्मद की मदद जिसने भी की हो मगर ज़मीर को बेचकर मुहम्मद की मदद सिर्फ अबुबकर ने ही की थी .अपनी छ साला बेटी को पचास साला बूढ़े के लिए कौन बाप दे सकता है ? तब जब कि मुहम्मद रनडुवे हो गए थे . आयशा सिर्फ १८ साल की उम्र में बेवा हो गई थी जबकि ऐन जवान थी . बद नसीबी यह थी कि मुहम्मद ने वसीयत कर दिया था की उनकी तमाम बीवियाँ , उनके बाद उम्मुल मोमनीन यानी उम्मत की माएं होगी .
यह खुलफ़ा ए राशदीन सारे के सारे बे पेंदी के लोटे हुवा करते थे , सब आपस में एक दूसरे के ससुर और दामाद थे .

खुद सिताई 
इब्न अब्बास से हदीस है कि मुहम्मद ने कहा मेरे सामने तमाम उम्मतें पेश की गईं . बाज़ उम्मतें मुख़्तसर तो बाज़ कुछ ज़ायद , मगर मूसा की उम्मत ज़मीन पर ता हद्दे नज़र . इसके बाद मुहम्मद की उम्मत ता हद्दे आसमान . मुहम्मद ने कहा मेरी उम्मत के सत्तर हज़ार ( मुहम्मद का पसंदीदा शुमार ) लोग तो बग़ैर हिसाब ओ किताब जन्नत में दाखिल हो जाएँगे , कहकर अपने हुजरे में चले गए . 
लोगों में आपस में चर्चा होने लगी कि यार हम लोग पहले ईमान लाने वालों में हैं तो इमकान हमारे ही होंगे . हम न सही कि दौर जिहालत में पैदा हुए हैं मगर हमारी औलादें यकीनन होंगी .
मुहम्मद हुजरे से बाहर आए और कहा जी नहीं , जो लोग मंतर नहीं करते,बद फ़ाली पर यकीन नहीं रखते , अपने जिस्मों को दागने से बचते हैं - - - "
(बुख़ारी १९०३) 
इसके बर अक्स हदीस १९०६ देखें और समझें कि मुहम्मद क्या थे 
अनस कहते हैं कि मुहम्मद ने अन्सारियों को ज़हरीले जानवर के काटने पर मंतर की इजाज़त दी थी . खुद अनस को अल्जनब की बीमारी हो गई थी . वह कहते हैं कि इसके इलाज के सिसिले में अबू ताहा ने मुहम्मद के सामने मेरे जिस्म पर दाग़ लगाए .
(बुख़ारी १९०६) 

हदीस १९०३ और हदीस १९०६ में मुहम्मद की पयंबरी में तज़ाद देखें। 

अबू हरीरा कहते हैं कि वह मुहम्मद के साथ थे कि एक धमाके की आवाज़ आई , कहा 
जानते हो क्या है यह ?
अबू हरीरा ने कहा अल्लाह या इसका रसूल ही बेहतर जानता है .
कहा एक पत्थर है जो जहन्नुम में फेंका गया था सत्तर बरस पहले , वह जा रहा था अब उसकी सतह पर पहुंचा है .
(किताबुल जन्नत वस्फितः)

मुहम्मद हर लम्हा झूट गढ़ने पर आमादा रहते , लोग खामोश रहते तो वह उनको छेड़ कर सवाल पूछते , लोग उनकी फितरत को समझ गए थे, कहते 
" अल्लाह या इसका रसूल ही बेहतर जानता है ."
उनके हौसले और बढ़ जाते . किसी की मजाल न थी कि दोनों जहान के मालिक से उनके जवाब पर सवाल करता . मुहम्मद का पसंदीदा हिन्दसा 70 था जो शुमार के ज़ुमरे में उनका तकिया कलाम बन गया था।

कोढियो से नफ़रत 
मुहम्मद ने कहा बीमारी का उड़ कर लगना , बद फाली खोपड़ी का उल्व सफ़र की बलाएँ ,सब बेहूदा बातें हैं , अलबत्ता जुज़ामी से इस तरह भागो जैसे शेर से भागा करते हो .
(बुख़ारी १९०४)

 यह है मुहसिन ए इंसानियत कहे जाने वाले क़ल्ब ए सियाह का इंसानियत के लिए नफ़रत का पैग़ाम . जो लोग हमदर्दी और मदद के लिए ज्यादा मुस्तहक़ होते हैं उनसे दूर भागने की सलाह .
तअज्जुब होता है कि ऐसे ख़याल रखने वाले शख्स की लोग तारीफ़ों के पुल बाँधते हैं . मुहम्मद से बेहतर तो आज की मेडिकल साइंस की नर्सें हैं जो कोढियों की खिदमत करती हैं 
यह हदीस मुहम्मद को आज की इंसानी क़द्रों के आईने में मुजरिम करार देती है .
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जीम. मोमिन 

Tuesday 17 September 2013

Hadeesi Hadse 102


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मुंह के बल चलना ?
एक शख्स ने मुहम्मद की कही हुई हदीस पर वजाहत चाही कि 
कयामत के दिन काफिरों को मुंह के बल चलाना क्या होता है ?
मुहम्मद का जवाब था 
जिसने इनको दुन्या में पाँव के बल चलाया , क्या इस बात की कुदरत नहीं रखता कि मुंह के बल चलाए .
(सही मुस्लिम शरह नववी)

 मुंह के बल चलना एक मुहाविरा है , पूछने वाले ने मुहम्मद को चुटकी ली थी कि देखे कितने ज़हीन हैं . जनाब मुहाविरे को अमली जामा पहना रहे हैं और वह भी अल्लाह की कुदरत के हवाले से . अगर अल्लाह काफिरों को मुंह के बल चला सकता है तो इसमें सजा और जज़ा का कोई मुआमला न रहा .
एक देहाती मुहाविरा है चूतडों से घोडा खोलना 
कहीं अल्लाह इस पर भी तो कादिर नहीं है ?
हाथों को कुछ राहत मिले।

 मदीने की खजूरें 
मुहम्मद कहते हैं जो शख्स सुब्ह उठ कर मदीने की सात खजूरे खा लिया करेगा , उस पर ज़हर या जादू का असर नहीं होगा 
(बुख़ारी १६४३)

* मुहम्मद बार बार जादू के असर को तस्लीम कर रहे है . कुरआन की दो सूरतें ही जादू पर है जिसमे मुहम्मद जादू गरों से अल्लाह की पनाह मंगते हैं . ओलिमा जादू को झूट और कुफ्र करार देते हैं . इस्लाम का यह दोगला पन मुसलामानों को शर्मसार करता है .
इस्लाम ज़िदगी के लिए अधूरा निज़ाम ए हयात है . मुसलमान जब तक इस्लाम से लिपटे रहेंगे जिहालत उनको नहीं छोड़ेगी .
शराब रेशम और बाजा 
मुहम्मद ने कहा कुछ लोग उम्मत में ऐसे होंगे जो शराब रेशम और बाजा को हलाल करार दे देंगे . ऐसे लोग पहाड़ के दमन में रहेंगे . अल्लाह तअला इनमे से कुछ लोगों पर पहाड़ गिरा कर हलाक कर देगा . दूसरों को बन्दर और सुवरों को शक्ल में कर देगा . यह सब क़यामत के करीब होगा .
(बुख़ारी १८७०)  

रेशम क्यों हराम किया मुहम्मद ने , इसके पीछे कोई वजह , कोई फलसफा या कोई दलील नहीं दी है . इन्सान की सदियों पुरानी काविशों का नतीजा है यह नाज़ुक और खूब सूरत तनपोशी रेशम . जद्दो  जिहद में मशगूल दर पर्दा छिपी हुई मखलूक़ी मजदूर के कारनामों का फल है यह रेशम , इन्सान के लिए आँखों को खैरा कर देने वाला नायाब तोहफा है रेशम . किसानों , मजदूरों , दस्तकारों और दुकानदारों के लिए ज़रीया मुआश है रेशम। रेशम को हराम करार देकर तमाम मखलूक को भूख के मुंह में ढकेल रहे है आप .
बाजा इंसानी रूह की गिज़ा है 
शराब वह शय है कि जिसे जन्नत में तोह्फतन परोसा जायगा।  

पहला मुस्लिम हमला 
यहूदियों के खुश हाल क़बीले बनी नुजैर पर मुहम्मद की पहली जंग का एक नमूना था . हमले के लिए एक सोची समझी मंसूबे बंदी की थी .
यहूदियों ने मुहम्मद की दावत की . बस्ती की किसी माकूल इमारत में दावत का एहतेमाम किया . मुहम्मद पहली बार ऐसी खुश हाल बस्ती देख रहे थे और अपने दिमाग में नापाक इरादे की मंसूबा बंदी कर रहे थे कि इस पर हमला किया जा सकता है , समझ में नहीं आ रहा था कि हमले की वजेह क्या बतलाई जाए कि अचानक खाना छोड़ कर उठ खड़े हुए और मदीने की रह पकड़ी . इसे फरमान इलाही कहा . मदीने पहुँच कर एलान किया कि यहूदियों ने इमारत के ऊपर से पत्थर गिर कर मुझे मार देने का खेल रचा था कि मेरे पास अल्लाह की वह्यी आ गई कि भागो यहाँ से . लोगों को भड़का कर बनी नुजैर पर हमला बोलने के लिए तैयार कर लिया और दूसरे दिन बस्ती पर अज़ाब बनकर नाजिल थे .
हमला इतना शदीद था कि मुहम्मद अपना आप खो बैठे और ज़ालिम मूसा का तर्ज़ ए अमल अख्तियार किया यहूदियों को लूटने के बाद उन्हें कब्जे में करके खुद उनके हाथों से उनके घरों में आग लगवाई और उनकी खड़ी फसलें जलवा दीं . उनके बागात के दरख़्त जड़ से कटवा कर ज़मीं दोज़ कर दिए . कुछ साफ़ दिल कुरैश भी मुहम्मद के इस अमल पर तड़प उट्ठे थे कि क्या पेड़ पौदे भी काफ़िर और यहूदी हुवा करते हैं ? जवाब में मुहम्मद का इल्हामी खेल शुरू हो गया कि अल्लाह का हुक्म नाजिल हो गया था .
लूट पाट का ज़्यादः से ज़्यादः हिस्सा खुद मुहम्मद हड़प कर गए यह कहते हुए कि सब अल्लाह और उसके रसूल का हिस्सा है . एक सहाबी लिखता है कि नुजैर के माल ए गनीमत से सबसे पहले मुहम्मद ने अपने नौ बीवियों के घरों के खर्च खराबे का एक साल का इंतज़ाम किया उसके बाद बागात और खेत की आमदनी से अगले सालों का इंतज़ाम किया . जंग के शुर्का अंसारी और मुहाजिर अल्लाह के रसूल का मुंह तकते रह गए .
आज यहूदी अपने बुजुर्गो, बनी नुजैर का बदला अगर मुसलमानों से ले रहे हैं तो गलत क्या है ? दुन्या भर के नादान मुसलमान इस्लामी झंडा लेकर उनके हक में खड़े हो जाते हैं . यही हठ धरमी हर मुसलमान के पूरवजों के साथ हुई है जिसे लाशऊरी तौर पर वह ठीक समझते हैं।

मुकम्मल निज़ाम ए हयात 
एक सहाबी की बीवी मुहम्मद की खिदमत में हजिर हुई , कहा मेरे शौहर ने मुझे तलाक़ ए मुगल्लिज़ा दे दिया था , इसके बाद मैंने दूसरे शख्स से निकाह कर लिया , लेकिन वह किसी काबिल नहीं (यानी नामर्द) .
मुहम्मद ने कहा शायद तू चाहती है कि पहले शौहर से फिर तेरा अक़्द हो जाय ?
उसने कहा जी हाँ !
मुहम्मद ने कहा यह नहीं हो सकता जब तक कि मौजूदा शौहर से तेरी हम बिस्तरी न हो जाय .
(बुख़ारी १८१५) 

खातून की जिंदगी में टेढ़ा मोड़ आ गया है .उसके मौजूदा शौहर के हाथ में है कि कब तक इसको नचाता रहे . ऐसे मामले आज भी कसरत से पाए जाते हैं . शरीफ और बेबस औरत अपनी फितरी जज़्बात से उम्र भर महरूम रहती है और बाग़ी औरतें अन्दरूरी बग़ावत करके समाज को ठोकर मार कर अपना रास्ता खुद बना लेती हैं . शरई क़ानून खड़े खड़े मुंह तकते रह जाते हैं .
कितनी सितम ज़रीफी है कि मुहम्मद कहते है 
"जब तक कि मौजूदा शौहर से तेरी हम बिस्तरी न हो जाय ."
और दूसरा मर्द नामर्द है . 
कहाँ है मुकम्मल निजाम ए हयात ?
जीम. मोमिन 

Tuesday 10 September 2013

Hadeesi Hadse 101


शहजादी दुखतर ए जॉन पर डोरे डाले 
अबू सईद से रिवायत है कि जब दुखतर ए जॉन को मुहम्मद की खिदमत में दाखिल किया गया तो उसकी दाया भी उसके साथ में थी . मुहम्मद ने उससे कहा ,
तू अपने नफस को मुझको हिबा कर दे 
उसने कहा कहीं शहज़ादियां भी अपनी रगबत से अपने नफस को हिबा किया करती है ?
मुहम्मद ने उसका गुस्सा दबाने के लिए उसकी तरफ हाथ बढाया .
उसने कहा मैं आपसे अल्लाह की पनाह मांगती हूँ .
मुहम्मद ने कहा तूने बहुत बड़ी ज़ात की पनाह माँगी है . 
फिर मुहम्मद मेरे पास आए और मुझ से कहा इसको सफ़ैद कतान के दो थान देकर इसके खानदान की तरफ रवाना कर दो 
(बुख़ारी १८१३-१४)  

शहजादी के हुस्न पर मुअहम्मद की नियत डांवां डोल हो गई थी . उसके साथ पेश कदमी भी की . उसके जाह ओ जलाल की ताब न लाकर पीछे हो गए . अगर वह अपने नफस को मुहम्मद के हवाले कर देती तो मुहम्मद उसके साथ जिना कारी करते , इस एलान के साथ कि अल्लाह ने इनके सारे अगले और पिछले गुनाह मुआफ़ किए हुए है .
अगर बिल जब्र ये हादसा हो गया होता तो ईसाई बादशाह से जंग भी खड़ी हो सकती थी . अपने ज़िल्लत आमोज अंजाम को देखते हुए मुहम्मद ने अपने नफस पर काबू रक्खा .
  
देवर तो मौत है 
मुहम्मद कहते हैं औरतों में जाने से निहायत परहेज़ किया करो . किसी ने पूछा ,
क्या देवर अपनी भाभी के पास जा सकता है ?
कहा देवर तो मौत ही है .
यानी इस से सब से बड़ा अंदेशा है .
{बुख़ारी १८०७)
*मुहम्मद माँ बाप भाई बहेन जैसे हर रिश्ते से महरूम थे , लिहाज़ा उनकी सोच इस दर्ज़ा घटिया थी . उनका कोई छोटा भाई होता तो हदीसें ऐसी न हुवा करतीं .
मुतअ (अस्थाई निकाह) 
एक सहाबी कहते हैं कि मुहम्मद ने हमें मुतअ करने की इजाज़त दी तो मैं और मेरे एक साथी औरत की तलाश में निकले . कबीला ए बनी आमिर की एक औरत को देखा जो जवान ऊँटनी पर सवार थी और उसकी गर्दन सुराही दार थी .
मैंने खुद को पेश किया , बोली क्या दोगे ?
मैं ने कहा मेरी चादर हाज़िर है . 
मेरे साथी ने कहा मैं और मेरी चादर हाज़िर है .
उसकी चादर मेरी चादर से बेहतर थी मगर मैं उससे बेह्तर और जवान था 
दोनों का मुआज़ना करने के बाद उसने मुझसे कहा , तू और तेरी चादर मुझे अच्छी लगी .
वह मेरे पास तीन दिन तक रही . 
उसके बाद मुहम्मद ने कहा जिनके पास ऐसी औरतें हैं वह उन्हें छोड़ दें . 
(मुस्लिम - - - किताबुल निकाह)
*मुतअ का तारीका उस वक़्त का कबीलाई कानून था जो आज तक मुस्लिम समाज में कहीं कहीं लुका छिपी करते हुए रायज है . औरत और मर्द में बिना किसी गवाह के कुछ लेन देन के बाद निश्चित समय के लिए यह शादी हो जाती है . इसी को ओशो आश्रम में बिना रोक टोक ऐड रहित के शर्त पर मान्यता मिली हुई है .

अल्लाह साबिर ?
मुहम्मद ने कहा अल्लाह तअला से ज्यादा कोई ईज़ा पर सब्र करने वाला नहीं .
(मुस्लिम - - - शरह नववी)
अल्लाह अपने ऊपर पहुँचाई ईज़ा पर सब्र करे जब कि क़ह्हार खुद है . वह बहुत बड़ा मुन्तक़िम भी है . यह दोहरा मेयार मुहम्मदी अल्लाह का ही हो सकता है .
मुहम्मद अपनी कामयाबी पर कई जगह अल्लाह नज़र आते हैं , कई जगह उनको बर्दाश्त भी करना पड़ा था . उन्हीं अवजान का मीजान करने के बाद अपनी रूदाद बयां कर रहे हैं .

 पहले अपने घर भरे 
एक सहाबी कहते हैं कि मुहम्मद बनी नुज़ैर के बागों को फरोख्त करके अपने अह्ल के वास्ते एक साल का सामान मुहय्या करते।
(बुख़ारी १८२५)

इस हदीस का सूरह हश्र से तअल्लुक़ है . मुहम्मद ने अन्सारियों को मुनज्ज़म करके सबसे पहले बनी नुजैर पर हमला किया था जिसमे बस्ती बनी नुजैर को लूट पाट करके तबाह ओ बर्बाद कर दिया था . बाग़ात पर क़ब्ज़ा कर लिया था . लूट के माल को लगभग सब का सब खुद पी गए थे। जंग के शुर्का ने काफी हंगामा आराई किया था तो बड़ी बेशर्मी से अपने मफ्रूज़ा अल्लाह की कुरानी आयतें उतरवा लीं थीं . इस बात को अबुल खत्ताब ने तस्दीक किया कि मुहम्मद ने सब से पहले अपनी नव अदद बीवियों के घरों के सालाना अख्राजात का इंतज़ाम किया .
मुहम्मद की असलियत को समझने के लिए उस वक़्त के मुआशी हालात को समझने की ज़रुरत है . उस वक़्त अरबों का ज़रीआ मुआश बेहद मुश्किल हुवा करता था . अना, ज़मीर और खुद्दारी नाम की कोई चीज़ बाक़ी नहीं रह गई थी .मुहम्मद लुटेरे गिरोह के मुअज्ज़िज़  ही नहीं , मुक़द्दस भी बन गए थे . इनको दिल से नहीं , बेदिली से ही सही , अल्लाह का रसूल मान लेना अवाम की मजबूरी थी .

जीम. मोमिन 

Tuesday 3 September 2013

Hadeesi Hadse 100


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मक्का के ज़लील लोग 

ज़ैद बिन अर्कम कहते हैं कि किसी जंग से हम लोग वापस आ रहे थे कि अब्दुल्ला इब्न अबी सलूल ने कहा ,
खुदा की क़सम मदीने पहुँच कर हम बाइज्ज़त लोग ज़लील लोगों को मदीने से निकाल देंगे , इस से पहले इन पर कुछ खर्च मत करो .
यह बात बाद में मुहम्मद के कानों तक पहुँची तो उन्हों ने अब्दुल्ला इब्न अबी सलूल को बुलवाया और तहक़ीक़  की . वह साफ़ मुकर गया कि ऐसी कोई बात मैंने नहीं की .
ज़ैद कहते हैं हम को बुलवाया गया . मैंने गवाही दी कि अब्दुल्ला इब्न अबी सलूल ने यह बात ऐसे ऐसे की है .
अब्दुल्ला इब्न अबी सलूल ने मुझे भी झूठा साबित कर दिया और मुहम्मद उसकी बात मान गए . मुझको इसका बहुत ही रंज रहा . बाद में मुझको बुलवाया और एक आयत पढ़ी कि अल्लाह ने तुमको सच्चा ठहराया .
(बुख़ारी १७ ३१)  

मक्कियों की मदीने में हालत जैसी थी यह हदीस गवाह है . मुहम्मद वाटर आफ इंडिया की तरह कुरानी आयतें  अल्लाह से उतरवा लेते . हर वक़्त अल्लाह वाटर आफ इंडिया लिए खड़ा रहता . मुहम्मद अगर सियासत दान होते तो कोई इलज़ाम न था, मगर पैगम्बरी झूट से दुन्या को गुमराह किया है जिसका खाम्याज़ा मुसलमान सदियों से उठाए हुए हैं .
अब्दुल्ला इब्न अबी सलूल मुहम्मद से पहले मदीने की हुक्मरानी का एक पक्का उम्मीदवार था . इसने जगह जगह पर मुहम्मद से पंगा लिया . बाद मरने के मुहम्मद ने इसे कब्र से निकलवा कर इसके मुंह में थूका .

चश्म दीद गवाह 
मुहम्मद ने कहा अल्लाह तअला ने मिटटी को सनीचर के दिन पैदा किया ,
इतवार को इसमें पहाड़ों को ,
पीर के दिन दरख्तों को ,
मंगल के दिन इस पर काम काज के चीज़ों को , 
बुध को रौशनी को ,
 जुमेरात को इस पर जानवर फ़ैलाए 
जुमा को आदम को असर के बाद पैदा किया 
(किताब मुस्लिम - - -सिफ़ातल्मुन्फकीन)

*तौरेत के सुने सुनाए  किस्से को मुहम्मद सही सही तरतीब भी नहीं दे पाए . उम्मी थे , इन वक़ेआत की खबर इनको किसने दी ? इन चीज़ों के आलावा ज़मीन पर हजारों अश्या का वजूद है जिनकी खोज में हमारे साइंसदान लगे हुए है. 
मुहम्मद की उम्मियत को मुसलमान सच मान कर इस पर यकीन करते है .
आयशा कुँवारी 
एक रोज़ मुहम्मद की कमसिन बीवी आयशा ने मुहम्मद से पूछा कि अगर आप ऐसे जंगल में उतरे हो कि जहाँ पर दो पेड़ हों, एक वह की जिसे जानवरों ने चरा हो , दूसरे वह कि जिसे जानवरों ने मुंह भी न लगाया हो तो आप अपना ऊँट किस दरख्त में बांधेंगे ? 
मुहम्मद ने कहा जिसमे जानवरों ने मुंह न लगाया हो . 
मतलब यह था कि आयशा मुहम्मद की बीवियों में अकेली कुँवारी थीं .
(बुख़ारी १७७०)

* ला शऊरी तौर पर आयशा ने मुहम्मद को ऊँट कह ही दिया है जो उसको सात साल की उम्र में चर गया . वह पूरी दरख़्त भी नहीं बन पाई थी की १ ८ साल की उम्र में बेवा हो गई . एक ६३ साल के शौहर की बेवा .

हर मौक़े की दुआ 
मुहम्मद के चचा ज़ाद भाई इब्न अब्बास बतलाते हैं कि मुहम्मद ने एक दुआ बतलाई जिसको कि बीवी से क़ुर्बत से क़ब्ल अगर पढ़ ली जाए तो होने वाली औलाद शैतान के बुरे असरों से महफूज़ हो जाती है .
(बुख़ारी १७९३) 

वक़्त शैतानी भी शैतान से हिफाज़त ?
 अरबियों की खू  है की वह हर वक़्त दुआ किया करे ताकि उनका अल्लाह उनको हर अच्छे बुरे काम में मदद गार रहे .

बग़ैर इजाज़त 
मुहम्मद ने कहा बग़ैर इजाज़त किसी बेवा से अक़्द नहीं करना चाहिए . इसी तरह कुँवारी से भी इजाज़त लेनी चाहिए .
लोगों ने पूछा किस तरह ?
कहा इसकी ख़ामोशी ही इसकी इजाज़त है .
(मुस्लिम - - - किताबुल निकाह +बुख़ारी १७८६)

क्या निकाह बग़ैर इजाज़त बिल जब्र भी होता था ? आजके माहौल में यह बात मुनासिब नहीं . शादी तो फरीकैन की रज़ा मंदी से होती है . हाँ अगर कभी कसीदगी का महल हो तो कुवांरी की रज़ा मंदी ज़रूरी हो जाती है .

पाबन्दियाँ 
मुहम्मद ने कहा शौहर की इजाज़त के बग़ैर रोज़ा रखना , किसी को अन्दर आने की इजाज़त देना या कोई चीज़ इसके इजाज़त के बग़ैर सर्फ़ करना जायज़ नहीं, क्योंकि निस्फ़ उज्र मर्द को भी दिया जाता है .
(बुख़ारी १७९४)

औरतों को इस्लाम में कहीं पर कोई आज़ादी नहीं है , भले ही वह छोटे छोटे खानगी मुआमले ही क्यों न हों , यहाँ तक कि उसकी मज़हबी आज़ादी भी मरदों के हाथ में है . मर्द पर मर्दानगी ग़ालिब हुई तो उसको रोज़ा तोड़ देना भी लाजिम होगा . इसमें मुसलमान मर्दों का आज भी फायदा है . इसी लिए वह इसमें कोई बदलाव नहीं चाहते। 
डेनमार्क की एक मैगजीन में कार्टून आया, किसी लेटी हुई औरत की नंगी पीठ पर कुरानी आयत नक्श थी . पूरी दुन्या के मुसलमानों ने जमकर इसके खिलाफ मुज़ाहिरा किया , पुतले जलाए गए मगर किसी ने यह जानने की कोशिश नहीं की कि लिखी हुई आयत क्या थी , उसका मतलब क्या था . आयत थी - -- 
"औरतें तुम्हारी खेतियाँ हैं , इसमें चाहे जहाँ से जाओ "
शायद इसे जानकार भी मुसलामानों में अपनी माँ बहन और बेटियों के लिए गैरत न जगे .
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जीम. मोमिन 

Tuesday 27 August 2013

Hadeesi Hadse 99


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अल्लाह ज़मीन को मुठ्ठी में लेलेगा 
अबू हरीरा से रवायत है कि मुहम्मद ने कहा , क़यामत के दिन अल्लाह ज़मीन को मुठ्ठी में लेलेगा और आसमान को अपने दाहिने हाथ में लपेट कर फ़रमाएगा ' मैं हूँ बादशाह , कहाँ हैं ज़मीन के बादशाह?
(मुस्लिम - - - किताबुल  सिफ़ात उल मुन्फ़कीन ओ एहकाम )

यह हवाई किला मुहम्मद अपने तनहाइयों में गढ़ा करते थे जो ऐसा अजीब ओ गरीब हो कि मदारी के खेल का मज़ा आ जाय . एक तरफ कहते हैं कि अल्लाह की कोई शक्ल सूरत नहीं है , वह सिर्फ नूर है , दूसरी तरफ हदीस साबित करती है कि अल्लाह के दाहिने और बाएँ हाथ भी हैं और मुठ्ठी भी इस्तेमाल करता है . इस्लामी ताजाद मुसलामानों को पशेमान भी नहीं करता . अल्लाह की बात है , अल्लाह ही बेहतर जाने .

कोहे सफा पर चढ़ कर एलान नबूवत 
एक रोज़ कोहे-सफ़ा पर चढ़ कर मुहम्मद ने आवाज़ लगाई - - - 
या साबाह ! ऐ कौम डरो !!
यह सुनकर तमाम कुरैश इनके पास आकर जमा हो गए . मुहम्मद ने कहा ऐ कौम अगर मैं तुमको यह खबर दूं कि सुब्ह शाम एक लश्कर तुम पर चढ़ाई करने वाला है, तो तुम मेरी बात का यकीन कर लोगे ?
लोगों ने कहा हाँ .
 फिर मुहम्मद ने कहा कि मैं तुमको एक सख्त आने वाले अज़ाब से डरता हूँ जो बहुत सख्त है .
यह सुनकर मुहम्मद के चचा अबू लहब बोले 
तेरा बुरा हो , क्या तूने हमें इस बात के लिए जमा किया है ?
बुख़ारी (१७७१) 

ख़दीजा के बाद मुहम्मद ने पहली बार अपने खानदान पर अपने पैगम्बरी के फार्मूले का एलान किया जिसमे वह बुरी तरह नाकाम रहे। क़यामत को हथियार बना कर उन्हों ने इसका आगाज़ किया और चचा अबू लहब पहला शख्स था जिसने इसे कंडम किया . मुहम्मद ने इसके खिलाफ पहली क़ुरानी सूरह गढ़ी 
" तब्बत यदा अबी लहब्यूं - - - "(अबू लहब तेरा हाथ टूटे - - - )
व़ाज़ह हो कि अबू लहब मुहम्मद के मुखलिस चचा थे जिन्होंने यतीम पैदा होने वाले भतीजे के लिए अपनी लौंडी को आज़ाद कर दिया था और उसे इनके लिए दूध पिलाई की नौकरी दे दी थी। तब से केकर मुहम्मद की दो बेटियों को अपनी बहू बनाने का सुलूक उनका मुहम्मद के साथ था .
यहीं से शुरू होता है मुहम्मद की एहसान फरामोशी का सिलसिला जो उनकी खू बन कर रह गया था .

मुहम्मद की अकली उड़ान 
मुहम्मद कहते है कि अल्लाह तअला जब मखलूक पैदा करने से फारिग हुवा, रहम (बच्चे दानी) रहमान के कमर को पकड़ कर खड़ी हो गई , ( बस करो अब और नहीं )
फ़रमान हुवा , ठहर   
अर्ज़ किया कता रहमी से मैं तेरी पनाह की तलबगार हूँ  कि क्या तुझको यह पसंद नहीं कि जो शख्स तुझको जोड़े , मैं उसको जोडूं , जो शख्स तुझको तोड़े , मैं इसको तोडूं। 
अर्ज़ किया हाँ ऐ रब मुझको यह पसंद है। 
फरमान हुवा बस ! ऐसा ही होगा .
(बुख़ारी १७२०)

बच्चे दानी ने इठला कर अल्लाह मियां की कमर को पकड़ उठ खड़ी होती है और माशूका की तरह रूबरू हो जाती है और अल्लाह से कहती है कि मैं अब बूढी हो गई हूँ और थक गई हूँ , अब आप अपनी हरकतों से बअज़ आइए . माना की मैं रहमान की मादा रहम (बच्चे दानी ) हूँ  मगर अब और पैदा नहीं हो पाएगा .
अल्लाह ने उसको धमकाते हुए कहा रुक जा ,
रहम और रहमान में जोड़ तोड़ की बात होती है जिसकी तर्जुमानी ए इस्लामी अफसाना निगार ही कर सकते हैं .
मुहम्मद इस हदीस को अल्लाह और जिन्स ए लतीफ़ को सामने रख कर गढ़ी है . दाहिना हाथ और मुट्ठी की तरह अल्लाह की कमर भी है . इस्लाम का दावा गलत है कि वह निरंकार है . अल्लाह की कमर भी है और कमर में तामीरी ताक़त भी है और तमाम रहम उसकी अशियाय अय्याशी . इसी रिआयत से मुहम्मद ने अपनी अय्याशी के लिए तमाम मुसलमान औरतों के साथ शादी करने का हक हासिल किया है . मुहम्मद दर पर्दा अल्लाह ही तो हैं . 


जीम. मोमिन