Wednesday 30 December 2015

Hadeesi Hadse 189


******
हदीसी हादसे 78
 बुखारी 1144`
क़रार हदीबिया का ज़िक्र इस से पहले के अबवाब में आ चुका है, यहाँ पर मैं अबूबकर की जुबान दानी को उजागर करना चाहूँगा और मुहम्मद की नियत को भी .
अबुबकर इरवा से कहते हैं
" भाग जा अपने माबूद की शर्म गाह (लिंग) जाकर चूस "
इरवा ने लोगों से दरयाफ्त किया, यह कौन है?
लोगों ने कहा अबुबकर , इरवा नाम सुनकर बोला तेरे कुछ एहसान हम पर हैं वर्ना मैं तुझको तेरे लब  ओ लहजे में ही जवाब देता।
इरवा फिर मुहम्मद से मुखातिब हुवा , वह अपनी हर बात पर मुहम्मद की दाढ़ी में हाथ लगा देता, यह देख कर मुगीरा इब्न शोएबः ने कहा
हुज़ूर अक्दस  की दाढ़ी से हाथ अलग रख। ये सुन कर उसने लोगों से पूछा कि
ये कौन है?
लोगों ने बतलाया ये मुगीरा इब्न शोएबः है।
इरवा ने कहा " ऐ दगा बाज़ ! क्या मैं तेरी गद्दारी की दफीयः में कोशिश न की थी (मुगीरा का वाकिया यूं हुवा था कि ये एक गिरोह का हमराही बन गया था , फिर इन लोगों को सोते में क़त्ल करके और उनका सारा मॉल लेकर फरार हो गया था .उसके बाद सीधा मुहम्मद के पास पहुंचा और इस शर्त पर इस्लाम क़ुबूल करने की बात की कि वह अपने लूटे हुए मॉल में से उन को कोई हिस्सा न देगा . मुहम्मद को ऐसे लोगों की सख्त ज़रूरत थी जो क़त्ल के हुनर को और मक्र ओ फ़रेब में यकता हो ,गरज़ मुगीरा को उन्हों ने गले लगाया।
इसी हदीस में एक नामी लुटेरे डाकू अबू बसीर का भी ज़िक्र है।
सुलह हदीबिया के तहत मुहम्मद और कुरैश के दरमियान एक मुआहिदा हुआ था कि मक्का और मदीने से जो लोग  एक जगह से दूसरे के हद में दाखिल हों उन्हें दोनों फरीक अपने यहाँ से वापस उसके हद में भेज दे।
इसी दौरान अबू बसीर मक्के से मदीना आ गया था। इसे वापस करने के लिए कुरैशियों ने दो शख्स मदीना भेजा , मुहम्मद ने क़रार के मुताबिक अबू बसीर को उनके हवाले कर दिया।
रस्ते में दोनों हकवारों को घता बतला कर अबू बसीर उनकी तलवार ले लेता है और एक को क़त्ल कर के भाग जाता है . वह मदीने पहुँच कर मुहम्मद से मिलता है और कहता है
आपने अपने करार के मुताबिक मुझे मक्कियों के हवाले कर दिया, बस आपकी जिम्मे दारी ख़त्म हुई .
उसी वक़्त दूसरा हक्वारा आ जाता है।
अबू बसीर ने खुद को फिर उसके हवाले करने का मुहम्मद की मंशा देखा तो वहां से भाग खड़ा हुवा , वह साहिले-दरया पहुँचा .
उसकी खबर सुन कर मदीने का एक मुजरिम अबू जिंदाल भी उसके पास पहुँच गया। दोनों ने मिल कर कुरैश क़बीलों को लूटना शुरू किया, तो नौबत यहाँ तक आ पहुंची कि  कुरैशियों ने मुहम्मद को इत्तेला किया कि अबू बसीर को बेहतर होगा कि आप अपने पास बुला लें।
इस तरह इस्लाम के सहाबिए किराम इंफ्रादी तौर पर बद किरदार लुटेरे और समाजी मुजरिम हुवा करते थे जिन पर हम दरूद ओ सलाम भेजा करते हैं .
हदीस तवील है जो ग़ैर ज़रूरी है।

बुखारी 1157
किसी ने मुहम्मद से पूछा कि कौन सा काम अफज़ल और बेहतर है? 
जवाब था जिहाद, अपनी जान और माल के साथ। 
इसके बाद?
किसी पहाड़ी घाटी में मसरुफे-इबादत रहना .
*जिहाद जिसमे इंसानी जिंदगी का सफ़ाया , यहाँ तक ही मासूम बच्चों और अबला औरतों को भी मौत के घाट उतार देना , उसके बाद भी उनके माल मता को लूट लेना . उनकी खेती बड़ी में आग लगा के तबाह ओ बर्बाद कर देना . 
अली मौला तो इस से भी आगे बढ़ गए थे कि उन्होंने समूची बस्ती को बमय इंसानी जानों के , के हवाले 
कर दिया था। उनके चाचा अब्बास ने उनकी इस हरकत की मज़म्मत की कि अली ने बन्दों को वह सजा दी है जो सिर्फ अल्लाह को हक है। 
पहाड़ी घटी में मसरूफ ए इबादत रहना कोई ऐसा काम नहीं जिस से मखलूक का कोई भला होता हो। यह महज़ खुद फरेबी है या फिर नाकार्गी . मुहम्मद भी गारे-हिरा में मुराक्बा में जाते थे, ज़हनों में साजिशी मंसूबे बनाते थे जो बिल-आखिर इस्लामी तबाही बन कर पूरी दुन्य के लिए एक अज़ाब साबित हुवा।



जीम. मोमिन 

Wednesday 23 December 2015

Hadeesi Hadse 188


*********
हदीसी हादसे 76
बुखारी 1161
मुहम्मद कहते हैं जिहादी सफ़र के लिए सूरज निकलने और डूबने के दरमियान निकलना खर ओ बरकत का वक़्त होता है .
*यह तो घर से दिनों दिन जिहाद के लिए निकलने की राय देते हैं मगर काफिरों पर हमले का वक़्त रात का चौथा पहर बतलाया है जब कि लोग आखरी नींद ले रहे हों। ज़ाहिर है कि वह इस आलम में जवाबी हमले की तय्यारी कैसे कर सकते है। डाकुओं का गिरोह हुवा करता था, सुब्ह सुब्ह बस्ती पर यलगार करके बस्ती को तहे-तैग कर देते। जवानो को चुन चुन कर मारते, औरतें और बच्चे गुलाम और लौंडी बना लिए जाते।
बुखारी 1162 
मुहम्मद कहते हैं अगर जन्नत से कोई हूर नीचे ज़मीं पर झाँक ले तो उसके हुस्ने- जमाल से तमाम कायनात रौशन और मुअत्तर हो जाए . सके सर की ओढनी दुन्या और माफिया , दोनों से आला और अफज़ल है .
*अय्याश ताबा खुद साख्ता रसूल ख्बाबों की जन्नत की सैर हर रहे हैं . 

बुखारी 1165 
मुहम्मद कहते हैं कि जब किसी शख्स को खुद की राह में कोई ज़ख्म लगता है, 
खुदा की कौन सी राह कि जिसमें इंसान ज़ख़्मी होता है ? मुहम्मद के जेहन में एक सवाल पैदा होता है - - -
यह तो अल्लाह को ही बहतर मालूम है , 
खुद जवाब देते हैं .
कहते हैं क़यामत के दिन उस शख्स के ज़ख्म से ताजः ताजः खून बहता हुआ नज़र आएगा जिस से मुश्क की कुश्बू फूटेगी .
* मुहम्मद जब झूट के पुल बांधते थे तो यह बात भूल जाते थे कि कुछ लोग इतने बेवकूफ नहीं हैं कि उनकी बातों का यकीन करें। जब मुहम्मद को अल्लाह की वह राह ही मालूम नहीं है तो यह कैसे मालूम हुवा की ज़ख़्मी बंदा अपने ज़ख्मों के घाव ढोता कयामत के दिन रुसवाई उठाएगा और अपने ज़ख्मों को लोगों को सुंघाता फिरेगा कि 
"ऐ लोगो ! मेरे ज़ख्म से बेजार मत होइए , सूंघिए कि इसमें से मुश्क की खुश्बू आ रही है। पता नहीं कौन सा मेरा काम पसंद आया कि अल्लाह ने यह ज़िल्लत ढोने की सजा मुझे दी है?
मुहम्मद इन हदीसों में अव्वल दर्जे के कठ मुल्ले लगते हैं जो मुस्लिम कौम के तकदीर बने हुए हैं।
बुखारी 1169
एक खातून मुहम्मद के सामने हाज़िर हुईं जिन का बेटा जंगे-बदर में मर गया था 
उसने पूछा , या रसूल अल्लाह मेरा लड़का जंग में शहीद हुवा , क्या वह जन्नत में दाखिल हुवा?
अगर ऐसा नहीं हुवा होगा तो मैं खूब रोउंगी और चिल्ला चिल्ला कर शोर मचाऊंगी।
मुहम्मद बोले वह जन्नतों में जन्नत , जन्नतुल-फिरदोस में गया .
* यह मुहम्मद का झूट ही नहीं था बल्कि लोगों के साथ दगा बाज़ी थी जिसका यकीन कर के उन्हें मुफ्त में लुटेरे और डाकू मिल जाते थे जो जिहाद के नाम पर बस्तियों में डाका डालते और लूट का माल सरदार मुहम्मद के हवाले करते। चौदह सौ सालों के बाद भी आज मुस्लिम ओलिमा जिहाद की अजमत बयान करते है। और तालिबान जिहादी आज भी मलाला जैसी मासूम पर जिनसे-नाज़ुक पर गोलीयाँ बरसते हैं। इस्लामी मुजाहिद अपनी नामर्दी को जिहाद कहते हैं।


जीम. मोमिन 

Wednesday 16 December 2015

Hadeesi Hadse 187


*****
हदीसी हादसे 75
बुखारी 1171
आयशा कहती हैं उनके शौहर मुहम्मद जंगे-खंदक से फारिग हो कर जूं ही घर लौटे और हथ्यार रख ही रहे थे कि हज़रात जिब्रील आए और बोले या रसूल आप ने हथ्यार रख दिए क्या ? 
मुहम्मद बोले क्यों कही और जंग होनी है ?
जिब्रील ने कहा जी हाँ ! बनी क़रीफला में .
मुहम्मद ने हथ्यार उठाए और जंग के लिए निकल गए।
*आयशा मुहम्मद की मौत के बाद ही बालिग़ हुई थीं , उस वक़्त उनकी उम्र थी 18 साल। जब जेहनी तौर पर बालिग़ हुईं तो अपने शौहर की बखान में हदीसें बघारने लगी,.मुहम्मद की शरीक-हयात मुहम्मद 'शरीके-दारोग' बन गईं। आलिमान दीन उन के हर झूट को खूब जानते हैं मगर उनके नाम के साथ रज़ी अल्लाह अन्हा लगाना नहीं भूलते। 
एक दूसरी हदीस आगे आएगी जिसमे बैठे बैठे मुहम्मद कहते हैं - - 
"आयशा जिब्रील अलैहिस्सलाम तुम को सलाम अर्ज़ करते हैं"
वालेकुम अस्सलाम कहते हुए आयशा कहती है जिब्रील अलैहिस्सलाम आपको ही दिखाई और सुनाई पड़ते हैं , मुझे क्यों नहीं ? - - - 
यह हदीस साबित करती है कि आयशा किस कद्र झूटी और मक्कार औरत थीं। 

बुखारी 1172
मुहममद कहते हैं कि अल्लाह उन दो लोगों पर बहुत हँसता है जो जंग में लड़ते लड़ते शहीद हो जाते हैं। पहला वह जो अल्लाह की राह में जंग कर रहा हो और शहीद हो जाय , दूसरा वह जो इसके खिलाफ जंग करते हुए मरने से पहले कलमा पढ़ कर मुसलमान हो जाय। 
* अल्लाह न हँसता है न रोता है। मुहम्मद अल्लाह की दुम भी नहीं जानते. दर अस्ल मुहम्मद ज़माने को बेवकूफ बना कर खुद अल्लाह बने हुए हैं। इनको ख़ुशी होती है कि इनके दोनों हाथ में लड्डू रहे . मरने से पहले सारी आलम-इंसानियत, इस्लाम के ज़हर पीकर उनका शिकार हो जाए।
अगर तमाम दुनिया ही उनकी जिंदगी में मुसलमान हो गई होती तो जंग के लिए मुसलमानों के दो गिरोह बनाते और दोनों हक पर होते और पयंबरी दोनों की मुहम्मद के हाथ होती .
बुखारी 1185
मुहम्मद कहते हैं घोड़ों की पेशानी में खैर ओ बरकत , सवाब ओ गनीमत कयामत तक के लिए वदीयत कर दिया गया है।
* एक दूसरी हदीस ( बुखारी 1191) में हज़रत कहते हैं कि घोड़े में नहूसत की अलामत होती है। इनकी किस बात को सच माना जाए और किसे झूट ? हमेशा इनके क़ौल में ताजाद रहता है गरज उम्मत हमेशा ही ताज़दों भरी ज़िन्दगी गुज़रती है, जिसे कठ मुल्ले मिसाल देते है कि 
"हुज़ूर ने अगर ये कहा है तो यह भी तो कहा है" .
घोड़ों का काम ज्यादह हिस्सा जंगी ज़रूरतों में पेश आती है जिसके तहत फतह की बात न करके मुहम्मद गनीमत ( लूट का माल ) की बात करते है, किस कद्र मॉल ओ मता के कायल थे वह, चाहे वह लूट पाट से ही क्यों न मिले . क्या यह किसी पैगम्बर के शायान ए शान है ?
बुखारी 1187
कठ मुल्ले और चुगद , अल्लाह में मफरूज़ा रसूल कहते हैं जो शख्स जिहाद के लिए अपने घोड़े देगा , अल्लाह उसके घोड़े का खाना पीना और उसके लीद गोबर को वज़न करके उसके सवाब को उसके हिसाब बढ़ा देगा।
*मुसलमानों तुम्हारा अल्लाह क्या क्या करता है ? लीद और गोबर तोलता रहता है ? क्या तुमको इन बातों से घिन और ग़ैरत नहीं आती ? 
इसी रसूल ने कुरान गढ़ा है जिसमे इस से भी ज्यादह ग़लीज़ तरीन बातें हैं।

जीम. मोमिन 

Wednesday 9 December 2015

Hadeesi Hadse 186


******

हदीसी हादसे 74
बुखारी 1191
मुहम्मद कहते हैं कि अगर नहूसत का वजूद होता तो तीन चीजों में होता - - -
माकन औरत और घोडा .
*मुसलमान काफिरों की इन बातों को बिदअत कहते हैं और उनको कमतर समझते है . उनका रसूल इन्हीं बिदअतों को क़यास ए करीं बतला रहा है।
सूरह नास और सूरह फलक तो इस्लाम की बिदअती सुतून हैं जिनमें बीमार मुहम्मद जादू टोना और गंदा बाँधने वाली यहूदनों से पनाह मांगते हैं।
बुखारी 1197
मुहम्मद अपने साथियों (सहाबी ए किरम) को बद दुआ देते हुए कहते हैं कि 
"खुद करे दरहम ओ दीनार और चादरों के के (लालची) यह लोग मर जाएँ कि जब तक इनको यह चीजें मिलती रहती हैं ये खुश रहते हैं और न मिले तो नाराज़ हो जाते हैं। खुदा करे यह औधे मुँह गिरें और इनको ऐसा कांटा लगे की जीते जी न निकले .
उस आदमी को खुश हो जाना चाहिए कि जो अपने घोड़े को लेकर मुजाहिदों के हमराह हो गया हो . वह जिहादी टुकड़ियों में सफे-आखिर में रहता कि कोई शोहरत नहीं रखता - - -.
मुहम्मद नूह की नकल में हैं जो अपनी उम्मत को कोस कटा करते थे। करी देखें कि जिन्हें वह सहाबी ए किरम कहा करते हैं , वह किस खसलत के हुवा करते थे। मुहम्मद की तबियत और फितरत का मुजाहिरा देखने को मिलता है कि 
वह कितने रहम और सब्र वाले हुवा करते थे थे।
जिहाद जिहाद और हर हल में जिहाद के लिए लूट मार के लिए लोगों को वर्ग्लाया हारते। आज उनकी तस्वीर ही बदल क्र दुन्य के सामने पेश की जताई है।
ऐसे पैगम्बर की उम्मत क्या कभी सर सब्ज़ होगी ? ?
मुहम्मद नूह की नकल में हैं जो अपनी उम्मत को कोसा काटा करते थे। दूसरी बात ये देखें कि जिन्हें वह सहाबी ए किरम कहा करते हैं , वह किस खसलत के हुवा करते थे। मुहम्मद की तबियत और फितरत का मुजाहिरा देखने को मिलता है कि वह कितने रहम और सब्र वाले हुवा करते थे।
जिहाद जिहाद और हर हल में जिहाद के लिए लूट मार की खातिर लोगों को वर्गालाया करते थे , आज उनकी तस्वीर ही बदल कर दुन्या के सामने पेश की जाती है।
सल्लललाह ए अलैह वसल्लम 
ऐसे पैगम्बर की उम्मत क्या कभी सर सब्ज़ होगी ? ?
बुखारी 1203
मुहम्मद खुद सताई करते हुए कहते हैं कि एक वक़्त ऐसा भी आएगा कि जब जिहादी गिरोह मे से लोग एक दुसरे से पूछेंगे कि तुम में से कोई सहाबी भी है ? ऐसा शख्स मिल जाने पर उसे रहनुमाई दी जायगी और फतह हासिल होगी।
फिर एक वक़्त ऐसा आएगा कि जंग में लोग पूछेंगे कि क्या होई ऐसा है जो रसूल्लिल्लाह के सहाबियों का हम असर हो यानी ताबई ? 
मिलने पर उसके हाथों फ़तेह होगी। इसी तरह घटते हुए वक़्त के मुताबिक उन बरकती हस्तियों के मार्फ़त मुसलमानों को फतुहत मिलती रहेंगी।
नाकिसुल अक्ल रसूल की पेशीन गोइयाँ उनके सर पर चढ़ कर मूतती हुई नज़र आती हैं। औलाद नारीना तो कोई थी ही नहीं, चहीते हसन और हुसैन के जिंदगी का अंजाम मुहम्मद के नवासे होने के नाते ऐसा हुआ कि मुसलमान आज तक सीना कूबी कर रहे है, हसन ने यज़ीद की गुलामी कुबूल कर के अय्याशियों का नमूना बने, उनकी मौत सूजाक जैसे मोहलिक मरज़ से हुई . हुसैन अपने भतीजे भांजे और मासूम औलादों को मोहरे बनाते हुए क़त्ल किए गए जिन के सर को लेकर बेटी ज़ैनब जुलूस निकलती रही . मुहम्मद का लगभद तमाम खानदान ही नेस्त नाबूद हो गया . सदियों से मुसलमान दुनिया के कोने कोने में कुत्ते बिल्ली की मौत मारे जा रहे हैं।
पेशीन गोई करते है ऐसा जैसे बड़े मुतबर्रक हस्ती उनकी रही हो। 



जीम. मोमिन 

Thursday 3 December 2015

hADEESI hADSE 185


**************
हदीसी हादसे 73
बुखारी 1212
मुहम्मद फरमाते हैं कि एक दिन ऐसा आएगा कि मुसलमानों की यहूदियों से जंग होगी, अगर कोई यहूदी पत्थर की आड़ में छिपा होगा तो पत्थर आवाज़ देगा कि 
"ऐ मुसलमानों ! इधर आओ , मेरी आड़ लिए एक यहूदी इधर छुपा हुआ है , आओ इसे हलाक कर दो ."
*मुसलमानों को वक़्त जो सजा दे रहा है , शायद वह जायज़ है . ऐसी हदीसों पर ईमान रखने और
"ख़त्म बुखारी शरीफ" 
करने वालों की सजा उनकी ज़िल्लत और रुसवाई होनी ही चाहिए .
अहमक रिसालत अगर सोचती है कि ईंट पत्थर उसके तरफदार होंगे तो उसका अल्लाह क्यों यहूदियों को बचने में लगा होगा ? उसके तो एक इशारे से तमाम यहूदी जिंदा दरगोर हो जाने चाहिए। ऐसी ही मुहम्मद की बातों का असर है कि यहूदी मुहम्मद की उम्मत को नेश्त नाबूद 
करने पर तुले हुए है।
मुसलमान पत्थरों के इशारे का इंतज़ार कर रहे है और यहूदी पत्थर को पीस कर सीमेंट 
बनाने में, ताकि वह फिलिस्तींयों की बस्तियों में यहूदी कालोनियां कायम कर सकें . 
मुसलमानों ! कब तक इस्लाम के दुम छल्ले बने रहोगे ? हिम्मत करो जागने की .
बुखारी 1213 
मुहम्मद की दीवानगी देखिए कि जिनके मुंह में वबसीर हो चुकी थी कि बोले बगैर उन्हें चैन नहीं पड़ता था।
फरमाते हैं कि एक दिन ऐसा आएगा कि मुसलमानों की लड़ाई एक ऐसी कौम से होगी कि जिसकी आँखें छोटी होंगी, नाक सुर्ख और बैठी हुई, गोया इनका चेहरा ऐसा होगा जैसे ढालें होती हैं.
कहते हैं उसी अय्याम में क़यामत बरपा होगी .
* गालिबन मुहम्मद ने किसी चीनी को देखा होगा और कयास आराई किया होगा . आप गौर करे कि क़यामत की पेशीन कोई हर पांचवें जुमले के बाद है चाहे वह कुरान हो या हदीसें। लोगों ने कुरान को नाम दिया है "क़यामत नामः"
लोग कहते हैं तो फिर ठीक ही कहते होंगे। 
बुखारी 1215
चन्द यहूदी मुहम्मद के पास आए और उनको सलाम किया जिसमें दोहरे मानी छुपे हुए थे। मुहम्मद ने भी उनको दोहरे मानी वाला जवाब दिया , 
आयशा यहूदियों की इस हरकत पर बिफर गईं , 
मुहम्मद ने तजाहुले-आरफाना बरतते हुए कहा,,
क्या हुवा ? आयशा ने कहा सुना नहीं उनहोंने आप पर लअनत भेजते हुए सलाम किया था। मुहम्मद ने कहा तुमने नहीं सुना कि मैं ने भी उन्हें "वलैक - - - कहा था। (यानि तुम पर भी )
* ये है मुहम्मद के पैगम्बरी आदाब , कोई महात्मा अपने मुंह से ऐसे शब्द नहीं दोहराता . अगर वह वाकई अल्लाह के रसूल होते तो कहते "मगर तुम पर अल्लाह की रहमत हो।"
जैसा कि ईसा किया करते थे कि एक गाल पर तमाचा खाकर दूसरा गाल पेश कर दिया करते थे। 


जीम. मोमिन 

Thursday 26 November 2015

Hadeesi Hadse 184


*****
हदीसी हादसे 72
बुखारी 1107
"मुहम्मद ने किसी दावत में गोह (गोहटा ) का गोश्त खाया - 
इब्न अब्बास कहते हैं अगर यह हराम होता तो मुहम्मद बयान करते "
*कबीलाई माहौल में हर बात की गुंजाईश है- खाया होगा कोई तअजजुब की बात नहीं। तअजजुब तो इन ज़मीर फ़रोश ओलिमा पर है जो ऐसी हदीसें भी माहौल को देख कर गढ़ते हैं - - -
"मुहम्मद सल ने कभी मांस को चख्खा नहीं . एक बार लोगों ने इसरार किया कि आप गोश्त चखिए ताकि उम्मत को आसान हो कि उनके प्यारे नबी ने भी गोश्त खाया। इस पर सल ने अपनी एक उंगली पर लम्बी परत की पट्टी बाँधी और उंगली को गोश्त के शोरबे में डुबो कर तर किया, फिर पट्टी खोल कर उंगली को चूसा , इस तरह मुसलामानों के लिए गोश्त हलाल किया।"
यह तक़रीर हिदू श्रोताओं के लिए गढ़ी गई जो मेरे कान में आई . 
हैरत का मुक़ाम है कि गोह खाने की गवाही खुद मुहम्मद के चाचा अब्बास देते हैं और मशहूर ज़माना है कि मुहम्मद को बकरे के सीने का गोस्त पसंद था, आज उनको एक शाकाहारी साबित किया जा रहा ई।
 
बुखारी 1219
"अबू हरीरा कहते हैं कि मुहम्मद ने मुझे किसी लश्कर में रवाना किया और कहा कि अगर कुरैश कबीले के दो फलां फलां लोग मिलें तो इनको आग में जला कर मार डालना । मैं रवानगी के वक़्त मुहम्मद से रुखसत के लिए पहुंचा तो उनहोंने अपना फैसला बदलते हुए कहा कि उनको आग से जला कर न मरना , यह सजा तो अल्लाह ही देता है, बस मार देना।"
*मुहम्मद अव्वल दर्जे के मुन्तकिम थे , इस बात की गवाह खुद उनकी बेगम आयशा कहती हैं कि
"सल ने कभी अपने ज़ाती मुआमले का बदला नहीं लिया मगर मुआमला अगर अल्लाह का हो तो अल्लाह के दुश्मन को कभी छोड़ा नहीं 
(बुखारी 1449)
गौर तलब है कि मुहम्मद दर परदा खुद अल्लाह बने हुए हैं, इस बात की गवाह कुरान और हदीसें हैं, अगर अकीदत की ऐनक उतार कर इन का इन का अध्यन किया जाए .
उपरोक्त दोनों नाम मुहम्मद को उस वक़्त के याद हैं जब मक्का में लोग इनका और इनके कुरान का मज़ाक़ उड़ाते थे और बाद में इनको ख़त्म कर देने का फैसला हुवा।
काश कि ये फितना उसी वक़्त मौत के हवाले हो जाता तो मुमकिन है मुसलमान कहे जाने वाली मखलूक आज दुन्या में सुर्ख रु होती।
बुखारी 1220
"मुहम्मद कहते हैं, जब तक हाकिम ख़ुदा की नाफ़रमानी और गुनाहगार होने का हुक्म न दे, इसकी इताअत और फ़रमा बरदारी लाज़िम है . लेकिन जब इनकी ख़िलाफ़ वरज़ी करे तो नाफ़रमानी लाज़िम है ."
*किस ख़ुदा की नाफ़रमानी ?
इन्सानी दर्द ना आशना खुदा की जो कहता हो कि
"कुफ्फार की औरतें और बच्चे मिन जुमला काफ़िर ही शुमार किए जाएँगे , इनको मौत पर कोई गुनाह नहीं।"
इस्लाम ने हर अच्छी बात का इस्लामी करन कर रख्खा है , उस पर अमल करना, परोसे हुए दस्तर ख्वान में नजासत शामिल कर देने की तरह है।
दुन्या की 20%आबादी इंसानियत के ख़िलाफ़, इस्लामियत का शिकार है .



जीम. मोमिन 

Wednesday 18 November 2015

Hadeesi Hadse 183


*****
हदीसी हादसे 71

बुखारी 1227 +मुस्लिम किताबुल जिहाद
"मुहम्मद कहते हैं मैदान जंग में जब कोई मुक़बिला न हो और दुश्मन के आने की उम्मीद न हो तो जंग की तमन्ना मत करो, बल्कि अल्लाह से आफ़ियत की दुआ करो . इस अम्र का यक़ीन करो की जन्नत तलवार की साए में है ."
अलकायदा, तालिबान और दीगर इस्लामी दहशत गर्द इन ज़हरीली हदीसों की फसलें हैं जो फल फूल रही हैं और बेचारे मुसलमान अपने ही वजूद में सूखे जा रहे हैं। किसी भी दहशत गर्द का नज़ला सीधे मुस्लिम अवाम पर पड़ता है . कट्टर पंथी मौके की तलाश में रहते है, अंजाम कुछ भी हो।
मुसलमानों का ईमान ए नाहक़ इतना पुख्ता है कि इसके आगे वह अपनी जान, अपना माल और अपनी औलादें तक कुर्बान कर सकते हैं, यहाँ तक कि अपनी गैरत भी. दर असल यह जज़्बात के शिकार गुमराह लोग हैं। इनको इस्लामी आलिमों ने आसमान पर चढ़ा रख्खा है कि असली ज़िन्दगी वहीँ है. दूसरे धर्म ओ मज़ाहिब भी जवाबन इनके सामने खड़े हो जाते है, नतीजतन मुल्क इन गैर तामीरी कामों में लगे लोगों से शर्मिदा है।
क्या ऐसे हालात में माओ की बंदूक की ज़रुरत आ गई है।
मुस्लिम किताबुल मसाकात - - -
"मुहम्मद उम माअबद के बाग़ में गए और पूछा कि यह दरख्त किसने लगाए हैं? मुसलामानों ने या काफिरों ने, जवाब मिला मुसलमानों ने. कहा जिन मुसलमानों ने इन दरख़्त को लगाया , उनको इसका सवाब क़यामत तक मिलता रहेगा - - -"
*मुहम्मद ने अमली तौर पर बनी नुजैर की बस्ती के तमाम पेड़ जड़ से कटवा कर इन्हें गिरवा दिया था क्योंकि यह यहूदियों के लगाए हुए थे. इस पर खुद इनके क़बीले के लोगों ने एतराज़ किया था, जवाब था "इसके लिए मेरे पास अल्लाह की वही आई थी."
गौर तलब है कि किस कद्र नाक़िस जेहन के मालिक थे अल्लाह के खुद साख्ता रसूल कि पेड़ों को भी काफ़िर और मुस्लिम जानते थे। बद नसीब कौम ऐसे रसूल का शिकार है .
 बुखारी 1235
"मुहम्मद के हमराह उनके साथी किसी बुलंद मुकाम से गुज़र रहे थे, नारा ए तकबीर का नारा जोर जोर आवाज़ से लगते हुए। मुहम्मद ने उन्हें टोका कि क्या अल्लाह बहरा है जो इतनी ज़ोर से नारे लगा रहे हो "
* नारा ए तकबीर का मतलब है क़िब्र , तकब्बुर,ज़ोम और घमंड का नारा . इस्लाम ने बहुत सी बातों का इस्लामी करण किया है जिससे जायज़ नाजायज़ हो गया है और नाजायज़ जायज़ हो गया है। घमंड किसी के लिए भी जायज़ नहीं , चाहे वह अल्लाह ही हो .
इस्लामी लाजिक कहती है कि घमंड करना अल्लाह को ज़ेबा देता है , उसको तकब्बुर पसंद है, उसी के तुफैल में मुसलमान भी उसको याद करने में तकब्बुर करते हैं। यह नारा अक्सर फ़साद की वजह होता है। जज़बाती कौम मुट्ठी भर भी इकठ्ठा होगी तो नारा ए तकबीर लगाना शुरू कर देगी .तमाम दुन्य में ज़िल्लत दगो रही है मगर घमंड को छोड़ने को तैयार नहीं।
बुखारी 1243
मिन जुमला काफ़िर (totaly kafir)
"मुहम्मद से दरयाफ्त किया गया शब खून मारी में अगर कुफ्फ़ार के बच्चे और औरतें क़त्ल हो जाएँ तो हम पर कोई गुनाह होगा या नहीं ?
मुहम्मद ने कहा कुफ्फ़ार की औरतें और बच्चे मिन जुमला काफ़िर ही शुमार किए जाएँगे . "
*बच्चो ! समझ लो शब् खून उस क़ज़ज़ाक़ी हमले को कहते हैं जो सोते हुए दुश्मन पर अचानक किया जाए , बस्ती सो रही हो और उसे सोते में क़त्ल और गारत गारी से तबाह कर दिया जाए। मुहम्मद की क़ल्ब ए सियाही देखो कि कहते हैं इस हमले में अगर मासूम बच्चे और मजबूर औरतें क़त्ल हो जाएँ तो तो कोई गुनाह नहीं। यह मज़मूम पैग़ाम क्या किसी अवतार या पैग़म्बर का हो सकता है ? नहीं , अलबत्ता पत्थर दिल मुहम्मद और उनके गढे गए अल्लाह का ज़रूर है।
इस शख्स का अंजाम यह हुवा कि मैदान करबला में इसके परिवार का बच्चा बच्चा भूखा प्यासा मौत के घाट उतार दिया गया मगर इस्लाम को शैतान की बख्शी हुई हराम ज़िन्दगी मिल गई . उसको लूट मार की दौलत "माल ए ग़नीमत " की शक्ल बन गई जिसे खा पीकर वह तःतुत सुरा में जा रहा है .
जल्याना वाला बाग़ का दुष्ट मुजरिम डायर से खुद अंग्रेज़ जज ने जवाब तलबी की थी कि बाग में खेल रहे किसी मासूम को क्या पता कि बाग़ में कौन सी दफ़ा लगी हुई है कि वह उस पर अमल करता ? 
मुहम्मद बजाद खुद एक काफ़िर की अवलाद थे, चालीस साल की उम्र में मुसलमान हुए और मुसलमानों के पैगम्बर भी। कोई दो साल का बच्चा जब बोलना सीख रहा हो तो उससे कलिमा पढवाएं या रामायण के दोहे , सिने-बलूगत पर ही उसकी पहचान के आसार शुरू होते हैं। 
मुहम्मद जनरल दायर से बद तरीन मुजरिम थे , मुस्लमान इस हदीस का जायज़ा लें।

जीम. मोमिन 

Wednesday 11 November 2015

Hadeesi Hadse 182


****
हदीसी हादसे 70
बुखारी 1245
अली ने एक कौम को जिंदा जला डाला 
"अली ने एक कौम को जिंदा जला दिया, ये बात जब उनके चचा अब्बास के कान में पड़ी तो उन्हें उनके इस फेल का 
सदमा हुवा। उन्होंने ने कहा ये सज़ा अल्लाह को ही जेबा देती है , बल्कि जो शख्स अपना दीन बदल दे उसको क़त्ल कर देना चाहिए।" 
*शिया हज़रात ने अली मौला के इतने क़सीदे गढ़े हैं कि हिटलर का शागिर्द मौसुलेनी इनके आगे पानी भरे। उनको मिनी अल्लाह (मौला) कहते हैं, जिनकी हक़ीक़त हदीसें जगह जगह खोलती हैं कि वह घस खुद्दे थे, बुज़दिल थे, लालची थे और इन्तेहाई ज़ालिम शख्स भी थे। 
जनाब मौला ने एक कौम को जिंदा जल डाला, मुहम्मद से चार क़दम आगे। भला उस कौम की क्या गलती रही होगी ? वह कितनी बे यार ओ मदद गार रही होगी कि जालिमों के हाथों जल मरी। अली के इस अमल से बजरंग दल के दारा सिंह का वाकिया जहन में ताज़ा हो गया, जिसने कार में सोए हुए 
मिशन के एक खुदाई खिदमत गार को उसके दो बच्चों समेत जिंदा जला दिया था। एक मुसलमानों का तब्कः कहता है कि इस्लाम को फैलाने में अली का बड़ा हाथ था। इनमे से कुछ इन्हें मुहम्मद के बाद मानते हैं तो कुछ मुहम्मद से पहले. इनकी इस मज्मूम और मकरूह कार गुज़ारी के बाद लोग हज़ार इस मौला को " अली दम दम दे अन्दर " का दम भरते रहें, इनमे कोई अज़मत पैदा हो ही सकती नहीं सकती। उनकी औलादों का क्या हश्र हुवा ? शायद अली की बद आमालियों का अंजाम है कि की उनके मानने वाले चौदह सौ सालों से सीना कूबी कर कर के उनके गुनाहों की तलाफी कर रहे हैं।
मियां अब्बास कहते हैं की वह होते तो उनको जलाते ना बल्कि क़त्ल कर देते। बाप का राज हो गया था कुछ दिनों के लिए . इन इंसानियत सोज़ मज़ालिम के अंजाम में आज दुन्या की तमाम कौमों पर इन्तेकाम का भूत सवार हो चूका है। अगर ऐसा है तो कोई ताज्जुब की बात नहीं।
मैं ने माना कि वहशत का दौर था, उस वक़्त तमाम कौमें वहशत का शिकार थीं मगर कोई उनमे मुहम्मद जैसा घुटा पैगम्बरी का दावे दार नहीं हुवा जो अपना नापाक साया सैकड़ों साल तक इंसानी आबादी पर कायम रखता।
क्या मुसलमान इस बात के मुन्तजिर हैं कि अली का जवाब उनको दिया जय, जैसे कि स्पेन में हुवा, इससे पहले तर्क इस्लाम कर दें। डेनमार्क के दानिश मंद की राय मानते हुए अज़ खुद क़ुरआनी सफ़्हात को नज़रे-आतिश कर दें। 
बुख़ारी 1246
मुहम्मदी शगूफ़ा 

"मुहम्मद कहते हैं नबियों में से किसी नबी को चींटी ने काट लिया, उन्हों ने ग़ज़बनाक होकर चींटियों के दल को जला डाला। अल्लाह ने उन पर वहिय भेजी कि एक चींटी ने तुम्हें काटा , तुमने उनके पूरे जत्थे को जला डाला ,वह अल्लाह की तस्बीह कर रही थीं ."
*सिर्फ इंसान अल्लाह की इबादत और भगवानों का भजन करते हैं, कोई दूसरी मख्लूक़ नहीं। उनकी जो भी मौसीकी और संगीत होता है, वह अपने शरीक हयात को रिझाने के लिए , अपने बच्चों को इत्तेला देने के लिए या फिर अपने समूह को संबोधित करने के लिए। अल्लाह कोई हस्ती होती तो सब से पहले मखलूक हमें बाख़बर करती।
मुहम्मद की बातें हमेशा अलौकिक होती हैं जिनका वास्तविक्ता से कोई संबंध नहीं।आम मुसल्मान ऐसे अंध विश्वास को जी रहा है।

 बुख़ारी 1249 + मुस्लिम - - -किताबुल जेहाद 

मुहम्मद कहते हैं धोखे बाज़ी का नाम लड़ाई है। जंग में हीला जायज़ है।
*एक महान आत्मा की बात तो, होना चाहिए कि जंग ही नाजायज़ है मगर मुहम्मद की शररी शख्सियत क्या महान हो सकती है? जंग और इश्क में सब जायज़ है , जैसी भाषा एक पैगम्बर बोले , यह उसका नाजायज़ पैग़ाम है। 
 महान आत्मा , महात्मा गाँधी का पैगाम अहिंसा है, जो कि  एक सच्चा पैगाम।
अज़ीम मुफ़क्किर दाओ कहता है - - -
जो दूसरों को जानता है, वह ज़हीन होता है, जो खुद को पहचानता है, वह आलिम होता है।
जो दूसरों को फ़तह  करता है फ़ातेह होता है, जो खुद को फ़तेह करता है , वह अज़ीम होता है।
हमारे सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम कहाँ जगह पाते हैं ?


जीम. मोमिन 

Wednesday 4 November 2015

Hadeesi Hadse 181


**************

हदीसी हादसे 69

बुखारी 1250

जंग ओहद में मुहम्मद की फ़जीहत 
इस हदीस में जंग ए ओहद का मुआमला है, जिसमें मुसलमानों को शिकस्त हुई थी . हदीस तवील है , मुख़्तसर ये कि काफिरों के कमांडर अबु सुफ़ियान ने कैदियों की लश्कर को तीन बार आवाज़ लगाई कि - - -
" मुहम्मद लोगों के दरमियान अगर छुपे हों बहार आकर मेरे सामने हाज़िर हों।"
मुहम्मद को उस वक़्त जंगी क़ानून के मुताबिक बाहर आकर खुद को कमांडर के हवाले कर देना चाहिए था, मगर वह अपना मुंह छिपाए हुए भीड़ में ख़ामोश खड़े रहे । इससे साबित होता है कि वह एक ईमानदार फौजी भी नहीं थे, पैगम्बर होना तो अलग है। वह सज़ा से बच गए , इस लिए कि अबु सुफियान को उम्मीद थी कि कुरैश होने के नाते कुरैश मुहम्मद ऐसी नामर्दी का सुबूत नहीं देंगे।
अबु सुफियान ने एलान किया कि फितने और फसाद की जड़ (मुहम्मद) ख़त्म हुआ, इस तरह जंगे ए बदर का हिसाब चुकता हुवा।
*  काश कि अबु सुफियान 70 मरे हुए कैदियों का फ़रदन फ़रदन शिनाख्त कर लेता और मुहम्मद को जिंदा कैदियों से बहार लाकर उनकी पैगम्बरी का हिसाब लेता और ऐसी इबरत नाक सज़ा देता कि आगे के लिए पैगम्बरी पनाह मांगती और आज की 20% आबादी इस्लामी अज़ाबों में मुब्तिला न होती।
इसी जंग में हुन्दः जिगर खोर ने अपने शौहर के क़ातिल हमज़ा की लाश तलाश करके उसका जिगर निकाल कर कच्चा चबा गई थी।

मुस्लिम - - - किताबुल  
मुहम्मद ने कहा उन चोरों  का हाथ न काटा जाए जिनकी चोरी चौथाई दरहम से कम की हो।
* यानि चवन्नी को चोरी पर हाथ क़लम ! 
वाह !
जिहादी डाके डालने वाले मुहम्मद, किस क़दर अपने समाजी चोरों पर मेहरबान थे .
ज़ालिम मुहम्मद चवन्नी की चोरी पर एक सय्यद ज़ादी के हाथ खुद अपने हाथों से काटे जोकि रिश्ते में उनकी फूफी लगती थीं।
शब खून करबे बस्ती को लूट मार कर तबाह ओ बर्बाद करने वाले का दूसरा रूप था जो आज तक मुहज्ज़ब दुन्या में रायज है।

बुख़ारी 1253
अली का इल्म 
"किसी सहाबी ने अली से दरयाफ्त किया कि आप को कुछ ऐसे एहकाम भी  मालूम हैं जो क़ुरआन से हट कर हों ?
अली ने क़सम खाकर कहा मुझे क़ुरआन के एहकाम के सिवा कोई चीज़ मालूम नहीं या एक सहीफ़ह है जिस में तहरीर है कि कोई मुसलमान किसी काफ़िर के क़स्सास  में क़त्ल नहीं होगा ."
*शिया हजरात आम मुसलमानों से ज्यादह तालीम याफ्ता होते हैं। इनको अक्सर तकरीरों में सुनने का मौकाः मिला, कमबख्त ज़मीन और आसमान का कुलाबह मिला देते हैं। अपने ताजिराना बयान में यह लोग तमाम इंसानी क़द्रें पंजातन, मुहम्मद , फातमा , अली , हसन और हुसैन में पिरो देते हैं। यहाँ पर अली खुद तस्लीम करते हैं कि उनका इल्म कितना था। यही सोलह आना सहिह है।
 बचपन से ही अली मुहम्मद पिछ लग्गू रहे। अली के वालदैन ने उनको मुहम्मद के किफ़ालत में दे दिया था, जिनका इल्म से कोई वास्ता नहीं था . जवान होते ही अली ज़ुल्म और गारत गरी में मुब्तिला हो गए। नतीजतन मुहम्मद के आखरत के बाद से लेकर अपनी आखरत तक वह घिनावनी सियासत में पड़े रहे। पढने पढाने का मौकाः की कब मिला ? 
इनको तो शिया पीटों ने आलिम ओ फ़ाज़िल बना रख्खा है .


जीम. मोमिन 

Wednesday 28 October 2015

hADEESI hADSE 180


****************

हदीसी हादसे 68

बुखारी 1257
मुहम्मदी अल्लाह काना नहीं है 
"मुहम्मद ने कहा तुमको  दज्जाल से डराता हूँ . अगर्च कि हर एक नबी ने इससे अपनी उम्मत को डराया है, हत्ता कि नूह अलैहिस्सलाम ने भी अपनी उम्मत को डराया था , लेकिन मैं तुमको एक ज़ायद बात बतलाता हूँ कि दज्जाल काना होगा , अल्लाह ताला काना नहीं।"
*अल्लाह काना नहीं, यानी उसकी दोनों आँखें सहीह सलामत हैं, किसी ने उसकी एक आँख को फोड़ा नहीं, न ही उसको मोतिया बिन्द हुवा।
अल्लाह की आँखें हैं तो कान  नाक मुंह हाथ पैर सभी अज्ज़ा होंगे और आज़ा ए तानासुल भी . कभी अंगडाई भी आती होगी और अपनी तरह किसी तनहा जिन्स  ए मुखालिफ को तलाश करता होगा . बकौल फैज़ - - -
आ मिटा दें ये तक़द्दुस ये जुमूद ,
फिर हो किसी ईसा वुरूद ,
तू भी मज़लूम है मरयम की तरह , 
मैं भी तनहा हूँ ख़ुदा के मानिंद।
मुहम्मद ने अपने अल्लाह के साथ बद तमीज़ी की है। कोई मदक्ची ही इस किस्म की बातें करता है। अगर उनका अल्लाह काना, लूला, लंगड़ा या बहरा होता तो बात बतलाने की होती, अल्लाह ऐबदार है।
मुहम्मद ने अपनी उम्मत को एक लक़ब बख्शा है कि एक आँख की खराबी वाले इंसान को ज़रा सी बात पर काना दज्जाल सुनने की ज़िल्लत उठानी पड़ती है। 

बुखारी 1276
"मुहम्मद फ़रमाते हैं कि एक नबी ने बस्ती के लोगों से जिहाद में शिरकत का एलान किया , मगर उन लोगों को रोका जिनकी शादी हुई हो और सुहागरात न मनी हो। उनको भी जिनके मकानों  की छत पड़ना बाकी हो, और उनको भी जिन की बकरियां और ऊंटनीयाँ  बियाई न हों। 
ग़रज़ बाकी लोग जिहाद के लिए निकल पड़े। अस्र के वक़्त उस गाँव के नज़दीक पहुंचे, नबी ने अल्लाह से दरख्वास्त की कि सूरज को कुछ देर के लिए डूबने से रोके ताकि दिन के उजाले में जिहाद की कारगुज़ारी को अंजाम देदें। गोयः सूरज रुक गया और दिन के उजाले में ही लूट पाट से जिहादी फ़ारिग हो गए।
जिहाद में लूट के माल को देख कर वह नबी छनके कि तुम लोगों में से किसी ने ग़नीमत में ख़यानत की है। नबी ने हुक्म दिया कि सब लोग उनके पास आएं और उनके हाथ पर हाथ रख कर सफ़ाई पेश करें। इससे दो चोरों के हाथ नबी के हाथ से चिपक गए . उन दोनों चोरों ने एक गाय के सर के बराबर सोना चुरा रखा था। उसके मिलने के बाद ही आग ने ग़नीमत को खाना मंज़ूर किया .
आगे मुहम्मद कहते हैं कि पहले गनीमत खाना हराम था और उसको आग को खिला  दिया जाता था, मगर मेरे जोअफ़ और आजिजी को देख कर अल्लाह ने हमारे लिए गनीमत (लूट पाट का माल )को हलाल कर दिया।"
*इस्लाम से पहले जंगों में लूट पाट नाजायज़ क़रार था, वह भी अवाम को लूटना तो जुर्म हुवा करता था। इसको मुहम्मद ने मुसलमानों के लिए हलाल कर दिया और मकर का सहारा लेकर कहा कि अल्लाह ने मेरी ज़ईफ़ी और आजज़ी को देख सुनकर इसे हलाल कर दिया।
मुहम्मद के बुढ़ापे और कमजोरी पर और उनकी दुआओं पर तरस खाकर अल्लाह ने उनके लूट-पाट को जायज़ कर दिया, ठीक ही किया कि कमज़ोर पर तरस आई, 
मगर उनके बाद उनकी उम्मत को हमेशा के लिए जईफ और कमज़ोर भी कर दिया कि वह हमेशा ग़नीमत खाते रहें। लूट पाट से न मिले तो खैरात ज़कात खाया करें, बासी तिवासी, उगला जूठन को निंगल लिया करें। आज कौम मुहम्मद की दुआओं के असर से दुन्या में खुली आँखों से महरूम और रू सियाह है।
कैसा है मुहम्मदी अल्लाह जो लूट पाट करने के लिए सूरज को डूबने नहीं देता ताकि लुटेरे आराम से मेहनत कशों की बस्ती को लूट सकें, इस लिए कि उनके मेहनत से हासिल किए गए असासे को आग के हवाले कर दिया जाए।
मगर देखिए कि ज़लील पैगम्बरी ने कैसे अपनी ज़ात को चमकाया है? 
अंधे मुसलमानों !
तुमको कौन सा आयना दिखलाया जाए की तुम सही और ग़लत की तमीज़ कर सको। इन हराम के जाने बेज़मीर ओलिमा ने तुम्हें इस्लाम की उलटी तस्वीर को दिखला कर गुमराह किए हुए हैं।
जागो! जागो !! जागो !!!



जीम. मोमिन 

Wednesday 21 October 2015

Hadeesi Haadse 179


*******

हदीसी हादसे 67
बुख़ारी 1453
इमाम गुमराह 
मुहम्मद कहते हैं कि एक वक़्त आएगा जब लोग गुमराही में मुब्तिला हो जाएँगे. वह हम तुम जैसे लोग होंगे, हमारी ज़ुबान बोलेंगे, मगर ख़बरदार तुम अपने इमाम की पैरवी करना, अगर इमाम मुयस्सर न हो तो जंगल की तरफ भाग जाना और दरख्तों की जड़ें खा खा कर मर जाना।
 * हाँ यह वक़्त ज़रूर आने वाला है, मुसलामानों की नौबत खुद कुशी की होगी और इमाम बकसरत होंगे, हर इमाम इनका खून चूस रहा होगा , मुसलमान अभी से तैयार हो जाएं।
ऐसे मौके पर ईसाई इनके सामने मिशन के साज़ लिए खड़े होंगे और हिन्दू शुद्धि करण की भजन मण्डली।
मगर खबरदार !
शुद्ध हुए तो हमेशा के लिए अशुद्ध ही हो जाओगे। वह तुमको अपनी रोटी बेटी में शामिल नहीं करेगे। इनको उस वक़्त मेहतरों और मजदूरों की ज़रुरत होगी, वह तुम पूरी करने के लिए तैयार रहना .
ईसाइयों का भी तुम्हें बख्श देने का ख़याल न होगा, इनको तुम्हारी ही सलाहियतों का मुसलसल फायदा चाहिए होगा । और चाहिए होगा एक बड़ा कंज्यूमर मार्केट .
ऐसा वक़्त आने से पहले तुन मोमिन की बात मानो , मज़हब ए इंसानियत की राह अपनाओ, इस से किसी इंसान को परहेज़ नहीं।
इस्लाम में इंसानियत का कोई बाब नहीं, मुल्लाओं के सुर में सुर मिलाना बंद करो। इनके साए से बचो, इनसे इतना दूर रहो कि जैसे ख़ारिश ज़दा कुत्तों से फ़ासला रखते हो, यह तुम्हारे दर पे आएं तो फ़क़ीरों जैसा सुलूक करो और इनको आगे बढ़ने को कह दो।
सिर्फ़ इंसानियत की राह ही तुमको बचा सकती है। इंसानियत जिसका कोई रहनुमा नहीं, वह खुद तुम्हारे अन्दर बैठी हुई है जो अपने अंकुर फोड़ा करती है, फूलती और फलती है और तुम्हें हर वक़्त सच्चाई की राह पर गामज़न रखती है।
बुख़ारी 1362 
क़ुदरत की एक ख़ूब सूरत मख़लूक़ है गिरगिट, जिसके नक़्ल ओ हरकत और रूप रंग को देखते ही बनता है. ये छिपकिली जैसा घिनावना भी नहीं होता और न उसके जैसा ज़हरीला ही .
इस प्यारी मख्लूक़ को मुहम्मद ने देखते ही मार डालने का हुक्म दिया है .मुसलमान बच्चे इसे जहाँ देखते हैं फ़ौरन इसके मारने का मश्गिला शुरू कर देते हैं , उनको बतलाया जाता है कि इसको मारने से सवाब मिलता है. 
इस वाक़िए का पस ए मंज़र ये है कि जब मुहम्मद रातो रात मक्का से मदीने के लिए फ़रार हो रहे थे कि रात  हो गई थी और वह एक ग़ार में छिप गए थे जिसके मुंह पर मकड़ियों ने रात में जाल तान दिया था . उनके दुश्मन ग़ार तक आए और मकड़ी के जाले को देख कर इसकी तलाशी नहीं ली क्योंकि जाल एकदम साबूत था .
मुहम्मद ग़ार के अन्दर से सब देख और सुन रहे थे, उन्हों ने देखा कि वहाँ मौजूद एक गिरगिट हस्ब आदत अपनी गर्दन उछाल रहा है जिसे अक़्ल के दुश्मन समझे की वह दुश्मनों को खबर दे रहा है कि मैं अन्दर हूँ .
इस मुआमले में न मकड़ी ने मुहम्मद को बचाया न गिरगिट ने उनके खिलाफ़ कोई अमल किया , दोनों अपने अपने फ़ितरत में मसरूफ रहे. 
मुहम्मद इस ग़रीब पर एक इलज़ाम और मढ़ते हैं कि ये उस आग को हवा दे रहा था जिसमें हज़रात इब्राहीम को डाल गया था .
 अबू हरीरा कहते हैं - - - 
कि मुहम्मद का हुक्म है कि गिरगिट को तीन या उस से ज्यादा बार मरने में सवाब है मगर दो बार में ज्यादा सवाब है, एक बार में मारने में तो मज़ह ही कुछ और है और सवाब भी ज्यादा .

* मैं ने भी बचपन में गिरगिट मारे हैं, इसका अज़ाब मुहम्मद और इस्लामी आलिमों से सर . 
जीम. मोमिन 

Wednesday 14 October 2015

Hadeesi Hadse 178


************

हदीसी हादसे 66

बुख़ारी 1280 
अबू जेहल का खात्मः
जंग ए बदर में दो अंसारी नव जवानों ने सहाबी अब्दुर रहमान से दरयाफ्त किया कि क्या वह अबू जेहल को पहचानते हैं ? अब्दुर रहमान ने कहा हाँ !नव जवानों ने कहा जब वह दिखें तो हमें बतला देना। कुछ देर बाद अबू जेहल जब उन्हें दिखे तो उन्होंने ने उन नव जवानों को इशारा करके बतला दिया। वह दोनों आनन् फानन में अबू जेहल के पास पहुँचे और उनका काम तमाम कर दिया और इस खबर को जाकर मुहम्मद को दी।
मुहम्मद ने दोनों नव जवानों से पूछा कि तुम में से किसने क़त्ल किया ? दोनों ने अपना अपना दावा पेश किया . मुहम्मद ने दरयाफ्त किया कि क्या तुमने अपनी तलवारों का खून साफ़ किया ? जवाब था नहीं . जब तलवारें देखी गईं तो सच पाई गईं। 
मुहम्मद ने इनाम के तौर पर दोनों नव जवानों को मकतूल का घोडा और साज़ ओ सामान दे दिया।
* वाज़ह हो कि अबू जेहल मुहम्मद के सगे चचा थे और क़बीला ए कुरैश के सरदार थे। उन्हों ने हमेशा मुहम्मद की मुख़ालिफ़त की और अपने क़बीले को इस्लाम न कुबूल करने दिया, हत्ता कि मुहम्मद के सर परस्त चचा अबी तालिब को भी इससे बअज़ रखा। 
"उनका नाम "अबू जेहल", जिसके मअनी होते हैं " जेहालत की अवलाद " यह इस्लाम का बख्श हुवा नाम है जो इतना बोला गया कि झूट सच हो गया।"
 इनका असली नाम "उमरू बिन हुश्शाम " था।
मुर्दा उमरू बिन हुश्शाम की दाढ़ी पकड़ के मुहम्म्द लाश से गुफ्तुगू करते हैं और अपनी बरतरीबयान करते है, फिर लाश को बदर के कुएँ में फिकवा देते हैं।
 मुहम्मद के इस कुफ्र को मुसलमानों को ओलिमा नहीं देखने और समझने देते।

मुस्लिम - - - किताबुल हुदूद 
 मख़ज़ूमी क़बीले की एक ख़ातून को मुहम्मद ने चोरी के जुर्म में पकड़ा और ख़ुद उसका हाथ अपने हाथों से क़लम किया।
 इसके लिए लोगों ने काफ़ी कोशिश की कि ख़ातून एक मुअज़ज़िज़ क़बीले की फ़र्द थीं और चोरी बहुत मामूली थी, लोगों ने मुहम्मद के चहीते ओसामा से भी सिफ़ारिश कराई मगर मुहम्मद न म़ाने। 
बोले शरीफ़ को सज़ा न दी जायगी तो रज़ील एतराज़ करेंगे. बरहाल कसाई तबअ मुहम्मद ने उस सिन्फ़ ए नाज़ुक के हाथ कट डाले।
 -

बुख़ारी 1303+ मुस्लिम - - - किताबुल ईमान 
सूरज डूबने के बाद कहाँ जाता है ? 
"मुहम्मद ने अपने मुरीद अबू ज़र से एक दिन दरयाफ्त किया कि सूरज डूबने के बाद कहाँ जाता है, तुम जानते हो?
अबू ज़र का जवाब लाइल्मी का था , बोला अल्लाह या अल्लाह का रसूल ही बेहतर जानता है।
कहा यह आफ़ताब इलाही के पास जा कर सजदा करता है और तुलू होने की इजाज़त मांगता है , लेकिन क़ुर्ब क़यामत यह सजदा करने की इजाज़त तलब करेगा , न इसका सजदा क़ुबूल होगा न इजाज़त मिलेगी। बल्कि हुक्म होगा जिस तरफ़ से आया है उसी तरफ़ से वापस जा। चुनाँच यह मगरिब से तुलू होगा।"
* यह झूटी फ़ितरत ख़ुद साख्ता अल्लाह के रसूल की है , जो इतने बड़े बड़े झूट गढ़ने में माहिर थे। और इन हदीस निगारों को  क्या कहा जाय , जिनकी बातों का मुसलमान हाफ़ज़ा किया करते हैं। वह बारह सौ साल पहले इतने ही  थे कि इन बातों पर गौर न करके यक़ीन कर लिया जब कि बाईस सौ साल पहले अरस्तू  सुकरात ने सूरज की छान  बीन कर लिया था।
सानेहा यह है कि आज इक्कीसवीं सदी में भी मुसलमान इन बातों पर यक़ीन रखते हैं और अपने झूठे रसूल पर जान छिड़कते हैं।
जो कौम इस क़दर ज़ेहनी तौर पर दीवालिया होगी , उसका अंजाम आज के दौर में ऐसा ही होगा जैसा मुसलमानों का है। कीड़े मकोड़े की तरह मारे जाते हैं और अपने मुल्लाओं के बहकावे में आकर कहते हैं कि इस्लाम फल फूल और फैल रहा है।



जीम. मोमिन 

Wednesday 7 October 2015

Hadeesi Hadse 177


*********

हदीसी हादसे 65


बुख़ारी 1289
हदीस है कि ख़लीफा उमर ने लुक़मान इब्न मक़रन को सिपह सालार बना कर मुल्क कसरा (ईरान) पर चढ़ाई का हुक्म दिया, जिसके मुक़ाबिले में कसरा की चालीस हज़ार फ़ौज सामने आ खड़ी हुई . इसमें से एक तर्जुमान बाहर आया और पूछा 
"कौन लोग हो ? हमसे तुम्हारा मतलब क्या है? तुम में से कोई एक बहार आकर हम से कलाम करेगा ?
जवाब में मुग़ीरा नाम का एक सहाबी बाहर आया और बोला - - - 
क्या जानना चाहता है ?
उसने दर्याफ़्त किया, कौन लोग हो ?
मुग़ीरा बोला - - हम लोग अरब के रहने वाले हैं .
 हम लोग बड़ी तंग दस्ती और मुसीबत में थे .
 भूक के मारे चमड़े और खजूर की गुठलियाँ चूस चूस कर गुज़र अवक़ात किया करते थे। ऊन और बाल हमारी पोशाकें थीं। 
हम दरख्तों और पत्थरों की पूजा किया करते थे। 
ऐसे में अल्लाह ने अपनी जानिब से हम लोगों के लिए एक रसूल भेजा ,  उसी ने हम लोगों को तुम से लड़ने का हुक्म दिया .
उस वक़्त तक कि तुम एक अल्लाह की इबादत न करने लगो, 
या फिर हमें जजया देना क़ुबूल न करो .
उसी ने हमें परवर दिगार की तरफ़ से इत्तेला दी है कि जो जिहाद में क़त्ल हो जाएगा , वह जन्नत जाएगा और जो ज़िंदा रह जाएगा , वह तुम्हारी गर्दनों का मालिक होगा " 
*

इस हदीस में इस्लाम की सच्ची रूहे-बद समाई हुई है।मुग़ीरा का सीधा सादा और सच्चा बयान है।
(हालाँकि इसकी हक़ीक़त यह है कि सफ़र में यह एक क़बीले को धोका देकर उनका हम सफ़र बन गया था और उनका एतमाद हासिल करके रात में इनको क़त्ल कर दिया था। इनका तमाम माल लूट कर मुहम्मद के पास आकर इस शर्त पर मुसलमान हो गया था कि इसके लूट में किसी का कोई दख़ल न होगा। मुहम्मद ने इसकी शर्त मान ली थी और इसे मुसलमान बना लिया , क्योकि ऐसे लोगों की ही मुहम्मद को हमेशा ज़रुरत रही है .)
इस्लाम से पहले अरब अवाम के ऐसे ही हालात थे ,जैसा मुग़ीरा ने बयान किया, यहाँ तक कि वह अपनी बेटियों को ज़िन्दा दफ़्न कर दिया करते थे कि उनकी परवरिश मुहाल हुवा करती थी।
मुग़ीरा अपने क़ौम का माज़ी बयान करता है जिससे अब वह नजात पा चुका है। उनके हाल  पर अल्लाह का करम है कि वह जिहाद से खुश हाल हो गए हैं।
सवाल उठता है कि अरबों पर खुश हाली आई कहाँ से ?
दीगरों को बद हाल करके ?
या मुहम्मद ने फ़रिश्तों से कह कर इनकी खेतियाँ जुतवा दी थीं ? हक़ीक़त यह है कि मुहम्मद ने पहले अरबों को और बाद में मुसलमानों को पक्का क़ज़ज़ाक़ और लुटेरे बना दिया था। अफ़सोस कि मज़लूमों का कोई एक मुवर्रिख़  नहीं हुवा कि उनका मातम करने वाला होता और इस्लाम के लाखों टिकिया चोर मुवर्रिख़ और ओलिमा बैठे हुए हैं। 
माले-ग़नीमत ने मुसलमानों को मालामाल कर दिया।
कितना मासूमाना और शरीफ़ाना सवाल था उस कसरा फ़ौज के तर्जुमान का कि 
"कौन लोग हो ? हमसे तुम्हारा मतलब क्या है? 
और कितनी जारहय्यत थी इस्लाम की कि 
"ऐसे में अल्लाह ने अपनी जानिब से हम लोगों के लिए एक रसूल भेजा ,  उसी ने हम लोगों को तुम से लड़ने का हुक्म दिया .
उस वक़्त तक कि तुम एक अल्लाह की इबादत न करने लगो, 
या फिर हमें जजया देना क़ुबूल न करो .
उसी ने हमें परवर दिगार की तरफ़ से इत्तेला दी है कि जो जिहाद में क़त्ल हो जाएगा , वह जन्नत जाएगा और जो ज़िंदा रह जाएगा , वह तुम्हारी गर्दनों का मालिक होगा " 
ज़ाहिर है कोई भी हुक्मरान अपना आबाई दीन को तर्क कर के मुसलमान तो हो नहीं जाएगा।
और न थाली में सजाकर उन्हें जज़िया देने लगेगा . यह दोनों कम तो लूट मार के बाद ही हुवा करते थे।
इस तरह दुन्या में फैला इस्लाम जिसे कि आज कोर दबने पर इस्लामी आलिमान सैकुलर क़दरों का सहारा ले रहे हैं।
********

जीम. मोमिन 

Wednesday 30 September 2015

Hadeesi hadse 176


**********

हदीसी हादसे 64
बुख़ारी 1306
हमल में ही तक़दीर का लेखा जोखा 
"मुहम्मद  उम्मत से फ़रमाते हैं कि तुम में से हर एक का मादा ऍ पैदाइश अपनी मां के पेट में चालीस दिनों तक जम़ा रहता है। फिर चालीस दिनों तक लोथड़े की श़क्ल में रहता है, उसके बाद अल्लाह तअला एक फ़रिश्ता रवाना फरमाता है . इसे चार बातों के लिखने का हुक्म होता है। 
1-अमल
2- रिज्क 
3-उम्र 
4-नसीब 
(हालांकि 4 नसीब में ही सारी बातें आ सकती थीं, मगर मुहम्मदी अल्लाह की जितनी अक्ल है , उतनी ही बातें करता है।)
इसके बाद इस में रूह फूंक दी जाती है, लिहाज़ा आदमी जन्नतियों के अमल करता है , यहाँ तक कि जन्नत में और इस शख्स में एक हाथ का फासला रह जाता है कि इसकी तक़दीर ग़ालिब आकर इस से दोज़खयों के अमल पर इसको मजबूर कर देती है। एक शख्स दोज़खियों का अमल करता है और दोज़ख उस से सिर्फ एक हाथ के फासले पर रह जाती है कि इसकी तक़दीर ग़ालिब हो जाती है और उसे जन्नती बना देती है।"
* मेरी नानी एक कबित कहा करती थीं - - - 
"किह्यो न न्याव (न्याय ) न किह्यो अनुयाई ,
बिना किहेन लिख दिह्यो बुराई ."
किस क़द्र हठ धर्मी की तजवीजें हैं अल्लाह की। जब तकदीर में पहले से ही जन्नत और दोज़ख लिख रखी हैं तो कांधों पर नेक और बद अमल लिखने के लिए फ़रिश्ते क्यों बिठा रखे हैं?
किस क़द्र विरोधाभास है इस्लाम की इन बुनियादी बहसों में।
 कोई आलिम है जो इन दोहरे मेयारों का जवाब दे ? 
मगर नहीं लाखों ओलिमा हैं जो इस्लाम की ऐसी बातों का जवाब देने के लिए बैठे हैं। इनका काम इस्लाम की दलाली है जो इनके पेट का सवाल रखते हैं, इनके ईमान का नहीं।
दूसरी बात जिहालत और मन-गढ़ंत की, मुहम्मद पर ही दुरुस्त बैठती है कि 40+40=80 दिन मनी माँ के पेट में बेरूह और बेजान पड़ी रहती है।

नया पैग़म्बर बहा उल्लाह कहता है - - -
सचाई और ईमान दारी की किरन अपने मुंह पर चमकने दो ताकि सब को पता चले कि तुम्हारी बातें , काम और खुशियों के वक़्त क़ाबिले यक़ीन हैं।
अपने को भूल जाओ और सब के लिए काम करो।
मुस्लिम - - - किताबुल हुदूद 
मुहम्मद ने एक शख्स का हाथ काटा 
"अब्दुल्लह बिन उमर कहते हैं कि मुहम्मद ने खुद अपने हाथों से एक शख्स का हाथ काटा, सिपर की चोरी में,जिसकी क़ीमत तीन दरहम थी।"
मामूली सी चोरी पर इतनी बड़ी सज़ा कि खुद पैग़म्बर कहे जाने वाले शख्स ने जल्लाद की तरह मुजरिम का हाथ काट डाले. कैसे वह अपनी ज़िन्दगी काटेगा? कैसे काम करके अपनी और अपने बाल  बच्चों की रोज़ी कमाएगा ? किन के हाथों से खाएगा और किन हाथों से अपनी ग़लाज़त साफ़ करेगा?
इस मोह्सिने इंसानियत कहे जाने वाले ज़ालिम इंसान को इतना भी एहसास नहीं था कि भूख से मर रहे शख्स के पास,जिंदा रहने का कोई रास्ता नहीं होता , वह भी जब रोटी और रोज़ी किस क़द्र दुश्वार थी।
वह शख्स जो जिहाद के नाम पर रातों को बस्तियां लूटा करता था , इंसानी जानों को क़त्ल किया करता था, वह अपने माहौल में इंसाफ के नाटक करके खुद को इंसाफ का पैकर मानता था।


जीम. मोमिन 

Wednesday 23 September 2015

Hadeesi Hadse 175


*************

हदीसी हादसे 63


बुख़ारी  १ ३ ६ १  
बाबा इब्राहीम का ख़तना
मुहम्मद गढ़ते हैं कि 
" हज़रात इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अपना ख़तना अस्सी साल की उम्र में खुद अपने हाथों से एक कुल्हारी से मुकाम क़ुदूम में किया ."
* मुहम्मद ने अपना ख़तना कभी नहीं कराया और एलान किया कि मैं तो मख़तून पैदा ही हुवा हूँ . इनकी बात को तस्दीक़ नहीं करा सके लोग कि कौन शामत मोल ले ?
इस बात की गवाही उनकी बीवीयाँ, बांदियाँ और उनकी रखैलें दे सकती थीं मगर वह सब उनकी गुलामी में थीं .
यह माफ़ौक़ुल फितरत है कि कोई इंसान मख़तून पैदा हो। हाँ  कभी कभी किसी आज़ा में नुक्स होता है भी तो वह बात इसके जिस्म की कहानी बन कर समाज में फैल जाती है .
गोया उम्मत ए अक्दास के पैगम्बर तमाम उम्र जिस्मानी तौर पर काफ़िर और मुशरिक रहे जो उनके तमाम झूटों में मुजस्सम झूट कहा जा सकता है. 
ख़तना बहुत पुराना तरीका ए कार है जो यहूदियों में सदियों से चला आ रह है, जिसकी नक़्ल मुहम्मद ने बे चूँ चरा अपना लिया .
भारत में जब दंगे होते हैं तो पैंट उतार कर लिंग दिखलाना हिदू और मुसलमान दोनों की मजबूरियाँ बन जाती हैं .

बुख़ारी 1451
क़ुरैश परवर मुहम्मद कहते कहते हैं कि क़ुरैश का यह क़बीला हमें हलाक कर देगा . लोगों ने पूछा कि ऐसे वक़्त में हमें क्या करना चाहिए? जवाब था कि उस वक़्त लोग उन से परहेज़ करें तो बेहतर है।
*मुहम्मद ने अपने कबीले क़ुरैश के लिए ही तो पैगंबरी का नाटक रचा था, इसी लिए वह उनके लिए नर्म गोशा रखते थे हत्ता कि वह हमें मार दें मगर हम उनसे मुकाबिले में परहेज़ करें।
आज कुरैश ही आले रसूल बने हुवे हैं जिनके लिए हम दरूद ओ सलाम भेजा करते हैं, और वह हमें हिंदी मिस्कीन कहते हैं।
बुख़ारी 1452
क़ुरैशी कशमकश 
मुहम्मद कहते है मेरी उम्मत इन्हीं चंद क़ुरैशियों के हाथों हलाक होगी। अगर मैं चाहूं तो बतला सकता हूँ कि वह किनके किनके बेटे होंगे।
* मुहम्मद का नर्म गोशा अपने कबीले के लिए कितना तरफ़दार और जानिब दार है, हदीस से अंदाज़ा लगाया जा सकता है। सारी उम्मत दाँव पर होगी मगर क़बीले के दो फ़र्द उन सब पर भारी होंगे। मुहम्मद की जुबान उनका नाम लेने के लिए तय्यार नहीं।
मामूली चोरी पर एक मुअज्ज़िज़ खातून का हाथ कलम कर देने वाले अल्लाह के रसूल दो क़ुरैश नव जवानो के लिए इतने जानिब दार हैं कि अपनी उम्मत को ख़त्म होने जाने के लिए राज़ी हैं।
उनकी नबूवत की पेशीन गोई भी सच साबित नहीं हो पाई कि उम्मत तो अरबियों के तलवे चाट रही है।


जीम. मोमिन 

Wednesday 16 September 2015

Hadeesi Hadse 174


*************************

हदीसी हादसे 62
बुख़ारी 1307 
लासिल्की निज़ाम 
"मुहम्मद कहते हैं जब अल्लाह के नज़दीक कोई बन्दा महबूब होता है तो उसकी इत्तेला जिब्रील को दी जाती है कि जिब्रील फुलां बन्दे को अल्लाह महबूब रखता है, तू भी इसे महबूब रख. जिब्रील को वह बन्दा महबूब हो जाता है और वह आसमान में एलान करते हैं कि फुलां बन्दा को अल्लाह महबूब रखता है, तुम लोग भी इसे महबूब रख्खो. चुनांच अहले आसमान इसे महबूब रखते हैं। इसके बाद इसकी मकबूलियत ज़मीन पर कर दी जाती है और तमाम अहले ज़मीन इसे महबूब रखते हैं।" 
* इस साज़िशी हदीस में मुहम्मद ने अपनी तस्वीर जड़ी है कि अल्लाह ने उनको किस तरह से महबूब और मकबूल बनाया . मज़े की बात यह है कि इस साज़िश को मुस्लिम समाज अपने बच्चो को टोपी लगा कर पढ़ता है जो बड़े होकर इन बातों को महफ़िलों में दोहराया करते है। इसे अवाम कठ मुललई कहा करते हैं. ऐसी ख़ुराफ़ात जब हिदू समाज में यही कठ मुल्ले देखते हैं तो उनको शिर्क और बिदअत का शिकार मानते हैं।
ईसा की एक हदीस बतौर नमूना पेश है , 
दोनों नबियों का मुआजना करें - - -
"तुम बार बार सुनोगे, नहीं समझोगे. तुम बार बार देखोगे मगर तुम को सुझाई नहीं देगा। क्योंकि  इस रिआया की अक्ल कुंद हो चुकी है . यह लोग कान से ऊंचा सुनते हैं , उन्हों ने अपनी आँखें बंद कर ली हैं कि कहीं आँखों से देखने न लगें और कानों से सुनने न लगें कि मन से समझ कर कहीं फिर न जाएँ। मैं तुम से सच कहता हूँ कि बहुतेरे नबी और पैग़म्बर तरसते थे जो तुम देख रहे हो, इन्हें वह देखें मगर नहीं देखा और जो तुम सुन रहे हो, नहीं सुना "( मित्ती )
बुख़ारी 1308
आयशा की बेपर की 
आयशा कहती हैं कि उनके शौहर ने उनसे फ़रमाया कि जो बातें आसमान में तय होती हैं , उनको बादल के फ़रिश्ते आपस में तज़करा करते हैं, वहीँ से कुछ ख़बरें शयातीन चोरी से उड़ा ले जाते हैं और काहनों के कानों में डाल देते हैं , जो इसमें झूट मिला कर बयान करते हैं।
*मदरसों में मुसलमान बच्चे लाल बुझक्कड़ ही यह हदीसे, इन पर रिसर्च करते हैं, रिसर्च इस बात पर कि यह हदीस असली है या नकली। ऐसी इंसानी नस्लें क्या डाक्टर इंजीनियर के गर्द को भी पा सकते है?
लम्बा कुरता उटंग पैजामा हरी पगड़ी पर पड़ा अरबी रुमाल वाला दाढ़ी दार यह कार्टून मुस्लिम बसतियों में आम तौर पर देखे जा सकते हैं। वह बच्चों को ऐसी जिहालत पढ़ता है।
बुख़ारी 1310 
झूठे पैगम्बर की ओछी हरकत 
हदीस है कि मुहम्मद ने हस्सान बिन साबित से कहा,
"तुम ख़ुदा और रसूल की तरफ़ से कुफ़्फ़ार की हिज्जो (बुराई) किया करो . जिब्रील तुम्हारी एआनत (अवैध सहायता) करेंगे ।"
* लअनत है ऐसे रसूल अल्लाह पर जो फ़रिश्तों से नाजायज़ काम कराता हो। हस्सान बिन साबित शाइरी करता था जिसको मुहम्मद राय दे रहे है कि काफ़िरों को अपनी शाइरी में गरियाया करो इसमें फ़रिश्ते तुम्हारी नाजायज़ मदद करेगे।
मुसलमानों क्या तुमको इससे बड़ा सुबूत चाहिए की तुम्हारा रसूल कितना गिरा हुवा शख्स था।

जीम. मोमिन 

Wednesday 9 September 2015

Hadeesi Hadse 173


**********

हदीसी हादसे 61
मुस्लिम - - - किताबुल हुदूद 
दो चाहने वाले 
हदीस है कि मअज़ बिन मालिक असलमी मुहम्मद के पास आए और कहा 
" या रसूल अल्लाह हमने ज़ुल्म किया अपनी जान पर और ज़िना किया। 
आप मुझको पाक कीजिए "
 मुहम्मद ने इनको फेर (लौटा) दिया। इस तरह जब वह कई बार आए तो मुहम्मद ने लोगों को इनके पीछे लगा दिया कि पता करें कि इनको कोई ख़लल तो नहीं हो गया।लोगों ने पता किया और मुहम्मद को इत्तेला दी कि वह बिलकुल ठीक हैं।
मअज़ मुहम्मद के पास फिर दरख्वास्त लेकर आए , मुहम्मद ने लोगों को फिर पता लगाने के लिए भेजा कि इन्हें कोई बीमारी तो नहीं है? 
मालूम हुवा वह इकदम मुअत्दिल हैं।
इसके बाद जब मअज़ मुहम्मद के पास आए तो उन्हों ने एक गड्ढा खुदवाया और उनको दफ़्न का हुक्म दिया .
 इसी तरह एक औरत मुहम्मद पास आई और उसने कहा या रसूल अल्लाह मैं ने ज़िना किया मुझे पाक कीजिए . 
मुहम्मद ने इसे फेर दिया , कई बार फेरने के बाद फिर वह आई तो उसने एहतेजाज किया कि मअज़ की तरह उसे क्यूं टाला जा रहा है? ख़ुदा की क़सम मैं तो ज़िना से हमला भी हूँ। मुहम्मद ने कहा , अच्छा जा बच्चा जनने के बाद आना।
 इसने बच्चा जना और उसे कपड़े में लपेट कर मुहम्मद के पास आई और खुद को पाक करने की फ़रमाइश करने लगी . 
मुहम्मद ने कहा इसको दूध पिला, जब तक यह रोटी न खाने लगे। 
कुछ दिनों बाद वह बच्चे को लेकर मुहम्मद के पास आई कि बच्चे के हाथ में रोटी का टुकड़ा था। कहा या रसूल अल्लाह बच्चा खाने लगा है, अब मुझे पाक कीजिए .
मुहम्मद ने सीने तक गहरा एक गड्ढा खुदवाया, औरत उसमे दाखिल होकर दफ़्न हुई। 
पहला पत्थर उसे खालिद ने मारा, औरत के सर से खून जारी हुवा, धार खालिद के मुंह पर पड़ी तो वह औरत को बुरा भला कहने लगे, जो मुहम्मद के कानों तक गई - - - 
कहा ख़बरदार  ख़ालिद इसने ऐसी तौबा की है कि अगर महसूल लेने वाला ऐसी तौबा करे तो इसके गुनाह मुआफ़ हो जाएँ और मअज़ की तौबा एक उम्मत में बाटी जाए तो तो काफ़ी हो।
यह एक तस्वीर मुहम्मदी दौर की थी कि लोग कितने सादा लौह थे, कि मुहम्मद के बनाए हुए क़ानून पर निसार हो जाया करते थे, जब कि मुहम्मद खुद पक्के ज़िना कार थे और लोगों से कहते थे कि अल्लाह ने उनके अगले पिछले सभी गुनाह मुआफ़ कर रखा है। 
अफ़सोस कि लोग उनकी इस बात पर भी यक़ीन करते थे।
बुख़ारी 1311
मुहम्मद ने अपनी कमसिन बीवी से सामने पुडिया छोड़ी , बैठे बैठे कहने लगे ,
"आयशा जिब्रील तुमको सलाम कहते हैं।"
वालेकुम अस्सलाम कहते हुए आयशा कहती है '
'' जो चीज़ मुझको नज़र नहीं आती, आप कैसे देखते है?"
मुहम्मद ने आयशा को कैसे समझाया इसका ज़िक्र नहीं मगर ज़रूर किसी मकर से काम लिया होगा .
यही आयशा हदीस बुखारी 1171 में कहती हैं कि ,
" इनके शौहर ख़दक से जंग कर के आए, ग़ुस्ल से फ़ारिग़ हुए ही थे कि जिब्रील अलैहिस्सलाम नाज़िल हुए,
कहा या रसूल अल्लाह आपने हथ्यार खोल दिए हैं मगर मैं अभी तक बांधे हुए हूँ। 
मुहम्मद ने पूछा कहीं की जंग है?
जिब्रील ने कहा हाँ! बनू क़रीज़ा .
ग़रज़ मुहम्मद बनू क़रीज़ा की तरह निकल पड़े।
*इस हदीस में आयशा जिब्रील को देखती भी है और सुनती भी है 
अंधे बुखारी को भी दोनों हदीसों में ताजाद नज़र नहीं आया।
आयशा ने या इसके नाम से मनमानी हदीसें गढ़ी गई हैं।
देखिए कि मुसलमान इन झूटी हदीसों में कैसी झूटी ज़िन्दगी जी रहे हैं।

जीम. मोमिन