Sunday 29 March 2015

Hadeesi Haadse 36


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हदीसी हादसे 36
बुखारी 1212
मुहम्मद फरमाते हैं कि एक दिन ऐसा आएगा कि मुसलमानों की यहूदियों से जंग होगी, अगर कोई यहूदी पत्थर की आड़ में छिपा होगा तो पत्थर आवाज़ देगा कि 
"ऐ मुसलमानों ! इधर आओ , मेरी आड़ लिए एक यहूदी इधर छुपा हुआ है , आओ इसे हलाक कर दो ."
*मुसलमानों को वक़्त जो सजा दे रहा है , शायद वह जायज़ है . ऐसी हदीसों पर ईमान रखने और
"ख़त्म बुखारी शरीफ" 
करने वालों की सजा उनकी ज़िल्लत और रुसवाई होनी ही चाहिए .
अहमक रिसालत अगर सोचती है कि ईंट पत्थर उसके तरफदार होंगे तो उसका अल्लाह क्यों यहूदियों को बचने में लगा होगा ? उसके तो एक इशारे से तमाम यहूदी जिंदा दरगोर हो जाने चाहिए। ऐसी ही मुहम्मद की बातों का असर है कि यहूदी मुहम्मद की उम्मत को नेश्त नाबूद 
करने पर तुले हुए है।
मुसलमान पत्थरों के इशारे का इंतज़ार कर रहे है और यहूदी पत्थर को पीस कर सीमेंट 
बनाने में, ताकि वह फिलिस्तींयों की बस्तियों में यहूदी कालोनियां कायम कर सकें . 
मुसलमानों ! कब तक इस्लाम के दुम छल्ले बने रहोगे ? हिम्मत करो जागने की .
बुखारी 1213 
मुहम्मद की दीवानगी देखिए कि जिनके मुंह में वबसीर हो चुकी थी कि बोले बगैर उन्हें चैन नहीं पड़ता था।
फरमाते हैं कि एक दिन ऐसा आएगा कि मुसलमानों की लड़ाई एक ऐसी कौम से होगी कि जिसकी आँखें छोटी होंगी, नाक सुर्ख और बैठी हुई, गोया इनका चेहरा ऐसा होगा जैसे ढालें होती हैं.
कहते हैं उसी अय्याम में क़यामत बरपा होगी .
* गालिबन मुहम्मद ने किसी चीनी को देखा होगा और कयास आराई किया होगा . आप गौर करे कि क़यामत की पेशीन कोई हर पांचवें जुमले के बाद है चाहे वह कुरान हो या हदीसें। लोगों ने कुरान को नाम दिया है "क़यामत नामः"
लोग कहते हैं तो फिर ठीक ही कहते होंग्र। 
बुखारी 1215
चन्द यहूदी मुहम्मद के पास आए और उनको सलाम किया जिसमें दोहरे मानी छुपे हुए थे। मुहम्मद ने भी उनको दोहरे मानी वाला जवाब दिया , 
आयशा यहूदियों की इस हरकत पर बिफर गईं , 
मुहम्मद ने तजाहुले-आरफाना बरतते हुए कहा,,
क्या हुवा ? आयशा ने कहा सुना नहीं उनहोंने आप पर लअनत भेजते हुए सलाम किया था। मुहम्मद ने कहा तुमने नहीं सुना कि मैं ने भी उन्हें "वलैक - - - कहा था। (यानि तुम पर भी )
* ये है मुहम्मद के पैगम्बरी आदाब , कोई महात्मा अपने मुंह से ऐसे शब्द नहीं दोहराता . अगर वह वाकई अल्लाह के रसूल होते तो कहते 
"मगर तुम पर अल्लाह की रहमत हो।"
जैसा कि ईसा किया करते थे कि एक गाल पर तमाचा खाकर दूसरा गाल पेश कर दिया करते थे। 
बुखारी 1107
"मुहम्मद ने किसी दावत में गोह (गोहटा ) का गोश्त खाया - इब्न अब्बास कहते हैं अगर यह हराम होता तो मुहम्मद बयान करते "
*कबीलाई माहौल में हर बात की गुंजाईश है- खाया होगा कोई तअजजुब की बात नहीं। तअजजुब तो इन ज़मीर फ़रोश ओलिमा पर है जो ऐसी हदीसें भी माहौल को देख कर गढ़ते हैं - - -
"मुहम्मद सल ने कभी मांस को चख्खा नहीं . एक बार लोगों ने इसरार किया कि आप गोश्त चखिए ताकि उम्मत को आसान हो कि उनके प्यारे नबी ने भी गोश्त खाया। इस पर सल ने अपनी एक उंगली पर लम्बी परत की पट्टी बाँधी और उंगली को गोश्त के शोरबे में डुबो कर तर किया, फिर पट्टी खोल कर उंगली को चूसा , इस तरह मुसलामानों के लिए गोश्त हलाल किया।"
यह तक़रीर हिदू श्रोताओं के लिए गढ़ी गई जो मेरे कान में आई . 
हैरत का मुक़ाम है कि गोह खाने की गवाही खुद मुहम्मद के चाचा अब्बास देते हैं और मशहूर ज़माना है कि मुहम्मद को बकरे के सीने का गोस्त पसंद था, आज उनको एक शाकाहारी साबित किया जा रहा ई।
 
बुखारी 1219
"अबू हरीरा कहते हैं कि मुहम्मद ने मुझे किसी लश्कर में रवाना किया और कहा कि अगर कुरैश कबीले के दो फलां फलां लोग मिलें तो इनको आग में जला कर मार डालना । मैं रवानगी के वक़्त मुहम्मद से रुखसत के लिए पहुंचा तो उनहोंने अपना फैसला बदलते हुए कहा कि उनको आग से जल कर न मरना , यह सजा तो अल्लाह ही देता है, बस मार देना।"
*मुहम्मद अव्वल दर्जे के मुन्तकिम थे , इस बात की गवाह खुद उनकी बेगम आयशा कहती हैं कि
"सल ने कभी अपने ज़ाती मुआमले का बदला नहीं लिया मगर मुआमला अगर अल्लाह का हो तो अल्लाह के दुश्मन को कभी छोड़ा नहीं "
(बुखारी 1449)
गौर तलब है कि मुहम्मद दर परदा खुद अल्लाह बने हुए हैं, इस बात की गवाह कुरान और हदीसें हैं, अगर अकीदत की ऐनक उतार कर इन का इन का अध्यन किया जाए .
उपरोक्त दोनों नाम मुहम्मद को उस वक़्त के याद हैं जब मक्का में लोग इनका और इनके कुरान का मज़ाक़ उड़ाते थे और बाद में इनको ख़त्म कर देने का फैसला हुवा।
काश कि ये फितना उसी वक़्त मौत के हवाले हो जाता तो मुमकिन है मुसलमान कहे जाने वाली मखलूक आज दुन्या में सुर्ख रु होती।


जीम. मोमिन 

Wednesday 11 March 2015

Hadeesi Hadse 35


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हदीसी हादसे 35
बुखारी 1197
मुहम्मद अपने साथियों (सहाबी ए किराम) को बद दुआ देते हुए कहते हैं कि 
"खुदा करे दरहम ओ दीनार और चादरों के (लालची) यह लोग मर जाएँ कि जब तक इनको यह चीजें मिलती रहती हैं ये खुश रहते हैं और न मिले तो नाराज़ हो जाते हैं। खुदा करे यह औधे मुँह गिरें और इनको ऐसा कांटा लगे की जीते जी न निकले .
उस आदमी को खुश हो जाना चाहिए कि जो अपने घोड़े को लेकर मुजाहिदों के हमराह हो गया हो . वह जिहादी टुकड़ियों में सफे-आखिर में रहता कि कोई शोहरत नहीं रखता - - -.
मुहम्मद नूह की नकल में हैं जो अपनी उम्मत को कोसा काटा करते थे।  देखें कि जिन्हें वह सहाबी ए किराम कहा करते हैं , वह किस खसलत के हुवा करते थे। मुहम्मद की तबियत और फितरत का मुजाहिरा देखने को मिलता है  
ऐसे पैगम्बर की उम्मत क्या कभी सर सब्ज़ होगी ? ?

बुखारी 1203
मुहम्मद खुद सताई करते हुए कहते हैं कि एक वक़्त ऐसा भी आएगा कि जब जिहादी गिरोह मे से लोग एक दुसरे से पूछेंगे कि तुम में से कोई सहाबी भी है ? ऐसा शख्स मिल जाने पर उसे रहनुमाई दी जायगी और फतह हासिल होगी।
फिर एक वक़्त ऐसा आएगा कि जंग में लोग पूछेंगे कि क्या कोई ऐसा है जो रसूल्लिल्लाह के सहाबियों का हम असर हो यानी ताबई ? 
मिलने पर उसके हाथों फ़तेह होगी। इसी तरह घटते हुए वक़्त के मुताबिक उन बरकती हस्तियों के मार्फ़त मुसलमानों को फतुहत मिलती रहेंगी।
नाकिसुल अक्ल रसूल की पेशीन गोइयाँ उनके सर पर चढ़ कर मूतती हुई नज़र आती हैं। औलाद नारीना तो कोई थी ही नहीं, चहीते हसन और हुसैन के जिंदगी का अंजाम मुहम्मद के नवासे होने के नाते ऐसा हुआ कि मुसलमान आज तक सीना कूबी कर रहे है, हसन ने यज़ीद की गुलामी कुबूल कर के अय्याशियों का नमूना बने, उनकी मौत सूजाक जैसे मोहलिक मरज़ से हुई . हुसैन अपने भतीजे भांजे और मासूम औलादों को मोहरे बनाते हुए क़त्ल किए गए जिन के सर को लेकर बेटी ज़ैनब जुलूस निकलती रही . मुहम्मद का लगभ तमाम खानदान ही नेस्त नाबूद हो गया . सदियों से मुसलमान दुनिया के कोने कोने में कुत्ते बिल्ली की मौत मारे जा रहे हैं।

पेशीन गोई करते है ऐसा जैसे बड़े मुतबर्रक हस्ती उनकी रही हो। 

जीम. मोमिन 

Wednesday 4 March 2015

Hadeesi Hadse 34


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हदीसी हादसे 34
बुखारी 1172
मुहममद कहते हैं कि अल्लाह उन दो लोगों पर बहुत हँसता है जो जंग में लड़ते लड़ते शहीद हो जाते हैं। पहला वह जो अल्लाह की राह में जंग कर रहा हो और शहीद हो जाय , दूसरा वह जो इसके खिलाफ जंग करते हुए मरने से पहले कलमा पढ़ कर मुसलमान हो जाय। 
* अल्लाह न हँसता है न रोता है। मुहम्मद अल्लाह की दुम भी नहीं जानते. दर अस्ल मुहम्मद ज़माने को बेवकूफ बना कर खुद अल्लाह बने हुए हैं। इनको ख़ुशी होती है कि इनके दोनों हाथ में लड्डू रहे . मरने से पहले सारी आलम-इंसानियत, इस्लाम के ज़हर पीकर उनका शिकार हो जाए।
अगर तमाम दुनिया ही उनकी जिंदगी में मुसलमान हो गई होती तो जंग के लिए मुसलमानों के दो गिरोह बनाते और दोनों हक पर होते और पयंबरी दोनों की मुहम्मद के हाथ होती .
बुखारी 1185
मुहम्मद कहते हैं घोड़ों की पेशानी में खैर ओ बरकत , सवाब ओ गनीमत कयामत तक के लिए वदीयत कर दिया गया है।
* एक दूसरी हदीस ( बुखारी 1191) में हज़रत कहते हैं कि घोड़े में नहूसत की अलामत होती है।
 इनकी किस बात को सच माना जाए और किसे झूट ? हमेशा इनके क़ौल ेंतज़ाद (विरोधा भाष)  रहता है गरज उम्मत हमेशा ही तज़ादों भरी ज़िन्दगी गुज़रती है, जिसे कठ मुल्ले मिसाल देते है कि 
"हुज़ूर ने अगर ये कहा है तो यह भी तो कहा है" .
घोड़ों का काम ज्यादह हिस्सा जंगी ज़रूरतों में पेश आता है जिसके तहत फतह की बात न करके मुहम्मद गनीमत ( लूट का माल ) की बात करते है,
 किस कद्र मॉल ओ मता के कायल थे वह, चाहे वह लूट पाट से ही क्यों न मिले . क्या यह किसी पैगम्बर के शायान ए शान है ?
बुखारी 1187
कठ मुल्ले और चुगद , अल्लाह में मफरूज़ा रसूल,कहते हैं जो शख्स जिहाद के लिए अपने घोड़े देगा , अल्लाह उसके घोड़े का खाना पीना और उसके लीद गोबर को वज़न करके उसके सवाब को उसके हिसाब बढ़ा देगा।
*मुसलमानों तुम्हारा अल्लाह क्या क्या करता है ? लीद और गोबर तोलता रहता है ? क्या तुमको इन बातों से घिन और ग़ैरत नहीं आती ? 
इसी रसूल ने कुरान गढ़ा है जिसमे इस से भी ज्यादह ग़लीज़ तरीन बातें हैं।
बुखारी 1191
मुहम्मद कहते हैं कि अगर नहूसत का वजूद होता तो तीन चीजों में होता - - -
माकन औरत और घोडा .
*मुसलमान काफिरों की इन बातों को बिदअत कहते हैं और उनको कमतर समझते है . उनका रसूल इन्हीं बिदअतों को क़यास ए करीं बतला रहा है।
सूरह नास और सूरह फलक तो इस्लाम की बिदअती सुतून हैं जिनमें बीमार मुहम्मद जादू टोना और गंदा बाँधने वाली यहूदनों से पनाह मांगते हैं।

जीम. मोमिन