Wednesday 31 October 2012

All Rounder



आल राउंडर

इक वकेया पुर सोज़ सुनाता मुसाफिर 
सर शर्म से झुक जाय अगर उठ न सके फिर 
कज्ज़ाक मुसलमानों की टोली थी सफ़र में
छः साल का इक बच्चा उन्हें आया नज़र में 

अगवा किया उसे बगरज़ माल ए ग़नीमत 
बेचा मदीने में मुहम्मद ने दी कीमत 
था नाम उसका ज़ैद ,पिदर उसका हारसा  
माँ बाप का दुलारा गुलामी में अब बंधा.

बेटे के गम हारसा   पागल सा हो गया 
सदमा   लगा उसे कि मेरा ज़ैद खो गया.
रो रो के पढता रहता जुदाई का मर्सिया 
हर इक से पूछता था गुम   ज़ैद का पता 

"लखते जिगर को देख भी पाऊँगा जीते जी"
गिरया पे उसके रोती थी गैरों की आंख भी. 
माहौल को रुलाए थी फरयाद ए हारसा   
इक रोज़ उसको मिल ही गया ज़ैद का पता 
पूछा किसी ने हारसा तू क्यूं उदास है 
मक्के में तेरा लाल मुहम्मद के पास है .


भाई को ले के  हारसा  मक्के का रुख किया   
जो हो सका फिरौती के असबाब कर लिया
देखा जो उसने ज़ैद को बढ़ के लिपट गया 
खुद पाके ज़ैद बाप व् चचा से चिमट गया 

हज़रात से हारसा ने रिहाई कि बात की 
हज़रात ने कहा ज़ैद की मर्ज़ी भी जान ली ?
जब ज़ैद ने रिहाई से इंकार कर दिया 
बढ़ कर नबी ने गोद में उसको उठा लिया.

बेटा हुआ तू मेरा यह अल्लाह गवाह है 
मैं बाप हुवा ज़ैद का मक्का हुवा गवाह है.
कुर्बान बाप को किया, वास्ते नबी, 
उस घर में जवान हुवा  ज़ैद अजनबी. 


क़ल्ब ए सियाह बाप के मज्मूम हैं सुलूक ,
देखें कि ज़ैद को दिए हैं किस तरह हुकूक़.
मासूम था, नादान   था, बालिग न था अभी ,
ऐमन के साथ अक़्द में बांधा था तभी .

आमिना की लौंडी थी ऐमन-ए- हब्शी ,
रंगीले मुहम्मद से बस थोड़ी सी बड़ी. 
छोटी थी ख़दीजा जो थीं हज़रात की जोरू मां.
इक बेटा जना उसने था नाम ओसामा,


तेरा बरस में ज़ैद ओसामा का बाप था,
तारीख़ है, ओसामा मुहम्मद का पाप था.
ओसामा बड़ा होके मुहम्मद को था अज़ीज़,
सहाबिए कराम था मुस्लिम का बा तमीज़ 


 फिर शादी हुई ज़ैद की जैनब बनी दुल्हन,
रिश्ते में वह नबी की फुफी ज़ाद थीं बहन . 
इक रोज़ दफअतन घुसा ज़ैद घर में जब, 
जैनब को देखा बाप के जांगों में पुर तरब . 

काटो तो उसके खून न था ऐसा हाल था,
धरती में पांव जम गए उठना मुहाल था. 
मुंह फेर के वह पलता तो बहार निकल गया 
फिर घर में अपने उसने कभी न क़दम रखा 


"ऐमन की तरह चलने दे दोनों का सिलसिला" 
हज़रत ने उसको लाख पटाया ,वह न पटा 


इस्लाम में निकाह के कुछ एहतमाम हैं 
अज़वाज के लिए कई रिश्ते हराम हैं 
जैसे कि खाला फूफी चची और मामियां 
भाई बहन कीबेटीयां बहुओं की हस्तियाँ 

बदबू समाज उठी मज़्मूम फेल की
चर्चा समाज में थी जैनब रखैल की 
बुड्ढ़े के बीवियाँ मौजूद चार थीं
फिर भी हवस में उसको बहु बेटियाँ मिलीं 


लेकिन कोई भी ढीठ पयम्बर सा था कहीं 
लोगों की चे मे गोइयाँ रुकवा दिया वहीँ. 
एलान किया जैनब मंकूहा है मेरी 
है रिश्ता आसमान का महबूबा है मेरी 
जैनब का मेरे साथ फलक पर ही था निकाह 
अल्लाह मियाँ थे क़ाज़ी तो जिब्रील थे गवाह. 


जिब्रील लेके पहुंचे वह्यी, जो कि जाल है.
मुंह बोले ,गोद लिए की बीवी हलाल है. 

खौफ़ था खिलक़त का न अल्लाह मियाँ का डर,
जिन्स की दुन्या थे, वह आल राउंडर . .     




जीम. मोमिन 

Tuesday 23 October 2012

Aaeena-e-Naboovat


बकरीद

आज बकरीद है. धार्मिक अंध विश्वास के तहत आज क़ुरबानी का दिन है. अल्लाह को प्यारी है, क़ुरबानी. अब अगर अल्लाह ही किसी अनैतिक बात को पसंद करता हो, तो बन्दे भला कैसे उसको राज़ी करने का भर पूर मुजाहिरा करेंगे, भले ही यह हिमाक़त का काम क्यूं हो. वैसे अल्लाह को क़ुरबानी अगर प्यारी है तो मुस्लमान अपनी औलादों की कुर्बानी किया करे. जानवरों की क़ुरबानी कोई बलिदान है क्या? क़ुरबानी की कहानी ये है कि बाबा इब्राहीम की कोई औलाद थी. उनकी पत्नी जवानी पार करने के हद पर आई तो उसने अपने शौहर को राय दिया की वह मिसरी लोंडी हाजरा को उप पत्नी बना ले ताकि वह उसकी औलाद से अपना वारिस पा सके.उसके बाद हाजिरा हमला हुई और इस्माईल पैदा हुए, मगर हुवा यूं कि उसके बाद वह खुद हामिला हुई और इशाक पैदा हुवा. इसके बाद सारा हाजिरा और उसके बेटे से जलने लगी. सारा ने हाजिरा से ऐसी दुश्मनी बाँधी कि पहली बार हामला हाजिरा को घर से बाहर कर दिया. वह लावारिस दर बदर मारी मारी फिरी और आख़िर सारा से माफ़ी मांगी और घर दाखिल हुई. जब इस्माईल पैदा हुवा तो सारा और भी कुढने लगी इसके बाद जब खुद इशाक की माँ बनी तो एक दिन अपने शौहर को इस बात पर अमादा कर लिया कि वह हाजिरा के बेटे को अल्लाह के नाम पर क़त्ल कर दे. इब्राहीम राज़ी हो गया मगर उसके दिल में कुछ और ही था. वह अलने बेटे इस्माईल को लेकर घर से दूर एह पहाड़ी पर ले गया, रास्ते में एक दुम्बा भी खरीद लिया और इस्माईल की क़ुरबानी को एक घटना बतलाया "इस्माईल की जगह अल्लाह ने दुम्बा ला खड़ा किया" जो आज क़ुरबानी के रस्म की सुन्नत बन गई है. इस नाटक से दोनों बीवियों को इब्राहीम ने साध लिया.
जब इब्राहीम ने अपने बेटे की क़ुरबानी दी तो अकेले वह थे और उनका अल्लाह, बेटा मासूम था गोदों में खेलने की उसकी उम्र थी. यानि कोई गवाह नहीं था सिर्फ अल्लाह के जो अभी तक अपने वजूद को साबित करने में नाकाम है, जैसे कि तौरेत, इंजील और कुरान के मानिंद उसे होना चाहिए. दीगर कौमें वक़्त के साथ साथ इस क़ुरबानी के वाक़िए को भूल गईं जो इब्राहीम ने अपने दो बीवियों के झगडे का एक हल निकाला , मगर मुसलामानों ने इसको उनसे उधार लेकर इस फ़ितूर पर क़ायम हैं. हिदुस्तान मे भी ये पशु बलि और नर बलि की कुप्रथा थी, मगर अब ये प्रथा जुर्म बन गई है. कहीं कोई देव इब्राहीम नुमा नहीं बचा कि उसकी कहानी की मान्यता क़ायम हो.
 





जीम. मोमिन  

Wednesday 3 October 2012

Hadeesi Hadse 55


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अंडे में इनक़्लाब

इंसानी जेहन जग चुका है और बालिग़ हो चुका है. इस सिने बलूगत की हवा शायद ही आज किसी टापू तक न पहुँची हो, वगरना रौशनी तो पहुँच ही चुकी है, यह बात दीगर है कि नसले-इंसानी चूजे की शक्ल बनी हुई अन्डे के भीतर बेचैन कुलबुलाते हुए, अंडे के दरकने का इन्तेज़ार कर रही है. मुल्कों के हुक्मरानों ने हुक्मरानी के लिए सत्ता के नए नए चोले गढ़ लिए हैं. कहीं पर दुन्या पर एकाधिकार के लिए सिकंदारी चोला है तो कहीं पर मसावात का छलावा.
 धरती के पसमांदा टुकड़े बड़ों के पिछ लग्गू बने हुए है. हमारे मुल्क भारत में तो कहना ही क्या है! कानूनी किताबें, जम्हूरी हुकूक, मज़हबी जूनून, धार्मिक आस्थाएँ , आर्थिक लूट की छूट एक दूसरे को मुँह बिरा रही हैं. ९०% अन्याय का शिकार जनता अन्डे में क़ैद बाहर निकलने को बेकरार है, १०% मुर्गियां इसको सेते रहने का आडम्बर करने से अघा ही नहीं रही हैं. गरीबों की मशक्क़त ज़हीन बनियों के ऐश आराम के काम आ रही है, भूखे नंगे आदि वासियों के पुरखों के लाशों के साथ दफन दौलत बड़ी बड़ी कंपनियों के जेब में भरी जा रही है और अंततः ब्लेक मनी होकर स्विज़र लैंड के हवाले हो रही है. हजारों डमी कंपनियाँ जनता का पैसा बटोर कर चम्पत हो जाती हैं. किसी का कुछ नहीं बिगड़ता. लुटी हुई जनता की आवाज़ हमें गैर कानूनी लग रही हैं और मुट्ठी भर सियासत दानों , पूँजी पतियों, धार्मिक धंधे बाजों और समाज दुश्मनों की बातें विधिवत बन चुकीहैं. कुछ लोगों का मानना है कि आज़ादी हमें नपुंसक संसाधनों से मिली, जिसका नाम अहिंसा है.सच पूछिए तो आज़ादी भारत भूमि को मिली, भारत वासियों को नहीं. कुछ सांडों को आज़ादी मिली है और गऊ माता को नहीं. जनता जनार्दन को इससे बहलाया गया है. इनक़्लाब तो बंदूक की नोक से ही आता है, अब मानना ही पड़ेगा, वर्ना यह सांड फूलते फलते रहेंगे. स्वामी अग्निवेश कहते हैं कि वह चीन गए थे वहां उन्हों ने देखा कि हर बच्चा गुलाब के फूल जैसा सुर्ख और चुस्त है. जहाँ बच्चे ऐसे हो रहे हों वहां जवान ठीक ही होंगे. कहते है चीन में रिश्वत लेने वाले को, रिश्वत देने वाले को और बिचौलिए को एक साथ गोली मारदी जाती है. भारत में गोली किसी को नहीं मारी जाती चाहे वह रिश्वत में भारत को ही लगादे. दलितों, आदि वासियों, पिछड़ों, गरीबों और सर्व हारा से अब सेना निपटेगी. नक्सलाईट का नाम देकर ९०% भारत वासियों का सामना भारतीय फ़ौज करेगी, कहीं ऐसा न हो कि इन १०% लोगों को फ़ौज के सामने जवाब देह होना पड़े कि इन सर्व हारा की हत्याएं हमारे जवानों से क्यूं कराई गईं? और हमारे जवानों का खून इन मजलूमों से क्यूं कराया गया? चौदह सौ साल पहले ऐसे ही धांधली के पोषक मुहम्मद हुए और बरबरियत के क़ुरआनी कानून बनाए जिसका हश्र आज यह है कि करोड़ों इंसान वक्त की धार से पीछे, खाड़ियों, खंदकों, पोखरों और गड्ढों में रुके पानी की तरह सड़ रहे हैं। वह जिन अण्डों में हैं उनके दरकने के आसार भी ख़त्म हो चुके हैं. कोई चमत्कार ही उनको बचा सकता है. 
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बुखारी १०६४ 
मुहम्मद कहते हैं क़यामत के दिन ईमान दारों को दोज़ख और जन्नत के दरमियाँ एक पुल पर खड़ा किया जायगा. वह जब दुन्या के मज़ालिम को आपस में अदला बदली करके पाक साफ़ हो जाएँगे तो उस वक़्त उनको जन्नत में दाखिल किया जाएगा. इस मौके पर मुहम्मद ग़ैर ज़रूरी क़सम भी खाते हैं 
"उस ज़ात की क़सम कि जिसके क़ब्ज़ा ए कुदरत में मुहम्मद की जान है, कि इन्सान अपने अपने मकानों को दुन्या के मकानों से ज्यादा पहचानता होगा" 
* गोया स्टोक एक्सचंज का नकशा पेश करते हुए मज़ालिम की अदला बदली करने के बाद पाक साफ़ हो जाएँगे? कैसे भला ?कोई उम्मी के दिमागी कैफियत समझ सके तो मुझे भी समझाए. मुहम्मद इतनी बड़ी क़सम, ज़रा सी बात के लिए. बड़े झूट के लिए है बड़ी कसमों की ज़रुरत. 

बुखारी १०६५ 

ऐसी ही एक हदीस है कि क़यामत के दिन अल्लाह मुस्लमान को अपने करीब बुलाएगा और उसके साथ खुसुर फुसुर करेगा कि तूने यह यह गुनाह किए थे जो ज़ाहिर न हो सके और मुस्लमान हरेक गुनाह का एतराफ कर लेगा. अल्लाह सब गुनाहों को मुआफ करता हुवा उसकी की गई नेकियों की किताब उसके हाथ में रक्खेगा जो काफिरों और मुनाफेकीन पर गवाही होगी कि ये लोग हैं जिन्हों ने अल्लाह के हक में झूट बोला था. 
याद रख्खो ज़ुल्म करने वालों पर अल्लाह की लअनत है. 

* मुसलमानों! 
कोई क़यामत ऐसी नहीं होगी जिसमे दुन्या की रोज़े अव्वल से ल्रकर आज तक की आबादी इकठ्ठा होगी और अल्लाह फर्दन फर्दन मुसलमानों से काना फूसी करेगा. 
मुहम्मद और उनका अल्लाह उनकी बेहूदा कुरानी बातों को न मानने वालों को ज़ालिम कहते हैं और जिहाद जैसे ज़ुल्म को नेकी कहते हैं. इनके जाल से बहार निकलें.
बुख़ारी १०६६

मुहम्मद कहते हैं कि मुसलमान एक दूसरे के भाई हैं. इनको चाहिए कि एक दूसरे लो ईज़ा न पहुँचाए, इस पर ज़ुल्म करने पर आमदः न हो. अपने किसी भाई की हाजत में कोशां रहे, अल्लाह तअला क़यामत के रोज़ उसकी पर्दा पोशी करेगा - - -
*इस दुन्या को तअस्सुब और जानिब दारी इस्लाम ने सब से ज़्यादा सिखलाई है, उल्टा मुसलमान दीगरों को तअस्सुबी कहने में पेश पेश रहता है. यह वबा आलमी पैमाने पर फैली हुई है. मुसलमानों को झूठे तरीके समझाने वाला खुद अपनों का शिकार देखा गया है. मुसलमान जहाँ भी काबिज़ है हमेशा आपस में जंग ओ जदाल में मुब्तिला रहते हैं. मुहम्मद अपने साथ साथ अपने अल्लाह की भी मिटटी पिलीद किए हुए हैं. देखिए कहते हैं 
"अल्लाह तअला क़यामत के रोज़ उसकी पर्दा पोशी करेगा"
पर्दा पोशी ऐबों की की जाती है जो अल्लाह करेगा.



जीम. मोमिन