
बांग-ए-दरा
ज़रा सी तब्दीली
भारत उप महाद्वीप के 60 करोर मुसलमान मनुवाद के महा जाल से मुक्त, इस्लाम के छोटे जाल में फंस कर रह गए हैं.
यह आकाश से गिर कर खजूर में अटके हुए लोग हैं.
मुसलमानों ने जिस तरह भी मनु वाद से मुक्ति पाई हो,
सामजिक दबाव से, स्व -चिंतन से या और किसी करण से,
उनके हक में अच्छा ही हुवा.
मनुवाद की ज़िल्लत भरी ज़िन्दगी से नजात मिली.
मुसलामानों को एक बार और जिसारत करनी होगी कि वह मुस्लिम से मोमिन हो जाएं. कोई बड़ी तब्दीली करनी नहीं पड़ेगी,
बस बेदारी की ज़रुरत है. इस्लामी अकीदत को तर्क कर के,
ईमानी हकीक़त को अपना लें,
इसमें खुद इनका ही भला न नहीं बल्कि मनुवाद के अन्धकार को भी रौशनी की किरण मिलेगी. उनका अस्तित्व भी दुश्वार हो जाएगा.
ईमान क्या है ? वह सच जिसकी गवाह कुदरत हो,
लौकिक सत्य, आलमी सदाक़त.
इस्लाम कल्पित सत्य नहीं बल्कि कल्पित मिथ्य है.
इस्लाम को मुसलामानों के हलक में घुट्टी की तरह पिलाया गया है.
मनुवाद हिदुओं के चेहरों पर पाथा गया गोबर है.
इससे निकलना बहुत ही आसान है.
60 करोर मुसलमान इसी गलाज़त से निकले हुए लोग है.
अल्लाह बनाम कुदरत
अल्लाह कुछ और नहीं यही कुदरत है, कहीं और नहीं, सब तुम्हारे सामने मौजूद है अल्लाह के नाम से जितने नाम सजे हुए हैं सब तुम्हारा वह्म है और साज़िश्यों की तलाश है .
कुदरत जितना तुम्हारे सामने मौजूद है उससे कहीं ज्यादा तुम्हारे नज़र और जेहन से परे है. उसे साइंस तलाश कर रही है. जितना तलाशा गया है वही सत्य है,बाकी सब इंसानी कल्पनाएँ हैं .
आदनी आम तौर पर अपने पूज्य की दासता चाहता है,
ढोंगी पूज्य पैदा करते रहते हैं और हम उनके जाल में फंसे रहते हैं.
हमें दासता ही चाहिए तो अपनी ज़मीन की दासता करे, इसे सजाएं, संवारें.
इसमें ही हमारे पीढ़ियों का भविष्य निहित है.
मन की अशांति का सामना एक पेड़ की तरह करें जो झुलस झुलस कर धूप में खड़ा रहता है, वह मंदिर और मस्जिद नहीं ढूंढता, आपकी तरह ही एक दिन मर जाता है .
हमें खुदाई हकीकत को समझने में अब देर नहीं करनी चाहिए,
वहमों के ख़ुदा इंसान को अब तक काफी बर्बाद कर चुके हैं, अब और नहीं।
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