Wednesday 30 September 2015

Hadeesi hadse 176


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हदीसी हादसे 64
बुख़ारी 1306
हमल में ही तक़दीर का लेखा जोखा 
"मुहम्मद  उम्मत से फ़रमाते हैं कि तुम में से हर एक का मादा ऍ पैदाइश अपनी मां के पेट में चालीस दिनों तक जम़ा रहता है। फिर चालीस दिनों तक लोथड़े की श़क्ल में रहता है, उसके बाद अल्लाह तअला एक फ़रिश्ता रवाना फरमाता है . इसे चार बातों के लिखने का हुक्म होता है। 
1-अमल
2- रिज्क 
3-उम्र 
4-नसीब 
(हालांकि 4 नसीब में ही सारी बातें आ सकती थीं, मगर मुहम्मदी अल्लाह की जितनी अक्ल है , उतनी ही बातें करता है।)
इसके बाद इस में रूह फूंक दी जाती है, लिहाज़ा आदमी जन्नतियों के अमल करता है , यहाँ तक कि जन्नत में और इस शख्स में एक हाथ का फासला रह जाता है कि इसकी तक़दीर ग़ालिब आकर इस से दोज़खयों के अमल पर इसको मजबूर कर देती है। एक शख्स दोज़खियों का अमल करता है और दोज़ख उस से सिर्फ एक हाथ के फासले पर रह जाती है कि इसकी तक़दीर ग़ालिब हो जाती है और उसे जन्नती बना देती है।"
* मेरी नानी एक कबित कहा करती थीं - - - 
"किह्यो न न्याव (न्याय ) न किह्यो अनुयाई ,
बिना किहेन लिख दिह्यो बुराई ."
किस क़द्र हठ धर्मी की तजवीजें हैं अल्लाह की। जब तकदीर में पहले से ही जन्नत और दोज़ख लिख रखी हैं तो कांधों पर नेक और बद अमल लिखने के लिए फ़रिश्ते क्यों बिठा रखे हैं?
किस क़द्र विरोधाभास है इस्लाम की इन बुनियादी बहसों में।
 कोई आलिम है जो इन दोहरे मेयारों का जवाब दे ? 
मगर नहीं लाखों ओलिमा हैं जो इस्लाम की ऐसी बातों का जवाब देने के लिए बैठे हैं। इनका काम इस्लाम की दलाली है जो इनके पेट का सवाल रखते हैं, इनके ईमान का नहीं।
दूसरी बात जिहालत और मन-गढ़ंत की, मुहम्मद पर ही दुरुस्त बैठती है कि 40+40=80 दिन मनी माँ के पेट में बेरूह और बेजान पड़ी रहती है।

नया पैग़म्बर बहा उल्लाह कहता है - - -
सचाई और ईमान दारी की किरन अपने मुंह पर चमकने दो ताकि सब को पता चले कि तुम्हारी बातें , काम और खुशियों के वक़्त क़ाबिले यक़ीन हैं।
अपने को भूल जाओ और सब के लिए काम करो।
मुस्लिम - - - किताबुल हुदूद 
मुहम्मद ने एक शख्स का हाथ काटा 
"अब्दुल्लह बिन उमर कहते हैं कि मुहम्मद ने खुद अपने हाथों से एक शख्स का हाथ काटा, सिपर की चोरी में,जिसकी क़ीमत तीन दरहम थी।"
मामूली सी चोरी पर इतनी बड़ी सज़ा कि खुद पैग़म्बर कहे जाने वाले शख्स ने जल्लाद की तरह मुजरिम का हाथ काट डाले. कैसे वह अपनी ज़िन्दगी काटेगा? कैसे काम करके अपनी और अपने बाल  बच्चों की रोज़ी कमाएगा ? किन के हाथों से खाएगा और किन हाथों से अपनी ग़लाज़त साफ़ करेगा?
इस मोह्सिने इंसानियत कहे जाने वाले ज़ालिम इंसान को इतना भी एहसास नहीं था कि भूख से मर रहे शख्स के पास,जिंदा रहने का कोई रास्ता नहीं होता , वह भी जब रोटी और रोज़ी किस क़द्र दुश्वार थी।
वह शख्स जो जिहाद के नाम पर रातों को बस्तियां लूटा करता था , इंसानी जानों को क़त्ल किया करता था, वह अपने माहौल में इंसाफ के नाटक करके खुद को इंसाफ का पैकर मानता था।


जीम. मोमिन 

Wednesday 23 September 2015

Hadeesi Hadse 175


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हदीसी हादसे 63


बुख़ारी  १ ३ ६ १  
बाबा इब्राहीम का ख़तना
मुहम्मद गढ़ते हैं कि 
" हज़रात इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अपना ख़तना अस्सी साल की उम्र में खुद अपने हाथों से एक कुल्हारी से मुकाम क़ुदूम में किया ."
* मुहम्मद ने अपना ख़तना कभी नहीं कराया और एलान किया कि मैं तो मख़तून पैदा ही हुवा हूँ . इनकी बात को तस्दीक़ नहीं करा सके लोग कि कौन शामत मोल ले ?
इस बात की गवाही उनकी बीवीयाँ, बांदियाँ और उनकी रखैलें दे सकती थीं मगर वह सब उनकी गुलामी में थीं .
यह माफ़ौक़ुल फितरत है कि कोई इंसान मख़तून पैदा हो। हाँ  कभी कभी किसी आज़ा में नुक्स होता है भी तो वह बात इसके जिस्म की कहानी बन कर समाज में फैल जाती है .
गोया उम्मत ए अक्दास के पैगम्बर तमाम उम्र जिस्मानी तौर पर काफ़िर और मुशरिक रहे जो उनके तमाम झूटों में मुजस्सम झूट कहा जा सकता है. 
ख़तना बहुत पुराना तरीका ए कार है जो यहूदियों में सदियों से चला आ रह है, जिसकी नक़्ल मुहम्मद ने बे चूँ चरा अपना लिया .
भारत में जब दंगे होते हैं तो पैंट उतार कर लिंग दिखलाना हिदू और मुसलमान दोनों की मजबूरियाँ बन जाती हैं .

बुख़ारी 1451
क़ुरैश परवर मुहम्मद कहते कहते हैं कि क़ुरैश का यह क़बीला हमें हलाक कर देगा . लोगों ने पूछा कि ऐसे वक़्त में हमें क्या करना चाहिए? जवाब था कि उस वक़्त लोग उन से परहेज़ करें तो बेहतर है।
*मुहम्मद ने अपने कबीले क़ुरैश के लिए ही तो पैगंबरी का नाटक रचा था, इसी लिए वह उनके लिए नर्म गोशा रखते थे हत्ता कि वह हमें मार दें मगर हम उनसे मुकाबिले में परहेज़ करें।
आज कुरैश ही आले रसूल बने हुवे हैं जिनके लिए हम दरूद ओ सलाम भेजा करते हैं, और वह हमें हिंदी मिस्कीन कहते हैं।
बुख़ारी 1452
क़ुरैशी कशमकश 
मुहम्मद कहते है मेरी उम्मत इन्हीं चंद क़ुरैशियों के हाथों हलाक होगी। अगर मैं चाहूं तो बतला सकता हूँ कि वह किनके किनके बेटे होंगे।
* मुहम्मद का नर्म गोशा अपने कबीले के लिए कितना तरफ़दार और जानिब दार है, हदीस से अंदाज़ा लगाया जा सकता है। सारी उम्मत दाँव पर होगी मगर क़बीले के दो फ़र्द उन सब पर भारी होंगे। मुहम्मद की जुबान उनका नाम लेने के लिए तय्यार नहीं।
मामूली चोरी पर एक मुअज्ज़िज़ खातून का हाथ कलम कर देने वाले अल्लाह के रसूल दो क़ुरैश नव जवानो के लिए इतने जानिब दार हैं कि अपनी उम्मत को ख़त्म होने जाने के लिए राज़ी हैं।
उनकी नबूवत की पेशीन गोई भी सच साबित नहीं हो पाई कि उम्मत तो अरबियों के तलवे चाट रही है।


जीम. मोमिन 

Wednesday 16 September 2015

Hadeesi Hadse 174


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हदीसी हादसे 62
बुख़ारी 1307 
लासिल्की निज़ाम 
"मुहम्मद कहते हैं जब अल्लाह के नज़दीक कोई बन्दा महबूब होता है तो उसकी इत्तेला जिब्रील को दी जाती है कि जिब्रील फुलां बन्दे को अल्लाह महबूब रखता है, तू भी इसे महबूब रख. जिब्रील को वह बन्दा महबूब हो जाता है और वह आसमान में एलान करते हैं कि फुलां बन्दा को अल्लाह महबूब रखता है, तुम लोग भी इसे महबूब रख्खो. चुनांच अहले आसमान इसे महबूब रखते हैं। इसके बाद इसकी मकबूलियत ज़मीन पर कर दी जाती है और तमाम अहले ज़मीन इसे महबूब रखते हैं।" 
* इस साज़िशी हदीस में मुहम्मद ने अपनी तस्वीर जड़ी है कि अल्लाह ने उनको किस तरह से महबूब और मकबूल बनाया . मज़े की बात यह है कि इस साज़िश को मुस्लिम समाज अपने बच्चो को टोपी लगा कर पढ़ता है जो बड़े होकर इन बातों को महफ़िलों में दोहराया करते है। इसे अवाम कठ मुललई कहा करते हैं. ऐसी ख़ुराफ़ात जब हिदू समाज में यही कठ मुल्ले देखते हैं तो उनको शिर्क और बिदअत का शिकार मानते हैं।
ईसा की एक हदीस बतौर नमूना पेश है , 
दोनों नबियों का मुआजना करें - - -
"तुम बार बार सुनोगे, नहीं समझोगे. तुम बार बार देखोगे मगर तुम को सुझाई नहीं देगा। क्योंकि  इस रिआया की अक्ल कुंद हो चुकी है . यह लोग कान से ऊंचा सुनते हैं , उन्हों ने अपनी आँखें बंद कर ली हैं कि कहीं आँखों से देखने न लगें और कानों से सुनने न लगें कि मन से समझ कर कहीं फिर न जाएँ। मैं तुम से सच कहता हूँ कि बहुतेरे नबी और पैग़म्बर तरसते थे जो तुम देख रहे हो, इन्हें वह देखें मगर नहीं देखा और जो तुम सुन रहे हो, नहीं सुना "( मित्ती )
बुख़ारी 1308
आयशा की बेपर की 
आयशा कहती हैं कि उनके शौहर ने उनसे फ़रमाया कि जो बातें आसमान में तय होती हैं , उनको बादल के फ़रिश्ते आपस में तज़करा करते हैं, वहीँ से कुछ ख़बरें शयातीन चोरी से उड़ा ले जाते हैं और काहनों के कानों में डाल देते हैं , जो इसमें झूट मिला कर बयान करते हैं।
*मदरसों में मुसलमान बच्चे लाल बुझक्कड़ ही यह हदीसे, इन पर रिसर्च करते हैं, रिसर्च इस बात पर कि यह हदीस असली है या नकली। ऐसी इंसानी नस्लें क्या डाक्टर इंजीनियर के गर्द को भी पा सकते है?
लम्बा कुरता उटंग पैजामा हरी पगड़ी पर पड़ा अरबी रुमाल वाला दाढ़ी दार यह कार्टून मुस्लिम बसतियों में आम तौर पर देखे जा सकते हैं। वह बच्चों को ऐसी जिहालत पढ़ता है।
बुख़ारी 1310 
झूठे पैगम्बर की ओछी हरकत 
हदीस है कि मुहम्मद ने हस्सान बिन साबित से कहा,
"तुम ख़ुदा और रसूल की तरफ़ से कुफ़्फ़ार की हिज्जो (बुराई) किया करो . जिब्रील तुम्हारी एआनत (अवैध सहायता) करेंगे ।"
* लअनत है ऐसे रसूल अल्लाह पर जो फ़रिश्तों से नाजायज़ काम कराता हो। हस्सान बिन साबित शाइरी करता था जिसको मुहम्मद राय दे रहे है कि काफ़िरों को अपनी शाइरी में गरियाया करो इसमें फ़रिश्ते तुम्हारी नाजायज़ मदद करेगे।
मुसलमानों क्या तुमको इससे बड़ा सुबूत चाहिए की तुम्हारा रसूल कितना गिरा हुवा शख्स था।

जीम. मोमिन 

Wednesday 9 September 2015

Hadeesi Hadse 173


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हदीसी हादसे 61
मुस्लिम - - - किताबुल हुदूद 
दो चाहने वाले 
हदीस है कि मअज़ बिन मालिक असलमी मुहम्मद के पास आए और कहा 
" या रसूल अल्लाह हमने ज़ुल्म किया अपनी जान पर और ज़िना किया। 
आप मुझको पाक कीजिए "
 मुहम्मद ने इनको फेर (लौटा) दिया। इस तरह जब वह कई बार आए तो मुहम्मद ने लोगों को इनके पीछे लगा दिया कि पता करें कि इनको कोई ख़लल तो नहीं हो गया।लोगों ने पता किया और मुहम्मद को इत्तेला दी कि वह बिलकुल ठीक हैं।
मअज़ मुहम्मद के पास फिर दरख्वास्त लेकर आए , मुहम्मद ने लोगों को फिर पता लगाने के लिए भेजा कि इन्हें कोई बीमारी तो नहीं है? 
मालूम हुवा वह इकदम मुअत्दिल हैं।
इसके बाद जब मअज़ मुहम्मद के पास आए तो उन्हों ने एक गड्ढा खुदवाया और उनको दफ़्न का हुक्म दिया .
 इसी तरह एक औरत मुहम्मद पास आई और उसने कहा या रसूल अल्लाह मैं ने ज़िना किया मुझे पाक कीजिए . 
मुहम्मद ने इसे फेर दिया , कई बार फेरने के बाद फिर वह आई तो उसने एहतेजाज किया कि मअज़ की तरह उसे क्यूं टाला जा रहा है? ख़ुदा की क़सम मैं तो ज़िना से हमला भी हूँ। मुहम्मद ने कहा , अच्छा जा बच्चा जनने के बाद आना।
 इसने बच्चा जना और उसे कपड़े में लपेट कर मुहम्मद के पास आई और खुद को पाक करने की फ़रमाइश करने लगी . 
मुहम्मद ने कहा इसको दूध पिला, जब तक यह रोटी न खाने लगे। 
कुछ दिनों बाद वह बच्चे को लेकर मुहम्मद के पास आई कि बच्चे के हाथ में रोटी का टुकड़ा था। कहा या रसूल अल्लाह बच्चा खाने लगा है, अब मुझे पाक कीजिए .
मुहम्मद ने सीने तक गहरा एक गड्ढा खुदवाया, औरत उसमे दाखिल होकर दफ़्न हुई। 
पहला पत्थर उसे खालिद ने मारा, औरत के सर से खून जारी हुवा, धार खालिद के मुंह पर पड़ी तो वह औरत को बुरा भला कहने लगे, जो मुहम्मद के कानों तक गई - - - 
कहा ख़बरदार  ख़ालिद इसने ऐसी तौबा की है कि अगर महसूल लेने वाला ऐसी तौबा करे तो इसके गुनाह मुआफ़ हो जाएँ और मअज़ की तौबा एक उम्मत में बाटी जाए तो तो काफ़ी हो।
यह एक तस्वीर मुहम्मदी दौर की थी कि लोग कितने सादा लौह थे, कि मुहम्मद के बनाए हुए क़ानून पर निसार हो जाया करते थे, जब कि मुहम्मद खुद पक्के ज़िना कार थे और लोगों से कहते थे कि अल्लाह ने उनके अगले पिछले सभी गुनाह मुआफ़ कर रखा है। 
अफ़सोस कि लोग उनकी इस बात पर भी यक़ीन करते थे।
बुख़ारी 1311
मुहम्मद ने अपनी कमसिन बीवी से सामने पुडिया छोड़ी , बैठे बैठे कहने लगे ,
"आयशा जिब्रील तुमको सलाम कहते हैं।"
वालेकुम अस्सलाम कहते हुए आयशा कहती है '
'' जो चीज़ मुझको नज़र नहीं आती, आप कैसे देखते है?"
मुहम्मद ने आयशा को कैसे समझाया इसका ज़िक्र नहीं मगर ज़रूर किसी मकर से काम लिया होगा .
यही आयशा हदीस बुखारी 1171 में कहती हैं कि ,
" इनके शौहर ख़दक से जंग कर के आए, ग़ुस्ल से फ़ारिग़ हुए ही थे कि जिब्रील अलैहिस्सलाम नाज़िल हुए,
कहा या रसूल अल्लाह आपने हथ्यार खोल दिए हैं मगर मैं अभी तक बांधे हुए हूँ। 
मुहम्मद ने पूछा कहीं की जंग है?
जिब्रील ने कहा हाँ! बनू क़रीज़ा .
ग़रज़ मुहम्मद बनू क़रीज़ा की तरह निकल पड़े।
*इस हदीस में आयशा जिब्रील को देखती भी है और सुनती भी है 
अंधे बुखारी को भी दोनों हदीसों में ताजाद नज़र नहीं आया।
आयशा ने या इसके नाम से मनमानी हदीसें गढ़ी गई हैं।
देखिए कि मुसलमान इन झूटी हदीसों में कैसी झूटी ज़िन्दगी जी रहे हैं।

जीम. मोमिन 

Tuesday 1 September 2015

Hadeesi Hadse 172


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हदीसी हादसे 60

बुख़ारी 1319
मुहम्मद कहते हैं कि अगर कोई शौहर अपनी बीवी को बिस्तर पर बुलाता है और वह नहीं आती, शौहर गुस्से की हालत में सो जाता है तो फ़रिश्ते ऐसी औरत पर रात भर लअनत भेजते हैं .
*आठ दिन तक मुहम्मद की बीवियां अपनी बारी का इंतज़ार करती रही होंगी तो फ़रिश्ते मुहम्मद पर लअनत करते रहे होंगे।
इस्लाम में औरत ज़ात की जगह जगह ज़िल्लत है मगर यही कूढ़ मग़जें मुहम्मद पर दरूद ओ सलाम ज़्यादा भेजा करती है।
मुस्लिम किताबुल हुदूद 
अनस कहता है कि मुहम्मद शराबियों को चालीस मार टहन्यों की या चालीस जूते मारते थे .
मुस्लिम किताबुल हुदूद 
 उस्मान की खिलाफ़त में दो लोग शराबी को पकड़ कर लाए, खलीफा ने कोड़े लगाने का हुक्म दिया . मातहत अली ने अपने बेटे हसन को हुक्म दिया कि उठ कोड़े लगा। हसन ने बाप की हुक्म उदूली करते हुए कहा कि उस्मान ने सजा सुनाई है , वही कोड़े लगाएं।
इसके बाद अली गुस्सा हुए हसन पर और अब्दुल्ला बिन जाफ़र से कहा उठ और कोड़े लगा . अली गिनते गए और चालीस पर बंद किया .
मुहम्मद के बाद अबू बकर ने शराब की सज़ा चालीस कोड़े ही ऱखी थी , मगर उमर ने इसे बढ़ा कर अस्सी कर दिया था जिसे अली ने फिर चालीस कर दिए 
* पिछले दिनों मैं बतला चुका हूँ कि शराब क्यों हराम हुई, इसलिए कि हमजा ने अली को मिले ऊंटों को शराब के नशे में एक रक्कासा के कहने पर मार डाला था।
हुवा ये कि मुहम्मद एन्ड कंपनी खुद भी शराब से महरूम हो गई और मुसलमानों को भी महरूम कर गए . 
मगर हसन जिंदगी भर शराब और शबाब में गुज़री। इनकी 72 बीवियाँ और सैकड़ों बांदियां थीं।
उस्मान और अली की हरीफाई हसन के रविश गवाही देती है।इसी रंजिश में उस्मान क़त्ल हुए।
बुख़ारी 1339
जमहाई लेना शैतानी हरकत 
मुहम्मद कहते हैं कि जम्हाई लेना शैतानी हरकत है, तुम में से जब किसी को जम्हाई आए तो वह हत्तुल इमकान उसे रोके।
* जम्हाई आना अच्छी या बुरी हरकत नहीं बल्कि अलामत है नींद आने की. नव ज़ायदा बच्चा बार बार जम्हाई लेता है जिसमे कठ मुल्ले को शैतान ही नज़र आता है।लाल बुझक्कड़ की खोपड़ी पाई थी, छींक आने पर शुक्र अल्हमदो लिल्लाह कहने को कहते जो बीमारी की अलामत लेकर आती है।  लोग इस मौके पर सोरी बोलते हैं।
काश कि मुसलमान समझ सकें कि वह ख़ुद कितने बड़े शैतान थे।


जीम. मोमिन