Tuesday 29 October 2013

Hadeesi Hadse 107




जीम. मोमिन 
काफूरी मेदा 
मुहम्मद कहते हैं,
जन्नत में लोग खाएँगे पिएँगे , न पाखाना करेगे न पेशाब करेंगे , न थूकेंगे न नाक छिन्केंगे . लोगों ने पूछा ,
तब खाना कहाँ जाएगा ?
कहा एक डकार आएगी और पसीना होगा , इसमें मुश्क की खुशबू होगी , बस डकार और पसीने से खाना तहलील हो जाएगा और तस्बीह और तहमीद का इनको इल्हाम होगा .
(मुस्लिम - - - किताबुत-तौबा)

* पाखाने और पेशाब की तरह ही हैं मुहम्मद की यह बातें गलीज़ हैं क्योंकि झूट सबसे बड़ी गलाज़त है . अरब की अज़ीम फ़िक्र को मिटा कर इस्लाम उस पर झूट का मुलम्मा फेर दिया .

नेक बन्दा 
एक बार मुहम्मद  ने एक शराबी पर कोड़े लगवाए जो कि अक्सर उनको हंसाया करता था . कोड़े खाकर फिर वह मुहम्मद के सामने हाज़िर हो गया . उस पर लोगों ने लानत मलामत की , मुहम्मद ने लोगों को रोका ,
खबरदार , मैं इसको जनता हूँ , यह अल्लाह और उसके रसूल से मुहब्बत करने वाला नेक बन्दा है।
(बुख़ारी - - - २ ० ५ ८)
शराबी तो अकसर अल्लाह के नेक बन्दे ही होते हैं . नमाजियों और रोज़ दारों से कुजा बेहतर . अली के दो ऊंटों को शराब के नशे में हमज़ा ने माशूक के कहने पर ज़िबह कर दिया था , बस उसी दिन मुहम्मद ने शराब को हराम क़रार दे दिया था , इस हसीन  तोहफ़े से मुसलमान महरूम हो गए।

बुशरात 
मुहम्मद ने कहा नबूवत ख़त्म हुई , सिर्फ़ बुशरात बाक़ी है .
लोगों ने पूछा , यह बुशरात क्या है ?
बोले , मुझको ख़्वाब में देखना गोया जागने में मुझे देखना क्योंकि शैतान मेरी शक्ल में नमूदार हो नहीं सकता।
(बुख़ारी २ ० ७ ७ )  
मुहम्मद के गिर्द अक्सर जाहिलों की जमघट होती , पढ़े लिखे उनसे दूर ही रहते, वह हर उस लफ्ज़ का मतलब पूछते जो मुहम्मद गढ़ते , लफ्ज़ में मनमानी करके मानी भरते जो उनकी पैगम्बरी को चमका सके .
 सानेहा यह है कि मुसलमानों में मुहम्मद के गढ़े हुए मानी ही रायज हैं . बुशरात के लुग्वी मानी हैं खुश खबरी . इस्लाम के मुताबिक़ इसके माने हो गए हैं "मुहम्मद को ख्वाब में देखना"
कठ मुल्लाई कहती है जिसने मुहम्मद को ख़्वाब में देखा उस पर दोज़ख हराम हुई . किस कद्र मुसलमानों की घेरा बंदी की गई है . 

नंगे नागाओं की भीड़ 
आयशा कहती हैं कि उनके शौहर ने कहा ,
क़यामत के रोज़ लोग हश्र के लिए नंगे पाँव जाएँगे ,
नंगे बदन होंगे , बिना खतना किए .
मैंने मुहम्मद से पूछा मर्द औरत एक साथ होंगे ?
तो क्या एक दूसरे को देखेंगे नहीं ?
कहा आयशा ! वहाँ की मुसीबत ऐसी सख्त होगी कि कोई किसी को देखेगा नहीं।
(मुस्लिम किताबुल जन्नत व् सिफता)

अल्लहड़ आयशा की शोखी को बुड्ढा शौहर टाल गया .
रोमांस की जगह मुहम्मद शोख आयशा से इसी किस्म की बातें करके उसे बहलाए और दहलाए रहते।

हुक्म बरदार रहो 
मुहम्मद कहते हैं ,
हाकिम अगर कोई तकलीफ़ पहुँचाए तो सब्र करना चाहिए ,
नाफरमान जाहिल्यत की मौत मरेगा।
(बुख़ारी २ ० ८ ४ )
मुहम्मद ठीक ही कहते हैं , उनके नाती हुसैन ने नाफ़रमानी की , कुत्ते की मौत मारे गए . सिर्फ सर बचा . हसन ने सब्र किया अय्याशी की दुन्या में वसीक़े के साथ आबाद रहे .
मुहम्मद की हर बात अल्लाह का कलाम या रसूल की हदीस बनी हुई मुसलामानों को जिहालत में मुब्तिला किए हुए है।
मुसलमानों को चाहिए कि वह अपने ईमान ए बोसीदः को बदलें . जिसे वह ईमान मान बैठे हैं वह दर अस्ल बे ईमानी और गुमराही है।
इस्लाम को वह तस्लीम किए हुए हैं जो ईमान तो है ही नहीं .
ईमान बोसीदा होता है न फरसूदा , वह तो हमेशा ताज़ा होता है .
मुसलमानो ! अपने दिमाग़ के बंद दरीचे को खोलें और ईमान ए ताज़ा तर दाख़िल होने दें। 

 फरेबी सदाएं 
मुअम्मद ने कहा 
पुकारेगा पुकारने वाला ,
जन्नत के लोगों को ,
मुक़ररर तुम्हारे लिए यह ठहर चुका है कि तुम तंदरुस्त हो गए ,
कभी बीमार न पड़ोगे और मुक़ररर तुम ज़िन्दा हो गए ,
कभी मरोगे नहीं , मुक़ररर तुम जवान हो गए ,
कभी तुम बूढ़े नहीं होगे और मुक़ररर तुम ऐश और चैन में रहोगे ,
कभी रंज नहीं होगा और यही मतलब है खुदा के इस कौल का ,
कि बहिश्त वाले यह आवाज़ दिए जाएँगे कि यह तुम्हारी बहिश्त है ,
जिसके तुम वारिस हो गए , इस लिए कि तुम नेक आमाल किया करते थे .
(मुस्लिम - - - किताबुल जन्नत व सिफ्ता)  

मुहम्मद के यह छलावे मुसलमानों का यकीन और तकदीर बन गए हैं . इन्हीं फरेबों में मुब्तिला सदियों से दीगर कौमों की गुलामी में पड़े हुए हैं .

Tuesday 22 October 2013

Hadeesi Hadse 106


मुहम्मद का हौज़ 
मुहम्मद कहते हैं कि उनका हौज़ इतना बड़ा होगा कि सनआ और यमन का जो फ़ासला है , और इसमें पानी पीने वाले कूज़े आसमान में चमकते हुए सितारे के बराबर होंगे ,
(बुख़ारी - - - २०३४)

 मुहम्मद का एक नाजायज़ बेटा लौंडी मारिया से हुवा था , ढाई बरस की उम्र में वह चल बसा, मोहल्ले की औरतें तअना ज़न हुईं कि बुढ़ापे में एक औलाद नरीना हुई , उसे भी न बचा पाए, बनते हैं अल्लाह के रसूल . खिसयाने मुहम्मद ने ज़बान जिलाई कि उन को अल्लाह ने इत्तेला दी कि उसके बदले में तुमहें जन्नत में कौसर नाम का हौज़ एलाट किया गया जिसके निगराँ तुम हुए . मुहम्मद हौज़ की लंबाई चौड़ाई तो एक शहर से दूसरे शहर तक की बतलाई है मगर उसमे पानी पीने के कूज़े तारों के बराबर बतलाया . मुहम्मद के अल्लाह को इस बात का पता नहीं कि तारे अक्सर ज़मीन से कई गुना बड़े होते हैं . इन कूज़ों से पाँच फिटा बन्दा कैसे पानी पिएगा ?
जन्नत में हौज़ की निगरानी करेगे और कुछ लोगों को ऐसा भगाएँगे जैसे पनघट से अनचाहे ऊंटों को भगाया जाता है (एक दूसरी हदीस) 
जन्नत में तो सब मुसलमान ही होंगे , उनसे भी बुगज़ और कीना ? यह मुहम्मद की फितरत थी .
इस्लाम की बुन्याद इन्हीं ऊट पटांग बातों पर राखी हुई है .

ताकि ताक झाँक हो सके 
मुहम्मद ने कहा जन्नत के लोग खिडकियों से एक दूसरे ऐसा तकेंगे जैसे तुम लोग खिडकियों से आसमान के तारों को देखते हो .
(मुलिम - - - किताबुल जन्नत ओ वाशिफ्ता)

जन्नत में कोई काम तो होगा नहीं , जन्नती कितना खाएँगे , कितनी शराब पियेंगे , कितनी अय्याशी करेगे ? इन तमाम चीज़ों से जी ऊब जाएगा तो एक दूसरे के घर ताक झांक करेगे।
मुहम्मद दूसरी हदीस में कहते है कि ताक झाँक करने वाले की आँख फोड़ दो . तुम पर कोई इलज़ाम नहीं। 
यही दुराहा भास् मुसलमानों की फितरत और ईमान बन गए है।  

आँखें फोड़ दो 
मुहम्मद ने कहा कोई तेरे घर झांकता हो तो कंकड़ी मार के उसकी आँखें फोड़ दे , तेरे जिम्मे कोई जुर्म नहीं।
(बुख़ारी - - - २०१७)  

मुहम्मद की शिद्दत पसंदी हर जगह नज़र आती है , चाहे ज़रा सी चोरी पर हाथ काट देना हो या ताक झाँक करने पर आँख फोड़ देना। क्या मुहम्मद इंसानी फितरत को भी समझते थे या सिर्फ पयंबरी।

ग़ैर को बाप बनाना 
मुहम्मद कहते हैं जो शख्स ग़ैर को अपना बाप बनाएगा , ये जानते हुए कि ग़ैर उसका बाप नहीं है , अल्लाह तअला उस पर जन्नत हराम कर देगा।
(बुख़ारी २०५६)  
इस हदीस का तअल्लुक़ २१वें पारे के ३३वें सूरह अहज़ाब से है जोकि ज़ैद बिन हारसा के सर फोड़ी गई है जिसका मुआमला यह है कि मुहम्मद ने इसे आठ साल की उम्र में गोद लिया था और भरी मह्फ़िल में अपना बेटा बनाया था . इस मासूम ने जवानी तक मुहम्मद को अपना बाप माना . मुहम्मद ने इसकी शादी अपनी फूफी ज़ाद बहन जैनब से की और फिर उससे अपना जिंसी राबता क़ायम कर लिया था जिसे ज़ैद बिन हारसा ने मुहम्मद और ज़ैनब को रंगे हाथों पकड़ लिया था . मुहम्मद ने ज़ैद को लाख समझाया बुझाया कि वह इसी हालत में अपनी अजवाज कायम रखे , दोनों का काम चलता रहे मगर वह एक न माना . नतीजतन मुहम्मद ने उसके ख़िलाफ़ यह हदीस उगली।
गैर वह जोकि अभी मासूम बच्चा था, कैसे किसी को अपना बाप बना लेगा ? 
खुद मुहम्मद इसके बाप बने थे . जन्नत हराम तो इन जैसे पापियों पर होना चाहिए जो ज़ैद को गोद में उठा कर क़सम खाते हैं कि आज से ज़ैद मेरा बेटा हुवा और मैं इसका बाप . फिर जब वह जवान हुवा तो अपनी रखैल से उसकी शादी कराते हैं।
फिर उस गोद लिए बेटे पर जन्नत हराम करते हैं।  
मुहम्मद की रखैल उम्मे सलीम और उनकी नजायज औलाद अनस कहता है कि ज़ैद के तलाक के बाद जब जैनब की इद्दत पूरी हो गई तो मुहम्मद ने ज़ैद से कहा कि वह खुद अपनी मतलूका को मेरा पैग़ाम दे . ज़ैद राज़ी हो गए . 
जब जैनब के पास पहुँचे तो वह आटे में ख़मीर कर रही थी . उनको देख कर ज़ैद के दिल में उनकी अजमत इतनी बढ़ गई कि नज़र उठा कर इनको देख न सके और कहा आपको रसूलल्लाह ने याद किया है .
(ये कमाल ईमान की बात थी और निहायत सआदत मंदी की कि ज़ैद के दिल में इस ख़याल से कि रसूल अल्लाह ने पैग़ाम भेजा है , इस कद्र अजमत और हैबत इन के दिल में छा गई कि नज़र न उठा सके और अफ़सोस इस वक़्त है लोगों पर कि हदीस ए मुहम्मद की अजमत और बड़ाई पर कुछ भी न ख्याल आया और बेतकल्लुफ़ झूटी तावीलें और यह ख़याल नहीं करते कि यह खास ज़बान वह्यी की तरजुमानी से निकली है जिसकी एक शान है।)  
ज़ैद के मुंह से अनस कहता है ,
गरज़ मैं ने अपनी पीठ मोड़ी और अपनी एडियों के बल लौटा और अर्ज़ किया कि ऐ जैनब ! रसूल अल्लाह ने आपको पैग़ाम भेज है और आपको याद करते हैं और जैनब ने कहा ,
जैनब बोली , मैं कोई काम नहीं करती जब तक मशविरा नहीं ले लेती अपने परवर दिगार से (यानी इस्तिखारा नहीं लेती) और उसी वक़्त वह अपनी नमाज़ की जगह खड़ी हो गईं . 
कुरआन उतरा और रसूल अल्लाह बगैर किसी इज़्न के दाखिल हो गए . 
(आयत) ब्याह दिया हमने जैनब को तुझको ताकि मोमिनों को हर्ज न हो अपने लेपालकों की बीवियों से निकाह करने में , जब वह अपनी हाजत इनसे पूरी कर चुकें, 
और रावी ने देखा रसूल ने लोगों को रोटी गोश्त खूब खिलाया , यहाँ तक कि दिन चढ़ गया . खा पी कर लोग बाहर चले गए और कई लोग रह गए जो घर में बातें करते रहे , बीवियाँ पूछती हैं कि कैसी पाई नई बीवी को - - - 
(मुस्लिम किताबुन-निकाह) 

*मुअम्मद की ज़िन्दगी का सब से बड़ा नाक़ाबिले-फरामोश वक़ेआ है कि उनहोंने अपने गोद लिए हुए और मुंह बोले बेटे की बीवी को अपने हवस का शिकार बनाया जिसे एक दिन बेटे ने मुअम्मद को रंगे हाथों पकड़ा , तब बेटे को समझाया बुझाया कि वह राज़ी हो जाय , ताकि दोनों का काम चलता रहे . जब बेटा न माना तो एलान कर दिया कि जैनब मेरी बीवी है , इसका अक़्द मेरे साथ अर्श पर हुवा था . अल्लाह ने निकाह पढ़ाया था और जिब्रील ने शहादत दी थी।
 मुअम्मद की इस मजमूम हरकत के तहत क़ुरानी आयतें मौक़ूफ़ हुईं बदले में मुसलमानों को नई वाकिफ्यत दी . अल्लाह भी बन्दों की तरह अपनी ग़लती सुधार रहा है।
मुअम्मद के इस अम्ल ए हराम के चलते उसकी उम्मत हर हराम काम को हलाल किए हुए है और पूरी दुन्या में ज़िल्लत की ज़िन्दगी जी रही है। 


जीम. मोमिन 

Tuesday 15 October 2013

Hadeesi Hadse 105


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ज़बान और तानासुल पर काबू नहीं 
मुहम्मद ने कहा जो शख्स मेरे लिए दो चीजों का जामिन हो जाए , एक दोनों जबड़ों के बीच ज़बान है , दूसरे दोनों टांगों के बीच जो शर्म गाह है , मैं उसके वास्ते जन्नत का ज़ामिन दार हो जाऊँगा।
(बुखारी २००७)   

मुहम्मद ने इस हदीस में अपनी फितरत की तर्जुमानी , ला शऊरी तौर पर बड़ी ईमानदारी के साथ की है . इनकी ज़बान खामोश रहना तो जानती ही नहीं थी . कुरआन बेसिर पैर की बातों का लामत्नाही सिलसिला है , इनकी ही ज़बान है . कुरआन जितना महफूज़ है , इससे ज्यादह उस्मान गनी ने इसे मुरत्तब करते वक़्त रद्दी की टोकरी में डाल  दिया था .
 इसके बाद मुहम्मद ने बेलगाम और जिहालत से भरपूर हदीसें बकी हैं।
बेशक इनकी ज़बान में कोई लगाम लगा देता तो अज खुद बेहिश्ती होता , मुहम्मद की कोई ज़मानत की ज़रुरत न होती।
दूसरा मुहम्मद का जिन्सी मुआमला है . 
माँ की उम्र की बेवा से शादी की जो मालदार भी थी और बाअसर भी . इस शादी में निकम्मे और फक्कड़ इंसान की कोई अजमत नहीं थी बल्कि इसमें उसकी लालच और तन आसानी की नियत छिपी हुई थी . 
खदीजा की मौत के बाद आज़ाद हुए तो अपनी अय्याश तबअ में नमूदार हुए , बयक वक़्त दो दो शादियाँ कीं . एक जवान से और दूसरी नादान कमसिन सात साल की बच्ची आयशा से , जिससे बूढ़े ने जिंसी बेराह रवी कायम किया . इसे इंसानियत कभी मुआफ़ नहीं कर सकती . 
इसके बाद भी मुहम्मद ने नव शादियाँ मज़ीद कीं , इनके अलावा लौंडियाँ बांदियां और रखैल हुवा करती थीं . उनहोंने कई मुताह किए , जहाँ मौक़ा मिला मुंह मारा जिसकी ओलिमा पर्दा पोशी करते फिरते हैं .
मुहम्मद ने अल्लाह से लातादाद शादियों की छूट ले रखी थी , इस रिआयत के लिए अपने ऊपर कुरानी आयत भी उतरवा लिया था कि दुन्या की कोई भी मुसलमान औरत इनकी मर्ज़ी के बाद इनके अक़्द में आ सकती है . अपने लिए मुहम्मद ने अपनी भांजियां और भातीजियाँ भी जायज़ करा रख्खी थीं , शुक्र है कि इनका सगा भाई बहन कोई नहीं था।
मुहम्मद की जिन्स परस्ती इससे भी आगे जाती है जो नागुफ्तनी है।
सच मुच वह जन्नत का मुस्तहक होता जो मुहम्मद की शर्मगाह पर काबू पाता।   

हदीसी ड्रामा 
अल्लाह कहता है - - - "ऐ जन्नतियो !
जन्नती कहते हैं  - - -  "ऐ रब ! हम हाज़िर हैं तेरी खिदमत में और सब                                         भलाई तेरे हाथों में है , पाक परवर दिगार "
अल्लाह कहता है - - - "तुम राज़ी हुए ?"
जन्नती कहते हैं  - - - "हम कैसे राज़ी न होंगे . हमको तो तूने वह दिया है                                     कि इतना अपनी मखलूक में किसी को न दिया।"
 अल्लाह कहता है - - - "क्या मैं तुमको इससे भी अच्छी चीज़ दूं ?"
जन्नती कहते हैं  - - - " दे रब ! इससे अच्छी कौन सी चीज़ है ?"
अल्लाह कहता है - - - '' मैं ने तुम पर अपनी रजा मंदी उतार दी. अब इसके                                  बाद तुम पर कभी गुस्सा नहीं करूंगा।" 
(मुस्लिम - - - शिद्दत ओ तईमहा)

इस किस्म की बातें मुसलमानों की ईमान बन चुकी हैं , कौम को कैसे वक़्त के साथ जोड़ा जा सकता है कि अजखुद अफीम की आदी बनी बैठी है .कोई चीनी इन्कलाब ही इनको बेदार कर सकता है , हिंदुत्व के पाखण्ड के दोश बदोश इस्लाम मज़बूत ही होता जाएगा . दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। 

  बालाम के कलेजे से जन्नतियों की ज्याफ़त 
मुहम्मद कुछ लोगों के बीच बैठे हदीस बयान कर रहे थे कि क़यामत के दिन ज़मीन रोटी की तरह होगी . अल्लाह तअला इसे अपनी दस्त ए कुदरत में लेकर इस तरह उलट पलट करेगा जैसे तुम में से लोग रोटी को सेंकने के लिए करते हैं।
इसी बीच एक यहूदी मुहम्मद की हदीस में दख्ल अन्दाजी करते हुए कहने लगा ,
मैं बतलाऊँ कि अहले जन्नत की मेहमानी किस चीज़ से होगी ?
क़यामत के दिन ज़मीन रोटी की तरह होगी , अहले जन्नत का सालन भी बतलाए देता हूँ , मछली और बालाम होगा .
लोगों ने पूछा यह बालाम क्या बला है ?
उसने कहा यह बैल है जिसके जिगर का एक टुकड़ा ही सत्तर हज़ार लोगों के लिए काफी होगा।
यह सुन कर मुहम्मद को इतनी हंसी आई कि इनकी केचुलियाँ नमूदार हो गईं।
(बुख़ारी - - - २०२०) 

अल्लाह का कलाम हो या मुहम्मद की हदीस , इन्हें सुन कर ऐसा ही मजाक बनता था जो सामने पेश है।
सुनते हैं एक जमाअत अहले हदीस हुवा करती है जिसने हदीस को कुरान से पहले मुअत्बर करार दिया है , ख़त्म कुरआन की तरह इनमें ख़त्म बुख़ारी शरीफ का जश्न मनाया जाता है . इनके शिद्दत का यह आलम है तो इनकी अहलियत का अंदाज़ा लगाया जा सकता है . मैंने इन मुहम्मदी दीवानों के मुंह से सुना है ,
मुहम्मद की लगजिशों की जवाब दही अल्लाह की होगी क्योंकि अल्लाह के हुक्म के बगैर कुछ नहीं हो सकता।
इन दीवानों को अल्लाह अक्ल ए सलीम अता करे।
मैं अगर इनसे पूछूं कि क्या मेरी दहरियत अल्लाह के हुक्म के बगैर है ???
अल्लाह कुरआन में बार बार कहता है कि उसे तमस्खुर (मजाक ) पसंद नहीं मगर यहूदी की बर्जस्तगी ने मुहम्मद को भी गुदगुदा दिया , ऐसा हँसे कि उनकी केचुलियाँ नमूदार हो गईं . मुहम्मद को हंसी अपने उस पहाड़ जैसे झूट पर आई जो उनकी तहरीक थी .
 देखिए  उनकी उम्मत को उन पर और उनके अल्लाह पर कब हंसी आती है। 

जीम. मोमिन 

Friday 11 October 2013

Hadeesi Hadse 104




जीम. मोमिन 

मख्खी 
हदीस है कि मख्खी अगर सालन में गिर जाए तो उसे चुटकी में लेकर पूरी तरह सालन में डुबो कर बाहर फेंक देना चाहिए , फिर सालन को खाया जा जा सकता है . कहते हैं कि कि मख्खी के एक पर में बीमारी होती है तो दूसरे पर में शिफा . गोया दोनों पर डूब गए तो किसी नुकसान का अंदेशा नहीं।
(बुखारी १९१८)

यह रवायत अरबों में पहले से ही चली आ रही है जिसको मुहम्मद ने हदीस करके मुसलामानों का तरीक़ा बना दिया है . दोनों परों में अलग अलग तासीर है , इसका कोई साइंसटिफिक सुबूत नहीं है . मख्खी गलाज़त पर बैठती है जिससे उसमें बीमारी के जरासीम तो होते ही हैं . चाय दूध या दुसरे तरल को मख्खी के पड़ जाने पर फैंक देना चाहिए , दाल या सालन में चम्मच से पूरे एरिया को निकल कर फेंक देना चाहिए कि उस पर लागत ज्यादा होती है . पूरा का पूरा फेंकना मुनासिब नहीं।
हिजड़े 
मुहम्मद हिजड़ों को सख्त नापसंद करते थे . मुताल्कीन से कहते , इनको घरों में मत आने दिया करो।
(बुख़ारी १९३१)  
क्या यह किसी पैगम्बरी की अलामत हो सकती है कि अल्लाह की बनाई हुई मखलूक से नफरत करे ? तहकीक जदीद कहती है कि इनको समाज में रहने का हक है , वह इनके लिए कोई काम तलाश रही है ताकि यह खुद को मिली हुई घिनावनी पहचान से दूर कर सकें .

ख़याली रफ़्तार 
मुहम्मद ने कहा जन्नत में एक दरख़्त है जिसके साए में बरसों तेज़ रफ़्तार घोड़े से सफ़र किया जाए तब भी इसका साया ख़त्म नहीं होता।
(मुलिम - - - किताबुल जन्नत) 

मुहम्मद की जितनी हदीसें हैं सब इनकी जेहनी इख्तरा हैं . वह इनको बक कर अपनी पैगम्बरी चमकाते थे , उनके बाद अपने कठ मुल्लों को रोज़ी दे गए हैं कि वह भूखों न मरें  और मुसलमानों को जिहालत में मुब्तिला रख्खें.

काफ़िर न कहो 
मुहम्मद कहते हैं कोई किसी को काफ़िर या फ़ासिक न कहे , अगर वह ऐसा नहीं है तो अल्फ़ाज़ कहने वाले पर ओद करेंगे।
(बुख़ारी १९६३)  

दूसरों को नसीहत करने वाले मफरूज़ा रसूल बज़ात खुद इस मरज़ में मुब्तिला थे . बात बात पर अपने खुद सर साथियों को काफ़िर कह दिया करते थे . उन्हीं के नक्श क़दम पर आम मुसलमान है . जो अपनी सूझ बूझ से कम करता है उसको यह लक़ब मिल जाता है।

शायर को भी नहीं बख्शा 
मुहम्मद कहते हैं बअज़ शेरों में हिकमत भरी रहती है , फिर पलट कर कहते हैं , इंसान का शेरों से पेट भरे , इस से बेहतर है कि इसका पेट पीप से भर जाए।
  (बुख़ारी १९८०-८१)

मुहम्मद का पूरा कुरान उनकी फूहड़ और बकवास शायरी ही है मगर दूसरों के शायरी ही नहीं तमाम फुनून ए लतीफा उन्हें फूटी आँख नहीं भाते .

छींक 
अबू बुरदा से रवायत है कि मुहम्मद कहते हैं अल्लाह को छींक पसंद है और जमुहाई नापसंद . छींक आने पर अलहम्दो लिलिल्लाह कहना चाहिए सुनने वाले को यरहमुकल्लाह कहना चाहिए और जम्हाई मिन जानिब शैतान है आने पर हत्तुल इमकान उसे रोकना चाहिए . इस पर शैतान को हंसी आती है।
(बुख़ारी १९८९)

इस सिलसिले में दूसरी हदीस है कि फज़ल इब्न अब्बास की बेटी उम् कुलसूम पत्नी अबू मूसा (जिनको इमाम हसन ने तलाक़ दे दिया था अक़्द सानी मूसा से हुवा) के घर मैं गया . मैं छींका तो अबू मूसा ने कोई जवाब न दिया यानी यरहमुकल्लाह न कहा . इसके बाद वह छींकीं तो उनको जवाब दिया . अबू बुरदा कहते है कि लम्बी यह्कीक के बाद मालूम हुवा कि छींक आने पर अलहम्दो लिलिल्लाह कहना चाहिए सुनने वाले को यरहमुकल्लाह कहना चाहिए 
(मुस्लिम - - - किताबुल ज़ोह्द )

यह छींक और पाद सदियों से इस्लामी आलिमों का मौज़ू ए तहकीक रहा है . इसी दौरान दूसरी कौमें मखलूक के हक में तह्कीकी और तामीरी काम करती रहीं जिसे इस्लाम माद्दियत परस्ती कहता रहा . आज इसी माद्दियत परस्ती के आगे इस्लामी दुन्या नाक रगड़ रही है . बगैर टेली फोन के काम नहीं चलता , हवाई जहाज़ के बिना सफ़र नहीं कर पाते .
   इस हदीस में ज़िक्र आया है अब्बास की बेटी उम् कुलसूम पत्नी अबू मूसा का जो कि मुहम्मद के नवासे हसन की तलाक़ ज़दा थीं . हसन ने ७२ निकाह किए थे हर चौथी बीवी को तलाक़ देते हुए एक नई दुल्हन लाते . इनके आलावा उनकी बेशुमार लौंडियाँ हुवा करती थीं .


Tuesday 1 October 2013

Hadeesi Hadse 104


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मुगीरा इब्न शअबा 
इन हदीस निगारों में कैसे कैसे लोग थे ? सहाबा ए किराम में कैसी कैसी हस्तियाँ थीं ? जान कर तुमको हैरत होगी . इन्हीं में एक मुहम्मद के चहीते और जांबाज़ सहाबी हज़रात मुगीरा इब्न शअबा हुवा करते थे . इनकी दगाबाजी का मुआमला यह था कि यह हज़रात दौरान सफ़र एक गिरोह के हमराही बन गए थे . पहले अपने हुस्न इखलाक से गिरोह का एतमाद हासिल किया फिर रात को मौक़ा पाकर इनको क़त्ल कर दिया और इनका सारा माल ओ असबाब लेकर फरार हो गए . 
मुगीरा इब्न शअबा इस बड़े जुर्म के बाद मज़बूत पनाह चाहता था जो मुहम्मद के खेमे में इसे मिली . इसने मुहम्मद को तमाम रूदाद साफ साफ सुना दिया और इस शर्त पर इस्लाम कुबूल किया कि इसके लूटे हुए माल से मुहम्मद का कोई लेना देना नहीं होगा .. मुहम्मद को ऐसे बहादुर हत्यारे की तलाश हुवा करती थी . मुगीरा इब्न शअबा ने कालिमा पढ़ा और मुसलमान हो गया।
इसी मुगीरा इब्न शअबा को मुहम्मद के मरने के बाद दूसरे खलीफा उमर ने चालीस हज़ार फ़ौज का सर बराह बना कर कसरा (ईरान) पर हमला करने के लिए भेजा . ईरानी फौजी कमांडर से इस जाहिल की दिल चस्प गुफ्तुगू आप हदीस नं १२८९में देख सकते हैं।  

मुहम्मद के आकथू 
 ज़िक्र है मुहम्मद उमरे के सफ़र थे कि राह में कुछ कुरैश खेमा जन मिले . दोनों को एक दुसरे से खदशा महसूस हुवा। इसी सिलसिले में कुरैश के लोगों ने इरवा नाम के शख्स को मुहम्मद की टोली का जायजा लेने भेजा . इरवा और मुहम्मदी टोली के दरमियान गुफ्तुगू तकरार में बदल गई . इसी बीच इरवा ने देखा जब मुहम्मद थूकते हैं तो कोई न कोई उनका साथी थूक को हाथो हाथ लेकर थूक को अपने चेहरे और जिस्म पर मल लेता है . 
(बुखारी ११४४)

*इस घिनावनी अकीदत या मुआशी मजबूरी को क्या कहा जा सकता है . इन्हीं लोगों को आम मुसलमान सहाबी यानी मुहम्मद कालीन कहते हैं और बड़े एहतराम के साथ इनका नाम लेते हैं।  

लाल बुझक्कड़ 
मुहम्मद कहते हैं क़यामत के दिन सूरज ज़मीन से इतना करीब , यहाँ तक कि एक मील करीब आ जायगा , तो लोग अपने आमाल के मुवाफिक पसीने में डूबे होंगे . कोई तो टुख्नों तक डूबा होगा , कोई घुटनों तक , कोई इज़ार बंद बाँधने की जगह तक . किसी को पसीने की लगाम होगी यानी मुंह तक .
( मुस्लिम - - - किताबुल जन्नत ओ सिफ़्ता )

*मुहम्मद के दीवानों और पागलो !
इस हदीस को पढ़कर अंदाज़ा लगा सकते हो कि तुम्हारे मुहम्मद पैगम्बर थे या लाल बुझक्कड़ या तुम भी मुहम्मद की तरह अक्ल के पैदल हो ? 
पसीना मानिंद ओस होता है , हवा के झोके में उड़ जाता है , न बहता है न ही नदी और तालाब बनता है . सूरज हमसे करोडो मील दूर है . इस हालत में हम उसकी गर्मी से झुलस जाते हैं . इसकी लपटें लाखों किलो मीटर दूर तक फैलती हैं और लाल बुझक्कड़ कहते हैं कि उसका फासला सरों से एक मील रह जायगा , नतीजतन पसीने की दरया बह जायगी , जो इंसानों के जिस्म से निकलेगा , जिस्म जो दोज़ख की आग में जलते रहने के लिए सही सलामत बचा रहेगा .
यह मुसलमान कहे जाने वाली मखलूक कब तक बाकी बचा रहेगा ?

लाफ़ानी मौत 
मुहम्मद कहते हैं जो शख्स जिस तरह से खुद कुशी करता है , बोज़ख में इस पर वैसा ही रद्द-अमल होता है . पहाड़ से कूद कर मरा होगा तो दोझख में उसी अंदाज़ से गिरता रहेगा . ज़हर पीकर खुद कुशी की है तो दोज़ख में ज़हर ही पीता रहेगा . जिस हथियार को भोंक कर ख़ुद कुशी की होगी , वही हथियार दोज़ख में खुद को भोंकता रहेगा .
(बुख़ारी १९१७)

*फ़िल्मी दुन्या के लिए बहतरीन मौक़ा है कि इस हदीस को फिल्माएं और ऐसे नज़ारे दर्शकों को दें कि दोज़खी मुसलमान क्या क्या नज़ारे पेश करते हैं। 
खून बेसबब
मुहम्मद ने कहा क़सम खुद कि जिसके कब्जे में मेरी जान है, एक ज़माना आएगा कि क़त्ल करने वाला न जानेगा कि इसने क़त्ल क्यों किया और मकतूल न जानेगा कि वह क़त्ल क्यों किया जा रहा है .
(मुस्लिम - - - किताबुल फितन अशरातुल साइता )

 वह ज़माना तो आप के दफन होते ही आ गया . आपकी चाहीती बीवी आयशा और निखट्टू दामाद अली के दरमियान जंग ए जमल हुई जिसमे ताज़े ताज़े आपकी उम्मत के एक लाख मुसलमान मारे गए . जिसमे मारने वालों को पता था वह सामने वाले को इस्लाम क़ुबूल करने की सजा दे रहा है और मरने वाला भी समझ रहा था की वह इस्लाम कुबूल करने के जुर्म में मारे जा रहा है .
आज चौदा सौ सालों से मुसलमानों में आपसी जंगें हो रही हैं और एक दूसरे को इस्लाम में रहने की सजा दे रहे हैं .

मुर्दे की गवाही 
मुहम्मद कहते हैं बन्दा जब कब्र में रखा जाता है तो अपने साथियों की जूतियों की आवाज़ सुनता है , तब इसके पास दो फ़रिश्ते आते हैं और उसे उठा कर बिठा देते हैं और पूछते हैं कि तू मुहम्मद के बारे में क्या जानता है ? मोमिन कहता है मैं गवाही देता हूँ कि वह अल्लाह के बन्दे और अल्लाह के रसूल थे `अल्लाह तअला अपनी रहमत भेजे उन पर और सलाम . तो अपना ठिकाना देख जहन्नम में अल्लाह तअला ने तुझको जन्नत दिया . इसकी कब्र सत्तर हाथ चौड़ी हो जाती है और सबजी से भर जाती है , क़यामत तक .
( मुस्लिम - - - किताबुल जन्नत ओ सिफ़्ता )

 यह हदीस सब से पहले मुहम्मद ने अपनी साली इस्मा पर आजमाई थी उसके बाद आम लोगों से बतलाना शुरू किया . काश कि इस पर यकीन न करके मुहम्मद पर सवालों के बौछार लगा कर उन्हें नंगा कर देती कि जो आपसे पहले मरे वह आपकी गवाही कैसे देते?
 या हमारी झूटी गवाही को फ़रिश्ते मान जाते कि वह बिलकुल गधे होते हैं ?
मैं ने कब देखा है कि अल्लाह तुमको अपना रसूल बना रहा है ?


जीम. मोमिन