Monday 31 October 2016

बांग-ए-दरा 137




बांग ए दरा 

तबई झूट

मुहम्मदी अल्लाहसूरह में कुरआन को शब क़द्र की रात को उतारने की बात कर रहा है
तो कहीं पर कुरआन माहे रमजान में नाज़िल करने की बात करता है, 
जबकि कुरआन मुहम्मद के खुद साख्ता रसूल बन्ने के बाद उनकी आखरी साँस तक, 
तक़रीबन बीस साल चार माह तक मुहम्मद के मुँह से निकलता रहा. 
मुहम्मद का तबई झूट आपके सामने है. 
मुहम्मद की हिमाक़त भरी बातें तुम्हारी इबादत बनी हुई हैं, 
ये बडे शर्म की बात है. ऐसी नमाज़ों से तौबा करो. झूट बोलना ही गुनाह है, 
तुम झूट के अंबार के नीचे दबे हुए हो. 
तुम्हारे झूट में जब जिहादी शर शामिल हो जाता है तो वह बन्दों के लिए ज़हर हो जाता है. 
तुम दूसरों को क़त्ल करने वाली नमाज़ अगर पढोगे तो 
 सब मिल कर तुमको ख़त्म कर देंगे. 
मुस्लिम से मोमिन हो जाओ, बड़ा आसान है. 
सच बोलना, सच जीना और सच ही पर मर जाना सीखो.  
 ये बात सोचने में है पहाड़ लगती है, अमल पर आओ तो कोई रूकावट नहीं.

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Sunday 30 October 2016

बांग-ए-दरा 136




बांग ए दरा 

छुटकारा

गौर करो कि जिस अल्लाह की तुम बंदगी करते हो वह किस क़दर आतिशी है?
कितना ज़बरदस्ती करने वाला?
कैसा ज़ालिम तबा? है ?
इससे पल झपकते ही छुटकारा पा सकते हो.
बस मुहम्मद से नजात पा जाओ. 
मुहम्मद जो सियासत दान है, कीना परवर है, इक्तेदार का भूका है, शर्री और बोग्ज़ी है. 
इसकी बड़ी बुराई और जुर्म ये है कि ये मुजस्सम झूठा शैतान है.
मुहम्मदी अल्लाह उसी की पैदा की हुई नाजायज़ औलाद है.
अगर मैं आज अल्लाह का रसूल बन जाऊँ तो मेरी दुआ कुछ इस तरह होगी - - -
"ऐ रसूल! तू मेरे बन्दों को आगाह कर कि ये दुनयावी ज़िन्दगी आरज़ी है और आख़िरी भी. इस लिए इसको कामयाबी के साथ जीने का सलीक़ा अख्तियार कर.
"ऐ बन्दे! तू सेहत मंद बन और अपनी नस्लों को सेहत मंद बना, 
उसके बाद तू कमज़ोरों का सहारा बन. "
ऐ बन्दे! हमने अगर तुझे दौलत दी है तो तू मेरे बन्दों के लिए रोज़ी के ज़राए पैदा कर.
"ऐ बन्दे ! हमने तुझे अगर ज़ेहन दिया है तो तू लोगों को इल्म बाँट,
"ऐ बन्दे! तू मेरी मख्लूक़ को जिस्मानी, ज़ेहनी और माली नुसान मत पहुँचा, 
ये अमल तुझे और तेरी नस्लों को पामाल करेगा.
"ऐ बन्दे! बन्दों के दुःख दर्द को समझ, यही तेरी ज़िंदगी की अस्ल ख़ुशी है. 
"ऐ बन्दे! तू मेरे बन्दों का ही नहीं तमाम मख्लूक़ का ख़याल रख 
क्यूंकि मैंने तुझे अशरफुल मख्लूकात बनाया है.
"ऐ बन्दे! मखलूक का ही नहीं बल्कि तमाम पेड़ पौदों का भी ख़याल रख 
क्यूंकि ये सब तेरे फ़ायदे के लिए हैं.
"ऐ बन्दे! साथ साथ इस धरती का भी ख़याल रख 
क्यूंकि यही सब जीव जंतु औए पेड़ पौदों की माँ है.
"ऐ बन्दे! तू कायनात का ही एक जुज़्व है, इसके सिवा कुछ भी नहीं.
"ऐ बन्दे! तू अपनी ज़िन्दगी को भरपूर खुशियों से भर ले 
मगर किसी को ज़रर पहुँचाए बगैर.
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Saturday 29 October 2016

बांग-ए-दरा 135



बांग ए दरा 

नक़लची बन्दर 

ज़रा गौर करो कि नमाज़ में तुम अल्लाह के हुक्म नामे को दोहरा रहे हो. 
अगर कोई हाकिम हैं और अपने अमले को कोई हुक्म जारी करता है, 
तो अमला रद्दे अमल में हुक्म की तामील करता है या हुक्म नामे को पढता है? 
हुक्म नामे को पढना गोया हाकिम होने की दावा दारी करने जैसा है. 
अल्लाह के कलाम को दोहराना क्या अल्लाह की नकल करने जैसा नहीं है? 
अल्लाह कहता है - - -
आप अपने परवर दिगार के नाम की तस्बीह कीजिए,
जिसने बनाया, फिर ठीक बनाया, जिसने तजवीज़ किया, फिर राह बताई,
और जिसने चारा निकाला और फिर उसको स्याह कोड़ा कर दिया,
हम वादा करते हैं की हम कुरआन आपको पढ़ा दिया करेगे,
फिर आप नहीं भूलेगे मगर जिस कद्र अल्लाह को मंज़ूर हो,
और उसकी कही बात को तुम उसके सामने दोहराते हो गोया ?
अल्लाह बन कर अल्लाह को चिढाते हो? कहते हो कि
 "हम वादा करते हैं की हम कुरआन आपको पढ़ा दिया करेगे,"
मुसलमानी दिमाग का हर कल पुर्जा ढीला है, 
यह अंजाम है जाहिल रसूल की पैरवी का.
यहूदी अपने इलोही का नाम बाइसे एहतराम लिखाते नहीं 
और मुसलमान अल्लाह बन कर उसके हुक्म की नकल करके उसकी खिल्ली उडाता है.

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Friday 28 October 2016

बांग-ए-दरा 134


बांग ए दरा 
मुसलामानों  ! 

तुम अपना एक कुरआन खरीद कर लाओ और काले स्केच पेन से उन इबारतो को मिटा दो जो ब्रेकेट में मुतरज्जिम ने कही है, क्यूँ कि ये कलाम बन्दे का है, अल्लाह नहीं. 
आलिमो ने अल्लाह के कलाम में दर असल मिलावट कर राखी है.
 अल्लाह की प्योर कही बातों को बार बार पढो अगर पढ़ पाओ तो, 
क्यूंकि ये बड़ा सब्र आजमा है. 
शर्त ये है कि इसे खुले दिमाग से पढो, 
अकीदत की टोपी लगा कर नहीं. 
जो कुछ तुम्हारे समझ में आए बस वही कुरआन है, इसके आलावा कुछ भी नहीं. 
जो कुछ तुम्हारी समझ से बईद है वह आलिमो की समझ से भी बाहर है. 
इसी का फायदा उठा कर उन्हों ने हजारो क़ुरआनी नुस्खे लिखे हैं 
अधूरा पन कुरआन का मिज़ाज है, 
बे बुन्याद दलीलें इसकी दानाई है. 
बे वज़न मिसालें इसकी कुन्द ज़ेहनी है, 
जेहालत की बातें करना इसकी लियाक़त है. 
किसी भी दाँव पेंच से इस कायनात का खुदा बन जाना मुहम्मद का ख्वाब है. 
इसके झूट का दुन्या पर ग़ालिब हो जाना मुसलामानों की बद नसीबी है.
आइन्दा सिर्फ पचास साल इस झूट की ज़िन्दगी है. 
इसके बाद इस्लाम एक आलमी जुर्म होगा. 
मुसलमान या तो सदाक़त की रह अपना कर तर्क इस्लाम करके अपनी और अपने नस्लों की ज़िन्दगी बचा सकते है 
या बेयार ओ मददगार तालिबानी मौत मारे जाएँगे. 
ऐसा भी हो सकता है ये तालिबानी मौत पागल कुत्तों की मौत जैसी हो, 
जो सड़क, गली और कूँचों में घेर कर दी जाती है.
मुसलामानों को अगर दूसरा जन्म गवारा है तो आसान है, 
मोमिन बन जाएँ. मोमिन का खुलासा मेरे मज़ामीन में है.

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Thursday 27 October 2016

बांग-ए-दरा 133


बांग ए दरा 

अधूरा बयान 

कोई तालीम याफ़्ता शख्स अगर बोलेगा तो उसका एक एक लफ्ज़ बा मअनी होगा, 
चाहे वह ज्यादा बोलने वाला हो चाहे कम. इसके बर अक्स जब कोई अनपढ़ उम्मी बोलेगा, 
चाहे ज़्यादा चाहे कम, तो वह ऐसा ही होगा जैसा तुमने कुरआन में देखा. 
किसी मामूली वाकिए को अधूरा बयान करके वह आगे बढ़ जाता है, 
ये उम्मी मुहम्मद की एक निकम्मी अदा है. 
सूरह में लोगों को न समझ में आने वाली बातें या वाक़िया होते हैं. 
इनकी जानकारी का इश्तियाक तुम्हें कभी कभी आलिमो तक खींच ले जाता है. 
तुम्हारे तजस्सुस को देख कर आलिम के कान खड़े हो जाते हैं. 
इस डर से कि कहीं बन्दा बेदार तो नहीं हो रहा है? 
बाद में वह तुम्हारी हैसियत और तुम्हारे जेहनी मेयार को भांपते हुए 
तुम से क़ुरआनी आयातों को समझाता है. 
सवाली उसके जवाब से मुतमईन न होते हुए भी उसका लिहाज़ करता हुवा चला जाता है. 
उसमें हिम्मत नहीं कि वह आलिम से मुसलसल सवाल करता रहे 
जब तक कि उसके जवाब से मुतमईन न हो जाए.
एक वाक़िया है कि आग तापते हुए मुसल्मानो की काफिरों से कुछ कहा-सुनी हो गई थी
तो ये बात क़ुरआनी आयत क्यूं बन गई?
मुहम्मद का दावा है कुरआन अल्लाह हिकमत वाले का कलाम है.
क्या अल्लाह की यही हिकमत है?
आलिम के जवाब पर सवाल करना तुम्हारी मर्दानगी से बईद है. 
यही बात तुमको दो नम्बरी कौम बने रहने की वजह है.
तुम्हारे ऊपर कभी अल्लाह का खौफ तारी रहता है तो कभी समाज का. 
तुम सोचते हो .कि तुम खामोश रह कर जिंदगी को पार लगा लो.
इस तरह तुम अपनी नस्ल की एक खेप और इस दीवानगी के हवाले करते हो.

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Wednesday 26 October 2016

बांग-ए-दरा 132



 बांग ए दरा 
लामतनाही कायनात 

आसमान कोई चीज़ नहीं होती, ये कायनात लामतनाही और मुसलसल है, 
५०० किलो मीटर हर रोज़ अज़ाफत के साथ साथ बढ़ रही है. 
ये आसमान जिसे आप देख रहे हैं, ये आपकी हद्दे नज़र है. 
इस जदीद इन्केशाफ से बे खबर अल्लाह आसमान को ज़मीन की छत बतलाता है, 
और बार बार इसके फट जाने की बात करता है,. 
अल्लाह के पीछे छुपे मुहम्मद सितारों को आसमान पर सजे हुए कुम्कुमें समझते हैं , 
इन्हें ज़मीन पर झड जाने की बातें करते हैं. जब कि ये सितारे ज़मीन से कई कई गुना बड़े होते हैं..
अल्लाह कहता है जब सब दरियाएँ बह पड़ेंगी. 
है न हिमाक़त की बात, क्या सब दरिया कहीं रुकी हुई हैं? 
कि बह पड़ेंगी. बहती का नाम ही दरिया है.
तुम्हारे तअमीर और तकमील में तुम्हारा या तुम्हारे माँ बाप का कोई दावा, दख्ल तो नहीं है, 
इस जिस्म को किसी ने गढ़ा हो, फिर अल्लाह हमेशा इस बात का इलज़ाम क्यूँ लगता रहता है 
कि उसने तुमको इस इस तरह से बनाया. 
इसका एहसास और एहसान भी जतलाता रहता है कि 
इसने हमें अपनी हिकमत से मुकम्मल किया. 
सब जानते हैं कि इस ज़मीन के तमाम मखलूक इंसानी तर्ज़ पर ही बने हैं, 
कुरआन में वह चरिंद, परिन्द और दरिंद को अपनी इबादत के लिए मजबूर क्यूँ नहीं करता?
इस तरह तमाम हैवानों को अल्लाह की मर्ज़ी के मुताबिक मुसलमान होना चाहिए. 
मगर ये दुन्या अल्लाह के वजूद से बे खबर है.
अल्लाह कह चुका है कि वह इंसान का मुक़द्दर हमल में ही लिख देता है, 
फिर इसके बाद दो फ़रिश्ते आमाल लिखने के लिए इंसानी कन्धों पर क्यूँ बिठा रख्खे है?
असले-शहूद ओ शाहिद ओ मशहूद एक है,
हैराँ हूँ फिर मुशाहिदा है किस हिसाब का.
(ग़ालिब)

तज़ादों से पुर इस अल्लाह को पूरी जिसारत से समझो, ये एक जालसाजी है, 
इंसानों का इंसानों के साथ, इस हकीकत को समझने की कोशिश करो. 
जन्नत और दोज़क्ज इन लोगों की दिमागी पैदावार है 
इसके डर और इसकी लालच से ऊपर उट्ठो. 
तुम्हारे अच्छे अमल और नेक ख़याल का गवाह अगर तुम्हारा ज़मीर है 
तो कोई ताक़त नहीं जो मौत के बाद तुम्हारा बाल भी बीका कर सके. 
औए अगर तुम गलत हो तो इसी ज़िन्दगी में अपने आमाल का भुगतान करके जाओगे.
मुहम्मद अल्लाह की ज़बान से कहते हैं 
"उस दिन तमाम तर हुकूमत अल्लाह की होगी"
आज कायनात की तमाम तर हुकूमत किसकी है? 
क्या अल्लाह इसे शैतान के हवाले करके सो रहा है?


hadeesi hadse 433




हदीसी हादसे 

बुखारी ९६3 
बाज़ार में मुहम्मद को छेड़ते हुए एक शख्स ने उनके पीछे से आवाज़ दी "अबू कासिम !"
मुहम्मद ने गर्दन मोड़ कर पीछे देखा तो आवाज़ देने वाले ने कहा " मैं ने आप को नहीं बुलाया, कोई और है."
मुहम्मद ने कहा "मेरा नाम रखा जा सकता है, मेरी कुन्नियत नहीं."
* मुहम्मद की कद्रो-कीमत ऐसी थी कि लोग राह चलते उन्हें छेड़ते.
बुखारी ९४१
मुहम्मद की बीवी खदीजा ने अपने शौहर से पूछा कि लोग गोश्त हमें भेज देते है, पता नहीं हलाल होता भी है ? मुहम्मद ने कहा बिस्मिल्लाह करके खा लिया करो.
*मगर आजका मुसलमान ग़ैर हलाल गोश्त को किसी हाल में नहीं खायगा,भले शराब गले तक पी ले.                          
बुखारी ९४६
मुहम्मद कहते है कि अपने हाथ की कमाई हुई रोज़ी ही सब से बढ़ कर है. आगे कहते हैं कि दाऊद खुद मशक्क़त की रोज़ी कमाते थे.
*पहली बात तो ठीक है मगर दाऊद एक लुटेरा डाकू से बादशाह बन गया, आप जनाब इसकी हकीकत से नावाकिफ़ हैं.बस उड़ाते हैं.
बुखारी ९५६
सहाबी जाबिर कहता है कि एक जिहाद के बाद मैं मुहम्मद के साथ घर वापस हो रहा था, मुहम्मद ने पूछा कि शादी कर लिया है?
मैंने कहा हाँ,
कहा कुंवारी से या ब्याहता से?
मैं ने कहा ब्याहता से . 
कहने लगे कुंवारी से किया होता, तुम उसके साथ खेलते, वह तुमहारे साथ खेलती.
*इसी वजेह से इन्हें रंगीला रसूल कहा जाता है. और ओलिमा इन्हें बेवाओं का मसीहा बतलाते हैं.


Monday 24 October 2016

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बांग-ए-दरा


बांग ए दरा 

कुरानी भूल भुलय्या 

मुसलमानों तुम अल्लाह के कलाम की नंगी तस्वीर देख रहे हो, कुरआन में इसके तर्जुमान इसे अपनी चर्ब ज़बानी से बा लिबास करते है.
 क्या बक रहे हैं तुम्हारे रसूल ? 
वह ईमान लाए हुए मुसलामानों को दोज़ख में देखने की आरज़ू रखते हैं. 
किसी तोहफे की तरह नवाजने का यकीन दिलाते हैं. 
" वल्लाह तुम लोग ज़रूर दोज़ख को देखोगे." 
अगर वाकई कहीं दोज़ख होती तो उसमें जाने वालों में मुहम्मद का नाम सरे फेहरिश्त होता.
आख़िरी आयत "वल्लाह तुम लोग ज़रूर इसको ऐसा देखना देखोगे जोकि खुद यक़ीन है, फिर उस रोज़ तुम सबको नेमतों की पूछ होगी".
को बार दोहरा कर कोई माकूल मतलब निकल सको तो निकालो.
*****




बांग-ए-दरा


बांग ए दरा 

कुरानी भूल भुलय्या 

मुसलमानों तुम अल्लाह के कलाम की नंगी तस्वीर देख रहे हो, कुरआन में इसके तर्जुमान इसे अपनी चर्ब ज़बानी से बा लिबास करते है.
 क्या बक रहे हैं तुम्हारे रसूल ? 
वह ईमान लाए हुए मुसलामानों को दोज़ख में देखने की आरज़ू रखते हैं. 
किसी तोहफे की तरह नवाजने का यकीन दिलाते हैं. 
" वल्लाह तुम लोग ज़रूर दोज़ख को देखोगे." 
अगर वाकई कहीं दोज़ख होती तो उसमें जाने वालों में मुहम्मद का नाम सरे फेहरिश्त होता.
आख़िरी आयत "वल्लाह तुम लोग ज़रूर इसको ऐसा देखना देखोगे जोकि खुद यक़ीन है, फिर उस रोज़ तुम सबको नेमतों की पूछ होगी".
को बार दोहरा कर कोई माकूल मतलब निकल सको तो निकालो.
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बांग-ए-दरा


बांग ए दरा 

कुरानी भूल भुलय्या 

मुसलमानों तुम अल्लाह के कलाम की नंगी तस्वीर देख रहे हो, कुरआन में इसके तर्जुमान इसे अपनी चर्ब ज़बानी से बा लिबास करते है.
 क्या बक रहे हैं तुम्हारे रसूल ? 
वह ईमान लाए हुए मुसलामानों को दोज़ख में देखने की आरज़ू रखते हैं. 
किसी तोहफे की तरह नवाजने का यकीन दिलाते हैं. 
" वल्लाह तुम लोग ज़रूर दोज़ख को देखोगे." 
अगर वाकई कहीं दोज़ख होती तो उसमें जाने वालों में मुहम्मद का नाम सरे फेहरिश्त होता.
आख़िरी आयत "वल्लाह तुम लोग ज़रूर इसको ऐसा देखना देखोगे जोकि खुद यक़ीन है, फिर उस रोज़ तुम सबको नेमतों की पूछ होगी".
को बार दोहरा कर कोई माकूल मतलब निकल सको तो निकालो.
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बांग-ए-दरा


बांग ए दरा 

कुरानी भूल भुलय्या 

मुसलमानों तुम अल्लाह के कलाम की नंगी तस्वीर देख रहे हो, कुरआन में इसके तर्जुमान इसे अपनी चर्ब ज़बानी से बा लिबास करते है.
 क्या बक रहे हैं तुम्हारे रसूल ? 
वह ईमान लाए हुए मुसलामानों को दोज़ख में देखने की आरज़ू रखते हैं. 
किसी तोहफे की तरह नवाजने का यकीन दिलाते हैं. 
" वल्लाह तुम लोग ज़रूर दोज़ख को देखोगे." 
अगर वाकई कहीं दोज़ख होती तो उसमें जाने वालों में मुहम्मद का नाम सरे फेहरिश्त होता.
आख़िरी आयत "वल्लाह तुम लोग ज़रूर इसको ऐसा देखना देखोगे जोकि खुद यक़ीन है, फिर उस रोज़ तुम सबको नेमतों की पूछ होगी".
को बार दोहरा कर कोई माकूल मतलब निकल सको तो निकालो.
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बांग-ए-दरा


बांग ए दरा 

कुरानी भूल भुलय्या 

मुसलमानों तुम अल्लाह के कलाम की नंगी तस्वीर देख रहे हो, कुरआन में इसके तर्जुमान इसे अपनी चर्ब ज़बानी से बा लिबास करते है.
 क्या बक रहे हैं तुम्हारे रसूल ? 
वह ईमान लाए हुए मुसलामानों को दोज़ख में देखने की आरज़ू रखते हैं. 
किसी तोहफे की तरह नवाजने का यकीन दिलाते हैं. 
" वल्लाह तुम लोग ज़रूर दोज़ख को देखोगे." 
अगर वाकई कहीं दोज़ख होती तो उसमें जाने वालों में मुहम्मद का नाम सरे फेहरिश्त होता.
आख़िरी आयत "वल्लाह तुम लोग ज़रूर इसको ऐसा देखना देखोगे जोकि खुद यक़ीन है, फिर उस रोज़ तुम सबको नेमतों की पूछ होगी".
को बार दोहरा कर कोई माकूल मतलब निकल सको तो निकालो.
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Saturday 22 October 2016

बांग-ए-दरा 130


बांग-ए-दरा 

सूरह अहज़ाब 

कुरआन की बहुत अहेम सूरह है जिसे कि मदीने की "दास्तान ए बेग़ैरत" कहा जा सकता है. यह मुहम्मद के काले करतूत को उजागर करती है. मुहम्मद ने इंसानी समाज को कैसे दाग़दार किया है, इसकी मिसाल बहैसियत एक रहनुमा, दुन्या में कहीं न मिल सकेगी. कारी हजरात (पाठक गण) से इंसानियत का वास्ता दिला कर अर्ज़ है कि सूरह को समझने के लिए कुछ देर की ख़ातिर अक़ीदत का चश्मा उतार कर फेंक दें, फिर हक़ और सदाक़त की ऐनक लगा कर मुहम्मदी अल्लाह को और मुहम्मद को समझें.
ज़ैद - एक मज़लूम का पसे-मंज़र - - -
एक सात आठ साल का मासूम बच्चा ज़ैद को बिन हरसा को बस्ती से बुर्दा फरोशों (बच्चा चोरों) ने अपहरण कर लिया और मक्के में लाकर मुहम्मद के हाथों फरोख्त कर दिया. 
ज़ैद बिन हारसा अच्छा बच्चा था, इस लिए मुहम्मद और उनकी बेगम खदीजा ने उसे भरपूर प्यार दिया. 
उधर ज़ैद का बाप हारसा अपने बेटे के ग़म में पागल हो रहा था, वह लोगों से रो-रो कर और गा-गा कर अपने बेटे को ढूँढने की इल्तेजा करता. 
उसे महीनों बाद जब इस बात का पता चला कि उसका लाल मक्के  में मुहम्मद के पास है तो वह अपने भाई को साथ लेकर मुहम्मद के पास हस्बे-हैसियत फिरौती की रक़म लेकर पहुँचा. मुहम्मद ने उसकी बात सुनी और कहा---
"पहले ज़ैद से तो पूछ लो कि वह क्या चाहता है."
ज़ैद को मुहम्मद ने आवाज़ दी, वह बाहर निकला और अपने बाप और चाचा से फ़र्ते मुहब्बत से लिपट गया, मगर बच्चे ने इनके साथ जाने से मना कर दिया.
"खाई मीठ कि माई" ?
बदहाल माँ बाप का बेटा था. हारसा मायूस हुवा. मुआमले को जान कर आस पास से भीड़ आ गई, मुहम्मद ने सब के सामने ज़ैद को गोद में उठा कर कहा था,
"आप सब के सामने मैं अल्लाह को गवाह बना कर कहता हूँ कि आज से ज़ैद मेरा बेटा हुआ और मैं इसका बाप"
ज़ैद अभी नाबालिग ही था कि मुहम्मद ने इसका निकाह अपनी हब्शन कनीज़ ऐमन से कर दिया. ऐमन मुहम्मद की माँ आमना की कनीज़ थी जो मुहम्मद से इतनी बड़ी थी कि आमिना की मौत के बाद बचपन से ही वह मुहम्मद की देख भाल करने लगी थी.
आमिना चल बसी, यहाँ तक कि वह सिने बलूगत में आ गए. पच्चीस साल की उम्र में जब मुहम्मद ने चालीस साला खदीजा से निकाह किया तो ऐमन को भी वह खदीजा के घर अपने साथ ले गए.
जी हाँ! आप के सल्लाल्ह - - - घर जँवाई हुआ करते थे और ऐमन उनकी रखैल बन चुकी थी. ऐमन को एक बेटा ओसामा हुआ जब कि अभी उसका बाप ज़ैद सिने-बलूगत को भी न पहुँचा था, अन्दर की बात है कि मशहूर सहाबी ओसामा मुहम्मद का ही नाजायज़ बेटा था.
ज़ैद के बालिग होते ही मुहम्मद ने उसको एक बार फिर मोहरा बनाया और उसकी शादी अपनी फूफी ज़ाद बहन ज़ैनब से कर दी. खानदान वालों ने एतराज़ जताया कि एक गुलाम के साथ खानदान कुरैश की शादी ? मुहम्मद जवाब था, ज़ैद गुलाम नहीं, ज़ैद, ज़ैद बिन मुहम्मद है.
फिर हुआ ये,
एक रोज़ अचानक ज़ैद घर में दाखिल हुवा, देखता क्या है कि उसका मुँह बोला बाप उसकी बीवी के साथ मुँह काला कर रहा है. उसके पाँव के नीचे से ज़मीन सरक गई, घर से बाहर निकला तो घर का मुँह न देखा. हवस से जब मुहहम्मद फ़ारिग हुए तब बाहर निकल कर ज़ैद को बच्चों की तरह ये हज़रत बहलाने और फुसलाने लगे, मगर वह न पसीजा. 
मुहम्मद ने समझाया जैसे तेरी बीवी ऐमन के साथ मेरे रिश्ते थे वैसे ही ज़ैनब के साथ रहने दे. तू था क्या? मैं ने तुझको क्या से क्या बना दिया, पैगम्बर का बेटा, हम दोनों का काम यूँ ही चलता रहेगा, मान जा,
ज़ैद न माना तो न माना, बोला तब मैं नादान था, ऐमन आपकी लौंडी थी जिस पर आप का हक यूँ भी था मगर ज़ैनब मेरी बीवी और आप की बहू है,
आप पर आप की  पैगम्बरी क्या कुछ कहती है?
मुहम्मद की ये कारस्तानी समाज में सड़ी हुई मछली की बदबू की तरह फैली. औरतें तआना ज़न हुईं कि बनते हैं अल्लाह के रसूल और अपनी बहू के साथ करते हैं मुँह काला .
अपने हाथ से चाल निकलते देख कर ढीठ मुहम्मद ने अल्लाह और अपने जोकर के पत्ते जिब्रील का सहारा लिया,
एलान किया कि ज़ैनब मेरी बीवी है, मेरा इसके साथ निकाह हुवा है, निकाह अल्लाह ने पढाया है और गवाही जिब्रील ने दी थी,
अपने छल बल से मुहम्मद ने समाज से मनवा लिया. उस वक़्त का समाज था ही क्या? रोटियों को मोहताज, उसकी बला से मुहम्मद की सेना उनको रोटी तो दे रही है.
ओलिमा ने तब से लेकर आज तक इस मजमूम वाकिए की कहानियों पर कहानियाँ गढ़ते फिर रहे है, इसी लिए मैं इन्हें अपनी माँ के खसम कहता हूँ. 
*****



Friday 21 October 2016

बांग-ए-दरा 129




बांग ए दरा 

 तराशा हुआ झूट 

कुफ्फार कहते हैं - -
" ए मुहम्मद ये क़ुरआन तुम्हारा तराशा हुआ झूट है"
क़ुरआन मुहम्मद का तराशा हुवा झूट है, ये सौ फ़ीसदी सच है. 
कमाल का खमीर था उस शख्स का, जाने किस मिटटी का बना हुवा था वह, 
शायद ही दुन्या में पैदा हुवा हो कोई इंसान, तनहा अपनी मिसाल आप है वह. 
अड़ गया था अपनी तहरीक पर जिसकी बुनियाद झूट और मक्र पर रखी हुई थी. 
हैरत का मुकाम ये है की हर सच को ठोकर पर मरता हुवा, 
हर गिरफ़्त पर अपने पर झाड़ता हुवा, 
झूट के बीज बोकर फरेब की फसल काटने में कामयाब रहा. 
दाद देनी पड़ती है कि इस कद्र बे बुन्याद दलीलों को लेकर उसने इस्लाम की वबा फैलाई
 कि इंसानियत उस का मुंह तकती रह गई. 
साहबे ईमान लोग मुजरिम की तरह मुँह छिपाते फिरते. 
खुद साख्ता पैगम्बर की फैलाई हुई बीमारी बज़ोर तलवार दूर दराज़ तक फैलती चली गई. वक़्त ने इस्लामी तलवार को तोड़ दिया मगर इसकी बीमारी नहीं टूटी. 
इसके मरीज़ इलाज ए जदीद की जगह इस्लामी ज़हर पीते चले गए, 
खास कर उन जगहों पर जहाँ मुकामी बद नज़मी के शिकार और दलित लोग. 
इनको मजलूम से ज़ालिम बनने का मौक़ा जो मिला.
इस्लाम की इब्तेदा ये बतलाती है कि मुहम्मद का ख़ाब क़बीला ए क़ुरैश की अजमत क़ायम करना और अरब की दुन्या तक ही था, इस कामयाबी के बाद अजमी (गैर अरब) दुन्या इसके लूट का मैदान बनी, साथ साथ ज़ेहनी गुलामी के लिए तैयार इंसानी फसल भी. 
मुहम्मद अपनी जाबिराना आरज़ू के तहत बयक वक़्त दर पर्दा अल्लाह बन गए, 
मगर बजाहिर उसके रसूल खुद को कायम किया. 
वह एक ही वक़्त में रूहानी पेशवा, मुमालिक के रहनुमा और बेताज बादशाह हुए, 
इतना ही नहीं, एक डिक्टेटर भी थे, बात अगर जिन्स की चले तो राजा इन्दर साबित होते हैं. कमाल ये कि मुतलक़ जाहिल, एक कबीलाई फर्द. हठ धर्मी को ओढ़े-बिछाए, जालिमाना रूप धारे, जो चाहा अवाम से मनवाया, इसकी गवाही ये कुरआन और उसकी हदीसें हैं. 
मुहम्मद की नकल करते हुए हजारों बाबुक खुर्मी और अहमदी हुए मगर कोई मुहम्मद की गर्द भी न छू सका.
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Thursday 20 October 2016

बांग-ए-दरा 128


बांग-ए-दरा 

हाफ़िज़े कुरआन

चौदह सौ सालों में इसके लाखों हाफिज़ हुए होंगे और आज भी हजारहा मौजूद हैं. इस बात पर एक तहक़ीक़ी निगाह डालने की ज़रुरत है. सब से पहले कि कुरआन एक मुक़फ्फ़ा नसर (तुकान्ती गद्य) है जिसमे सुर, लय और तरन्नुम बनना फितरी है. इसको नगमों की तरह याद किया जा सकता है. खुद कुरआन के तर्जुमे को किसी दूसरी भाषा में हिफ्ज़ कर पाना मुमकिन नहीं, क्यूंकि ये कोई संजीदा मज़मून नहीं है, कोई भी नज़्म खुद को याद कराने की कशिश रखती है. इसके हिफ्ज़ का शिकार तालिब इल्म किसी दूसरे मज़मून के आस पास नहीं रहता, जब वह दूसरे सब्जेक्ट पर जोर डालता है तो उसका क़ुरआनी हिफ्ज़ ख़त्म होने लगता है.
आमाद ए जेहाद तालिब इल्म कुरआन क्या, इससे बड़ी बड़ी किताबो का हफिज़ा कर लेता है. एक लाख बीस हज़ार की ज़खीम किताब महा भारत बहुतों को कंठस्त हुई. सिन्फ़ आल्हा ज़बानी गाया जाता है जो बांदा जिले के लोगों में सीना बसीना अपने पूर्वजों से आय़ा. इस विधा को जाहो-जलाल के साथ गाया जाता है कि सुनने वाले पर जादू चढ़ कर बोलता है.
अभी एक नवजवान ने पूरी अंग्रेजी डिक्शनरी को, लफ़्ज़ों को उलटी हिज्जे के साथ याद करके दुन्या को अचम्भे में ड़ाल दिया, इसका नाम गिनीज़ बुक आफ रिकार्ड में दर्ज हुआ.
अहम् बात ये है कि इतनी बड़ी तादाद में हाफ़िज़े कुरआन, कौम के लिए कोई फख्र की बात नहीं, ये तो शर्म की बात है कि कौम के नवजवान को हाफ़िज़े जैसे गैर तामीरी काम में लगा दिया जाए. इतने दिनों में तो वह ग्रेजुएट हो जाते. कोई कौम दुन्या में ऐसी नहीं मिलेगी जो अपने नव जवानों की ज़िन्दगी इस तरह से बर्बाद करती हो.
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Wednesday 19 October 2016

हदीसी हादसे ४३२




हदीसी हादसे 

 बुखारी ९४०

बड़े भाई इतबा ने छोटे भाई साद को वसीहत की थी कि ज़िमा की लौड़ी का बच्चा मेरे नुतफे से है,जब वह पैदा हो तो तुम उसे ले लेना. फ़तेह मक्का में इतबा मारे गए और लौंडी ने बच्चा जना, गोया साद उसको लेने पहुंचे. ज़िमा के बेटे ने बच्चे को देने से इनकार कर दिया और दलील दी कि बच्चा मेरा भाई है क्योंकि मेरे बाप की मातहती में पैदा हुवा हैं इस लिए मेरा हुवा. मुआमला मुहम्मद तक पहुँच तो उन्हों ने कहा बच्चा इब्ने ज़िमा का है हलाकि बच्चे की मुशाबिहत इतबा से मिल रही थी. कहा ज़ानी के लिए तो पत्थर है.

*मुहम्मद अपने मुआमले को भूल गए जब लौड़ी मार्या से बेटा इब्राहीम पैदा हुवा और एलान्या उसे अपनी औलाद कहा और उसका अकीक़ा भी किया.

कहते हैं हम अल्लाह के रसूल ठहरे,  इस लिए मेरे सारे गुनाह मुआफ. ऐसे ढीठ थे तुमहारे पैगम्बर, ऐ मुसलमानों!

बुखारी ९०४

मुहम्मद ने दौरान सफ़र देखा कि एक जगह लोगों का अजदहाम है, मुआमला जानना चाहा, लोगों ने बतलाया कि एक रोज़ेदार पर लोग साया किए हुए हैं. उन्हों ने कहा सफ़र में रोज़ा कोई नेक काम नहीं है, अपनी जन को हलाक़त में मत डालो.



 बुखारी ९००
रमजान का महीना था, मुहम्मद ऊँट पर सफ़र में थे अपने साथी को हुक्म दिया उतरो मेरे लिए सत्तू बनाओ, उसने कहा अभी रोज़ा अफ्तार का वक़्त नहीं हुवा है.
कुछ देर बाद फिर उससे अपनी बात दोहराई,
उसने फिर कहा अभी वक़्त नहीं हुवा है.
कुछ देर बाद मुहम्मद ने फिर कहा उतरो मेरे लिए सत्तू बनाओ.
वह उतरा और सत्तू बना कर दे दिया.
मुहम्मद खा पी कर फारिग़ हुए तो कहा जब रात  पच्छिम की तरफ़ से आ जाए तो समझ लो रोज़े का वक़्त आ गया.
जहाँ खुद मुहम्मद इतने लिबरल हैं वहीँ मुसलमान उनके मानने वाले इतने सख्त क्यों होते हैं? उनकी जान पर बन जाय मगर रोज़ा वक़्त से पहले न खोलेगे.
इसी तरह पहले हदीस आ चुकी है की मुहम्मद ने आयशा से कहा गोश्त को हराम हलाल मत देखो और बिस्मिल्ला करके खा लिया करो.



बांग-ए-दरा 127




बांग ए दरा 

फतह मक्का के बाद 

मुहम्मद लगभग हाकिम बन चुके हैं, 
इनके मुँह से निकली हुई हर बात आयते क़ुरआनी हो जाती है. 
वह अल्लाह के रसूल की बजाए, अल्लाह उनका रसूल बन जाता है. 
नए रसूल की सियासी सूझ बूझ और तौर तरीकों के आगे पुराने 
 रसूल मुहम्मद का साया नज़र आता है. 
वह अपने गिर्द फैले हुए जाँ निसारों, चापलूसों और लाखैरों की 
शिनाख्त बड़ी महारत से करने लगे हैं. 
मक्का में वह कुफ़फ़ार का मुकाबिला जूनून और मसलेहत के साथ कर रहे थे 
और मदीने में मुनाफिक़ों का सामना जिसारत के साथ करते नज़र आते हैं. 
रसूल को अब भर्ती के मुसलमान नहीं चाहिएं. 
वह अपने मुँह लगे साथियों के मुँह में लगाम लगाने लगे हैं
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फ़ह्माइश 

आज जदीद क़द्रें आ चुकी हैं कि 'बिन माँगी राय' मत दो, क़ुरआन कहता है,
" एक दूसरे को हक की फ़ह्माइश करते रहो"
हक नाहक इंसानी सोच पर मुनहसर करता है, जो तुम्हारे लिए हक़ का मुक़ाम रखता है, वह किसी दूसरे के लिए नाहाक़ हो सकता है. उसको अपनी नज़र्याती राय देकर, फर्द को महेज़ आप छेड़ते हैं, जो कि अंततः झगडे  का सबब बन सकता है.
कुरानी तालीम का असर है कि मुसलामानों में तबलीग का फैशन बन गया है और इसकी जमाअतें बन गई हैं. यही तबलीग (फ़ह्माइश)जब जब शिद्दत अख्तियार करती है तो जान लेने और जान देने का सबब बन जाती है और इसकी जमाअतें तालिबानी हो जाती हैं.
इस्लाम हर पहलू से दुश्मने-इंसानियत है. अपनी नस्लों को इसके साए से बचाओ.
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Tuesday 18 October 2016

बांग-ए-दरा 126


बांग ए दरा 


नबी को अल्लाह का 

"ऐ नबी जिस चीज़ को अल्लाह ने आप के लिए हलाल किया है, आप उसे क्यूँ हराम फ़रमाते हैं. अपनी बीवियों की खुशनूदी हासिल करने के लिए? और अल्लाह बख्शने वाला है."
मुहम्मद ज़रा सी बात पर बीवियों को तलाक़ देने पर आ गए जिसे उनका अल्लाह हलाल फ़रमाता है बल्कि समझाता है कि आप जनाब तलाक़ को क्यूँ हराम समझते हैं? 
हमारे ओलिमा डफ्ली बजाया करते है कि तलाक़ अल्लाह को सख्त ना पसन्द है.
कुरान में ऐसा कहीं है ? तो यहाँ पर तलाक़ इतना आसान क्यूँ?
दोहरा और मुतज़ाद हुक्म मुहम्मदी अल्लाह क्यूँ फ़रमाता रहता है?
"जब पैगम्बर ने एक बात चुपके से फरमाई, फिर जब बीवी ने वह बात दूसरी बीवी बतला दी और पैगम्बर को अल्लाह ने इसकी खबर देदी व् पैगम्बर ने थोड़ी सी बात जतला दी और थोड़ी सी टाल गए.जतलाने पर वह कहने लगी, आपको किसने खबर दी? आपने फ़रमाया मुझको बड़े जानने वाले, खबर रखने वाले ने खबर दी यानी अल्लाह ने
वाक़ेआ यूं है- 
मुहम्मद की एक बीवी ने उनको शहद पिला दिया था , उन्हों ने इस शर्त पर पिया कि दूसरी किसी बीवी को इसकी खबर न हो, मगर उसने अपनी सवतन को बतला दिया कि उनको बात ज़ाहिर न करना. दूसरी ने तीसरी को कहा आज राजा इन्दर आएँ तो कहना, क्या शहेद पिया है कि बू आ रही है? यही मैं भी कहूँगी. मज़ा आएगा.
मुहम्मद दूसरी के यहाँ गए तो उसने उनसे पुछा,"क्या शहेद पिया है कि बू आ रही है? 
वह इंकार करते हुए टाल गए. फिर तीसरी ने भी उनसे यही सवाल दोराय .
क्या शहेद पिया है कि बू आ रही है?" 
मुहम्मद सनके कि जिसके यहाँ शहद पिया था  ये उसकी हरकत है .
सब बीवियों से उसने गा दिया . 
बस इतनी सी बात पर पैगम्बर अपनी बीवियों पर बरसे कि अल्लाह ने उनको सारी खबर देदी. गोया अल्लाह ने उनकी बीवियों में चुगल खोरी करता फिरा.
मैं मुहम्मदी अल्लाह को ज़ालिम, जाबिर, चाल चलने वाला, और मुन्ताकिम के साथ साथ चुगल खोर भी कहता हूँ. जो अपने बन्दों को आपस में लड़ाता है.
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Monday 17 October 2016

बांग-ए-दरा 125




बांग ए दरा
''मुश्तबाहुल मुराद

मुहम्मदी अल्लाह तअज्जुब में है कि इसके कारनामें ज़मीन से लेकर आसमान तक बिखरे हुए हैं, आख़िर लोग इसके क़ायल क्यूँ नहीं होते?
मुसलमान कुरआन को सैकड़ों साल से यक़ीन और अक़ीदे के साथ पढ़ रहे हैं,
नतीजा ए कार ये है कि इनके समझ में ये आ गया कि मुहम्मद के ज़माने में कुफ्फार खुदा के क़ुदरत के क़ायल न रहे होंगे. या मुशरिकों का दावा रहा होगा कि बानिए कायनात उनके देवी देवता रहे होंगे. ये महेज़ इनका वह्म है. मगर कुरान ऐसी छाप इनके ज़ेहनो पर छोड़ता है.
कि ज़माना ए मुहम्मद में इंसान दुश्मने अक्ल रहा होगा.
ये कुरानी प्रोपेगंडा से फैलाया हुवा वहिमा है.
वह लोग आज ही की तरह मुख्तलिफ फ़िक्र और मुख्तलिफ नज़रयात के मालिक हुवा करते थे. वह अल्लाह को मानने वाले और उसकी क़ुदरत को मानने और जानने वाले लोग थे. मुहम्मद ने जिस अल्लाह की तशकील की थी,
वह उनकी फ़ितरत और उनकी सियासत के एतबार से था,
यानी ज़ालिम, जाबिर,  मुन्तकिम और खुदसर अल्लाह,
जिसकी तर्जुमानी मुहम्मद ने कुरआन में की है.
अपनी इस हांडी के अन्दर, वह उस अज़ीम ताक़त को बन्द करके पकाना चाहते हैं
जिसे क़ुदरत कहते हैं और परोसना चाहते हैं उन लोगों को जिनको
क़ुदरत ने थोड़ी बहुत समझ दी है या अपना ज़मीर दिया है.
जब वह इस को खाने से इंकार करते हैं तो वह उन पर इलज़ाम लगाते हैं
 "तअज्जुब है कि अल्लाह की क़ुदरत को तस्लीम ही नहीं करते."
इधर हम जैसे लोग तअज्जुब में हैं कि एक अनपढ़, अपने धुन में किस क़दर आमादा ए था
कि हज़ारों मज़ाक बनने के बाद भी, फिटकारने और दुत्कारने के बाद भी,
बे इज्ज़त और पथराव होने के बाद भी, मैदान से पीछे हटने को तैयार न था.
फ़तह मक्का के बाद फिर तो ये फक्कड़ों और लाखैरों का रसूल,
जब  फातेह बन कर मक्का में दाख़िल हुवा होगा
तो शहर के साहिबे इल्म ओ फ़िक्र पर क्या गुजरी होगी.
आँखें बन्द करके सब्र कर गए होंगे,
अपनी आने वाली नस्ल के मुस्तक़बिल को सोच कर वह जीते जी मर गए होंगे.
दसियों लाख इंसानों का क़त्ल तो इस्लाम ने सिर्फ़ पचास साल में ही का डाला.
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Sunday 16 October 2016

बांग-ए-दरा 124




बांग ए दरा 

ज़िन्दगी जीने की चीज़ है 

मुहम्मद की सोहबत में मुसलमान होकर रहने से बेहतर था की इंसान आलम-ए-कुफ्र में रहता. मुहम्मद हर मुसलमान के पीछे पड़े रहते थे, न खुद कभी इत्मीनान से बैठे और न अपनी उम्मत को चैन से बैठने दिया. इनके चमचे हर वक़्त इनके इशारे पर तलवार खींचे खड़े रहते थे 
" या रसूल्लिल्लाह ! हुक्म हो तो गर्दन उड़ा दूं"
आज भी मुसलमानों को अपनी आकबत पर खुद एतमादी नहीं है. वह हमेशा खुद को अल्लाह का मुजरिम और गुनाहगार ही माने रहता है. उसे अपने नेक आमाल पर कम और अल्लाह के करम पर ज्यादह भरोसा रहता है. मुहम्मद की दहकाई हुई क़यामत की आग ने मुसलामानों की शख्सियत कुशी कर राखी है. कुदरत की बख्शी हुई तरंग को मुसलमानों से इस्लाम ने छीन लिया है.
सजदे में जाकर मेरी बातों पर गौर करो, अगर तुम्हारी आँख खुले तो, सजदे से सर उठाकर अपनी नमाज़ की नियत को तोड़ दो और ज़िदगी की रानाइयों पर भी एक नज़र डालो. ज़िन्दगी जीने की चीज़ है, इसे मुहम्मदी जंजीरों से आज़ाद करो.  
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अज़ीम इन्सान

समाज की बुराइयाँ, हाकिमों की ज्यादतियां और रस्म ओ रिवाज की ख़ामियाँ देख कर कोई साहिबे दिल और साहिबे जिगर उठ खड़ा होता है, वह अपनी जान को हथेली पर रख कर मैदान में उतरता है. वह कभी अपनी ज़िदगी में ही कामयाब हो जाता है, कभी वंचित रह जाता है और मरने के बाद अपने बुलंद मुकाम को छूता है, 
ईसा की तरह. मौत के बाद वह महात्मा, गुरू और पैगम्बर बन जाता है. इसका वही मुख़ालिफ़ समाज इसके मौत के बाद इसको गुणांक में रुतबा देने लगता है, इसकी पूजा होने लगती है, 
अंततः इसके नाम का कोई धर्म, कोई मज़हब या कोई पन्थ बन जाता है. 
धर्म के शरह और नियम बन जाते हैं, फिर इसके नाम की दुकाने खुलने लगती हैं और शुरू हो जाती है ब्यापारिक लूट. 
अज़ीम इन्सान की अजमत का मुक़द्दस खज़ाना, बिल आखीर उसी घटिया समाज के लुटेरों के हाथ लग जाता है. इस तरह से समाज पर एक और नए धर्म का लदान हो जाता है.
हमारी कमजोरी है कि हम अज़ीम इंसानों की पूजा करने लगते हैं, जब कि ज़रुरत है कि हम अपनी ज़िन्दगी उसके पद चिन्हों पर चल कर गुजारें. हम अपने बच्चों को दीन पढ़ाते हैं, जब कि ज़रुरत है कि उनको आला और जदीद तरीन अखलाक़ी क़द्रें पढ़ाएँ. 
मज़हबी तालीम की अंधी अकीदत, जिहालत का दायरा हैं. इसमें रहने वाले आपस में ग़ालिब ओ मगलूब और ज़ालिम ओ मज़लूम रहते हैं.
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Saturday 15 October 2016

बांग-ए-दरा 123




बांग ए दरा 

मुस्लिम कट्टरता बेवक़ूफ़ी होती है 

मुस्लिम अपनी आस्था के तहत ऊपर की दुन्या में मिलने वाली जन्नत के लिए इस दुन्या की ज़िन्दगी को संतोष के साथ गुज़ार देंगे. 
उनको मजदूर, मिस्त्री, राज, नाई, भिश्ती और मुलाजिम सस्ते दामों में मिलते रहेंगे.
मुस्लिम कट्टरता बेवक़ूफी होती है जो इन्सान को एक बार में ही कत्ल करके हमेशा के लिए उसके फायदे से बंचित हो जाती  है , 
इसके बर अक्स हिन्दू कट्टरता बुद्धिमान होती है जो इन्सान को दस बना कर रखती है , न मरने देती है न मुटाने देती है. 
यह मानव समाज को धीरे धीरे अछूत बना कर, उनका एक वर्ग बना देती और खुद स्वर्ण हो जाती है. पाँच हज़ार साल से भारत के मूल बाशिदे और आदि वासी इसकी मिसाल हैं.
इन दोनों कट्टरताओं को मज़हब और धर्म पाले रहते है, जिनको मानना ही मानव समाज की हत्या या फिर उसकी खुद कुशी है.
इसके आलावा क़ुरआन के मुख़ालिफ़ कम्युनिस्ट और पश्चिमी देश भी है जो पूरे कुरआन को ही जला देने के हक में है, इन देशों में धर्म ओ मज़हब की अफीम नहीं बाक़ी बची है, इस लिए वह पूरी मानवता के हितैषी हैं.
भारतीय मुसलामानों के दाहिने खाईं है, तो बाएँ पहाड़. उसका मदद गार कोई नहीं है, बैसे भी मदद मोहताजों को चाहिए. वह मोहताज नहीं, अभी भी ताक़त हासिल कर सकते है, बेदारी की ज़रुरत है, हिम्मत करके मुस्लिम से हट कर मोमिन हो जाएँ..
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Friday 14 October 2016

बांग-ए-दरा 122




बांग ए दरा 

जिहाद
जिहाद को लेकर बहसें चल रही हैं. पिछले दिनों ndtv पर इस सिलसिले में एक तमाशा देखने को मिला. इसमें मुस्लिम बाज़ीगर आलिमों और सियासत दानों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया, लग रहा था कि इस्लाम का दिफ़ा कर रहे हों, बजाए इसके कि वह सच्चाई से काम लेते, जिससे मुस्लिम अवाम का कुछ फ़ायदा हो. जिहाद के नए नए नाम और मअनी तराशे गए, इसका हिंदी करण किया गया कि 
जिहाद प्रयास और प्रयत्न का दूसरा नाम है, 
यज्ञं और परितज्ञं को जिहाद कहा जाता है. 
उन सभों की लफ्ज़ी मानों में यह दलीले सही थीं मगर 
जिहाद का और उसके अर्थ का इस्लामी करण किया गया है, 
काश कि ऐसा होता जैसा कि यह जोगी बतला रहे थे. 
क़ुरआन में जिहाद के फ़रमान हैं,
 "इस्लाम के लिए जंगी जिहाद करो, गैर मुस्लिम और ख़ास कर काफ़िरों से, 
इतनी जिहाद करो कि उनका वजूद न बचे." 
सैकड़ों आयतें इस संदभ में पेश की जा सकती हैं. 
इस सन्दर्भ में. "काफ़िर वह होते हैं जो कुफ्र करते है और एकेश्वर को नहीं मानते तथा मूर्ति पूजा करते है. भारत के हिन्दू 'मिन जुमला काफ़िर' हैं, 
इसको मुसलामानों के दिल ओ दिमाग से निकाला नहीं जा सकता.
खैबर की जंग इसकी तारीखी गवाह है, जिसमें खुद मुहम्मद शामिल थे. ये जिहाद इतनी कुरूर थी कि इसके बयान के लिए इन ओलिमा के पास हिम्मत और जिसारत नहीं कि यह टीवी चैनलों के सामने बयान कर सकें. इसी जंग में मिली मज़लूम सफ़िया, मुहम्मद की बीवियों में से एक थी जिसे मजबूर होना पड़ा कि अपने बाप, भाई, शौहर और पूरे खानदान की लाशों के बीच मुहम्मद के साथ सुहाग रात मनाए.
अलकायदा, तालिबान और अन्य जिहादी तंजीमें सही मअनो में क़ुरआनी मुसलमान हैं जो खैबर को अफगानिस्तान के कुछ हिस्से में मुहम्मदी काल को दोहरा रहे हैं.
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Thursday 13 October 2016

बांग-ए-दरा 121





बांग ए दरा 

सूरह कौसर 


खुद साख्ता रसूल की बयक वक़्त नौ बीवियाँ थीं. इनके आलावा मुताअददित लौंडियाँ और रखैल भी हुवा करती थीं. जिनके साथ वह अय्याशियाँ किया करते थे. उनमें से ही एक मार्या नाम की लौड़ी थी, जो हामला हो गई थी. मार्या के हामला होने पर समाज में चे-में गोइयाँ होने लगी कि जाने किसका पाप इसके पेट में पल रहा है? बात जब ज्यादः बढ़ गई तो मार्या ने अपने मुजरिम पर दबाव डाला, तब मुहम्मद ने एलान किया कि मार्या के पेट में जो बच्चा पल रहा है, वह मेरा है. 
ये एलान रुसवाई के साथ मुहम्मद के हक में भी था कि खदीजा के बाद वह अपनी दस बीवियों में से किसी को हामला न कर सके थे गोया अज सरे नव जवान हो गए(अल्लाह के करम से). 
बहरहाल लानत मलामत के साथ मुआमला ठंडा हुआ. इस सिलसिले में एक तअना ज़न को मुहम्मद ने उसके घर जाकर क़त्ल भी कर दिया.
नौ महीने पूरे हुए, मार्या ने एक बच्चे को जन्म दिया, मुहम्मद की बांछें खिल गई कि चलो मैं भी साहिबे औलादे नारीना हुवा. उन्होंने लड़के की विलादत की खुशियाँ भी मनाईं. उसका अक़ीक़ा भी किया, दावतें भी हुईं. उन्हों ने बच्चे का नाम रखा अपने मूरिसे आला के नाम पर 'इब्राहीम'
इब्राहीम ढाई साल की उम्र पाकर मर गया, एक लोहार की बीवी को उसे पालने के किए दे दिया था, जिसके घर में भरे धुंए से उसका दम घुट गया था.
खुली आँखों से जन्नत और दोज़ख देखने वाले और इनका हाल बतलाने और हदीस फ़रमाने वाले अल्लाह के रसूल के साथ उनके मुलाज़िम जिब्रील अलैहिस्सलाम ने उनके साथ कज अदाई की और अपने प्यारे रसूल के साथ अल्लाह ने दगाबाज़ी कि उनका ख्वाब चकनाचूर हो गया. 
मुहल्ले की औरतों ने फब्ती कसी " बनते हैं अल्लाह के रसूल और बाँटते फिरते है उसका पैगाम, बुढ़ापे में एक वारिस हुवा, वह भी लौड़ी जना, उसको भी इनका अल्लाह बचा न सका. मुहम्मद तअज़ियत की जगह तआने पाने लगे. बला के बेशर्म और ढीठ मुहम्मद ने अपने हरबे से काम लिया, और अपने ऊपर सूरह कौसर  उतारी 
अल्लाह उनको तसल्ली देता है कि तुम फ़िक्र न करो मैं तुमको, (नहीं! बल्कि आपको) इस हराम जने इब्राहीम के बदले जन्नत के हौज़ का निगरान बनाया, आकर इसमें मछली पालन करना.
अच्छा ही हुवा लौंडी ज़ादा गुनहगार बाप का बेगुनाह मासूम बचपन में जाता रहा वर्ना मुहम्मदी पैगम्बरी का सिलसिला आज तक चलता रहता और पैगम्बरे आखिरुज्ज़मां का ऐलान भी मुसलमानों में न होता.



Wednesday 12 October 2016

Hadeesi Hadse 431




हदीसी हादसे 
बुखारी ८९८
एक शख्स आया और मुहम्मद से कहा 
मैं तो मर गया, रोज़े के आलम में बीवी के साथ मुबाश्रत कर बैठा? 
मुहम्मद ने उससे पूछा तुम दो गुलाम आज़ाद कर सकते हो? 
कहा नहीं. 
पूछा दो महीने रोज़े रख सकते हो? 
बोला नहीं.
फिर पूछा ६० मोहताजों को खाना खिला सकते हो? बोला नहीं.
इसी दौरान एक थैला सदक़े का खजूर कोई ले आया, मुहम्मद ने थैला किसी को थमाते हुए कहा ये लो सदक़ा गरीबों में तकसीम करदो. 
वह बोला या रसूल अल्लाह मुझ से बड़ा गरीब मदीने में कोई नहीं. 
मुहम्मद मुस्कुरा पड़े और उसे दे दिया कि लो अपने बच्चों को खिलाओ.
*ऐसी भी हुवा करती थी मुहम्मदी उम्मत .


बांग-ए-दरा 120



बांग-ए-दरा

बागड़ बिल्ला 

नट खट बातूनी बच्चे से देर रात को माँ कहती है, बेटे सो जाओ नहीं तो बागड़ बिल्ला आ जाएगा. 
माँ की बात झूट होते हुए भी झूट के नफ़ी पहलू से अलग है. 
यह सिर्फ मुसबत पहलू के लिए है कि बच्चा सो जाए ताकि उसकी नींद पूरी हो सके, 
मगर यह बच्चे को डराने के लिए है.
क़ुरआन का मुहम्मदी अल्लाह बार बार कहता है, "मैं डराने वाला हूँ "
ऐसे ही माँ बच्चे को डराती है.
लोग उस अल्लाह से डरें जब तक कि सिने बलूगत न आ जाए, 
यह बात किसी फ़र्द या कौम के ज़ेहनी बलूगत पर मुनहसर करती है कि वह बागड़ बिल्ला से कब तक डरे.
यह डराना एक बुराई, जुर्म और गुनाह बन जाता है कि बच्चा बागड़ बिल्ला से डर कर किसी बीमारी का शिकार हो जाए, 
डरपोक तो वह हो ही जाएगा माँ की इस नादानी से. डर इसकी तमाम उम्र का मरज़ बन जाता है.
मुसलमान अपने बागड़ बिल्ला से इतना डरता है कि वह कभी बालिग ही नहीं होगा.
मूर्तियाँ जो बुत परस्त पूजते हैं, 
वह भी बागड़ बिल्ला ही हैं लेकिन उनको अधिकार है कि सिने- बलूगत आने पर 
वह उन्हें पत्थर मात्र कह सकें, उन पर कोई फ़तवा नहीं, मगर मुसलमान अपने हवाई बुत को कभी बागड़ बिल्ला नहीं कह सकता.
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Tuesday 11 October 2016

बांग-ए-दरा 119





बांग ए दरा 

अबू लहब 

अबू लहब मुहम्मद के सगे चाचा थे, ऐसे चाचा कि जिन्हों ने चालीस बरस तक अपने यतीम भतीजे मुहम्मद को अपनी अमाँ और शिफक़त में रक्खा. अपने मरहूम भाई अब्दुल्ला की बेवा आमना के कोख से जन्मे मुहम्मद की खबर सुन कर अबू लहब ख़ुशी से झूम उट्ठे और अपनी लौड़ी को आज़ाद कर दिया, जिसने बेटे की खबर दी थी और उसकी तनख्वाह मुक़र्रर कर के मुहम्मद को दूध पिलाई की नौकरी दे दिया. 
बचपन से लेकर जवानी तक मुहम्मद के सर परस्त रहे. दादा के मरने के बाद इनकी देख भाल किया, यहाँ तक कि मुहम्मद की दो बेटियों को अपने बेटों से मंसूब करके उनको सुबुक दोष किया. 
मुहम्मद ने अपने मोहसिन चचा का तमाम अह्सानत पल भर में फरामोश कर दिया।
वजेह ?
हुवा यूँ था की एक रोज़ मुहम्मद ने तमाम ख़ानदान कुरैश को कोह ए मिन्फा पर इकठ्ठा होने की दावत दी. लोग अए तो मुहम्मद ने सब से पहले तम्हीद बांधा और फिर एलान किया कि अल्लाह ने मुझे अपना पैगम्बर मुक़र्रर किया. 
लोगों को इस बात पर काफी गम ओ गुस्सा और मायूसी हुई कि 
ऐसे जाहिल को अल्लाह ने अपना पैगम्बर कैसे चुना ? 
सबसे पहले अबू लहेब ने ज़बान खोली और कहा, 
"तू माटी मिले, क्या इसी लिए तूने हम लोगों को यहाँ बुलाया है?
इसी बात पर मुहम्मद ने यह सूरह गढ़ी जो कुरआन में इस बात की गवाह बन कर १११ के मर्तबे पर है. 
सूरह लहेब कुरआन की वाहिद सूरह है जिस में किसी फ़र्द का नाम दर्ज है. 
किसी ख़लीफ़ा या क़बीले के किसी फ़र्द का नाम कुरआन में नहीं है.
"ज़िक्र मेरा मुझ से बढ़ कर है कि उस महफ़िल में है"
नमाज़ियो !
गौर करो कि अपनी नमाज़ों में तुम क्या पढ़ते हो? क्या यह इबारतें क़ाबिल ए इबादत हैं?
अल्लाह अबू लहेब और उसकी जोरू को बद दुआएँ दे रहा है . 
उनके हालत पर तआने भी दे रहा है कि वह उस ज़माने में लकड़ी ढोकर गुज़ारा करती थी. 
यह मुहम्मदी अल्लाह जो हिकमत वाला है, 
अपनी हिकमत से इन दोनों प्राणी को पत्थर की मूर्ति ही बना देता. 
"कुन फिया कून" कहने की ज़रुरत थी।

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