Tuesday 29 January 2013

Hadeesi Hadse 70


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बुखारी 1235
"मुहम्मद के हमराह उनके साथी किसी बुलंद मुकाम से गुज़र रहे थे, नारा ए तकबीर का नारा जोर जोर आवाज़ से लगते हुए। मुहम्मद ने उन्हें टोका कि क्या अल्लाह बहरा है जो इतनी ज़ोर से नारे लगा रहे हो "

* नारा ए तकबीर का मतलब है क़िब्र , तकब्बुर,ज़ोम और घमंड का नारा . इस्लाम ने बहुत सी बातों का इस्लामी करण किया है जिससे जायज़ नाजायज़ हो गया है और नाजायज़ जायज़ हो गया है। घमंड किसी के लिए भी जायज़ नहीं , चाहे वह अल्लाह ही हो .
इस्लामी लाजिक कहती है कि घमंड करना अल्लाह को ज़ेबा देता है , उसको तकब्बुर पसंद है, उसी के तुफैल में मुसलमान भी उसको याद करने में तकब्बुर करते हैं। यह नारा अक्सर फ़साद की वजह होता है। जज़बाती कौम मुट्ठी भर भी इकठ्ठा होगी तो नारा ए तकबीर लगाना शुरू कर देगी .तमाम दुन्य में ज़िल्लत ढो  रही है मगर घमंड को छोड़ने को तैयार नहीं।

बुखारी 1243
मिन जुमला काफ़िर (totaly kafir)
"मुहम्मद से दरयाफ्त किया गया शब खून मारी में अगर कुफ्फ़ार के बच्चे और औरतें क़त्ल हो जाएँ तो हम पर कोई गुनाह होगा या नहीं ?
मुहम्मद ने कहा कुफ्फ़ार की औरतें और बच्चे मिन जुमला काफ़िर ही शुमार किए जाएँगे . "

*बच्चो ! समझ लो शब् खून उस क़ज़ज़ाक़ी हमले को कहते हैं जो सोते हुए दुश्मन पर अचानक किया जाए , बस्ती सो रही हो और उसे सोते में क़त्ल और गारत गारी से तबाह कर दिया जाए। मुहम्मद की क़ल्ब ए सियाही देखो कि कहते हैं इस हमले में अगर मासूम बच्चे और मजबूर औरतें क़त्ल हो जाएँ तो तो कोई गुनाह नहीं। यह मज़मूम पैग़ाम क्या किसी अवतार या पैग़म्बर का हो सकता है ? नहीं , अलबत्ता पत्थर दिल मुहम्मद और उनके गढे गए अल्लाह का ज़रूर है।
इस शख्स का अंजाम यह हुवा कि मैदान करबला में इसके परिवार का बच्चा बच्चा भूखा प्यासा मौत के घाट उतार दिया गया मगर इस्लाम को शैतान की बख्शी हुई हराम ज़िन्दगी मिल गई . उसको लूट मार की दौलत "माल ए ग़नीमत " की शक्ल बन गई जिसे खा पीकर वह तःतुत सुरा में जा रहा है .
जल्याना वाला बाग़ का दुष्ट मुजरिम डायर से खुद अंग्रेज़ जज ने जवाब तलबी की थी कि बाग में खेल रहे किसी मासूम को क्या पता कि बाग़ में कौन सी दफ़ा लगी हुई है कि वह उस पर अमल करता ? 
मुहम्मद बजाद खुद एक काफ़िर की अवलाद थे, चालीस साल की उम्र में मुसलमान हुए और मुसलमानों के पैगम्बर भी। कोई दो साल का बच्चा जब बोलना सीख रहा हो तो उससे कलिमा पढवाएं या रामायण के दोहे , सिने-बलूगत पर ही उसकी पहचान के आसार शुरू होते हैं। 
मुहम्मद जनरल दायर से बद तरीन मुजरिम थे , मुस्लमान इस हदीस का जायज़ा लें।

बुखारी 1245
अली ने एक कौम को जिंदा जला डाला 
"अली ने एक कौम को जिंदा जला दिया, ये बात जब उनके चचा अब्बास के कान में पड़ी तो उन्हें उनके इस फेल का सदमा हुवा। उन्होंने ने कहा ये सज़ा अल्लाह को ही जेबा देती है , बल्कि जो शख्स अपना दीन बदल दे उसको क़त्ल कर देना चाहिए।" 

*शिया हज़रात ने अली मौला के इतने क़सीदे गढ़े हैं कि हिटलर का शागिर्द मौसुलेनी इनके आगे पानी भरे। उनको मिनी अल्लाह (अली मौला) कहते हैं, जिनकी हक़ीक़त हदीसें जगह जगह पोल  खोलती हैं कि वह घस खुद्दे थे, बुज़दिल थे, लालची थे और इन्तेहाई ज़ालिम शख्स भी थे। 
जनाब मौला ने एक कौम को जिंदा जल डाला, मुहम्मद से चार क़दम आगे। भला उस कौम की क्या गलती रही होगी ? वह कितनी बे यार ओ मदद गार रही होगी कि जालिमों के हाथों जल मरी। अली के इस अमल से बजरंग दल के दारा सिंह का वाकिया जहन में ताज़ा हो गया, जिसने कार में सोए हुए मिशन के एक खुदाई खिदमत गार को उसके दो बच्चों समेत जिंदा जला दिया था। एक मुसलमानों का तब्कः कहता है कि इस्लाम को फैलाने में अली का बड़ा हाथ था। इनमे से कुछ इन्हें मुहम्मद के बाद मानते हैं तो कुछ मुहम्मद से पहले. इनकी इस मज्मूम और मकरूह कार गुज़ारी के बाद लोग हज़ार इस मौला को " अली दम दम दे अन्दर " का दम भरते रहें, इनमे कोई अज़मत पैदा हो ही सकती नहीं सकती। उनकी औलादों का क्या हश्र हुवा ? शायद अली की बद आमालियों का अंजाम है कि की उनके मानने वाले चौदह सौ सालों से सीना कूबी कर कर के उनके गुनाहों की तलाफी कर रहे हैं।
मियां अब्बास कहते हैं की वह होते तो उनको जलाते ना बल्कि क़त्ल कर देते। बाप का राज हो गया था कुछ दिनों के लिए . इन इंसानियत सोज़ मज़ालिम के अंजाम में आज दुन्या की तमाम कौमों पर इन्तेकाम का भूत सवार हो चूका है। अगर ऐसा है तो कोई ताज्जुब की बात नहीं।
मैं ने माना कि वहशत का दौर था, उस वक़्त तमाम कौमें वहशत का शिकार थीं मगर कोई उनमे मुहम्मद जैसा घुटा पैगम्बरी का दावे दार नहीं हुवा जो अपना नापाक साया सैकड़ों साल तक इंसानी आबादी पर कायम रखता।
क्या मुसलमान इस बात के मुन्तजिर हैं कि अली का जवाब उनको दिया जय, जैसे कि स्पेन में हुवा, इससे पहले तर्क इस्लाम कर दें।
 डेनमार्क के दानिश मंद की राय मानते हुए अज़ खुद क़ुरआनी सफ़्हात को नज़रे-आतिश कर दें। 



जीम. मोमिन 

Tuesday 22 January 2013

Hadeesi Hadse 69


जीम. मोमिन 

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बुखारी 1107
"मुहम्मद ने किसी दावत में गोह (गोहटा ) का गोश्त खाया - इब्न अब्बास कहते हैं अगर यह हराम होता तो मुहम्मद बयान करते "
*कबीलाई माहौल में हर बात की गुंजाईश है- खाया होगा कोई तअजजुब की बात नहीं। तअजजुब तो इन ज़मीर फ़रोश ओलिमा पर है जो ऐसी हदीसें भी माहौल को देख कर गढ़ते हैं - - -
"मुहम्मद सल ने कभी मांस को चख्खा नहीं . एक बार लोगों ने इसरार किया कि आप गोश्त चखिए ताकि उम्मत को आसान हो कि उनके प्यारे नबी ने भी गोश्त खाया। इस पर सल ने अपनी एक उंगली पर लम्बी परत की पट्टी बाँधी और उंगली को गोश्त के शोरबे में डुबो कर तर किया, फिर पट्टी खोल कर उंगली को चूसा , इस तरह मुसलामानों के लिए गोश्त हलाल किया।"
यह तक़रीर हिदू श्रोताओं के लिए गढ़ी गई जो मेरे कान में आई .
हैरत का मुक़ाम है कि गोह खाने की गवाही खुद मुहम्मद के चाचा अब्बास देते हैं और मशहूर ज़माना है कि मुहम्मद को बकरे के सीने का गोस्त पसंद था, आज  उनको एक  शाकाहारी साबित किया जा रहा ई।
 बुखारी 1219
"अबू हरीरा कहते हैं कि मुहम्मद ने मुझे किसी लश्कर में रवाना किया और कहा कि अगर कुरैश कबीले के दो फलां फलां लोग मिलें तो इनको आग में जला कर मार डालना । मैं रवानगी के वक़्त मुहम्मद से रुखसत के लिए पहुंचा तो उनहोंने अपना फैसला बदलते हुए कहा कि उनको आग से जल कर न मरना , यह सजा तो अल्लाह ही देता है, बस मार देना।"

*मुहम्मद अव्वल दर्जे के मुन्तकिम थे , इस बात की गवाह खुद उनकी बेगम आयशा कहती हैं कि
"सल ने कभी अपने ज़ाती मुआमले का बदला नहीं लिया मगर मुआमला अगर अल्लाह का हो तो अल्लाह के दुश्मन को कभी छोड़ा नहीं "
(बुखारी 1449)
गौर तलब है कि मुहम्मद दर परदा खुद अल्लाह बने हुए हैं, इस बात की गवाह कुरान और हदीसें हैं, अगर अकीदत की ऐनक उतार कर इन का इन का अध्यन किया जाए .
उपरोक्त दोनों नाम मुहम्मद को उस वक़्त के याद हैं जब मक्का में लोग इनका और इनके कुरान का मज़ाक़ उड़ाते थे और बाद में इनको ख़त्म कर देने का फैसला हुवा।
काश कि ये फितना उसी वक़्त मौत के हवाले हो जाता तो मुमकिन है मुसलमान कहे जाने वाली मखलूक आज दुन्या में सुर्ख रु होती।
बुखारी 1220
"मुहम्मद कहते हैं, जब तक हाकिम ख़ुदा की नाफ़रमानी और गुनाहगार होने का हुक्म न दे, इसकी इताअत और फ़रमा बरदारी लाज़िम है . लेकिन जब इनकी ख़िलाफ़ वरज़ी  करे तो नाफ़रमानी लाज़िम है ."
*किस ख़ुदा की नाफ़रमानी ?
इन्सानी दर्द ना आशना खुदा की जो कहता हो कि
"कुफ्फार की औरतें और बच्चे मिन जुमला काफ़िर ही शुमार किए जाएँगे , इनको मौत पर कोई गुनाह नहीं।"
इस्लाम ने हर अच्छी बात का इस्लामी करन कर रख्खा है , उस पर अमल करना, परोसे हुए दस्तर ख्वान में नजासत शामिल कर देने की तरह है।
दुन्या की 20%आबादी इंसानियत के ख़िलाफ़, इस्लामियत का शिकार है .

बुखारी 1227 +मुस्लिम किताबुल जिहाद
"मुहम्मद कहते हैं मैदान जंग में जब कोई मुक़बिला न हो और दुश्मन के आने की उम्मीद न हो तो जंग की तमन्ना मत करो, बल्कि अल्लाह से आफ़ियत की दुआ करो . इस अम्र का यक़ीन करो की जन्नत तलवार की साए में है ."
अलकायदा, तालिबान और दीगर इस्लामी दहशत गर्द इन ज़हरीली हदीसों की फसलें हैं जो फल फूल रही हैं और बेचारे मुसलमान अपने ही वजूद में सूखे जा रहे हैं। किसी भी दहशत गर्द का नज़ला सीधे मुस्लिम अवाम पर पड़ता है . कट्टर पंथी मौके की तलाश में रहते है, अंजाम कुछ भी हो।
मुसलमानों का ईमान ए नाहक़ इतना पुख्ता है कि इसके आगे वह अपनी जान, अपना माल और अपनी औलादें तक कुर्बान कर सकते हैं, यहाँ तक कि अपनी गैरत भी. दर असल यह जज़्बात के शिकार गुमराह लोग हैं। इनको इस्लामी आलिमों ने आसमान पर चढ़ा रख्खा है कि असली ज़िन्दगी वहीँ है. दूसरे धर्म ओ मज़ाहिब भी जवाबन इनके सामने खड़े हो जाते है, नतीजतन मुल्क इन गैर तामीरी कामों में लगे लोगों से शर्मिदा है।
क्या ऐसे हालात में माओ की बंदूक की ज़रुरत आ गई है।

मुस्लिम किताबुल मसाकात - - -
"मुहम्मद उम माअबद के बाग़ में गए और पूछा कि यह दरख्त किसने लगाए हैं? मुसलामानों ने या काफिरों ने, जवाब मिला मुसलमानों ने. कहा जिन मुसलमानों  ने इन दरख़्त को लगाया , उनको इसका सवाब क़यामत तक मिलता रहेगा - - -"
*मुहम्मद ने अमली तौर पर बनी नुजैर की बस्ती के तमाम पेड़ जड़ से कटवा कर इन्हें गिरवा दिया था क्योंकि यह यहूदियों के लगाए हुए थे. इस पर खुद इनके क़बीले के लोगों ने एतराज़ किया था, जवाब था "इसके लिए मेरे पास अल्लाह की वही आई थी."
गौर तलब है कि किस कद्र नाक़िस जेहन के मालिक थे अल्लाह के खुद साख्ता रसूल कि पेड़ों को भी काफ़िर और मुस्लिम जानते थे। बद नसीब कौम ऐसे रसूल का शिकार है .
 
 
 
 
 
 

Tuesday 15 January 2013

hadeesi Hadse -68


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बुखारी 1203
मुहम्मद खुद सताई करते हुए कहते हैं कि एक वक़्त ऐसा भी आएगा कि जब जिहादी गिरोह मे से लोग एक दूसरे से पूछेंगे कि तुम में से कोई सहाबी भी है ? ऐसा शख्स मिल जाने पर उसे रहनुमाई दी जायगी और फ़तह हासिल होगी।
फिर एक वक़्त ऐसा आएगा कि जंग में लोग पूछेंगे कि क्या कोई ऐसा है जो रसूल्लिल्लाह के सहाबियों का हम अस्र हो यानी तबई ?
मिलने पर उसके हाथों फ़तेह होगी।
इसी तरह घटते हुए वक़्त के मुताबिक उन बरकती हस्तियों के मार्फ़त मुसलमानों को फ़तूहात मिलती रहेंगी।

*नाकिसुल अक्ल रसूल की पेशीन गोइयाँ उनके सर पर चढ़ कर मूतती हुई नज़र आती हैं। औलाद नारीना तो कोई थी ही नहीं, चहीते हसन और हुसैन के जिंदगी का अंजाम मुहम्मद के नवासे होने के नाते ऐसा हुआ कि मुसलमान आज तक सीना कूबी कर रहे है, हसन ने यज़ीद की गुलामी कुबूल कर के अय्याशियों का नमूना बने, उनकी मौत सूजाक जैसे मोहलिक मरज़ से हुई . हुसैन अपने भतीजे भांजे और मासूम औलादों को मोहरे बनाते हुए क़त्ल किए गए, जिन के सर को लेकर बेटी ज़ैनब जुलूस निकलती रही . मुहम्मद का लगभद तमाम खानदान ही नेस्त नाबूद हो गया. सदियों से मुसलमान दुनिया के कोने कोने में कुत्ते बिल्ली की मौत मारे जा रहे हैं।
पेशीन गोई करते है ऐसा जैसे बड़े मुतबर्रक हस्ती उनकी रही हो।
 
बुखारी 1212
मुहम्मद फरमाते हैं कि एक दिन ऐसा आएगा कि मुसलमानों की यहूदियों से जंग होगी, अगर कोई यहूदी पत्थर की आड़ में छिपा होगा तो पत्थर आवाज़ देगा कि
"ऐ मुसलमानों ! इधर आओ , मेरी आड़ लिए एक यहूदी इधर छुपा हुआ है , आओ इसे हलाक कर दो ."

*मुसलमानों को वक़्त जो सजा दे रहा है , शायद वह जायज़ है . ऐसी हदीसों पर ईमान रखने और "ख़त्म बुखारी शरीफ" करने वालों की सजा उनकी ज़िल्लत और रुसवाई होनी ही चाहिए .
अहमक रिसालत अगर सोचती है कि ईंट पत्थर उसके तरफ़दार होंगे तो उसका अल्लाह क्यों यहूदियों को बचाने में लगा हुवा होगा ? उसके तो एक इशारे से ही तमाम यहूदी जिंदा दरगोर हो जाने चाहिए। ऐसी ही मुहम्मद की बातों का असर है कि यहूदी मुहम्मद की उम्मत को नेश्त नाबूद करने पर तुले हुए है।
मुसलमान पत्थरों के इशारे का इंतज़ार कर रहे है और यहूदी पत्थर को पीस कर सीमेंट बनाने में, ताकि वह फिलिस्तींनियों की बस्तियों में यहूदी कालोनियां कायम कर सकें .
मुसलमानों ! कब तक इस्लाम के दुम छल्ले बने रहोगे ? हिम्मत करो जागने की

बुखारी 1213
मुहम्मद की दीवानगी देखिए कि जिनके मुंह में वबसीर हो चुकी थी कि बोले बगैर उन्हें चैन नहीं पड़ता था।
फरमाते हैं कि एक दिन ऐसा आएगा कि मुसलमानों की लड़ाई एक ऐसी कौम से होगी कि जिसकी आँखें छोटी होंगी, नाक सुर्ख और बैठी हुई, गोया इनका चेहरा ऐसा होगा जैसे ढालें होती हैं.
कहते हैं उसी अय्याम में क़यामत बरपा होगी.

* गालिबन मुहम्मद ने किसी चीनी को देखा होगा और कयास आराई किया होगा . आप गौर करे कि क़यामत की पेशीन गोई हर पांचवें जुमले के बाद है चाहे वह कुरान हो या हदीसें। लोगों ने कुरान को नाम दिया है "क़यामत नामः"
लोग कहते हैं तो फिर ठीक ही कहते होंगे।
बुखारी 1215
चन्द यहूदी मुहम्मद के पास आए और उनको सलाम किया जिसमें दोहरे मानी छुपे हुए थे। मुहम्मद ने भी उनको दोहरे मानी वाला जवाब दिया ,
आयशा यहूदियों की इस हरकत पर बिफर गईं ,
मुहम्मद ने तजाहुले-आरफ़ाना बरतते हुए कहा,,
क्या हुवा ? आयशा ने कहा सुना नहीं उनहोंने आप पर लअनत भेजते हुए सलाम किया था। मुहम्मद ने कहा तुमने नहीं सुना कि मैं ने भी उन्हें "वअलैक - - - कहा था। (यानि तुम पर भी )

* ये है मुहम्मद के पैगम्बरी आदाब, कोई महात्मा अपने मुंह से ऐसे शब्द नहीं दोहराता. अगर वह वाकई अल्लाह के रसूल होते तो कहते - - -
"मगर तुम पर अल्लाह की रहमत हो।"
जैसा कि ईसा किया करते थे कि एक गाल पर तमाचा खाकर दूसरा गाल पेश कर दिया करते थे।


जीम. मोमिन 

Tuesday 8 January 2013

Hadeesi Hadse - 69


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बुखारी 1172

मुहममद कहते हैं कि अल्लाह उन दो लोगों पर बहुत हँसता है जो जंग में लड़ते लड़ते शहीद हो जाते हैं। पहला वह जो अल्लाह की राह में जंग कर रहा हो और शहीद हो जाय , दूसरा वह जो इसके खिलाफ जंग करते हुए मरने से पहले कलमा पढ़ कर मुसलमान हो जाय। 
* अल्लाह न हँसता है न रोता है। मुहम्मद अल्लाह की दुम भी नहीं जानते. दर अस्ल मुहम्मद ज़माने को बेवकूफ बना कर खुद अल्लाह बने हुए हैं। इनको ख़ुशी होती है कि इनके दोनों हाथ में लड्डू रहे . मरने से पहले सारी आलम-इंसानियत, इस्लाम के ज़हर पीकर उनका शिकार हो जाए।
अगर तमाम दुनिया ही उनकी जिंदगी में मुसलमान हो गई होती तो जंग के लिए मुसलमानों के दो गिरोह बनाते और दोनों हक पर होते और पयंबरी दोनों की मुहम्मद के हाथ होती .

बुखारी 1185
मुहम्मद कहते हैं घोड़ों की पेशानी में खैर ओ बरकत , सवाब ओ गनीमत कयामत तक के लिए वदीयत कर दिया गया है।
* एक दूसरी हदीस ( बुखारी 1191) में हज़रत कहते हैं कि घोड़े में नहूसत की अलामत होती है। 
इनकी किस बात को सच माना जाए और किसे झूट ? हमेशा इनके क़ौल में तज़ाद  रहता है गरज उम्मत हमेशा ही तज़ादों  भरी ज़िन्दगी गुज़ारती है, जिसे कठ मुल्ले मिसाल देते है कि 
"हुज़ूर ने अगर ये कहा है तो यह भी तो कहा है" .
घोड़ों का काम ज्यादह हिस्सा जंगी ज़रूरतों में पेश आती है जिसके तहत फतह की बात न करके मुहम्मद गनीमत ( लूट का माल ) की बात करते है, किस कद्र मॉल ओ मता के कायल थे वह, चाहे वह लूट पाट से ही क्यों न मिले . क्या यह किसी पैगम्बर के शायान ए शान है ?

बुखारी 1187
कठ मुल्ले और चुगद , अल्लाह में मफरूज़ा रसूल कहते हैं जो शख्स जिहाद के लिए अपने घोड़े देगा , अल्लाह उसके घोड़े का खाना पीना और उसके लीद गोबर को वज़न करके उसके सवाब को उसके हिसाब बढ़ा देगा।
*मुसलमानों तुम्हारा अल्लाह क्या क्या करता है ? लीद और गोबर तोलता रहता है ? क्या तुमको इन बातों से घिन और ग़ैरत नहीं आती ? 
इसी रसूल ने कुरान गढ़ा है जिसमे इस से भी ज्यादह ग़लीज़ तरीन बातें हैं।

बुखारी 1191
मुहम्मद कहते हैं कि अगर नहूसत का वजूद होता तो तीन चीजों में होता - 
माकन औरत और घोडा .
*मुसलमान काफिरों की इन बातों को बिदअत कहते हैं और उनको कमतर समझते है . उनका रसूल इन्हीं बिदअतों को क़यास ए करीं बतला रहा है।
सूरह नास और सूरह फलक तो इस्लाम की बिदअती सुतून हैं जिनमें बीमार मुहम्मद जादू टोना और गंदा बाँधने वाली यहूदनों से पनाह मांगते हैं।

बुखारी 1197
मुहम्मद अपने साथियों (सहाबी ए किरम) को बद दुआ देते हुए कहते हैं कि 
"खुदा करे दरहम ओ दीनार और चादरों के  (लालची) यह लोग मर जाएँ कि जब तक इनको यह चीजें मिलती रहती हैं ये खुश रहते हैं और न मिले तो नाराज़ हो जाते हैं। खुदा करे यह औधे मुँह गिरें और इनको ऐसा कांटा लगे की जीते जी न निकले .
उस आदमी को खुश हो जाना चाहिए कि जो अपने घोड़े को लेकर मुजाहिदों के हमराह हो गया हो . वह जिहादी टुकड़ियों में सफे-आखिर में रहता कि कोई शोहरत नहीं रखता - - -.
मुहम्मद नूह की नकल में हैं जो अपनी उम्मत को कोस काटते थे। क़ारी देखें कि जिन्हें वह सहाबी ए किरम कहा करते हैं , वह किस खसलत के हुवा करते थे। मुहम्मद की तबियत और फितरत का मुजाहिरा देखने को मिलता है कि 
वह कितने रहम और सब्र वाले हुवा करते थे थे।
जिहाद जिहाद और हर हल में जिहाद के लिए लूट मार के लिए लोगों को वर्गलाया करते। आज उनकी तस्वीर ही बदल कर दुन्या  के सामने पेश की जताई है।
ऐसे पैगम्बर की उम्मत क्या कभी सर सब्ज़ होगी ? ?
सल्लललाह ए अलैह वसल्लम 
ऐसे पैगम्बर की उम्मत क्या कभी सर सब्ज़ होगी ? ?



जीम. मोमिन 

Tuesday 1 January 2013

Hadeesi Hadse 68


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दो हदीसें मुलाहिजा हों.

मुहम्मद के कथन को हदीस कहा जाता है और हदीसें मुस्लिम बच्चों को ग्रेजुएशन कोर्स की तरह पढाई जाती है, कई लोग हदीसी ज़िन्दगी जीने की हर लम्हा कोशिश करते हैं. कई दीवाने अरबी, फारसी लिपि में लिखी इबारत 'मुहम्मद' की तरह ही बैठते हैं. अपने नबी की पैरवी में सऊदी अरब के शेख चार बीवियों की पाबन्दी के तहत पुरानी को तलाक़ देकर नई कम उम्र लाकर बीवियाँ रिन्यू किया करते हैं
हदीसो में एक से एक गलीज़ बातें हैं. उम्मी यानी निरक्षर गँवार विरोधाभास को तो समझते ही नहीं थे. हज़रात की दो हदीसें मुलाहिजा हों.
- एक शख्स अपनी तहबंद ज़मीन पर लाथेर कर चलता था . अल्लाह तअला ने इसे ज़मीन में धंसा दिया. क़यामत तक ज़मीन में वह यूं ही में धंसता ही रहेगा.
''बुखारी (१४०२)"
-फ़रमाते हैं एक रोज़ मैं सो रहा था कि मेरे सामने कुछ लोग पेश किए गए जिनमें से कुछ लोग तो सीने तक ही कुरता पहने थे, और बअज़ इस से भी कम. इन्हीं लोगों में मैं ने उमर इब्ने अल्खेताब को देखा जो अपना कुरता ज़मीन पर घसीटते हुए चल रहे थे. लोगों ने इसकी तअबीर जब पूछी तो बतलाया यह कुरताए दीन है.''
(बुखारी २२)


कबीर कहते हैं- - -
साँच बराबर तप नहीं झूट बराबर पाप,

जाके हृदय सांच है ताके हृदय आप।

मुहम्मद के कथन में झूट का अंश देखिए - - -
१- उनको कैसे मालूम हुआ कि अल्लाह तअला तहबन्द ज़मीन पर लथेड कर चलने वाले को ज़मीन में मुसलसल धन्सता रहता है?


-उम्मी सो रहे थे और इनके सामने कुछ लोग पेश किए गए? भला बक़लम खुद का रूतबा तो देखिए. माँ बदौलत नींद के आलम में शहेंशाह हुवा करते थे. जनाब सपनों में पूरा पूरा ड्रामा देखते हैं.
 कुछ लोग सीने तक कुरता पहने थे? गोया फुल आस्तीन ब्लाउज? कुछ इससे भी कम? यानी आस्तीन दार चोली? मगर ऐसे लिबासों को कुरता कहने की क्या ज़रुरत थी आप को ?
झूट इस लिए कि आगे कुरते की सिफ़त जो बयान करना था. ज़मीन पर कुरता गोगर गलीज़ को बुहारता चले तो दीन है. लंबी तुंगी हो तो वह ज़मीन में धंसने का अनोखा अज़ाब .
ऐसी हदीसों में अक्सर मुसलमान लिपटे हुए लंबे लंबे कुरते और घुटनों के ऊपर पायजामा पहन कर कार्टून बने देखे जा सकते हैं.
''यह मत देखो कि किसने कहा है, यह देखो की क्या कहा है.''

लोहे को जितना गरमा गरमा कर पीटा जाय वह उतना ही ठोस हो जाता है। इसी तरह चीन की दीवार की बुन्यादों की ठोस होने के लिए उसकी खूब पिटाई की गई है, लाखों इंसानी शरीर और रूहें उसके शाशक के धुर्मुट तले दफ़न हैं. ठीक इसी तरह मुसलमानों के पूर्वजों की पिटाई इस्लाम ने इस अंदाज़ से की है कि उनके नस्लें अंधी, बहरी और गूंगी पैदा हो रही हैं.(सुम्मुम बुक्मुम उम्युन, फहुम ला युर्जून) इन्हें लाख समझाओ यह समझेगे नहीं.
मैं कुरआन में अल्लाह की कही हुई बात ही लिख रह हूँ जो कि उनके हक में है इंसानियत के हक में मगर वह कुछ भी सुनने को तैयार नहीं, वजेह वह सदियों से पीट पीट कर मुसलमान बनाए जा रहे है, आज भी खौफ ज़दा हैं कि दिल दिमाग और ज़बान खोलेंगे तो पिट जाएँगे, कोई यार मददगार होगा.
यारो! तुम मेरा ब्लॉग तो पढो, कोई नहीं जान पाएगा कि तुमने ब्लॉग पढ़ा,फिर अगर मैं हक बजानिब हूँ तो पसंद का बटन दबा दो, इसे भी कोई जान पाएगा और अगर अच्छा लगे तो तौबा कर लो,तुम्हारा अल्लाह तुमको मुआफ करने वाला है। अली के नाम से एक कौल शिया आलिमो ने ईजाद किया है ''यह मत देखो कि किसने कहा है, यह देखो की क्या कहा है.'' मैं तुम्हारा असली शुभ चितक हूँ, मुझे समझने की कोशिश करो.
मैं पहले उम्मी मुहम्मद की एक भविष्य वाणी यानी हदीस से आप को आगाह कराना चाहूंगा  - - -
'' दूसरे खलीफा उमर के बेटे अब्दुल्ला के हवाले से ... रसूल मकबूल सललललाहो अलैहे वसललम (मुहम्मद की उपाधियाँ) ने फ़रमाया एक ऐसा वक़्त आएगा कि इस वक़्त तुम लोगों की यहूदियों से जंग होगी, अगर कोई यहूदी पत्थर के पीछे छुपा होगा तो पत्थर भी पुकार कर कहेगा की मोमिन मेरी आड़ में यहूदी छुपा बैठा है, इसको क़त्ल कर दे. 
 (बुखारी १२१२)


आज इक्कीसवीं सदी ऐसी बातों पर यकीन  ही खुद कशी है . 

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जीम. मोमिन