Wednesday 20 July 2016

बांग-ए-दरा -39


बांग-ए-दरा

दुश्मने इंसानियत 

खुद ला वलद मुहम्मद अपने दामाद की औलादों हसन और हुसैन का हशर हौज़ऐ कौसर के कनारे खड़े खड़े देख रहे होंगे। दुश्मने इंसानियत मुहम्मद तमाम उम्र अपने मुखालिफों को मारते पीटते और काटते कोसते रहे, असर उल्टा रहा अहले कुफ्र सुर्ख रू रहे और फलते फूलते रहे, मुस्लमान पामाल रहे और ज़र्द रू हुए। आज भी उम्मते मुहम्मदी पूरी दुन्या के सामने एक मुजरिम की हैसियत से खड़ी हुई है. किस क़दर कमजोर हैं कुरानी आयतें, मौजूदा मुसलमानों को कैसे समझाया जाय? 
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प्रति शोध 
मुसलमानों की बाबरी मस्जिद को लाखों हिन्दु कारसेवकों ने धराशाई कर दिया , नाम कारसेवा दिया जोकि सिख्खों के गुरु द्वारों में श्रद्धालुओं की सेवा करने काम होता है। इस तरह से किसी धर्म स्थल को गिराने का काम एक तरह से सिख्खिज़्म के काँधे पर रख्खा। मुसलमानो में इसका रोष हुवा , आवाज़ उठाई , तो मुंबई में बड़ा दंगा करके उन्हें सबक सिखलाया गया जिसमे हज़ार जानों के साथ साथ झोपड़ पट्टी में बस्ने वालों का असासा आग को हवाले किया गया।  इसी दुर्घटना का शिकार एक ईमान दार पुलिस अफसर करकरे को भी हिंदू सगठनो ने मौत के घाट उतार और हत्या का इलज़ाम भी मुसलमानो के सर मढ़ा। 
इसके बाद मुंबई सीरियल बम कांड की घटना इन ज़्यादतियों का प्रति शोध था जिसमे जाने नहीं बल्कि महत्त्व पूर्ण जाने और झोपड़ पट्टियां नहीं बल्कि क़ीमती इमारतें आग के हवाले हुईं। 
दोनों कुकृतियों का न्याय अनन्याय पूर्ण हुवा जिसका विरोध दबी ज़बान में दोनों पक्ष बुद्धि जीवीयों ने किया। 
१०%की अल्पसंख्यक ९०% का खुलकर कुछ बिगड़ नहीं सकती मगर जो कर सकती उसे निडर होकर किया।  याक़ूब मेमन के जनाज़े में शरीक होकर .



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