Wednesday 28 January 2015

Hadeesi Hadse 30


बुखारी 1127
मुहम्मद कहते हैं कि उनके ज़माने में लोग सब से अच्छे होगे, उसके बाद वह जो मेरे ज़माने के बाद होंगे। उसके बाद ऐसे लोग होंगे जिनकी गवाही से पहले क़सम होगी और क़सम से पहले गवाही।
*क्या बका है मुहम्मद ने?उनके हिसाब से लोग गवाही दें कि 
"अशदो एना मुहम्मदुर रसूल अल्लाह" 
अज़ान में जो ऐरे गैरे उनकी रिसालत की झूटी गवाही देते हैं, वह पहले झूटी क़सम खाएँ ? फिर अज़ान दें .
सच पूछिए तो मुहम्मद का ज़माना तारीख इंसानी में सब से बदतर था जिसका खामयाज़ा आज तक इंसानी बिरादरी भुगत रही है।
बुख़ारी 1128
मुहम्मद ने कहा लोगो! क्या मैं तुमको गुनाह-सगीरा की इत्तला दूं , लोगों ने कहा ज़रूर. बतलाया कि वह जो अल्लाह के साथ दुसरे को शरीक करते हैं और वह जो अपने मां बाप की खदमत नहीं करते।
कुछ देर की ख़ामोशी के बाद उन्होंने ऐसी बकवास की कि लोग दुआ करने लगे कि काश मुहम्मद के मुंह पर ताला लगे
*मुहम्मद के मुंह में वबसीर थी, जिसके सबब हदीसं वजूद में आईं और कुरान उतरा.
मुसलमान इस हदीस को गवाही समझें जो खुद उनके सहाबी इकराम फरमाते हैं।
गुनाहे-सगीरा छोटा गुनाह होता है. मुहम्मद की तो पूरी ज़िन्गागी ही सगीरा कबीरा गुनाहों में गुज़री।
बुख़ारी 1132+
मुहम्मद को किसी की तारीफ़ गवारा न थी सिवाय अपनी और अपने अल्लाह के. कहते हैं अगर कोई किसी की तारीफ़ कर रहा हो तो उसके मुँह में खाक झोंक दो। उनकी उम्मत ने लोगों के साथ ऐसा सलूक किया भी है।
किस कद्र तंग नज़र इन्सान था
बुखारी 1138
इस्लामी तवारीख़ में मशहूर वाक़िया है कि मुहम्मद को उमरा करने से अहल-मक्का ने रोक दिया था. मुहम्मद ने इस बात को मान लिया कि अगले साल तीन दिनों तक मक्का में रह कर उम्र करेगे। सुलह नामा तैयार किया गया जिसमे मुहम्मद ने खुद को अल्लाह का रसूल लिखवाया,यानी "मुहम्मदुर रसूल अल्लाह ।
जब अहले-मक्का ने उसे देखा तो एतराज़ करते हुए कहा अगर हम लोग आपको अल्लाह का रसूल मानते तो यह फ़ितना ही न खड़ा होता। इसकी जगह मुहम्मद इब्न-अब्दुल्ला लिखिए . 
मुहम्मद ने अली को मुआहिदा नामा दिया कि इसे मिटा कर इनके मुताबिक कर दो, तो अली ने रद्दो-बदल करने से इंकार कर दिया। मुहम्मद ने उनके हाथों से लेकर दूसरे से इसे दुरुस्त कराया। 
बुखारी 1141
मुहम्मद कहते हैं जिन शर्तों को मैंने नाफ़िज़ किया है उनमें सब से बड़ी यह है कि जिन से तुम ने अपनी शर्म गाहों को हलाल किया।
* मुहम्मद की मुराद यही है कि निकाही औरत से ही रुजू करो। मुहम्मद ये शर्त दूसरों के लिए ही लाज़िम क़रार देते हैं। खुद तो वः झुंडों के सांड थे। इनकी मौत भी आयशा से शर्त पूरा करनें मे गई। अय्याश नंबर वन थे। 
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जीम. मोमिन 

Wednesday 21 January 2015

Hadeesi Hadse 29


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बुखारी ११३१
मुहम्मद की पोती नुमा बीवी कहती हैं कि मुहम्मद जब भी जंग के लिए जाते तो साथ में अपनी किसी न किसी बीवी को साथ ज़रूर ले जाते. इसके लिए वह बीवियों की क़ुरअ अंदाजी करते. वह किसी जंग में जा रहे थे कि क़ुरअ अंदाजी में मेरा नाम निकल आया. चूंकि परदे का हुक्म जारी हो चुका था इसलिए मेरी ख़ातिर परदे दार कुजावे (ऊंटों पर रखा जाने वाला हौद) का इन्तेज़ाम किया गया. कुजावा मय सवारी के ऊंटों पर चढ़ा दिया जाता और इसी तरह मय सवारी उतारा जाता. 
मुहम्मद जंग से फ़ारिग़ होकर मदीना वापस हो रहे थे कि मदीने के पहले पहुँच कर आखरी मंजिल में शब् गुज़ारी के लिए ऐलान हुवा. 
मैं सुबह को क़जाए हाजत के लिए कुजावे से बाहर निकली और दूर चली गई, वापसी में मेरा हाथ अपने गले पर गया तो एहसास हुवा कि मेरा शुगरे-ज़ुफार का हार गले से गायब था, मैं वापस उस मुकाम तक गई और हार ढूंढती रही. हार खुदा खुदा करके मिल गता तो मैं वापस काफिले के पास गई, तो वहां कुछ न था, मालूम हुवा काफ़िला कूच कर गया, मेरा सर चकराया और मैं वहीँ बैठ गई. 
आयशा कहती हैं मैं उस ज़माने मैं एक हलकी फुल्की लड़की थी जैसे कि कुँवारी लड़कियां होती हैं, मजदूरों को ख़याल हुवा कि मैं कुजावे बैठी हूँ, ग़रज़ खाली कुजावा ऊँट पर कस दिया गया. मै सोचने लगी कि जब लोग कुजावे में मुझे न पाएँगे तो ज़रूर वापस होंगे. 
इसी मुक़ाम पर बैठे बैठे मुझे नींद आ गई. हज़रात सिफ़वान इब्ने मुअत्तल जो की क़फ़िले के पीछे सफ़र किया करते थे (इस लिए कि क़फ़िले की कोई चीज़ छूट गई हो तो उसे उठा लें) जब सुबह को मेरे क़रीब पहुंचे तो मुझे पहचान लिया. उन्हों ने ऊँट पर मुझे बिठाया और खुद मोहार पकड़ कर चलने लगे यहाँ तक कि मेरा क़ाफ़िला मैदान में धूप सेंकता हुवा मुझे मिल गया. 
इस अरसे में जिसको फितना आराई करनी थी, कर चुके थे( यह अब्दुल्ला इब्न अबी, इब्ने सलूल था जिसने आयशा पर बोहतान तराशी की थी.) 
हम लोग मदीना पहुंचे, मैं वहां बीमार पड़ गई, बोहतान की खबर मदीने में रोज़ बरोज़ तरक्क़ी करती गई. और मेरे शौहर मुहम्मद भी उनमें शामिल हो गए जो इलज़ाम तराशी में थे. इस बीमारी में मैं बहुत ज़ईफ़ हो गई. एक दिन मेरी एक दोस्त ने बोहतान की पूरी दास्तान मुझको सुनाई. मैं इसे सुन कर और भी नहीफ़ हो गई. मै अपने मायके चली गई जहाँ मेरी माँ ने मुझे तसल्ली दी. इस दौरान मुहम्मद ने अली औ ओसामा इब्ने ज़ैद को बुलाया और मश्विरह तलब किया ( इस दौरान शायद अल्लाह भी शक ओ शुब्हः में पड़ा था कि वहिय न भेजता था) दोनों ने अपने अपने तबीयत के मुताबिक राय दिया , ओसामा ने आयशा के हक में मश्विरह दिया मगर अली ने कज अदाई की. बात को बरीरा तक बढ़ा दिया. बरीरा ने भी मुहम्मद को आयशा की खूबियाँ ही बतलाईं.
मुहम्मद वहां से उट्ठे और सीधे सलूल की तरफ़ गए और इलज़ाम तराशों को कुछ मशविरा देने के बाद उनसे मुआज्रत ख्वाह होने पर जोर दिया. बात बढ़ कर क़बीलाई अज़मतों तक पहुँच गई. दो मक्की और मदनी क़बीलाई सरदारों में पहले लफज़ी जंग हुई, बात बढ़ गई तो हाथ तलवारों तक पहुँच गए. इस नाज़ुकी को देख कर मुहम्मद उठे और सबको ख़मोश किया और ख़ामोशी छा गई. 
आयशा कहती है कि रो रो कर उसका हाल बुरा था कि एक महीने बाद मुहम्मद ने जुबान खोली, आकर बैठे और कहने लगे " आयशा मुझे यक़ीन है कि अल्लाह जल्द ही तुम्हारे बारे में वह्यी भेजेगा फिर भी अगर तुमने ऐसे फ़ेल का इर्तेकाब किया है तो खुदा तअला से तौबा करो, क्योंकि जब कोई बन्दा गुनाह करके तौबा करता है तो खुदा उसके गुनाहों को मुआफ़ कर देता है. " 
मुहम्मद का कलाम ख़त्म हुवा तो आयशा के आंसू खुश्क हो चुके थे और वह हर एहसास से खुद को बरी कर लिया था, बाप से बोली इनसे बातें आप ही कर लें या वाल्दा, दोनों ने कहा बेटी मैं खुद हैरान हूँ कि नबी को क्या जवाब दें. आयशा कहती है " खुदा की क़सम मैं ने महसूस किया है कि मुआमले को लोगों ने इतना मशहूर किया है कि सबके दिलों में यह यक़ीन बन गया है कि मैं मुजरिम हूँ, आप लोग मेरी हाँ करने के मुन्तजिर हैं. आप लोग जो बयां करते हो, इसके लिए मेरा खुदा ही मेरा मदद गार है. ये कहती हुई अपने बिस्तर पर चली गई कि मैं अपने आप को इस काबिल नहीं समझती कि मेरी ज़ात पर वह्यी उतरे और क़ुरआन में मेरा वाक़िया नमाज़ों में पढ़ा जाए. मैं खुद को इकदम कमतर समझती हूँ और उम्मीद करती हूँ कि अल्लाह ताला नबी को सच ख्वाब में दिखला दे. "
इसके बाद मुहम्मद पर वह्यी आई, वह पसीना पसीना हुए और बोले आयशा तुन इलज़ाम से बरी हुईं, अल्लाह ने तुम्हारे बारे में वह्यी भेज दी है. आयशा की मां ने उस से कहा बेटी तू मुहम्मद का शुकिया अदा कर कि उनका दिल साफ़ हो गया है. आयशा बोली मैं अल्लाह के आलावा किसी का शुक्रिया नहीं अदा करूंगी. 
इस वह्यी के नाटक के बाद कि मुहम्मद के अल्लाह ने मुहम्मद को अपनी शहादत दे दी, ये सख्स फिर अपनी बे निकाही बीवी ज़ैनब से दर्याफ़्त करता है कि ज़ैनब तुम बतलाओ कि आयशा का किरदार कैसा है? ज़ैनब भी आयशा की कट्टर सौतन होते हुए भी कहा मैंने आयशा के किरदार में कोई लगजिश नहीं पाई. 
* इस वाक़िए की हक़ीक़त तो साफ़ नहीं है कि मुहम्मद की बीवी आयशा पर इलज़ाम सही हैं कि ग़लत? मगर मुहम्मद की पैगम्बरी ज़रूर झूटी साबित होती है. एक कमज़ोर इंसान की तरह वह पूरी ज़िन्दगी शक ओ शुबह में पड़े रहे. उनका पाखंड वह्यी (आकाश वाणी) भी उनको इत्मीनान न दे सकी, जो मुसलमानों का अकीदा तकमील-कुरान है

जीम. मोमिन 

Thursday 15 January 2015

Hadeesi Hadse 28


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बुखारी ८७८-79
मुहम्मद कहते हैं कि रोज़े की हालत में लड़ाई झगडा और मूहा चाई मना है, अगर इसका सामना हो जाए तो कहो मेरा रोज़ा है, दोबारा कहो मेरा रोज़ा है.
*अगर सामने वाला मारने मरने पर उतर आए?
इसक कोई जवाब मुहम्मद के पास नहीं है.
रोज़े दारों के मुंह से अक्सर बदबू आती है. बदबू ऐसी कि उनके साथ बात करना भी मुहक्ल हो जाता है. 
मुहम्मदी अल्लाह को यह बदबू मुश्क की मानिंद लगती है.
मुहम्मद कहते हैं कि रोज़े दारों को मखसूस जन्नातियों के दरवाजे से दाखिला होगा. शयातीन जकड दिए  जाते है.
*मुसलमानों! जागो तुम उन्नीसवीं सदी में हो. तुहारा मजाक उड़ाया जाता है.
बुख़ारी ११०१ 
ग़ुलामों और लौंडियों के खरीद , फ़रोख्त के सिलसिले में मुहम्मद कहते हैं ," तुम लोग यह क्या हरकत करते हो कि ऐसी शर्तें बयान करते हो कि जो किताब अल्लाह में मौजूद नहीं है. अगर कोई शख्स ऐसी शर्तें बयान करे जो किताब में न हो, अगर वह ऐसी सौ शर्तें बयान करेगा वह सब बातिल होंगी . वही शर्त क़बिल होंगी जो हक तअला ने फ़रमाई होंगी." 
* मुसलमानों को मुन्जमिद रखने वाला इस्लाम अपने उम्मी रसूल के हुक्म पर आज भी लकीर का फकीर बना हुवा है. कोई भी कानून वक़्त के हिसाब से बनता और बिगड़ता है. उस वक़्त 
लौड़ी और ग़ुलामों की खरीद और फ़रोख्त की शर्त मुहम्मदी अल्लाह ने बनाए थे, आज लौंडी ग़ुलाम रखना ही जुर्म बन गया है. 
बुख़ारी ११०३ 
आयशा अपने भाँजे से कहती हैं कि 
"ए भाँजे! दो दो महीने गुज़र जाते थे कि घर में चूल्हा नहीं जलता था." भांजा पूछता है "तो फिर आप लोग ज़िन्दगी कैसे बसर करते थे?" 
आयशा जवाब देती हैं कि "खजूर और पानी मयस्सर थे या फिर पड़ोस में पले मवेशी से कुछ दूध मिल जाता. 
* ऐसी तस्वीरें बार बार ओलिमा पेश करते हैं. जब कि मुहम्मद की सारी बीवियों के घरो में बनी नुज़ैर और बाद में खेबर से मॉल गुज़रयाँ आती थीं 
जो अशर्फियों के थैले तक हुवा करते थे. इसके आलावा जंगों से मिला मेल-गनीमत का २०% मॉल आता था. 
मुसलमानों! 
यह अल्लाह की नाजायज़ औलादें, ओलिमा तुमको गुम राह किए हुए हैं. इनकी बातों पर कान मत धरो और इनसे इतना फ़ासला रहे जितना खिन्जीर से रखते हो. मोमिन तुमको नई राह "ईमान" की दिखलाता हो. 


जीम. मोमिन 

Tuesday 6 January 2015

Hadeesi Hadse 27


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हदीसी हादसे 27

 बुखारी ९००
रमजान का महीना था, मुहम्मद ऊँट पर सफ़र में थे अपने साथी को हुक्म दिया उतरो मेरे लिए सत्तू बनाओ, उसने कहा अभी रोज़ा अफ्तार का वक़्त नहीं हुवा है.
कुछ देर बाद फिर उससे अपनी बात दोहराई,
उसने फिर कहा अभी वक़्त नहीं हुवा है.
कुछ देर बाद मुहम्मद ने फिर कहा उतरो मेरे लिए सत्तू बनाओ.
वह उतरा और सत्तू बना कर दे दिया.
मुहम्मद खा पी कर फारिग़ हुए तो कहा जब रात  पच्छिम की तरफ़ से आ जाए तो समझ लो रोज़े का वक़्त आ गया.
जहाँ खुद मुहम्मद इतने लिबरल हैं वहीँ मुसलमान उनके मानने वाले इतने सख्त क्यों होते हैं? उनकी जान पर बन जाय मगर रोज़ा वक़्त से पहले न खोलेगे.
इसी तरह पहले हदीस आ चुकी है की मुहम्मद ने आयशा से कहा गोश्त को हराम हलाल मत देखो और बिस्मिल्ला करके खा लिया करो.
बुखारी ८८३ -८४-८५-८६-८७-88
मुहम्मदी अल्लाह कहता है जो शख्स रमज़ान के महीने में झूट बोलना और झूट पर अमल करना न छोड़ सके, वह खाना पीना भी न छोड़े.
*सिर्फ रमज़ान के महीने में क्यूँ झूट पर पाबन्दी हो? १२हो महीने क्यों न हो ? हदीस से लोगों को रमज़ान के आलावा बाकी महीना झूट की छूट है?
मुहम्मद कहते है रमज़ान के महीने में सब काम इन्सान का उसके लिए है. सिर्फ रोज़ा अल्लाह के लिए. माहे- रमज़ान में दो खुशियाँ ही रोज़्दार  को मुयस्सर हैं, पहली अफ़्तार है, दूसरी अल्लाह से मुलाक़ात होगी.
*ज़ालिम जाबिर अल्लाह से मिलने पर ख़ुशी होगी या खौफ?
अल्लाह के झूठे पयम्बर कहते हैं जो शख्स निकाह करने की ताक़त रखता  हो, निकाह करले जो निकाह की ताक़त नहीं रखता वोह रोज़ा रख्खे. रोज़ा इसके वास्ते ऐसा है जैसे खस्सी (बधिया) होना.
* मुहम्मद के इस बात में भी उनकी जेहालत छिपी है. मुस्लमान या खस्सी हो जाय और रोज़े रखे या फिर निकाह करले ताकि रोज़ा से नजात हो.
खुद मुहम्मद तस्लीम करते हैं की हम उम्मी लोग क्या जाने कि महीना कभी उनतीस का होता है तो कभी तीस का.
*जिब्रील अलैहिस्सलाम वे इतनी तवील कुरान याद करा दी, बस बारह अदद महीने के दिन ही न याद करा सके.
मुहम्मद ने रमजान के महीने में बीवियों के पास न जाने की क़सम खाली मगर जिन्स के भूके पयम्बर २९वेन दिन ही किसी बीवी के पास पहुंचे. उसने पूछा कि अप ने तो एक महीने की क़सम खा रक्खी है? बोले महीना क्या उनतीस दिन का नहीं होता?
*जिन्स बेकाबू हो रहा था.


जीम. मोमिन