Tuesday 16 April 2013

Hadeesi Hadse 81


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बुख़ारी 1451
क़ुरैश परवर मुहम्मद कहते हैं कि क़ुरैश का यह क़बीला हमें हलाक कर देगा . लोगों ने पूछा कि ऐसे वक़्त में हमें क्या करना चाहिए? जवाब था कि उस वक़्त लोग उन से परहेज़ करें तो बेहतर है।

*मुहम्मद ने अपने कबीले क़ुरैश के लिए ही तो पैगंबरी का नाटक रचा था, इसी लिए वह उनके लिए नर्म गोशा रखते थे हत्ता कि वह हमें मार दें मगर हम उनसे मुकाबिले में परहेज़ करें।
आज कुरैश ही आले रसूल बने हुवे हैं जिनके लिए हम दरूद ओ सलाम भेजा करते हैं, और वह हमें हिंदी मिस्कीन कहते हैं।

बुख़ारी 1452
क़ुरैशी कशमकश 
मुहम्मद कहते है मेरी उम्मत इन्हीं चंद क़ुरैशियों के हाथों हलाक होगी। अगर मैं चाहूं तो बतला सकता हूँ कि वह किनके किनके बेटे होंगे।

* मुहम्मद का नर्म गोशा अपने कबीले के लिए कितना तरफ़दार और जानिब दार है, हदीस से अंदाज़ा लगाया जा सकता है। सारी उम्मत दाँव पर होगी मगर क़बीले के दो फ़र्द उन सब पर भारी होंगे। मुहम्मद की जुबान उनका नाम लेने के लिए तय्यार नहीं।
मामूली चोरी पर एक मुअज्ज़िज़ खातून का हाथ क़लम कर देने वाले अल्लाह के रसूल दो क़ुरैश नव जवानो के लिए इतने जानिब दार हैं कि अपनी उम्मत को ख़त्म होने जाने के लिए राज़ी हैं।
उनकी नबूवत की पेशीन गोई भी सच साबित नहीं हो पाई कि उम्मत तो अरबियों के तलवे चाट रही है।

बुख़ारी 1453
इमाम गुमराह 
मुहम्मद कहते हैं कि एक वक़्त आएगा जब लोग गुमराही में मुब्तिला हो जाएँगे. वह हम तुम जैसे लोग होंगे, हमारी ज़ुबान बोलेंगे, मगर ख़बरदार तुम अपने इमाम की पैरवी करना, अगर इमाम मुयस्सर न हो तो जंगल की तरफ भाग जाना और दरख्तों की जड़ें खा खा कर मर जाना।

 * हाँ यह वक़्त ज़रूर आने वाला है, मुसलमानों की नौबत खुद कुशी की होगी और इमाम बकसरत होंगे, हर इमाम इनका खून चूस रहा होगा , मुसलमान अभी से तैयार हो जाएं।
ऐसे मौके पर ईसाई इनके सामने मिशन के साज़ ओ  सामान  लिए खड़े होंगे और हिन्दू शुद्धि करण की भजन मण्डली।
मगर खबरदार !
शुद्ध हुए तो हमेशा के लिए अशुद्ध ही हो जाओगे। वह तुमको अपनी रोटी बेटी में शामिल नहीं करेगे। इनको उस वक़्त मेहतरों और मजदूरों की ज़रुरत होगी, वह तुम पूरी करने के लिए तैयार रहना .
ईसाइयों का भी तुम्हें बख्श देने का ख़याल न होगा, इनको तुम्हारी ही सलाहियतों का मुसलसल फायदा चाहिए होगा । और चाहिए होगा एक बड़ा कंज्यूमर मार्केट .
ऐसा वक़्त आने से पहले तुन मोमिन की बात मानो, मज़हब ए इंसानियत की राह अपनाओ, इस से किसी इंसान को परहेज़ नहीं।
इस्लाम में इंसानियत का कोई बाब नहीं, मुल्लाओं के सुर में सुर मिलाना बंद करो। इनके साए से बचो, इनसे इतना दूर रहो कि जैसे ख़ारिश ज़दा कुत्तों से फ़ासला रखते हो, यह तुम्हारे दर पे आएं तो फ़क़ीरों जैसा सुलूक करो और इनको आगे बढ़ने को कह दो।
सिर्फ़ इंसानियत की राह ही तुमको बचा सकती है। इंसानियत जिसका कोई रहनुमा नहीं, वह खुद तुम्हारे अन्दर बैठी हुई है जो अपने अंकुर फोड़ा करती है, फूलती और फलती है और तुम्हें हर वक़्त सच्चाई की राह पर गामज़न रखती है।
बुख़ारी 1362 
गिर्गिट पर ज़ुल्म 
क़ुदरत की एक ख़ूब सूरत मख़लूक़ है गिरगिट, जिसके नक़्ल ओ हरकत और रूप रंग को देखते ही बनता है. ये छिपकिली जैसा घिनावना भी नहीं होता और न उसके जैसा ज़हरीला ही .
इस प्यारी मख्लूक़ को मुहम्मद ने देखते ही मार डालने का हुक्म दिया है .मुसलमान बच्चे इसे जहाँ देखते हैं फ़ौरन इसके मारने का मश्गिला शुरू कर देते हैं , उनको बतलाया जाता है कि इसको मारने से सवाब मिलता है. 
इस वाक़िए का पस ए मंज़र ये है कि जब मुहम्मद रातो रात मक्का से मदीने के लिए फ़रार हो रहे थे कि रात  हो गई थी और वह एक ग़ार में छिप गए थे जिसके मुंह पर मकड़ियों ने रात में जाल तान दिया था . उनके दुश्मन ग़ार तक आए और मकड़ी के जाले को देख कर इसकी तलाशी नहीं ली क्योंकि जाल एकदम साबूत था .
मुहम्मद ग़ार के अन्दर से सब देख और सुन रहे थे, उन्हों ने देखा कि वहाँ मौजूद एक गिरगिट हस्ब आदत अपनी गर्दन उछाल रहा है जिसे अक़्ल के दुश्मन समझे की वह दुश्मनों को खबर दे रहा है कि मैं अन्दर हूँ .
इस मुआमले में न मकड़ी ने मुहम्मद को बचाया न गिरगिट ने उनके खिलाफ़ कोई अमल किया , दोनों अपने अपने फ़ितरत में मसरूफ रहे. 
मुहम्मद इस ग़रीब पर एक इलज़ाम और मढ़ते हैं कि ये उस आग को हवा दे रहा था जिसमें हज़रात इब्राहीम को डाल गया था .
 अबू हरीरा कहते हैं - - - 
कि मुहम्मद का हुक्म है कि गिरगिट को तीन या उस से ज्यादा बार मरने में सवाब है मगर दो बार में ज्यादा सवाब है, एक बार में मारने में तो मज़ह ही कुछ और है और सवाब भी ज्यादा .
* मैं ने भी बचपन में गिरगिट मारे हैं, इसका अज़ाब मुहम्मद और इस्लामी आलिमों से सर . 


जीम. मोमिन 

Tuesday 9 April 2013

हदीसी हादसे 80


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बुख़ारी  १३५१ 
बदबू दार हदीसें 
"मुहम्मद पुड़िया छोड़ते हैं कि अगर बनी इस्राईल न होते तो गोश्त में बदबू पैदा न हुवा करती और अगर हव्वा न होतीं तो कोई औरत अपने शौहर की ख़यानत न किया करती, यानि यह तरीकः उन लोगों का जारी किया हुवा है, अगर यह लोग ये फ़ेल न करते तो मुसीबत न आती ." 

इस औघड़ को इसका अल्लाह थोड़ी सी अक़्ल सलीम भी देता तो ऐसी बात न करता ,
क्या बनी इस्राईल से पहले यानी याकूब तक गोश्त में बदबू नहीं हुवा करती थी कि उनकी नाक़िस नस्लों के बाद गोश्त में बदबू पैदा होना शुरू हो गई ?
कहता है इस फ़ेल के बाद ?
किसी का तवल्लुद या जन्म लेना उसका फ़ेल कहाँ होता है ? 
मासूम अबोध बच्चे को क्या मालूम रहता है कि जन्म लेने की मुजरिमाना हरकत कर रह है?
पूरी क़ुरआन में "या बनी इस्रईला" की दास्तान गाते गाते, वह हदीस में इनकी ऐसी ज़िल्लत करता है कि इसके वजूद को ही बदबू दार साबित कर दिया. 
दर अस्ल यह हरबा था यहूदियों को रुसवा करने का .
सारी इंसानियत की मादर ए अव्वल मानी जाने वाली हव्वा को मुहम्मद यूँ मुजरिम क़रार देते है जैसे औरत ज़ात की तमाम खामियों की वजेह हव्वा थी, न वह पैदा होने की ग़लती करतीं, न ही औरत ज़ात में यह खामियाँ मौजूद होतीं .
सानेहा ये है कि ऐसी जाहिल रिसालत की इन बातों को मदरसों में Phd कराई जा रही है . तालिब इल्मों की तलाश (शोघ) यह होती है कि ये हदीस , हदीस ए मख़दूस, मशकूक, बातिल या कमज़ोर तो नहीं? 
यही ग़लीज़ इल्म बच्चों के ज़हनों में भर दिया जाता है जिसे व तमाम उम्र ढोते रहते है. 

मुस्लिम किताबुल अख्फ़िया 
मुहम्मद बे ख़याली में कभी कभी कोई माक़ूल बात भी कह जाते हैं, यह भूलते हुए कि यह बात उनकी पैगंबरी के ख़िलाफ़  जाती है, 
"कहते हैं कि हाकिम सोच कर हुक्म दे और सही करे तो उसे दो सवाब, अगर ग़लत हो जय तो एक तो है ही "
हाकिम का हुक्म कुरान और हदीस की रौशनी में होना चाहिए. हुक्म सही हो या ग़लत. यह किताबें कहाँ सही हैं? जो इन पर तकिया रख कर इन्साफ किया जा सके.
इस्लाम का क़ानून है तौहीन रिसालत पर मुजरिम का सर क़लम कर दिया जाय. यह कोई इन्साफ़ हुवा कि  झूट का साथ न देने पर मौत के घाट उतार दिया जाए . 
बुख़ारी  १ ३ ६ १  
बाबा इब्राहीम का ख़तना
मुहम्मद गढ़ते हैं कि 
" हज़रात इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अपना ख़तना अस्सी साल की उम्र में खुद अपने हाथों से एक कुल्हारी से मुकाम क़ुदूम में किया ."
 * मुहम्मद ने अपना ख़तना कभी नहीं कराया और एलान किया कि मैं तो मख़तून पैदा ही हुवा हूँ . इनकी बात को तस्दीक़ नहीं करा सके लोग कि कौन शामत मोल ले ?
इस बात की गवाही उनकी बीवीयाँ, बांदियाँ और उनकी रखैलें दे सकती थीं मगर वह सब उनकी गुलामी में थीं .
यह माफ़ौक़ुल फितरत है कि कोई इंसान मख़तून पैदा हो। हाँ  कभी कभी किसी आज़ा में नुक्स होता है भी तो वह बात इसके जिस्म की कहानी बन कर समाज में फैल जाती है .
गोया उम्मत ए अक्दास के पैगम्बर तमाम उम्र जिस्मानी तौर पर काफ़िर और मुशरिक रहे जो उनके तमाम झूटों में मुजस्सम झूट कहा जा सकता है. 
ख़तना बहुत पुराना तरीका ए कार है जो यहूदियों में सदियों से चला आ रह है, जिसकी नक़्ल मुहम्मद ने बे चूँ चरा अपना लिया .
भारत में जब दंगे होते हैं तो पैंट उतार कर लिंग दिखलाना हिदू और मुसलमान दोनों की मजबूरियाँ बन जाती हैं .


जीम. मोमिन 

Tuesday 2 April 2013

Hadeesi Hadse -79


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बुख़ारी 1339
जमहाई लेना शैतानी हरकत 
मुहम्मद कहते हैं कि जम्हाई लेना शैतानी हरकत है, तुम में से जब किसी को जम्हाई आए तो वह हत्तुल इमकान उसे रोके।

* जम्हाई आना अच्छी या बुरी हरकत नहीं बल्कि अलामत है नींद आने की. नव ज़ायदा बच्चा बार बार जम्हाई लेता है जिसमे कठ मुल्ले को शैतान ही नज़र आता है। लाल बुझक्कड़ की खोपड़ी पाई थी, छींक आने पर शुक्र अल्हमदो लिल्लाह कहने को कहते, जो बीमारी की अलामत लेकर आती है।  लोग इस मौके पर सोरी बोलते हैं।
काश कि मुसलमान समझ सकें कि वह ख़ुद कितने बड़े शैतान थे।

बुख़ारी 1345
मुर्ग और गधे की आवाजें 
कठ बैठे मुहम्मद कहते हैं कि जब मुर्ग़ की आवाज़ सुनो तो अल्लाह के फ़ज़ल और नेमत के तलब गार रहो और जब गधे की आवाज़ सुनो तो 'आऊज़ ओ बिल्लाह ए मिनस शैतानुर्रजीम ' पढो , क्योंकि मुर्ग़ फ़रिश्ते को देखता है और गधा शैतान को .

*मुहम्मद इंसान के ही नहीं बल्कि जानवरों के भी दुश्मन हैं, सीधी सादी मख़लूक़ को ज़र्द रू कर रहे हैं। ज़िन्दगी भर गधों पर सवारी की , कभी कभी तो इस पर ऐसा ज़ुल्म करते थे कि डबल सवारी हो जाया करते थे। यह एहसान  फ़रामोशी ?
इस मासूम जानवर के पीछे पड़े रहते, कभी आवाज़ को लेकर कभी सूरत को लेकर।

बुख़ारी 1349
 आदम का क़द 
मुहम्मद कहते हैं कि जब अल्लाह तअला ने आदम को पैदा किया तो उनका क़द 60 हाथ था (करीब 50 मीटर ) इसके बाद कम होते होते इस हद तक आ गया है , लेकिन जन्नत में दाख़िल होने वाले लोग आदम की तरह ही होंगे।

*कुरान की बातें तो खैर मुहम्मद को जिब्रील बतलाया करता था मगर इन हदीसी शगूफों को किसने इनके कान में फूँका ? 
शैतान ने ?
एक जगह कहते हैं कि मुझ से फ़ैसले मत कराया करो, मैं भी तुम्हारे जैसा एक इंसान हूँ , तुम्हारी लफ्फ़ाज़ी में आकर तुम्हें कुछ दे दिया तो समझ लो वह दोज़ख़ का एक टुकड़ा होगा।
उनकी यह बात माक़ूल है मगर इतनी बड़ी बड़ी 50 मीटर की लम्बी गप कहाँ से पाते थे ?
क्या यह बात सच नहीं कि ख़ाली दिमाग़ शैतान का होता है ?
* जब जन्नातियों के क़द 60-60 हाथ के हो जाएँगे तो उनके लिए नई नई मुसीबतें खड़ी हो जाएँगी . दिन भर की पंज वक्ता नमाज़ों की 24 रिकत की उठ्ठक बैठक ही उनकी जान ले लेगी . 
पता नहीं हूरें भी 60 हाथ की होँगी जिनको ऊपर से नीचे तक देखने में ही ज़ाइका बदल जाएगा . या फिर 5 फिटी होंगी जिनको जन्नती मर्द की शक्ल देखने के लिए सीढ़ी लगानी पड़ेगी .
इस क़द्र झूटा और मक्कार पैग़म्बर क्या दुन्या की किसी दूसरी उम्मत के पास होगा , सिवाय मुसलमानों के ?


जीम. मोमिन