Wednesday 24 February 2016

Hadeesi Hadse 197



हदीसी हादसे 86

बुखारी नम्बर -२६ 
एक हदीस में रवायत है कि मुहम्मद कुछ लोगों को मॉल तकसीम कर रहे थे कि उनमे से एक को छोड़ दिया . इस पर इनके साथी विकास ने कहा , या रलूलल्लाह इसको क्यूं छोड़ दिया? जो कि मेरे नज़दीक सब से ज्यादह ईमान वाला मोमिन है. मुहम्मद ने कहा ये मत कहो कि अच्छा मोमिन है ये कहो कि सबसे अच्छा मुस्लिम है. कुछ देर खामोश रहने के बाद फिर विकास ने कहा या रलूलल्लाह वह मेरे नज़दीक इन सब में ज्यादह ईमान वाला मोमिन है. रसूल ने कहा ये न कहो कि तुम उसे मोमिन जानते हो , 
ये कहो कि मुस्लिम जानते हो नमाज़ रोज़े के साथ उसके ईमान को तो सिर्फ अल्लाह ही जनता है........ 
यहाँ मुह्क़म्मद ने साफ़ कर दिया है कि अगर बंदा मोमिन है तो कभी मुस्लिम नहीं हो सकता . इसी वजह से मर्द मजकूरह को हिस्सा देने से मुहम्मद ने इनकार कर दिया .
मोमिन और मुस्लिम का फर्क यहाँ मुहम्मद साफ़ साफ़ बयान कर रहे हैं. 
इसी बात को मैं बार बार दोहराता हूँ कि कुछ बनना है तो ईमान दार मोमिन बनो, मुस्लिम बनना बहुत आसान है.मोमिन बन जाने के बाद मुस्लिम बनना गुनेह गारी है. 
बुखारी नम्बर -२७ 
मुहम्मद कहते हैं कि एक बार उनके सामने दोजख पेश की गई जिसमे उन्हों ने देखा की औरतें कसरत से थीं क्यूंकि ये नाशुक्री बहुत करती हैं. एहसान फरामोश होती हैं, अगर तुम इनमें किसी के साथ एहसान करते रहो तो वह ज़रा सी बद उन्वानी पर कह दिया करती हैं कि हमने तुझ में कोई नेकी नहीं देखी. 
मुल्ला जी झूटी तक़रीर किया करते हैं कि उनके हुज़ूर ने औरतों का हक सबसे ज़्यादः अदा किया है. उल्टा औरतें मुहम्मद के पैरों के नीचे आँखें बिछाए रहती हैं.
बुखारी नम्बर -३० 
ज़ुल्म अज़ीमुश्शान 
मुहम्मद और उनका अल्लाह शिर्क को ज़ुल्म अज़ीमुश्शान कहता है, यानी शानदार ज़ुल्म. 
शानदार बुराई. 
अल्लाह और मुहम्मद को अल्फाज़ का इस्तेमाल भी नहीं आता , वह बदतरीन ज़ुल्म कि जगह पर ज़ुल्म अज़ीमुश्शान कहते हैं. .
बुखारी नम्बर -34
मुहम्मद कहते है कि अल्लाह का इरशाद है जो शख्स सिर्फ मेरी रजामंदी और मेरे ऊपर ईमान लाए और मेरे रसूल की तस्दीक की वजह से मेरे रस्ते में जिहाद की गरज से निकलता है तो मेरे लिए यह मुक़र्रर है उज्र ओ गनीमत अता फार्म कर बा नील ओ मराम वापस कर दूं या जन्नत में दाखिल कर दूं .
आगे मुहम्मद कहते हैं कि अगर मुझको अपनी उम्मत की परेशानी का खौफ न होता तो मुजाहिद के लश्कर से पीछे न रहता और ये पसंद करता कि मैं अल्लाह के राह हो कर जिंदा हों, फिर शहीद होकर जिंदा हों, फिर शहीद होकर हों जिंदा हों फिर शहीद होकर जिंदा हों. 
नए नए मुसलमान हुए लोगों के घर घर जाकर लोगों के लिए जंग का प्रचार करते , डरा कर, लालच देकर, फ़र्ज़ करार देकर ,
बहर सूरत मुहम्मद जंग के फ़ितने में लागों को झोकते. इसी की एक कड़ी मौजूदा हदीस है. खुद मैदाने- जंग से दूर रहते. उम्मत की परेशानी की बात करने वाले मुहम्मद ने अपनी मौत के बाद का अंजाम कभी सोंचा ? इनकी नस्लें ख़त्म हो गई.

मुहम्मद को समझना अक्ल की बात नहीं, हिम्मत का सवाल है. उस वक़्त भी लोग उनकी गुंडा गर्दी से डरते थे, आज भी उनके गुर्गों की गुंडा गर्दी से खौफ खाते हैं.

Wednesday 17 February 2016

Hadeesi Hadse 196



हदीसी हादसे 85
बुखारी नम्बर -४७ 
एक दिन मुहम्मद लोगों के झुरमुट में बैठे थे कि एक शख्स आया और उसने मुहम्मद से दर्याफ़्त किया कि 
ईमान क्या है? 
मुहम्मद ने कहा ईमान ये है कि तुम खुदा पर और उसके फरिश्तो पर और खुदा की मुलाक़ात पर और उसके रसूल पर ईमान रख्खो, मरकर ज़िन्दः होने को हक समझो. 
उसने फिर पूछा इस्लाम क्या है?
 कहा इस्लाम ये है कि तुम सिर्फ़ खुदा की ही इबादत करो, इसके साथ किसी को शरीक न बतलाओ ...... 
फिर उसने पूछा एहसान क्या है? 
मुहम्मद ने कहा खुदा की इबादत ऐसे करो गोया उसको देख रहे हो ....
रसूल के जवाब सुन कर उसने पूछा कयामत कब आयगी? 
मुहम्मद का उल्टा सीधा जवाब सुन कर वह चला गया तो अल्लाह के रसूल फरमाते है कि क्या तुम लोग जानते हो कि वह कौन था? 
जिब्रील अलैस्सलम थे, लोगो को दीन बताने आए थे. 
मुहम्मद ने लोगों पर अपना असर डालने के लिए झूट बोले. 
जिब्रील अलैस्सलम इसलामयात के बारे में खुद पूछ रहे थे, 
मुहम्मद कहते हैं वह लोगों को दीन समझाने आए थे. 
मुहम्मद अव्वल दर्जे के झूठे इंसान थे जिनको मुसलमान अपना पैगम्बर समझते है. गोया मुसलमान अनजाने में झूटी ज़िन्दगी जी रहे हैं 
जो तमाम दुन्या देख रही है.
बुखारी ५३
"एक शक्स मुहम्मद के पास इस्लाम क़ुबूल करने के किए आया, 
मुहम्मद ने शर्त लगाई कि तुम्हें मुसलमानों का ख़ैर ख्वाह रहना होगा." 
*इस्लाम इंसान को तअस्सुबी बनाता है. तअस्सुबी फ़र्द कभी ईमान दार नहीं हो सकता और न ही मुंसिफ.
बुखारी ५५
"मुहम्मद नमाज़ से पहले वजू (मुंह, हाथ और पैर धोना) करने में एडियों को चीर कर न धोने वाले नमाजियों को आगाह करते है कि इस सूरत में एडियाँ दोज़ख में डाल दी जाएंगी"
*मुहम्मदी अल्लाह की बातों को सर आँख पर रख कर जीने वालों को कभी कभी जिंदगी दूभर हो जाती है. दिन में पाँच बार वज़ू करना और उसमें पैरों की बेवाई को चीर चीर कर धोने जैसे सैकड़ों नियम हैं जिनकी पाबन्दी न करने पर जन्नत हराम हो जाती है. 
नई और बेहतर ज़िन्दगी मुसलमानों को जीते जी हराम सी होती है.
बुखारी ५८ 
मुहम्मद ने एक बार अपना ख़त कसरा (ईरान के बादशाह) को भेजा जिसे पढ़ कर उसने ख़त के टुकड़े टुकड़े करके हवा में उड़ा दिया. 
एलची से इसकी खबर मिलने के बाद मुहम्मद ने बद दुआ देते हुए कहा इसके टुकड़े टुकड़े मेरे ख़त की तरह कर दिए जाएँगे. 
मुहम्मद के ख़त का फूहड़ नमूना आगे आएगा जिसको पढ़ कर ही गुस्सा आता है
"काने दादा ऊख दो, तुम्हारे मीठे बोलन " 


Wednesday 10 February 2016

Hadeesi Hadse 195



हदीसी हादसे 84
बुखारी ७६
एक दिन मुहम्मद की बड़ी साली इस्मा मुहम्मद के घर गईं, देखा मियाँ बीवी दोनों नमाज़ में लगे हुए थे. इस्मा ने बहन आयशा से पूछा क्या बात है, दोनों नमाज़ों में लगे हुए हो, कोई खास बात है? क़यामत तो नहीं आने वाली? और इस्मा भी नमाज़ पढने लगीं.
मुहम्मद नमाज़ से फारिग हुए और इस्मा से कहने लगे.
"मुझे वह्यी नाजिल हुई है कि कब्र में जब मुर्दा रखा जाएगा तो उस से सवाल होगा ...
" तू मुहम्मदुर-रसूल्लिलाह के बारे में क्या जानता है ?"
मुर्दा अगर कहेगा 
" वह एक सच्चे अल्लाह के रसूल थे, हमारे पास अल्लाह का पैगाम लेकर आए थे." तो वह जन्नत में जाएगा 
और अगर कहेगा 
" नहीं मैं नहीं जानता" तो जहन्नम रसीदा होगा.
*मुहम्मद के ज़मीर में कितनी गन्दगी थी कि किसी लम्हे अपनी खुद नुमाई से न चूकते. इतना झूट सर पर लादे हुए ज़िन्दगी गुज़रते?
बुखारी ९० 
झूटों के पुतले मुहम्मद कहते हैं कि "जो उन पर झूट बांधेगा वह दोज़ख में अपना मकान बनाएगा."
*अभी तक अल्लाह ही गैर मुअत्बर है वह पूरी तरह से दुन्या में ज़ाहिर नहीं हुवा तो उसका रसूल होने कि बात ही मुहम्मद को मुजस्सम झूट साबित करता है. उसके बाद बचता क्या है?
बुखारी ९५
मुहम्मद कहते हैं "जो औरतें यहाँ दुन्या में उम्दः लिबास पहनती हैं वह क़यामत में उरयाँ होंगी" 
*कठ मुल्ला की बातें! गोया जो इस दुन्या में मामूली लिबास पहनेगी, वह क़यामत में सुर्ख़ रू होगी. और जो लिबास से ही मुबररा होंगी उनको क़यामत में उम्दः लिबासों में देखा जाएगा. मुहम्मदी फार्मूला तो यही कहता है.
बुखारी १०० 
अबू हरीरा कहते हैं मुहम्मद से उन्हों ने दो इल्म हासिल किए थे जिसमें एक को मैं ज़ाहिर कर चुका हूँ, दूसरा मैं ज़ाहिर करूँ तो मेरी ज़बान काट ली जाए. 
अबू हरीरा मुहम्मद के बहुत क़रीब थे कि दूसरे इल्म को ज़ाहिर नहीं कर रहे. गालिबन वह इल्म "इल्मे-सदाक़त" होगा जो कि मुहम्म्द ने उन से बतलाया होगा, इल्म सदाक़त यह कि मैं झूठा हूँ और मेरा अल्लाह मुकम्मल तौर पर झूठा है.
 *
बुखारी १०४७
मुहम्मद कहते हैं अल्लाह उस शख्स से राज़ी नहीं होगा जो पानी रखते हुए प्यासे को न पिलाए.

अभी पिछली हदीस में मुहम्मद प्यासों को अजनबी ऊँट की तरह भगाते हैं. गोया नादानी में खुद जहन्नम रसीदा हुए.


Wednesday 3 February 2016

Hadeesi Hadse 194



बुखारी १०४७
मुहम्मद कहते हैं अल्लाह उस शख्स से राज़ी नहीं होगा जो पानी रखते हुए प्यासे को न पिलाए.
अभी पिछली हदीस में मुहम्मद प्यासों को अजनबी ऊँट की तरह भगाते हैं. गोया नादानी में खुद जहन्नम रसीदा हुए.
बुखारी १०५० 
अली कहते हैं कि जंग ए बदर में मुझे एक ऊँट ग़नीमत में मिला था और एक उनके ससुर मुहम्मद ने बतौर अतिया दिया था. मेरा मंसूबा यह बना कि इन ऊंटों पर मैं अजखर घास लाद कर लाया करूंगा, इसे बाज़ार में फरोख्त कर के पैसे इकठ्ठा करूंगा फिर उसके बाद फ़ातिमा का वलीमा करूंगा जो कि अभी तक बाकी चला आ रहा था. मैं मंसूबा बंदी कर ही रहा था कि बग़ल के मकान में हम्ज़ा बैठे शराब पी रहे थे और सामने एक रक्कासा गाने गा रही थी जिसके बोल कुछ यूँ थे कि वह पड़ोस में बंधे ऊंटों का कबाब खाना चाहती है. हम्ज़ा नशे के आलम में गए और ऊंटों को ज़बा कर दिया. यह ऊँट अली के थे जिनको लेकर वह क्या क्या मंसूबा बना रहे थे. अली यह देख कर दोड़ते हुए मुहम्मद के पास गए और मुआमला बयान किया. वहां ज़ैद बिन हरसा भी मौजूद था, तीनो एक साथ हमज़ा के पास गए . उनको देख कर हमज़ा ने कहा तुम सब मेरे बाप के गुलाम हो. यह सुन का मुहम्मद वहां से चले आए. यह वाकिया तब का है जब शराब हलाल हुवा करती थी.
इस हदीस को पढने के बाद दो अहम् बातें निकल कर सामने आती हैं जिन पर आज मुसलमानों को गौर करना पडेगा. पहली ये कि मुहम्मद के ज़ाती मुआमले के बाईस मुसलमानों को शराब जैसी नेमत से महरूम कर दिया. ज़रा सा मुआमला ये कि दो ऊंटों का मुहम्मद के दामाद अली का नुकसान. क्या इस ज़रा सी बात पर दुन्या की कामों का मकबूल तरीन मशरूब हरम कर देना चाहिए? 
(शराब नोशी को हलाह रखने की बात अलग है जिसके लिए पूरी किताब तहरीर हो सकती है.)
दूसरी बात अली कि इल्मी और शखसी हैसियत क्या थी कि घास खोद कर बेचना जैसा अमल उनका ज़रिया मुआश था. उनकी इल्मी लियाक़त कि आज उनके फ़रमूदात की लाइब्रेरियाँ भरी हुई हैं.
कितना पोल ख़त है इस्लामी अक्दास में ? 
बुखारी १०६४ 
मुहम्मद कहते हैं क़यामत के दिन ईमान दारों को दोज़ख और जन्नत के दरमियाँ एक पुल पर खड़ा किया जायगा. वह जब दुन्या के मज़ालिम को आपस में अदला बदली करके पाक साफ़ हो जाएँगे तो उस वक़्त उनको जन्नत में दाखिल किया जाएगा. इस मौके पर मुहम्मद ग़ैर ज़रूरी क़सम भी खाते हैं 
"उस ज़ात की क़सम कि जिसके क़ब्ज़ा ए कुदरत में मुहम्मद की जान है, कि इन्सान अपने अपने मकानों को दुन्या के मकानों से ज्यादा पहचानता होगा" 
* गोया स्टोक एक्सचंज का नकशा पेश करते हुए मज़ालिम की अदला बदली करने के बाद पाक साफ़ हो जाएँगे? कैसे भला ?कोई उम्मी के दिमागी कैफियत समझ सके तो मुझे भी समझाए. मुहम्मद इतनी बड़ी क़सम, ज़रा सी बात के लिए. बड़े झूट के लिए है बड़ी कसमों की ज़रुरत. 
बुखारी १०६५ 
ऐसी ही एक हदीस है कि क़यामत के दिन अल्लाह मुस्लमान को अपने करीब बुलाएगा और उसके साथ खुसुर फुसुर करेगा कि तूने यह यह गुनाह किए थे जो ज़ाहिर न हो सके और मुस्लमान हरेक गुनाह का एतराफ कर लेगा. अल्लाह सब गुनाहों को मुआफ करता हुवा उसकी की गई नेकियों की किताब उसके हाथ में रक्खेगा जो काफिरों और मुनाफेकीन पर गवाही होगी कि ये लोग हैं जिन्हों ने अल्लाह के हक में झूट बोला था. 
याद रख्खो ज़ुल्म करने वालों पर अल्लाह की लअनत है. 
* मुसलमानों! 
कोई क़यामत ऐसी नहीं होगी जिसमे दुन्या की रोज़े अव्वल से ल्रकर आज तक की आबादी इकठ्ठा होगी और अल्लाह फर्दन फर्दन मुसलमानों से काना फूसी करेगा. 
मुहम्मद और उनका अल्लाह उनकी बेहूदा कुरानी बातों को न मानने वालों को ज़ालिम कहते हैं और जिहाद जैसे ज़ुल्म को नेकी कहते हैं. इनके जाल से बहार निकलें.