Wednesday 27 August 2014

Hadeesi hadse 10


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हदीसी हादसे 10
धर्मांध आस्थाएँ 
मोक्ष की तलाश में गए जन समूह को पहाड़ों की प्राकृति ने लील लिया आस्थ कहती है उनको मोक्ष मिल गया , वह सीधे स्वर्ग वासी हो गए , सरकार और मीडिया इसे त्रासदी  क्यों मानते है . समाज में भगवन का दोहरा चरित्र क्यों है .? 
यह मामला धर्म के धंधे बाजों की ठग विद्या है , इनकी दूकानों का पूरे भारत में एक जाल है . इन लोगों ने हमेशा जगह जगह पर अपने छोटे बड़े केंद्र स्थापित कर रखे हैं और भोली भ भाली नादाँ जनता इनका आसान शिकार हैं . सब कुछ गँवा चुकने के बाद भी जनता के मुंह से कल्पित भगवानों के विरोध में शब्द नहीं फूटते हैं . मठाधिकारी आड़म्बरों के उपाय सुझाते फिर रहे हैं और अपने अपने गद्दियों के लिए लड़ रहे हैं जनता सब कुछ देख कर भी अंधी बनी हुई है . 
मुस्लिम वहदानियत और निरंकार के हवाई बुत को लब बयक कहने के लिए मक्का जाते हैं और शैतान के बुत को कन्कडियाँ मार कर वापस आते हैं. बरसों से यह समाज अरबियों की सहायता हज के नाम पर करता चला आ रहा है . अक्सर दुर्घटनाओं का शिकार होता है . 
कब यह मानव जाति जागेगी ? कब तक समाज का सर्व नाश होता रहेगा . अलौकिक विशवास को आस्था का नाम दे दिया गया है और गैर फ़ितरी यकीन को अकीदत का  मुकाम हासिल है . बनी नॊअ इन्सान के हक में दोनों बातें तब असली सूरत ले सकती हैं जब मुसलामानों को केदार नाथ और हिन्दुओं को हज यात्रा पर जबरन भेज जाए
बुखारी ३७९
मुहम्मद कहते हैं जब अल्लाह के साये के अल्लावः कोई साया न होगा, अल्लाह तअला अपने साए में सात किस्म के लोगों को रख्खेगा- - १-हाकिम आदिल.
२- वह जवान जो यादे-खुदा में ही परवरिश पाया हो.
३- वह शख्स जिस का दिल हर वक़्त मस्जिद में लगा रहता है.
४- वह लोग जो खुदा के वास्ते ही प्यार करते हों,और उसी के वास्ते एक दूसरे से जुदाई अख्तियार करते हों. ? ? ?
५- वह शख्स जिसे इज्ज़त वाली हसीन औरत अपने पास बुलाए और वह जवाब देदे कि मुझको खुदा से खौफ़ मालूम होता है.
६- जो शख्स सद्कः दाएं हाथ से करे और बाएँ हाथ को खबर न हो.
७- और वह शख्स जो अकेले में याद इलाही में गिर्या करता हो.
* अहले हदीस इस इक्कीसवीं सदी में कंप्यूटर की तालीम न लेकर मुहम्मद की बातें याद करता है और उन पर अमल करता है. सातों नुक्ते वक़्त की हवा से उलटे सम्त को जाते हैं. इनको मुसलमान अपना निसाब बना कर जीते हैं. 
ये लोग अल्लाह के साए में होंगे, बाकी मुसलामानों का क्या होगा.

बुखारी ३७६
मुहम्मद ने कहा पांच तरह की मौतों से शक्श शहीद होता है - - - 
१- ताऊन से मरे 
२- पेट की बीमारी से मरे 
३- पानी में डूब कर मरे 
४- दब कर मरे 
५- जिहाद में मौत हो.
किस बुन्याद को लेकर जन्नत मुक़र्रर हुई? मौत तो कई बार बड़ी ही अज़ीयत नाक होती है.
इसी हदीस में एक बात मुसबत पहलू रखती है, मुहम्मद कहते हैं राह में पड़ी कंटीली झाड़ी जो उठा कर बहार डाल दे, अल्लाह उसका शुक्र गुज़ार होता है. हांलाकि मुहम्मदी अल्लाह अगर खुद चाहे तो ये काम कर सकता है. या काँटों भरे राहों से मुसलमानो को बचा सकता हो.

बुखारी ३७२
मुहम्मद ने कहा कि खुदा की क़सम कई मर्तबा मैंने इरादा किया कि अपनी जगह मैं किसी और को मुक़र्रर कर के, मैं लकडियाँ चुनूँ और उनके घरों में आग लगा दूं जो इशां के वक़्त नमाज़ पढने नहीं आते. 
कहा, अल्लाह की क़सम जिसके कब्जे में मेरी जान है अगर ये एलान कर दिया जाय कि नमाज़ के बाद बकरी की एक हड्डी या एक खुरी मिलेगी तो यह लोग भागते हुए मस्जिद में आ जाएं .
*मुहम्मद सहाबियों की हक़ीक़त बताई है जिन्हें बड़े अदब और एहतराम के साथ मुसलमान सहाबी ए किरम कहा करते हैं.

बुखारी ३५३-३५४-३५५ 
इस्लाम का शुरुआती दौर था, लोग मुहम्मद के मस्जिद में इकठ्ठा होते और नमाज़ हो जाया करती. मुहम्मद के मफरूज़ा मेराज का मुआमला जब दर पेश हुआ 
तो उनके लिए आल्लाह से जो तौफ़ा मिला वह उम्मत को दिन में पाँच बार नमाज़ें थीं. मुहम्मद ने मुसलमानों को नमाज़ों में मुब्तिला रखने के लिए नमाज़ों को दिन में पाँच बार मसरूफ रख्खा. मुसलमानों को वक़्त मुक़रररा पर मस्जिद में हाज़िर होने का क्या तरीक़ा हो? 
एक दिन मस्जिद में लोगों की मीटिग हुई, लोगों ने अपने अपने तरीक़े सुझाए, किसी ने कहा नससारा की मानिंद नाक़ूस फूँका जाए, किसी ने यहूदियों की तरह सींग बजाने का सुझाव दिया. 
उमार बोले बांग देना ठीक रहेगा, न कि किसी की नकल. 
मुहम्मद को बात पसंद आई, बाँग के बोल मुरततब किए गए और इसे नाम दिया गया "अज़ान". 
मुहम्मद ने बिलाल से कहा उट्ठो अज़ान दो. 
इसके बाद अज़ान के पाखंड गढ़े गए. अज़ान की अज़मत और बरकत तराशे गए, यहाँ तक कि मुसलमान बच्चों के कानों में पहली आवाज़ इस झूट की फूँकी जाती है कि - - - 
" मै गवाही देता हूँ कि मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं" 
अजान के तमाम बोल बुनयादी तौर पर झूट हैं. 
मुहम्मद ५५ वीं हदीस में कहते हैं कि अज़ान की आवाज़ सुन कर शैतान गूज मरता (पादता) हुवा भागता है और इतनी दूर तक चला जाता है जहाँ कि अज़ान की आवाज़ न पहुंचे. अज़ान ख़त्म होते ही वह फिर महफ़िल में आ धमकता है. 
मुहम्मद की अक्ल पर तरस आती है कि शैतान पूरी मस्जिद में बदबू फैलता हुवा जाता है, इसी बदबू में मुसलमान इबादत करते हैं. 
मुहम्मद कहते हैं कि शैतान नमाजियों को नमाज़ में बहकता है, हत्ता कि वह भूल जाते हैं कि कितनी रिकत पढ़ी? 
दर असल नमाज़ के एकांत में जेहन इंसानी भटक कर कहीं और चला जाता है, प्रोग्रामिंग करने लगता है कि आज क्या करना है,किस्से मिलना है . . . वगैरा वगैरा. 
इसी अजानी अजमत में मुहम्मद कहते है जो मोमिन अजान की आवाज़ सुनते है, क़यामत के दिन जिन्न ओ इन्स उसके गवाह होंगे. 
अनस कहता है जब मुहम्मद किसी बस्ती पर हमला करने इरादा करते तो सुब्ह तह इंतज़ार करते कि बस्ती से अज़ान की आवाज़ आती है या नहीं, अगर आवाज़ न आती तो बस्ती कि गारत गरी फ़रमाते. 



जीम. मोमिन 

Wednesday 20 August 2014

Hadeesi hadse 9


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हदीसी हादसे 9

बुखारी २८७ 
झूठे अनस से हदीसों की भमर है , कहता है "मुहम्मद के यहाँ आए दो सहाबी अँधेरी रात में वापस जब अपने घर के तरफ़ चले तो अचानक दो चरागों की रौशनी नमूदार हुई और दोनों के हमराह हो गई. जब यह दोनों अलग होकर अपने अपने घरों के रास्ते हुए तो दोनों रौशनियाँ अलग अलग हो कर उनकी रहनुमाई करने लगीं, हत्ता कि वह अपने अपमे घरों तक पहुँच गए." 
* अनस की बात गैर फ़ितरी है. इन्हीं बातों पर यकीन करके मुसलमान अपनी पुरानी दुन्या में पड़ा हुवा है. करामाती हर झूटे उमूर को सच मानता है, नतीजतन वह अपनी औलादों को लेकर पस्मान्दगी को सर पे रखे हुए है. याद रखें कि मुहम्मद हिजरत में किसी मुरदार जानवर कि चमड़ी पा गए थे और उसे चबाने और चूसने लगे. अपने लिए कोई मुअज्ज़ा न कर सके. किसी चारागी रौशनी ने उनका साथ न दिया.

बुख़ारी २४५-४६ 
शोख आयसा कहती हैं कि जब मुहम्मद नमाज़ में होते तो मैं क़िबला जानिब पैर करके लेट जाती. सजदा करके वह इशरा करते तो मैं पैर समेट लेती, जब वह सजदे में जाते तो फिर पैर उसी तरह कर लेती. 
दूसरी हदीस में कहती हैं कि जब मुहम्मद नमाज़ पढ़ते तो मैं उनके सामने जनाज़े की तरह पड़ी रहती. 
*बूढा रसूल कमसिन बीवी की तमाम अदाएं झेलता था और अपने रचे क़ानून क़ायदे से बेनयाज़ हो जाता. 

बुखारी २६३ 
बहरीन से माले-ग़नीमत का मुहम्मदी हिस्सा आया तो मुहम्मद ने इसे मस्जिद में रखवा दिया. वक़्त-मुक़रर्रा पर मस्जिद गए तो इधर कोई तवज्जो न किया. बाद नमाज़ के इधर जब आए तो चचा अब्बास ने उनसे अपना हिस्सा और अपने बेटे का हिस्सा तलब क्या . मुहम्मद ने कहा लेलो. अब्बास ने अपने चादर में इतना मॉल भरा कि उसको उठा कर अपने सर पर रख न सके, इस के लिए मुहम्मद से मदद चाही जिसे मुहम्मद ने इंकार कर दिया, गरज माल को कम करके जितना उठा सके, उठा कर ले गए. मुहम्मद अपने लालची चचा को जाते हुए तब तक देखते रहे कि जब तक वह नज़र से ओझल न हो गए. गौर तलब है कि इसी लालची की नस्लें इक दौर-हुक्मरान इक दौर बने. इक अब्बासी दौर की हुक्मरान बने. 
इस हदीस से साफ़ ज़ाहिर होता है कि मरकज़ में बैठे मुहम्मद मेल-गनीमत (लूट पट के माल) को कैसे अपने ख़ानदान में तक़सीम करते. लूट पाट का पाँचवां हिस्सा अल्लाह और मुहम्मद का होता और ४/५ हिस्सा लुटेरों का होता. इस्लाम इस तरह से उरूज पर आया जिसे तालिबान आज भी जारी रखना चाहते हैं. 

बुखारी २३३ 
वाकिया है कि मुहम्मद एक बार सिर्फ तहबन्द पहन कर काबा की मरम्मत कर रहे थे कि एक पत्थर उठाने में उनकी तहबंद दरपेश आ रही थी, ये देख कर उनके चाचा अब्बास ने कहा बेटा !तहबन्द उतार कर काँधे पर रख लो तो आसानी हो जाए. मुहम्मद ने वैसा ही किया यानी बरहना हो गए. उसके बाद वह बेहोश होके गिर पड़े. मुहम्मद कहते हैं कि उसके बाद मैं कभी भी नंगा न हुवा. 

बुखारी २३७ 
अनस से हदीस है कि खैबर के लिए जब मुहम्मद चले तो उनके हामी मुस्लिम लुटेरों ने अलल सुभ खैबर पर हमला करने से पहले फज्र की नमाज़ अदा की, फिर मुहम्मद ने घोड़े पर सवार होकर खैबर की गलियों में गश्त करना शुरू किया और उसके बाद तीन बार नराए-तकब्बुर लगाया और एलान किया कि "खैबर बर्बाद हुवा, कि हम जब किसी कौम पर नाजिल होते हैं तो उसकी बर्बादी का सामान होता है." 
लोग अपने अपने कामों पर जा रहे थे कि उनकी आवाज़ पर उनके लुटेरे सामने आ गए, अलकिस्सा निहायत sakhti के साथ जंग हुई. मुसलामानों की फतह याबी हुई. बहुत से क़ैदी हाथ आए 
एक लुटेरा वह्यिः कलबी मुहम्मद के सामने हाज़िर हुवा और कहा ऐ मुहम्मद मुझे एक लौंडी अता की जाए, मुहम्मद ने कहा जाओ एक लौड़ी पसंद करके ले लो. उन्हों ने सफ़िया बिन्त हई को चुनाथ कि एक शख्स मुहम्मद के सामने आया और कहा आपने सफ़िया बिन्त हई को वह्यिः कलबी को दे दिया हालाँकि वह बनी क़रीज़ा और बनी नुज़ैर दोनों की सरदार रह चुकी हई और आपके काबिल थी. 
मुहम्मद ने कहा वह्यिः कलबी को बुलाओ, जब वह मुहम्मद के सामने हाज़िर हो गया तो मुहम्मद ने कहा तुम उस लौड़ी को छोड़कर किसी और को लेलो. चुनाँच मुहम्मद ने उसे आज़ाद करके उसके साथ निकाह कर लिया. 
रस्ते में ही मुहम्मद की रखैल उम्मे सलीम सफ़िया को दुल्हन बनाया और वहीँ शबे-ज़हफ़ हुई. सुब्ह को मुहम्मद दूलह बने हुए जब बहार आए तो लोगों को हुक्म दिया कि जिनके पास जो खाना हो वह हाज़िर करें, दस्तर ख्वान चुना जाए. लिहाज़ा लोगों ने घी, सत्तू खजूरें वगैरह हाज़िर कीं . यही मुहम्मद का वलीमा था. 
मुहम्मद ने वाकई खैबर बर्बाद कर दिया. यहूदियों का खुशहाल कस्बा मुहम्मद की निगाह में बरसों से चढ़ा था. 
किसी भी खतरे से बेनयाज़ बस्ती सुब्ह की नींद में डूबी यहूदी बस्ती, ज़ालिम लुटेरे मुहम्मदी फौज के नार्गे में थी. दरवाजे खोला तो सामने मौत खड़ी थी. मर्द मारे गए या खेतों खाल्यानो में भागे. औरतें और बच्चे लौंडी और गुलाम बना लिए गए. बाप भाई औए शौहर की लाशों के दरमियान मुहम्मद के साथ मजलूम खातून निकाह और सुहाग रात मनाने पर मजबूर हो गईं. 
मुसलमानों की तरह ही यहूदियों के पास भी मुहम्मदी जरायम की दस्तावें हैं. आज अपने आबाई वतन मदीना और मक्का पर वह दावेदारी करते हैं तो हक बजानिब हैं. 

जीम. मोमिन 

Wednesday 13 August 2014

Hadeesi hadse 8


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हदीसी हादसे 8

बुखारी ५३
"एक शक्स मुहम्मद के पास इस्लाम क़ुबूल करने के किए आया, मुहम्मद ने शर्त लगाई कि तुम्हें मुसलमानों का खैर ख्वाह रहना होगा."
*इस्लाम इंसान को तअस्सुबी बनाता है. तअस्सुबी फ़र्द कभी ईमान दार नहीं हो सकता और न ही मुंसिफ.

बुखारी ५८
मुहम्मद ने एक बार अपना ख़त कसरा (ईरान के बादशाह) को भेजा जिसे पढ़ कर उसने ख़त के टुकड़े टुकड़े करके हवा में उड़ा दिया. एलची से इसकी खबर मिलने के बाद मुहम्मद ने बाद दुआ देते हुए कहा इसके टुकड़े टुकड़े मेरे ख़त की तरह कर दिए जाएँ.

बुखारी ७६
एक दिन मुहम्मद की बड़ी साली इस्मा मुहम्मद के घर गईं, देखा मियाँ बीवी दोनों नमाज़ में लगे थे. इस्मा ने बहन आयशा से पूछा क्या बात है, दोनों नमाज़ों में लगे हुए हो, कोई खास बात है? क़यामत तो नहीं आने वाली? और इस्मा भी नमाज़ पढने लगीं .
मुहम्मद नमाज़ से फारिग हुए और इस्मा से कहने लगे.
"मुझे वह्यी नाजिल हुई है कि कब्र में जब मुर्दा रखा  जाएगा तो  उस से सवाल होगा ...
" तू मुहम्मदुर-रसूल्लिलाह के बारे में क्या जानता है ?"
मुर्दा अगर कहेगा " वह एक सच्चे अल्लाह के रसूल थे, हमारे पास अल्लाह का पैगाम लेकर आए थे." वह जन्नत में जाएगा
और अगर कहेगा " नहीं मैं नहीं जानता" तो जहन्नम रसीदा होगा.
*मुहम्मद के ज़मीर में कितनी गन्दगी थी कि किसी लान्हे अपनी खुद नुमाई से न चूकते.

बुखारी १३३
अव्वल दर्जे के झूठे सहाबी अनस कहते हैं कि "एक दिन वज़ू के लिए पानी मयस्सर न था, काफ़ी तलाश के बाद भी न मिला तो मुहम्म्द ने एक बर्तन तलब किया और उस पर हाथ रख दिया फिर आवाज़ दी कि आओ जिनको वजू करना है. झूठा अनस कहता है कि उसने देखा कि मुहम्म्द की उँगलियों से पानी की धार निकल रहा था."

बुखारी १७०
"किसी क़बीले के चंद लोग मुहम्मद के पास आए जो पेट के मरज़ में मुब्तिला थे, चारा गरी की दरख्वास्त की. मुहम्मद उन्हें अपने ऊंटों वाले फार्म हॉउस के लिए भेज दिया कि यह लोग वहां ऊंटों के दूध और पेशाब पीते रहने से तंदरुस्त हो जाएँगे.  क़बीले के लोगों ने इस पर अमल किया और कुछ दिनों बाद ठीक भी हो गए. ठीक होने के बाद उन लोगों की नियत वहाँ के ऊंटों पर खराब हो गई और फॉर्म हॉउस के मुहाफ़िज़ को मार के सारे ऊंटों को लेकर फ़रार हो गए. इसकी खबर जब मुहम्मद को मिली तो उन्हों ने तेज़ रफ़्तार ऊँट सवारों को उनके पीछे दौड़ाया.
वह सभी पकड़ लिए गए और उनको मुहम्मद से सामने पेश किया गया. मुहम्मद ने इनके साथ जो बर्ताव किया, इबरत की हदों को पर कर गया. उन्हों ने उनके हाथों और पैरों को पहले कटवाया फिर गरम शीशा उनकी आँखों में डाल कर पहाड़ों के नीचे खाईं में  फिकवा दिया. इस दौरान मुजरिम पानी पानी चिल्लाते रहे, उनको पानी न दिया. "
ये था मुहम्मद का ज़ालिमाना बर्ताव जिन्हें मुसलमान सरवरे कायनात कहते हैं और मुह्सिने-इंसानियत.
सज़ाए मौत माना कि जायज़ थी मगर मौत से पहले मुजरिम की आखरी ख्वाहिस पूछना तो दर किनार, हाथ पैर काटना, आँखों में पिघला हुवा शीशा पिलाना और उनकी हलक़ को पानी से महरूम रख कर पहाड़ी की ऊँचाइयों से खाईं में फिकवाना , क्या यही पैगम्बरी शान थी? 
मुहम्मेद बहुत ही ज़ालिम इंसान थे जिनके डर से मुसलमान आज भी दहला हुवा है.

बुखारी १७३
मुहम्मद का फरमान है कि जो शख्स जिहाद करते हुए अल्लाह की राह में ज़ख़्मी होता है, क़यामत के दिन अपना ज़ख्म ताज़ा पाएगा जिसमे से मुश्क की खुशबू  आ रही होगी."
मुहम्मद जंग, गारत गारी और बरबरियत के लिए हर हर हरबे इस्तेमाल करने की नई नई चालें ईजाद करते, चाहे उसमें बेवकूफी ही क्यूँ न नज़र आए. ज़ख़्मी शख्स ज़ख्म से परीशान और रुसवा-ए-ज़माना क़यामत के रोज़ ज़ख्म को ढ़ोता रहे, अपने ज़ख्म से मुश्क की खुशबू उड़ाते हुए .

बुखारी १७५
मुन्ताकिम मुहम्मद के पैगाम्बराना मिज़ाज इस वाक़िए से लगाया जा सकता है कि मुहम्मद कितने अज़ीम या कितने कम ज़र्फ़ हस्ती थे, मफ्रूज़ा मोह्सिने-इंसानियत.
मुहम्मद खाना-काबा में मसरूफ इबादत थे कि अबू जेहल और उसके साथियों ने ऊँट की ओझडी उन पर लाद दी. मुहम्मद ने बाद नमाज़ उन नामाकूलों के लिए बद दुआ दी. ये वाकिया शुरूआती दौर इस्लाम का है.

जंगे-बदर में इन नमाकूलो को मुहम्मद ने चुन चुन कर मौत के घाट उतरा. इनकी लाशों को तीन दिनों तक सड़ने दिया, उनको एक एक का नाम लेकर बदर के कुवें में फ़िक्वाया २०-२२ लाशों से उस जिंदा कुवें को पाटा. उस वक़्त अरब का वह कुवाँ अवाम के लिए कीमती था ?और सभी मकतूल मुहम्मद के अज़ीज़ और अकारिब थे.



जीम. मोमिन 

Wednesday 6 August 2014

Hadeesi hadse 7


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मुहम्मद

मुहम्मद के ज़ेहन में पैग़म्बर बनने का ख़याल कैसे आया और फिर ये ख़याल जूनून में कैसे बदला??
मुहम्मद एक औसत दर्जे के समाजी फ़र्द थे. तालीम याफ्ता न सही, मगर साहिबे फ़िक्र थे. अब ये बात अलग है कि इंसान की फ़िक्र समाज के लिए तामीरी हो या तख़रीबी. मुहम्मद की कोई ख़ूबी अगर कही जाए तो उनके अन्दर दौलत से मिलने वाली ऐश व आराम की कोई अहेमयत नहीं थी. क़ेनाअत पसँद थे, लेन देन के मुआमले में वह ईमान दार भी थे.
मुहम्मद ने ज़रीआ मुआश के लिए मक्के वालों की बकरियाँ चराईं. सब से ज़्यादः आसान काम है, बकरियाँ चराना वह  इसी दौरान ज़ेहनी उथल पुथल में पैगम्बरी का खाका बनाते रहे.
 एक वाक़िया हुवा कि ख़ाना ए काबा की दीवार ढह गई जिसमें संग ए असवद नस्ब था जोकि आकाश से गिरी हुई उल्का थी. दीवार की तामीर अज़ सरे नव हुई, मक्का के क़बीलों में इस बात का झगड़ा शुरू हुआ कि किस कबीले का सरदार असवद को दीवार में नस्ब करेगा? पंचायत हुई, तय ये हुवा कि जो शख्स दूसरे दिन सुब्ह सब से पहले काबे में दाखिल होगा उसकी बात मानी जायगी. अगले दिन सुबह सब से पल्हले मुहम्मद हरम में दाखिल हुए.(ये बात अलग है कि वह सहवन वहाँ पहुँचे या क़सदन, मगर क़यास कहता है कि वह रात को सोए ही नहीं कि जल्दी उठाना है) बहर हाल दिन चढ़ा तमाम क़बीले के लोग इकठ्ठा हुए, मुहम्मद की बात और तजवीज़ सुनने के लिए.
 मुहम्मद ने एक चादर मंगाई और असवद को उस पर रख दिया, फिर हर क़बीले के सरदारों को बुलाया, सबसे कहा कि चादर का किनारा पकड़ कर  दीवार तक ले चलो. जब चादर दीवार के पास पहुच गई तो खुद असवद को उठा कर दीवार में नस्ब कर दिया. सादा लोह अवाम ने वाहवाही की, हालाँकि उनका मुतालबा बना रहा कि पत्थर कौन नस्ब करे. मुहम्मद को चाहिए था कि सरदारों में जो सबसे ज़्यादः बुज़ुर्ग होता उससे पत्थर नस्ब करने को कहते.
 मुहम्मद अन्दर से फूले न समाए कि वह अपनी होशियारी से क़बीलो में बरतर हो गए. उसी दिन उनमें ये बात पक्की हो गई कि पैगम्बरी का दावा किया जा सकता है.
तारीख अरब के मुताबिक बाबा ए कौम इब्राहीम के दो बेटे हुए इस्माईल और इसहाक़. छोटे इसहाक़ की औलादें बनी इस्राईल कहलाईं जिन्हें यहूदी भी कहा जाता है. इन में नामी गिरामी लोग पैदा हुए, मसलन यूफुफ़, मूसा, दाऊद, सुलेमान और ईसा वगैरा और पहली तारीखी किताब मूसा ने शुरू की तो उनके पेरू कारों ने साढ़े चार सौ सालों तक इसको मुरत्तब करने का सिलसिला क़ायम रखा. 
लौंडी जादे हाजरा (हैगर) पुत्र इस्माइल की औलादें इस से महरूम रहीं जिनमें मुहम्मद भी आते हैं. उनमें हमेशा ये क़लक़ रहता कि काश हमारे यहाँ भी कोई पैगम्बर होता कि हम उसकी पैरवी करते. इन रवायती चर्चा मुहम्मद के दिल में गाँठ की तरह बन्ध गई कि कौम में पैगामरी की जगह ख़ाली है.
मदीने की एक उम्र दराज़ बेवा, मालदार खातून, ख़दीजा ने मुहम्मद को अपने साथ निकाह की पेश कश की. वह फ़ौरन राज़ी हो गए कि बकरियों की चरवाही से छुट्टी मिली और आराम के साथ रोटी का ज़रीया मिला. इस राहत के बाद वह रोटियाँ बांध कर ग़ार ए हिरा में जाते और अल्लाह का रसूल बन्ने का ख़ाक़ा तैयार करते.
इस दौरान उनको जिंसी तकाजों का सामान भी मिल गया था और छह अदद बच्चे भी हो गए, साथ में ग़ार ए हिरा में आराम और प्लानिग का मौक़ा भी मिलता कि रिसालत की शुरूवात कब की जाए, कैसे की जाए, आगाज़, हंगाम और अंजाम की कशमकश में आखिर कार एक रोज़ फैसला ले ही लिया कि गोली मारो सदाक़त, सराफ़त और दीगर इंसानी क़दरों को. ख़ारजी तौर पर समाज में वह अपना मुक़ाम जितना बना चुके हैं, वही काफ़ी है.
एक दिन उन्हों ने अपने इरादे को अमली जामा पहनाने का फैसला कर ही डाला. अपने कबीले कुरैश को एक मैदान में इकठ्ठा किया, भूमिका बनाते हुए उन्हों ने अपने बारे में लोगों की राय तलब की, लोगों ने कहा तुम औसत दर्जे के इंसान हो कोई बुराई नज़र नहीं आती, सच्चे, ईमान दार, अमानत  और साबिर तबअ शख्स हो. मुहम्मद  ने पूछा अगर मैं कहूँ कि इस पहाड़ी के पीछे एक फ़ौज आ चुकी है तो यकीन कर लोगे? लोगों ने कहा कर सकते हैं इसके बाद मुहम्मद ने कहा - - -
मुझे अल्लाह ने अपना रसूल चुना है.
ये सुन कर क़बीला भड़क उट्ठा. कहा तुम में कोई ऐसे आसार, ऐसी खूबी और अज़मत नहीं कि तुम जैसे जाहिल गँवार को अल्लाह चुनता फिरे.
मुहम्मद के चाचा अबू लहेब बोले
 "माटी मिले, तूने इस लिए हम लोगों को यहाँ बुलाया था?''
सब मुँह फेर कर चले गए. मुहम्मद की इस हरकत और जिसारत से कुरैशियों को बहुत तकलीफ़ पहुंची मगर मुहम्मद मैदान में कूद पड़े तो पीछे मुड कर न देखा.
बाद में वह कुरैशियों के बा असर लोगों से मिलते रहे और समझाते रहे कि अगर तुम मुझे पैगम्बर मान लिया और मैं कामयाब हो गया तो तुम बाकी क़बीलों बरतर होगे, मक्का ज़माने में बरतर होगा और अगर नाकाम हुवा तो खतरा सिर्फ मेरी जान को होगा. इस कामयाबी के बाद बदहाल मक्कियों को हमेशा हमेश के लिए रोटी सोज़ी का सहारा मिल जाएगा.
मगर कुरैश अपने माबूदों (पूज्य) को तर्क करके मुहम्मद के अल्लाह को  अपना माबूद बनाए को तैयार न हुए.

जीम. मोमिन