Tuesday 28 May 2013

Hadeesi Hadse 86


जीम. मोमिन 
बुख़ारी १४५३ 
मुहम्मद कहते हैं कि एक वक़्त आएगा जब लोग गुमराही में मुब्तिला हो जाएँगे. वह हम तुम जैसे लोग होंगे, हमारी जुबान बोलेंगे, मगर ख़बरदार ! तुम अपने इमाम की पैरवी ही करना. अगर इमाम मुयस्सर न हो तो जंगल की तरफ भाग जाना और दरख्तों की जड़ें खा खा कर मर जाना .

हाँ ! यह वक़्त ज़रूर आने वाला है. मुसलामानों की नौबत खुद कुशी की होगी मगर इमामों की कसरत होगी. हर इमाम इनका खून चूसने के दर पे होगा, मुसल्मान अभी से तैयार हो जाएं. ऐसे वक़्त के आने से पहले ईसाई उनके सामने मिशन लेकर खड़े होंगे और हिन्दू शुद्धि करन की भजन मण्डली , मगर खबर दार तुम शुद्ध होने के बाद भी अशुद्ध ही रहोगे . वह तुमको अपने रोटी बेटी में शामिल नहीं करेंगे . ऐसे वक़्त में उन्हें मजदूरों और मेहतरों की ज़रुरत होगी, क्योंकि यह तबका तब तक तालीम याफ्ता होकर इनके बराबर हो चुका होगा .
ईसाइयों को भी तुमको बख्श देने का ख़याल न होगा, इनको तुम्हारे वजूद में मौजूदा सलाहियत होने का फायदा उठाना होगा. इसके आलावा दोनों को चाहिए होगा कंज्यूमर मार्केट .
ऐसा वक़्त आने से पहले मोमिन की मान लो और दीन ए इंसानियत अपना लो . सच्चे इंसान से किसी को बैर न होगा .
मत दलील देना कि तुम्हारा इस्लाम इंसानियत का सबक ही देता है . यह झूठा सबक सिखलाने वाले तुमको , तुम्हारे ओलिमा हैं. इनसे खुद को और अपनी नस्लों को दूर रखना होगा, जैसे कि खारिश ज़दा और पागल कुत्तों से दूर रहते हो .
यह अपनी हुलिया को ताक पर रख कर मेहनत और मशक़्क़त की रोटी खाने लगें तो इनको मुआफ़ करदो

मुस्लिम किताबुल लिबास ओ ज़ीनत 
मुहम्मद की ग्यारवीं बीवी मैमूना कहती हैं कि एक रोज़  सारा दिन मुहम्मद उदास रहे क्योंकि जिब्रील अलै आने का वादा कर चुके थे , मगर आए नहीं . ख़याल आया कि कुत्ते का बच्चा डेरे से निकला था , मुहम्मद ने पानी छिड़क क्र इस जगह को पाक किया. शाम को जिब्रील आए और वजह बतलाई कि कुत्ते की मौजूदगी और नजासत उनको मंज़ूर न नहीं . उस घर में नहीं जाते जिसमे कुत्ता या उसकी मूरत हो . 
दूसरे दिन मुहम्मद ने हुक्म दिया कुत्तों को क़त्ल कर दिया जाए . छोटे बाग़ के कुत्ते क़त्ल कर दी गए और बड़े बाग़ के रहने दिए गए .

* दुन्य की सब से प्यारी और इंसान दोस्त मखलूक के साथ पैगम्बर ए इस्लाम का ऐसा सुलूक था. हैरत का मुक़ाम है कि आज के दौर में मुसलमान कुत्तों से उतनी ही नफ़रत करते हैं जितनी मुहम्मद को थी .
एक अँगरेज़ मुफक्किर कहता है कि लोग कुत्ते के बिना कैसे रह लेते हैं ? इस पर हमें यकीन नहीं आता . 

बुख़ारी १४५७+१७५५ 
सकीना बादलों में 
हदीस है की एक साहब सूरह कुहफ की तिलावत कर रहे थे कि उनका घोडा जो करीब बंधा था , बिदकने लगा। उन्हों ने सलाम फेर कर इसकी वजह जाननी चाही तो बादलों में सायाए फुगन मालूम पड़ा. इन साहब ने वाकिए को मुहम्मद से अर्ज़ किया. मुहम्मद ने कहा पढ़ते रहते तो बेहतर होता क्योंकि ये सकीना थीं जो तिलावत ए कुरान के वक़्त नाजिल हुई थीं .

*मुहम्मद बर जश्ता झूट बोलने में कितने माहिर थे, बस मौक़ा मिलने की देर होती. उनकी उम्मत चार क़दम आगे निकल जाती है जब ऐसी हदीसों में सच्चाई तलाश कर लेती है. मुहम्मद रोज़ बरोज़ कामयाबियों के जीने चढ़ते जा रहे हैं, अपने आल औलाद को कन्धों पर लादे . उसी एतबार से मुसलमान पाताल में समाता चला जा रहा 

Tuesday 21 May 2013

Hadeesi Hadse 85


********** 

बुख़ारी १४१७  
मुहम्मद अपनी गवाही के साथ कहते हैं कि जिस शख्स ने सब से पहले सांड छोड़ने की रस्म निकाली वह इब्न आमिर खज़ाआ है, मैं ने दोज़ख़ में उसको अपनी आतें घसीट कर चलते देखा .

* इब्न आमिर खज़ाआ अगर पहला शख्स था, सांड को छोड़ने की ईजाद को कायम करने वाला, तो उसका दुन्याए इंसानियत पर एहसान है.अगर नर मवेशी आकता (बधिया) न हुए होते तो तमाम धरती पर जंगल राज होता . 
मुहम्मदी उम्मत को लज़ीज़ गोश्त कहाँ से नसीब होता .
मुहम्मद झूट बोलने में किस कद्र माहिर हो गए थे कि हर जुमला उनका कुछ न कुछ झूट में लिप्त होता . . जनाब जीते जी जन्नत की सैर कर रहे हैं और अपने से पहले मरे लोगों को पहचान कर उनके हालात बयां करते हैं . मुसलमान इनकी झूट में जी रहे हैं .
बुखारी १४२९ 

मुहम्मद की हुलया 
हसन बिन मालिक मुहम्मद की हुलया कुछ इस तरह बयान करते हैं - - -
क़द दरमियाना , न ज्यादा लम्बे , न पास्ता क़द ,
रंग चमकदार , न ज़्यादः गंदुमी न ज़्यादः सफेद ,
बाल न ज़्यादः सीधे , न ज़्यादः खमदार ,
जिस वक़्त वफात पाई थी , सर और रीश में गिनती के सफेद बाल थे 

* वह गवाह जिसने मुलजिम को देखा नहीं और अदालत में खड़ा अकली गद्दा मार रहा है .
आज कल नातिया शायर इस गवाह से हज़ार गुना आगे बढ़ कर मुहम्मद की गवाही अपने कलाम में दे रहे है. 

मुस्लिम - - - किताबुल शर्बतः 
मुहम्मद कहते हैं कि कोई तुम में से खाना खाए तो अपने हाथ न पोछे , जब तक कि इसको चाट न ले या चटवा न ले , अपनी बीवी बच्चे या लौड़ी से जो बुरा न माने बल्कि खुश हो .
दूसरी जगह है कि खाने के बाद अपनी उँगलियाँ और रिकाबियाँ चाट कर साफ़ करना चाहिए . अगर नवाला गिर गया हो और जगह नजिस न हो तो कूड़ा करकट साफ़ करके इसे खा लेना चाहिए .शैतान के लिए नहीं छोड़ना चाहिए .
*आज की इस मुहज्ज़ब दुनिया में इस ग़ैर मुहज्ज़ब शरअ और कबीलाई तौर तरीके के लोग पाए जाते हैं जो औरों के साथ बैठ कर इस घिनावने तरीके पर अमल करते है जिसको मेडिकल साइंस इजाज़त नहीं देती है . 
शैतान के वजूद को तस्लीम करने वाला पैगम्बर उसे भूकों मारने के मशविरे अपनी उम्मत को देता है जिस में ज़ुल्म और जब्र का सीगा छिपा हुवा है ,

बुख़ारी १४३९ 
आयशा अपने शौहर की सफाई में कहती हैं कि मुहम्मद ज़ाती बिना पर किसी से बदला नहीं लेते थे , मगर खुदाए बरतर के हुक्म में अगर कोताही हुई तो बदला ज़रूर लेते थे. 

* बे शुमार वाकिए हैं कि मुहम्मद जाती मामलों में बदतरीन इन्तेकाम लेते थे मगर मामलों को अल्लाह का मामला साबित करने में अल्लाह बने मुहम्मद को कितनी देर लगती थी . दरपर्दा वह खुद को अल्लाह ही समझते थे. 
दूसरी बात यह कि मुहम्मदी अल्लाह क्या इतना कमज़ोर है कि वह खुद अपना बदला नहीं ले पाता ? कोई अहमक ही अल्लाह का बदला लेगा .
ऐसी गुमराही में मुसलमान ही लगा हुवा है .

बुख़ारी १४५१ 
कुरैश परवर 
मुहम्मद ने कहा कुरैश का यह क़बीला हम लोगों को हालाक कर देगा . लोगों ने कहा या रसूल अल्लाह ! ऐसे वक़्त में हम लोगों के लिए क्या हुक्म है ? मुहम्मद ने कहा काश ऐसे वक़्त में लोग उनसे परहेज़ करें तो बेहतर है .
* मुहम्मद ने अपने कबीले कुरैश के लिए तो ही सारे पापड़ बेले थे और वही पामाल हो जाएं तो ? उनको कुरैश की बद ख्वाही किसी हालत में गवारा नहीं . इनके लिए वह खुद को और अपनी उम्मत को कुर्बान कर सकते थे . 
यही नहीं अगली हदीस १४५२ में वह यहाँ तक कहते हैं कि मेरी उम्मत चंद कुरैश लड़कों के हाथों हलाह होगी , मैं चाहूं तो उनकी वल्दियत बतला सकताहूं .
कुरैश और अरबी क़बीलों की लड़ाई में हम हिदुस्तानी मुब्तिला हैं , यह हैरत का मक़ाम है .



जीम. मोमिन 

Tuesday 14 May 2013

Hadeesi Hadse 84




बुख़ारी १४०२ 
मुहम्मद कहते हैं 
"एक शख्स अपनी तहबन्द लुथड़ाते हुए ज़मीन पर चल रहा था . अल्लाह तअला ने उसे ज़मीन में धंसा दिया .क़यामत तक यूँ ही वह ज़मीन में धंसता रहेगा ."  
* मुल्ला अपने रसूल की बात को इस तरह साबित करते हैं कि अगर यक़ीन न हो तो कानों में उंगलियाँ ठूंस कर उस की धँसने की आवाज़ को सुन सकते हो. 
पिछली हदीसों में था कि कुरता ज़मीन पर लुथड़े तो जन्नती होने की अलामत है . मुहम्मद की कठ बैठियों में भी कोई ताल मेल नहीं . जो उनके मुंह से निकला, वह मुसलमानों के लिए हदीस शरीफ हो गया .आज कल मुल्लाओं की हुलिया इसी हदीस के असर में देखी जा सकती है . ज़माने से अलग, कार्टून नुमा .

मुस्लिम - - -किताबुल अश्रबता 
मुहम्मद कहते हैं जब रात की तारीकी छा जाए तो बच्चों को घर से बाहर नहीं निकलने देना चाहिए, क्योंकि शैतान इस वक़्त फ़ैल निकलते हैं , फिर जब एक घडी रात गुज़र जाए तो  इनको छोड़ दो और दरवाज़ा बंद कर दो और अल्लाह तअला का नाम लो, इस लिए कि शैतान बंद दरवाज़े नहीं खोलता और अपनी मश्कों पर डाट लगा दो और अल्लाह का नाम लो. अगर कुछ बर्तन ढकने को न मिले तो इसे आड़ा कर के कुछ रख दो . अपने चरागों को बुझा दो .
* यह हिदायत उस ज़माने के तौर तरीके रहे होंगे , मगर क्या इस ज़माने के लिए यह बातें निसाब ए हयात बनाई जा सकती है ? उस वक़्त भी जगे हुए लोग थे जिनकी पैरवी हुवा करती थी और लाखैरे भी थे जिनके सरदार मुहम्मद थे , उनकी उम्मत आज तक उनकी पैरवी करती चली आ रही है .

बुख़ारी १४०७ 
ख़िलाफ़त कुरैश के लिए 
मुहम्मद कहते है 
"जब तक कुरैश में से दो लोग भी बाकी बचेंगे , ख़िलाफ़त कुरैश के हाथों में ही होगी "
** सच पूछिए तो इस्लाम की रूह में मुहम्मद का ख्वाब अपने क़बीले को सरफ़राज़ करने तक महदूद था. वाक़िया है कि मुहम्मद ने सबसे पहले बनी हाशिम को इकठ्ठा करके, दरपर्दा मीटिंग की थी और कहा था कि
" तुम लोग मुझे पैगम्बर तस्लीम कर लो तो मेरे लिए आसान हो जाएगा की मैं रसूल अल्लाह बन जाऊं, मैं अगर अपने मंसूबे में कामयाब हुवा तो इसका फ़ायदा तमाम कुनबे को मिलेगा और अगर नाकाम रहा तो नुकसान सिर्फ मेरा होगा की मार दिया जाऊँगा।" 
मेरी कामयाबी पर बनी हाशिम क़ुरैश में बरतर होंगे , 
क़ुरैश अहले अरब में बरतर होगे , 
अरब पूरी दुन्या में बरतर होगा 
और मक्का दुन्या का मरकज़ बन जाएगा
और काबा दुन्या की इबादत गाह. 
इससे अहले मक्का क़यामत तक फ़ैज़याब होते रहेंगे . "
बनी हाशिम ने मुहम्मद की तजवीज़ को ठुकरा दिया और आजके मुसलमानों की तरह ही अपने आबाई दीन पर कायम रहने की क़सम खाई . मुहम्मद की उलटी फ़ज़ीहत हुई, लोगों में उनके लिए नफ़रत का बाब खुल गया .
जब यह हरबा मुहम्मद का कामयाब न हुवा तो अपनी बीवी खदीजा को लेकर मक्र की राह चुनी. ग़ार हिरा में बैठ कर मंसूबा बंदी करते और खुद पर वाहियों (ईश वाणी) का खेल खेलना शरू किया .
क़ुरैश ही थे जिन्होंने इनकी भरपूर मुखालिफत की थी, कामयाबी के बाद मुहम्मद उनको नवाज़ रहे हैं की उनकी विरासत उनके खानदान में ही रहे .
हम लोग कुरैशियों के जेहनी गुलाम है. 
अफ़सोस कि कल के वहशी , लड़ाके और जाहिल क़बीले की गुलामी को हम ओढ़ बिछा रहे है. 


जीम. मोमिन 

Tuesday 7 May 2013

H H 83



बुख़ारी १३९४ 
मुख़ालिफ़त बराय मुख़ालिफ़त 
मुहम्मद कहते हैं कि यहूदी और ईसाई अपने बाल को रंगीन नहीं करते , तुम लोग इनकी मुख़ालिफ़त में अपनी दाढ़ियों को रंगीन किया करो .

* यह मुमकिन होता तो मुहम्मद मुसलामानों को मुख़ालिफ़त के बिना पर पैर के बजाए हाथों से चलने की राय देते. मुसलमान अकसर भडुओं की तरह अपने बालों और दाढ़ियों को सुनहरे खिजाब में रंगे रहते है

मुस्लिम - - - किताबुल अक़्फ़िया 
मरदूद अवाम 
आयशा कहती है की उसके पैग़म्बर शौहर ने कहा ,
"जो शख्स ऐसा काम करे जिसके लिए मेरा हुक्म न हो , वह मरदूद है ."

किस कद्र हौसले बढ़ गए थे उस शख्स के कि आलम ए इंसान को अपनी ज़ेहनी गुलामी में कर लेना चाहता था . वह भी अपनी जिहालत और जारहय्यत के ज़ेर ए असर लाकर . इंसानी गैरत को कुचल डालने वाले नाक़्बत अंदेश को तारीख़ जितनी भी बड़ी सज़ा दे कम है. 
मुहम्मद को तो ज़िन्दगी में जज़ा ही जज़ा मिली , सज़ा तो उनको मिली जो इनके झांसे में आए . पहले भी मार खा खा कर मुसलमान हुए और अब मुसलमान होने के नाते सारे ज़माने की मार खा रहे हैं . 

बुख़ारी १३९० 
कुछ भी करो मगर अल्लाह से डरो 
मुहम्मद कहते हैं कि किसी शख्स ने मरने से पहले वसीयत की थी कि इसे मरने के बाद खाक कर दिया जाए और फिर खाक को बहती हुई हवा के हवाले कर दिया जाए. गोया इसके वरसा ने ऐसा ही किया .
अल्लाह ने इसके तमाम अज्ज़ा को जमा किया फिर इसमें जान डाल  दी 
फिर इस से सवाल किया कि तूने ऐसा क्यों किया ? बन्दे ने जवाब दिया कि तेरे डर से .
और अल्लाह ने इसे बख्श दिया .

*इस किस्म की पुड़िया छोड़ना मुहम्मद का मरगूब शगल था . इनको आलिमी दस्तूर के दीगर रस्मों का इल्म नहीं था कि तहजीबें ज़मीनी मख्लूक़ की गिज़ा के लिए मुरदों को चील कव्वों और गिद्ध के हवाले कर दिया करते हैं और बहरी मख्लूक़ की गिज़ा के लिए लाशों को दरया के हवाले कर दिया करते हैं , वर्ना वह उस पर भी ज़बान खोले बिना न रह पाते .
बुख़ारी १३७१ 
खिजिर का काम 
मुहम्मद पुड़िया छोड़ते हैं कि खिजिर अलैहिस्सलाम का नाम खिजिर इस लिए पड़ा कि वह एक साफ चटियल मैदान पर बैठ गए थे , इसी वक़्त वह ज़मीन फ़ौरन हरी भरी हो गई थी .

*इसी बात को अगर कोई दाढ़ी वाला मुसल्मान किसी मुस्लिम महफ़िल में बयान करे तो लोग उसे कठ मुल्ला कहकर उसका मज़ाक़ उडाएँगे  , मगर वह जब बतलाए की यह बात हुज़ूर सलल्लाह ने फरमाई है तो  उस मुस्लिम महफ़िल का सर अकीदत से झुक जायगा .यही है मुसलामानों की ज़ेहनी नामाकूलियत का मौजूदा सानेहा . 
 खिजिर , अरबी रवायत के मुताबिक़ एक फ़रिश्ता है जिसके तहत दुन्या के जंगल हुवा करते हैं और वह अमर है जैसा कि हर फ़रिश्ता अमर होता है . इस रवायत में मुहम्मद ने अपने झूट की आमेज़िश कर दी है और मुसलमान इसी को सच मान कर चल रहा है . 


जीम. मोमिन 

Thursday 2 May 2013

H H 82


**********

बुख़ारी 1363 
हज़रत इस्माइल का क़िस्सा मुहम्मद यूँ बयान करते हैं कि  दुध मुहे बच्चे इस्माइल को उनके बाप हज़रात इब्राहीम अपनी बीवी हाजरा के साथ एक वीराने में कुछ खजूर और एक मशक पानी देकर चले जाते हैं . पानी ख़त्म होने के बाद दोनों माँ बेटे प्यास से तड़पने लगते हैं , हाजरा भाग कर पास की पहाड़ी सफ़ा के पास जाती है और चारो तरफ़  देखती है कि कहीं कोई नज़र आआए. फिर पास की पहाड़ी मरवा पर जाती है कि कोई आदम ज़ात दिखे . इस तरह इन पहाड़ियों के वह सात बार चक्कर लगाती है कि तब इसको एक फ़रिश्ता दिखता है जो अपनी एडियों और बाज़ुओं से ज़मीन खोदता है , जहाँ से पानी निकलने लगता है . दोनों माँ बेटे पानी पीकर अपनी जान बचाते हैं . इस वक़्त काबा एक टीला था जिसके पास से बरसाती पानी बह कर निकल जाता था .
इत्तेफ़ाक़ से एक दिन उधर से कबीला जरहम कूच कर रहा था , हाजरा को देख कर उसके पास आया और झरने को देख कर , वहीँ टिक जाने का ख्याल उसके दिल में आया जिसकी इजाज़त चाही तो हाजरा  ने इसे वहां टिक जाने की इजाज़त देदी , इस शर्त के साथ की झरने पर इसका हक होगा .
इस तरह इस्माइल वहीँ जवान हो गया और इसी कबीले की लड़की से इसकी शादी हो गई .
बरसों बाद एक दिन इब्राहीम को बेटे की याद आई , वह इस्माइल से मिलने आए मगर बेटा घर पे न था , इसकी बीवी से उन की खैरियत पूछी तो वह बुरे हाल लेकर बैठ गई . इब्राहीम ने कहा वह आए तो कहना घर की चौखट बदल दे , सब ठीक हो जाएगा . रात को जब इस्माइल घर आया तो उसे बाप की आमद की खबर मिली और घर की चौखट बदलने का मशविरा . इस्माइल ने बीवी से कहा वह तुझको तलाक़ देने का मशविरा दे गए हैं .
उसने अपनी बीवी को तलाक़ दे दिया और दूसरी शादी कर ली . दूसरी बार इब्राहीम फिर आए, बेटे से मुलाकात इस बार भी नहीं होती . उसकी बीवी से कह कर चले जाते हैं कि अब चौकट बदलने की ज़रुरत नहीं है .
फिर इब्राहीम आते हैं और इस्माइल से कहते हैं कि मुझको अल्लाह का हुक्म हुवा है कि काबा की तामीर करूँ , ग़रज़ दोनों बाप बेटे पत्थर उठा उठा कर लाते हैं और काबे की दीवार छंटे है . 
इस्माइल का यह तौरेती किस्सा जिस क़दर मुहम्मद को याद था और जितना इसकी काट छांट कर ना चाहा , करके इसे कुरआन में पेश किया  तौरेत कहती है कि इबाहीम की लौड़ी हैगर को इबाहीम की बीवी सारा ने मजबूर कर दिया था कि इसे इसके बच्चे के साथ दूर कहीं वीराने में छोड़ आओ कि यह वापस न आ सकें . सारा के बेटे इशाक और फिर इसके बेटे याकूब (इस्राईल) ने लौड़ी जादे  इस्माइल और उसके औलादों को हमेशा अपने से कमतर समझा है. यही सौतेला पन जड़ है अरब के यहूदी और मुसलामानों की दुश्मनी की वजह है .

हम हिंदुस्तानी इस पराई लड़ाई में सदियों से पिले  हुए हैं . यह उनके मज़हबी और सियासी अकीदे का उनका मामला है . इस्लाम को अपना कर हम ख़सारे में हैं कि न इधर के रहे , न उधर के हुए . इस्लाम को तर्क करके अगर हम नई इंसानी क़द्रें अपना कर दोबारा जनम लें तो हम भारत के सफ़ ए अव्वल की क़ौम में आ सकते हैं .
तेल की दौलत अरबों का वक्ती तौर पर उरूज पर है , तेल ख़त्म हो जाने के बाद ये फिर पाताल में होंगे . इस्लाम को अपना कर अफ्रीका आज भी दुन्या से सदियों पीछे भूका नंगा है जब कि वहीँ ईसाइयत को अपना कर कौमें फल फूल रही हैं . इस्लाम से दूर रहकर योरोपीय मुमालिक आसमान छू रहे हैं . 
इस्लाम पूरी ज़मीन के मुसलमानों को जहन्नम रसीदा कर रहा है ,


जीम. मोमिन