Tuesday 5 July 2016

बांग-ए-दरा -25


बांग-ए-दरा

क्या ख़ुदा ?

मौजूदा साइंस की बरकतों से फैज़याब दौर के लोगो! 
खास कर मुसलमानों!!
एक बार अपने ख़ुदा के वजूद का तसव्वुर अपनी ज़ेहनी सतह पर बड़ी गैर जानिब दारी से क़ायम करो. बस कि सच का मुक़ाम ज़ेहन में हो. 
सच से किसी शरीफ़ और ज़हीन आदमी को इंकार नहीं हो सकता, 
इसी सच को सामने रख कर ख़ुदा का वजूद तलाशो, 
हमारे कुछ सवालों का जवाब खुद को दो.
१-क्या ख़ुदा हिदुओं, मुसलामानों, ईसाइयों और दीगर मज़ाहिब के हिसाब से जुदा जुदा हो सकता है?
२- क्या ख़ुदा भारत, चीन, योरोप, अरब, अमरीका और जापान वगैरा के जुग़राफ़ियाई एतबार से अलग अलग हो सकता है?
३- क्या खुदा नस्लों, तबकों, फिरकों, संतों, गुरुओं, पैगम्बरों और क़बीलों के एतबार से जुदा जुदा हो सकते हैं?
४- समाज के इज्तेमाई (सामूहिक) फैसले के नतीजे से बरआमद खुदा, क्या हो सकता है?
५- खौफ़, लालच, जंग ओ जेहाद से बरामद किया हुआ खुदा, 
क्या सच हो सकता है?
६- क्या ज़ालिम, जाबिर, ज़बर दस्त, मुन्तकिम, चालबाज़, गुमराह करने वाली हस्ती, 
खुदा हो सकती है?
७-पहले हमल में ही इंसान की क़िस्मत लिख्खे, 
फिर पैदा होते ही कांधों पर आमाल नवीस फ़रिश्ते मुक़र्रर करे. 
इसके बाद यौमे हिसाब मुनअकिद करे, 
क्या ऐसा कोई खुदा हो सकता है?
८-क्या खुदा ऐसा हो सकता है जो नमाज़, रोज़ा, पूजा पाठ, चढ़वाया 
और प्रसाद वगैरा का लालची हो सकता है?
९- क्या ऐसा खुदा कोई हो सकता है कि 
जिसके हुक्म के बगैर पत्ता भी न हिले?
तो क्या तमाम समाजी बुराइयाँ इसी का हुक्म हैं. 
तो दुन्या के तमाम दस्तूर इसके ख़िलाफ़ हैं.
१०- कहते हैं ख़ुदा के लिए हर कम मुमकिन है, 
क्या ख़ुदा इतना बड़ा पत्थर का गोला बना सकता है, 
जिसे वह खुद न उठा पाए?

मुसलमानों! 
इन सब सवालों का सही सही जवाब पाने के बाद,
तुम चाहो तो बेदार हो सकते हो.
जगे हुए इंसान को किसी पैगम्बर या मुरत्तब किए हुए 
अल्लाह की ज़रुरत नहीं होती है.
जगे हुए इंसान के का रहनुमा खुद इसके अन्दर विराजमान होता है.
याद रखो तुम्हारे जागने से सिर्फ़ तुम नहीं जागते, 
बल्कि इर्द गिर्द का माहौल जागेगा,  
चिराग़ जलने के बाद सिर्फ़ चिराग़ रौशनी में नहीं आता 
बल्कि तमाम सम्तें रौशन हो जाती हैं.
महक उट्ठो अपने अन्दर की खुशबू से. 
लाशऊरी तौर पर तुम अपनी इस खुशबू को खारजी रुकावटों के बायस पहचान नहीं पाते. 
ये खुशबू है इंसानियत की. 
मज़हब तो खारजी लिबास पर इतर का छिडकाव भर है.
छोडो इन पंज रुकनी लग्व्यात को. और इस पंज वकता खुराफ़ात को,
मैं देता हूँ तुम्हें बहुत ही आसान पाँच अरकान ए हयात.
१-सच को जानो. सच के बाद भी सच, सच को ओढो और बिछाओ,
२-मशक्कत, का एक नावाला भी अपने या अपने बच्चों के मुँह में हलाल है, मुफ़्त या हराम से मिली नेमत मुँह में मत जाने दो.
३- जिसारत, सदाक़त को जिसारत की बहुत सख्त ज़रुरत होती है, 
वैसे सदाक़त अपने आप में जिसारत है.
४. प्यार, इस धरती से, धरती की हर शै से और खुद से भी.
५- अमल, तुम्हारे किसी अमल से किसी को ज़ेहनी या जिस्मानी या फिर माली नुकसान न हो.
बस.
*****


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