Sunday 25 December 2016

बांग-ए-दरा 177




बांग ए दरा

गढ़ी हुई आयत मुलाहिज़ा हो - - - 

''और इब्राहीम ने दुआए मगफिरत अपने बाप के लिए माँगा और वह srif वादा के सबब था जो इन्हों ने इस से वादा लिया था, फिर जब उन पर यह बात ज़ाहिर हो गई की वह खुदा का दुश्मन है तो वह उस से महज़ बे ताल्लुक हो गए." 
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (११४) 
पिछले बाब में मैं लिख चुका हूँ, फिर दोहरा रहा हूँ कि बाबा इब्राहीम इंसानी तवारीख के पहले नामवर इंसान हैं जिनका ज़िक्र आलमी इतिहास में सब को मान्य है.पाषाण युग था वह पत्थर तराश के बेटे थे, बाप के साथ संग तराशी में बमुश्किल गुज़रा होता था. बाबा इब्राहीम की वजेह से उनके बाप नाम भी जिंदा-ए-जावेद हो गया. यहूदी तौरेत उनको तेराह बतलाती है अरबी आजार कहते हैं. उन्हों ने अपने बेटे अब्राहाम और भतीजे लूत को ग़ुरबत से नजात पाने के लिए ठेल ढकेल के परदेस भेजा यह सपना दिखला कर कि तुम को दूध और शहद की नादियों वाला देश मिलेगा. इब्राहीम, लूट न पैगम्बर थे और न आजार काफ़िर. वह लोग पाषाण युग के अविकसित सभ्यता के पथिक मात्र थे. कुरान में जो आप पढ़ रहे है वहझूटी पैगम्बरी के गढ़े हुए मकर हैं. बे ज़मीर पैगम्बरी तमाम हदें पार करती हुई अल्लाह यानी खुदाए बरतर को यूं रुसवा करती है - - - 


Saturday 17 December 2016

बांग-ए-दरा 176




बांग ए दरा

सूरात्तुत तौबा ९ -१०वाँ परा आयत (१०१-११०) 

मुहम्मद क़ीमती इंसानी ज़िन्दगी को अपने मुफ़ाद के लिए जेहाद के नज़र यूँ करते हैं - - - 
''बिला शुबहा अल्लाह तअला ने मुसलमानों से उनके जानों और उनके मालों को इस बात के एवज़वाज़ ख़रीद लिया है कि उनको जन्नत मिलेगी, वह लोग अल्लाह की राह में लड़ते हैं , क़त्ल करते हैं, क़त्ल किए जाते हैं, इस पर सच्चा वादा है तौरेत में, इन्जील में, और कुरआन में और अल्लाह से ज्यादा अपना वादा कौन पूरा करने वाला है? तो तुम लोग अपने बयनामे पर जिसका तुम ने अल्लाह के साथ मुआमला ठहराया है ,ख़ुशी मनाओ.'' 
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (१११)

यही कुरानी आयतें तालिबानी ज़ेहनों को आत्म घाती हमलों पर आमादः करती हैं और मुसलामानों को इस तरक्क्की याफ़्ता दुन्या के सामने ज़लील करती हैं. इनपर तमाम दुन्या केशरीफ़ और समझदार कयादत को एक राय होकर पाबंदी आयद करना चाहिए.
''पैगम्बर और दूसरे मुसलामानों को जायज़ नहीं कि मुशरिकीन की मगफेरत की दुआ मांगे, चाहे वह रिश्तेदार ही क्यूं न हो, इस अम्र के ज़ाहिर हो जाने के बाद कि वह दोजखी है.'' 
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (११२-१३) 

मुहम्मद की क़ल्ब सियाही इन बातों से देखी जा सकती है मगर उनका दोहरा मेयार भी याद रहे कि जब अपने मोहसिन चचा अबू तालिब तालिब की अयादत में गए तो उनसे पहले अपने हक में कालिमा मुहम्मदुर रसूलल्लाह पढ़ लेने की बात की, वह नहीं माने तो उठते उठते कहा खैर, मैं आपकी मगफिरत की दुआ करूंगा. मगर ठहरिए, लोगों की याद दहानी पर मुहम्मद इसे अपनी भूल मानने लगे हैं और ऐसी भूल स्य्य्दना इब्राहीम अलैहिस सलाम से भी हुई,

Friday 16 December 2016

बांग-ए-दरा 175


बांग ए दरा


देखिए किउनका अल्लाह क्या क्या कहता है - - -

''और उन देहातियों में बअज़ बअज़ ऐसा है जो कुछ वह खर्च करता है, उसको जुर्माना समझता है और तुम मुसलामानों के लिए गर्दिशों का मुंतज़िर रहता है, बुरा वक्त उन्हीं पर है और वह अल्लाह सुनते और जानते हैं.'' 
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (98) 

तो ये रही मुहम्मद के देहाती अल्लाह की देहातियों पर पकड़. 
"जिन देहातियों और अन्सरियों ने खुद को अल्लाह और उसके रसूल के हवाले बमय लाल और माल हवाले करदिया है उसके लिए जन्नत में महेल हंगे जिनके नीचे नहरन बह रही होंगी."
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (१००)

मुहम्मद मक्का से बद हाली में फरार होकर जब अपने साथी अबू बक्र के हमराह मदीने आए और जिस घर में पनाह लिया उस घर को बाद में वहाँ के लोगों ने मस्जिद बनवा दिया, जब कि मुहम्मद ने उसी घर से लगी ज़मीन खरीद कर मस्जिद बनवाई जिसका नाम आज तक मस्जिदे नबवी है. मुहम्मद मक्के से मदीने जब आए तो वहां के लोग बहुत खुश गवारी में थे कि मक्के का बाग़ी आ रहा है, दूसरे यह कि यहूदी और ईसाई के योरो सलम वाले मदीने में बुत परस्तों की मुखालफत करने वाला एक बुत परस्त कुरैश उनका हम नवा बन कर पैदा हुवा है. तीसरी बात ये कि मक्का हमेशा शर पसंद रहा है, मदीननियों ने ख्याल किया कि दुश्मन का दुश्मन हमारा दोस्त बनेगा. इन्हीं तमाम जज़्बात को मद्दे नज़र रखतेहुए लोगों ने उस घर को भी मस्जिद बना दिया था जिस में मुहम्मद ने पहली बार क़दम रखा था, कामयाबी मिलने के बाद मुहम्मद का इस्लाम शैतानी शक्ल अख्तियार करने लगा तो यहाँ के मुसलमानों ने मुहम्मद का साथ उनके अल्लाह के मनमानी फरमान में उसकी बात की मुखालिफत की. बस मुहम्मद ने इनको कुफ्र का लक़ब दे दिया और मस्जिद को नाम दिया '' मस्जिदे ज़र्रार'' यानी ज़रर पहुँचाने वाली मस्जिद. मुहम्मद और नुकसान उठाएं? ना मुमकिन. 




Wednesday 14 December 2016

बांग-ए-दरा 174




बांग ए दरा 


''बस ईमान वाले तो ऐसे होते हैं कि जब अल्लाह तअला का ज़िक्र आता हैतो उनके कुलूब डर जाते हैं और जब अल्लाह की आयतें उनको पढ़ कर सुनाई जाती हैं तो वह उनके ईमान को ज़राज़्यादा कर देती हैं और वह लोग अपने रब पर तवक्कुल करते हैं.''
सूरह इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत (२)

मुहम्मद इस्लामी ईमान के बे ईमान धागे को अपने उँगलियों में बांध कर समाज के बेवकूफों और मजबूरों को कठ पुतलियों की तरह नचा रहे हैं। वह अपनी क़ुरआनी तुकबंदी को क़ल्बी सुकून के लिए सुनना चाहते हैं न कि जेहनी तश्नगी की खातिर. सब्र और संतोष का पाठ उम्मत को और मालो मता अपने हक में कर के आँख मेंधूल झोंक रहे है.




Hadeesi Hadse 440




हदीसी हादसे 
बुख़ारी १४६६ 
तिकड़म पसंद रसूल 
"इरवा बारक़ी कहते है कि मुहम्मद ने इनको एक बकरी खरीदने के लिए एक दरहम दिया . मैंने एक दरहम में दो बकरियां खरीदीं , उसके बाद एक दरहम में एक बकरी बेच दी और मुहम्मद को आकर एक दरहम और एक बकरी लाकर दिया . इस पर वह खुश हुए और अपने कारोबार में मुझे शरीक कर लिया . 
* इरवा बारक़ी ने ग़रीब किसान और मजबूर की मजबूरी का फायदा उठाया , यह बात नबूवत के समझ में नहीं आई , एक आम आदमी की तरह नफ़ा नुक़सान ज़रूर नज़र आया .

बुख़ारी १ ४ ८ ५ 
जब अपने पाँव में फटी बेवाई 

हदीस है कि अली ने अबू जेहल की बेटी के लिए शादी का पैगाम भेजा जिसकी खबर इनकी बीवी फ़ातमा को हुई जो कि मुहम्मद की बेटी थीं . फातमा ने बाप के पास जाकर शिकायत की . खबर सुन कर मुहम्मद उठ खड़े हुए और कहा मैं ने अपनी बेटी जैनब का निकाह अबुल आस से किया था , उसने मुझ से अहद किया था जो सही  करके दिखाया। रही फ़ातिमा, यह मेरे जिगर का टुकड़ा है , मैं इसकी तकलीफ़ दही को गवारा नहीं कर सकता . अल्लाह की क़सम अबू जेहल एक काफ़िर की बेटी और मुहम्मद की बेटी , हरगिज़ एक एक शख्स के निकाह में जमा नहीं हो सकतीं . यह फरमान सुन कर अली ने अपना इरादा तर्क कर दिया .
मुस्लिम - - - किताबुल फ़ज़ायल 

रवायत है कि मुहम्मद मिम्बर पर फरमा रहे थे कि हुश्शाम बिन मुगीरा के बेटों ने मुझ से इजाज़त मांगी अपनी बेटी का निकाह अली से (यानी अबू जेहल की बेटी का , जिसके साथ निकाह के लिए अली ने पैगाम दिया था ) मुहम्मद ने तलाक़ की तरह तीन बार इजाज़त देने से इनकार कर दिया और कहा अली को इजाज़त जभी दूंगा जब वह मेरी बेटी को तलाक़ देदे .मेरी बेटी मेरे जिस्म का टुकड़ा है , इसको ईज़ा होती है तो मुझको ईज़ा होती है .
*मुहम्मद की अज्वाजी ज़िन्दगी में मुख्तलिफ फिरकों की बयक वक़्त नौ बीवियां सवतों की शक्ल में हुवा करती थीं, मगर जब अपनी बेटी पर सवत की बात आई तो कैसी गुजरी . कलेजा मुंह को आ गया . कैसा दोहरा मेयार था जनाब का ? बनते थे अल्लाह के रसूल .


Tuesday 13 December 2016

बांग-ए-दरा 172


बांग ए दरा


फ़तह जेहाद में लूटे हुए माल के बटवारे में मुसलामानों में खीचा तानी है. इसे मुहम्मद ने माले गनीमत का नाम दिया है जो मुसलामानों के लिए फतेह का तबर्रुक अर्थात विजय का प्रसाद बन गया है. सारी सृष्टि के व्यवस्था को छोड़ कर ईश्वर इस पिद्दी भर मुआमले को निपटने के लिए फ़रिश्ते जिब्रील को पकड़ता है और बदमाश लुटेर्रों को शान्त करने के लिए मुहम्मद के पास भेजता है. यह फ़तह बदर के बाद के हालात हैं, लूट के माल पर खुद मुहम्मद की नियत खराब हो जाती है। वह अल्लाह और उसके रसूल के नाम पर खुद सारा माल हड़पना चाहते हैं.
''यह लोग आप से गनीमातों का हुक्म दरयाफ्त करते हैं, आप फ़रमा दीजिए कि गनीमतें अल्लाह की हैं और रसूल की हैं. सो तुम अल्लाह से डरो और बाहमी तअल्लुकात की इस्लाह करो. अल्लाह और उसके रसूल की इताअत करो। अगर तुम ईमान वाले हो.''

सूरह इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत (१)

अज़ीम कुरैश सरदार अबू जेहल (जेहालत की औलाद - - ये नाम मुहम्मद का दिया हुवा हैइसको इस्लाम ने इस क़दर दोहराया कि इसका असली नाम ही ना पैद हो गया. ये मुहम्मद के सगे चाचा थे) को दो अंसारी नौ उम्र लड़कों ने मैदाने जंग में एलाने जंग होने से पहले ही उसकी बे खयाली में कत्ल कर दिया। जंग ख़त्म हुई, मुहम्मद को पता चला कि उनका दुश्मन नंबर १ अबू जेहल मारा गया. पास गए, पहचाना, दाढ़ी पकड़ कर ताने तिश्ने दिए, लोगों ने कहा हुज़ूर यह मुर्दा लाश है इसे क्या सुना रहे हैं? जवाब था तुम्हें नहीं मालूम ये खूब सुन रहा है.
एलान हुआ कि इसको किसने मारा, 
दोनों अंसारी लड़के बहादरी और इनाम की लालच लिए हाज़िर हुए, नीयतें दोनों की खराब हो चुई थीं, दोनों दावे दार थे। माले गनीमत झगडे में पड़ गया, दोनों की तलवारें मंगाई गईं, दोनों तलवारों में खून ताज़ा लगा हुवा था। मुआमला यूं तै हुआ कि एक को अबू जेहल का घोडा दे दिया गया दूसरे को घोड़े की काठी. 
बे शक काठी पाने वाले ने मुहम्मद को ज़रूर कोसा होगाकि उसके साथ ना इंसाफी हुई. इस वाकेए के पसे मंज़र में आप माले गनीमत का लुटेरों में बटवारा समझ गए होगे कि जेहादियों को यूं टरकाया और अबू जेहल की तमाम जायदाद अल्लाह और उसके रसूल की हुई. मुहम्मद लूट का सारा का सारा माल घोट जाने के बाद अपने बन्दों को समझाते और फुसलाते हैं असली माल तो क़ुरआनी आयतें हैं, सच्चे मुसलमान की दौलत उनकाईमान है - - -


Monday 12 December 2016

बांग-ए-दरा 171




बांग ए दरा 

''मैं अभी कुफ्फार के दिलों में रोब डाल देता हूँ सो तुम गर्दनों पर मारो और पूरा पूरा मारो.''
सूरह इंफाल - ८ नौवाँ पारा आयत (१२)

कुन फया कून का फार्मूला क्या भूल रहा है ? अल्लाह तअला ! क्या तेरी शान है. मुनकिर नकीर को क्या छुट्टी पर भेज दिया है? बे ईमान मुस्लिम ओलिमा टिकिया चोर नेता ढोल पीटते फिरते है कि क़ुरआन अमन अमान सिखलाता है, इस्लाम शांति और सद भाव का मज़हब है, अक्सरियत उनके हाँ में हाँ मिलाती है क्यूंकि उसके यहाँ खुद रामायण और महा भारत युद्धों से भरी हुई हैं. सच तो यह है की हिदुस्तानी धर्मों और पश्चिम से आए हुए यहूदी, ईसाई और इस्लाम मजहबों का मतलब ही अन्याय और अधर्म है.

''जो अल्लाह और रसूल की मुखालिफत करता है, अल्लाह तअला सख्त सजा देते हैं, सो यह चक्खो. जालिमो के लिए सख्त अजाब है.''
सूरह -इंफाल ८ नौवाँ परा आयत (१३-१४)

किर्दगार ए कायनात, खुदाए बरतर?, दरोग आमेज़ मुहम्मद की दीवानी के कचेहरी में वकील की नौकरी करली है. वह मुहम्मद की हर ऊट पटाँग बातों की पैरवी कर रहा है।


Friday 9 December 2016

बांग-ए-दरा 170



बांग ए दरा 

''जैसा कि आप के रब ने आप के घर से मसलेहत (भलाई) के तहत बदर (जंगे बदर) के लिए रवाना किया और मुसलामानों की एक जमाअत इसे गराँ समझती थी, वह इस मसलेहत में बअद इसके कि इसका ज़हूर हो गया था, आप से इस तरह झगड़ते रहे थे कि गोया इन को कोई मौत की तरफ हाँके जा रहा हो और वह देख रहे हों ''
सूरह इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत (६)
और बनू नुजैर पर, मुसलामानों का (यहूदियों पर) पहला हमला धोका धडी से कामयाब हुआ तफ़सील आगे होगी. दूसरा हमला मक्का के कुरैश्यों पर था. दिग्गज कुरैश सरदार इसमें शामिल थे. कुरैशों में ज़रुरत से ज्यादह आत्म विशवास था और मुसलमानों में अंध विशवास लालच. मुहम्मद ने यकीन दिला दिया था कि ३००० फ़रिश्ते मुसलमानों के साथ जंग में शरीक करने का वादा अल्लाह ने कर लिया है, लालच थी माले गनीमत की. बहर हल मुसलमान जंग जीत गए मगर गनीमत पर रसूल की बद नियाती पर लोग बद गुमान हो गए। जान भी गँवाई और जो बचे उनको कोई खास फायदा भी न हुआ. इस से बेहतर होता कि घर पर ही जो कर रहे थे, करते रहते.. दूसरी जँग जँग-ए-उहद के लिए मुहम्मद एक बार फिर लोगों को ललचा रहे हैं, फुसला रहे हैं, झूट और मक्र का सहारा ले रहे हैं. इस बार ५००० फ़रिशतों के शरीक होने का अल्लाह के वादे का यक़ीन दिला रहे हैं.और दर पर्दा धमका भी रहे हैं - - -
''बिला शुबहा अल्लाह तअला ज़बरदस्त हिकमत वाले हैं''
सूरह इंफाल - ८ नौवाँ पारा आयत (१०)
अफ़सोस कि मुसलमान अल्लाह की इस हिकमत पर आज भी ईमान रखते हैं कि उनके उनके अल्लाह जेहादों में फरिश्तों की मदद भेजता है और अपने पैगम्बर की ऐसी दरोग़ आमोज़ी पर भी.''जब अल्लाह तुम पर ऊंघ तारी कर रहा था, अपनी तरफ़ से चैन देने के लिए और इस के क़ब्ल आसमान से बारिश बरसा रहा था कि इस के ज़रीए तुम को पाक करदे और तुम को शैतानी वस्वुसे से दफ़ा कर दे और तुम्हारे दिलों को मज़बूत कर दे और तुम्हारे पाँव जमा दे.''सूरह -इंफाल ८ नौवाँ परा आयत (११)अरबी, इस्लामी और क़ुरआन की जुग्राफियाई अलामतें ही हमारी सामाजिक मान्यताओं से भिन्न हैं. ऊँघना अल्लाह की रहमत और चैन है, बरसात की गन्दी छींटों से आप पाक हो जाते हैं, शैतानी बहकावे का इलाज हो जाता है और पाँव जम जाते हैं? खैर अरब में ऐसा होता होगा मगर भारत के मुसलमान इस उलटी धार में क्यूं बह रहे हैं, वाजेह हो सकती है कि अल्लाह जेहाद के लिए बहका रहा है,और वह अंदर ही अंदर तालिबानी हो रहे हों ,




Wednesday 7 December 2016

Hadeesi Hadse 439




हदीसी हादसे 
बुख़ारी १४५३ 

मुहम्मद कहते हैं कि एक वक़्त आएगा जब लोग गुमराही में मुब्तिला हो जाएँगे . वह हम तुम जैसे लोग होंगे , हमारी जुबान बोलेंगे , मगर ख़बरदार ! तुम अपने इमाम की पैरवी ही करना . अगर इमाम मुयस्सर न हो तो जंगल की तरफ भाग जाना और दरख्तों की जड़ें खा खा कर मर जाना .
हाँ ! यह वक़्त ज़रूर आने वाला है . मुसलामानों की नौबत खुद कुशी की होगी मगर इमामों की कसरत होगी . हर इमाम इनका खून चूसने के दर पे होगा मुसल्मान अभी से तैयार हो जाएं . ऐसे वक़्त के आने से पहले ईसाई उनके सामने मिशन लेकर खड़े होंगे और हिन्दू शुद्धि करन की भजन मण्डली , मगर खबर दार तुम शुद्ध होने के बाद भी अशुद्ध ही रहोगे . वह तुमको अपने रोटी बेटी में शामिल नहीं करेंगे . ऐसे वक़्त में उन्हें मजदूरों और मेहतरों की ज़रुरत होगी , क्योंकि यह तबका तब तक तालीम याफ्ता होकर इनके बराबर हो चुका होगा .
ईसाइयों को भी तुमको बख्श देने का ख़याल न होगा , इनको तुम्हारे वजूद में मौजूदा सलाहियत होने का फायदा उठाना होगा . इसके आलावा दोनों को चाहिए होगा कंज्यूमर मार्केट .
ऐसा वक़्त आने से पहले मोमिन की मान लो और दीन ए इंसानियत अपना लो . सच्चे इंसान से किसी को बैर न होगा .
मत दलील देना कि तुम्हारा इस्लाम इंसानियत का सबक ही देता है . यह झूठा सबक सिखलाने वाले तुमको , तुम्हारे ओलिमा हैं . इनसे खुद को और अपनी नस्लों को दूर रखना होगा , जैसे कि खारिश ज़दा और पागल कुत्तों से दूर रहते हो .
यह अपनी हुलिया को ताक पर रख कर मेहनत और मशक़्क़त की रोटी खाने लगें तो इनको मुआफ़ करदो . 

मुस्लिम किताबुल लिबास ओ ज़ीनत 

मुहम्मद की ग्यारवीं बीवी मैमूना कहती हैं कि एक रोज़  सारा दिन मुहम्मद उदास रहे क्योंकि जिब्रील अलै आने का वादा कर चुके थे , मगर आए नहीं . ख़याल आया कि कुत्ते का बच्चा डेरे से निकला था , मुहम्मद ने पानी छिड़क क्र इस जगह को पाक किया . शाम को जिब्रील आए और वजह बतलाई की कुत्ते की मौजूदगी और नजासत उनको मंज़ूर न नहीं . उस घर में नहीं जाते जिसमे कुत्ता या उसकी मूरत हो . 
दूसरे दिन मुहम्मद ने हुक्म दिया कुत्तों को क़त्ल कर दिया जाए . छोटे बाग़ के कुत्ते क़त्ल कर दी गए और बड़े बाग़ के रहने दिए गए .
* दुन्य की सब से प्यारी और इंसान दोस्त मखलूक के साथ पैगम्बर ए इस्लाम का ऐसा सुलूक था . हैरत का मुक़ाम है कि आज के दौर में मुसलमान कुत्तों से उतनी ही नफ़रत करते हैं जितनी मुहम्मद को थी .
एक अँगरेज़ मुफक्किर कहता है कि लोग कुत्ते के बिना कैसे रह लेते हैं ? इस पर हमें यकीन नहीं आता . 



बांग-ए-दरा 168




बांग ए दरा 


मुहम्मद के कथन को हदीस कहा जाता है और हदीसें मुस्लिम बच्चों को ग्रेजुएशन कोर्स की तरह पढाई जाती है, कई लोग हदीसी ज़िन्दगी जीने की हर लम्हा कोशिश करते हैं. कई दीवाने अरबी, फारसी लिपि में लिखी इबारत 'मुहम्मद' की तरह ही बैठते हैं. अपने नबी की पैरवी में सऊदी अरब के शेख चार बीवियों की पाबन्दी के तहत पुरानी को तलाक़ देकर नई कम उम्र लाकर बीवियाँ रिन्यू किया करते हैं. हदीसो में एक से एक गलीज़ बातें हैं. उम्मी यानी निरक्षर गँवार विरोधाभास को तो समझते ही नहीं थे. हज़रात की दो हदीसें मुलाहिजा हों.
१-हैं एक शख्स अपनी तहबंद ज़मीन पर लाथेर कर चलता था . अल्लाह तअला ने इसे ज़मीन में धंसा दिया. क़यामत तक ज़मीन में वह यूं ही में धंसता ही रहेगा.''बुखारी (१४०२)

२-फ़रमाते हैं एक रोज़ मैं सो रहा था कि मेरे सामने कुछ लोग पेश किए गए जिनमें से कुछ लोग तो सीने तक ही कुरता पहने थे, और बअज़ इस से भी कम. इन्हीं लोगों में मैं ने उमर इब्ने अल्खेताब को देखा जो अपना कुरता ज़मीन पर घसीटते हुए चल रहे थे. लोगों ने इसकी तअबीर जब पूछी तो बतलाया यह कुरताए दीन है.''
(बुखारी २२)


कबीर कहते हैं- - -
साँच बराबर तप नहीं झूट बराबर पाप, 
जाके हृदय सांच है ताके हृदय आप। 


मुहम्मद के कथन में झूट का अंश देखिए - - -
१- उनको कैसे मालूम हुआ कि अल्लाह तअला तहबन्द ज़मीन पर लथेड कर चलने वाले को ज़मीन में मुसलसल धन्सता रहता है?
२-उम्मी सो रहे थे और इनके सामने कुछ लोग पेश किए गए? भला बक़लम खुद का रूतबा तो देखिए. माँ बदौलत नींद के आलम में शहेंशाह हुवा करते थे. जनाब सपनों में पूरा पूरा ड्रामा देखते हैं.३- कुछ लोग सीने तक कुरता पहने थे? गोया फुल आस्तीन ब्लाउज? कुछ इससे भी कम? यानी आस्तीन दार चोली? मगर ऐसे लिबासों को कुरता कहने की क्या ज़रुरत थी आप? झूट इस लिए कि आगे कुरते की सिफ़त जो बयान करना था. ज़मीन पर कुरता गोगर गलीज़ को बुहारता चले तो दीन है. लंबी तुंगी हो तो वह ज़मीन में धंसने का अनोखा अज़ाब .ऐसी हदीसों में अक्सर मुसलमान लिपटे हुए लंबे लंबे कुरते और घुटनों के ऊपर पायजामा पहन कर कार्टून बने देखे जा सकते हैं. 
कुरते और तहबन्द वालों का मुहम्मदी अल्लाह इंसानों की तरह गुफ्तुगू भी करता है - - - 
''जो कि नमाज़ की पाबन्दी करते हैं और हम ने जो कुछ उनको दिया उस में ही खर्च करते है.''
सूरह इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत (३)

मुहम्मद जंग में लूटे हुए माल का पांचवां हिस्सा अल्लाह के नाम का निकाल के खुद रख लेते और पांचवां हिस्सा अल्लाह के रसूल का लेके खुद रख लेते बाकी ३/५ हजारों लुटेरों में बंटता जोकि बहुत कम होता। बुरा वक्त था भरण-पोषण की मजबूरी के कारन लड़कियां पैदा होते ही दफ़्न करदी जाती थीं. ऐसे में बेकारी की कल्पना की जा सकती है. लूट मार का समय पूरी दुन्या में था मगर लुटेरे डाकू, चोर, बदमाश कहे जाते थे, मुसलमान नहीं. लूट के माल को माल को माले गनीमत का नाम देकर मुहम्मद ने इसे न्याय संगत कर दिया और स्वयंभू अल्लाह बन बैठे, बन्दों को इसमें से जो कुछ वह हाथ उठा कर दे देते, उसी में वह गुज़ारा करे.जिसने नमाज़ की पाबंदी दिलो जन से कर ली वह कुछ और कर भी नहीं सकता, खर्च कहाँ से करेगा? या फिर नमाज़ की आड़ में कुछ गलत कम करे.



Tuesday 6 December 2016

बांग-ए-दरा 167




बांग ए दरा 


''और जब उनके सामने हमारी आयतें पढ़ी जाती हैं तो कहते हैं; हमने सुन लिया और अगर हम इरादा करें तो इसके बराबर हम भी कह लाएं, यह तो कुछ भी नहीं सिर्फ बे सनद बातें हैं जो पहलों से मन्कूल चली आ रही हैं.''
सूरह -इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत ( ३१)

अल्लाह बने मुहम्मद झूट बोलते हैं कि क़ुरआन किसी अल्लाह का कलाम है क्यूं कि यह खुद इस्लामी अल्लाह हैं और क़ुरआन इन का फूहड़ कलाम है. अरब में तौरेत की पुरानी कहानियाँ सीना दर सीना सदियों से चली आ रही थीं जैसे भारत में पौराणिक कथाएँ. जब मुहम्मद उसे अल्लाह का कलाम गढ़ कर अवाम को सुनाते तो खुद मुसलमान हुए लोगों में ऊब कर कुछ लोग कह देते की ऐसी बे सनद बातें तो हम भी कर सकते हैं जो पहले से मशहूर हैं इनमें नया क्या है? तलवार की काट और हराम खोर ओलिमा की ठाठ, आज मुसलमानों की ज़ुबान पर क़ुफ्ल जड़े हुए है.


Monday 5 December 2016

बांग-ए-दरा 166


बांग ए दरा 


'' ऐ ईमान वालो! तुम अल्लाह और रसूल के कहने को बजा लाया करो जब कि रसूल तुम को तुम्हारी ज़िन्दगी बख्श चीजों की तरफ बुलाते हैं और जान रखो अल्लाह आड़ बन जाया करता है आदमी के और उसके क़ल्ब के दरमियान और बिला शुबहा तुम सब को अल्लाह के पास जाना ही है.''
सूरह -इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत ( २४ )

जादूई खसलत के मालिक मुहम्मद इंसानी ज़ेहन पर इस कद्र क़ाबू पाने में आखिर कार कामयाब हो ही गए जितना कि कोई ज़ालिम आमिर किसी कौम पर फ़तह पाकर उसे गुलाम बना कर भी नहीं पा सकती. आज दुन्या की बड़ी आबादी उसकी दरोग की आवाज़ को सर आँख पर ढो रही है और उसके कल्पित अल्लाह को खुद अपने और अपने दिल ओ दिमाग के बीच हायल किए हुए है.

''ऐ ईमान वालो! अगर तुम अल्लाह से डरते रहोगे तो, वह तुम को एक फैसले की चीज़ देगा और तुम से तुम्हारे गुनाह दूर क़र देगा और तुम को बख्श देगा और अल्लाह बड़ा फ़ज़ल वाला है.''
सूरह -इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत ( २९ )

अल्लाह के एजेंट बने मुहम्मद उसकी बख्शी हुई रियायतें बतला रहे हैं. पहले उसके बन्दों को समझा दिया कि उनका जीना ही गुनाह है, वह पैदा ही जहन्नम में झोंके जाने के लिए हुए हैं, इलाज सिर्फ़ यह है कि मुसलमान होकर मुहम्मद और उनके कुरैशियों को टेक्स दें और उनके लिए जेहाद करके दूसरों को लूटें मारें जब तक कि वह भी उनके साथ जेहादी न बन जाएँ.
ना करदा गुनाहों के लिए बख्शाइश का अनूठा फार्मूला जो मुसलमानों को धरातल की तरफ खींचता रहेगा.


Sunday 4 December 2016

बांग-ए-दरा 165




बांग ए दरा 

''अल्लाह तअला इन में कोई खूबी देखे तो इन को सुनने की तौफ़ीक़ दे और अगर इनको सुना दे तो ज़रूर रू गरदनी करेगे बे रुखी करते हुए.''
सूरह -इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत (२३)
दुन्या के मासूम लोग मानते हैं कि कुरआन अल्लाह का कलाम है, ईश वाणी है. क्या ईश्वर भी इंसानों की तरह ही चाल घात और मकर ओ फरेब का दिल ओ दिमाग रखता होगा? जैसा कि कुरआनी आयतें अपने अन्दर छुपाए हुए हैं. इसी लिए मुहम्मद ने इसे रटने और पाठ करने के लिए पुन्य कार्य यानी सवाब करार दे दिया है और कह दिया है कि इसकी गहराई में मत जाओ कि इसको अल्लाह ही बेहतर जानता है. मुहम्मद की खूबी वाले लोग उन्हीं को मानते हैं जो डरपोंक हों चापलूस हो और बिला शर्त उनको समर्पित हों. वह ज़हीन लोगों से डरते हैं कि वह ख़तरनाक होते हैं. कुंद ज़हनों पर ही उनका अल्लाह राज़ी है कि मुहम्मद उनका शोषण कर सकते हैं. आज तालिबान जैसे संगठन ठीक मुहम्मद के नक्शे क़दम पर चलते हैं.


Saturday 3 December 2016

बांग-ए-दरा 164




बांग ए दरा 


''और तुम उन लोगों की तरह न होना जो दावे करते हैं कि हमने हैं सुन लिया हालाँकि वह सुनते सुनाते कुछ भी नहीं. बेशक बद तरीन खलायक अल्लाह के नज़दीक वह लोग है जो बहरे हैं, गूंगे हैं जोकि ज़रा भी नहीं समझते.
सूरह -इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत (२२)
अल्लाह बने हुए मुहम्मद मस्जिद में तक़रीर कर रहे हैं छल कपट की जिस को लोग खूब समझ रहे हैं और बेज़ार होकर इधर उधर देख रहे हैं गोया उनको एहसास दिला सकें कि वह खूब उनका असली मकसद समझते हैं. मुहम्मद अपने जंबूरे अल्लाह का सहारा बार लेते हैं मगर वह पानी का हुबाब साबित हो रहा है. वह इस्लाम पर ईमान लाए लोगों को बद तरीन मख्लूक़ तक भी कह रहे है, कोई तो मसलेहत होगी कि लोग सर झुका कर महफ़िल में उनकी यह गाली भी बर्दाश्त कर रहे हैं. इन बहरे और गूंगे लोगों पर अल्लाह की कोई हिकमत काम नहीं करती जो दोज़ख में काफिरों की खालें अंगारों से जल जाने के बाद बदलता रहता है.


Friday 2 December 2016

बांग-ए-दरा 163





 बांग ए दरा 

'' ऐ ईमान वालो! जब तुम काफिरों के मुकाबिले में रू बरू हो जाओ तो इन को पीठ मत दिखलाना और जो शख्स इस वक़्त पीठ दिखलाएगा, अल्लाह के गज़ब में आ जाएगा और इसका ठिकाना दोज़ख होगा और वह बुरी जगह है. सो तुम ने इन को क़त्ल नहीं किया बल्कि अल्लाह ने इनको क़त्ल किया और आप ने नहीं फेंकी (?) , जिस वक़्त आप ने फेंकी थी, मगर अल्लाह ने फेंकी और ताकि मुसलामानों को अपनी तरफ से उनकी मेहनत का खूब एवज़ दे. अल्लाह तअला खूब सुनने वाले हैं.''
सूरह -इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत (१५-१६-१७)

मज़ाहिब ज़्यादः तर इंसानी खून के प्यासे नज़र आते हैं ख़ास कर इस्लाम और यहूदी मज़हब. इसी पर उनकी इमारतें खड़ी हुई हैं धर्म ओ मज़हब को भोले भाले लोग इनके दुष प्रचार से इनको पवित्र समझते हैं और इनके जाल में आ जाते हैं. तमाम धार्मिक आस्थाओं का योग मेरी नज़र में एक इंसानी ज़िन्दगी से कमतर होता है. गढ़ा हुवा अल्लाह मुहम्मद की क़ातिल फ़ितरत का खुलकर मज़हिरा करता है. आज की जगी हुई दुनिया में अगर मुसलामानों के समझ में यह बात नहीं आती तो वह अपनी कब्र अपने हाथ से तैयार कर रहे हैं. कुरआन में अल्लाह फेंकता है यह कोई अरबी इस्तेलाह रही होगी मगर आप हिदी में इसे बजा तौर पर समझ लें कि अल्लाह जो फेंकता है वह दाना फेंकने की तरह है, बण्डल छोड़ने की तरह है और कहीं कहीं ज़ीट छोड़ने की तरह.


Thursday 1 December 2016

बांग-ए-दरा 162



बांग ए दरा 

''देखें जब यह फ़रिश्ते काफिरों की जान कब्ज़ करने जाते हैं और आग की सजा झेलना, ये इसकी वजेह से है कि तुम ने अपने हाथों समेटे हैं कि अल्लाह बन्दों पे ज़ुल्म नहीं करता.''
सूरह इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत ( ५०-५१)

वाह ! कितने रहम दिल हैं अल्लाह मियाँ. 
खुद ज़ुल्म करते हैं और अपने फरिश्तों से कराते है 
कि इस्लाम कुबूल करने के बाद मुसलमान हर वक़्त डरा सहमा रहता है अपने अल्लाह से.
क्यूँ ? क्या उसका जुर्म यह है कि वह उसकी धरती पर पैदा हो गया? 
मगर वह अपनी मर्ज़ी से कहाँ इस दुन्या में आया? 
वह तो अपने माँ बाप के उमंग और आरज़ू का नतीजा है. 
उसके बाद भी मेहनत और मशक्कत से दो वक़्त की रोज़ी रोटी कमाता है, 
उसके लिए मुहम्मदी अल्लाह को टेक्स दे? 
उस से डरे उसके सामने मत्था टेके, 
गिड़गिडाए ? 
भला क्यूं? 
अपने वजूद को दोज़ख के न बुझने वाले अंगारों के हवाले करने का यकीन क्यूं करें?