Friday 30 September 2016

बांग-ए-दरा 108


बांग ए दरा

इस्लामी अफीम  हैं कुरानी आयतें 

 अगर मर गए या मारे गए तो बिल ज़रुरत अल्लाह के पास ही जमा होगे. 
इस बीसवीं सदी में ऐसी अंध विशवासी बातें? अल्लाह इंसानी लाशें जमा करेगा ?
दोज़ख सुलगाने के लिए? अल्लाह अपने नबी मुहम्मद कि तारीफ करता है कि 
अगर वह तुनुक और सख्त मिजाज होते तो सब कुछ मुन्तशिर हो गया होता? 
यानि कायनात का दारो मदार उम्मी मुहम्मद पर मुनहसर था ,
इसी रिआयत से ओलिमा उनको सरवरे कायनात कहते हैं. 
मुहम्मद को अल्लाह सलाह देता है कि खास खास उमूर पर मुझ से राय ले लिया करो. 
गोया अल्लाह एक उम्मी, दिमागी फटीचर को मुशीर कारी का अफ़र दे रहा है. 
अस्ल में इस्लामी अफीम पिला पिला कर आलिमान इसलाम ने 
मुसलमानों को दिमागी तौर पर फटीचर बना दिया है.
नबूवत अल्लाह के सर चढ़ कर बोल रही है, 
वक़्त के दानिश वर खून का घूट पी रहे हैं कि जेहालत के आगे सर तस्लीम ख़म है. 
मुहम्मद मुआशरे पर पूरी नज़र रखे हुए हैं .
एक एक बागी और सर काश को चुन चुन कर ख़त्म कर रहे हैं या फिर ऐसे बदला ले रहे हैं कि दूसरों को इबरत हो. 
हदीसें हर वाकिए की गवाह हैं और कुरान जालिम तबा रसूल की फितरत का, 
मगर बदमाश ओलिमा हमेशा मुहम्मद की तस्वीर उलटी ही अवाम के सामने रक्खी. 
इन आयातों में मुहम्मद कि करीह तरीन फितरत की  बदबू आती है, 
मगर ओलिमा इनको, इतर से मुअत्तर किए हुए है.
******


Thursday 29 September 2016

बांग-ए-दरा 107




बांग ए दरा 

ज़बान खोलेंगे तो पिट जाएँगे

लोहे को जितना गरमा गरमा कर पीटा जाय वह उतना ही ठोस हो जाता है। इसी तरह चीन की दीवार की बुन्यादों की ठोस होने के लिए उसकी वींव की खूब पिटाई की गई है, 
लाखों इंसानी शरीर और रूहें उसके शाशक के धुर्मुट तले दफ़न हैं. 
ठीक इसी तरह मुसलमानों के पूर्वजों की पिटाई इस्लाम ने इस अंदाज़ से की है कि उनके नस्लें अंधी, बहरी और गूंगी पैदा हो रही हैं.
(सुम्मुम बुक्मुम उम्युन, फहुम ला युर्जून) 
इन्हें लाख समझाओ यह समझेगे नहीं.
मैं कुरआन में अल्लाह की कही हुई बात ही लिख रह हूँ जो कि 
न उनके हक में है, न इंसानियत के हक में , 
मगर वह कुछ भी सुनने को तैयार नहीं, 
वजेह वह सदियों से पीट पीट कर मुसलमान बनाए जा रहे है, 
आज भी खौफ ज़दा हैं कि दिल दिमाग और ज़बान खोलेंगे तो पिट जाएँगे, 
कोई यार मददगार न होगा.
*****

शिकार 
एक  सूरह में शिकारयात पर अल्लाह का कीमती तबसरा ज्यादह ही है 
गो कि आज ये फुजूल की बातें हो गईं हैं 
मगर मुहम्मदी अल्लाह इतना दूर अंदेश होता तो हम भी यहूदियों की तरह दुनिया के बेताज बादशाह न होते. 
खैर ख्वाबों में सही आकबत में ऊपर जन्नतों के मालिक तो होंगे ही. 
मोहम्मद शिकार के तौर तरीके बतलाते हैं 
क्यंकि उनके मूरिसे आला इस्माईल लौंडी जादे थे, 
और हाजरा (हैगर) के बेटे एक शिकारी ही थे जिनकी अलमाती मूर्तियाँ काबे की दीवारों में नक्श थीं, जिसे इस्लामी तूफ़ान ने तारीखी सच्चाइयों की हर धरोहर की तरह खुरच खुरच कर मिटा दिया. 
मगर क्या खून में दौड़ती मौजों को भी इसलाम कहीं पर मिटा सका है. 
खुद मुहम्मद के खून में इस्माईल के खून की मौज कुरआन में आयत बन कर बन कर बोल रही है. हिदुस्तानी मुल्ला की बेटी की तन पर लिपटी सुर्ख लिबास, 
क्या सफेद इस्लामी लिबास का मुकाबला कर सका है? 
मुहम्मद कुरआन में कहते है बेशक अल्लाह जो चाहे हुक्म दे, 
यह उनकी खुद सरी की इन्तहा है और उम्मत गुलाम की इंसानी सरों की पामाली की हद. 
एक सरकश अल्लाह बन कर बोले और लाखों बन्दे सर झुकाए लब बयक कहें, 
इस से बड़ा हादसा किसी क़ौम के साथ और क्या हो सकता है?
*****



Wednesday 28 September 2016

Hadeesi hadse 429




हदीसी हादसे 
बुखारी ८७८-79

मुहम्मद कहते हैं कि रोज़े की हालत में लड़ाई झगडा और मूहा चाई मना है, अगर इसका सामना हो जाए तो कहो मेरा रोज़ा है, दोबारा कहो मेरा रोज़ा है.
*अगर सामने वाला मारने मरने पर उतर आए?
इसक कोई जवाब मुहम्मद के पास नहीं है.
रोज़े दारों के मुंह से अक्सर बदबू आती है. बदबू ऐसी कि उनके साथ बात करना भी मुहक्ल हो जाता है. 
मुहम्मदी अल्लाह को यह बदबू मुश्क की मानिंद लगती है.
मुहम्मद कहते हैं कि रोज़े दारों को मखसूस जन्नातियों के दरवाजे से दाखिला होगा. शयातीन जकड दिए  जाते है.
*मुसलमानों! जागो तुम उन्नीसवीं सदी में हो. तुहारा मजाक उड़ाया जाता है.
बुखारी 868
मफरूज़ा अल्लाह के खुद साख्ता रसूल कहते है की ईमान मदीने में ऐसा समिट कर आएगा जैसे साँप अपने सूराख में सिमट कर जाता है.
*अनजाने में मुहम्मद ठीक ही कह गए हैं कि इस्लाम का ज़हर इंसानियत के लिए ज़हर ही है. ये ज़हर दुन्या में मदीने से फैला है, मदीन में नेश्त  नाबूद होकर बिल में दफ़्न हो जाएगा.

बुखारी ८६९-७०-७१-७२
मुहम्मद ने मक्के से भागकर पैगम्बरी की शुरुआत मदीना से किया. मदीने के बारे में बहुत सी आएं बाएँ शायं बका है. कभी कहते हैं मदीना एक दिन वहशी जानवरों का मरकज़ हो जाएगा तो कभी कहते हैं कि मदीने वालों को धोका देने वाले नमक की तरह पिघल जाएँगे.
कहते है फ़रिश्ते इसके मुहाफ़िज़ है, दज्जाल और ताऊन इसमें दाखिल नहीं हो सकते.
फ़िलहाल यहूदियों से मदीना बच जाए तो बहुत है.



बांग-ए-दरा 106




बांग ए दरा 

बैंकिंग प्रोग्राम 

देखिए मुहम्मद के मुंह से अल्लाह को या अल्लाह के मुंह से मुहम्मद को, 
यह बैंकिंग प्रोग्राम पेश करते हैं 
जेहाद करो - - - अल्लाह के पास आपनी जान जमा करी, 
मर गए तो दूसरे रोज़ ही जन्नत में दाखला, 
मोती के महल, हूरे, शराब, कबाब, एशे लाफानी, 
अगर कामयाब हुए तो जीते जी माले गनीमत का अंबार 
और अगर क़त्ताल से जान चुराते हो का याद रखो 
लौट कर अल्लाह के पास ही जाना है, 
वहाँ खबर ली जाएगी. 
कितनी मंसूबा बंद तरकीब है बे वकूफों के लिए 
." और अल्लाह कि राह में क़त्ताल करो. 
कौन शख्स है ऐसा जो अल्लाह को क़र्ज़ दिया 
और फिर अल्लाह उसे बढा कर बहुत से हिस्से कर दे 
और अल्लाह कमी करते हैं और फराखी करते हैं और तुम इसी तरफ ले जाए जाओगे" 
(सूरह अलबकर-२ तीसरा परा तिरकर रसूल आयत २४४+२४५) 
" अगर अल्लाह को मंज़ूर होता वह लोग (मूसा के बाद किसी नबी की उम्मत)उनके बाद किए हुआ बाहम कत्ल ओ क़त्ताल नहीं करते, 
बाद इसके, इनके पास दलील पहुँच चुकी थी, 
लेकिन वह लोग बाहम मुख्तलिफ हुए 
सो उन में से कोई तो ईमान लाया और कोई काफिर रहा. 
और अगर अल्लाह को मंज़ूर होता तो वह बाहम क़त्ल ओ क़त्ताल न करते 
लेकिन अल्लाह जो कहते है वही करते हैं" 
(सुरह अलबकर-२ तीसरा परा तिरकर रसूल आयत २५३) 
मुहम्मद ने कैसा अल्लाह मुरत्तब किया था? 
क्या चाहता था वह? 
क्या उसे मंज़ूर था? 
मन मानी? 
मुसलमान कब तक कुरानी अज़ाब में मुब्तिला रहेगा ? 
कब तक यह मुट्ठी भर इस्लामी आलिम अपमी इल्म के ज़हर की मार गरीब मुस्लिम अवाम चुकाते रहेंगे, 
मूसा को मिली उसके इलोही की दस हिदायतें आज क्या बिसात रखती हैं, 
हाँ मगर वक़्त आ गया है कि आज हम उनको बौना साबित कर रहे हैं. 
मूसा की उम्मत यहूद इल्म जदीद के हर शोबे में आसमान से तारे तोड़ रही है 
और उम्मते मुहम्मदी आसमान पर खाबों की जन्नत और दोज़ख तामीर कर रही है. 
इसके आधे सर फरोश तरक्की याफ़्ता कौमों के छोड़े हुए हतियार से खुद मुसलमानों पर निशाना साध रहे हैं 
और आधे सर फरोश इल्मी लियाक़त से दरोग फरोशी कर रहे हैं. 
*****


Tuesday 27 September 2016

बांग-ए-दरा 105


बांग ए दरा 

अल्लाह का फज़ल 

" तुझको उन लोगों का क़िस्सा तहकीक़ नहीं हुवा ?
जो अपने घरों से निकल गए थे और वह लोग हजारो थे, मौत से बचने के लिए. 
सो अल्लाह ने उन के लिए फ़रमाया कि मर जाओ, 
फिर उन को जला दिया. 
बे शक अल्लाह ताला बड़े फज़ल करने वाले हैं लोगों पर
 मगर अक्सर लोग शुक्र नहीं करते.". 
(सूरह अल्बक्र २ दूसरा पर आयत २४३) 
लीजिए अफ़साना तमाम .क्या फ़ज़ले इलाही? उस जालिम अल्लाह का यही ही जिस ने अपने बन्दों को बे यारो मददगार करके जला दिया ? ये मुहम्मद कि ज़लिमाना फ़ितरत की लाशुऊरी अक्कासी ही है जिसको वह निहायत फूहड़ ढंड से बयान करते हैं. 
मुसलमानों! खुदा के लिए जागो, 
वक्त की रफ़्तार के साथ खुद को जोडो, 
बहुत पीछे हुए जा रहे हो ,
तुम ही न बचोगे तो इस्लाम का मतलब? 
यह इसलाम, यह इस्लामी अल्लाह, यह इस्लामी पयम्बर, सब एक बड़ी साजिश हैं, 
काश समझ सको. 
इसके धंधे बाज़ सब के सब तुम्हारा इस्तेसाल (शोषण) कर रहे है. 
ये जितने बड़े रुतबे वाले, इल्म वाले, शोहरत वाले, या दौलत वाले हैं, सब के सब कल्बे स्याह, बे ज़मीर, दरोग गो और सरापा झूट हैं. 
इसलाम तस्लीम शुदा गुलामी है, 
इस से नजात हासिल करने की हिम्मत जुटाओ, 
ईमान जीने की आज़ादी है, इसे समझो और मोमिम बनो. 
*****



Monday 26 September 2016

बांग-ए-दरा 104




बांग ए दरा 

अल्लाह बन्दों से आजिज़ 

क़ुरआन में कई सूरह में आता है अल्लाह बन्दों से आजिज़ रहता है। 
अल्लाह जैसी हस्ती अपने बन्दों से आजिज़ है, 
उन लोगों से जो उसे , उसकी अन देखी सूरत और ऊँट पटाँग बातों को मानने को तैयार नहीं?
आखिर इसके लिए क्या मुंकिन नहीं है कि वह मुजस्सिम अपने बन्दों के सामने आ जाए?
और अपने वजूद का सुबूत दे,
जिन बन्दों की किस्मत में उसने जन्नत लिख रखी हैं, उनके हाथों में छलकता जाम थमा दे,
उनके लिए बैज़ा जैसी बड़ी बड़ी आँखों वाली गोरी गोरी हूरों की परेड करा दे.
क़ुरआन कहता है अल्लाह और उसके रसूल को मानो तो मरने के बाद जन्नत की पूरी फिल्म दिखलाई जाएगी,
तो इस फिल्म का ट्रेलर दिखलाना उसके लिए क्या मुश्किल खड़ी करता है,
वह ऐसा करदे तो उसके बाद कौन कमबख्त काफ़िर बचेगा?
मगर अल्लाह के लिए ये सब कर पाना मुमकिन नहीं,
अफ़सोस तुम्हारे लिए कितना आसान है, 
इस खयाली अल्लाह को बगैर सोचे विचारे मान लेते हो.
इसे जानो,
जागो! मुसलमानों जागो!



Sunday 25 September 2016

बांग-ए-दरा 103





बांग ए दरा 

तालिबानी आयत

"जेहाद करना तुम पर फ़र्ज़ कर दिया गया है 
और वह तुम को गराँ है और यह बात मुमकिन है तुम किसी अम्र को गराँ समझो और वह तुम्हारे ख़ैर में हो 
और मुमकिन है तुम किसी अम्र को मरगूब समझो और वह तुम्हारे हक में खराबी हो 
और अल्लाह सब जानने वाले हैं और तुम नहीं जानते," 
(सूरह अल्बक्र २ दूसरा पर आयत २१४)
नमाज़, रोजा, ज़कात, हज, जैसे बेसूद और मुहमिल अमल माना कि कभी न ख़त्म होने वाले अमले ख़ैर होंगे मगर ये जेहाद भी कभी न ख़त्म होने वाला अल्लाह का फरमाने अमल है 
कि जब तक ज़मीन पर एक भी गैर मुस्लिम बचे या एक भी मुस्लिम बचे? जेहाद जारी रहे बल्कि उसके बाद भी? 
मुस्लिम बनाम मुस्लिम (फिरका वार)
 बे शक. अल्लाह, उसका रसूल और कुरान अगर बर हक हैं तो उसका फ़रमान उस से जुदा नहीं हो सकता. 
सदियों बाद तालिबान, अलकायदा जैशे मुहम्मद जैसी इस की बर हक अलामतें क़ाएम हो रही हैं, तो इस की मौत भी बर हक है. 
इसलाम का यह मज्मूम बर हक, वक़्त आ गया है कि ना हक में बदल जाय. 
*****



Saturday 24 September 2016

बांग-ए-दरा 102




बांग ए दरा 
कसमें तकिया कलम 

मुसलमानों में अवाम से ले कर बडे बड़े मौलाना तक 
कसमें बहुत खाते हैं. 
खुद अल्लाह कुरान में बिला वजे कसमे खाता दिखाई देता है. 
अल्लाह कहता है वह तुम को कभी नहीं पकडेगा तुम्हारी उस बेहूदा कसमों पर जो तुम रवा रवी में खा लेते हो 
मगर हाँ जिसे दिल से खा लेते हो, 
इस पर जवाब तलबी होगी (इसे इरादी कसमें भी कहा गया है) 
फिर भी फ़िक्र की बात नहीं, वह गफूर रुर रहीम है. 
इस सिलसिले में नीचे दोनों आयतें हैं आयत २२६ के मुताबिक 
औरत से चार माह तक जिंसी राबता न रखने की अगर क़सम खा लो और उसपर कायम रहो तो तलाक यक लख्त फैसल होगा 
और इस बीच अगर मन बदल जाए या जिंसी बे क़रारी में वस्ल की नोबत आ जाए तो अल्लाह इस क़सम की जवाब तलबी नहीं करेगा. ये आयत का मुसबत पहलू है. 
*****

 ज़हरीली आयत
"निकाह मत करो काफिर औरतों के साथ जब तक कि वह मुसलमान न हो जाएँ 
और मुस्लमान चाहे लौंडी क्यूं न हो वह हजार दर्जा बेहतर है काफिर औरत से, 
गो वह तुम को अच्छी मालूम हो 
और औरतों को काफिर मर्दों के निकाह में मत दो, जब तक की वह मुसलमान न हो जाए, 
इस से बेहतर मुस्लमान गुलाम है"
(सूरह अल्बक्र २ दूसरा पर आयत 221)
हमारे मुल्क में फिरका परस्ती का जो माहौल बन गया है उसको देखते हुए दोनों क़ौमों को ज़हरीले फ़रमान की डट कर खिलाफ वर्जी करना चाहिए. 
हिदुस्तान में आपसी नफ़रत दूर करने की यही एक सूरत है कि दोनों फिरके आपस में शादी ब्याह करें ताकि नई नस्लें इस झगडे का खात्मा कर सकें. 
कितनी झूटी बात है - - - मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना. 
हम देखते हैं कि कुरआन की हर दूसरी आयत नफ़रत और बैर सिखला रही है. 
*****


Friday 23 September 2016

बांग-ए-दरा 101





बांग ए दरा 

कोई अच्छी बाते है ?

कुरान में कीडे निकलना भर मेरा मकसद नहीं है,
 बहुत सी अच्छी बातें हैं, इस पर मेरी नज़र क्यूँ नहीं जाती?"
 अक्सर ऐसे सवाल आप की नज़र के सामने मेरे खिलाफ कौधते होंगे. 
बहुत सी अच्छी बातें, बहुत ही पहले कही गई हैं, 
एक से एक अज़ीम हस्तियां और नज़रियात इसलाम से पहले इस ज़मीन पर आ चुकी हैं 
   जिसे कि कुरानी अल्लाह तसव्वुर भी नहीं कर सकता. 
अच्छी और सच्ची बातें फितरी होती हैं जिनहें आलमीं सचचाइयाँ भी कह सकते हैं. 
कुरान में कोई एक बात भी इसकी अपनी सच्चाई या इन्फरादी सदाक़त नहीं है. 
हजारों बकवास और झूट के बीच अगर किसी का कोई सच आ गया हो तो उसको कुरान का नहीं कहा जा सकता,
"माँ बाप की खिदमत करो" अगर कुरान कहता है तो इसकी अमली मिसाल श्रवण कुमार इस्लाम से सदियों पहले क़ायम कर चुका है. 
मौलाना कूप मंदूकों का मुतालिआ कुरान तक सीमित है इस लिए उनको हर बात कुरान में नज़र आती है. यही हाल अशिक्षित मुसलमानों का है. 



Thursday 22 September 2016

बांग-ए-दरा 100




बांग ए दरा 


"अल्लाह के राह में क़त्ताल करो" 

कुरआन का यही एक जुमला तमाम इंसानियत के लिए चैलेंज है, जिसे कि तालिबान नंगे हथियार लेकर दुन्या के सामने खड़े हुए हैं. 
अल्लाह की राह क्या है? 
इसे कालिमा ए शहादत" ला इलाहा इल लिल लाह, मुहम्मदुर रसूल अल्लाह" यानी 
(एक आल्लाह के सिवा कोई अल्लाह आराध्य नहीं और मुहम्मद उसके दूत हैं) 
को आंख बंद करके पढ़ लीजिए और उनकी राह पर निकल पडिए 
या जानना चाहते हैं तो किसी मदरसे के तालिब इल्म (छात्र) से अधूरी जानकारी और वहां के मौलाना से पूरी पूरी जानकारी ले लीजिए.
जो लड़के उनके हवाले होते हैं उनको खुफिया तालीम दी जाती है. मौलाना रहनुमाई करते हैं और कुरान और हदीसें इनको मंजिल तक पहंचा देते हैं. मगर ज़रा रुकिए ... 
ये सभी इन्तेहाई दर्जे धूर्त और दुष्ट लोग होते है, 
आप का हिन्दू नाम सुनत्ते ही सेकुलर पाठ खोल देंगे, 
फ़िलहाल मुझ पर ही भरोसा कर सकते हैं. 
हम जैसे सच्चों को इस्लाम मुनाफिक़ कहता है 
क्यूंकि चेतना और ज़मीर को कालिमा पहले ही खा लेता है. 
जी हाँ ! यही कालिमा इंसान को आदमी से मुसलमान बनाता है 
जो सिर्फ एक कत्ल नहीं क़त्ल का बहु वचन क़त्ताल सैकडों, हज़ारों क़त्ल करने का फ़रमान जारी करता है. यह फ़रमान किसी और का नहीं अल्लाह में बैठे मुहम्मदुर रसूल अल्लाह का होता है. 
अल्लाह तो अपने बन्दों का रोयाँ भी दुखाना नहीं चाहता होगा, अगर वह होगा तो बाप की तरह ही होगा. 
*****



Wednesday 21 September 2016

Hadeesi Hadse 428


 हदीसी हादसे

बुखारी ४४२ 

किसी ने मुहम्मद से पूछा कि क्या क़यामत के दिन हम लोग अल्लाह का दीदार कर सकते हैं? जवाब था कि क्या बगैर अब्र छाए चाँद को देखने में तुम्हें कोई शक है? लोगों कहा कहा नहीं नहीं. फिर मुहम्मद ने कहा बस क़यामत के दिन बिना शक शुबहा अल्लाह का दीदार होगा. हिदायत होगी हर गिरोह उसके साथ हो जाय जिसकी इबादत करता था, बअज़ आफ़ताब के साथ होंगे, बअज़ माहताब. बअज़ शयातीन ले साथ, अलगरज़ सिर्फ यही उम्मत मय मुनाफ़िकीन के बाकी रहेगी. इस वक़्त खुदाय तअला इनके सामने आयगा. इरशाद होगा हम तुम्हारे रब है, वह कहेगे हम पहचानते हैं. इसके बाद दोज़ख पर पुल रखा जायगा. तमाम रसूलों में जो सब से पहले इस पुल से गुजरेंगे वह मैं हूँगा. इस दिन सब रसूलों का कौल होगा "ऐ खुदा हम को सलामत रखना. ऐ खुदा हम को सलामत रखना. " दोज़ख में सादान के काँटों के मानिंद आंकड़े होंगे. अर्ज़ होगा, हाँ! 
फ़रमाया बस वह सादान के काँटों की तरह ही हैं इनके बड़े होने का मिकदार खुदा ही जनता है. 
हर एक के आमाल के मुताबिक वह खीँच लेगे - - - 
*तहरीर बेलगाम बहुत तवील है जिसे न हम झेल पा रहे है न आप ही झेल पाएँगे. इसका सारांश क्या है ? एक पागल की बड़ जो फिल बदी बकता चला जाता है. 
मुसलमान इसी में उलझे हुए हैं की ये बला है क्या ? 

बुखारी ३९५ -४०४

कठ्बैठे मुहम्मद कहते हैं "जो शख्स नमाज़ में पेश इमाम से पहले सजदे से सर उठता है, उसको इस बात का खौफ़ नहीं रहता कि खुदा उसका सर गधे के सर की तरह कर देगा ." 
*नमाज़ों की पाबंदी रखने वाला मुसलमान सजदे में पड़ा हुआ है, उसे कैसे मालूम हो कि पेश इमाम ने सर उठाया या नहीं. मगर मुहम्मदी अल्लाह सब के सरों की निगरानी करता रहता है. वह ज़ालिम दरोगा की तरह बन्दों की हरकत पर नज़र किए रहता है. इसी तरह मुहम्मद कहते हैं कि "नमाज़ों में अपनी सफ्हें सही कर लिया करो वर्ना अल्लाह तअला तुम्हारे चेहरों में मुखालफत कर देगा." 
इससे मुसलामानों को जिस कद्र जल्द हो सके पीछा छुडाएं , 
 बुखारी ३८० 
मुहम्मद ने कहा "जो शख्स सुब्ह ओ शाम जब नमाज़ के लिए जाता है तो अल्लाह उस के लिए जन्नत में तय्यारी करता है." 
*मुहम्मदी अल्लाह को कायनात की निजामत से कोई मतलब नहीं, वह ऐसे की कामों में लगा रहता कि कौन शख्स क्या कर रहा है. 

*****

बांग-ए-दरा 99


बांग ए दरा 

मुहम्मद की दीवानगी 

कितना जालिम तबा था अल्लाह का वह खुद साख्ता रसूल? 
बड़े शर्म की बात है कि आज हम उसकी उम्मत बने बैठे हैं. 
सोचें कि एक शख्स रोज़ी की तलाश में घर से निकला है, उसके छोटे छोटे बाल बच्चे और बूढे माँ बाप उसके हाथ में लटकती रिज्क़ की पोटली का इन्तेज़ार कर रहे हैं और इसको मुहम्मद के दीवाने जहाँ पाते हैं क़त्ल कर देते हैं? 
एक आम और गैर जानिबदार की ज़िन्दगी किस क़दर मुहाल कर दिया था मुहम्मद की दीवानगी ने. बेशर्म और ज़मीर फरोश ओलिमा उल्टी कलमें घिस घिस कर उस मुज्रिमे इंसानियत को मुह्सिने इंसानियत बनाए हुए हैं. 
यह क़ुरआन उसके बेरहमाना कारगुजारियों का गवाह है और शैतान ओलिमा इसे मुसलमानों को उल्टा पढा रहे हैं. 
हो सकता है कुछ धर्म इंसानों को आपस में प्यार मुहब्बत से रहना सिखलाते हों मगर उसमें इसलाम हरगिज़ नहीं हो सकता. मुहम्मद तो उन लोगों को भी क़त्ल कर देने का हुक्म देते हैं जो अपने मुस्लमान और काफिर दोनों रिश्तेदारों को निभाना चाहे. 
आज तमाम दुन्या के हर मुल्क और हर क़ौम, यहाँ तक कि कुरानी मुस्लमान भी इस्लामी दहशत गर्दी से परेशान हैं. इंसानियत की तालीम से नाबलद, कुरानी तालीम से लबरेज़ अल्कएदा और तालिबानी तंजीमों के नव जवान अल्लाह की राह में तमाम इंसानी क़द्रों पैरों तले रौंद सकते हैं, इर्तेकई जीनों को तह ओ बाला कर सकते हैं। 
सदियों से फली फूली तहजीब को कुचल सकते हैं. हजारों सालों की काविशों से इन्सान ने जो तरक्की की मीनार चुनी है, उसे वोह पल झपकते मिस्मार कर सकते हैं। इनके लिए इस ज़मीन पर खोने के लिए कुछ भी नहीं है एक नाकिस सर के सिवा, जिसके बदले में ऊपर उजरे अजीम है। इनके लिए यहाँ पाने के लिए भी कुछ नहीं है सिवाए इस के की हर सर इनके नाकिस इसलाम को कुबूल करके और इनके अल्लाह और उसके रसूल मुहम्मद के आगे सजदे में नमाज़ के वास्ते झुक जाए। इसके एवाज़ में भी इनको ऊपर जन्नतुल फिरदौस धरी हुई है, 
पुर अमन चमन में तिनके तिनके से सिरजे हुए आशियाने को इन का तूफ़ान पल भर में पामाल कर देता है।
*****



Tuesday 20 September 2016

बांग-ए-दरा 98




बांग ए दरा 

सूरतें क्या खाक में होंगी ?

मुहम्मद ने कुरआन में कुदरत की बख्शी हुई नेमतों का जिस बेढंगे पन से बयान किया है, उसका मज़ाक़ ही बनता है न कि कोई असर ज़हनों पर ग़ालिब होता हो. बे शुमार बार कहा होगा ''मफ़िस समावते वमा फ़िल अरज़े'' यानी आसमानों को (अनेक कहा है और ज़मीन को केवल एक कहा है). जब कि आसमान, कायनात न ख़त्म होने वाला एक है और उसमें ज़मीने, बे शुमार हैं. वह बतलाते हैं.
पहाड़ों को ज़मीन पर इस लिए ठोंक दिया कि तुम को लेकर ज़मीन डगमगा न. परिंदों के पेट से निकले हुए अंडे को बेजान बतलाते है और अल्लाह की शान कि उस बेजान से जान दार परिन्द निकल देता है. 
ज़मीन पर रस्ते और नहरें भी अल्लाह की तामीर बतलाते हैं. 
कश्ती और लिबासों को भी अल्लाह की दस्त कारी गर्दानते है. 
मुल्लाजी कहते हैं अल्लाह अगर अक्ल ही देता तो दस्तकारी कहाँ से आती? मुहम्मद के अन्दर मुफक्किरी या पयंबरी फ़िक्र तो छू तक नहीं गई थी कि जिसे हिकमत, मन्तिक़ या साइंस कहा जाए. 
ज़मीन कब वजूद में आई? कैसे इरतेकाई सूरतें इसको आज की शक्ल में लाईं, इन को इससे कोई लेना देना नहीं, 
बस अल्लाह ने इतना कहा'' कुन'', यानी होजा और ''फयाकून'' हो गई.
जब तक मुसलमान इस कबीलाई आसन पसंदी को ढोता रहेगा, वक़्त इसको पीछे करता जाएगा. जब तक मुसलमान मुसलमान रहेगा उसे यह कबीलाई आसन पसंदी ढोना ही पड़ेगा, जो कुरआन उसको बतलाता है. 
मुसलमानों के लिए ज़रूरी हो गया है कि वह इसे अपने सर से उठा कर दूर फेंके और खुल कर मैदान में आए.
ब्रिज नारायण चकबस्त ने दो लाइनों में पूरी मेडिकल साइंस समो दिया है।
ज़िन्दगी क्या है? अनासिर में ज़हूरे तरतीब,
मौत क्या है? इन्ही अजजा का परीशां होना।
कुरआन की सारी हिकमत, हिमाक़त के कूड़े दान में डाल देने की ज़रुरत है.
अगर ग़ालिब का यह शेर मुहम्मद की फ़िक्र को मयस्सर होता तो शायद कुरानी हिमाक़त का वजूद ही न होता - - -
सब कहाँ कुछ लाला ओ गुल में नुमायाँ हो गईं,
सूरतें क्या खाक में होंगी जो पिन्हाँ हो गईं''
*****



Monday 19 September 2016

बांग-ए-दरा 97




बांग ए दरा 

कुन फया कून 

विद्योत्मा से शिकस्त खाकर मुल्क के चार चोटी के क़ाबिल ज्ञानी पंडित वापस आ रहे थे , रास्ते में देखा एक मूरख (कालिदास) पेड़ पर चढा उसी डाल को काट रहा था जिस पर वह सवार था, उन लोगों ने उसे उतार कर उससे पूछा राज कुमारी से शादी करेगा? 
प्रस्ताव पाकर मूरख बहुत खुश हुवा। पंडितों ने उसको समझया की तुझको राज कुमारी के सामने जाकर बैठना है, उसकी बात का जवाब इशारे में देना है, जो भी चाहे इशारा कर दे। 
मूरख विद्योत्मा के सामने सजा धजा के पेश किया गया , 
विद्योत्मा से कहा गया महाराज का मौन है, जो बात चाहे संकेत में करें. 
राज कुमारी ने एक उंगली उठाई, जवाब में मूरख ने दो उँगलियाँ उठाईं. 
बहस पंडितों ने किया और विद्योत्मा हार गई। 
दर अस्ल एक उंगली से विद्योत्मा का मतलब एक परमात्मा था जिसे मूरख ने समझा वह उसकी एक आँख फोड़ देने को कह रही है. जवाबन उसने दो उंगली उठाई कि जवाब में मूरख ने राज कुमारी कि दोनों आखें फोड़ देने कि बात कही थी. जिसको पंडितों ने आत्मा और परमात्मा साबित किया. 
कुन फया  कून के इस मूर्ख काली दास की पकड़ पैगम्बरी फार्मूला है जिस पर मुस्लमान क़ौम ईमान रक्खे हुए है। 
ये दीनी ओलिमा कलीदास मूरख के पंडित हैं जो उसके आँख फोड़ने के इशारे को ही मिल्लत को पढा रहे है, दुन्या और उसकी हर शै कैसे वजूद में आई अल्लाह ने कुन फया कून कहा और सब हो गया. तालीम, तहकीक और इर्तेकई मनाजिल की कोई अहमियत और ज़रूरत नहीं. 
डर्बिन ने सब बकवास बकी है. सारे तजरबे गाह इनके आगे फ़ैल. उम्मी की उम्मत उम्मी ही रहेगी, इसके पंडे मुफ्त खोरी करते रहेंगे उम्मत को दो+दो+पॉँच पढाते रहेंगे . 
यही मुसलामानों की किस्मत है। 
अल्लाह कुन फया कून के जादू से हर काम तो कर सकता है मगर पिद्दी भर शहर मक्का के काफिरों को इस्लाम की घुट्टी नहीं पिला सकता। 
ये काएनात जिसे आप देख रहे हैं करोरो अरबो सालों के इर्तेकाई रद्दे अमल का नतीजा है, किसी के कुन फया कून कहने से नहीं बनी । 
*****



Sunday 18 September 2016

बांग-ए-दरा 96





बांग ए दरा 

मोमिन का ईमान

मोमिन और ईमान, लफ़्ज़ों और इनके मअनों को उठा कर इस्लाम ने इनकी मिटटी पिलीद कर दी है. यूँ कहा जाए तो ग़लत न होगा कि इस्लाम ने मोमिन के साथ अक़दे (निकाह) बिल जब्र कर लिया है और अपनी जाने जिगर बतला रहा है, जब कि ईमान से इस्लाम कोसों दूर है, दोनों का कोई आपस में तअल्लुक़ ही नहीं है, बल्कि बैर है. 
मोमिन की सच्चाई नीचे दर्ज है - -
१- फितरी (प्रकृतिक) सच ही ईमान है. गैर फितरी बातें बे ईमानी हैं-- जैसे हनुमान का या मुहम्मद की सवारी बुर्राक का हवा में उड़ना.
२- जो मुम्किनात में से है वह ईमान है. ''शक्कुल क़मर '' मुहम्मद ने ऊँगली के इशारे से चाँद के दो टुकड़े कर दिए, उनका सफेद झूट है.
३-जो स्वयं सिद्ध हो वह ईमान है. जैसे त्रिभुज के तीन नोकदार कोनो का योग एक सीधी रेखा. या इंद्र धनुष के सात रंगों का रंग बेरंग यानी सफेद.
४- जैसे फूल की अनदेखी शक्ल खुशबू, बदबू का अनदेखा रूप दुर्गन्ध.
५- जैसे जान लेवा जिन्स ए मुख़ालिफ़ में इश्क़ की लज्ज़त.
६- जैसे जान छिड़कने पर आमादा खूने मादरी व खूने पिदरी.
७- जैसे सच और झूट का अंजाम.
ऐसे बेशुमार इंसानी अमल और जज्बे हैं जो उसके लिए ईमान का दर्जा रखते हैं. मसलन - - - क़र्ज़ चुकाना, सुलूक का बदला, अहसान न भूलना,  
अमानत में खयानत न करना, वगैरह वगैरह।
*****

एक कुरानी मंज़र 

मदीना में मक्का के कुछ नव मुस्लिम, अपने कबीलाई खू में मुकामी लोगों के साथ साथ रह रहे हैं. रसूल के लिए दोनों को एक साथ संभालना ज़रा मुस्श्किल हो रहा है. कबीलाई पंचायतें होती रहती हैं. मुहम्मद की छुपी तौर पर मुखालिफत और बगावत होती रहती है, मुख्बिर मुहम्मद को हालात से आगाह किए रहते हैं. उनकी ख़बरें जो मुहम्मद के लिए वह्यी के काम आती हैं, 
लोग मुहम्मद के इस चाल को समझने लगे है, जिसका अंदाज़ा मुहम्मद को भी हो चुका है, मगर उनकी दबीज़ खाल पर ज़्यादा असर नहीं होता है, फिर भी शीराज़ा बिखरने का डर तो लगा ही रहता है. वह मुनाफिकों को तम्बीह करते रहते हैं मगर एहतियात के साथ.
*****




Saturday 17 September 2016

बांग-ए-दरा 95


बांग ए दरा 

ऐ ईमान वालो! 

'' ऐ ईमान वालो! जब तुम काफिरों के मुकाबिले में रू बरू हो जाओ तो इन को पीठ मत दिखलाना और जो शख्स इस वक़्त पीठ दिखलाएगा, अल्लाह के गज़ब में आ जाएगा और इसका ठिकाना दोज़ख होगा और वह बुरी जगह है. 
सो तुम ने इन को क़त्ल नहीं किया बल्कि अल्लाह ने इनको क़त्ल किया 
और आप ने नहीं फेंकी (?) , 
जिस वक़्त आप ने फेंकी थी, 
मगर अल्लाह ने फेंकी 
और ताकि मुसलामानों को अपनी तरफ से उनकी मेहनत का खूब एवज़ दे. 
अल्लाह तअला खूब सुनने वाले हैं.''
 (अल्लाह की यह फेंक अल्लाह ही जनता है )
सूरह -इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत (१५-१६-१७)

मज़ाहिब ज़्यादः तर इंसानी खून के प्यासे नज़र आते हैं ख़ास कर इस्लाम और यहूदी मज़हब. इसी पर उनकी इमारतें खड़ी हुई हैं धर्म ओ मज़हब को भोले भाले लोग इनके दुष प्रचार से इनको पवित्र समझते हैं और इनके जाल में आ जाते हैं. तमाम धार्मिक आस्थाओं का योग मेरी नज़र में एक इंसानी ज़िन्दगी से कमतर होता है. गढ़ा हुवा अल्लाह मुहम्मद की क़ातिल फ़ितरत का खुलकर मज़हिरा करता है. आज की जगी हुई दुनिया में अगर मुसलामानों के समझ में यह बात नहीं आती तो वह अपनी कब्र अपने हाथ से तैयार कर रहे हैं. कुरआन में अल्लाह फेंकता है यह कोई अरबी इस्तेलाह रही होगी मगर आप हिदी में इसे बजा तौर पर समझ लें कि अल्लाह जो फेंकता है वह दाना फेंकने की तरह है, बण्डल छोड़ने की तरह है और कहीं कहीं ज़ीट छोड़ने की तरह.

अदना , औसत और तवासुत 
मुहम्मदी अल्लाह अपनी कुरानी आयातों की खामियों की जानकारी देता है कि इन में कुछ साफ़ साफ़ हैं और यही क़ुरआन की धुरी हैं और कुछ मशकूक हैं जिनको शर पसंद पकड़ लेते हैं. इस बात की वज़ाहत आलिमान क़ुरआन यूँ करते हैं कि क़ुरआन में तीन तरह की आयतें हैं---
१- अदना (जो साफ़ साफ़ मानी रखती हैं)
२- औसत (जो अधूरा मतलब रखती हैं)
३-तवास्सुत (जो पढने वाले की समझ में न आए और जिसको अल्लाह ही बेहतर समझे।)
सवाल उठता है कि एक तरफ़ दावा है हिकमत और हिदायते नेक से भरी हुई क़ुरआन अल्लाह की अजीमुश्शान किताब है और दूसरी तरफ़ तवस्सुत और औसत की मजबूरी ? 
अल्लाह की मुज़बज़ब बातें, एहकामे इलाही में तजाद, 
हुरूफ़े मुक़त्तेआत का इस्तेमाल जो किसी मदारी के छू मंतर की तरह लगते हैं। 
दर अस्ल कुरआन कुछ भी नहीं, मुहम्मद के वजदानी कैफ़ियत में बके गए बड का एक  मज्मूआ है। इन में ही बाज़ बातें ताजाऊज़ करके बे मानी हो गईं तो उनको मुश्तबाहुल मुराद कह कर अल्लाह के सर हांडी फोड़ दिया है।
*****



बांग-ए-दरा 94



बांग ए दरा 

ईमानी झांसे 

मैं वयस्कता से पहले ईमान का मतलब लेन देन के तकाजों को ही समझता था (और आज भी सिर्फ़ इसी को समझता हूँ) 
मगर इस्लामी समझ आने के बाद मालूम हुवा कि इस्लामी ईमान का अस्ल तो कुछ और ही है, वह है 'कलमा ए शहादत', अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान रखना, 
कसमे-आम और कसमे-पुख्ता. 
इन बारीकियों को मौलाना जब समझ जाते है कि अल्लाह झूट को  कितना दर गुज़र करता है तो वह लेन देन की बेईमानी भरपूर करते हैं. 
मेरे एक दोस्त ने बतलाया कि उनके कस्बे के एक मौलाना, मस्जिद के पेश इमाम, मदरसे के मुतवल्ली क़ुरआन के आलिम, बड़े मोलवी, साथ साथ ग्राम प्रधान, रहे .
हज़रात ने कस्बे की रंडी हशमत जान का खेत पटवारी को पटा कर जीम का नुकता बदलवा कर नीचे से ऊपर करा दिया जो जान की जगह खान हो गया. हज़रात के वालिद मरहूम का नाम हशमत खान था. विरासत हशमत खान के बेटे, बड़े मोलवी साहब उमर खान की हो गई, हशमत रंडी की सिर्फ एक बेटी छम्मी थी(अभी जिंदा है), उसने उसको मोलवी के क़दमों पर लाकर डाल और कहा
" मोलवी साहब इस से रंडी पेशा न कराऊँगी , रहेम कीजिए, अल्लाह का खौफ़ खाइए - - - " मगर मोलवी का दिल न पसीजा उसका ईमान कमज़ोर नहीं था,
 बहुत मज़बूत था। 
उसके दो बेटे हैं, मेरे दोस्त बतलाते हैं दोनों डाक्टर है, और पोता कस्बे का चेयर मैन है। 
रंडी की और मदरसे की जायदादें सब काम आरही हैं. 
यह है ईमान की बरकत. 
मुसलामानों के इस ईमानी झांसे में हो सकता है गैर मुस्लिम इन से ज्यादा धोका खाते हों कि ईमान लफ्ज़ को इन से जाना जाता है.
अहद की बात आई तो तसुव्वुर कायम हुवा
 "प्राण जाए पर वचन न जाए" 
*****




Thursday 15 September 2016

बांग-ए-दरा 93




बांग ए दरा 

क़ुरआन सार 

* शराब और जुवा में बुराइयाँ हैं और अच्छइयां भी. 
*खैर और खैरात में उतना ही खर्च करो जितना आसान हो. 
* यतीमों के साथ मसलेहत की रिआयत रखना ज्यादा बेहतर है. 
*काफिर औरतों के साथ शादी मत करो भले ही लौंडी के साथ कर लो. 
*काफिर शौहर मत करो, उस से बेहतर गुलाम है. 
*हैज़ एक गन्दी चीज़ है हैज़ के आलम में बीवियों से दूर रहो. 
*मर्द का दर्जा औरत से बड़ा है. *सिर्फ दो बार तलाक़ दिया है तो बीवी को अपना लो चाहे छोड़ दो. 
*तलाक के बाद बीवी को दी हुई चीजें नहीं लेनी चाहिएं, मगर आपसी समझौता हो तो वापसी जायज़ है. जिसे दे कर औरत अपनी जन छुडा ले. 
*तीसरे तलाक़ के बाद बीवी हराम है.
*हलाला के अमल के बाद ही पहली बीवी जायज़ होगी. 
*माएँ अपनी औलाद को दो साल तक दूध पिलाएं तब तक बाप इनका ख़याल रखें. ये काम दाइयों से भी कराया जा सकता है. 
*एत्काफ़ में बीवियों के पास नहीं जाना चाहिए. 
*बेवाओं को शौहर के मौत के बाद चार महीना दस दिन निकाह के लिए रुकना चाहिए. *बेवाओं को एक साल तक घर में पनाह देना चाहिए 
*मुसलमानों को रमजान की शब् में जिमा हलाल हुवा.
वगैरह वगैरह सूरह कि खास बातें, 
इस के अलावः नाकाबिले कद्र बातें जो फुजूल कही जा सकती हैं भरी हुई हैं.
तमाम आलिमान को मोमिन का चैलेंज है.
मुसलमान आँख बंद कर के कहता है क़ुरआन में निजाम हयात (जीवन-विधान) है.

ये बात मुल्ला, मौलवी मुसलमानों के  सामने इतना दोहराते हैं कि वह सोंच भी नहीं सकता कि ये उसकी जिंदगी के साथ सब से बड़ा झूट है. ऊपर की बातों में आप तलाश कीजिए कि कौन सी इन बेहूदा बातों का आज की ज़िन्दगी से वास्ता है. इसी तरह इनकी हर हर बात में झूट का अंबार रहता है. इनसे नजात दिलाना हर मोमिन का क़स्द होना चाहिए . 
*****


Wednesday 14 September 2016

Hadeesi Hadse 227





हदीसी हादसे 

बुखारी ६५४

फतह मक्का के बाद किसी ने मुहम्मद को खबर दी की इब्ने-खतल काबे के परदे से लिपटा हुवा है. मुहम्मद ने कहा इसे क़त्ल करदो.

* इतनी सस्ती थी इंसानी जिंदगी मुहम्मद के लिए? बहुत आसान था खतल को किसी तरह आसानी से समझाया जा सकता था.
बदमाश ओलिमा कहते हैं कि मुहम्मद ने कभी अपने हाथों से किसी का क़त्ल नहीं किया.
उनकी ज़बान ही उनका हाथ थी.

बुखारी-७८५
मुहम्मद ने अबुबकर को अमीर-ए-जमाअत बना कर हज के लिए भेजा और इस हज में कहा कि एलान करना कि कोई भी मुशरिक और नंगा शख्स हज में शरीक न हो.
*कितना सितम था कि सदियों से सब को आज़ादी थी कि खाने-काबा सारी कौमों के लिए मुक़द्दस था, जोकि धीरे धीरे सब के लिए इसके दरवाजे बंद कर दिए गए, हत्ता कि शहर मक्का में भी कोई गैर मुस्लिम नहीं जा सकता.
अगर यहूदी अपने बुजुर्गों की इबादत गाह की बाज़्याबी चाहते हैं तो इसमें ग़लत क्या है?

बुखारी ७७३-
उमर ने काबा को बोसा लेते हुवे कहा
"खुदा की कसम मैं तेरा बोसा लेना हरगिज़ न गवारा करता अगर रसूल को तेरा बोसा लेते हुवे मैं ने देखा न होता. तू मिटटी और पत्थर के सिवा कुछ भी नहीं."
उमर साहब आपको 'नहीं' करना भी सीखना चाहिए था. 
आप जैसे लोगो ने इस बुत परस्ती को इस्लाम में छिपा दिया.
*काबे में संग अस्वाद को मुहम्मद इस लिए चूमते थे कि इसने इनको पैगम्बरी का ख्वाब दिखलाया. संग अस्वाद को मुहम्मद ने काबे में अपने हाथों से नस्ब किया, वह भी चल घात से. तभी तमाम उम्र उसका एहसान उतारा, वह भी चूम चाट कर.



बांग-ए-दरा 92




बांग ए दरा 

 क़ुरआन क्या है ?

सूरह अव्वल यानी सूरह फातेहा में मैंने आपको बतलाया था कि मुहम्मद खुद अपने कलाम को अल्लाह बन कर फ़रमाने की नाकाम कोशिश की, जिसे ओलिमा ने क़लम का ज़ोर दिखला कर कहा कि अल्लाह कभी अपने मुँह से बोलता है, कभी मुहम्मद के मुँह से, तो कभी बन्दे के मुँह से बोलता है. 
बोलते बोलते देखिए कि आखिर में अल्लाह की बोलती बंद हो गई, उसने सच बोलकर अपनी खुदाई के खात्मे का एलान कर दिया है.
क़ुरआन की ३० सूरतों का सिलसिला बेतुका सा है, कोई सूरह इस्लाम के वक़्त ए इब्तेदा की है तो अगली सूरह आखिर दौर की आ जाती है. बेहतर यह होता कि इसे मुरत्तब करते वक़्त मुहम्मद की तहरीक के मुताबिक इस का सिसिला होता. खैर, 
इस्लाम की तो सभी चूलें ढीली हैं, उनमें से एक यह भी है. इस खामी से एक फ़ायदा यह हुवा है कि इन आखिरी दो सूरतों में इस्लाम की वहदानियत की हवा खुद मुहम्मदी अल्लाह ने निकाल दिया है. 
अल्लाह जिब्रील के मार्फ़त जो पैगाम मुहम्मद के लिए भेजता है उसमे मुहम्मद उन तमान कुफ्र के माबूदों से पनाह माँगते है, अल्लाह की, जिसे हमेशा नकारते रहे, जिससे साबित है कि उनमें खुदाई करने का दम है. इस सूरह में अल्लाह तमाम माबूदों को पूजने का मश्विरः देता है क्यूंकि वह बीमारी से निढाल है.
मुहम्मद शदीद बीमार हो गए थे, कहते हैं कि उनका पेट फूल गया था, जिसकी वजेह थी कि कुछ यहूदिनों ने उन पर जादू टोना कर दिया था कि उनकी बजने वाली मिटटी जाम हो गई थी और उनका बजना बंद हो गया था.पिछली सूरतों में उन्होंने फ़रमाया है कि इंसान बजने वाली मिटटी का बना हुवा है) पेट इतना फूल गया था कि बोलती बंद हो गई थी. जिब्रील अलैहिस सलाम वहयी लेकर आए और मंदार्जा जेल आयतें पढनी शरू कीं, तब जाकर धीरे धीरे उनका जाम खुलने लगा, उनसे जिब्रील ने कहलवाया कि - - -
नमाज़ियो !
सूरह फ़लक और सूरह नास के बारे में वाक़िया है कि यहूदिनों ने मुहम्मद पर जादू टोना करके उनको बीमार कर दिया था, तब अल्लाह ने यह दोनों सूरतें बयक वक़्त नाजिल कीं, घर की तलाशी ली गई, एक ताँत (सूखे चमड़े की रस्सी) की डोरी मिली, जिसमे ग्यारह गाठें थीं. इसके मुकाबिले में जिब्रील ने मंदार्जा ग्यारह आयतें पढ़ीं, हर आयत पर डोरी की एक एक गाठें खुलीं, और सभी गांठें खुल जाने पर मुहम्मद चंगे हो गए.
जादू टोना को इस्लामी आलिम झूट क़रार देते हैं, जब कि इसके ताक़त के आगे रसूल अल्लाह की अमाँ चाहते हैं.
यह क़ुरआन क्या है?
राह भटके हुए मुहम्मदी अल्लाह की भूल भुलय्या ? या 
मुहम्मद की, अल्लाह का पैगम्बर बन्ने की चाहत ?

मुसलमानों!
मैं तुम्हारा और तुम्हारी नस्लों का सच्चा ख़ैर ख्वाह हूँ , इस लिए कि दुन्या की कोई कौम तुम जैसी सोई हुई नहीं है. माजी परस्ती तुम्हारा ईमान बन गया है, जब कि मुस्तकबिल पर तुम्हारे ईमान को क़ायम होना चाहिए. 
हमारी तहकीकात और हमारे तजुरबे, हमारे अभी तक के सच है, इन पर इमान लाओ. कल यह झूट भी हो सकते हैं, तब तुम्हारी नस्लें नए फिर एक बार सच पर ईमान लाएँगी, उनको इस बात पर लाकर कायम करो, और इस्लाम से नजात दिलाओ.

*****

Tuesday 13 September 2016

बांग-ए-दरा 91




बांग ए दरा 

अमरीकी प्रोफेसर सय्यद वकार अहमद हुसैनी 

अमरीकी प्रोफेसर सय्यद वकार अहमद हुसैनी कहते हैं 
"कुरान की 6226 आयातों में से 941 पानी के विज्ञानं और इंजीनयरिंग से संबध हैं, 1400 अर्थ शास्त्र से, जब कि केवल 6 रोजे से हैं और 8 हज से।"
प्रोफेसर हुसैनी का ये सफेद झूट है, या प्रोफ़सर हुसैनी ही फर्ज़ी अमरीकी प्रोफ़सर हैं, जैसा कि ये धूर्त इस्लामी विद्वान् अक्सर ऐसे शिगूफे छोड़ा करते हैं । 
कुरआन कहता है
"आसमान ज़मीन की ऐसी छत है जो बगैर खंभे के टिका हुआ है. 
ज़मीन ऐसी है कि जिस में पहाडों के खूटे ठुके हुए हैं 
ताकि यह अपनी जगह से हिले-डुले नहीं" और 
"इंसान उछलते हुए पानी से पैदा हुवा है" 
क़ुरआन में यह है इंजीनयरिंग और पानी का विज्ञान जैसी बातें। 
इसी किस्म के ज्ञान (दर अस्ल अज्ञान) से क़ुरआन अटा पडा है 
जिस पर विश्वास के कारण ही मुस्लिम समाज पिछड़ा हुवा है. 
मलऊन ओलिमा इन जेहाल्तो में माने-व्-मतलब पिरो रहे हैं. 
हकीक़त ये है कि  क़ुरआन और हदीस में इंसानी समाज के लिए बेहद हानि कारक, अंधविश्वास पूर्ण और एक गैरत मंद इंसान के लिए अपमान जनक बातें हैं, 
जिन्हें यही आलिम उल्टा समझा समझा कर मुस्लिम अवाम को गुमराह किया करते है।
*****



Monday 12 September 2016

बांग-ए-दरा 90




बांग ए दरा 

यह जहन्नुमी आलिमाने-दीन

क़यामत के दिन तमाम इस्लामी ओलिमा और आइमा को चुन चुन कर अल्लाह जब जहन्नम रसीदा कर चुकेगा तो ही उसके बाद दूसरे बड़े गुनाहगारों की सूची-तालिका अपनी हाथ में उठाएगा. यह (तथा कथित धार्मिक विद्वान) टके पर मस्जिद और कौडियों में मन्दिर ढ़ा सकते हैं। ये दरोग़, क़िज़्ब, मिथ्य और झूट के  मतलाशी, शर और पाखंड के खोजी हुवा करते हैं। 
इनकी बिरादरी में इनके गढे झूट का जो काट न कर पाए वही सब से बड़ा आलिम होता है। यह इस्लाम के अंतर गत तस्लीम शुदा इल्म के आलिम होते हैं यथार्थ से अपरिचित यानी कूप मंडूक जिसका ईमान से कोई संबंध नहीं होता। 
लफ्ज़ ईमान पर तो इस्लाम ने कब्जा कर रखा है, ईमान का इस्लामी-करण कर लिया गया है, वगरना इस्लाम का ईमान से दूर दूर तक कोई रिश्ता नहीं है। 
ईमान धर्म-कांटे का निकला हुवा सच है, इस्लाम किसी अल्प-बुद्धि की बतलाई हुई ऊल-जुलूल बातें हैं, जिसको आँख मूँद कर तस्लीम कर लेना इस्लाम है।

*****

अल्लाह ने क़ुरआन में कहा 
मुहम्मद उम्मी थे अर्थात निक्षर. तबीयतन शायर थे, मगर खुद को इस मैदान में छुपाते रहते , मंसूबा था कि जो शाइरी करूंगा वह अल्लाह  का कलाम क़ुरआन होगा . इस बात की गवाही में क़ुरआन में मिलनें वाली तथा कथित काफिरों के मुहम्मद पर किए गए व्यंग '' शायर है ना'' है. शाइरी में होनें वाली कमियों को, चाहे वह विचारों की हों, चाहे व्याकरण की, मुहम्मद अल्लाह के सर थोपते हैं. अर्थ हीन और विरोद्दाभाशी मुहम्मद की कही गई बातें ''मुश्तबाहुल मुराद '' आयतें बन जाती हैं जिसका मतलब अल्लाह बेहतर जानता है. देखें (सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयत 6+7) यह तो रहा क़ुरआन के लिए गारे हेरा में बैठ कर मुहम्मद का सोंचा गया पहला पद्य आधारित मिशन ''क़ुरआन''. 
दूसरा मिशन मुहम्मद का था गद्य आधारित. इसे वह होश हवास में बोलते थे, खुद को पैगम्बराना दर्जा देते हुए, हांलाकि यह उनकी जेहालत की बातें होतीं जिसे कठबैठी या कठ मुललाई कहा जाय तो ठीक होगा. यही मुहम्मदी ''हदीसें'' कही जाती हैं. क़ुरआन और हदीसों की बहुत सी बातें यकसाँ हैं, ज़ाहिर है एह ही शख्स के विचार हैं, 
ओलिमा-ए-दीन इसे मुसलामानों को इस तरह समझाते हैं कि अल्लाह ने क़ुरआन में कहा है जिस को हुज़ूर (मुहम्मद) ने हदीस फलाँ फलाँ में भी फरमाया है. 
अहले हदीस का भी एक बड़ा हल्का है जो मुहम्मद कि जेहालत पर कुर्बान होते हैं. शिया कहे जाने वाले मुस्लिम इससे चिढ्हते हैं.
ज़मीन हर वक़्त हिलती ही नहीं बल्कि बहुत तेज़ रफ़्तार से अपने मदारपर घूमती है. इतनी तेज़ कि जिसका तसव्वुर भी कुरानी अल्लाह नहीं कर सकता. अपने मदारपर घूमते हुए अपने 'कुल' यानी सूरज का चक्कर भी लगाती है , अल्लाह को सिर्फ यही खबर है कि ज़मीन में मुर्दे ही दफ्न हैं जिन से वह बोझल है .
तेल. गैस और दीगर मादानियात से वह बे खबर है.
क़यामत से पहले ही ज़मीन ने अपनी ख़बरें पेश कर दी है और पेश करती रहेगी मगर अल्लाह के आगे नहीं, साइंसदानों के सामने.
धर्म और मज़हब सच की ज़मीन और झूट के आसमान के दरमियाँ में मुअललक फार्मूले है.ये पायाए तकमील तक पहुँच नहीं सकते. नामुकम्मल सच और झूट के बुनियाद पर कायम मज़हब बिल आखिर गुमराहियाँ हैं. अर्ध सत्य वाले धर्म दर असल अधर्म है. इनकी शुरूआत होती है, ये फूलते फलते है, उरूज पाते है और ताक़त बन जाते है, फिर इसके बाद शुरू होता है इनका ज़वाल ये शेर से गीदड़ बन जाते है, फिर चूहे. ज़ालिम अपने अंजाम को पहुँच कर मजलूम बन जाता है. दुनया का आखीर मज़हब, मजहबे इंसानियत ही हो सकता है जिस पर तमाम कौमों को सर जड़ कर बैठने की ज़रुरत है.*****
क़ुरान कि एक आयत मुलाहिज़ा हो 
''अल्लाह की आयातों को झुटलाने वाले लोग कभी भी जन्नत में न जावेंगे जब तक कि ऊँट सूई के नाके से न निकल जाए.''
अलएराफ़ ७ -आठवाँ पारा आयत (४०)
''ऊँट सूई के नाके से निकल सकता है मगर दौलत मंद जन्नत में कभी दाखिल नहीं हो सकता''
ईसा की नकल में मुहम्मद की कितनी फूहड़ मिसाल है जहाँ अक्ल का कोई नामो निशान नहीं है. शर्म तुम को मगर नहीं आती. 
मुसलमानों तुम ही अपने अन्दर थोड़ी गैरत लाओ.ईसा कहता है - - -
''ऐ अंधे दीनी रहनुमाओं! तुम ढोंगी हो, मच्छर को तो छान कर पीते हो और ऊँट को निगल जाते हो.'' 
मुवाज़ना करें मुस्लिम अपने कठमुल्ल्ले सललललाहो अलैहे वसल्लम को शराब में तुन रहने वाले ईसा से. 
*****



Sunday 11 September 2016

बांग-ए-दरा 89




बांग ए दरा 

वज्दानी कैफ़ियत 

क़ुरआन मुहम्मद की वज्दानी कैफ़ियत में बकी हुई ऊट पटाँग बातों का ऐसा मज्मूआ ए कलाम है जिसका कुछ जंगी फ़तूहात से इस्लामी ग़लबा कायम हो जाने के बाद  इस का 
मज़ाक उड़ाना जुर्म क़रार दे दिया गया. 
जंगों से हासिल माले ग़नीमत ने इसे मुक़द्दस बना दिया. 
फ़तह मक्का के बाद तो यह उम्मी की पोथी, शरीयत बन कर मुमालिक के कानून काएदे बन्ने लगी. इसके मुजरिमीन ओलिमा ने तलवार तले अपने ज़मीरों को गिरवीं रखना शुरू किया तो 
इस मैदान में दौड़ का मुकाबला शुरू हो गया. शिकस्त खुर्दा हुक्मरानों और मजबूरो मज़लूम अवाम ने इसे तस्लीम करना शुरू कर दिया. 
फूहड़ ज़बान, मुतज़ाद बातें, वज्द की बक बक, बे वक़अत क़िस्से, गढ़े हुए वाकए, बुग्ज़ और मक्र की गुफ्तुगू, झूट की सैकड़ों अक्साम को ढकने के लिए मुहम्मद ने इसे तिलावत की किताब बना दिया न कि समझने और समझाने की.
झूट की सदाक़त यह है कि वह अपना पुख्ता सुबूत अपने पीछे छोड़ जाता है. क़ुरआन को तहरीरी शक्ल में महफूज़ करने का मुहम्मद का कोई इरादा नहीं था, यह तो याददाश्त के तौर पर सीना बसीना क़बीलाई मन्त्र तक चलते रहने का सिलसिला था जो इसकी औकात है, मगर उस्मान गनी को तब झटका लगा जब इसके हाफिज़ जंगों में मारे जाने लगे. उनको लगा कि इस तरह तो एक दिन ऐसा भी आ सकता है कि क़ुरआन को अगले सीने में मुन्तकिल करने वाला कोई मिले ही नहीं. इस तरह उन्हों ने क़ुरआन के बिखरे हुए नुस्खों को चमड़ों, छालों, पत्थर क़ी स्लेटों और कागजों पर जहाँ जैसा मिला इकठ्ठा किया. आधे से ज्यादा क़ुरआन रद्द हुवा बाक़ी मौजूदा आप के सामने है अपने झूट के हश्र को लिए खड़ा है.
*****



बांग-ए-दरा 88





बांग ए दरा 

क़ुरआन के बारे में - - - 

तौरेती और ऐतिहासिक झलकियाँ 
इंजील दो हिस्सों में तक़सीम है , पहला आदम से लेकर ईसा तक। 
इसे ओल्ड टेस्टामेंट (Old Testament )कहते हैं। 
दूसरा ईसा और ईसा के बाद का जिसे (New Testament ) कहते हैं। 
ईसाई इन दोनों हिस्से को अपनी मुक़द्दस इंजील मानते हैं मगर ,
यहूदियों का सिर्फ पहले हिस्से Old Testament पर ही ईमान है जिसे तौरेत कहते हैं। 
ईसा बज़ात ख़ुद यहूदी थे मगर बुन्याद परस्ती के बाग़ी थे , जैसे भारत में कबीर हुए।  इस लिए यहूद उनको अपने धर्म का दुश्मन मानने लगे। 
मुहम्मद का माहौल यहूदियों से ज़्यादा मुतास्सिर था , इस लिए उन्हों ने बुत परस्तों के बीच में नया मूसा बनने का तरीक़ा अपनाया , इसी लिए इस्लाम में तौरेती अंकुर हैं। इंजील से मुहम्मद काम ही वाक़िफ़ थे इस लिए क़ुरआन में ईसाइयत की झलक कम ही नज़र आते हैं। सूरह मरियम में ही मुहम्मद ने कुछ मनगढ़ंत की है। 
तौरेत 
तौरेत के मानी हैं निज़ाम अर्थात ब्यौवस्थान जो की पाँच हिस्सों में बटी हुई है - - - 
१ - पहले में सृस्टि का और इसपर बसने वाले जीवों का जन्म। 
२- दुसरे में मिस्र से यहूदियों का मिस्र से निष्काशन 
३- तीसरे हिस्से में मिस्र यदूदियों के निष्काशित होने के बाद के हालात। 
४- यहूदियों की जनसंखिया। 
५- धार्मिक रस्म व् रिवाज। 

   कहते हैं कि तौरेत मूसा का ग्रंथ है मगर यह बात पूरी तरह से सच नहीं है , क्यूंकि मूसा के बाद के हालात बज़रिए मूसा कैसे मुमकिन है ? दरअस्ल तौरेत एक ऐतिहासिक ग्रन्थ है जब भी और जिसने भी लिखी हो। 
क़ुरआन अलग अपना ही राग अलापता है कि तौरेत आसमानी किताब है जो मूसा पर उतरी है। 
झलकी नंबर १- 
ख़ुदा की कायनात साज़ी 
खुद ने पहले जन्नत बनाई फिर ज़मीन बनाई।  तब पानी बेतल था और इसके ऊपर अँधेरा था , तब ख़ुदा ने रौशनी को हुक्म दिया और रौशनी हो गई। ख़ुदा को रौशनी अच्छी लगी और उसने उसको अँधेरे से अलग कर दिया।  उजाले को दिन कहा और अँधेरे को रात।  शाम हुई फिर सुब्ह हुई , यह था पहला दिन। 
शाम हुई और फिर सुब्ह हुई , यह था दूसरा दिन।  इस दिन खुद ने ज़मीन बनाया ,फिर आसमान बनाया। 
तीसरे दिन ख़ुदा ने पानी और खुश्की बनाई।  खुश्की को तरह तरह के बीजों से हरा भरा किया यानि ज़मीन पर पेड़ पौदे हुए जिससे खाने पीने का इंतेज़ाम किया। 
चौथे दिन ख़ुदा ने सूरज बनाया ताकि दिन को रौशन किया जा सके , तारे बनाए ताकि बनाए ताकि रात को सजाया जा सके।  
पांचवें दिन ख़ुदा ने पानी की मख़लूक़ और परिंदों की रचना की और इन्हें आशीर्वाद दिया कि फलो फूलो और जल-थल में फैल जाओ। 
छटे दिन ख़ुदा ने ज़मीन पर बसने वाले चौपाए और रेंगने वाले जीव पैदा किए , इसके बाद इसने अपने शक्ल व् सूरत वाला आदमी बनाया जिसे कि जल-थल के तमाम मख़लूक़ पर ग़ालिब किया।  उसने मर्द और औरत बनाया और उनका खैर ख्वाह हुवा कि फूलो फलो और ज़मीन पर फैल जाओ। 
सातवें दिन ख़ुदा अपने बनाए हुए शाहकार पर खुश था , इस दिन इसने आराम किया और इस दिन को आराम का दिन घोषित किया। 
(क़ुरआन में ख़ुदा की इस क़ायनात सजी को मुहम्मद ने अदल-बदल कर पेश किया है ताकि उनके अल्लाह की बात मानी जाय, न कि तौरेत को कंडम किया जा सके )
*****