Tuesday 26 April 2016

Hadeesi Hadse -206


हदीसी हादसे 
बुखारी १९०
दारोग गो अनस कहता है कि " मुहम्मद एक रात में अपनी सभी बीवियों के साथ शब् बास हो सकते थे, मुहम्मद की नौ या दस बीवियां थीं. हम लोग आपस में बातें किया करते थे कि मुहम्मद को अल्लाह ने तीस मर्दों की कूवत अता फ़रमाई है"
बजाहिर मुहम्मद की नौ बीवियां थीं.  दसवी अबू सलीम कि बीवी हो सकती है. मुहम्मद अक्सर दिन में उसके घर आराम करते, सोते में वह उनके जिस्म के पसीने को शीशी में भरा करती. दसवीं बीवी का एहतेमाल अनस कर रहा है तो ज़रूर दसवीं भी रही होगी क्योंकि अनस अबू सलीम का बेटा है.
बयक वक़्त नौ दस बीवियाँ रखने वाले मुहम्मद को उनकी उम्मत बजा तौर पर सांड तसव्वुर करती रही होगी.
 
बुखारी २०८
रंगीले रसूल के पास एक पुर मज़ाक़ औरत आई और माहवारी के बाद गुस्ल का तरीक़ा दर्याफ़्त किया. मुहम्मद ने कहा आम गुस्ल की तरह ही गुस्ल करो, अलबत्ता मुकाम मखसूस में मुश्क के फाए से सफाई कर लिया करो . उसने पूछा कैसे?
मुहम्मद ने कहा, वाह अब ये भी मैं बतलाऊँ. तब आयशा ने इसे खींच कर समझाया.

बुखारी २१८
वहशी अबू-बक्र
सफ़र में मुहम्मद ने ऐसी जगह रुकने का हुक्म दिया जहाँ पानी दस्तयाब न था. खुद तो आयश कि ज़ान्गों को तकिया बना के सो गए, बाकी लोग वज़ू के लिए पानी तलाश करने लगे. ऐसे में आयशा का हाथ अपने गले में गया तो उनका हार नदारद था. पानी के साथ हार को तलाशने का भी मुआमला जुड़ गया, इसी वक़्त अबू बक्र झल्लाए हुए आए और आयशा की कोख पर घूंसे बरसाने लगे.
आयशा कहती हैं कि "मेरी रानों पर रसूल सर रख्खे हुए सो रहे थे, अबू बक्र ने निहायत इताब के आलम में मुझ से फ़रमाया कि रसूले-खुदा ने ऐसे मुकाम पर ठहराया है कि जहाँ पानी का नाम नहीं और लोगों के हमराह भी पानी नहीं. अबू बक्र ने गुस्से के आलम में मेरी कोख में घूंसे लगाना शुरू कर दिया . चूँकि रसूल का सर मेरी रान पर था जिसकी वजेह से मैं कोई हरकत न कर सकी थी वर्ना खुदा ही जनता है कि जो उस वक़्त मुझे तकलीफ थी ."
मुहम्मद जब सुब्ह सो कर उठे तो उन पर तयम्मुम की आयत नाज़िल हुई.
बेटी आयशा की कोख में घूसों की बरसात पर शायद ये बरकत थी कि वज़ू का मसला हल हो गया जैसे कि हसीद बिन हुज़ैर कहने लगे "ऐ आले अबू बक्र यह तुम्हारी पहली बरकत नहीं बल्कि इस से पहले तुम्हारी ज़ात से बहुत सी बरकतें नाज़िल हो चुकी हैं."
आयशा कहती हैं कि हमने अपने ऊँट को उठाया तो इसके नीचे हर पड़ा हुवा था.

अबू बक्र के कई वाक़िए है जो उनकी वहशत के नमूने हैं. बेटी कि मरम्मत में वज़ू की आयत नाज़िल हुई, हसीद बिन हुज़ैर जैसे जाहिल मुहम्मद के हमराह हुआ करते थे.

Wednesday 20 April 2016

Hadeesi hadse 205


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हदीसी हादसे 

बुखारी २१९
मुहम्मद कहते हैं पांच चीजें मुझको ऐसी अता की गईं कि मुझ से पहले किसी रसूल को न अता हुईं . . .
१-मुझ में ऐसा रोब पैदा किया गया (जो किसी और में न था)
*मुहम्मद अपने ज़माने के सब से बड़े गुंडे थे. जिससे ज़माना डरा करता था. दुन्या में मुसलामानों की तादाद मुहम्मदी जरायम की परछाईं है.

२-तमाम ज़मीन को मेरे लिए सजदा गाह बना दिया गया. गर पानी न हो तो तयम्मुम से पाक होना.
*हर हुक्मरान के लिए सारी ज़मीन सजदा गाह होती है. अलबत्ता तयम्मुम ने मुसलमानो के लिए गंदगी फैला दिया है कि बगैर नहाए धोए वह हफ़्तों पाक रहता है.

३- माले-गनीमत मुझ पर हलाल कर दिया गया जो हम से पहले सब पर हराम हुवा करता था.
*माले-गनीमत मुहम्मद के सिवा किसी कौम के हुक्मराँ ने हलाल न क़रार दिया. हमेशा किसी जायज़ हुक्मराँ के लिए ये हराम रहा है. चोर, डाकू और लुटेरों को इस कुकर्म की सजा मुक़ररार होती है. इस गलाज़त को मुहम्मद ने हलाल करार देकर दुन्या के तमाम मुसलमानों को गलाज़त ख़ोर बना दिया है.
जज़्या और माले-गनीमत ईजाद करने वाले अल्लाह के रसूल के दामन पर लगा हुवा एक बद नुमा दाग है. अच्छा है कि ये दूसरी कौमों के लिए हराम है.
४- मुझको शिफाअत अता की गई.
*आप की हदीसें गवाह हैं कि आप कितने बड़े मसीहा हैं. पाक साफ़ खाने और पानी में थूक कर आप मसीहाई करते थे. ईसा मसीह की नकल में मसीहा भी बन गए.

५- मैं तमाम आलम के लिए नबी मुक़र्रर किया गया जब कि इससे पहले अपनी अपनी कौमों के लिए नबी हुआ करते थे.
*कुरान में नबियों की झूटी कहानी गढ़ गढ़ के खुद को नुमायाँ करते हो. मूसा और दाऊद के सिवा कोई न हुवा जो कि यहूदियों के लिए लूटमार करते थे,
तमाम सच्चे नबी आलमे-इंसानियत की नबूवत करते थे
 
बुखारी १००
अबू हरीरा कहते हैं मुहम्मद से उन्हों ने दो इल्म हासिल किए थे जिसमें एक को मैं ज़ाहिर कर चुका हूँ, दूसरा मैं ज़ाहिर करूँ तो मेरी ज़बान काट ली जाए.
*अबू हरीरा मुहम्मद के बहुत क़रीब थे कि दूसरे इल्म को ज़ाहिर नहीं कर रहे. गालिबन वह इल्म "इल्मे-सदाक़त" होगा जो कि मुहम्म्द ने उन से बतलाया होगा,इल्म सदाक़त यह कि मैं झूठा हूँ और मेरा अल्लाह मुकम्मल तौर पर झूठा है.

बुखारी १३३
अव्वल दर्जे के झूठे सहाबी अनस कहते हैं कि "एक दिन वज़ू के लिए पानी मयस्सर न था, काफ़ी तलाश के बाद भी न मिला तो मुहम्म्द ने एक बर्तन तलब किया और उस पर हाथ रख दिया फिर आवाज़ दी कि आओ जिनको वजू करना है. झूठा अनस कहता है कि उसने देखा कि मुहम्म्द की उँगलियों से पानी की धार निकल रहा था."
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Wednesday 13 April 2016

Hadeesi Hadse 204




बुखारी १७०
"किसी क़बीले के चंद लोग मुहम्मद के पास आए जो पेट के मरज़ में मुब्तिला थे, चारा गरी की दरख्वास्त की. मुहम्मद उन्हें अपने ऊंटों वाले फार्म हॉउस के लिए भेज दिया कि यह लोग वहां ऊंटों के दूध और पेशाब पीते रहने से तंदरुस्त हो जाएँगे.  क़बीले के लोगों ने इस पर अमल किया और कुछ दिनों बाद ठीक भी हो गए. ठीक होने के बाद उन लोगों की नियत वहाँ के ऊंटों पर खराब हो गई और फॉर्म हॉउस के मुहाफ़िज़ को मार के सारे ऊंटों को लेकर फ़रार हो गए. इसकी खबर जब मुहम्मद को मिली तो उन्हों ने तेज़ रफ़्तार ऊँट सवारों को उनके पीछे दौड़ाया.
वह सभी पकड़ लिए गए और उनको मुहम्मद से सामने पेश किया गया. मुहम्मद ने इनके साथ जो बर्ताव किया, इबरत की हदों को पर कर गया. उन्हों ने उनके हाथों और पैरों को पहले कटवाया फिर गरम शीशा उनकी आँखों में डाल कर पहाड़ों के नीचे खाईं में  फिकवा दिया. इस दौरान मुजरिम पानी पानी चिल्लाते रहे, उनको पानी न दिया. "
ये था मुहम्मद का ज़ालिमाना बर्ताव जिन्हें मुसलमान सरवरे कायनात कहते हैं और मुह्सिने-इंसानियत.
सज़ाए मौत माना कि जायज़ थी मगर मौत से पहले मुजरिम की आखरी ख्वाहिस पूछना तो दर किनार, हाथ पैर काटना, आँखों में पिघला हुवा शीशा पिलाना और उनकी हलक़ को पानी से महरूम रख कर पहाड़ी की ऊँचाइयों से खाईं में फिकवाना , क्या यही पैगम्बरी शान थी? 
मुहम्मेद बहुत ही ज़ालिम इंसान थे जिनके डर से मुसलमान आज भी दहला हुवा है.

बुखारी १७३
मुहम्मद का फरमान है कि जो शख्स जिहाद करते हुए अल्लाह की राह में ज़ख़्मी होता है, क़यामत के दिन अपना ज़ख्म ताज़ा पाएगा जिसमे से मुश्क की खुशबू  आ रही होगी."
मुहम्मद जंग, गारत गारी और बरबरियत के लिए हर हर हरबे इस्तेमाल करने की नई नई चालें ईजाद करते, चाहे उसमें बेवकूफी ही क्यूँ न नज़र आए. ज़ख़्मी शख्स ज़ख्म से परीशान और रुसवा-ए-ज़माना क़यामत के रोज़ ज़ख्म को ढ़ोता रहे, अपने ज़ख्म से मुश्क की खुशबू उड़ाते हुए .

बुखारी १७५
मुन्ताकिम मुहम्मद के पैगाम्बराना मिज़ाज इस वाक़िए से लगाया जा सकता है कि मुहम्मद कितने अज़ीम या कितने कम ज़र्फ़ हस्ती थे, मफ्रूज़ा मोह्सिने-इंसानियत.
मुहम्मद खाना-काबा में मसरूफ इबादत थे कि अबू जेहल और उसके साथियों ने ऊँट की ओझडी उन पर लाद दी. मुहम्मद ने बाद नमाज़ उन नामाकूलों के लिए बद दुआ दी. ये वाकिया शुरूआती दौर इस्लाम का है.


जंगे-बदर में इन नमाकूलो को मुहम्मद ने चुन चुन कर मौत के घाट उतरा. इनकी लाशों को तीन दिनों तक सड़ने दिया, उनको एक एक का नाम लेकर बदर के कुवें में फ़िक्वाया २०-२२ लाशों से उस जिंदा कुवें को पाटा. उस वक़्त अरब का वह कुवाँ अवाम के लिए कीमती था ?और सभी मकतूल मुहम्मद के अज़ीज़ और अकारिब थे.


Wednesday 6 April 2016

Hadeesi Hadse 203



हदीसी हादसे 92
बुखारी ५३
"एक शक्स मुहम्मद के पास इस्लाम क़ुबूल करने के किए आया, मुहम्मद ने शर्त लगाई कि तुम्हें मुसलमानों का खैर ख्वाह रहना होगा."
*इस्लाम इंसान को तअस्सुबी बनाता है. तअस्सुबी फ़र्द कभी ईमान दार नहीं हो सकता और न ही मुंसिफ.

बुखारी ५५
"मुहम्मद नमाज़ से पहले वजू (मुंह, हाथ और पैर धोना) करने में एडियों को चीर कर न धोने वाले नमाजियों को आगाह करते है कि इस सूरत में एडिया दोज़ख में डाल दी जाएंगी"
*मुहम्मदी अल्लाह की बातों को सर आँख पर रख कर जीने वालों को कभी कभी जिंदगी दूभर हो जाती है. दिन में पाँच बार वज़ू करना और उसमें पैरों की बेवाई को चीर चीर कर धोने जैसे सैकड़ों नियम हैं जिनकी पाबन्दी न करने पर जन्नत हराम हो जाती है.
नई और बेहतर ज़िन्दगी मुसलमानों को जीते जी हराम सी होती है.

बुखारी ५८
मुहम्मद ने एक बार अपना ख़त कसरा (ईरान के बादशाह) को भेजा जिसे पढ़ कर उसने ख़त के टुकड़े टुकड़े करके हवा में उड़ा दिया. एलची से इसकी खबर मिलने के बाद मुहम्मद ने बाद दुआ देते हुए कहा इसके टुकड़े टुकड़े मेरे ख़त की तरह कर दिए जाएँ.

बुखारी ७६
एक दिन मुहम्मद की बड़ी साली इस्मा मुहम्मद के घर गईं, देखा मियाँ बीवी दोनों नमाज़ में लगे थे. इस्मा ने बहन आयशा से पूछा क्या बात है, दोनों नमाज़ों में लगे हुए हो, कोई खास बात है? क़यामत तो नहीं आने वाली? और इस्मा भी नमाज़ पढने लगीं .
मुहम्मद नमाज़ से फारिग हुए और इस्मा से कहने लगे.
"मुझे वह्यी नाजिल हुई है कि कब्र में जब मुर्दा रखा  जाएगा तो  उस से सवाल होगा ...
" तू मुहम्मदुर-रसूल्लिलाह के बारे में क्या जानता है ?"
मुर्दा अगर कहेगा " वह एक सच्चे अल्लाह के रसूल थे, हमारे पास अल्लाह का पैगाम लेकर आए थे." वह जन्नत में जाएगा
और अगर कहेगा " नहीं मैं नहीं जानता" तो जहन्नम रसीदा होगा.
*मुहम्मद के ज़मीर में कितनी गन्दगी थी कि किसी लान्हे अपनी खुद नुमाई से न चूकते.

बुखारी ९०
झूटों के पुतले मुहम्मद कहते हैं कि "जो उन पर झूट बांधेगा वह दोज़ख में अपना मकान बनाएगा."
*अभी तक अल्लाह ही गैर मुअत्बर है वह पूरी तरह से दुन्या में ज़ाहिर नहीं हुवा तो उसका रसूल होने कि बात ही मुहम्मद को मुजस्सम झूट साबित करता है. उसके बाद बचता क्या है?

बुखारी ९५
मुहम्मद कहते हैं "जो औरतें यहाँ दुन्या में उम्दः लिबास पहनती हैं वह क़यामत में उरयाँ होंगी"

*कठ मुल्ला की बातें! गोया जो इस दुन्या में मामूली लिबास पहनेगी, वह क़यामत में सुर्ख़ रू होगी. और जो लिबास से ही मुबररा होंगी उनको क़यामत में उम्दः लिबासों में देखा जाएगा . मुहम्मदी फार्मूला तो यही कहता है.

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