Tuesday 28 August 2012

Hadeesi Hadse 55



पक्का मुसलमान

पक्का मुसलमान कभी ज़मीर में घुस कर एक सच्चा इन्सान नहीं हो सकता. उसकी कमजोरी है इस्लाम. इस्लाम इसकी इजाज़त ही नहीं देता की अपने दिल की अपने ज़मीर का कहना मनो. बड़े बड़े साहिबे कलम देखे कि सच्चाई का तकाज़ा जहाँ होता है वह इस्लाम और मुसलामानों के तरफ़दार हो जाते हैं. आजकल आसाम और म्यामनार की चर्चा हिंदुस्तान की सियासत में कुछ ज़्यादः ही है. दुन्या भर के मुस्लिम सहाफ़ी मसलमानों का रोना रो रहे हैं, जब कि ग़लती न ही ग़ैर मुस्लिमों की है, न मुस्लिमों की, ग़लती इस्लाम मज़हब की है जो कि मुस्लिमों को अपनी डेढ़ ईंट की मस्जिद कायम रखने के लिए मजबूर है, जोकि इस्लाम की तश्हीर और तबलीग के लिए मजबूर कर रही है. अगर मुकामी बन्दे इस ज़हर से नावाकिफ़ है तो बैरूनी तबलीगी इस ज़हर से उनको सींचते रहते हैं. इस्लाम का तकाज़ा है कि दारुल हरम के वफ़ादार रहो और दारुल हरब की ग़द्दारी लाज़िम है. इन हालात में दारुल हरब उनको कैसे और क्यों बर्दाश्त करे
हमें अपनी ज़िन्दगी अपने तौर पर जीना है या आपके गैर फितरी मशविरे के मुताबिक? कि नमाज़ पढो, रोज़े रक्खो, खैरात करो अल्लाह को अनेक शक्लों में मत बांटो, सिर्फ़ एक मेरी बतलाई हुई शक्ल में तस्लीम करो, वर्ना मरने को बाद दोज़ख तुम्हारे लिए धरी हुई है. यह बातें दुन्या की दरोग़ तरीन बातों में शामिल हैं जो मुस्लिम क़लम के गले में अटकी हुई हैं.
मुसलामानों को इस्लाम से ख़ारिज होकर ईमान की बात करने की ज़रुरत है जिसे कि ये ईमान फरोश ओलिमा होने नहीं देंगे. इनका ज़रीआ मुआश है इस्लाम और उसकी दलाली.


अब देखिए की इस्लामी हदीसें क्या क्या बकती हैं - - -

बुखारी ९७७
मुहम्मद कहते हैं कि अगर किसी लौंडी के ज़िना  कराने का इल्म उसके आक़ा  को हो जायउसे सिर्फ समझाने  बुझाने  की किफ़ायत  करे बल्कि कोड़े से उसकी खबर लेऔर अगर दोबारा वह ज़िना करे तो भी कोड़े बरसाए , तीसरी बार अगर ज़िना करे तो उसको किसी के हाथ एक बाल की रस्सी के एवज़ बेच दे.  
*ऐमन से लेकर मारया के साथ दर्जनों लौंडियों से खुद ज़िना कारी के मुजरिम मुहम्मद किस मुंह से दूसरे को कोड़े की सजा तजवीज़ करते हैं.           
                              
बुखारी ९५९
आयशा ने अपने शौहर मुहम्मद के लिए एक तोशक खरीदी जिस पर बेल बूटे और परिंदों की तस्वीरें थींकि उनको तोहफा देंगेमुहम्मद उसे देख कर कबीदा खातिरहुएकहा कि क़यामत के रोज़ इन तस्वीरों में जान डालना पड़ेगाआयशा  की खुशियाँ काफूर हो गईं.
*पूरे मुस्लिम कौम की खुशियाँ इस हदीस से महरूम हैं.कि तस्वीर बनाना और घरों में सजाना गुनाह समझते हैं.

बुखारी ९६२
मुहम्मद ने अपनी बीवी आयशा से कहा एक रोज़ कोई लश्कर आएगा कि काबा पर चढ़ाई करने की नियत रख्खेगामुकाम बैदा में ज़मीन में धंस जाएगाआयशा नेपूछा क्या वह लोग भी धंस जाएँगे जिनकी नियत जंग की  होगीतिजारत की होगी?
*मुहम्मद का जवाब गोल मॉल थाकहा कि क़यामत के दिन सबको उनकी नियत  नेक या नियत  बद के हिसाब से उठाया जाएगा

बुखारी ९६3 
बाज़ार में मुहम्मद को छेड़ते हुए एक शख्स ने उनके पीछे से आवाज़ दी "अबू कासिम !"
मुहम्मद ने गर्दन मोड़ कर पीछे देखा तो आवाज़ देने वाले ने कहा " मैं ने आप को नहीं बुलायाकोई और है."
मुहम्मद ने कहा "मेरा नाम रखा जा सकता है, मेरी कुन्नियत नहीं."
* मुहम्मद की कद्रो-कीमत ऐसी थी कि लोग राह चलते उन्हें छेड़ते.

बुखारी ९४१
मुहम्मद की बीवी खदीजा ने अपने शौहर से पूछा कि लोग गोश्त हमें भेज देते हैपता नहीं हलाल होता भी है मुहम्मद ने कहा बिस्मिल्लाह करके खा लिया करो.
*मगर आजका मुसलमान ग़ैर हलाल गोश्त को किसी हाल में नहीं खायगा,भले शराब गले तक पी ले.     
                     
बुखारी ९४६
मुहम्मद कहते है कि अपने हाथ की कमाई हुई रोज़ी ही सब से बढ़ कर हैआगे कहते हैं कि दाऊद खुद मशक्क़त की रोज़ी कमाते थे.
*पहली बात तो ठीक है मगर दाऊद एक लुटेरा डाकू से बादशाह बन गयाआप जनाब इसकी हकीकत से नावाकिफ़ हैं.बस उड़ाते हैं.

बुखारी ९५६
सहाबी जाबिर कहता है कि एक जिहाद के बाद मैं मुहम्मद के साथ घर वापस हो रहा थामुहम्मद ने पूछा कि शादी कर लिया है?
मैंने कहा हाँ,
कहा कुंवारी से या ब्याहता से?
मैं ने कहा ब्याहता से 
कहने लगे कुंवारी से किया होतातुम उसके साथ खेलतेवह तुमहारे साथ खेलती.
*इसी वजेह से इन्हें रंगीला रसूल कहा जाता हैऔर ओलिमा इन्हें बेवाओं का मसीहा बतलाते हैं.

 बुखारी ९४०
बड़े भाई इतबा ने छोटे भाई साद को वसीहत की थी कि ज़िमा की लौड़ी का बच्चा मेरे नुतफे से है,जब वह पैदा हो तो तुम उसे ले लेना
फ़तेह मक्का में इतबा मारे गए और लौंडी ने बच्चा जना
गोया साद उसको लेने पहुंचे.
ज़िमा के बेटे ने बच्चे को देने से इनकार कर दिया और दलील दी कि बच्चा मेरा भाई है क्योंकि मेरे बाप की मातहती में पैदा हुवा हैं इस लिए मेरा हुवा
मुआमला मुहम्मद तक पहुँच तो उन्हों ने कहा
 बच्चा इब्ने ज़िमा का है हलाकि बच्चे की मुशाबिहत इतबा से मिल रही थी
कहा ज़ानी के लिए तो पत्थर है.
*मुहम्मद अपने मुआमले को भूल गए जब लौड़ी मार्या से बेटा इब्राहीम पैदा हुवा और एलान्या उसे अपनी औलाद कहा और उसका अकीक़ा भी किया.
कहते हैं हम अल्लाह के रसूल ठहरे,  इस लिए मेरे सारे गुनाह मुआफऐसे ढीठ थे तुमहारे पैगम्बर
 मुसलमानों!

बुखारी ९०४
मुहम्मद ने दौरान सफ़र देखा कि एक जगह लोगों का अजदहाम हैमुआमला जानना चाहालोगों ने बतलाया कि एक रोज़ेदार पर लोग साया किए हुए हैंउन्हों ने कहा सफ़र में रोज़ा कोई नेक काम नहीं हैअपनी जन को हलाक़त में मत डालो.

बुखारी ८९८

एक शख्स आया और मुहम्मद से कहा 
मैं तो मर गयारोज़े के आलम में बीवी के साथ मुबाश्रत कर बैठा
मुहम्मद ने उससे पूछा तुम दो गुलाम आज़ाद कर सकते हो
कहा नहीं
पूछा दो महीने रोज़े रख सकते हो
बोला नहीं.
फिर पूछा ६० मोहताजों को खाना खिला सकते होबोला नहीं.
इसी दौरान एक थैला सदक़े का खजूर कोई ले आयामुहम्मद ने थैला किसी को थमाते हुए कहा ये लो सदक़ा गरीबों में तकसीम करदो
वह बोला या रसूल अल्लाह मुझ से बड़ा गरीब मदीने में कोई नहीं
मुहम्मद मुस्कुरा पड़े और उसे दे दिया कि लो अपने बच्चों को खिलाओ.
*ऐसी भी हुवा करती थी मुहम्मदी उम्मत .
 

जीम. मोमिन 

Tuesday 21 August 2012

Hadeesi Hadse-49


बुखारी ९००
रमजान का महीना था, मुहम्मद ऊँट पर सफ़र में थे अपने साथी को हुक्म दिया उतरो मेरे लिए सत्तू बनाओ, उसने कहा अभी रोज़ा अफ्तार का वक़्त नहीं हुवा है.
कुछ देर बाद फिर उससे अपनी बात दोहराई,
उसने फिर कहा अभी वक़्त नहीं हुवा है.
कुछ देर बाद मुहम्मद ने फिर कहा उतरो मेरे लिए सत्तू बनाओ.
वह उतरा और सत्तू बना कर दे दिया.
मुहम्मद खा पी कर फारिग़ हुए तो कहा जब रात  पच्छिम की तरफ़ से आ जाए तो समझ लो रोज़े का वक़्त आ गया.
जहाँ खुद मुहम्मद इतने लिबरल हैं वहीँ मुसलमान उनके मानने वाले इतने सख्त क्यों होते हैं? उनकी जान पर बन जाय मगर रोज़ा वक़्त से पहले न खोलेगे.
इसी तरह पहले हदीस आ चुकी है की मुहम्मद ने आयशा से कहा गोश्त को हराम हलाल मत देखो और बिस्मिल्ला करके खा लिया करो.

बुखारी ८८३ -८४-८५-८६-८७-88


मुहम्मदी अल्लाह कहता है जो शख्स रमज़ान के महीने में झूट बोलना और झूट पर अमल करना न छोड़ सके, वह खाना पीना भी न छोड़े.

*सिर्फ रमज़ान के महीने में क्यूँ झूट पर पाबन्दी हो? १२हो महीने क्यों न हो ? हदीस से लोगों को रमज़ान के आलावा बाकी महीना झूट की छूट है?

मुहम्मद कहते है रमज़ान के महीने में सब काम इन्सान का उसके लिए है. सिर्फ रोज़ा अल्लाह के लिए. माहे- रमज़ान में दो खुशियाँ ही रोज़्दार  को मुयस्सर हैं, पहली अफ़्तार है, दूसरी अल्लाह से मुलाक़ात होगी.
*ज़ालिम जाबिर अल्लाह से मिलने पर ख़ुशी होगी या खौफ?

अल्लाह के झूठे पयम्बर कहते हैं जो शख्स निकाह करने की ताक़त रखता हो, निकाह करले जो निकाह की ताक़त नहीं रखता वोह रोज़ा रख्खे. रोज़ा इसके वास्ते ऐसा है जैसे खस्सी (बधिया) होना.

* मुहम्मद के इस बात में भी उनकी जेहालत छिपी है. मुस्लमान या खस्सी हो जाय और रोज़े रखे या फिर निकाह करले ताकि रोज़ा से नजात हो.

खुद मुहम्मद तस्लीम करते हैं की हम उम्मी लोग क्या जाने कि महीना कभी उनतीस का होता है तो कभी तीस का.
*जिब्रील अलैहिस्सलाम वे इतनी तवील कुरान याद करा दी, बस बारह अदद महीने के दिन ही न याद करा सके.

मुहम्मद ने रमजान के महीने में बीवियों के पास न जाने की क़सम खाली मगर जिन्स के भूके पयम्बर २९वेन दिन ही किसी बीवी के पास पहुंचे. उसने पूछा कि अप ने तो एक महीने की क़सम खा रक्खी है? बोले महीना क्या उनतीस दिन का नहीं होता?
*जिन्स बेकाबू हो रहा था.



मुहम्मद खुद एतराफ़ करते हैं कि हम उम्मी लोग क्या जाने महीना कभी तीस दिन का होता है तो कभी उनतीस दिन का.

*जिब्रील ने हज़रत को पूरा कुरआन याद करा दिया और बारह महीने में आने वाले दिन न शिख्ला सके.

बुखारी ८७८-79


मुहम्मद कहते हैं कि रोज़े की हालत में लड़ाई झगडा और मूहा चाई मना है, अगर इसका सामना हो जाए तो कहो मेरा रोज़ा है, दोबारा कहो मेरा रोज़ा है.

*अगर सामने वाला मारने मरने पर उतर आए?

इसक कोई जवाब मुहम्मद के पास नहीं है.


रोज़े दारों के मुंह से अक्सर बदबू आती है. बदबू ऐसी कि उनके साथ बात करना भी मुहक्ल हो जाता है. 
मुहम्मदी अल्लाह को यह बदबू मुश्क की मानिंद लगती है.


मुहम्मद कहते हैं कि रोज़े दारों को मखसूस जन्नातियों के दरवाजे से दाखिला होगाशयातीन जकड दिए  जाते है.

*मुसलमानों! जागो तुम उन्नीसवीं सदी में हो. तुहारा मजाक उड़ाया जाता है.

बुखारी 868


मफरूज़ा अल्लाह के खुद साख्ता रसूल कहते है की ईमान मदीने में ऐसा समिट कर आएगा जैसे साँप अपने सूराख में सिमट कर जाता है.

*अनजाने में मुहम्मद ठीक ही कह गए हैं कि इस्लाम का ज़हर इंसानियत के लिए ज़हर ही है. ये ज़हर दुन्या में मदीने से फैला है, मदीन में नेश्त  नाबूद होकर बिल में दफ़्न हो जाएगा.

बुखारी ८६९-७०-७१-७२


मुहम्मद ने मक्के से भागकर पैगम्बरी की शुरुआत मदीना से किया. मदीने के बारे में बहुत सी आएं बाएँ शायं बका है. कभी कहते हैं मदीना एक दिन वहशी जानवरों का मरकज़ हो जाएगा तो कभी कहते हैं कि मदीने वालों को धोका देने वाले नमक की तरह पिघल जाएँगे.

कहते है फ़रिश्ते इसके मुहाफ़िज़ हैदज्जाल और ताऊन इसमें दाखिल नहीं हो सकते.
फ़िलहाल यहूदियों से मदीना बच जाए तो बहुत है.
बुखारी ६५४

फतह मक्का के बाद किसी ने मुहम्मद को खबर दी की इब्ने-खतल काबे के परदे से लिपटा हुवा है. मुहम्मद ने कहा इसे क़त्ल करदो.


* इतनी सस्ती थी इंसानी जिंदगी मुहम्मद के लिए? बहुत आसान था खतल को किसी तरह आसानी से समझाया जा सकता था.

बदमाश ओलिमा कहते हैं कि मुहम्मद ने कभी अपने हाथों से किसी का क़त्ल नहीं किया.

उनकी ज़बान ही उनका हाथ थी.


जीम. मोमिन 

Tuesday 14 August 2012

Hadeesi Hadse 48


बुखारी-७८५
मुहम्मद ने अबुबकर को अमीर-ए-जमाअत बना कर हज के लिए भेजा और इस हज में कहा कि एलान करना कि कोई भी मुशरिक और नंगा शख्स हज में शरीक न हो.
*कितना सितम था कि सदियों से सब को आज़ादी थी कि खाने-काबा सारी कौमों के लिए मुक़द्दस था, जोकि धीरे धीरे सब के लिए इसके दरवाजे बंद कर दिए गए, हत्ता कि शहर मक्का में भी कोई गैर मुस्लिम नहीं जा सकता.
अगर यहूदी अपने बुजुर्गों की इबादत गाह की बाज़्याबी चाहते हैं तो इसमें ग़लत क्या है?

बुखारी ७७३- 
उमर ने काबा को बोसा लेते हुवे कहा 
"खुदा की कसम मैं तेरा बोसा लेना हरगिज़ न गवारा करता अगर रसूल को तेरा बोसा लेते हुवे मैं ने देखा न होता. तू मिटटी और पत्थर के सिवा कुछ भी नहीं." 
उमर साहब आपको 'नहीं' करना भी सीखना चाहिए था. आप जैसे लोगो ने इस बुत परस्ती को इस्लाम में छिपा दिया. 
*काबे में संग अस्वाद को मुहम्मद इस लिए चूमते थे कि इसने इनको पैगम्बरी का ख्वाब दिखलाया. संग अस्वाद को मुहम्मद ने काबे में अपने हाथों से नस्ब किया, वह भी चल घात से. तभी तमाम उम्र उसका एहसान उतारा, वह भी चूम चाट कर. 

बुखारी ७७४- ७७५- 
मुहम्मद बुत भरे काबा में गए, गोया बुत खाना में गए. लोगों ने उनसे दरयाफ्त किया, वह इंकार कर गए. यानी सरीहन झूट बोले.लोगों ने उनके झूट को नज़र कर दिया. 
खानाए-काबा में ३६० बुत थे जोकि उस वक़्त की दुन्या की तमाम तहजीबों की अलामतें थीं. इब्राहीम और इस्माईल की तस्वीरे राम की तरह तीर ओ कमान की थीं, जिससे ज़ाहिर है कि वह लोग उस से शिकार करते थे. मुहम्मद ने उन सभी को हटा दिया था, उसके बाद काबे में दाखिल होकर हवाई बुत की नमाज़ें पढ़ीं. 

बुखारी ७७६-७७-७८-७९-८० 
फतह मक्का के बाद जब मुस्लिम हज शुरू हुवा तो मुहम्मद ने लोगों को कहा कि काबे की पहली तीन तवाफे फातेह की तरह अकड कर किया करें, खुद भी वह अकड कर चलते थे. बाद में लोगों को ये किब्रयाई रास न आई और उनका हुक्म ज़ायल हो गया. 

बुखारी ७१३-१४ 
सैकड़ों हदीसें ज़कात ओ खैरात और सदके की हैं, वह वक़्त का तक़ाज़ा रहा होगा. उनमें से ही एक हदीस जो मुझे जमी, है कि 
"तुम में से किसी शख्स का रस्सी लेकर जंगल जाना और लकड़ी लाद कर लाना बेहतर रोज़ी हैं कि तुम कोई चीज़ तलब करो और ज़बान खली जाए."
बुखारी ७१५-
हकीम इब्ने-हुज्ज़ाम ने एक बार मुहम्मद से कुछ तलब किया जिसे मुहम्मद ने उन्हें दे दिया. दोबारा फिर तलब किया, फिर दे दिया, मगर देने के बाद उनको इसका आदि न होने का सबक इस तरह से दिया कि  उसके बाद हकीम साहब ने मरते दम तक किसी से कुछ तलब न किया, यहाँ तक कि अबू बकर और उमर  का दौर आया और उन लोगों ने उन्हें इमदाद करनी चाही मगर उनकी गैरत कायम रही.

 बुखारी ६७३- 
मुहम्मद का इन्तेक़ाल हो गया तो अहले अरब आज़ाद हो गए, उनके ज़हनों से खौफ़ जाता रहा और वह अपने आबाई मज़हब की तरफ रागिब होने लगे. अबूबकर और उमर इस बाबत बहस करते रहे. बकर ने उनसे (काफिरों से)जिहाद की ठानी मगर उमर इस पर राज़ी न हुए कि जिसने "लाइलाहा इल्लिल्लाह " पढ़ लिया वह हमारी तरफ़ से महफ़ूज़ हो गया. बकर ने कहा खुदा की क़सम जिसने मुहम्मद को एक बकरी का बच्चा भी दिया हो, वह हमें क्यूं न देगा. 
* इस तरह दोनों में खिंचाव इशारा करता है कि इस्लामी तहरीक का ईमान था लूट पट. उमर की हिकमते-अमली से इस्लाम बच गया वर्ना मुहम्मद के बाद ही यह फितना एक फ़साना बन कर रह जाता. 

बुखारी ६७४ 
मुहम्मद क़यामती पुडिया खोलते हुए बकते हैं कि ऊँट क़यामत के दिन इतने मोटे और भारी जिस्म के हो जाएँगे कि अपने मालकों को पैरों से रौदेगे और बकरियां इतनी फ़रबा हो जाएंगी कि अपने खुरों से पालने  वालों से इन्तेकाम लेंगी. 
* मज़ीद बकवास इसी हदीस में खुद पढ़ें.
 
बुखारी ४७५ 
मुहम्मद कहते हैं जिस शख्स ने अल्लाह की राह में माल न दिया होगा और ज़कात अदा न किया होगा, इसके सामने चार आँखों वाला गंजा अजदहा लाया जायगा, उसके दोनों कल्लों में झाग भरी होगी और वह उसके गले में दाल दिया जाएगा. उसके दोनों जबड़े फाड़ते ही वह कहेगा, मैं तेरा मॉल हूँ, जिसे तूने अल्लाह की राह में खर्च न किया. 
*अल्लाह का कोई हाथ नहीं है जिससे वह ज़कात वसूले जैसा कि मुहम्मद जंगों में लूट के मॉल में से २०% अल्लाह के नाम से ऐंठते थे और २०% उसके रसूल के नाम से वसूलते थे.उनकी नस्लें उनके बाद हसन, यजीद और माविया ही तरह बड़ी बड़ी रियासतों के मालिक हो गए थे.
 आगा खान, सय्य्दना जैसे मालदार आजतक चले आ रहे हैं. 


जीम. मोमिन 

Tuesday 7 August 2012

Hadeesi Hadse 47


बुखारी ६५७-५८ 
मुहम्मद एक बार जंगे-बदर के कुँए क़लीब से गुज़रे तो अपने ही मरे हुए रिश्ते दारों को, जिन्हें उन्हों ने जंग के बाद कुँए में फिकवाया था, मुखातिब करके कहा 
"तुमने अपने रब के वादे को सच्चा पाया?" 
लोगों ने कहा आप मुर्दों से बातें करते हैं, 
"जवाब था खुदा की क़सम! ये तुमसे ज्यादह सुनते हैं." 
मुहम्मद खुद अपनी उम्मत में वहम फैलाते थे, जिसको ओलिमा गुनाह बतलाते हैं. खुद उनकी बीवी आयशा इसकी तरदीद करती हैं. 

बुखारी ६५९ -६६०-६१-६२ 
मुहम्मद शाम के वक़्त अपने घर में घुसे कि एक धमाके की आवाज़ सुनी, कहा - - -
" कब्र में यहूदियों पर अज़ाब नाजिल हो रहा है." 
*मुहम्मद हर मौके पर कोई न कोई मन गढ़ंत कायम करते थे जिसे लोग उनके गलबा की वजह से बर्दाश्त करते थे. सितम ये है कि इस्लामी आलिम इसे अकीदे और सच्चाई में पिरोते हैं. 

बुखारी ६३ 
मुहम्मद कहते हैं कि उनका ( नाजायज़) बेटा इब्राहीम मरा तो जन्नत में उन्होंने उसके लिए दूध पिलाने वाली दाई मुक़र्रर किया. 
*दुनया में उनका बस न चला तो रोने लगे और जन्नत पर इतना क़ब्ज़ा है कि बेटे के लिए दाइयां मुक़र्रर करते फिर रहे हैं. 
ऐ खबीस की औलादो! आलिमान दीन !! क्या कहते हो? 

बुखारी ६६५ 
मुहम्मद नमाज़ से फारिग होने के बाद लोगों से पूछा करते थे कि अगर उन्होंने कोई ख़्वाब देखा हो कि वह उसकी ताबीर बतला दें. रोज़ की उनकी बकवास सुनते सुनते लोग बेजार हो गए तो एक दिन ऐसा आया कि किसी ने कोई ख्वाब ही नहीं देखा. इस पर मुहम्मद ने कहा मैं ने एक ख़्वाब देखा सुनो - - - 
1-मैंने देखा कि एक मुक़द्दस ज़मीन की तरफ़ मुझे ले जाया गया, ले जाने वाले दो थे. मैं ने देखा कि एक शख्स हाथ में ज़मबूर लिए दूसरे का कल्ला चीर रहा था, ज़म्बूर मुंह से निकलते ही उसका कल्ला सालिम हो जाता तब वह डूसरे गलफरे को चीरता है . . .
पूछा माजरा क्या है? 
दोनों ने कहा आगे चलो. 
२- आगे मैं ने देखा कि एक चित लेटे आदमी पर दूसरा पत्थर मारता है कि सर फट जाता है, वह पत्थर उठाने जाता है कि उसका सर फिर से सलिम हो जाता है. 
मैंने माजरा जानना चाह तो कहा आगे चलो. 
३-आगे मैंने देखा कि दो मर्द और औरत नंगे एक तंदूर में जल रहे हैं. तंदूर जब उफनता है तो दोनों ऊपर तक आ जाते हैं मगर बाहर नहीं निकल पाते और फिर नीचे चले जाते हैं. मैंने माजरा जानना चाहा तो कहा आगे चलो. 
४- आगे मैंने देखा कि एक शख्स नहर में फंसा हुवा है और नहर के दोनों कनारे पर दो लोग पत्थर लिए खड़े हैं. वह एक कनारे पर निकलने को जाता है तो उस पर पहला पथराव करता है और दूसरे कनारे पर जाता है तो दूसरा उस पर पथराव कर के वापस कर देता है. मैंने उन से इसका माजरा पूछा तो वह लोग मुझे एक शानदार बाग में ले गए जिसमे एक बूढा बैठा था और बाग में एक आली शान माकन था ,फिर दूसरा माकन था, जिसमें बच्चे जवान और बूढ़े बकसरत भरे हुए है, मेरे तजस्सुस पर उन दोनों ने कहा 
१- पहला जिसका कल्ला चीरा जा रहा था वह झूटी बातों की खबर फैलता था .
२- दूसरा जिसे ज़ख़्मी किया जा रह था, वह कुरान पाकर भी उसकी तिलावत नहीं करता था.
३- जिन जोड़े को आपने तंदूर में देखा, वह दोनों ज़िना कार थे. 
४-जो शख्स नाहर में फंसा था वह सूद खोर था.
इन चरों को क़यामत तक यूं ही सज़ा जरी रहेगी.
बाग में बैठे ज़ईफ हज़रात इब्राहीम अलेहिस सलाम थे. 
मकानों में उनके जन्नती औलादें थीं और दूसरे में शहीद ए जिहाद थे.
बाद में दोनों ने बतलाया हम लोग जिब्रील और मीकाईल हैं.
उन्हों ने ऊपर अब्र पर इशारा करके बतलाया कि ऊपर आप का मकान है, 
मैने कहा तो मुझे मेरे माकन ले चलो तो उन लोगों ने कहा अभी नहीं अभी आपकी उम्र बाकी है.
यह हदीस मुहम्मद की मन गढ़ंत है. सबसे पहले इनका क़ल्ला चीरा जाना था, मगर मोहताज अवाम की इतनी हिम्मत कहाँ कि वह झूठे पैगाबर के खिलाफ लब कुशाई करते .
बल्कि इन चारो सज़ाओं के मुजरिम खुद मुहमद होते हैं. 
अपने बहू के साथ ज़िना करते, बेटे ने देख लिया था, फिर उसे बगैर निकाह के ज़िन्दगी भर रखैल बना कर रखा, जिसकी तबलीग ओलिमा उनके हक़ में करते रहे, ये उनकी मजबूरी है कि मुसलमान यही सुनना चाहते है.
इतना बड़ा ख्वाब जो दूसरे दिन इस तरह बयान किया जय? इसकी पेश बंदी बतलाती है कि यह दिन में मुहम्मद ने खुली आँखों से देखा. 
मुसलमानों! 
क्या तुम कहाँ हो, क्या तुम्हारा रहनुमा इतना झूठा हो सकता है? 



जीम. मोमिन 

Saturday 4 August 2012

Hadeesi hadse 46




बुखारी 649
उमर के बेटे अब्दुल्ला कहते हैं कि एक रोज़ मुहम्मद, उमर इब्ने सय्याद की तरफ चले. बनू मुगाला के पास इसको बच्चों में खेलता हुवा पाया जो बालिग होने के क़रीब हो चुका था. इसको मुहम्मद के आने की खबर हुई, जब मुहम्मद ने इसे हाथ से थपका तो इसको पता चला. मुहम्मद ने कहा
"तू इस बात की गवाही देता है कि मैं अल्लाह का रसूल हूँ ?"
 इसने मुहम्मद की तरफ देख कर कहा कि
"हाँ! मैं इस बात की गवाही देता हूँ कि आप जाहिलों के रसूल हैं."
 इसके बाद वह कहने लगा कि
"क्या आप इस बात की गवाही देते हैं कि अल्लाह का रसूल हूँ?"
 मुहम्मद ने उसके सवाल पर कन्नी काटी और कहा,
"मैं अल्लाह के सभी बर हक रसूलों पर ईमान रखता हूँ."
 फिर मुहम्मद ने उससे दरयाफ्त किया
"तुझको क्या मालूम होता है?"
उसने कहा "मुझको झूटी और सच्ची दोनों तरह की ख़बरें मालूम होती हैं."
मुहम्मद ने कहा तुझ पर मुआमला मखलूत हो गया है"
फिर कहा "मैं ने तुझ से पूछने के लिए एक बात पोशीदा रक्खी है?"
उसने कहा "वह दुख़ है."
मुहम्मद ने कहा "दूर हो तू अपने मर्तबे से हरगिज़ तजाउज़ नहीं कर सकेगा."
उमर ने कहा
"या रसूल लिल्लाह अगर इजाज़त हो तो मैं इसे क़त्ल कर दूं?"
मुहम्मद ने कहा "अगर ये वही दज्जाल है तो तुम इसके क़त्ल पर क़ादिर  नहीं हो सकते, और अगर ये दज्जाल नहीं तो इसको मारने से क्या हासिल?"
राहे-फ़रार के सिवा मुहम्मद को कोई राह न मिली.
इब्ने सय्याद का नाम एसाफ़ था.
*शाबाश " एसाफ़ " तू अपने वक़्त का हीरो था, जिसे मुहम्मद को उनकी हक़ीक़त  समझा दी.
तुझको मोमिन सलाम करता है.

बुखारी६४९
मुहम्मद के चाचा अबू तालिब का जब वक़्त आखीर आया तो मुहम्मद उनको देखने गए. वहां पर उनके दूसरे चचा अबू जेहल और कुछ लोगों को मौजूद पाया. मुहम्मद ने कहा,
" चाचा! कहो ला इलाहा इल्लिल्लाह, इस कलिमे से मैं खुदा के सामने तुम्हारी गवाही दूंगा."
इस पर अबू जेहल और ईद इब्न उम्मीद ने कहा, "
"अबू तालिब क्या तुम अपने बाप अबू मुत्तलिब के दीन से मुन्हरिफ़ हो रहे हो?"
अबू तालिब ने कहा,
"मैं अपने बाप अबू मुततालिब के दीन पर क़ायम हूँ."
इस पर मुहम्मद ने कहा
"खुदा की क़सम मैं तुम्हारे लिए मग्फ़िरत की दुआ करता रहूँगा"
अबू तालिब ने मुहम्मद को पाला पोसा और तमाम उम्र मुहम्मद के सर परस्त राहे. उन्हें भी अपनी झूटी पैगम्बरी की दावत दी. 
दूसरी तरफ मुहम्मद ने अपनी उम्मत को मना किया है कि अपने काफ़िर रिश्ते दारों के लिए मग्फ़िरत की दुआ मत किया करो. हर जगह मुहम्मद दोगले साबित हुए हैं.

बुखारी६५०
मुहम्मद किसी जनाज़े में शरीक थे कि  ज़मीन पर बैठ गए, दूसरे लोग  भी इनके गिर्द बैठ गए. लोगों ने देखा कि वह अपनी छड़ी से ज़मीन पर कुछ नक्श कर रहे थे, कहा,
"लोगो! तुम में हर फ़र्द  की हक में दोज़ख और जन्नत मुक़द्दर में लिखी हुई है."
किसी ने कहा
"अगर ऐसा ही है तो आमाल की ज़रुरत कैसी? जब पहले ही मुक़द्दर लिख दिया गया है."
कहा "जो शख्स फ़रमा बरदार है उसके किए फ़रमा बरदारी और नाफ़रमान  के लिए नाफ़रमानी के अमल आसान कर दिए गए हैं."
सवाल उठता है इस में शिकायत का अज़ाला कहाँ है? बात वहीँ पर कायम है. बहुत से लोगों को मुहम्मद के जवाब पर सवाल करने की हिम्मत थी. अल्लाह उनके लिए अमल आसन क्यों कर देता है? पैदा होते ही पेट से अगर फ़र्द पर दोज़ख और जन्नत लिख दी गई है तो यह इंसान के साथ अल्लाह की बे ईमानी है और हेह धर्मी है.
फ़र्द तो बे कुसूर है.

बुखारी ६५१-५२-५३
इस्लामी फार्मूला है कि बन्दों की किस्मत अल्लाह हमल में ही लिख देता है,
फिर बन्दे के आमाल क्यों दर्ज किए जाते हैं?
इस मौज़ू  पर ओलिमा तरह तरह की दलील गढ़ते हैं.
अल्लाह कहता है कि जिस तदबीर से बन्दा खुद कशी करता है उसी तरकीब से अल्लाह जहन्नम में उसको अज़ीयत पहुंचाएगा. मसलन किसी बन्दे ने फाँसी लगा कर खुद कशी की है तो जहन्नम में उसे फँसी की अज़ीयत नाक मौत का सिलसिला चलता रहेगा वह भी हमेशा, मौत तो दोज़ख में है ही नहीं.  
जीम. मोमिन