Wednesday 30 March 2016

Hadeesi Hadse 202


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हदीसी  हादसे 

बुखारी नम्बर -१४-१६ 
"महम्मद कहते हैं कि कोई शख्स तब तक मुसलमान नहीं हो सकता जब तक मुझे अपने मान-बाप और औलाद से भी ज्यादा न चाहता हो".
मुहम्मद निर्मल बाबा से भी चार क़दम आगे हैं. आम मुसलमान मुहम्मद के नाम पर जान भी दे सकता है और जान ले भी सकता है. ये बात दुन्या औए खुद आलम-इस्लाम के लिए ज़हर है. मुहम्मद कितने खुद पसंद और महत्वा-कांक्ष साबित हुए. 

बुखारी नम्बर -१९ 
"मुहम्मद कहते हैं कि वह वक़्त आएगा कि लोगों का बेहतरीन माल बकरियाँ होंगी. वह इनको लेकर जंगलों और पहाड़ों पर घूमता फिरेगा ताकि उसका इमान बचा रहे."
मुहम्मद को बकरियां बहुत पसंद थीं. वह इनके बाड़ों में अक्सर नमाज़ें पढ़ा करते. किस क़द्र बद ज़ौक थे? उनके कपड़ों से हमेशा बोक्राहिंद आती थी. 

बुखारी नम्बर -२४ 
"मुहम्मद कहते हैं कि हमें लोगों से उस वक़्त तक जिहाद करनी चाहिए जब तक वह ला इलाहा इल्लिलाह मुहम्मदुर रसूल लिल्लाह न कह दें और नमाज़ व् ज़कात अदा न करने लगें और जब वह इन उमूर को अदा करने लगें तो वह मेरी जानिब से महफूज़ हुए. उनका हिसाब अल्लाह तअला करेगा."
दुश्मने-इसानियत कहते है कि जब तक लोग उनको अल्लाह का दूत न मान लें, उनसे जंग करते रहो . यही मुहम्मदी इस्लाम आ असली चेहरा है. इस पर अमल कर रहे हैं तालिबान. 
मुहम्मद को अपना रसूल मानने वाले ही इस वक़्त उनके एहकाम के कायल हैं इनको जवाबन क्या आज इस समाज और इस मुल्क में रहने का हक मिलना चाहिए? मुसलमान देश के कानून का नाजायज़ फ़ायदा उठा रहे हैं . जम्हूरियत मुसलमानों पर हराम कर देना चाहिए अगर वह नए सिरे से इस्लाम को न समझे.

बुखारी नम्बर -२५ 
"मुहम्मद से दरयाफ्त किया गया कौन सा अमल अफज़ल हैं?
फ़रमाया अल्लाह और रसूल पर ईमान लाना.
इसके बाद ?दूसरा सवाल था.
अल्लाह की राह में जिहाद करना .
तीसरा अमल ? सवाल था.
फ़रमाया हज खालिस" .
कुरआन और हदीसों में सैकड़ों बार दोहराया गया है कि जेहाद करो यानी लड़ो मारो और मरो, खूने-इंसानी बहाओ और लूट मार करके लोगों से
 माले-गनीमत हासिल करो. जिहाद के नए मअनी आज के मक्कार ओलिमा ने लफज़ी तकरार से "जिहद करना" बतला रहे हैं. अर्थात कोशिश करना , जूझना , यत्न करना.
जिहद शब्द एक वचन है और इसका बहुवचन होता है. जिहाद  करना यानि जद्दो-जिहद और जिहाद इस्लामी इस्तेलाह में मज़हबी जंग अर्थात धर्म युद्ध. 
सिर्फ इस्लाम ऐसा धर्म है जो लूट मर को पुन्य कार्य समझता है
बुखारी नम्बर -२६ 
"एक हदीस में रवायत है कि मुहम्मद कुछ लोगों को मॉल तकसीम कर रहे थे कि उनमे से एक को छोड़ दिया . इस पर इनके साथी विकास ने कहा , या रालूलल्लाह इसको क्यूं छोड़ दिया? जो कि मेरे नज़दीक सब से ज्यादह ईमान वाला मोमिन है. मुहम्मद ने कहा ये मत कहो कि अच्छा मोमिन है ये कहो कि सबसे अच्छा मुस्लिम है. कुछ देर खामोश रहने के बाद फिर विकास ने कहा या रालूलल्लाह वह मेरे नज़दीक इन सब में ज्यादह ईमान वाला मोमिन है. रसूल ने कहा ये न कहो कि तुम उसे मोमिन जानते हो , ये कहो कि मुस्लिम जानते हो नमाज़ रोज़े के साथ उसके ईमान को तो सिर्फ अल्लाह  ही जनता है........" 
मोमिन और मुस्लिम का फर्क यहाँ मुहम्मद साफ़ साफ़ बयान कर रहे हैं. 
इसी बात को मैं बार बार दोहराता हूँ कि कुछ बनना है तो इमान दार  मोमिन बनो, मुस्लिम बनना बहुत आसान है.मोमिन बन जाने के बाद मुस्लिम बनना गुनेह गारी है. 
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Wednesday 23 March 2016

Hadeesi Hadse 201



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हदीसी हादसे ९० 
बुखारी नम्बर -८ 
इस्लाम के पांच एहकाम १-कलमाए-वदनियत २-नमाज़ ३-ज़कात ४- रोज़ा ५-हज 
यह तमान एहकाम ग़ैर तामीरी हैं.
बुखारी नम्बर -९-१३ 
इन सब में इस्लाम मुसलमानों को तअस्सुबी बनता है मुसलमानों को पक्षपात की तालीम देता है जिसके सबब मुसलमान कभी इन्साफ की बात नहीं कर सकता. 
बुखारी नम्बर -१४-१६ 
महम्मद कहते हैं कि कोई शख्स तब तक मुसलमान नहीं हो सकता जब तक मुझे अपने मान-बाप और औलाद से भी ज्यादा न चाहता हो.
मुहम्मद निर्मल बाबा से भी आगे हैं. आम मुसलमान मुहम्मद के नाम पर जान भी दे सकता है और जान ले भी सकता है. ये बात दुन्या औए खुद आलम-इस्लाम के लिए ज़हर है. मुहम्मद कितने खुद पसंद और महत्वा-कांक्ष साबित हुए. 
बुखारी नम्बर -२५
मुहम्मद से दरयाफ्त किया गया कौन सा अमल अफज़ल हैं?
फ़रमाया अल्लाह और रसूल पर ईमान लाना.
इसके बाद?
दूसरा सवाल था.
अल्लाह की राह में जिहाद करना .
तीसरा अमल ?
सवाल था.
फ़रमाया हज खालिस .
कुरआन और हदीसों में सैकड़ों बार दोहराया गया है कि जेहाद करो यानी लड़ो मारो और मरो,
खूने-इंसानी बहाओ और लूट मार करके लोगों माले-गनीमत हासिल करो. जिहाद के नए मअनी आज के मक्कार ओलिमा ने लफज़ी तकरार से "जिहद करना" बतला रहे हैं. जिहद शब्द एक वचन है और इसका बहुवचन होता है.जिहाद. जिहद करना यानि जद्दो-जिहद और जिहाद इस्लामी इस्तेलाह में मज़हबी जंग अर्थात धर्म युद्ध.
सिर्फ इस्लाम ऐसा धर्म है जो लूट मर को पुन्य कार्य समझता है.
बुखारी नम्बर -२६
एक हदीस में रवायत है कि मुहम्मद कुछ लोगों को मॉल तकसीम कर रहे थे कि उनमे से एक को छोड़ दिया. इस पर इनके साथी विकास ने कहा, या रालूलल्लाह इसको क्यूं छोड़ दिया? जो कि मेरे नज़दीक सब से ज्यादह ईमान वाला मोमिन है. मुहम्मद ने कहा ये मत कहो कि अच्छा मोमिन है ये कहो कि सबसे अच्छा मुस्लिम है. कुछ देर खामोश रहने के बाद फिर विकास ने कहा
या रालूलल्लाह वह मेरे नज़दीक इन सब में ज्यादह ईमान वाला मोमिन है. रसूल ने कहा ये न कहो कि तुम उसे मोमिन जानते हो, ये कहो कि मुस्लिम जानते हो नमाज़ रोज़े के साथ उसके ईमान को तो सिर्फ अल्लाह ही जनता है........
मोमिन और मुस्लिम का फर्क यहाँ मुहम्मद साफ़ साफ़ बयान कर रहे हैं.
इसी बात को मैं बार बार दोहराता हूँ कि कुछ बनना है तो ईमान दार मोमिन बनो, मुस्लिम बनना बहुत आसान है. मोमिन बन जाने के बाद मुस्लिम बनना गुनेह गारी है.
इस बात को मुहम्मद अपनी दीगर हदीसों के खिलाफ कह गए हैं.
  



Wednesday 16 March 2016

Hadeesi Hadse 200



मुहम्मद ने जब पैगम्बरी का एलान किया था तो मक्का वासियों ने इनमें दिमागी ख़लल समझा. इसी रिआयत से इनका मज़ाक़ बना, मगर जब यह हदें पार करने लगे और लोगों  के माबूद (पूज्य) का अपमान करने लगे तो इन्हें हदों में रहने की चेतावनी मिलने लगी. इनके चचा और दादा समाज के बा-असर लोग हुवा करते थे इस लिए ये बचते रहे वर्ना मुहम्मद का काम तमाम कर दिया जाता. 
एक वाकिया इसी दौर का है कि मुहम्मद एक गली से गुज़रते तो एक यहूदी औरत इनसे नफ़रत के सबब इन पर घर का कूड़ा फेक दिया करती. एक रोज़ कूड़ा उन पर नहीं आया तो उसका दरवाज़ा खटखटाया कि आज कूड़ा क्यूं  नहीं आया? मालूम हुवा की उसकी तबयत ख़राब हो गई है, गोया इसे लोगों ने मुहम्मद का पुरसा बना दिया और फ़तह मक्का के बाद इस वाकिए को तूल देते देते इतना बढ़ा दिया कि उन्हें "मोह्सिने-इंसानियत" बना दिया गया. मुहम्मद की इस इकलौती नेकी के बाद उनकी इंसानियत के हक़ में की गई बदियों का सिलसिला फ़तह मक्का के बाद जब शुरू हुवा तो मुहम्मद दुश्मने-इंसानियत का निशान बन गए. 
इसी सिलसिले को हम आगे मुसलमानों के लिए पेश कर रहे हैं ताकि मुसलमान हकीकत को जानें और मानें . . . .    
फतह मक्का के बाद मुहम्मद का गलबा इतना बढ़ गया था कि उनके मुंह की निकली हुई बात कुरान और हदीस बनने लगीं. नव मुस्लिम लश्कर चारों तरफ़ जुल्म, बरबरियत और गनीमत का खेल खेलती थीं और मुहम्मद अपने चारों खलीफाओं के साथ मदीने में इस्लामी केंद्र बना कर लोगों क़ी आज़ादी के साथ खिलवाड़ करते रहे.
दुश्मने-इंसानियत का सिलसिला पेश है . इससे मुसलमानों की आँखें शायद खोल सकें - - - -  

बुखारी नम्बर -३ 
मुहम्मद की पोती नुमा बीवी आयशा कहती हैं कि मुहम्मद पर वह्यी की शुरुआत इस तरह हुई कि मुहम्मद को ख़्वाब नज़र आते शब् को, जो कि सुब्ह रोज़ -रौशन की तरह  नमूदार हो जाते . . . .
पिछली वह्यी देखें कि मियाँ बीवी के बयान में इख्तेलाफ़ है जो आपस में दोनों को झूठा साबित करते हैं.
आगे कहती हैं इसके बाद मुहम्मद तन्हाई पसंद हो गए और गारे-हिरा में यकसूई और तन्हाई पसंद फ़रमाई और पूरी पूरी रात इबादत करने लगे. वह जितने दिनों के लिए ग़ार  में जाते उतने दिनों का खाना साथ ले जाते, जब खाना ख़त्म हो जाता ,फिर आकर ले जाते .
जो अल्लाह मुहम्मद के कान वह्यियों से भरता था, क्या उनका पेट खाने से नहीं भर सकता था? अल्लाह के लिए क्या मुश्किल था. कुन-फयाकूं भर की देर थी.
आगे कहती हैं कि इसी सूरत में वह्यिँ  आत्ती रहतीं कि एक दिन फ़रिश्ता मुहम्मद पर ग़ालिब होते हुए कहने लगा " पढ़!" मुहम्मद ने कहा इससे मैं पढ़ा लिखा नहीं हूँ, फिर उसने उनको दबोच कर कहा कि पढ़! मुहम्मद का उज्र वही था. तीसरी बार कहा किमैं नाख्वान्दः (निरक्षर) हूँ
 फिर फ़रिश्ता उनको चिम्टाते हुए कहा कि "पढ़, इक्रा बिस्म रब्बेकल लज़ी खलकः खलकः मिन अलकिंन्सान मिन अलक  . . . .
गौर तलब है कि घामड़  फ़रिश्ता मुहम्मद को बिना किसी किताब को सामने रख्खे हुए, ज़ोर डाल रहा था कि पढ़! बेचारे पूछ न पाए कि बिना सामने कोई तहरीर रख्खे हुए मुझ से क्या पढवाने को कह रहा है? बस कहते रहे कि मैं अनपढ़ हूँ. 
मुहम्मद ने इस वाकिए को गढ़ने में भी जिहालत की कि , फ़रिश्ते को कहना चाहिए , कह " इकरा बिस्म रब्बेकल लज़ी खलकः खलकः मिन अलकिंन्सान मिन अलक  . . . .  तब कहीं बात बनती.
आगे कहती हैं कि मुहम्मद हौले कांपते हुए घर आए और जोरू माता खदीजा से कहा मुझको जल्दी से चादर उढाओ, उनसे तमाम वक़ेआ बयान किया. खदीजा अपने अंधे ईसाई भाई विरका इब्न नोफिल के पास मुहम्मद को ले गई, जिसने इन्हें सुन कर मूसा जैसी अलामत बतलाई कि वह फ़रिश्ता जिब्रील है, हज़रत को देश निकला मिलेगा इसके बाद पैगम्बरी.
तहरीर बनावटी  है जिसमे साबित होता है कि मुहम्मद की चापलूसी में लिखी गई है 


Wednesday 9 March 2016

Hadeesi Hadse 199



दुश्मने-इंसानियत 
बुखारी नम्बर -१
मुहम्मद कहते है "आमाल का दारो-मदार नियत पर है जो शख्स जैसी नियत करेगा , वैसी जज़ा पाएगा . जिस शख्स की हिजरत दुन्या हासिल करने या किसी औरत से निकाह करने की नियत से होगी तो इसको यही चीज़ें हासिल होंगी (और बस)'
"जैसी नियत वैसी बरकत" कहावत की भद्द पीटते हुए  इसे मुहम्मद अपना रंग दे रहे हैं. जाहिर है तरके-वतन फर्द  दुन्या हासिल करने की नियत से ही करता है ताकि उसकी बदहाली दूर हो, यहाँ पर औरत हासिल  करने की नियत बे मौक़ा और बेमहल है. मुहम्मद की नियत हमेशा औरत पर रही है इस लिए उसको भी मंजिले-मक़सूद बना लिया है. मुहम्मद ने कभी औरत को इंसान का दर्जा दिया ही नहीं.
 क्या औरत हिजरत की नियत  नहीं कर सकती? तब इसके लिए मर्द हासिल करना मुहम्मद कहेंगे ?
बुखारी नम्बर -२ 
मुहम्मद से हारिश इब्न हुशशाम (जिनका नाम मुहम्मद ने अबू-जहल कर दिया था)  ने पूछा की उन पर वह्यी किस तरह नाज़िल हुवा करती है? 
बोले . . . कभी इस तरह आती है कि घंटी की तरह आवाज़ सुनाई देती है, लेकिन ऐसी वह्यी मुझ पर गराँ गुज़रती है. जब वह हालत दूर हो जाती है तो खुदाए- तअला  का फरमान होता है, मैं इसे महफूज़ कर लेता हूँ . कभी ऐसा होता है कि फ़रिश्ता मुझ पर बशक्ल इन्सान नाज़िल होता है और मैं उससे हमकलाम होकर अल्लाह तअला के फरमान याद कर लेता हूँ. 
मुहम्मद की पोती-नुमा बीवी आयशा कहती हैं कि उनके शौहर पर जब वह्यी नाज़िल होती तो बावजूद सर्दी के पेशानी पर पसीना की बूँदें ज़ाहिर हो जातीं.   
(मुहम्मद पर उनके अनुसार वह्यी यानी ईश-वाणी नाजिल (प्रगट) हुवा करती थी जोकि इनके ऊल-जुलूल और फुज़ूल बयान से ही रुसवाय-ज़माना क़ुरआन तय्यार हुवा है.) 
अरबी भाषा में कुदरत अथवा अल्लाह की बातचीत ग़ैर फ़ितरी  (अप्रकृतिक} है. इस तरह पूरा क़ुरआन ही मुहम्मद की बकवास है जिसमें मअनी व् मतलब भरने के लिए ओलिमा ने एडी-चोटी का ज़ोर लगा दिया है फिर भी नाकाम रहे.
बुखारी नम्बर -८ 
"इस्लाम के पांच एहकाम १-कलमाए-वदनियत २-नमाज़ ३-ज़कात ४- रोज़ा ५-हज "
यह तमान एहकाम ग़ैर तामीरी हैं.

बुखारी नम्बर -९-१३ 

इन सब हदीसों  में इस्लाम मुसलमानों को तअस्सुबी बनाता   है. मुसलमानों को पक्षपात की तालीम देता है जिसके सबब मुसलमान कभी इन्साफ की बात नहीं कर सकता. 

Thursday 3 March 2016

Hadeesi Hadse 198



हदीसी हादसे 87
बुखारी नम्बर -१९ 
मुहम्मद कहते हैं कि वह वक़्त आएगा कि लोगों का बेहतरीन माल बकरियाँ होंगी. वह इनको लेकर जंगलों और पहाड़ों पर घूमता फिरेगा ताकि उसका इमान बचा रहे.
मुहम्मद को बकरियां बहुत पसंद थीं. वह इनके बाड़ों में अक्सर नमाज़ें पढ़ा करते. किस क़द्र बद ज़ौक थे? उनके कपड़ों से हमेशा बोक्राहिंद आती थी. 
बुखारी नम्बर -२४ 
मुहम्मद कहते हैं कि हमें लोगों से उस वक़्त तक जिहाद करनी चाहिए जब तक वह ला इलाहा इल्लिलाह मुहम्मदुर रसूल लिल्लाह न कह दें और नमाज़ व् ज़कात अदा न करने लगें और जब वह इन उमूर को अदा करने लगें तो वह मेरी जानिब से महफूज़ हुए. उनका हिसाब अल्लाह तअला करेगा.
दुश्मने-इसानियत कहते है कि जब तक लोग उनको अल्लाह का दूत न मान लें, उनसे जंग करते रहो . यही मुहम्मदी इस्लाम आ असली चेहरा है. इस पर अमल कर रहे हैं तालिबान. 
मुहम्मद को अपना रसूल मानने वाले ही इस वक़्त उनके एहकाम के कायल हैं इनको जवाबन क्या आज इस समाज और इस मुल्क में रहने का हक मिलना चाहिए? मुसलमान देश के कानून का नाजायज़ फ़ायदा उठा रहे हैं . जम्हूरियत मुसलमानों पर हराम कर देना चाहिए अगर वह नए सिरे से इस्लाम को न समझे.
बुखारी नम्बर -२५ 
मुहम्मद से दरयाफ्त किया गया कौन सा अमल अफज़ल हैं?
फ़रमाया अल्लाह और रसूल पर ईमान लाना.
इसके बाद ?दूसरा सवाल था.
अल्लाह की राह में जिहाद करना .
तीसरा अमल ? सवाल था.
फ़रमाया हज खालिस .
कुरआन और हदीसों में सैकड़ों बार दोहराया गया है कि जेहाद करो यानी लड़ो मारो और मरो, 
खूने-इंसानी बहाओ और लूट मार करके लोगों माले-गनीमत हासिल करो. जिहाद के नए मअनी आज के मक्कार ओलिमा ने लफज़ी तकरार से "जिहद करना" बतला रहे हैं. जिहद शब्द एक वचन है और इसका बहुवचन होता है. जिहद करना यानि जद्दो-जिहद और जिहाद इस्लामी इस्तेलाह में मज़हबी जंग अर्थात धर्म युद्ध. सिर्फ इस्लाम ऐसा धर्म है जो लूट मर को पुन्य कार्य समझता है. 


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