Wednesday 28 March 2012

Hadeesi Hadse 28


कोई भी लाजिक काम करती है ? इस हदीस में. कहीं कोई बात बनती है या बिगढ़ती है ? बने हुए पैगम्बर की चाल है कि ऐसा शगूफा छोडो     कि उसके   मानने वाले उसके कलाम पे दीदा रेज़ी करते रहें. मुहम्मद ने हवाओं को भी काफ़िर और मुस्लिम बनाया है.   

सहाबी झूठे गवाह की तरह महम्मद की हुलिया गढ़ता है.

जम्हाई तो अलामत है नींद की, बहुत जागने पर जम्हाई आगाह करती है कि अब सोने की ज़रुरत है. बच्चा बार बार जम्हाई लेता है कि पुट से सो जाए. इसमें शैतानी दखल कहाँ? दूसरी बात  हार कहने पर शैतान हँसता है तो फिर जीत कहने से शैतान रोता  होगा? क्या पागल पन है. शैतान को हंसाइए मत. 


अबू जेहल नाम रख्खा हुवा है मुहम्मद का. यह नाम ने इतना शोहरत पाया कि मुसलमान इसका असली नाम भी भूल गए हैं. क्या मुहम्मद के दादा अपने बेटे का नाम जेहालत कि औलाद रख सकते थे? अबू जेहल का असली नाम हुशशाम  था जो अपने कबीले की नाक था. गैर फितरी बात है कि मरने के बाद भी वह मुहम्मद से गुफ्तुगू करता, वह भी इतनी लचर 

मुहम्मद को कुत्तों से खुदाई बैर था . वह कुत्तों का वजूद इस धरती पर नहीं देखना चाहते थे. उनकी वजह से मुस्लमान कुदरत के इस नायाब तोहफे से महरूम हैं.




ये है मुहम्मद की शर्मनाक बेहयाई जो उनहोंने इस्लाम के मुंह पर चस्पा किया है.उसल्मान कहीं मुंह दिखने के लायक नहीं रहा. मगर मुहम्मद को फिर भी सल्ललाहो
अलैहे वसल्लम कहते नहीं थकता.





जीम. मोमिन 

Wednesday 21 March 2012

Hadeesi Hadse 27


सत्तर हज़ार उम्मी मुहम्मद का तकिया कलाम हुवा करता था. हर मुस्लिम कम से कम एक रोज़ा तो अपनी जिंदगी में रखता ही है, ज़ाहिर है कि वह रोज़ा रखता है तो अल्लाह की रज़ा के लिए ही रखता है, इसतरह वह दोज़ख से कोसो दूर हुवा, फिर मुसलमाओं के लिए तो एक ही रोज़ा रखना काफी है, ये हर साल तीस तीस रोज़े खाह मुखाह के हुए.उम्मी की ऐसी जिहालत जगह जगह पर इस्लाम के उसूलों की काट करती है. अब उम्मी को भला जिहालत से कैसे रोका जा सकता है ? 
इस तरह वह शरह और क़ानून केलिए जगह जगह पर वबाल ए जान बने हुए हैं.

ऐसी बातों की मालूमात मुहम्मद को किन ज़राए से हुवा 
करती थीं? क्या अल्लाह उनके कान में कहता था? जिसकी वजाहत उन्हों ने कहीं की नहीं. कुरआन को ज़रूर वह आल्लाह का कलम बनाए हुए है . . . .
तो हदीसों के लिए क्या कहा जाए, सिवाय इसके कि वह मुहम्मद के गढ़े हुए झूट हैं.
जो शख्स इस क़दर झूठा हो वह पैगम्बर कैसे हो सकता है?
मुर्ग और गधे दोनों कुदरत की तखलीक हैं. कोई बरतर और कोई अबतर कैसे होसकता है. पहला इंसानी खुराक के मसले को हल करता है और दूसरा ढुलाई के मसले को.

मुहम्मद की जिहालत का मुजाहिरा भरपूर इस हदीस में है जो एक तरफ शिर्क को बद तरीन गुनाह कहते है तो दूसरी तरफ उसकी बुलंदी बयान करते हैं कि वह शानदार है, अजीमुश्शान है . ओलिमा इसके आगे हकलाने के सिवा कुछ नहीं कर सकते. जब कि मुहम्मद ज़बान दानी के चक्कर में फंसे हुए हैं.

मुहम्मद अपने खली वक़्त में अपनी पैगम्बरी को ऐसी बातें गढ़ गढ़ कर चमकते. इसे इनकी ज़ेहनी अय्याशी कहा जा सकता है. 


जीम. मोमिन 

Wednesday 14 March 2012

Hadeesi Hadse 26


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अल्लाह के बने हुए रसूल यह जो पुडिया छोड़ते हैं , यह इनका तसव्वुर है या कल्पना? जो भी हो दुन्या को उन्हों ने झूट का दाग दर खज़ाना दिया है. इनके झूट में मुब्तिला इनकी उम्मत झूट को जी रही है.जन्नत की हूर का जमाल मुलाहिजा हो - - - -   
और अगर उसी हूर के नक़ल में कोई औरत सलीक़े का कपडा पहने तो अल्लाह उसको अपने यहाँ उरयाँ कर देगा
तीसरी हदीस में देखिए किबंदा कैसे कैसे हालत में जन्नती और दोजखी हो जाता है. मुहम्मद की तिकड़म बहुत ही आम्याना है.
अगर ये बात है तो औरतों को खास कर मुस्लिम औरतों को अपने दो तीन बचे दुध मुहे बच्चे  मारना बड़ी बात न होगी. आखिर आखरत महफूज़ हो रही है. 


चलिए यहाँ पर रसूल जदीद हुए. आज के आम मुस्लिम शराब नाक तक पीता है मगर हराम हलाल गोश्त में ज़मीन आसमान का फर्क मानता है. कभी झटका नहीं खाएगा  .

रसूल अपने ऊपर ही हँसे.
मुलाहिजा हो इस्लाम की अजमत?




जीम. मोमिन 

Monday 5 March 2012

Hadeesi Hadse 25



यह इरशाद भी मुहम्मद ने औरतों के झुण्ड देख कर ही किया होगा. औरतें आज तक उनकी लगाई हुई बंदिश की पाबन्द हैं. मर्द तो अपनी शर्म गाह की बेशर्मी का मुजाहिरा करते हैं. खुद मुहम्मद अपनी जोरू माता खदीजा की मौत के बाद ऐसे आज़ाद हुए कि जैसे छुट्टा सांड.
आगे देखेंगे कि कहते हैं कोई मेरी जुबान और लिंग पर काबू करा दे तो मै उसको जन्नत की ज़मानत देता हूँ. 




जीम. मोमिन