Friday 1 July 2016

बांग-ए-दरा -22


बांग-ए-दरा

बहेस मुबाहिसे 

आजकाल चार छः औसत पढ़े लिखे मुसलमान जब किसी जगह इकठ्ठा होते हैं तो उनका मौजू ए गुफ्तुगू होता है ' मुसलामानों पर आई हुई आलिमी आफतें' 
बड़ी ही संजीदगी और रंजीदगी के साथ इस पर बहेस मुबाहिसे होते हैं. 
सभी अपनी अपनी जानकारियाँ और उस पर रद्दे अमल पेश करते हैं. 
अमरीका और योरोप को और उनके पिछ लग्गुओं को जी भर के कोसा जाता है. 
भगुवा होता जा रहा हुन्दुस्तान को भी सौतेले भाई की तरह मुखातिब करते हैं 
और इसके अंजाम की भरपूर आगाही भी देते हैं. 
सच्चे कौमी रहनुमा जो मुस्लिमों में है, उनको 'साला गद्दार है', कहकर मुखातिब करते हैं. वह मुख्तलिफ होते हुए भी अपने मिल्ली रहनुमाओं का गुन गान ही करते है.
अमरीकी पिट्ठू अरब देशों को भी नहीं बख्शा जाता. 
बस कुछ नर्म गोशा होता है तो पाकिस्तान के लिए. 
इसके बाद वह मुसलामानों की पामाली की वजह एक दूसरे से उगलवाने की कोशिश करते हैं, वह इस सवाल पर एक दूसरे का मुँह देखते हैं कि कोई सच बोलने की जिसारत करे. 
सच बोलने की मजाल किसकी है? इसकी तो सलाहियत ही इस कौम में नहीं. 
बस कि वह सारा इलज़ाम खुद पर आपस में बाँट लेते हैं, 
कि हम मुसलमान ही गुमराह हो गए हैं. 
माहौल में कभी कभी बासी कढ़ी की उबाल जैसी आती है . 
कुरआन और हदीसों की बे बुन्याद अजमतों के अंबार लग जाते हैं, 
गोया दुन्या भर की तमाम खूबियाँ इनमें छिपी हुई हैं. 
माज़ी को जिन्दा करके अपनी बरतरी के बखान होते हैं. 
इस महफ़िल में जो ज़रा सा इस्लामी लिटरेचर का कीड़ा होता है, 
वह माहौल पर छा जाता है. 
वह माजी के घोड़ो से उतारते हैं, 
हाल के हालात पर आने के बाद सर जोड़ कर बैठते हैं कि 
आखिर इस मसअले का हल क्या है? 
हल के तौर पर इनको, इनकी गुमराही याद आती है और सामने इनके खड़ी होती है
'नमाज़',
ज़ोर होता है कि हम लोग अल्लाह को भूल गए हैं, 
अपनी नमाज़ों से गाफ़िल हो गए है. 
उन पर कुछ दिनों के लिए नमाज़ी इंक़लाब आता है 
और उनमें से कुछ लोग आरज़ी तौर पर नमाज़ी बन जाते है. 
असलियत ये है कि आज मुसलमान जितना दीन के मैदान में डटा हुवा है 
उतना कभी नहीं था. इनकी पस्मान्दगी की वजह इनकी नमाज और इनका दीन ही है. 
मुसलमान अपने चूँ चूँ के मुरब्बे नमाज़ को और 
रोज़ा व् हज की  आचार दानी को उठा कर अगर ताक पर रख दें, 
और मोमिन के ईमान को समझ लें तो  वह किसी से पीछे नहीं रहेगे.
*****



No comments:

Post a Comment