
बांग-ए-दरा
एक गाँव में सर्वे के लिए सरकारी अमला पहुंचा जिसमें एक डाक्टर भी था. उसने एक ग्रामीण से गाँव की आबो-हवा और पर्यावरण के बारे में कुछ सवाल किए.
ग्रामीण कथा सुनाने लगा,
अरे साहब हमारे गाँव की आब व् हवा का कोई जवाब नहीं,
लाभ कारी, सेहत बख्श, सुहानी और बेमिसाल है.
आप मेरी तंदुरुस्ती देख कर अंदाज़ा लगा सकते हैं,
सुनें ! मैं बिमारी की भेंट चढ़ कर मौत के घाट उतरने की कगार पर पहुच गया था, एक रोग हो तो बतलाऊँ, बस बचा लिया इस गाँव ने मुझे
कि आज चल फिर रहा हूँ.
डाक्टर ने पूछा इस से पहले आप कहाँ रहते थे ?
यह लेव,
और सुनो,
डाक्टर साहब ! मैं तो कभी अपने गाँव को छोड़ कर कहीं गया ही नहीं .
हम इसी तरह से अपने देश का गुण गान करते हैं.
हम उस देश वासी हैं जिस देश में गंगा बहती है .
हुक्मरान हमको पहले अपने देश का गुण गान सिखलाते हैं,
इसके बाद ही हमें अक्षर ज्ञान सिखलाया जाता है.
स्वचितन तो यहाँ जुर्म है और कभी तो देश द्रोह.
हम चोर उचक्के हैं, कोई बात नहीं,
हम नफा खोरहैं, कोई बात नहीं.
मिलावट करने में माहिर, कोई बात नहीं.
हम अंध विशवास में इतने डूबे हैं कि हर बनिया हमें ठग रहा है.
कोई बात नहीं.
हमारी जेलें जरायम पेशा से भरी हैं, अदालतें आराम फार्म रही है.
कोई बात नहीं.
जब हम सुनते हैं कि फलां मुल्क में जेलें खाली पड़ी हुई हैं, उनका खर्च सरकार पर गराँ गुज़रता है,
तो हमारे मुंह से बस आयं भर निकलता है
और हम फिर अपनी बोझिल ज़िन्दगी कोजीने लगते हैं.
अभी स्वीटज़र लैंड ने हमारे गाल पर एक ज़ोरदार तमाचा रसीद किया, जिस गाल को हम देश भक्ति में बजाया करते हैं,
स्वीटज़र लैंड की अवाम ने बिना मेहनत किए नेशन से रायल्टी लेने से इनकार कर दिया है.
वह गुण गान को गाते नहीं, गुण गान को जीते हैं.
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