Saturday 30 July 2016

बांग-ए-दरा 49


बांग-ए-दरा


मैं - - - 

मैं एक बहुत ही निर्धन परिवार का बेटा हूँ. 
अनथक मेहनत से अपने सम्पूर्ण परिवार को गरीबी रेखा से ऊपर उठाया है, लाखों रुपए ईमानदारी के साथ इनकम टैक्स भरा है. 
तालीम ही मेरी मंजिल है जो बच्चों के हक में जा रही है . 
मैं आज भी इसके लिए अपने आपको समर्पित रखता हूँ, 
मेरे पास कोई बड़ी डिग्री नहीं, न ही ढंग का लेखन कर पता हूँ 
मगर धर्म गुरूओं का अध्यन किया है. 
फिर मुझे कबीर याद आता है, जो कहता है - - -
''तुम जानौ कागद की लेखी, मैं जानूं आखन की देखी.'' 
मेरे तमाम आलोचक कागद की लेखी को आधार बना कर 
मुझे उन लेखो का आइना दिखलाते हैं, 
जिनको पढ़ कर वह उधार ज्ञान अर्जित करते हैं. 
खेद है कि वह अपने दिलो-दिमाग और अपने ज़मीर को अपना साक्ष्य नहीं बनाते. 
मेरे लेख को कुरआन के उर्दू तर्जुमे से सीधे मीलान 
''मौलाना अशरफ अली थानवी'' 
के कुरान से कर लीजिए जो दुनया के सब से दिग्गज कुरआनी आलिम हैं 
और हदीसें ''बुखारी और मुस्लिम'' से मिला लीजिए. 
हाँ उस पर तबसरा मेरा है जो किसी को गराँ गुज़रता हो, 
उनको ही मेरा मशविरा है कि वह ''कागत की लेखी'' पर न जाएं, 
यह उधार का ज्ञान है. अगर आप की अपना कुछ अपने अन्दर बिसात और चेतन हो तो मेरी बात माने वर्ना हजारों ''बातिल ओलिमा'' हैं, 
उनपर अपनी तवानाई बर्बाद करें.
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