Saturday 28 June 2014

Hadeesi hadse 113


Hadeesi hadse 1st

मुहम्मद ने जब पैगम्बरी का एलान किया था तो मक्का वासियों ने इनमें दिमागी ख़लल समझा. इसी रिआयत से इनका मज़ाक़ बना, मगर जब यह हदें पार करने लगे और लोगों  के माबूद (पूज्य) का अपमान करने लगे तो इन्हें हदों में रहने की चेतावनी मिलने लगी. इनके चचा और दादा समाज के बा-असर लोग हुवा करते थे इस लिए ये बचते रहे वर्ना मुहम्मद का काम तमाम कर दिया जाता. 
एक वाकिया इसी दौर का है कि मुहम्मद एक गली से गुज़रते तो एक यहूदी औरत इनसे नफ़रत के सबब इन पर घर का कूड़ा फेक दिया करती. एक रोज़ कूड़ा उन पर नहीं आया तो उसका दरवाज़ा खटखटाया कि आज कूड़ा क्यूं  नहीं आया? मालूम हुवा की उसकी तबयत ख़राब हो गई है, गोया इसे लोगों ने मुहम्मद का पुरसा बना दिया और फ़तह मक्का के बाद इस वाकिए को तूल देते देते इतना बढ़ा दिया कि उन्हें "मोह्सिने-इंसानियत" बना दिया गया. मुहम्मद की इस इकलौती नेकी के बाद उनकी इंसानियत के हक़ में की गई बदियों का सिलसिला फ़तह मक्का के बाद जब शुरू हुवा तो मुहम्मद दुश्मने-इंसानियत का निशान बन गए. 
इसी सिलसिले को हम आगे मुसलमानों के लिए पेश कर रहे हैं ताकि मुसलमान हकीकत को जानें और मानें . . . .    
फतह मक्का के बाद मुहम्मद का गलबा इतना बढ़ गया था कि उनके मुंह की निकली हुई बात कुरान और हदीस बनने लगीं. नव मुस्लिम लश्कर चारों तरफ़ जुल्म, बरबरियत और गनीमत का खेल खेलती थीं और मुहम्मद अपने चारों खलीफाओं के साथ मदीने में इस्लामी केंद्र बना कर लोगों क़ी आज़ादी के साथ खिलवाड़ करते रहे.
दुश्मने-इंसानियत का सिलसिला पेश है . इससे मुसलमानों की आँखें शायद खोल सकें - - - -  दुश्मने-इंसानियत 

बुखारी नम्बर -१
मुहम्मद कहते है "आमाल का दारो-मदार नियत पर है जो शख्स जैसी नियत करेगा , वैसी जज़ा पाएगा . जिस शख्स की हिजरत दुन्या हासिल करने या किसी औरत से निकाह करने की नियत से होगी तो इसको यही चीज़ें हासिल होंगी (और बस)'
"जैसी नियत वैसी बरकत" कहावत की भद्द पीटते हुए  इसे मुहम्मद अपना रंग दे रहे हैं. जाहिर है तरके-वतन फर्द  दुन्या हासिल करने की नियत से ही करता है ताकि उसकी बदहाली दूर हो, यहाँ पर औरत हासिल  करने की नियत बे मौक़ा और बेमहल है. मुहम्मद की नियत हमेशा औरत पर रही है इस लिए उसको भी मंजिले-मक़सूद बना लिया है. मुहम्मद ने कभी औरत को इंसान का दर्जा दिया ही नहीं.
 क्या औरत हिजरत की नियत  नहीं कर सकती? तब इसके लिए मर्द हासिल करना मुहम्मद कहेंगे ?

बुखारी नम्बर -२ 
मुहम्मद से हारिश इब्न हुशशाम (जिनका नाम मुहम्मद ने अबू-जहल कर दिया था)  ने पूछा की उन पर वह्यी किस तरह नाज़िल हुवा करती है? 
बोले . . . कभी इस तरह आती है कि घंटी की तरह आवाज़ सुनाई देती है, लेकिन ऐसी वह्यी मुझ पर गराँ गुज़रती है. जब वह हालत दूर हो जाती है तो खुदाए- तअला  का फरमान होता है, मैं इसे महफूज़ कर लेता हूँ . कभी ऐसा होता है कि फ़रिश्ता मुझ पर बशक्ल इन्सान नाज़िल होता है और मैं उससे हमकलाम होकर अल्लाह तअला के फरमान याद कर लेता हूँ. 
मुहम्मद की पोती-नुमा बीवी आयशा कहती हैं कि उनके शौहर पर जब वह्यी नाज़िल होती तो बावजूद सर्दी के पेशानी पर पसीना की बूँदें ज़ाहिर हो जातीं.   
(मुहम्मद पर उनके अनुसार वह्यी यानी ईश-वाणी नाजिल (प्रगट) हुवा करती थी जोकि इनके ऊल-जुलूल और फुज़ूल बयान से ही रुसवाय-ज़माना क़ुरआन तय्यार हुवा है.) 
अरबी भाषा में कुदरत अथवा अल्लाह की बातचीत ग़ैर फ़ितरी  (अप्रकृतिक} है. इस तरह पूरा क़ुरआन ही मुहम्मद की बकवास है जिसमें मअनी व् मतलब भरने के लिए ओलिमा ने एडी-चोटी का ज़ोर लगा दिया है फिर भी नाकाम रहे. 

बुखारी नम्बर -३ 
मुहम्मद की पोती नुमा बीवी आयशा कहती हैं कि मुहम्मद पर वह्यी की शुरुआत इस तरह हुई कि मुहम्मद को ख़्वाब नज़र आते शब् को, जो कि सुब्ह रोज़ -रौशन की तरह  नमूदार हो जाते . . . .
पिछली वह्यी देखें कि मियाँ बीवी के बयान में इख्तेलाफ़ है जो आपस में दोनों को झूठा साबित करते हैं.
आगे कहती हैं इसके बाद मुहम्मद तन्हाई पसंद हो गए और गारे-हिरा में यकसूई और तन्हाई पसंद फ़रमाई और पूरी पूरी रात इबादत करने लगे. वह जितने दिनों के लिए ग़ार  में जाते उतने दिनों का खाना साथ ले जाते, जब खाना ख़त्म हो जाता ,फिर आकर ले जाते .
जो अल्लाह मुहम्मद के कान वह्यियों से भरता था, क्या उनका पेट खाने से नहीं भर सकता था? अल्लाह के लिए क्या मुश्किल था. कुन-फयाकूं भर की देर थी.
आगे कहती हैं कि इसी सूरत में वह्यिँ  आत्ती रहतीं कि एक दिन फ़रिश्ता मुहम्मद पर ग़ालिब होते हुए कहने लगा " पढ़!" मुहम्मद ने कहा इससे मैं पढ़ा लिखा नहीं हूँ, फिर उसने उनको दबोच कर कहा कि पढ़! मुहम्मद का उज्र वही था. तीसरी बार कहा किमैं नाख्वान्दः (निरक्षर) हूँ
 फिर फ़रिश्ता उनको चिम्टाते हुए कहा कि "पढ़, इक्रा बिस्म रब्बेकल लज़ी खलकः खलकः मिन अलकिंन्सान मिन अलक  . . . .
गौर तलब है कि घामड़  फ़रिश्ता मुहम्मद को बिना किसी किताब को सामने रख्खे हुए, ज़ोर डाल रहा था कि पढ़! बेचारे पूछ न पाए कि बिना सामने कोई तहरीर रख्खे हुए मुझ से क्या पढवाने को कह रहा है? बस कहते रहे कि मैं अनपढ़ हूँ. 
मुहम्मद ने इस वाकिए को गढ़ने में भी जिहालत की कि , फ़रिश्ते को कहना चाहिए , कह " इकरा बिस्म रब्बेकल लज़ी खलकः खलकः मिन अलकिंन्सान मिन अलक  . . . .  तब कहीं बात बनती.
आगे कहती हैं कि मुहम्मद हौले कांपते हुए घर आए और जोरू माता खदीजा से कहा मुझको जल्दी से चादर उढाओ, उनसे तमाम वक़ेआ बयान किया. खदीजा अपने अंधे ईसाई भाई विरका इब्न नोफिल के पास मुहम्मद को ले गई, जिसने इन्हें सुन कर मूसा जैसी अलामत बतलाई कि वह फ़रिश्ता जिब्रील है, हज़रत को देश निकला मिलेगा इसके बाद पैगम्बरी.
तहरीर बनावटी  है जिसमे साबित होता है कि मुहम्मद की चापलूसी में लिखी गई है 

बुखारी नम्बर -४-५-६ तक वह्यी का मशकूक सिसिला है और ७ में रोम के बादशाह हरकुलिस और अबू-सुफियान  की गुफ्तुगू रसूल से मुताअलिक जिसमें हरकुलिस मुहम्मद के भेजे दावत-इस्लाम को ठुकरा दिया.


जीम. मोमिन