
बांग-ए-दरा
कुदरत बनाम खुदा
दिमाग रखने वाला ऐसा खुदा झूठा साबित हो चुका है.
कुदरत (बनाम खुदा) के पास कोई दिमाग नहीं है बल्कि एक बहाव है .
इसके अटल उसूलों के साथ. इसके बहाव से मखलूक को कभी सुख होता है कभी दुःख.
ज़रुरत है कुदरत के जिस्म की बनावट को समझने की
जैसे कि मेडिकल साइंस ने इंसानी जिस्म को समझा है
और लगातार समझने की कोशिश कर रहा है.
इनके ही कारनामों से इंसान कुदरत के सैकड़ों कह्र से नजात पा चुका है.
मलेरिया, ताऊन, चेचक जैसी कई बीमारियों से और बाढ़, अकाल जैसी आपदाओं से
नजात पा रहा है.
जंगलों और गुफाओं की रिहाइश गाह आज हमें पुख्ता मकानों तक लेकर आ गई हैं.
हमें ज़रुरत है कुदरत बनाम खुदा के जिस्मानी बहाव को समझने की,
न कि उसकी इबादत करने की.
इस रस्ते पर हमारे जदीद पैगम्बर 'साइंस दान' गामज़न हैं.
यही पैगम्बरान वक़्त एक दिन इस धरती को जन्नत बना देंगे.
इनकी राहों में दीन धरम के ठेकेदार रोड़े बिखेरे हुए हैं.
जगे हुए इंसान ही इन मज़हब फरोशों को सुला सकते है
जागो, आँखें खोलो, अल्लाह के फ़रमान पर गौर करो और
मोमिन के मशविरे पर,
फैसला करो कि कौन तुमको गुमराह कर रहा है -
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अल्लाह क्या है?
अल्लाह का कोई भी ऐसा वजूद नहीं जो मज़ाहिब बतलाते हैं.
अल्लाह एक वह्म, एक गुमान है.
अल्लाह एक अंदाजा है, एक खौफ़ है.
अल्लाह एक अक़ीदा है जो विरासत या ज़ेहनी गुलामी के मार्फ़त मिलता है.
अल्लाह हद्दे ज़ेहन है या अक़ली कमजोरी की अलामत है,
अल्लाह अवामी राय है, या फिर दिल की चाहत,
कुछ लोगों की राय है कि अल्लाह कोई ताक़त है जिसे सुप्रीम पावर भी कह जाता है?
अल्लाह कुछ भी नहीं है, गुनाह और बद आमाली कोई फ़ेल नहीं होता,
इन बातों का यक़ीन करके अगर कोई शख्स इंसानी क़द्रों से बगावत करता है तो
वह बद आमाली की किसी हद को पार कर सकता है.
ऐसे कमज़ोर इंसानों के लिए अल्लाह को मनवाना ज़रूरी है.
मगर ये अम्र सिर्फ़ इस्लाह के लिए हो न कि पेशा बन जाए.
वैसे अल्लाह के मानने वाले भी गुनहगारी की तमाम हदें पर कर जाते हैं.
बल्कि अल्लाह के यक़ीन का मुज़ाहिरा करने वाले और
अल्लाह की अलम बरदारी करने वाले सौ फीसद दर पर्दा बेज़मीर मुजरिम देखे गए हैं.
बेहतर होगा कि बच्चों को दीनी तालीम देने की बजाए अख्लाक्यात पढाई जाए,
वह भी जदीद तरीन इंसानी क़द्रें हों ,जो मुस्तकबिल करीब में उनके लिए फायदेमंद हों.
मुस्तकबिल बईद में इंसानी क़द्रों के बदलते रहने के इमकानात हुवा करते है.
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