Monday 18 July 2016

बांग-ए-दरा -37


बांग-ए-दरा
खुदाओं की दुन्या  1

शैतान की एक आवाज़ से ही आप बहक गए और अपनी जेब ढीली कर दी।  
यानी मेरी किताब खरीद ली और पढ़ने लगे। चलिए कोई बात नहीं, आप ज्यादा ख़सारे में नहीं जाएंगे क्योंकि भगवानों द्वारा आप सदियों नहीं, बल्कि युगों से ठगे जा रहे हैं।  
शैतान ने तो पहली बार आपको एलान के साथ ठगा है।  
शैतान बा ज़र्फ़ है कि कम से कम आपकी कटी जेब सिलने के लिए सूई धागा देगा। इससे अपनी जेब की मरम्मत ऐसी करें कि कोई भगवान इसको दोबारा न काट सके। 
ऐसा लगता है कि यह एशिया महाद्वीप की सर ज़मीन का तक़ाज़ा है कि इस पर पैदा होने वाला मानव बग़ैर भगवान् अल्लाह खुदा या किसी रूहानी हस्ती के पुर सुकून रह ही नहीं सकता। इनकी ज़ेहनी ग़िज़ा के लिए कम से कम एक झूटी महा शक्ति ,एकेशवर , कोई वाहिद ए मुतलक़ , कोई सुपर पावॅर चाहिए ही। 
पहले जानमाज़ चाहिए फिर दस्तर ख्वान , पहले मंदिर ओ मस्जिद उसके बाद घर की छत। कुछ भी हो एक परम पूज्य चाहिए ही जो इनकी तरह ही सोच विचार वाला हो, हमजिंस हो।  
इंसान जानवर, पेड़, दरिया, परबत हत्ता कि पत्थर की मूर्ति ही क्यों न हो।  
कोई शक्ल ओ सूरत न हो तो निरंकार ही सही , कोई न कोई आफ़ाक़ी खुदा इनको चाइए ही वरना सांस लेना दूभर हो जाए। 
वह अनेशश्वर वादी को पशु मानते हैं , हैवान समझते हैं जो सुकर्म और कुकर्म में कोई अंतर नहीं समझता। 
मैं कभी कभी अतीत में दूर तक जाता हूँ ब्रह्मा , विष्णु , महेश काल तक जो अढाई अरब साल का होता है , इसी महाकाल में संसार निर्मित होता है और इसका अंत होता है - - - तो मैं इस मिथ्य को सत्य मान लेता हूँ कि इसी में नजात है कि आगे दूर तक मत सोचो। 
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खुदाओं की दुन्या- 2

 ईसाइयों और मुसलमानों के लिए ख़याल ए सवाब बना हुवा है, 
तखलीक ए कायनात का वर्णण आता है जो सिर्फ साढ़े छः हज़ार साल पहले दुन्या के वजूद में आने की बात करता है. वह नाटा ठिंगना और हास्य स्पद लगता है। 
लाखो वर्ष पहले के इंसानी और हैवानी कंकाल मिलते है तो पहला आदमी आदम कहाँ ठहरता है ? 
यह दोनों सूरतें कोरी कल्पनाएँ हैं जहाँ पर अक़ल ए इंसानी जाकर अटक जाती है।  इनको कंडम किए बिना वह आगे नहीं बढ़ सकती। 
अब बचती है डरबन की थ्योरी जो बतलाती है कि इंसान का वजूद भी दूसरे जीवों की तरह पानी से ही हुवा। यह ख़याल अभी तक का सत्य मालूम पड़ता है, 
बाक़ी पूर्ण सत्य आने वाले भविष्य में छुपा हुवा है। 
 आप अपने सर मुबारक को खुजलाएं कि आप अपने सरों में इन अक़ली गद्दा रूहानियत फरोशों की दूकानों से खरीदा हुवा सौदा सजाए हुए हैं ?
या बेदारी की तरफ आने के लिए तैयार हैं ?
इन पाखंडियो के द्वारा मुरत्तब किए हुए खुदाओं में से जो कम अज़ कम एक को नहीं मानता, यह कहते हैं वह जानवर है।  
अब रावी आपको फिर डर्बिन की तरफ ले जाता है, इसकी तलाश में आपको आंशिक रूप में कुछ न कुछ सच्चाई नज़र आएगी। हो सकता है इंसान की शाख जीव जंतु से कुछ अलग हो मगर इंसान हैवानी हालात से दो चार होते हुए ही यहाँ तक पहुंचा है पाषाण युग तक इंसान यक़ीनी तौर पर हैवानो का हम सफ़र रहा है , इसके बावजूद तब तक आदमी सिर्फ आदमी ही था। उस वक़्त तक इंसानी ज़ेहन में किसी बाक़ायदा अल्लाह का तसव्वर क्यों नहीं आया ? 
उस वक़्त किसी खुदा के खौफ से नहीं बल्कि वजूद की बक़ा पर तवज्जो हुवा करती थी। यह खुदा फरोश इंसान के लिए खुदा को इतना ही फितरी और लाज़िम मानते हैं तो उस वक़्त खुद खुदा ने अपनी ज़ात को क्यों नहीं मनवा लिया।  
जैसा कि मैंने अर्ज़ किया कि अहद ए संग के क़ब्ल आदमी हैवानों का हम सफ़र था, इसके बाद इसको पहाड़ी खोहों, दरख्तों और ज़मीनी पैदावारों ने कुछ राहत पहुंचाई। प्रकृतिक हल चल से भी कुछ नजात मिली, इंसान इंसानी क़बीलों में रहने लगा जिसकी वजह से इसमें कुछ हिम्मत और ताक़त आई। इसके बावजूद इसे जान तोड़ मेहनत और अपनी सुरक्षा से छुटकारा नहीं मिला। वह इतना थक कर चूर हो जाता कि उसे और कुछ सोचने का मौक़ा ही न मिलता। उस वक़्त तक किसी खुदा का विचार इसके दिल में नहीं आया। 
वह रचना कालिक सीढ़ियाँ चढ़ता गया, चहार दीवारियाँ इंसान को सुरक्षित करती गईं, ज़मीनी फ़स्लेँ तरतीब पाने लगीं, जंगली जानवर मवेशी बनकर क़ाबू में आने लगे। राहत की सासें जब उसे मयस्सर हुईं तो ज़ेहनों को कुछ सोचने का मौक़ा मिला। 
इंसानी क़बीलों के कुछ अय्यारों ने इस को भापा और खुदाओं का रूहानी जाल बिछाना शुरू किया। इस कोशिश में वह बहुत कामयाब हुए। होशियार ओझों के यह फार्मूले ज़ेहनी खुराक के साथ साथ मनोरंजन के साधन भी साबित हुए। 
  इस तरह लोगों के मस्तिष्क में खुदा का बनावटी वजूद दाखिल हुवा जोकि रस्म ओ रिवाज बनता हुवा वज्द और जुनून की कैफियत अख्तियार कर गया।  
दुन्या भर की ज़मीनों पर खुदा अंकुरित हुवा, कहीं देव और देवियाँ उपजीं, कहीं पैग़मबर और अवतार हुए, तो कहीं निरंकार। इंसान ज़हीन होता गया, नफ़ा और नुक़सान विकसित हुए, फ़ायदे मंद चीज़ों को पूजने की तमीज़ आई, जिससे डरा उसे भी पूजना प्रारम्भ कर दिया। छोटे और बड़े खुदा बनते गए या यूं कहे कि आने वाली महा शक्ति के कल पुर्ज़े ढलना शुरू हुए, जो बड़ी ताक़त बनी, उसका खुदा तस्लीम होता गया। 
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