Tuesday 26 July 2016

बांग-ए-दरा 45


बांग-ए-दरा

बेटा ज़रा धीरे - - - 

उर्दू का महान अफसाना निगार कृष्ण चंदर का चर्चित अफसाना (कहानी), 
"बर्फ के फूल" का एक मंज़र पेश है,
१९४७ बटवारे का ज़माना था धार्मिक नफरत शबाब पर थी,
लिखता है हिदुओं के खौफ से एक मुसलमान परिवार अपने आबाई घर को छोड़ कर जा रहा था, 
जाते जाते वह और कुछ न कर सका तो,
अपनी दीवार पर लिख दिया था.
हिन्दुओं की माँ की C....
तलवार और भाले से लैस एक हिन्दू जब उस घर पर हम्लावर हुवा तो उसे मायूसी हुई कि उसको क़त्ल के लिए कोई मुसलमान न मिला,
उसकी नज़र दीवार पर लिखी इबारत पडी,
उसका खून खौल उठा, उसने उसी वक़्त प्रतिज्ञां की कि 
अगली जो भी मुसल्मानिन मिली, उसकी अस्मत वर्जी (बलात्कार) करेगा,
जूनून के आलम में वह क़दम आगे बढ़ा रहा था कि खेत में उसे एक बूढी मुसलमान औरत अपनी जान बचाए दुबकी हुई नज़र आई,
नव जवान ने उसे धर दबोचा,
मगर वह तो दादी नानी से भी बूढी और नातवां थी,
नव जवान पर उसकी प्रतिज्ञां गालिब हुई,
वह उस पर टूट पड़ा,
कहानी कार बूढी माँ के किरदार से जो अल्फाज़ अदा कराता है वह थे,
बेटा ज़रा धीरे - - - 

आजकल फेस बुक पर 70 सालों बाद हिन्दू और मुसलमान कुछ ज्यादा ही जवान और संज्ञा शून्य हो गए हैं कि 
बिना कुछ गंवाए ही एक दूसरे की माँ बहन तौल रहे हैं, 
कितने अफ़सोस का मुकाम है ?
हम कब सभ्य होंगे ??
ध्यान रहे - - - जब किसी की माँ को गाली दे रहे हों तो इसकी कल्पना भी कर लिया करें, बेटा ज़रा धीरे - - - 



No comments:

Post a Comment