Friday 28 September 2012

Hadeesi Hadse -54



दर्जात ए इंसानी 

अव्वल दर्जा लोग 

मैं दर्जाए-अव्वल में उस इंसान को शुमार करता हूँ जो सच बोलने में ज़रा भी देर न करता हो, उसका मुतालिआ अश्याए कुदरत के बारे में फितरी हो (जिसमें खुद इंसान भी एक अश्या है.) वह ग़ैर जानिबदार हो, अक़ीदा, आस्था और मज़हबी उसूलों से बाला तर हो, जो जल्द बाज़ी में किए गए "हाँ" को सोच समझ कर न कहने पर एकदम न शर्माए और मुआमला साज़ हो. जो सब का ख़ैर ख्वाह हो, दूसरों को माली, जिस्मानी या जेहनी नुकसान, अपने नफ़ा के लिए न पहुंचाए, जिसके हर अमल में इस धरती और इस पर बसने वाली मखलूक का खैर वाबिस्ता हो, जो बेख़ौफ़ और बहादर हो और इतना बहादर कि उसे दोज़ख में जलाने वाला नाइंसाफ अल्लाह भी अगर उसके सामने आ जाए तो उस से भी दस्तो गरीबानी के लिए तैयार रहे. ऐसे लोगों को मैं दर्जाए अव्वल का इंसान, मेयारी हस्ती शुमार करता हूँ. ऐसे लोग ही हुवा करते हैं साहिबे ईमान यानी ''मरदे मोमिन

दोयम दर्जा लोग

मैं दोयम दर्जा उन लोगों को देता हूँ जो उसूल ज़दा यानी नियमों के मारे होते हैं. यह सीधे सादे अपने पुरखों की लीक पर चलने वाले लोग होते हैं. पक्के धार्मिक मगर अच्छे इन्सान भी यही लोग हैं. इनको इस बात से कोई मतलब नहीं कि इनकी धार्मिकता समाज के लिए अब ज़हर बन गई है, इनकी आस्था कहती है कि इनकी मुक्ति नमाज़ और पूजा पाठ से है. अरबी और संसकृति में इन से क्या पढाया जाता है, इस से इनका कोई लेना देना नहीं। ये बहुधा ईमानदार और नेक लोग होते हैं. भोली भली अवाम इस दर्जे की ही शिकार है धर्म गुरुओं, ओलिमाओं और पूँजी पतियों की. हमारे देश की जम्हूरियत की बुनियाद इसी दोयम दर्जे के कन्धों पर राखी हुई है.

सोयम दर्जा लोग

हर कदम में इंसानियत का खून करने वाले, तलवार की नोक पर खुद को मोह्सिने इंसानियत कहलाने वाले, दूसरों की मेहनत पर तकिया धरने वाले, लफ़फ़ाज़ी और ज़ोर-ए-क़लम से गलाज़त से पेट भरने वाले, इंसानी सरों के सियासी सौदागर, धार्मिक चोले धारण किए हुए स्वामी, गुरू, बाबा और साहिबे रीश ऑ दुस्तार ओलिमा, सब के सब तीसरे और गिरे दर्जे के लोग हैं. इन्हीं की सरपरस्ती में देश के मुट्ठी भर सरमाया दार भी हैं जो देश को लूट कर पैसे को विदेशों में छिपाते हैं. यही लोग जिसका कोई प्रति शत भी नहीं बनता, दोयम दर्जे को ब्लेक मेल किए हुए है और अव्वल दर्जा का मजाक हर मोड़ पर उडाने पर आमादा रहते है. सदियों से यह गलीज़ लोग इंसान और इंसानियत को पामाल किए हुए हैं।
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बुखारी १०३१-१०३५  
फ़तेह खैबर के बाद वहां की खेती की आधी पैदा वार मुहम्मद ने अपनीबीवियों के हक में मख़सूस कर दिया थायह भी मुक़र्रर कर दिया था किकम से कम मिक़दार आशिया का यह (  ) हो, यानि अगर मिक़रार से पैदावार कम हो तो भूखे नंगे किसान अपनी जेब से निकल कर अदा करें.

*मुसलमानों! यह थी तुम्हारे पैगम्बर की गलीज़ पैगम्बरी. 
 यहूदियों की आबादी से भरपूर, खैबर पर पूरी किताब लिखी जा सकती है जो मुहम्मद के ज़ुल्म से भरी हुई होगी. आज यहूदी इन मुहम्मदियों पर जितना बी ज़्यादती करें कम होगी.
मुल्लाओं ने कितना झूठा प्रचार कर रखा है कि माल  मता से बे नयाज़मुहम्मद मरने के बा सिर्फ़  सात दरहम  विरासत में छोड़ाउनकीबेगमात फ़ाक़ा पर फ़ाक़ा करतीं.

बुखारी १०३९
मुहम्मद तक़रीर कर रहे थे कि उनके पास एक देहाती हाज़िर जवाब बैठा हुवा थाउसको निशाना बनाते हुए तक़रीर खेती बाड़ी पर  गईकहा "जन्नत में एक किसान ने ख्वाहिश ज़ाहिर की कि जन्नत में क्या खेती हो  सकती है?"
अल्लाह ने कहा "क्यों यहाँ तुझे क्या कमी है? "
"उसने कहा मुझे खेती बहुत अच्छी लगती है" ( ताकि हम कोई चीज़ अपनी ज़ात से तकमील करते रहें)
फरमान होगा "अच्छा जा करके देख."
दहकान ज़मीन में बीज बोता रहा और दूसरे छोर पर पहुँचा तो बोए हुए बीजों की फसल तैयार होती गई.
फ़रमान  होगा " इब्न  आदम तू हरीस है कि तू किसी चीज़ से मुतमईन नहीं होता."
दहक़ान  जिस पर मुहम्मद वार कर रहे थेबोला
"वह शख्स कोई कुरैश होगा या फिर अंसार."
उसके जवाब से मुहम्मद खिसयानी हँसी हसने लगे.

*कई हदीस गवाह हैं कि मुहम्मद अन्न दाता किसान को पसंद नहीं करते थे.
जिहाद को हर काम से बेहतर ख़याल करते.

बुखारी १०४४
मुहम्मद कहते हैं उनका अल्लाह उन तीन किस्म के बन्दों से कभी राज़ी नहीं होगा+ तो बस यूँ ही हैं मगर तीसरी काबिले ज़िक्र है ?
"जो शख्स असर के वक़्त दुकान सजाएगा और झूटी क़सम खाएगा कि मुझे फलाँ सामान के इतने मिल रहे थे."

*मुस्लमान अपने पैगम्बर की हर बात पर वाह वाह करते हैं मगर उसकीगहराई में कभी नहीं जातेक्या अस्र बाद ही सच बोलना चाहिएपूरे दिनक्यों  ईमान दारी से तिजारत करनी चाहिए.

बुखारी १०४६
मुंतकिम अल्लाह के मुन्तकिम रसूल अपनी इन्तेकामी फ़ितरत से इस क़दर लबरेज़ हैं कि कहते हैं
"मैं हौज़ क़ौसर से कुछ लोगों को इस तरह भगा दूंगा जैसे अजनबी ऊँट को पानी पीने की जगह से भगा दिया जाता है."
हौज़ क़ौसर क्या हैं? पहले तो इसे जानें - - -
मुहम्मद के नाजायज़ बेटे लौंडी ज़ादे इब्राहीम की मौत जब लोहार के घर,धुंए से दम घुटने पर हो गई तो अहले मदीना  औरतों ने मुहम्मद को बड़ेतअने तिशने दिए थे कि
"बनते हैं अल्लाह के नबीबुढ़ापे में एक लड़का हुवा तो उसे भी इनका अल्लाह  बचा सका"
खिस्याए मुहहम्मद ने "सूरह  क़ौसर" अल्लाह से उतरवाई कि
"ऐ मुहम्मद ! तू ग़म न कर तुझको मैंने अपनी जन्नत में फैले हौज़ ए क़ौसर का निगरान बनाया."
*वह ऐसे निगरानी करेंगे कि जन्नत्यों को भी अजनबी ऊंटों की तरह बैरंग वापस कर देंगे.
दूसरी तरफ यही उम्मी कहते हैं कि जन्नत में कोई भूखा प्यासा नहीं रहेगा,  दिल चाहेगा शराब पीने काशराब लिए हूर  गिलमा हाज़िर होंगे.
यहाँ कहते हैं लोग प्यासे ऊँट की तरह पानी के लिए जन्नत में भटकतेहोंगे.
मज़े की बात ये है कि मुसलमान ऐसी मुतज़ाद बातों पर यकीन भी करते हैं.

बुखारी १०४७
मुहम्मद कहते हैं "अल्लाह उस शख्स से कभी राज़ी न होगा जो पानी रखते हुए प्यासे को  पिलाए."
*अभी पिछली हदीस में मुहम्मद प्यासों को अजनबी ऊँट की तरह भगाते हैंगोया नादानी में खुद जहन्नम रसीदा हुए.
मुसलमानों! तुम ही कहो कि तुम्हारे माबूद नुमा मोहमद को क्या नाम दें?

बुखारी १०५०
"अली कहते हैं कि जंग  बदर में मुझे एक ऊँट ग़नीमत में मिला था और एक उनके ससुर मुहम्मद ने बतौर अतिया दिया थामेरा मंसूबा यह बनाकि इन ऊंटों पर मैं अज़ख़र  घास लाद कर लाया करूंगाइसे बाज़ार में फ़रोख्त  कर के पैसे इकठ्ठा करूंगा फिर उसके बाद फ़ातिमा का वलीमाकरूंगा जो कि अभी तक बाक़ी  चला  रहा थामैं मंसूबा बंदी कर ही रहा था कि बग़ल के मकान में हम्ज़ा (मुहम्मद के चचा) बैठे शराब पी रहे थे और सामने एक रक्कासा गाने गा रही थी जिसके बोल कुछ यूँ थे कि "वह पड़ोस में बंधे ऊंटों का कबाब खाना चाहती है."
 हम्ज़ा नशे के आलम में गए और ऊंटों को ज़बा कर डालायह ऊँट अली के थे जिनको लेकर वह क्या क्या मंसूबा बना रहे थेअली यह देख कर दोड़ते  हुए मुहम्मद के पास गए और मुआमला बयान कियावहां ज़ैद बिन हरसा भी मौजूद थातीनो एक साथ हमज़ा के पास गएउनको देख कर हमज़ा ने कहा
"तुम सब मेरे बाप के गुलाम हो."
 यह सुन का मुहम्मद वहां से चले आएयह वाक़िया  तब का है जब शराब  हलाल हुवा करती थी.
बस दुसरे लम्हे ही शराब हराम कर दिया.
*इस हदीस को पढने के बाद दो अहम् बातें निकल कर सामने आती हैं जिन पर आज मुसलमानों को ग़ौर  करना पडेगापहली ये कि मुहम्मद के ज़ाती मुआमले के बाईस मुसलमानों को शराब जैसी नेमत से महरूम कर दियाज़रा सा मुआमला ये था कि दो ऊंटों का मुहम्मद के दामाद अली का नुकसानक्या इस ज़रा सी बात पर दुन्या की कौमों  का यह मकबूल तरीन मशरूब हराम कर देना चाहिए?
(शराब नोशी को हलाल रखने की बात अलग है जिसके लिए पूरी किताब तहरीर हो सकती है.)
दूसरी बात अली कि इल्मी और शखसी हैसियत क्या थी कि घास खोद कर बेचना जैसा अमल उनका ज़रिया मुआश थाउनकी इल्मी लियाक़त का शोर मचा हुवा है , आज उनके फ़रमूदात की लाइब्रेरियाँ भरी हुई हैं.
कितना पोल खाता है इस्लामी अक्दास में ?

 


जीम. मोमिन 

Tuesday 18 September 2012

Hadeesi Hadsa -53


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मोमिन और मुस्लिम का फ़र्क़ 
मुसलमानो! 
एक बार फिर तुम से गुज़ारिश है कि तुम मुस्लिम से मोमिन बन जाओ. मुस्लिम और मोमिन के फ़र्क़ को समझने  की कोशिश करो. मुहम्मद ने दोनों लफ़्ज़ों को खलत मलत कर दिया है और तुम को गुमराह किया है कि मुस्लिम ही असल मोमिन होता है जिसका ईमान अल्लाह और उसके रसूल पर हो. 
यह किज़्ब है, दरोग़ है, झूट है, सच यह है कि आप के किसी अमल में बे ईमानी न हो यही ईमान है, इसकी राह पर चलने वाला ही मोमिन कहलाता है. जो कुछ अभी तक इंसानी ज़ेहन साबित कर चुका है वही अब तक का सच है, वही इंसानी ईमान है. अकीदतें और आस्थाएँ कमज़ोर और बीमार ज़ेहनों की पैदावार हैं जिनका नाजायज़ फ़ायदा खुद साखता अल्लाह के पयम्बर,  भगवान रूपी अवतार , गुरु, महात्मा उठाते हैं.
तुम समझने की कोशिश करो. मैं तुम्हारा सच्चा ख़ैर ख्वाह हूँ. 
ख़बरदार ! 
कहीं मुस्लिम से हिन्दू न बन जाना वर्ना सब गुड गोबर हो जायगा, 
क्रिश्चेन न बन जाना, बौद्ध न बन जाना वर्ना मोमिन बन्ने के लिए फिर एक सदी दरकार होगी. 
धर्मांतरण बक़ौल जोश मलीहाबादी एक चूहेदान से निकल कर दूसरे चूहेदान में जाना है. बनना ही है तो मुकम्मल इन्सान बनो, इंसानियत ही दुन्या का आख़िरी मज़हब होगा. मुस्लिम जब मोमिन हो जायगा तो इसकी पैरवी में ५१% भारत मोमिन हो जायगा। 
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बुखारी १०११
`"मुहम्मद ने नर को मादा पर चढाने से और इसके बदले पैसा लेने से इंकार कर दिया."
*यह आम तौर पर पेशा हुवा करता था और आज भी है कि लोग नर को पाले रहते हैं कि ये नसले बढ़ने के काम आएगा और इसकी उजरत भी लेते है क्योंकि उन्हेंपालने-पोसने में कुछ लागत भी आती  है. जायज़ पेशा हुवा.
मुहम्मद की पैगम्बरी अक्ल की पनाह चाहती है कि उजरत न लेते मगर कुदरत के मुआमले में अपनी जिहालत न भरते. अव्वल तो पैगम्बरी शान पर ये ज़ेबा ही नहीं देता कि नर पाले वह भी अन्डू. फिर इस नाज़ेब्गी को अवाम के काम न आने दें. अपनी इसी नज़रिए के चलते वह सांड पालने वालों पर भी बरहम हुवा करते थे और उनको जहन्नमी कहते थे.

बुखारी १०१२
मुहम्मद कहते हैं कि जब कोई तुमको किसी मालदार का हवाला दे तो चाहिए कि तुम उसके पीछे लग जाओ. उसका लाख हीला हवाला उसके काम न आने दो.
* यह मुहम्मद की नाकिस सोंच थी. एक तरफ़ तो उनका कोई मेहनत कशी का पैगाम नहीं है, दूसरी तरफ़ मेहनत और हिकमत से मॉल कमाने वालों के पीछे मुफ्त खोर गुंडों को लगा दो?
लूट खसोट मुहम्मद के वजूद में शामिल है.

बुखारी १०२४
मुहम्मद का ख़याल बल्कि ईमान था कि जिस घर में खेती के औज़ार होते है, उस घर में नेकी के फ़रिश्ते नहीं आते. 
* हमारे हिन्दुतानी मुआशरे में किसान को अन्न दाता कहा गया है क्योकि उसकी मेहनत से ही अवाम और खवास का पेट भरता है. इस्लाम की कोई भी तजवीज़ इंसानियत कुश है.

बुखारी १०२५
मुहम्मद कहते हैं जो शख्स कुत्ता पलेगा, उस को एक कैरट गुनाह होगा, उसकी नेकियों से कट जायगा मगर किसान को कुत्ता पालने की छूट है.
* कैसी मुत्ज़ाद(विरोधा भाषी) जात थी जो कहता है कि हल बैल नहूसत की अलामत है मगर उसके मालिकों को कुत्ता पलने की इजाज़त है. दूसरों को एक किरात योमया गुनाह ? 
मुसलमानों! कैसा सर फिरा था तुम्हारा गाऊदी रसूल, जिसको तुम सरवरे-कायनात कहते हो.

बुखारी-१०२८ 
अबू हरीरा कहते हैं एक शख्स गाय पर सवार मुहम्मद के सामने से निकला, गाय ने फ़रियाद की 
" या रसूल लिल्लाह मैं सवारी के लिए नहीं पैदा की गई, बल्कि खेती के लिए मखलूक हूँ." मुहम्मद ने कहा 
"हाँ! मैं, अबू बकर और उमर इस बात के गवाह हैं." 
इसके बाद एक भेडिया बकरी ले भगा, चरवाहे ने इसका पीछा किया, भेडिए ने कहा 
"योम ए जज़ा कौन इसकी हिफाज़त करेगा. उस दिन सिवाए मेरे इसका कोई निगहबान 
न होगा." 
मुहम्मद ने कहा "हाँ मै, अबू बकर और उम्र इसकी गवाही देंगे." 
अबू हरीरा कहते हैं कि उस वक़्त वहां अबू बकर या उमर कोई मौजूद नहीं था. 
*अव्वल तो हदीस ही बेहूदा है कि चलती हुई गाय और भागता हुवा भेड़िया मुहम्मद से गुफतुगू करते है. इसमें भेडिए की दलील तो किसी फलसफे में नहीं आती कि वह कयामत के दिन बकरी का निगेहबान होगा. 
अबू हरीरा हैरान हैं कि उस वक़्त वहां अबू बकर और उमर मौजूद नहीं थे. मैं हदीस गो अबू हरीरा की बातों पर हैरान हूँ कि उसने गाय और भेडिए को मुहम्मद से बातें करते हुए देखा? 
इस्लाम का पूरा पूरा ढांचा ही झूटी गवाहियों पर कायम है. मुआज्ज़िन कहता है कि 
"मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं." 
अबू बकर और उमर को लेकर मुहम्मद ने तीन गवाहियाँ कर लीं ताकि झूट में पुख्तगी आ जाए. 
मुहम्मद मुसलमानों के लिए बद तरीन रहनुमा हैं. इस्लाम को झूटों से सजाने के लिए कैसी कैसी बे सिर पैर की बातें गढ़ते हैं. 


जीम. मोमिन 

Tuesday 11 September 2012

Hadeesi Hadse - 52



यह जहन्नुमी आलिमाने-दीन

क़यामत के दिन तमाम इस्लामी ओलिमा और आइमा को चुन चुन कर अल्लाह जब जहन्नम रसीदा कर चुकेगा तो ही उसके बाद दूसरे बड़े गुनाहगारों की सूची-तालिका अपनी हाथ में उठाएगा. यह (तथा कथित धार्मिक विद्वान) टके पर मस्जिद और कौडियों में मन्दिर ढ़ा सकते हैं। ये दरोग़, क़िज़्ब, मिथ्य और झूट के यह मतलाशी, शर और पाखंड के खोजी हुवा करते हैं। इनकी बिरादरी में इनके गढे झूट का जो काट न कर पाए वही सब से बड़ा आलिम होता है। यह इस्लाम के अंतर गत तस्लीम शुदा इल्म के आलिम होते हैं यथार्थ से अपरिचित यानी कूप मंडूक जिसका ईमान से कोई संबंध नहीं होता। लफ्ज़ ईमान पर तो इस्लाम ने कब्जा कर रखा है, ईमान का इस्लामी-करण कर लिया गया है, वगरना इस्लाम का ईमान से दूर दूर तक कोई रिश्ता नहीं है। ईमान धर्म-कांटे का निकला हुवा सच है, इस्लाम किसी अल्प-बुद्धि की बतलाई हुई ऊल-जुलूल बातें हैं, जिसको आँख मूँद कर तस्लीम कर लेना इस्लाम है।

अमरीकी प्रोफेसर सय्यद वकार अहमद हुसैनी कहते हैं "कुरान की 6226 आयातों में से 941 पानी के विज्ञानं और इंजीनयरिंग से संबध हैं, 1400 अर्थ शास्त्र से, जब कि केवल 6 रोजे से हैं और 8 हज से।"
प्रोफेसर हुसैनी का ये सफेद झूट है, या प्रोफ़सर हुसैनी ही फर्ज़ी अमरीकी प्रोफ़सर हैं, जैसा कि ये धूर्त इस्लामी विद्वान् अक्सर ऐसे शिगूफे छोड़ा करते हैं । कुरआन कहता है
"आसमान ज़मीन की ऐसी छत है जो बगैर खंभे के टिका हुआ है. ज़मीन ऐसी है कि जिस में पहाडों के खूटे ठुके हुए हैं ताकि यह अपनी जगह से हिले-डुले नहीं" और "इंसान उछलते हुए पानी से पैदा हुवा है" क़ुरआन में यह है इंजीनयरिंग और पानी का विज्ञान जैसी बातें। इसी किस्म के ज्ञान (दर अस्ल अज्ञान) से क़ुरआन अटा पडा है जिस पर विश्वास के कारण ही मुस्लिम समाज पिछड़ा हुवा है. मलऊन ओलिमा इन जेहाल्तो में मानेयो-मतलब पिरो रहे हैं. हकीक़त ये है की क़ुरआन और हदीस में इंसानी समाज के लिए बेहद हानि कारक, अंधविश्वास पूर्ण और एक गैरत मंद इंसान के लिए अपमान जनक बातें हैं, जिन्हें यही आलिम उल्टा समझा समझा कर मुस्लिम अवाम को गुमराह किया करते है।
अभी पिछले दिनों एन डी टी वी के प्रोग्राम में हिदुस्तान की एक बड़ी इस्लामी जमाअत के दिग्गज और ज़िम्मेदर आलिम महमूद मदनी, जमाअत का प्रतिनिधित्व करते हुए भरी महफ़िल में अवाम की आंखों में धूल झोंक गए। बहस का विषय तसलीमा नसरीन थी। मौलाना तसलीमा की किताब को हवा में लहराते हुए बोले,"तसलीमा लिखती है 'उसने अपने बहू से शादी की " गुस्ताख को देखो हुज़ूर की शान में कैसी बे अदबी कर रही है।" ( मदनी को मालूम नहीं कि अंग्रेज़ी से हिन्दी तर्जुमा में यही भाषा होती है।) आगे कहते है "हुज़ूर की (पैगम्बर मुहम्मद की ) कोई औलादे-नरीना (लड़का) थी ही नही तो बहू कैसे हो सकती है ?" बात टेकनिकल तौर पर सच है मगर पहाड़ से बड़ा झूट, जिसे लाखों दर्शकों के सामने एक शातिर और अय्यार मौलाना बोलकर चला गया और अज्ञात क़ौम ने तालियाँ बजाईं। उसकी हकीक़त का खुलासा देखिए-----
किस्से की सच्चाई ये है कि ज़ैद बिन हारसा एक मासूम गोद में उठा लेने के लायक बच्चा हुवा करता था। उस लड़के को बुर्दा फरोश (बच्चे चुराने वाले) 

ज़ैद का बाप हारसा बेटे के ग़म में परेशान ज़ारों-क़तार रोता फिरता। एक दिन उसे पता चला कि उसका बेटा मदीने में मुहम्मद के पास है, वह फिरोती की रक़म जिस कदर उससे बन सकी लेकर अपने भाई के साथ,मुहम्मद के पास गया। ज़ैद बाप और चचा को देख कर उनसे लिपट गया। हारसा की दरखास्त पर मोहम्मद ने कहा पहले ज़ैद से तो पूछो कि वह किया चाहता है ? पूछने पर ज़ैद ने बाप के साथ जाने से इनकार कर दिया, तभी बढ़ कर मुहम्मद ने उसे अपनी गोद में उठा लिया और सब के सामने अल्लाह को गवाह बनाते हुए ज़ैद को अपनी औलाद और ख़ुद को उसका बाप घोषित किया। ज़ैद बड़ा हुवा तो उसकी शादी अपनी कनीज़ ऐमन से कर दी। बाद में दूसरी शादी अपनी फूफी ज़ाद बहन ज़ैनब से की। ज़ैनब से शादी करने पर कुरैशियों ने एतराज़ भी खड़ा किया कि ज़ैद गुलाम ज़ादा है, इस पर मुहम्मद ने कहा ज़ैद गुलाम ज़ादा नहीं, ज़ैद, ज़ैद बिन मुहम्मद है। मशहूर सहाबी ओसामा ज़ैद का बेटा है 

जो मुहम्मद का बहुत प्यारा था. गोद में लिए हुए उम्र के ज़ैद वल्द मुहम्मद एक अदद ओसामा का बाप भी बन गया और मुहम्मद के साथ अपनी बीवी ज़ैनब को लेकर रहता रहा, बहुत से मुहम्मद कालीन सहाबी उसको बिन मुहम्मद मरते दम तक कहते रहे और आज के टिकिया चोर ओलिमा कहते हैं मुहम्मद की कोई औलादे-नरीना ही नहीं थी. सच्चाई इनको अच्छी तरह मालूम है कि वह किस बात की परदा पोशी कर रहे हैं.
दर अस्ल गुलाम ज़ैद की पहली पत्नी ऐमन मुहम्मद की उम्र दराज़ सेविका थी ओलिमा उसको पैगम्बर की माँ की तरह बतला कर मसलेहत से काम लेते है. खदीजा मुहम्मद की पहली पत्नी भी ऐमन की हम उम्र मुहम्मद से पन्द्रह साल बड़ी थीं. ज़ैद की जब शादी ऐमन से हुई, वह जिंस लतीफ़ से वाकिफ भी न था. नाम ज़ैद का था काम मुहम्मद का, चलता रहा. इसी रिआयत को लेकर मुहम्मद ने जैनब, अपनी पुरानी आशना के साथ फर्माबरदार पुत्र ज़ैद की शादी कर दी, मगर ज़ैद तब तक बालिग़ हो चुका था . एक दिन, दिन दहाड़े ज़ैद ने देखा कि उसका बाप मुहम्मद उसकी बीवी जैनब के साथ मुंह काला कर रहा है, रंगे हाथों पकड़ जाने के बाद मुहम्मद ने लाख लाख ज़ैद को पटाया कि ऐमन की तरह दोनों का काम चलता रहे मगर ज़ैद नहीं पटा. कुरआन में सूरह अहज़ाब में इस तूफ़ान बद तमीजी की पूरी तफ़सील है मगर आलिमाने-दीन हर ऐब में खूबी गढ़ते नज़र आएंगे.
इसके बाद इसी बहू ज़ैनब को मुहम्मद ने बगैर निकाह किए हुए अपनी दुल्हन होने का एलान किया और कहा कि "ज़ैनब का मेरे साथ निकाह सातवें आसमान पर हुवा, अल्लाह ने निकाह पढ़ाया था और फ़रिश्ता जिब्रील ने गवाही दी।" इस दूषित और घृणित घटना में लंबा विस्तार है जिसकी परदा पोशी ओलिमा पूर्व चौदह सौ सालों से कर रहे हैं। इनके पीछे अल्कएदा, जैश, हिजबुल्ला और तालिबान की फोजें हर जगह फैली हुई हैं। "मुहम्मद की कोई औलादे-नारीना नहीं थी" इस झूट का खंडन करने की हिंदो-पाक और बांगला देश के पचास करोड़ आबादी में सिर्फ़ एक औरत तसलीमा नसरीन ने किया जिसका जीना हराम हो गया है।

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बुखारी १००१
"मुहम्मद का कहना है कि कुत्ते की तिजारत, भडुवा गीरी, और काहनों की बाटी हुई मिठाई खाना हराम है."
* क़ुरानी फ़रमान में मुहम्मदी अल्लाह कहता है कि "अपनी लौंडियों की जिस्म फ़रोशी से मिलने वाले फ़ायदे हैं तो मना फिर भी इसके लिए अल्लाह मेहरबान मुआफ करने वाला है."?
यानि इस बद तरीन कमाई खाना गनीमत है मगर कुत्ते की परवरिश के बदले में मिलने वाला मव्ज़ा हराम.
बुखारी अ००७
मुहम्मद ने कहा "अल्लाह तअला जिसे अपना नबी मबऊस (मुक़र्रर)करता है, वह बकरियां को ज़रूर चराए हुए होता है."
 किसी ने पूछा क्या आप भी? कहा
"हाँ मैं भी मक्का में चन्द दिरहम के एवाज़ बकरियां चराइं."
*बकरियां चराने के दौरान मुहम्मद ने पैगम्बरी का ख्वाब भी देखा. मुराद पूरी होने पर दुन्या के बड़े हिस्से को किसी चरवाहे का इल्मे-जिहालत तकसीम किया जो दुन्या के लिए अजाब बना हुवा है.
बुखारी  १००८
मुहम्मद एक मिसाल पेश करते हैं कि
" किसी ने एक काम पूरा करने के लिए कुछ लोगों को काम पर रखा मगर काम पूरा करने से पहले वह थक हार के अपनी उजरत मुआफ करते हुए चले गए.
इसी तरह वह शख्स तीन बार मजदूरों को रखता है मगर हर बार मज़दूर हिम्मत हारके चले जाते हैं.
चौथी बार वह जिस गिरोह को सूरज डूबने से पहले काम पर लगता है, वह काम को पूरा कर देते हैं और साबिका तीनों गिरोहों की पूरी उजरत + अपनी लेकर चले जाते हैं.
मुहहम्मद इस्लाम कुबूल करने वालों को चौथा गिरोह मानते हैं."
*यह मिसाल अपने आप में मुसलमानों को क्या रुतबा देती है कि तीन मेहनत कशों का हक इन्हें मुफ्त मिल गया.?
क्या इनका अल्लाह उस शख्स की तरह है जो तीन गिरोहों की उजरत घोटते को जायज़ समझे और चौथे  को मुफ्त देदे? ये तो बहुत ही नामाकूल अल्लाह है.
मुहम्मद का ज़ेहनी मेयार कुछ यूँ ही था.
मुसलमानों! खुद पर और अपनी नस्लों पर तरस खाओ.
बुखारी १०१०
कुछ लोग सफ़र में थे कि रात हो गई, पास की बस्ती में रुक जाने का फैसला किया. बस्ती पहुँच कर बसती वालों से अपनी मेहमान दारी करने की फ़रमाइश की जिसे बस्ती वालों ने इनकार कर दिया. इत्तिफ़ाक से उस बस्ती के मुख्या को किसी ज़हरीले जानवर ने डंस लिया. वह लोग परेशान हो गए, कोई इलाज काम रहा था. मश्विरह ये हुवा कि चलो बस्ती में टिके मुसाफिरों से दरयाफ्त किया जाए कि उनको शायद कोई मंतर मालूम हो. उनके पास जाकर माजरा बयान किया और पूछा कि आप लोगों के पास कोई मंतर है?
उनमें से एक बोला मंतर तो है मगर उसका मावज़ा अदा करना पड़ेगा, क्योंकि तुम लोगों ने हमारी मेहमानी करने से इंकार कर दिया था. मुआमला बकरयो के एक रेवड़ पर तै हुवा.
मुसाफिर में एक ने कुरान की पहली सूरह 'अल्हम्द' पढना और मुखिया पर दम करना शुरू कर दिया, इत्तेफाक से वह मुखिया ठीक होने लगा और कुछ देर में एकदम ठीक हो गया, गोया उन लोगो को उन्हों ने बकरियों का एक रेवड़ दिया ज़िसको उन लोगों ने आपस में बाँटना चाहा कि उनमें से एक ने कहा चलो रसूल अल्लाह के पास मुआमले को बतलाएं फिर बाटें.
वह लोग मुहम्मद के पास आए और मुआमला बयान किया. इस दिल चस्प वाकिए पर मुहम्मद हँसे और उन से पूंछा कि "तुम को कैसे मालूम हुवा कि 'अल्हम्द' में मंतर छिपा है? कहा, खैर तुम लोग हिस्सा बाँट लो मगर उसमे मेरा हिस्सा भी लगेगा.
*दो बातें सामने आईं कि मुहम्मद अल्हम्द के मुसन्निफ़! हैरत में पड़ गए कि मेरी रचना मंतर का काम भी करती है? उनको लोगों की बेवकूफियों से एक फ़ायदा और भी मिला.
दूसरे यह कि मुहम्मद की नियत का अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि जायज़ नाजायज़ मॉल हजम करने में कितने चाक चौबंद थे
उनको क्या कमी थी कि हर मुआमले में अपना माली फ़ायदा ज़रूर देखते थे. आखिर थे तो एक चरवाहे  .
 


जीम. मोमिन