Monday 1 August 2016

बांग-ए-दरा 51


बांग-ए-दरा

ईमान दारी बनाम इस्लाम दारी

इस्लाम ने हर मुक़द्दस अल्फ़ाज़ को अपनी बद नियती का शिकार बना डाला. ईमान बहुत ही अहम् लफ़्ज़ है जो मेरी मालूमात तक इसका हम पल्ला (पर्याय वाची) लफ़्ज़ कहीं और नहीं. ईमान दारी में पूरी सच्चाई के साथ साथ फितरत की गवाई भी शामिल हो  जाती है और ज़मीर की आवाज़ भी. 
जो फितरी सच हो वही ईमान दारी है. 
ईमान दारी गैर जानिबदारी की अलामत होती है और मसलेहत से परे. 
बहुत जिसारत की ज़रुरत है इस को अपनाने के लिए. 
इस्लाम्दारी दर असल गुलामी होती है मुहम्मदी अल्लाह की, 
जिसका फ़रमान हर सूरत से मुसलमान को मानना पड़ता है, 
ख्वाह कि वह कितनी भी बे ईमानी हो.
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