Thursday 14 July 2016

बांग-ए-दरा 33



बांग-ए-दरा
ऐ जमीर मै तुझ से शर्मिंदा हूँ

"मै गवाही देता हूँ अल्लाह के सिवाये कोई माबूद (पूजनीय) नहीं और मुहम्मद उसके रसूल है"
यह एक जादुई फिकरा है जिसे पढ़ते ही आपके ब्लड रिलेटिव्स आप के नजदीक गैर हो जाते हैं। आपका आपके इतिहास से नाता टूट जाता है, अपका भूगोल बदल जाता है।
आप पांच नदियों के मीठे पानी के बजाय दूर के रेगिस्तान की रेत फ़ाँकने में फक्र महसूस करते हैं..।
क्योंकि इसे कहने वाला तुरंत मुसलमान बन जाता है इस्लाम की नजर में..।
और क्या अजीब संयोग है कि यह फिकरा यानी जिसे "कलमा ए शहादत " कहा जाता है ये कुरआन में सिरे से मौजूद नहीं, जो दुनिया भर के इल्म समेटे होने की दावेदार है। 
ये तो बहुत बाद की उपज है, एक बिद्दत है, और यह बिद्दत मुल्लों से उनका अतीत छीन चुकी है, मुल्लों का हाल बदहाल और भविष्य अन्धकार किए हुए हैl
दुनिया की किसी भी अदालत में गवाही देने के लिए आपका उस घटना का प्रत्यक्षदर्शी होना जरूरी होता है।
लेकिन इस वाक्य से आप एक ऐसी गवाही दे रहे होते हैं जिसके आप प्रत्यक्षदर्शी नहीं हैं। आपके पास कभी कोई ऐसा सबूत नहीं कि जो आप कह रहे हैं यह वास्तव में सच है या नहीं। 
यह सारा कमाल बचपन की प्रोग्रामिंग का है।
झूठ बोलना तो किसी भी समाज में सही नहीं माना जाता लेकिन जब आप झूठी गवाही देते हैं तो वह गुनाह माना जाता है।
कभी समय मिले तो मुल्लों को अपने विवेक की अदालत के सामने खुद को पेश करके और कबूल करना चाहिए कि उन्होंने एक झूठी गवाही दी, 
"कि मैं इस बात को न ही शाहिद हूँ और न ही मैं यह गवाही दे सकता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं या किसी दुसरे माबूद का कोई वजूद नहीं और इसी माबूद ने किसी को पैगाम देकर भेजा"।
कहते हैं एक झूठ अधिक झूठ को जन्म देता है और इसी वजह से मुल्लों ने कभी किसी की उंगली से चाँद के दो टुकड़े होने का दावा किया, कभी एक पंखों वाले गधे पर बैठ कर किसी के कायनात से बाहर जाने की कहानियां सुनाईं। 
तो कभी अबाबील की छोटी कनकरों से हाथियों का लश्कर तबाह की खबर सुनाई।

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