Sunday 24 July 2016

बांग-ए-दरा 43


बांग-ए-दरा

तबलीगिए

मुसलामानों में एक नया तबका तबलीगी जमात का पैदा हुवा है जिनका एक सूत्री प्रोग्राम होता है ,
नमाज़ पढ़ना और नमाज़ पढ़ाना .
यह बहुधा समाज के निकम्मे और कर्तव्य पलायन लोग होते हैं जो मज़हब की आड़ से सम्मान हासिल करने की कोशिश में रहते हैं . यह लोगों को इस तरह बहकते हैं कि - - - 
फर्द के पास जाते हैं, अल्लाह और रसूल का वास्ता देकर मस्जिद ताक ले जाते हैं, अपने असर में दो तीन दिन ताक लिए रहते हैं फिर उसको अपने साथ तबलीग (धर्म प्रचार) पर ले जाने की पेश कश रखते हैं , व्यत्ति कहता है - - - 
अरे भाई मैं अपने घर की ज़िम्मेदारी किस पर छोड़ कर जा सकता हूँ ? मेरा छोटा सा कारोबार कौन सीखेगा ??
यह उससे पूछते हैं - - -
अल्लाह पर भरोसा है ?
कभी कभी कशमकश में आकर व्यक्ति फंस जाता है .

कहते हैं इसी तरह की पांच लोगों की एक जमात कस्बे से बाहर निकली तो वापस नहीं आई .
लोग कहते हैं कि वह बहुत दूर कोरियाई कबीला तक पहुँच गए थे . वहां खेत पर काम करता हुवा एक किसान मिला जिसको इन्हों ने अपना मुद्दा बयान किया, वह इन्हें अपने मुखिया के पास ले गया . 
मुखिया ने इनकी बात सुनी और बहुत खुश हुवा . पूरे गाँव को इकठ्ठा करके उसने एलान किया कि नया मज़हब का पैगाम लेकर यह लोग आए है तुम सब को इनकी बात पर अमल करने की हिदायत है .
इन तबलीगियों ने गाँव के लोगों को नमाज़ की उठठक बैठक लडवाना शुरू कर दिया . बस थोड़ी सी दिक्क़त आती जब यह रुकु, सुजूद बहुत तेज़ी से करते , जैसे जोड़ो कराटे का अंदाज़ होता है. पेश इमाम का जितना वक़्त 
"अल्लाह हाक्बर, समी अल्लाह होलेमन हमदा " 
में लगता, कोरियाई अठ्ठारा बर रुकू कर लेते .
क्या फर्क पड़ता है , धीरे धीरे मेरी तरह ही सुस्त हो जाएँगे, मुल्ले यह सोच कर तसल्ली कर लेते . 
तब्लीगियों की चांदी कट रही थी. मन चाहा , मुफ्त में कयाम और तुआम . 
उन्हों ने चिल्ले को बढ़ा कर चालीस दिन कर दिया . 
ख़त्म तबलीग कबीले ने इन्हें एक नाव पर बिठा कर नाविक को नदी , बस अड्डे तक छोड़ने का आदेश दिया .
नाव 40-50 क़दम ही चली होगी कि मुखिया ने आवाज़ लगाई ,
मुल्ला जी ! सुनिए , 
मैं भूल रहा हूँ कि मग़रिब की नमाज़ में फ़र्ज़ की कितनी रिकात होती हैं ?
अमीर जमात बडबडाया, 
लाख तोते को पढाया, पर वह हैवाँ ही रहा .
मुखिया ने आवाज़ दी , रुकिए , मैं खुद आ रहा हूँ .
और मुखिया पानी पर चलता हवा उनके पास पहंचा , 
मुसाफा करने के लिए हाथ बढाया ,
तब्लीगियों की हवा ख़ारिज होने लगी . 
मैं पानी पर नहीं आ सकता , डूब जाऊँगा ,
तैरना तो आता होगा ? कि वह भी नहीं सीखा ?
अरे ! हम अल्लाह वाले लोग तैरना वेरना क्या जाने .
वह बोले ,
मुखिया ने नाविक को हुक्म दिया ,
डुबो दे इन हराम खोरों को ताकि मानव जाति पर से कुछ बोझ कम हो .

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