Wednesday 28 October 2015

hADEESI hADSE 180


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हदीसी हादसे 68

बुखारी 1257
मुहम्मदी अल्लाह काना नहीं है 
"मुहम्मद ने कहा तुमको  दज्जाल से डराता हूँ . अगर्च कि हर एक नबी ने इससे अपनी उम्मत को डराया है, हत्ता कि नूह अलैहिस्सलाम ने भी अपनी उम्मत को डराया था , लेकिन मैं तुमको एक ज़ायद बात बतलाता हूँ कि दज्जाल काना होगा , अल्लाह ताला काना नहीं।"
*अल्लाह काना नहीं, यानी उसकी दोनों आँखें सहीह सलामत हैं, किसी ने उसकी एक आँख को फोड़ा नहीं, न ही उसको मोतिया बिन्द हुवा।
अल्लाह की आँखें हैं तो कान  नाक मुंह हाथ पैर सभी अज्ज़ा होंगे और आज़ा ए तानासुल भी . कभी अंगडाई भी आती होगी और अपनी तरह किसी तनहा जिन्स  ए मुखालिफ को तलाश करता होगा . बकौल फैज़ - - -
आ मिटा दें ये तक़द्दुस ये जुमूद ,
फिर हो किसी ईसा वुरूद ,
तू भी मज़लूम है मरयम की तरह , 
मैं भी तनहा हूँ ख़ुदा के मानिंद।
मुहम्मद ने अपने अल्लाह के साथ बद तमीज़ी की है। कोई मदक्ची ही इस किस्म की बातें करता है। अगर उनका अल्लाह काना, लूला, लंगड़ा या बहरा होता तो बात बतलाने की होती, अल्लाह ऐबदार है।
मुहम्मद ने अपनी उम्मत को एक लक़ब बख्शा है कि एक आँख की खराबी वाले इंसान को ज़रा सी बात पर काना दज्जाल सुनने की ज़िल्लत उठानी पड़ती है। 

बुखारी 1276
"मुहम्मद फ़रमाते हैं कि एक नबी ने बस्ती के लोगों से जिहाद में शिरकत का एलान किया , मगर उन लोगों को रोका जिनकी शादी हुई हो और सुहागरात न मनी हो। उनको भी जिनके मकानों  की छत पड़ना बाकी हो, और उनको भी जिन की बकरियां और ऊंटनीयाँ  बियाई न हों। 
ग़रज़ बाकी लोग जिहाद के लिए निकल पड़े। अस्र के वक़्त उस गाँव के नज़दीक पहुंचे, नबी ने अल्लाह से दरख्वास्त की कि सूरज को कुछ देर के लिए डूबने से रोके ताकि दिन के उजाले में जिहाद की कारगुज़ारी को अंजाम देदें। गोयः सूरज रुक गया और दिन के उजाले में ही लूट पाट से जिहादी फ़ारिग हो गए।
जिहाद में लूट के माल को देख कर वह नबी छनके कि तुम लोगों में से किसी ने ग़नीमत में ख़यानत की है। नबी ने हुक्म दिया कि सब लोग उनके पास आएं और उनके हाथ पर हाथ रख कर सफ़ाई पेश करें। इससे दो चोरों के हाथ नबी के हाथ से चिपक गए . उन दोनों चोरों ने एक गाय के सर के बराबर सोना चुरा रखा था। उसके मिलने के बाद ही आग ने ग़नीमत को खाना मंज़ूर किया .
आगे मुहम्मद कहते हैं कि पहले गनीमत खाना हराम था और उसको आग को खिला  दिया जाता था, मगर मेरे जोअफ़ और आजिजी को देख कर अल्लाह ने हमारे लिए गनीमत (लूट पाट का माल )को हलाल कर दिया।"
*इस्लाम से पहले जंगों में लूट पाट नाजायज़ क़रार था, वह भी अवाम को लूटना तो जुर्म हुवा करता था। इसको मुहम्मद ने मुसलमानों के लिए हलाल कर दिया और मकर का सहारा लेकर कहा कि अल्लाह ने मेरी ज़ईफ़ी और आजज़ी को देख सुनकर इसे हलाल कर दिया।
मुहम्मद के बुढ़ापे और कमजोरी पर और उनकी दुआओं पर तरस खाकर अल्लाह ने उनके लूट-पाट को जायज़ कर दिया, ठीक ही किया कि कमज़ोर पर तरस आई, 
मगर उनके बाद उनकी उम्मत को हमेशा के लिए जईफ और कमज़ोर भी कर दिया कि वह हमेशा ग़नीमत खाते रहें। लूट पाट से न मिले तो खैरात ज़कात खाया करें, बासी तिवासी, उगला जूठन को निंगल लिया करें। आज कौम मुहम्मद की दुआओं के असर से दुन्या में खुली आँखों से महरूम और रू सियाह है।
कैसा है मुहम्मदी अल्लाह जो लूट पाट करने के लिए सूरज को डूबने नहीं देता ताकि लुटेरे आराम से मेहनत कशों की बस्ती को लूट सकें, इस लिए कि उनके मेहनत से हासिल किए गए असासे को आग के हवाले कर दिया जाए।
मगर देखिए कि ज़लील पैगम्बरी ने कैसे अपनी ज़ात को चमकाया है? 
अंधे मुसलमानों !
तुमको कौन सा आयना दिखलाया जाए की तुम सही और ग़लत की तमीज़ कर सको। इन हराम के जाने बेज़मीर ओलिमा ने तुम्हें इस्लाम की उलटी तस्वीर को दिखला कर गुमराह किए हुए हैं।
जागो! जागो !! जागो !!!



जीम. मोमिन 

Wednesday 21 October 2015

Hadeesi Haadse 179


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हदीसी हादसे 67
बुख़ारी 1453
इमाम गुमराह 
मुहम्मद कहते हैं कि एक वक़्त आएगा जब लोग गुमराही में मुब्तिला हो जाएँगे. वह हम तुम जैसे लोग होंगे, हमारी ज़ुबान बोलेंगे, मगर ख़बरदार तुम अपने इमाम की पैरवी करना, अगर इमाम मुयस्सर न हो तो जंगल की तरफ भाग जाना और दरख्तों की जड़ें खा खा कर मर जाना।
 * हाँ यह वक़्त ज़रूर आने वाला है, मुसलामानों की नौबत खुद कुशी की होगी और इमाम बकसरत होंगे, हर इमाम इनका खून चूस रहा होगा , मुसलमान अभी से तैयार हो जाएं।
ऐसे मौके पर ईसाई इनके सामने मिशन के साज़ लिए खड़े होंगे और हिन्दू शुद्धि करण की भजन मण्डली।
मगर खबरदार !
शुद्ध हुए तो हमेशा के लिए अशुद्ध ही हो जाओगे। वह तुमको अपनी रोटी बेटी में शामिल नहीं करेगे। इनको उस वक़्त मेहतरों और मजदूरों की ज़रुरत होगी, वह तुम पूरी करने के लिए तैयार रहना .
ईसाइयों का भी तुम्हें बख्श देने का ख़याल न होगा, इनको तुम्हारी ही सलाहियतों का मुसलसल फायदा चाहिए होगा । और चाहिए होगा एक बड़ा कंज्यूमर मार्केट .
ऐसा वक़्त आने से पहले तुन मोमिन की बात मानो , मज़हब ए इंसानियत की राह अपनाओ, इस से किसी इंसान को परहेज़ नहीं।
इस्लाम में इंसानियत का कोई बाब नहीं, मुल्लाओं के सुर में सुर मिलाना बंद करो। इनके साए से बचो, इनसे इतना दूर रहो कि जैसे ख़ारिश ज़दा कुत्तों से फ़ासला रखते हो, यह तुम्हारे दर पे आएं तो फ़क़ीरों जैसा सुलूक करो और इनको आगे बढ़ने को कह दो।
सिर्फ़ इंसानियत की राह ही तुमको बचा सकती है। इंसानियत जिसका कोई रहनुमा नहीं, वह खुद तुम्हारे अन्दर बैठी हुई है जो अपने अंकुर फोड़ा करती है, फूलती और फलती है और तुम्हें हर वक़्त सच्चाई की राह पर गामज़न रखती है।
बुख़ारी 1362 
क़ुदरत की एक ख़ूब सूरत मख़लूक़ है गिरगिट, जिसके नक़्ल ओ हरकत और रूप रंग को देखते ही बनता है. ये छिपकिली जैसा घिनावना भी नहीं होता और न उसके जैसा ज़हरीला ही .
इस प्यारी मख्लूक़ को मुहम्मद ने देखते ही मार डालने का हुक्म दिया है .मुसलमान बच्चे इसे जहाँ देखते हैं फ़ौरन इसके मारने का मश्गिला शुरू कर देते हैं , उनको बतलाया जाता है कि इसको मारने से सवाब मिलता है. 
इस वाक़िए का पस ए मंज़र ये है कि जब मुहम्मद रातो रात मक्का से मदीने के लिए फ़रार हो रहे थे कि रात  हो गई थी और वह एक ग़ार में छिप गए थे जिसके मुंह पर मकड़ियों ने रात में जाल तान दिया था . उनके दुश्मन ग़ार तक आए और मकड़ी के जाले को देख कर इसकी तलाशी नहीं ली क्योंकि जाल एकदम साबूत था .
मुहम्मद ग़ार के अन्दर से सब देख और सुन रहे थे, उन्हों ने देखा कि वहाँ मौजूद एक गिरगिट हस्ब आदत अपनी गर्दन उछाल रहा है जिसे अक़्ल के दुश्मन समझे की वह दुश्मनों को खबर दे रहा है कि मैं अन्दर हूँ .
इस मुआमले में न मकड़ी ने मुहम्मद को बचाया न गिरगिट ने उनके खिलाफ़ कोई अमल किया , दोनों अपने अपने फ़ितरत में मसरूफ रहे. 
मुहम्मद इस ग़रीब पर एक इलज़ाम और मढ़ते हैं कि ये उस आग को हवा दे रहा था जिसमें हज़रात इब्राहीम को डाल गया था .
 अबू हरीरा कहते हैं - - - 
कि मुहम्मद का हुक्म है कि गिरगिट को तीन या उस से ज्यादा बार मरने में सवाब है मगर दो बार में ज्यादा सवाब है, एक बार में मारने में तो मज़ह ही कुछ और है और सवाब भी ज्यादा .

* मैं ने भी बचपन में गिरगिट मारे हैं, इसका अज़ाब मुहम्मद और इस्लामी आलिमों से सर . 
जीम. मोमिन 

Wednesday 14 October 2015

Hadeesi Hadse 178


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हदीसी हादसे 66

बुख़ारी 1280 
अबू जेहल का खात्मः
जंग ए बदर में दो अंसारी नव जवानों ने सहाबी अब्दुर रहमान से दरयाफ्त किया कि क्या वह अबू जेहल को पहचानते हैं ? अब्दुर रहमान ने कहा हाँ !नव जवानों ने कहा जब वह दिखें तो हमें बतला देना। कुछ देर बाद अबू जेहल जब उन्हें दिखे तो उन्होंने ने उन नव जवानों को इशारा करके बतला दिया। वह दोनों आनन् फानन में अबू जेहल के पास पहुँचे और उनका काम तमाम कर दिया और इस खबर को जाकर मुहम्मद को दी।
मुहम्मद ने दोनों नव जवानों से पूछा कि तुम में से किसने क़त्ल किया ? दोनों ने अपना अपना दावा पेश किया . मुहम्मद ने दरयाफ्त किया कि क्या तुमने अपनी तलवारों का खून साफ़ किया ? जवाब था नहीं . जब तलवारें देखी गईं तो सच पाई गईं। 
मुहम्मद ने इनाम के तौर पर दोनों नव जवानों को मकतूल का घोडा और साज़ ओ सामान दे दिया।
* वाज़ह हो कि अबू जेहल मुहम्मद के सगे चचा थे और क़बीला ए कुरैश के सरदार थे। उन्हों ने हमेशा मुहम्मद की मुख़ालिफ़त की और अपने क़बीले को इस्लाम न कुबूल करने दिया, हत्ता कि मुहम्मद के सर परस्त चचा अबी तालिब को भी इससे बअज़ रखा। 
"उनका नाम "अबू जेहल", जिसके मअनी होते हैं " जेहालत की अवलाद " यह इस्लाम का बख्श हुवा नाम है जो इतना बोला गया कि झूट सच हो गया।"
 इनका असली नाम "उमरू बिन हुश्शाम " था।
मुर्दा उमरू बिन हुश्शाम की दाढ़ी पकड़ के मुहम्म्द लाश से गुफ्तुगू करते हैं और अपनी बरतरीबयान करते है, फिर लाश को बदर के कुएँ में फिकवा देते हैं।
 मुहम्मद के इस कुफ्र को मुसलमानों को ओलिमा नहीं देखने और समझने देते।

मुस्लिम - - - किताबुल हुदूद 
 मख़ज़ूमी क़बीले की एक ख़ातून को मुहम्मद ने चोरी के जुर्म में पकड़ा और ख़ुद उसका हाथ अपने हाथों से क़लम किया।
 इसके लिए लोगों ने काफ़ी कोशिश की कि ख़ातून एक मुअज़ज़िज़ क़बीले की फ़र्द थीं और चोरी बहुत मामूली थी, लोगों ने मुहम्मद के चहीते ओसामा से भी सिफ़ारिश कराई मगर मुहम्मद न म़ाने। 
बोले शरीफ़ को सज़ा न दी जायगी तो रज़ील एतराज़ करेंगे. बरहाल कसाई तबअ मुहम्मद ने उस सिन्फ़ ए नाज़ुक के हाथ कट डाले।
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बुख़ारी 1303+ मुस्लिम - - - किताबुल ईमान 
सूरज डूबने के बाद कहाँ जाता है ? 
"मुहम्मद ने अपने मुरीद अबू ज़र से एक दिन दरयाफ्त किया कि सूरज डूबने के बाद कहाँ जाता है, तुम जानते हो?
अबू ज़र का जवाब लाइल्मी का था , बोला अल्लाह या अल्लाह का रसूल ही बेहतर जानता है।
कहा यह आफ़ताब इलाही के पास जा कर सजदा करता है और तुलू होने की इजाज़त मांगता है , लेकिन क़ुर्ब क़यामत यह सजदा करने की इजाज़त तलब करेगा , न इसका सजदा क़ुबूल होगा न इजाज़त मिलेगी। बल्कि हुक्म होगा जिस तरफ़ से आया है उसी तरफ़ से वापस जा। चुनाँच यह मगरिब से तुलू होगा।"
* यह झूटी फ़ितरत ख़ुद साख्ता अल्लाह के रसूल की है , जो इतने बड़े बड़े झूट गढ़ने में माहिर थे। और इन हदीस निगारों को  क्या कहा जाय , जिनकी बातों का मुसलमान हाफ़ज़ा किया करते हैं। वह बारह सौ साल पहले इतने ही  थे कि इन बातों पर गौर न करके यक़ीन कर लिया जब कि बाईस सौ साल पहले अरस्तू  सुकरात ने सूरज की छान  बीन कर लिया था।
सानेहा यह है कि आज इक्कीसवीं सदी में भी मुसलमान इन बातों पर यक़ीन रखते हैं और अपने झूठे रसूल पर जान छिड़कते हैं।
जो कौम इस क़दर ज़ेहनी तौर पर दीवालिया होगी , उसका अंजाम आज के दौर में ऐसा ही होगा जैसा मुसलमानों का है। कीड़े मकोड़े की तरह मारे जाते हैं और अपने मुल्लाओं के बहकावे में आकर कहते हैं कि इस्लाम फल फूल और फैल रहा है।



जीम. मोमिन 

Wednesday 7 October 2015

Hadeesi Hadse 177


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हदीसी हादसे 65


बुख़ारी 1289
हदीस है कि ख़लीफा उमर ने लुक़मान इब्न मक़रन को सिपह सालार बना कर मुल्क कसरा (ईरान) पर चढ़ाई का हुक्म दिया, जिसके मुक़ाबिले में कसरा की चालीस हज़ार फ़ौज सामने आ खड़ी हुई . इसमें से एक तर्जुमान बाहर आया और पूछा 
"कौन लोग हो ? हमसे तुम्हारा मतलब क्या है? तुम में से कोई एक बहार आकर हम से कलाम करेगा ?
जवाब में मुग़ीरा नाम का एक सहाबी बाहर आया और बोला - - - 
क्या जानना चाहता है ?
उसने दर्याफ़्त किया, कौन लोग हो ?
मुग़ीरा बोला - - हम लोग अरब के रहने वाले हैं .
 हम लोग बड़ी तंग दस्ती और मुसीबत में थे .
 भूक के मारे चमड़े और खजूर की गुठलियाँ चूस चूस कर गुज़र अवक़ात किया करते थे। ऊन और बाल हमारी पोशाकें थीं। 
हम दरख्तों और पत्थरों की पूजा किया करते थे। 
ऐसे में अल्लाह ने अपनी जानिब से हम लोगों के लिए एक रसूल भेजा ,  उसी ने हम लोगों को तुम से लड़ने का हुक्म दिया .
उस वक़्त तक कि तुम एक अल्लाह की इबादत न करने लगो, 
या फिर हमें जजया देना क़ुबूल न करो .
उसी ने हमें परवर दिगार की तरफ़ से इत्तेला दी है कि जो जिहाद में क़त्ल हो जाएगा , वह जन्नत जाएगा और जो ज़िंदा रह जाएगा , वह तुम्हारी गर्दनों का मालिक होगा " 
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इस हदीस में इस्लाम की सच्ची रूहे-बद समाई हुई है।मुग़ीरा का सीधा सादा और सच्चा बयान है।
(हालाँकि इसकी हक़ीक़त यह है कि सफ़र में यह एक क़बीले को धोका देकर उनका हम सफ़र बन गया था और उनका एतमाद हासिल करके रात में इनको क़त्ल कर दिया था। इनका तमाम माल लूट कर मुहम्मद के पास आकर इस शर्त पर मुसलमान हो गया था कि इसके लूट में किसी का कोई दख़ल न होगा। मुहम्मद ने इसकी शर्त मान ली थी और इसे मुसलमान बना लिया , क्योकि ऐसे लोगों की ही मुहम्मद को हमेशा ज़रुरत रही है .)
इस्लाम से पहले अरब अवाम के ऐसे ही हालात थे ,जैसा मुग़ीरा ने बयान किया, यहाँ तक कि वह अपनी बेटियों को ज़िन्दा दफ़्न कर दिया करते थे कि उनकी परवरिश मुहाल हुवा करती थी।
मुग़ीरा अपने क़ौम का माज़ी बयान करता है जिससे अब वह नजात पा चुका है। उनके हाल  पर अल्लाह का करम है कि वह जिहाद से खुश हाल हो गए हैं।
सवाल उठता है कि अरबों पर खुश हाली आई कहाँ से ?
दीगरों को बद हाल करके ?
या मुहम्मद ने फ़रिश्तों से कह कर इनकी खेतियाँ जुतवा दी थीं ? हक़ीक़त यह है कि मुहम्मद ने पहले अरबों को और बाद में मुसलमानों को पक्का क़ज़ज़ाक़ और लुटेरे बना दिया था। अफ़सोस कि मज़लूमों का कोई एक मुवर्रिख़  नहीं हुवा कि उनका मातम करने वाला होता और इस्लाम के लाखों टिकिया चोर मुवर्रिख़ और ओलिमा बैठे हुए हैं। 
माले-ग़नीमत ने मुसलमानों को मालामाल कर दिया।
कितना मासूमाना और शरीफ़ाना सवाल था उस कसरा फ़ौज के तर्जुमान का कि 
"कौन लोग हो ? हमसे तुम्हारा मतलब क्या है? 
और कितनी जारहय्यत थी इस्लाम की कि 
"ऐसे में अल्लाह ने अपनी जानिब से हम लोगों के लिए एक रसूल भेजा ,  उसी ने हम लोगों को तुम से लड़ने का हुक्म दिया .
उस वक़्त तक कि तुम एक अल्लाह की इबादत न करने लगो, 
या फिर हमें जजया देना क़ुबूल न करो .
उसी ने हमें परवर दिगार की तरफ़ से इत्तेला दी है कि जो जिहाद में क़त्ल हो जाएगा , वह जन्नत जाएगा और जो ज़िंदा रह जाएगा , वह तुम्हारी गर्दनों का मालिक होगा " 
ज़ाहिर है कोई भी हुक्मरान अपना आबाई दीन को तर्क कर के मुसलमान तो हो नहीं जाएगा।
और न थाली में सजाकर उन्हें जज़िया देने लगेगा . यह दोनों कम तो लूट मार के बाद ही हुवा करते थे।
इस तरह दुन्या में फैला इस्लाम जिसे कि आज कोर दबने पर इस्लामी आलिमान सैकुलर क़दरों का सहारा ले रहे हैं।
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जीम. मोमिन