Wednesday 30 December 2015

Hadeesi Hadse 189


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हदीसी हादसे 78
 बुखारी 1144`
क़रार हदीबिया का ज़िक्र इस से पहले के अबवाब में आ चुका है, यहाँ पर मैं अबूबकर की जुबान दानी को उजागर करना चाहूँगा और मुहम्मद की नियत को भी .
अबुबकर इरवा से कहते हैं
" भाग जा अपने माबूद की शर्म गाह (लिंग) जाकर चूस "
इरवा ने लोगों से दरयाफ्त किया, यह कौन है?
लोगों ने कहा अबुबकर , इरवा नाम सुनकर बोला तेरे कुछ एहसान हम पर हैं वर्ना मैं तुझको तेरे लब  ओ लहजे में ही जवाब देता।
इरवा फिर मुहम्मद से मुखातिब हुवा , वह अपनी हर बात पर मुहम्मद की दाढ़ी में हाथ लगा देता, यह देख कर मुगीरा इब्न शोएबः ने कहा
हुज़ूर अक्दस  की दाढ़ी से हाथ अलग रख। ये सुन कर उसने लोगों से पूछा कि
ये कौन है?
लोगों ने बतलाया ये मुगीरा इब्न शोएबः है।
इरवा ने कहा " ऐ दगा बाज़ ! क्या मैं तेरी गद्दारी की दफीयः में कोशिश न की थी (मुगीरा का वाकिया यूं हुवा था कि ये एक गिरोह का हमराही बन गया था , फिर इन लोगों को सोते में क़त्ल करके और उनका सारा मॉल लेकर फरार हो गया था .उसके बाद सीधा मुहम्मद के पास पहुंचा और इस शर्त पर इस्लाम क़ुबूल करने की बात की कि वह अपने लूटे हुए मॉल में से उन को कोई हिस्सा न देगा . मुहम्मद को ऐसे लोगों की सख्त ज़रूरत थी जो क़त्ल के हुनर को और मक्र ओ फ़रेब में यकता हो ,गरज़ मुगीरा को उन्हों ने गले लगाया।
इसी हदीस में एक नामी लुटेरे डाकू अबू बसीर का भी ज़िक्र है।
सुलह हदीबिया के तहत मुहम्मद और कुरैश के दरमियान एक मुआहिदा हुआ था कि मक्का और मदीने से जो लोग  एक जगह से दूसरे के हद में दाखिल हों उन्हें दोनों फरीक अपने यहाँ से वापस उसके हद में भेज दे।
इसी दौरान अबू बसीर मक्के से मदीना आ गया था। इसे वापस करने के लिए कुरैशियों ने दो शख्स मदीना भेजा , मुहम्मद ने क़रार के मुताबिक अबू बसीर को उनके हवाले कर दिया।
रस्ते में दोनों हकवारों को घता बतला कर अबू बसीर उनकी तलवार ले लेता है और एक को क़त्ल कर के भाग जाता है . वह मदीने पहुँच कर मुहम्मद से मिलता है और कहता है
आपने अपने करार के मुताबिक मुझे मक्कियों के हवाले कर दिया, बस आपकी जिम्मे दारी ख़त्म हुई .
उसी वक़्त दूसरा हक्वारा आ जाता है।
अबू बसीर ने खुद को फिर उसके हवाले करने का मुहम्मद की मंशा देखा तो वहां से भाग खड़ा हुवा , वह साहिले-दरया पहुँचा .
उसकी खबर सुन कर मदीने का एक मुजरिम अबू जिंदाल भी उसके पास पहुँच गया। दोनों ने मिल कर कुरैश क़बीलों को लूटना शुरू किया, तो नौबत यहाँ तक आ पहुंची कि  कुरैशियों ने मुहम्मद को इत्तेला किया कि अबू बसीर को बेहतर होगा कि आप अपने पास बुला लें।
इस तरह इस्लाम के सहाबिए किराम इंफ्रादी तौर पर बद किरदार लुटेरे और समाजी मुजरिम हुवा करते थे जिन पर हम दरूद ओ सलाम भेजा करते हैं .
हदीस तवील है जो ग़ैर ज़रूरी है।

बुखारी 1157
किसी ने मुहम्मद से पूछा कि कौन सा काम अफज़ल और बेहतर है? 
जवाब था जिहाद, अपनी जान और माल के साथ। 
इसके बाद?
किसी पहाड़ी घाटी में मसरुफे-इबादत रहना .
*जिहाद जिसमे इंसानी जिंदगी का सफ़ाया , यहाँ तक ही मासूम बच्चों और अबला औरतों को भी मौत के घाट उतार देना , उसके बाद भी उनके माल मता को लूट लेना . उनकी खेती बड़ी में आग लगा के तबाह ओ बर्बाद कर देना . 
अली मौला तो इस से भी आगे बढ़ गए थे कि उन्होंने समूची बस्ती को बमय इंसानी जानों के , के हवाले 
कर दिया था। उनके चाचा अब्बास ने उनकी इस हरकत की मज़म्मत की कि अली ने बन्दों को वह सजा दी है जो सिर्फ अल्लाह को हक है। 
पहाड़ी घटी में मसरूफ ए इबादत रहना कोई ऐसा काम नहीं जिस से मखलूक का कोई भला होता हो। यह महज़ खुद फरेबी है या फिर नाकार्गी . मुहम्मद भी गारे-हिरा में मुराक्बा में जाते थे, ज़हनों में साजिशी मंसूबे बनाते थे जो बिल-आखिर इस्लामी तबाही बन कर पूरी दुन्य के लिए एक अज़ाब साबित हुवा।



जीम. मोमिन 

Wednesday 23 December 2015

Hadeesi Hadse 188


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हदीसी हादसे 76
बुखारी 1161
मुहम्मद कहते हैं जिहादी सफ़र के लिए सूरज निकलने और डूबने के दरमियान निकलना खर ओ बरकत का वक़्त होता है .
*यह तो घर से दिनों दिन जिहाद के लिए निकलने की राय देते हैं मगर काफिरों पर हमले का वक़्त रात का चौथा पहर बतलाया है जब कि लोग आखरी नींद ले रहे हों। ज़ाहिर है कि वह इस आलम में जवाबी हमले की तय्यारी कैसे कर सकते है। डाकुओं का गिरोह हुवा करता था, सुब्ह सुब्ह बस्ती पर यलगार करके बस्ती को तहे-तैग कर देते। जवानो को चुन चुन कर मारते, औरतें और बच्चे गुलाम और लौंडी बना लिए जाते।
बुखारी 1162 
मुहम्मद कहते हैं अगर जन्नत से कोई हूर नीचे ज़मीं पर झाँक ले तो उसके हुस्ने- जमाल से तमाम कायनात रौशन और मुअत्तर हो जाए . सके सर की ओढनी दुन्या और माफिया , दोनों से आला और अफज़ल है .
*अय्याश ताबा खुद साख्ता रसूल ख्बाबों की जन्नत की सैर हर रहे हैं . 

बुखारी 1165 
मुहम्मद कहते हैं कि जब किसी शख्स को खुद की राह में कोई ज़ख्म लगता है, 
खुदा की कौन सी राह कि जिसमें इंसान ज़ख़्मी होता है ? मुहम्मद के जेहन में एक सवाल पैदा होता है - - -
यह तो अल्लाह को ही बहतर मालूम है , 
खुद जवाब देते हैं .
कहते हैं क़यामत के दिन उस शख्स के ज़ख्म से ताजः ताजः खून बहता हुआ नज़र आएगा जिस से मुश्क की कुश्बू फूटेगी .
* मुहम्मद जब झूट के पुल बांधते थे तो यह बात भूल जाते थे कि कुछ लोग इतने बेवकूफ नहीं हैं कि उनकी बातों का यकीन करें। जब मुहम्मद को अल्लाह की वह राह ही मालूम नहीं है तो यह कैसे मालूम हुवा की ज़ख़्मी बंदा अपने ज़ख्मों के घाव ढोता कयामत के दिन रुसवाई उठाएगा और अपने ज़ख्मों को लोगों को सुंघाता फिरेगा कि 
"ऐ लोगो ! मेरे ज़ख्म से बेजार मत होइए , सूंघिए कि इसमें से मुश्क की खुश्बू आ रही है। पता नहीं कौन सा मेरा काम पसंद आया कि अल्लाह ने यह ज़िल्लत ढोने की सजा मुझे दी है?
मुहम्मद इन हदीसों में अव्वल दर्जे के कठ मुल्ले लगते हैं जो मुस्लिम कौम के तकदीर बने हुए हैं।
बुखारी 1169
एक खातून मुहम्मद के सामने हाज़िर हुईं जिन का बेटा जंगे-बदर में मर गया था 
उसने पूछा , या रसूल अल्लाह मेरा लड़का जंग में शहीद हुवा , क्या वह जन्नत में दाखिल हुवा?
अगर ऐसा नहीं हुवा होगा तो मैं खूब रोउंगी और चिल्ला चिल्ला कर शोर मचाऊंगी।
मुहम्मद बोले वह जन्नतों में जन्नत , जन्नतुल-फिरदोस में गया .
* यह मुहम्मद का झूट ही नहीं था बल्कि लोगों के साथ दगा बाज़ी थी जिसका यकीन कर के उन्हें मुफ्त में लुटेरे और डाकू मिल जाते थे जो जिहाद के नाम पर बस्तियों में डाका डालते और लूट का माल सरदार मुहम्मद के हवाले करते। चौदह सौ सालों के बाद भी आज मुस्लिम ओलिमा जिहाद की अजमत बयान करते है। और तालिबान जिहादी आज भी मलाला जैसी मासूम पर जिनसे-नाज़ुक पर गोलीयाँ बरसते हैं। इस्लामी मुजाहिद अपनी नामर्दी को जिहाद कहते हैं।


जीम. मोमिन 

Wednesday 16 December 2015

Hadeesi Hadse 187


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हदीसी हादसे 75
बुखारी 1171
आयशा कहती हैं उनके शौहर मुहम्मद जंगे-खंदक से फारिग हो कर जूं ही घर लौटे और हथ्यार रख ही रहे थे कि हज़रात जिब्रील आए और बोले या रसूल आप ने हथ्यार रख दिए क्या ? 
मुहम्मद बोले क्यों कही और जंग होनी है ?
जिब्रील ने कहा जी हाँ ! बनी क़रीफला में .
मुहम्मद ने हथ्यार उठाए और जंग के लिए निकल गए।
*आयशा मुहम्मद की मौत के बाद ही बालिग़ हुई थीं , उस वक़्त उनकी उम्र थी 18 साल। जब जेहनी तौर पर बालिग़ हुईं तो अपने शौहर की बखान में हदीसें बघारने लगी,.मुहम्मद की शरीक-हयात मुहम्मद 'शरीके-दारोग' बन गईं। आलिमान दीन उन के हर झूट को खूब जानते हैं मगर उनके नाम के साथ रज़ी अल्लाह अन्हा लगाना नहीं भूलते। 
एक दूसरी हदीस आगे आएगी जिसमे बैठे बैठे मुहम्मद कहते हैं - - 
"आयशा जिब्रील अलैहिस्सलाम तुम को सलाम अर्ज़ करते हैं"
वालेकुम अस्सलाम कहते हुए आयशा कहती है जिब्रील अलैहिस्सलाम आपको ही दिखाई और सुनाई पड़ते हैं , मुझे क्यों नहीं ? - - - 
यह हदीस साबित करती है कि आयशा किस कद्र झूटी और मक्कार औरत थीं। 

बुखारी 1172
मुहममद कहते हैं कि अल्लाह उन दो लोगों पर बहुत हँसता है जो जंग में लड़ते लड़ते शहीद हो जाते हैं। पहला वह जो अल्लाह की राह में जंग कर रहा हो और शहीद हो जाय , दूसरा वह जो इसके खिलाफ जंग करते हुए मरने से पहले कलमा पढ़ कर मुसलमान हो जाय। 
* अल्लाह न हँसता है न रोता है। मुहम्मद अल्लाह की दुम भी नहीं जानते. दर अस्ल मुहम्मद ज़माने को बेवकूफ बना कर खुद अल्लाह बने हुए हैं। इनको ख़ुशी होती है कि इनके दोनों हाथ में लड्डू रहे . मरने से पहले सारी आलम-इंसानियत, इस्लाम के ज़हर पीकर उनका शिकार हो जाए।
अगर तमाम दुनिया ही उनकी जिंदगी में मुसलमान हो गई होती तो जंग के लिए मुसलमानों के दो गिरोह बनाते और दोनों हक पर होते और पयंबरी दोनों की मुहम्मद के हाथ होती .
बुखारी 1185
मुहम्मद कहते हैं घोड़ों की पेशानी में खैर ओ बरकत , सवाब ओ गनीमत कयामत तक के लिए वदीयत कर दिया गया है।
* एक दूसरी हदीस ( बुखारी 1191) में हज़रत कहते हैं कि घोड़े में नहूसत की अलामत होती है। इनकी किस बात को सच माना जाए और किसे झूट ? हमेशा इनके क़ौल में ताजाद रहता है गरज उम्मत हमेशा ही ताज़दों भरी ज़िन्दगी गुज़रती है, जिसे कठ मुल्ले मिसाल देते है कि 
"हुज़ूर ने अगर ये कहा है तो यह भी तो कहा है" .
घोड़ों का काम ज्यादह हिस्सा जंगी ज़रूरतों में पेश आती है जिसके तहत फतह की बात न करके मुहम्मद गनीमत ( लूट का माल ) की बात करते है, किस कद्र मॉल ओ मता के कायल थे वह, चाहे वह लूट पाट से ही क्यों न मिले . क्या यह किसी पैगम्बर के शायान ए शान है ?
बुखारी 1187
कठ मुल्ले और चुगद , अल्लाह में मफरूज़ा रसूल कहते हैं जो शख्स जिहाद के लिए अपने घोड़े देगा , अल्लाह उसके घोड़े का खाना पीना और उसके लीद गोबर को वज़न करके उसके सवाब को उसके हिसाब बढ़ा देगा।
*मुसलमानों तुम्हारा अल्लाह क्या क्या करता है ? लीद और गोबर तोलता रहता है ? क्या तुमको इन बातों से घिन और ग़ैरत नहीं आती ? 
इसी रसूल ने कुरान गढ़ा है जिसमे इस से भी ज्यादह ग़लीज़ तरीन बातें हैं।

जीम. मोमिन 

Wednesday 9 December 2015

Hadeesi Hadse 186


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हदीसी हादसे 74
बुखारी 1191
मुहम्मद कहते हैं कि अगर नहूसत का वजूद होता तो तीन चीजों में होता - - -
माकन औरत और घोडा .
*मुसलमान काफिरों की इन बातों को बिदअत कहते हैं और उनको कमतर समझते है . उनका रसूल इन्हीं बिदअतों को क़यास ए करीं बतला रहा है।
सूरह नास और सूरह फलक तो इस्लाम की बिदअती सुतून हैं जिनमें बीमार मुहम्मद जादू टोना और गंदा बाँधने वाली यहूदनों से पनाह मांगते हैं।
बुखारी 1197
मुहम्मद अपने साथियों (सहाबी ए किरम) को बद दुआ देते हुए कहते हैं कि 
"खुद करे दरहम ओ दीनार और चादरों के के (लालची) यह लोग मर जाएँ कि जब तक इनको यह चीजें मिलती रहती हैं ये खुश रहते हैं और न मिले तो नाराज़ हो जाते हैं। खुदा करे यह औधे मुँह गिरें और इनको ऐसा कांटा लगे की जीते जी न निकले .
उस आदमी को खुश हो जाना चाहिए कि जो अपने घोड़े को लेकर मुजाहिदों के हमराह हो गया हो . वह जिहादी टुकड़ियों में सफे-आखिर में रहता कि कोई शोहरत नहीं रखता - - -.
मुहम्मद नूह की नकल में हैं जो अपनी उम्मत को कोस कटा करते थे। करी देखें कि जिन्हें वह सहाबी ए किरम कहा करते हैं , वह किस खसलत के हुवा करते थे। मुहम्मद की तबियत और फितरत का मुजाहिरा देखने को मिलता है कि 
वह कितने रहम और सब्र वाले हुवा करते थे थे।
जिहाद जिहाद और हर हल में जिहाद के लिए लूट मार के लिए लोगों को वर्ग्लाया हारते। आज उनकी तस्वीर ही बदल क्र दुन्य के सामने पेश की जताई है।
ऐसे पैगम्बर की उम्मत क्या कभी सर सब्ज़ होगी ? ?
मुहम्मद नूह की नकल में हैं जो अपनी उम्मत को कोसा काटा करते थे। दूसरी बात ये देखें कि जिन्हें वह सहाबी ए किरम कहा करते हैं , वह किस खसलत के हुवा करते थे। मुहम्मद की तबियत और फितरत का मुजाहिरा देखने को मिलता है कि वह कितने रहम और सब्र वाले हुवा करते थे।
जिहाद जिहाद और हर हल में जिहाद के लिए लूट मार की खातिर लोगों को वर्गालाया करते थे , आज उनकी तस्वीर ही बदल कर दुन्या के सामने पेश की जाती है।
सल्लललाह ए अलैह वसल्लम 
ऐसे पैगम्बर की उम्मत क्या कभी सर सब्ज़ होगी ? ?
बुखारी 1203
मुहम्मद खुद सताई करते हुए कहते हैं कि एक वक़्त ऐसा भी आएगा कि जब जिहादी गिरोह मे से लोग एक दुसरे से पूछेंगे कि तुम में से कोई सहाबी भी है ? ऐसा शख्स मिल जाने पर उसे रहनुमाई दी जायगी और फतह हासिल होगी।
फिर एक वक़्त ऐसा आएगा कि जंग में लोग पूछेंगे कि क्या होई ऐसा है जो रसूल्लिल्लाह के सहाबियों का हम असर हो यानी ताबई ? 
मिलने पर उसके हाथों फ़तेह होगी। इसी तरह घटते हुए वक़्त के मुताबिक उन बरकती हस्तियों के मार्फ़त मुसलमानों को फतुहत मिलती रहेंगी।
नाकिसुल अक्ल रसूल की पेशीन गोइयाँ उनके सर पर चढ़ कर मूतती हुई नज़र आती हैं। औलाद नारीना तो कोई थी ही नहीं, चहीते हसन और हुसैन के जिंदगी का अंजाम मुहम्मद के नवासे होने के नाते ऐसा हुआ कि मुसलमान आज तक सीना कूबी कर रहे है, हसन ने यज़ीद की गुलामी कुबूल कर के अय्याशियों का नमूना बने, उनकी मौत सूजाक जैसे मोहलिक मरज़ से हुई . हुसैन अपने भतीजे भांजे और मासूम औलादों को मोहरे बनाते हुए क़त्ल किए गए जिन के सर को लेकर बेटी ज़ैनब जुलूस निकलती रही . मुहम्मद का लगभद तमाम खानदान ही नेस्त नाबूद हो गया . सदियों से मुसलमान दुनिया के कोने कोने में कुत्ते बिल्ली की मौत मारे जा रहे हैं।
पेशीन गोई करते है ऐसा जैसे बड़े मुतबर्रक हस्ती उनकी रही हो। 



जीम. मोमिन 

Thursday 3 December 2015

hADEESI hADSE 185


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हदीसी हादसे 73
बुखारी 1212
मुहम्मद फरमाते हैं कि एक दिन ऐसा आएगा कि मुसलमानों की यहूदियों से जंग होगी, अगर कोई यहूदी पत्थर की आड़ में छिपा होगा तो पत्थर आवाज़ देगा कि 
"ऐ मुसलमानों ! इधर आओ , मेरी आड़ लिए एक यहूदी इधर छुपा हुआ है , आओ इसे हलाक कर दो ."
*मुसलमानों को वक़्त जो सजा दे रहा है , शायद वह जायज़ है . ऐसी हदीसों पर ईमान रखने और
"ख़त्म बुखारी शरीफ" 
करने वालों की सजा उनकी ज़िल्लत और रुसवाई होनी ही चाहिए .
अहमक रिसालत अगर सोचती है कि ईंट पत्थर उसके तरफदार होंगे तो उसका अल्लाह क्यों यहूदियों को बचने में लगा होगा ? उसके तो एक इशारे से तमाम यहूदी जिंदा दरगोर हो जाने चाहिए। ऐसी ही मुहम्मद की बातों का असर है कि यहूदी मुहम्मद की उम्मत को नेश्त नाबूद 
करने पर तुले हुए है।
मुसलमान पत्थरों के इशारे का इंतज़ार कर रहे है और यहूदी पत्थर को पीस कर सीमेंट 
बनाने में, ताकि वह फिलिस्तींयों की बस्तियों में यहूदी कालोनियां कायम कर सकें . 
मुसलमानों ! कब तक इस्लाम के दुम छल्ले बने रहोगे ? हिम्मत करो जागने की .
बुखारी 1213 
मुहम्मद की दीवानगी देखिए कि जिनके मुंह में वबसीर हो चुकी थी कि बोले बगैर उन्हें चैन नहीं पड़ता था।
फरमाते हैं कि एक दिन ऐसा आएगा कि मुसलमानों की लड़ाई एक ऐसी कौम से होगी कि जिसकी आँखें छोटी होंगी, नाक सुर्ख और बैठी हुई, गोया इनका चेहरा ऐसा होगा जैसे ढालें होती हैं.
कहते हैं उसी अय्याम में क़यामत बरपा होगी .
* गालिबन मुहम्मद ने किसी चीनी को देखा होगा और कयास आराई किया होगा . आप गौर करे कि क़यामत की पेशीन कोई हर पांचवें जुमले के बाद है चाहे वह कुरान हो या हदीसें। लोगों ने कुरान को नाम दिया है "क़यामत नामः"
लोग कहते हैं तो फिर ठीक ही कहते होंगे। 
बुखारी 1215
चन्द यहूदी मुहम्मद के पास आए और उनको सलाम किया जिसमें दोहरे मानी छुपे हुए थे। मुहम्मद ने भी उनको दोहरे मानी वाला जवाब दिया , 
आयशा यहूदियों की इस हरकत पर बिफर गईं , 
मुहम्मद ने तजाहुले-आरफाना बरतते हुए कहा,,
क्या हुवा ? आयशा ने कहा सुना नहीं उनहोंने आप पर लअनत भेजते हुए सलाम किया था। मुहम्मद ने कहा तुमने नहीं सुना कि मैं ने भी उन्हें "वलैक - - - कहा था। (यानि तुम पर भी )
* ये है मुहम्मद के पैगम्बरी आदाब , कोई महात्मा अपने मुंह से ऐसे शब्द नहीं दोहराता . अगर वह वाकई अल्लाह के रसूल होते तो कहते "मगर तुम पर अल्लाह की रहमत हो।"
जैसा कि ईसा किया करते थे कि एक गाल पर तमाचा खाकर दूसरा गाल पेश कर दिया करते थे। 


जीम. मोमिन