Friday 8 July 2016

बांग-ए-दरा -28


बांग-ए-दरा

ज़मीर फरोश ओलिमा

मेरे गाँव की एक फूफी के बीच बहु-बेटियों की बात चल रही थी कि मेरा फूफी ज़ाद भाई बोला , अम्मा क़ुरान में लिखा है औरतों को पहले समझाओ बुझाओ, 
न मानें तो घुस्याओ लत्याओ, फिरौ न मानैं तो अकेले कमरे मां बंद कर देव,
 यहाँ तक कि वह मर न जाएँ . 
फूफी आखें तरेरती हुई बोलीं उफरपरे! कहाँ लिखा है? 
बेटा बोला तुम्हरे क़ुरआन मां.-- 
आयं? कह कर फूफी बेटे के आगे सवालिया निशान बन कर रह गईं. 
बहुत मायूस हुईं और कहा ''हम का बताए तो बताए मगर अउर कोऊ से न बताए''
मेरे ब्लॉग के मुस्लिम पाठक कुछ मेरी गंवार फूफी की तरह ही हैं. वह मुझे राय देते हैं कि मैं तौबा करके उस नाजायज़ अल्लाह के शरण में चला जाऊं. मज़े कि बात ये है कि मैं उनका शुभ चिन्तक हूँ और वह मेरे. 
ऐसे तमाम मुस्लिम भाइयों से दरख्वास्त है कि मुझे पढ़ते रहें, मैं उनका ही असली खैर ख्वाह हूँ . हिदी ब्लॉग जगत में एक सांड के नाम से जाना जाने वाला कैरानवी है जो खुद तो परले दर्जे का जाहिल है मगर ज़मीर फरोश ओलिमा की लिखी हुई कपटी रचनाओं को बेच कर गलाज़त भरी रोज़ी से पेट पालता है. 
अल्लाह का चैलेंज, अंतिम अवतार, बौद्ध मैत्रे जैसे सड़े गले राग खोंचे लगाए रहता है , गाहकों को पत्ता रहता है. 
उसको लोगों के धिक्कार की परवाह नहीं. 
मेरे हर आर्टिकल पर अपना ब्लाक लगा देता है, कि मेरे पास आ मैं जेहालत बेचता हूँ. 
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