Thursday 24 April 2014

Hadeesi hadse 109 OLD Repeated



***
एक हदीस अबू हरीरा से है कि मुहम्मद ने कहा - - -"अल्लाह कहता है जो शख्स सिर्फ़ मेरी रज़ा मंदी और मेरे ऊपर ईमान लाए और मेरे रसूल की तसदीक़ की वजह से मेरे रास्ते में, जिहाद की ग़रज़ से निकलता है, तो मेरे लिए मुक़र्रर है कि या तो मैं उसके लिए मॉल ए ग़नीमत अता कर बा नील ओ मराम वापस करदूं , या इसको जन्नत में दाखिल करदूं"
मुहम्मद कहते हैं कि
"अगर मुझको मेरी उम्मत का खौफ़ न होता तो मैं मुजाहिदीन के किसी लश्कर के पीछे न रहता और पसंद करता कि मैं अल्लाह के रास्ते में शरीक होकर ज़िदा हों, फिर शहीद हों, फिर जिंदा हों फिर शहीद हों, फिर जिंदा हों फिर शहीद हों, फिर जिंदा हों फिर शहीद हों"
(बुखारी 3४)
* मदरसों में दहशत गर्दी की बिस्मिल्लाह इस हदीस से होती है. अल्लाह की रज़ा और इसकी राह क्या है?
मुसलमान दुन्या को दो टूक जवाब दें.
मुसलामानों का अल्लाह अपने गैर मुस्लिम बन्दों के लिए जिहाद में शिकार होने की रज़ा क्यूं रखता है?
इसका माक़ूल जवाब न मिलने के बाद मुसलामानों की सारी दलीलें झूटी हैं जो इस्लाम को अम्न का पैगाम कहते हैं.
ऐसी ही रज़ा मंदी और राह दुन्या के सभी धर्मों के खुदा अगर दिया करें, तब तो इंसान का वजूद ही एक दिन ख़त्म हो जायगा. मज़ाहिब इंसानों के लिए होते हैं या इंसानी जान मज़हब के लिए होती है.
मुसलमानों ! सौ बार इस खतरनाक हदीस को पढो, अगर एक बार में तुम्हारे रहनुमा मुहम्मद तुम्हारे समझ में न आते हों,
कि यह किस मिटटी के बने हुए इंसान थे.
खुद को जंग से इस लिए बचा रहे हैं कि इनको अपनी उम्मत का ख्याल है?
मुहम्मद चन्द शुरूआती इस्लामी लूट मार के हमलों में, जिसे मुस्लमान गिज़वः कहते हैं, शरीक रहे जिसमें वह हमेशा लश्कर में सफ़ के पीछे रहते थे जिसके गवाह वह गिज़वः हैं.
वह तरकश से तीर निकाल निकाल कर जवानों को देते और कहते जाते
"मार, तुझ पर मेरे माँ बाप कुर्बान."जंगे-ओहद में शिकस्त खुर्दगी के बाद सफ़ के पीछे मुंह छिपाए खड़े रहे, जंगी उसूल के तहत अबू सुफ्यान ने तीन बार इनका नाम बा आवाज़ बुलंद पुकारा कि मुहम्मद अगर जिंदा हों तो खुद को हमारे सुपुर्द कर दें, उन्हों ने जंगी मुजरिम होना और बुज़दिली गवारा किया मगर सामने न आए. यह उनकी अय्यारी है कि उनको उम्मत का खौफ था कि वह शरीक जंग नहीं होते.
अपनी उम्मत को मैदान जंग में उतार दिया जोकि आज तक मार काट रही है और रुस्वाए ज़माना है.
मुहम्मद ने हुकूमत कुरैशियों के हवाले किया जो कि उनके मिशन का मकसद था. खुद अपनी पैगम्बरी को तराशने में लग गए.
वहदानियत का बुत खड़ा करके उसको ज़माने से पुजवाते रहे.
बुत परस्तों से जंग करते रहने का एलान "नुस्खा ए नजात दे दिया" दे कर खुद जंगों से अलग हो गए जिसे कौम ओढने बिछाने में लगी हुई है.
कुरानी आयतें गढ़ते और अवाम में जेहालत की बातें करते जो खुद बखुद हदीसें बनती चली जातीं.
 
चचा अबू तालिबकिताबुल ईमान
मुहम्मद के चचा अबू तालिब का अंतिम समय था, मुहम्मद उनके पास पहुंचे. पहले ही वहाँ पर उमरू बिन हुशशाम ( जिनका नाम मुहम्मद ने अबू जेहल रख कर बदनाम कर दिया था) अपने साथियों के साथ बैठे हुए थे. मुहम्मद ने चचा से कहा,"चचा कलमा ए हक पढ़ लीजिए, मैं कयामत के दिन आपका गवाह रहूँगा"
उमरू बिन हुशशाम ने कहा
" अबू तालिब क्या तुम मरते वक़्त अपने बाप अब्दुल मतलब का दीन छोड़ दोगे?"दोनों अपनी अपनी बात दोहराते रहे, बिल आखीर अबू तालिब ने इस्लाम को अपनाने से इंकार कर दिया.
मुहम्मद कहते रहे
 "फिर भी मैं आपकी मग्फ़िरत की दुआ करूंगा."इस मौके पर मुहम्मद एक आयत गढ़ते हैं,"यूं राह पर नहीं ला सकते जिसको चाहो लेकिन अल्लाह ला सकता है जिसको चाहे और वह जानता है उन लोगों को जिनके क़िस्मत में हिदायत है"अबू तालिब जिसने यतीम मुहम्मद की परवरिश अपने बच्चों से बढ़ कर की थी. जवानी में इनकी जात का असर ही था कि मुहम्मद मक्का में अपने आबाई मज़हब के ख़िलाफ़ आएँ बाएँ शाएँ बकते रहे, उनको आकबत की पुडिया बेच रहे हैं.
 
जीम. मोमिन