Saturday 29 June 2013

Hadeesi hadse 90




मुहम्मद के ज़ेहन में पैग़म्बर बनने का ख़याल कैसे आया और फिर ये ख़याल जूनून में कैसे बदला??
मुहम्मद एक औसत दर्जे के समाजी फ़र्द थे. तालीम याफ्ता न सही, मगर साहिबे फ़िक्र थे. अब ये बात अलग है कि इंसान की फ़िक्र समाज के लिए तामीरी हो या तख़रीबी. मुहम्मद की कोई ख़ूबी अगर कही जाए तो उनके अन्दर दौलत से मिलने वाली ऐश व आराम की कोई अहेमयत नहीं थी. क़ेनाअत पसँद थे, लेन देन के मुआमले में वह ईमान दार भी थे.
मुहम्मद ने ज़रीआ मुआश के लिए मक्के वालों की बकरियाँ चराईं. सब से ज़्यादः आसान काम है, बकरियाँ चराना वह  इसी दौरान ज़ेहनी उथल पुथल में पैगम्बरी का खाका बनाते रहे.
 एक वाक़िया हुवा कि ख़ाना ए काबा की दीवार ढह गई जिसमें संग ए असवद नस्ब था जोकि आकाश से गिरी हुई उल्का थी. दीवार की तामीर अज़ सरे नव हुई, मक्का के क़बीलों में इस बात का झगड़ा शुरू हुआ कि किस कबीले का सरदार असवद को दीवार में नस्ब करेगा? पंचायत हुई, तय ये हुवा कि जो शख्स दूसरे दिन सुब्ह सब से पहले काबे में दाखिल होगा उसकी बात मानी जायगी. अगले दिन सुबह सब से पल्हले मुहम्मद हरम में दाखिल हुए.(ये बात अलग है कि वह सहवन वहाँ पहुँचे या क़सदन, मगर क़यास कहता है कि वह रात को सोए ही नहीं कि जल्दी उठाना है) बहर हाल दिन चढ़ा तमाम क़बीले के लोग इकठ्ठा हुए, मुहम्मद की बात और तजवीज़ सुनने के लिए.
 मुहम्मद ने एक चादर मंगाई और असवद को उस पर रख दिया, फिर हर क़बीले के सरदारों को बुलाया, सबसे कहा कि चादर का किनारा पकड़ कर  दीवार तक ले चलो. जब चादर दीवार के पास पहुच गई तो खुद असवद को उठा कर दीवार में नस्ब कर दिया. सादा लोह अवाम ने वाहवाही की, हालाँकि उनका मुतालबा बना रहा कि पत्थर कौन नस्ब करे. मुहम्मद को चाहिए था कि सरदारों में जो सबसे ज़्यादः बुज़ुर्ग होता उससे पत्थर नस्ब करने को कहते.
 मुहम्मद अन्दर से फूले न समाए कि वह अपनी होशियारी से क़बीलो में बरतर हो गए. उसी दिन उनमें ये बात पक्की हो गई कि पैगम्बरी का दावा किया जा सकता है.
तारीख अरब के मुताबिक बाबा ए कौम इब्राहीम के दो बेटे हुए इस्माईल और इसहाक़. छोटे इसहाक़ की औलादें बनी इस्राईल कहलाईं जिन्हें यहूदी भी कहा जाता है. इन में नामी गिरामी लोग पैदा हुए, मसलन यूफुफ़, मूसा, दाऊद, सुलेमान और ईसा वगैरा और पहली तारीखी किताब मूसा ने शुरू की तो उनके पेरू कारों ने साढ़े चार सौ सालों तक इसको मुरत्तब करने का सिलसिला क़ायम रखा. 
लौंडी जादे हाजरा (हैगर) पुत्र इस्माइल की औलादें इस से महरूम रहीं जिनमें मुहम्मद भी आते हैं. उनमें हमेशा ये क़लक़ रहता कि काश हमारे यहाँ भी कोई पैगम्बर होता कि हम उसकी पैरवी करते. इन रवायती चर्चा मुहम्मद के दिल में गाँठ की तरह बन्ध गई कि कौम में पैगामरी की जगह ख़ाली है.
मदीने की एक उम्र दराज़ बेवा, मालदार खातून, ख़दीजा ने मुहम्मद को अपने साथ निकाह की पेश कश की. वह फ़ौरन राज़ी हो गए कि बकरियों की चरवाही से छुट्टी मिली और आराम के साथ रोटी का ज़रीया मिला. इस राहत के बाद वह रोटियाँ बांध कर ग़ार ए हिरा में जाते और अल्लाह का रसूल बन्ने का ख़ाक़ा तैयार करते.
इस दौरान उनको जिंसी तकाजों का सामान भी मिल गया था और छह अदद बच्चे भी हो गए, साथ में ग़ार ए हिरा में आराम और प्लानिग का मौक़ा भी मिलता कि रिसालत की शुरूवात कब की जाए, कैसे की जाए, आगाज़, हंगाम और अंजाम की कशमकश में आखिर कार एक रोज़ फैसला ले ही लिया कि गोली मारो सदाक़त, सराफ़त और दीगर इंसानी क़दरों को. ख़ारजी तौर पर समाज में वह अपना मुक़ाम जितना बना चुके हैं, वही काफ़ी है.
एक दिन उन्हों ने अपने इरादे को अमली जामा पहनाने का फैसला कर ही डाला. अपने कबीले कुरैश को एक मैदान में इकठ्ठा किया, भूमिका बनाते हुए उन्हों ने अपने बारे में लोगों की राय तलब की, लोगों ने कहा तुम औसत दर्जे के इंसान हो कोई बुराई नज़र नहीं आती, सच्चे, ईमान दार, अमानत  और साबिर तबअ शख्स हो. मुहम्मद  ने पूछा अगर मैं कहूँ कि इस पहाड़ी के पीछे एक फ़ौज आ चुकी है तो यकीन कर लोगे? लोगों ने कहा कर सकते हैं इसके बाद मुहम्मद ने कहा - - -
मुझे अल्लाह ने अपना रसूल चुना है.
ये सुन कर क़बीला भड़क उट्ठा. कहा तुम में कोई ऐसे आसार, ऐसी खूबी और अज़मत नहीं कि तुम जैसे जाहिल गँवार को अल्लाह चुनता फिरे.
मुहम्मद के चाचा अबू लहेब बोले
 "माटी मिले, तूने इस लिए हम लोगों को यहाँ बुलाया था?''
सब मुँह फेर कर चले गए. मुहम्मद की इस हरकत और जिसारत से कुरैशियों को बहुत तकलीफ़ पहुंची मगर मुहम्मद मैदान में कूद पड़े तो पीछे मुड कर न देखा.
बाद में वह कुरैशियों के बा असर लोगों से मिलते रहे और समझाते रहे कि अगर तुम मुझे पैगम्बर मान लिया और मैं कामयाब हो गया तो तुम बाकी क़बीलों बरतर होगे, मक्का ज़माने में बरतर होगा और अगर नाकाम हुवा तो खतरा सिर्फ मेरी जान को होगा. इस कामयाबी के बाद बदहाल मक्कियों को हमेशा हमेश के लिए रोटी सोज़ी का सहारा मिल जाएगा.
मगर कुरैश अपने माबूदों (पूज्य) को तर्क करके मुहम्मद के अल्लाह को  अपना माबूद बनाए को तैयार न हुए.
जीम. मोमिन 
*****************************************************

Tuesday 18 June 2013

Hadeesi Hadse 89


जीम. मोमिन 


बुख़ारी १५३७ 
हिजरत मक्का से मदीना 
आयशा बयान करती है कि कुफ्फार ए मक्का मेरे वालिद अबू बकर के कुबूल इस्लाम और इस्लाम पर अमल पैरा होने के बाद इनको तंग करने लगे. एक रोज़ उन्होंने मक्का को छोड़ देने का फ़ैसला किया और घर से बाहर निकल पड़े. वह मुक़ाम बर्क अममाद पहुँचे कि शनाशा इब्न ए दग़ना मिला, दोनों में तबादला ए ख़याल हुवा, उसने कहा आपको मैं जानता हूँ आप एक अच्छे इंसान हैं , मेरे साथ वापस चलें .
इब्न ए दग़ना ने कुफ्फार कुरैश और अबू बकर में सुलह करा दिया कि अबू बकर अपनी इबादत अपने घर में ही करें. अबू बकर ने अपने अहाता में एक मस्जिद बनवाई और नमाज़ें अदा करने लगे. उनको देख क र औरतें और बच्चे भी मुतास्सिर होने लगे. कुफ्फार ने इब्न ए दग़ना को बुलाकर इसकी शिकायत की। अबू बकर ने कहा इब्न ए दग़ना तुम्हारी ज़मानत ख़त्म आज से, मेरा ज़ामिन मेरा अल्लाह है। इसके बाद चार महीने तक अबू बकर जंगल में ऊँट चरते रहे। 
इधर मुहम्मद ने हिजरत का मनसूबा बना लिया था कि उनके मौत का परवाना कुरैशियों ने जारी कर दिया। मुहम्मद रात में नक़ाब पहन कर अबू बकर के घर आ गए थे, उनकी बेटी उसमा ने रख्त ए सफ़र बाँधा, रात के अँधेरे में जिबल सूर के ग़ार में मुहम्मद और अबू बकर जाकर छिप गए। तीन दिन तक दोनों उस ग़ार में छिपे रहे. गुलाम सुब्ह तडके निकल जाता, दिन भर  बकरियाँ चराता और ख़बरें इकठ्ठा करता, रात को गार में वापस आकर बकरियों का दूध और दिन भर की ख़बरें दोनों को देता. नौबत यहाँ तक पहुँच गई थी कि दोनों के सरों पर इनआम का एलान कर दिया गया. मुहम्मद और बकर ग़ार को छोड़ कर मदीने के लिए निकल पड़े, कुरैश के लोग पीछा कर रहे थे मगर एक हद तक .
रस्ते में ताजिर जबीर मिला जिसने मुहम्मद के बारे में सुन रखा था. उसने दोनों को सफेद जोड़े दिए जिसकी उन्हें ज़रुरत थी, दोनों ने उसे पहना .
मदीने में मुहम्मद की आने की खबर पहुँच चुकी थी, एक यहूदी ने इन्हें सब से पहले देखा और अहले मदीना को इसकी खुश खबरी दी, 
ऐ लोगो! तुम्हें जिस अरब का इंतज़ार था, वह आ गया है .
मुक़ाम हरा में लोग इनसे मिले और बनी उमरू इब्न ऑफ़ के मुहल्ले में इनको ठहराया. पहली नज़र में लोग अबुबकर को ही मुहम्मद समझे और उनसे मुसाफा कर रहे थे मगर जब मुहम्मद के सर पर दूप आ गई और बकर ने उन पर चादर तानी तब जाकर भेद खुला .
पहली मस्जिद मस्जिद ए तक़वा या मस्जिद ए कबाअ की बुन्याद मुहम्मद ने यहाँ एक मैदान में डाली जो दो यतीमों सहल और सुहैल का था. उन्हों ने जमीन हिबा करना चाहा मगर मुहम्मद ने इसे क़ीमत अदा  करके हासिल किया. 

 * यह मुहम्मद की रिसालत की हकीकत है जिनका अल्लाह हर वक़्त मेहरबान और मदद गार रहता है उसको किन किन जिल्लतों का सामना करना पड़ा कि भूक मिटाने के लिए अल्लाह के प्यारे नबी को मुरदार का पड़ा हुवा चमड़ा उठा कर चूसना पड़ा , पैगम्बरी शान के बर अक्स चोरों की तरह मक्का को छोड़ कर भागना पड़ा. मदीने के जिस यहूदी ने खुश खबरी दी थी कि
 ऐ लोगो! तुम्हें जिस अरब का इंतज़ार था, वह आ गया है.
को क्या पता था कि वही शख्स एक दिन उन पर अज़ाब बन कर नाजिल होगा . मदीने और मक्के की चली आ रही बरसों पुरानी दुश्मनी ने मुहम्मद को पनाह देकर तारीखी ग़लती की थी. सियासी दांव पेच मुहम्मद के हक में होते गए और उनकी पैगम्बरी मुराद पाती गई.
मुहम्मद की कामयाबी की खास वजह है उस बेकारी के दौर में अहले अरब को माले-ग़नीमत की रोज़ी देना। जंगी कुश्तो-खून को जिहाद नाम देना, लूट पाट को ज़रिया मुआश क़रार देना और लूटे हुए माल को जायज़ कह के मुसलमानों पर बरहक़ ठहराना . दस लोग लूट मार करके सौ लोगों को कंगाल कर दिया करते थे, उन नब्बे लोगों की बर्बादी इस्लामी तवारीख में कहीं नहीं मिलती. यह थी इस्लाम की कामयाबी की असलियत .
इसी दिन से इस्लामी साल हिजरी की शुरूआत हुई.देखिए कि इस बाद नुमा साल का सद्द बाब कब हो.    
********
बुख़ारी १५४६ 
हुश्शाम उर्फ़ अबू जेहल की शहादत 

जंग ए बदर के रोज़ मुहम्मद ने लोगों से पूछा कि कोई है जो अबू जेहल के हाल बतलाए ? मालूम हुवा कि मदीने के दो दह्क़ानी नव जवानों ने उसे क़त्ल कर दिया है और वह ठंडा भी हो गया है . रावी कहते हैं कि मुहम्मद इसके पास गए और इसकी दाढ़ी पकड़ कर इसकी लाश से दर्याफ़्त किया, क्या तू ही अबू जेहल है? उसने जवाब दिया कि मैं सिर्फ एक आदमी हूँ जिसको तुम लोगों ने क़त्ल कर दिया . मुझे मेरी  कौम के लोगों ने क़त्ल कर दिया।

मुस्लिम - - - किताबुल जन्नत वसिफ्ता  
अनस बिन मालिक से रवायत है कि मुहम्मद ने जंगे-बदर के मकतूलीन की लाशें तीन दिनों तक यूँ ही पड़े पड़े सड़ती रहने दिया, फिर उनके पास गए नाम बनाम उनको आवाज़ देकर उन पर तअने तोड़े , इसके बाद सभी को बदर के कुँए में फिकवा दिया।

* अल्लाह के नाजायज़ रसूल की सियाह कलबी देखिए कि जिसकी नजीर तारीख इंसानी में मिलना मुहाल है। मुहसिन दादा के सगे बेटे की लाश को दाढ़ी पकड़ कर मुखातिब होते है, न वह चचा जो कुरैश खादान की नाक थे, उनकी खता यह थी की वह अपने आबाई मज़हब पर डटे रहे जैसे की आज हर मुसलमान डाटा हुवा है . उनका नाम हुश्शाम था , उनको ज़लील करने के लिए अबू जेहल कर दिया था . इन बीस लाशों में सभी मुहम्मद के अज़ीज़ दार थे कुछ उनके बुजर्ग और कुछ उनके अज़ीज़ . उनकी लाशें सड़ाने में उस रू स्याह को मज़ा आ रहा था . यही वजेह है कि आज भी मुसलमान ज्यादा तर ज़ालिम और सख्त दिल होता है .


           

Wednesday 12 June 2013

Hadeesi Hadse 88



******************
बुख़ारी १५३० 
एहसान फ़रामोश 
अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब ने एक दिन मुहम्मद को जवाब तलब किया 
"आपने अपने चचा को क्या फ़ायदा पहुँचाया ? 
वह तो आपकी हिमायत में कुफ्फार से झगड़ते थे, आपकी हिफ़ाज़त करते थे "
मुहम्मद बोले 
वह दोज़ख़ की आग में टखनों तक ही होंगे . अगर मैं न होता तो दोज़ख के अज़ाब में सब से नीचे तबक़े में इनको दाख़िल किया जाता .

*मुहम्मद अपने खूनी रिश्तों के हक़ में हमेशा इन्तहा दर्जा ख़ुद ग़रज़ रहे हैं। चचा अब्दुल मुत्तलिब हों या चचा अबू लहब हों , सुलूक का बदला उनहोंने ज़िल्लत में ही दिया है .चचा हुश्शाम को तो मुहम्मद ने अबू जेहल बना दिया था. चचा तो खैर चचा हुए अपने मरहूम बाप को भी न बख्शा , कहा " मेरा बाप भी जहन्नुम में जल रहा होगा " 
क्या बला थे मुहम्मद ? कितनी बेशर्मी के साथ अब्बास को जवाब देते हैं , कैसी जेहालत की बातें करते हैं की उनके तुफैल में "दोज़ख़ की आग में टखनों तक ही होंगे"
खुदा बन गया था जिसे बेवकूफ कौम आज तक खुदा से बढ़ कर मानती है .

मुस्लिम किताबुल ईमान 
क़ल्ब रौशन किया  
अनस बिन मालिक कहते हैं कि मुहम्मद ने कहा मैं लड़कों के साथ खेल रहा था कि जिब्रील आए, मुझको पछाड़ा और सीना चीर कर मेरा दिल निकाला, फिर इसमें से एक फुतकी जुदा कर डाली और कहा इतना हिस्सा शैतान का था तुम में.फिर दिल को धोया,सोने की तिश्त में, ज़मज़म के पानी से और फिर जोड़ कर अपनी जगह रख दिया। लड़के दौड़े हुए माँ बाप के पास गए और कहा मुहम्मद मार डाले गए। यह सुन कर लोग दोडे और देखा कि आप सही सालिम हैं, अनस ने कहा वह सिलाई का निशान मैंने अपनी आँखों से मुहम्मद के सीने में देखा। 

* मेराज और शक़्क़ुल कमर के बाद ये मुहम्मद का तीसरा सब से बड़ा झूट है। झूट तो मुहम्मद का सरापा है जो मुसलमानों पर इताब बन कर नाजिल है।
मुहम्मद ने यह शगूफ़ा खुद छोड़ा था जिसे अनस ने हवा दी। इस झूट को कुछ अक्ल होती तो बजाए दिल के फ़रिश्ते से मुहम्मद के दिमाग की ओवर हलिग कराते तो बेहतर था।
ऐसा ही एक झूट मुहम्मद के खतने का है. चालीस साल की उम्र में अपनी उम्मत को खतने का फरमान जारी किया और खुद खतने की ज़हमत से बचने के लिए उडा  दिया कि मैं तो मख्तून ही पैदा हुवा हूँ , मुझे खतने की कोई ज़रुरत नहीं. जबकि अपने अजदा इब्राहीम के बारे में कहा कि उन्हों ने अपने हाथों से कुल्हाड़ी से ८० साल की उम्र में खतना किया।  
बुख़ारी १५३५ 
छह साला आयशा से बूढ़े मुहम्मद का निकाह 
"आयशा कहती हैं जिस वक़्त मेरा निकाह मुहम्मद के साथ हुवा , मेरी उम्र छह साल की थी फिर इसके बाद हम लोग हिजरत करके जब मदीना पहुंचे तो मुझे बुखार रहने लगा और मेरे सर के बाल गिर गए . अच्छी होने के बाद बाल फिर कसरत से आ गए . एक रोज़ मैं अपने सहेलियों के साथ खेल रही थी कि  मेरी वालिदा आकर मुझे डांटने लगीं और घर ले गईं , मैं कुछ समझ न पाई और हफ्ने लगी . उन्हों ने मेरा हाथ और सर धुलाया . घर में कुछ नसारा औरतें बैठी हुई थीं . उन्हों ने खैर ओ बरकत की दुआएं पढ़ते हुए मेरी माँ के हाथों से मुझे ले लिया . इन औरतों ने मेरी जिस्मानी हालत को दुरुस्त किया और उसके बाद कोई नई बात पेश नहीं आई , सिर्फ इतना हुवा कि  मुहम्मद चाश्त के बाद मेरे घर आए और इन औरतों ने मुझको इनके हमराह कर दिया ."

* आयशा की यह आप बीती हदीस है छह साल की उम्र में निकाह,आठ साल की उम्र में रुखसती, अठ्ठारा साल की उम्र में बेवगी 
५२ साला बूढ़े ने आठ साला बच्ची को अपने लिहाफ़ में सुलाने के लिए खुद अपने ही रचे क़ानून की  खिलाफ़ वर्ज़ी करते हुए अपनी मौजूदा बीवी से कज अदाई और ज्यादती करने लगा। उम्मत में यह शगूफ़ा छोड़ते हुए कि आयशा जब लिहाफ में मेरे साथ होती है तो मुझ पर वहियाँ ज्यादा नाज़िल होती हैं, 
दूसरी तरफ़ बीवी सौदा को जो कुछ ज्यादा ही मोटी थीं नमाज़ों की तवालत से सताने लगा, रुक़ुअ में देर तक झुकाए रखता कि ग़रीब के नाक से नकसीर फुट पड़ती। एक दिन सौदा को तलाक़ की धमकी दे डाली, बे सहारा और मजबूर सौदा ने अपनी बारियाँ आयशा को देकर अपनी जान बचाई।
मुहम्मद और आयशा की अजवाज को बे ईमान ओलिमा इस तरह माकूल लिखते हैं कि आयशा आठ साल की उम्र में ही इतनी लहीम शहीम हो गई थी कि पूरी औरत की जिसामत हो गई थी. इस कमसिन और मासूम बच्घी से हजारों हदीसें और दास्ताने हराम जादे ओलिमा ने वाबिस्ता कर रखी हैं. इन्हीं की बदौलत कूकुर पयंबरी धुल कर बछिया बनी हुई है  
  


जीम. मोमिन 

Tuesday 4 June 2013

Hadeesi Hadse 87


**************************
बुख़ारी १४८८ 
चोर की दाढ़ी में तिनका 
आयशा से हदीस है कि एक दिन मुहम्मद की मौजूदगी में ओसामा बिन ज़ैद हारसा अपने बाप ज़ैद के साथ (गोया साथ में)लेटे हुए थे कि एक क़याफा दां भी आ गया , उसने दोनों के पाँव को देख कर अर्ज़ किया कि यह दोनों आपस में एक दूसरे के रिश्तेदार हैं। यह सुन कर मुहम्मद बहुत खुश हुए, इस ख़ुशी में मेरे यहाँ भी आए और मुझे भी इस बात की इत्तला दी .
*बाप बेटे के पैरों को देख कर अगर क़याफा दां ने कोई क़यास लगाया तो इसमें क्या खास बात है कि इसे लेकर लोगों में इसकी चर्चा की जाए? 
बात है चोर की दाढ़ी में तिनका के मिस्ल की. दर अस्ल ज़ैद की बीवी और ओसामा की माँ ऐमन हब्शी, मुहम्मद की लौंडी थी और ज़ैद मुहम्मद का ज़र ख़रीद ग़ुलाम, जिनका मुहम्मद ने आपस में निकाह कर दिया था . यह ज़ैद की पहली बीवी थी . ज़ैद तो उस वक़्त नाबालिग था , अरबी कबीलाई रेआयत से लौंडियाँ एलानिया आक़ा  की रखैल हुवा करती थीं , ग़रज़ मुहम्मद का जिंसी तअल्लुक़ ऐमन से था और ओसामा ज़ैद नाबालिग का बेटा न होकर मुहम्मद का ही बेटा था मगर समाजी पेचीदगियाँ इजाज़त नहीं देती थीं कि मुहम्मद इस का एलान करें. 
मुहम्मद ने अपनी तमाम जिंदगी ओसामा हो औलाद की तरह निभाया था . मगर किसी की मजाल नहीं कि उनके खिलाफ जुबां खोल सके , न सिर्फ उनकी ज़िन्दगी में बल्कि आज १४०० साल गुज़र जाने बाद भी .
मुसलमान इस्लाम को नहीं बल्कि झूट और खौफ़ को जी रहे हैं.  

बुख़ारी १५१० 
हदीस है कि एक दिन जिब्रील मुहम्मद के घर हाज़िर हुए और कहने लगे या रसूल अल्लाह यह जो खदीजा खाने का प्याला लिए आपकी खिदमत में हाज़िर हैं जब आप के पास आ जाएं तो इनको परवर दिगार की तरफ से और मेरी तरफ से सलाम कहिएगा . अल्लाह तअला ने इनके लिए जन्नत में खोखले मोतियों का मकान तय्यार किया है जिसमे शोर ओ गोगा कुछ भी न होगा .
*ऐसे शगूफे मुहम्मद बैठे बैठ लोगों में , यहाँ तक कि अपनी बीवियों के सामने छोड़ा  करते थे बातों में नए नए मअनी पैदा करते थे . खोखले मोती की भी कोई सिफत होती है ? मगर मुसलमानों के रसूल ने बात कही है तो ज़रूर कोई न कोई सिफत होती होगी . खोखले अल्लाह , खोखले रसूल और खोखले जिब्रील की दुनिया में आबाद पूरी मुस्लिम कौम खोखली  जन्दगी बसर कर रही है . 

मुस्लिम - - - किताबुल शेर 
चौसर का खेल हऱाम किया 
मुहम्मद ने चौसर खेलना हराम करार दिया और कहा जो शख्स चौसर खेला उसने अपने  हाथ और उँगलियाँ सुवर के खून गोश्त और खून में रंगे 
* चौसर ही क्या हर खेल से मुहम्मद का बैर था। खेलना है तो बस उनके अल्लाह के साथ खेलो . बेरूह नमाज़ें मुहम्मद का पसंदीदा खेल था उसके बाद जाइका बदलो तो रोजा रखो , ज्यादा माल हो तो हज के सफ़र में सर्फ़ करो, खैरात देकर मुसलमानों को भिखारी बनाओ और खेलों का खेल अगर खेलना हो तो जिहाद करो जिसमे माल ए गनीमत मिलने के इमकान हैं .  

बुख़ारी १५२५ 
मुहम्मद नामा 
मुहम्मद के चचा ज़ाद भाई इब्न अब्बास ने बतलाया कि 
मुहम्मद को चालीस साल की उम्र में वही नाजिल हुई . 
इसके बाद तेरह साल वह मक्का में रहे और दस साल मदीना में , 
तिरसठ साल की उम्र में इन्तेक़ाल कर गए ,

* बहुत मुख़्तसर तअर्रुफ़ मुहम्मद का है तफसील कुछ इस तरह है . 
४९ साल में ६५ साला जोरू माता खदीजा के मौत के बाद खुदा का खौफ इनके दिल से जाता रहा। ५० साल की उम्र में बेवा सौदा से अपना दूसरा निकाह किया, मोटी थी दिल को नहीं भाई तो 
दुन्या का रिकार्ड तोड़ते हुए ७ साला आयशा से तीसरा निकाह किया जो बेहिस और बेगैरत अबुबकर की बेटी थी.
५२ साल की उम्र में ८ साल बच्ची के साथ सुहाग रात मनाई
चौथी शादी हिफ्सा बिन्त उम्र से पैगम्बरी का रॉब दिखला कर ज़बरदस्ती की, खूबरू बेवा थी , बाप ने उस्मान के साथ तय कर रखी थी मगर मुहम्मद ने उनकी न चलने दी , आखिर उस से नहीं निभी और तलाक़ दे दिया। 
जिब्रील बीच में पड़े और बगैर हलाला के हरामा जायज़ हो गया। 
पांचवीं शादी ज़ैनब , उम्मुल मसाकीन से की . खूब सूरत बेवा थीं , आठ महीने मे ही रिसालत ही शौहरयत से नजात पाया और मौत के आगोश में पनाह ली .
छटवीं उम्मे सलमा थी , हसीं जमील बेवा थीं, अबुबकर की राल टपकी थी मगर रिसालत ने टांग अड़ा दिया और वह पीछे हट गए .
सातवीं शादी अपनी बहु जैनब को बिना निकाह किए हड़प कर लिया जिसकी छीछा लेदर सूरह अहज़ाब में देखी जा सकती है अल्लाह और उसके रसूल सूरह में नंगा नाच करते हैं और जिबरील ढोलक बजाते है।
आठवीं शादी मुसाफा ही सात महीने की ब्याहता यहूदन ज्योरिया से किया। जो जंग में माल ए गनीमत में साबित के हिस्से में आई थी ,उसने उसे नीलाम पर लगा दिया था जिसे मुहम्मद ने मुफ्त में झटक लिया था।
   नवीं शादी रिश्तेदार हबीबा से हुई जिसको उसके शौहर ने हबशा के जाकर छोड़  दिया था और ईसाई होगया था 
दसवीं शादी जंग खैबर की हसीना से उसके बाप और भाई के लाशों पर रचाई . यह यहूदन साफिया थी . कहते है इसी ने इन्तेक़ामन मुहम्मद को ज़हर देकर मार दिया था .
ग्यारहवीं शादी सफ़र में तनहा चल रहे मुहम्मद ने दुसराहट के लिए बर्रा से की जिसका नाम बदल कर मैमूना कर दिया था .

मुहम्मद ने ग्यारह शादियाँ मुस्तनद तौर पर किया, बहुत सी गैर मुस्तनद हैं जिसे ओलिमा यह कहते हुए नज़र अंदाज़ करते हैं कि अल्लाह बेहतर जाने .

जीम. मोमिन