Thursday 21 July 2016

बांग-ए-दरा -40


बांग-ए-दरा

बाबा इब्राहीम के जुर्म

हज़रात इब्राहीम एक परदेसी थे, 
बद हाली और परेशानी की हालत में अपनी बीवी सारा को 
किसी मजबूरी के तहत अपनी बहन बतला कर 
मिसरी बादशाह फ़िरौन की पनाह में रहा करते थे. 
तौरेत के मुताबिक सारा हसीन थी और बादशाह कि मंजूरे नज़र हो कर उसके हरम में पनाह पा गई थी. 
सच्चाई खुलने पर हरम से बाहर की गई और साथ में इब्राहीम और उनका भतीजा लूत भी. 
उसके बाद दोनों चचा भतीजों ने मवेशी पालन का पेशा अपनाया 
और कामयाब गडरिया हुए.
बनी इस्राईल की शोहरत की वजेह तारीख़ में फिरअना के वज़ीर यूसुफ़ की ज़ात से हुई. 
युसूफ इतना मशहूर हुवा कि इसके बाप दादों का नाम तारिख में आ गया, वर्ना याकूब, इशाक , इस्माईल, और इब्राहीम जैसे 
मामूली लोगों का नामो निशान भी कहीं न होता.
मानव की रचना कालिक अवस्था में इब्राहीम को जो होना चाहिए था 
वोह थे, न इतने सभ्य कि उन्हें पैगाबर या अवतार कहा जाए, 
ना ही इतने बुरे कि जिन्हें अमानुष कहा जाय. 
मानवीय कमियाँ थीं उनमें कि अपनी बीवी को बहन बना कर बादशाह के शरण में गए और अपनी धर्म पत्नी को उसके हवाले किया. 
दूसरा उनका जुर्म ये था कि अपनी दूसरी गर्भ वती पत्नी हाजरा को 
पहली पत्नी सारा के कहने पर घर से निकल बाहर कर दिया था, 
जो कि रो धो कर सारा से माफ़ी मांग कर वापस घर आई. 
तीसरा जुर्म था कि दोबारा इस्माईल के पैदा हो जाने के बाद 
हाजरा को मय इस्माईल के घर से दूर मक्का के पास 
एक मरु खंड में मरने के लिए छोड़ आए. 
उनका चौथा बड़ा जुर्म था सपने के वहम को साकार करना 
और अपने बेटे इशाक को अल्लाह के नाम पर कुर्बान करना, 
जो मुसलमानों का अंध विश्वास बन गया है 
और हजारो जानवर हर साल मारे जाते हैं. 
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