Thursday 30 June 2016

बांग-ए-दरा -21


बांग-ए-दरा

सच और ख़ैर (1)
क़ुदरत ने ये भूगोल रुपी इमारत को वजूद में लाने का जब इरादा किया तो सब से पहले इसकी बुनियाद "सच और ख़ैर" की कंक्रीट से भरी. फिर इसे अधूरा छोड़ कर आगे बढती हुई 
मुस्कुराई, कि मुकम्मल इसको हमारी रख्खी हुई बुनियाद करेगी. 
वह आगे बढ़ गई कि उसको कायनात में अभी बहुत से भूगोल बनाने हैं. 
उसकी कायनात इतनी बड़ी है कि कोई बशर अगर लाखों रौशनी साल (light years ) की उम्र भी पाए तब भी उसकी कायनात के फासले को तय नहीं कर सकता, 
तय कर पाना तो दूर की बात है, अपनी उम्र को फासले के तसव्वुर में सर्फ़ करदे तो भी किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पाएगा .
कुदरत तो आगे बढ़ गई इन दो वारिसों "सच और ख़ैर" के हवाले करके इस भूगोल को कि यही इसे बरक़रार रखेंगे जब तक ये चाहें.
.भूगोल की तरह ही क़ुदरत ने हर चीज़ को गोल मटोल पैदा कीया कि
 ख़ैर के साथ पैदा होने वाली सादाक़त ही इसको जो रंग देना चाहे दे.
 क़ुदरत ने पेड़ को गोल मटोल बनाया कि इंसान की "सच और ख़ैर" की तामीरी अक्ल इसे फर्नीचर बना लेगी, उसने पेड़ों में बीजों की जगह फर्नीचर नहीं लटकाए. 
ये ख़ैर का जूनून है कि वह क़ुदरत की उपज को इंसानों के लिए उसकी ज़रुरत के तहत लकड़ी की शक्ल बदले.
तमाम ईजादें ख़ैर (परोकार) का जज्बा ही हैं कि आज इंसानी जिंदगी कायनात तक पहुँच गई है, ये जज़्बा ही एक दिन इंसानों को ही नहीं बल्कि हैवानों को भी उनके हुकूक दिलाएगा.
जो सत्य नहीं वह मिथ्य है. 
दुन्या के हर तथा कथित धर्म अपने कर्म कांड और आडम्बर के साथ मिथ्य है, 
इससे मुक्ति पाने के बाद ही क़ुदरत का धर्म अपने शिखर पर आ जाएगा 
और ज़मीन पाक हो जाएगी.
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सच और ख़ैर (2)
मैंने अपने पछले अंक में लिखा था कि यह दुन्या कुदरत का बनाया हुआ अधूरा भूगोल है, इसकी बुन्याद "सच और खैर" पर रख कर  क़ुदरत आगे बढ़ गई है - - -
क़ुदरत ने जन्नत बनाया है, न दोज़ख. 
यह कल्पनाएँ हजरते इंसान के जेहनी फितूर हैं.
 अपनी बुनियाद में रख्खे सच और खैर को जब ये धरती मानुस पचाने लगेंगे  तो ये दुन्या खुश गवार हो जाएगी. इस पर इसके प्राणी बे खौफ होकर लम्बी उम्र जीना चाहेंगे. 
जब सत्य ही सत्य होगा और झूट का नाम निशान न बचेगा और जब ख़ैर ही ख़ैर होगा, 
बैर का नामों निशान न होगा, तब ये दुनिया असली जन्नत बन जायगी.
हमारी धरती पर फैली हुई इंसानियत फल फूल रही है, 
हमारे अस्ल पैगम्बरान यह साइंसटिस्ट नित नई नई खोजों में लगे हुवे हैं, 
हमारी ज़िन्दगी को आसान दर आसान किए जा रहे हैं, सत्य दर सत्य किए जा रहे हैं,
 ये उनके जज़्बा ए ख़ैर ही तो है. 
एक दिन वह भी आएगा कि एक एक इंसान के पास रहने के लिए एह एक सय्यारे होंगे 
और इंसानी क़द्रें  उन में तवील तर और मुंह मांगी होगी, 
अब मज़हबी रुकावटें बहुत दिन तक इस भूगोल पर कायम नहीं रह पाएँगी.
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