Tuesday, 23 August 2016

बांग-ए-दरा 70





बांग-ए-दरा

अल्लाह बनाम कुदरत 

अल्लाह कुछ और नहीं यही कुदरत है, कहीं और नहीं, सब तुम्हारे सामने मौजूद है अल्लाह के नाम से जितने नाम सजे हुए हैं सब तुम्हारा वह्म है और साज़िश्यों की तलाश है . 
कुदरत जितना तुम्हारे सामने मौजूद है उससे कहीं ज्यादा तुम्हारे नज़र और जेहन से परे है. उसे साइंस तलाश कर रही है. जितना तलाशा गया है वही सत्य है,बाकी सब इंसानी कल्पनाएँ हैं .
आदनी आम तौर पर अपने पूज्य की दासता चाहता है, 
ढोंगी पूज्य पैदा करते रहते हैं और हम उनके जाल में फंसे रहते हैं. 
हमें दासता ही चाहिए तो अपनी ज़मीन की दासता करे, इसे सजाएं, संवारें. 
इसमें ही हमारे पीढ़ियों का भविष्य निहित है. 
मन की अशांति का सामना एक पेड़ की तरह करें जो झुलस झुलस कर धूप में खड़ा रहता है, वह मंदिर और मस्जिद नहीं ढूंढता, आपकी तरह ही एक दिन मर जाता है .
हमें खुदाई हकीकत को समझने में अब देर नहीं करनी चाहिए, 
वहमों के ख़ुदा इंसान को अब तक काफी बर्बाद कर चुके हैं, अब और नहीं। 
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