Saturday 20 August 2016

बांग-ए-दरा 67


बांग-ए-दरा

ज़ालिम और मजलूम 

हम मुहम्मद की अन्दर की शक्ल व सूरत उनकी बुनयादी किताबों कुरआन और हदीस में अपनी खुली आँखों से देख रहे हैं. मेरी आँखों में धूल झोंक कर उन नुत्फे हराम ओलिमा की बकवास पढने की राय दी जा रही है जिसको पढ़ कर उबकाई आती है कि झूट और इस बला का. मुझे तरस आती है और तअज्जुब होता है कि यह अक्ल से पैदल पाठक उनकी बातों को सर पर लाद कैसे लेते हैं?
एक मुस्लिम के बार बार इसरार पर एक बार उसके ब्लॉग पर चला गया, देखा कि एक हिदू मुहम्मद भग्त 'राम कृष्ण राव दर्शन शास्त्री' लिखते है कि
''एक क़बीले के मेहमान का ऊँट दूसरे क़बीले की चरागाह में ग़लती से चले जाने की छोटी-सी घटना से उत्तेजित होकर जो अरब चालीस वर्ष तक ऐसे भयानक रूप से लड़ते रहे थे कि दोनों पक्षों के कोई सत्तर हज़ार आदमी मारे गए, और दोनों क़बीलों के पूर्ण विनाश का भय पैदा हो गया था, उस उग्र क्रोधातुर और लड़ाकू क़ौम को इस्लाम के पैग़म्बर ने आत्मसंयम एवं अनुशासन की ऐसी शिक्षा दी, ऐसा प्रशिक्षण दिया कि वे युद्ध के मैदान में भी नमाज़ अदा करते थे।''
'सत्तर हज़ार' अतिश्योक्ति के लिए ये मुहम्मद का तकिया कलाम हुवा करता था, उनके बाद नकलची मुल्लाओं ने भी उनका अनुसरण किया शास्त्री जी भी उसी चपेट में हैं. बात अगर अंधी आस्था वश कर रहे हैं तो बकते रहें और अगर किराए के टट्टू हैं तो इनको भी मैं उन्हीं ओलिमा में शुमार करता हूँ. गौर तलब है कि उस वक़्त पूरे मक्का की आबादी सत्तर हज़ार नहीं थी, ये दो क़बीलों की बात करते हैं. इनकी पूरी हांड़ी में एक चावल टो कर आपको बतला रहा हूँ कि पूरी हाँडी उस मुस्लिम की ही तरह बदबूदार हुलिए की है।
आज भारत भूमि का सब से बड़ा संकट है नक्सलाइट्स जिसकी कामयाबी शायद भारत का सौभाग्य हो और नाकामी इसका दुर्भाग्य. दूसरा बड़ा संकट है इस्लामी आतंकवाद जो सिर्फ भारत के लिए ही नहीं पूरी दुन्या के लिए अज़ाब बना हुवा है. दुन्या इस से कैसे निपटती है दुन्या जाने या बराक हुसैन ओबामा, मगर भारत की सियासी फ़िज़ा इसे ज़रूर पाल पोस रही है. 
क़ुरआन में क्या है अब किसी से छिपा नहीं है, सब जानते हैं क़ुरआन जेहाद सिखलाती है, काफिरों से नफरत करना सिखलाती है, भारत में हर हिन्दू प्योर काफ़िर है. मदरसों में इनको मारना ही सवाब है, पढाया जाता है, मदरसे हर पार्टी के नाक के नीचे चलते हैं, वह भी सरकारी मदद से. मदरसे से फारिग तालिबान यह काम कर भी रहे हैं, पकडे भी जाते हैं, क़ुबूल भी करते हैं. आत्म घाती बन जाते हैं, मरते ही हूरों भरी जन्नत में पहुँच जाएँगे जहाँ अय्याशी के साथ साथ शराबन तहूरा भी मयस्सर होगी, ऐसा उनका विश्वास है जैसे बालाजी पर दस लाख के चढ़ावे पर पोता पा जाने का बिग बी. का विश्वास. मदरसों पर, कुरआन पर, वेदों पर, मनु स्मृरिती पर, अंध विश्वासों पर पाबन्दी नहीं लगाई जा सकती. ऐसे में क्या कोई भारत भाग्य विधाता पैदा होगा?
कट्टर साम्प्रदायिक पार्टियाँ चाहती है कि इसकी जेहादी आयतों को इस से निकाल कर इसे क़ायम रहने दिया जाए. 
वजेह? 
ताकि मुसलमान इसकी जेहालत में मुब्तिला रह कर हिदुओं के लिए सस्ती मज़दूरी करते रहें और इनकी कंज्यूमर मार्केट भी बनी रहे. सवर्णों की पार्टी कांग्रेस चाहती है कि क़ुरआन की नाक़िस तालीम क़ायम रहे वर्ना मनुवाद सरीके पंडितो द्वारा दोहित हो रहे भारत उनके कब्जे से निकल जाएगा जोकि उनके हक में न होगा. 
बहुजन जैसी दलित उद्धार के नेता मौक़ा मिलते ही ब्रह्मण बन कर दलितों पर राज करने लग जाते हैं. इन्हीं धोका धडी में लिपटी ८०%भारत की आबादी ५% नाजायज़ अक्सरियत, ५% नाजायज़ अक़ल्लियत के हाथों का खिलौना बनी हुई है. बिल गेट्स दुन्या के अमीरों में पहले नंबर पर रहे अपनी ५३ बिलियन डालर की दौलत में से ३८.७बिलियन डालर ''बिल & मिलिंडा गेट्स फ़ौंडेशन'' नाम का ट्रस्ट बना के इसको दान देकर ग़रीब किसानों और मजदूरों की सेहत और सुधार काम में लगा दिया है. 
हमारे देश में अम्बानी बन्धु जो देश की मालिक बने बैठे हैं, पेट्रोल, गैस से लेकर किसानों तक के कामों को उनके हाथों से छीन कर अपने हाथों में ले लिया है, बद्री नाथ की तीर्थ यात्रा से अपने पाप धो रहे हैं. तिरुपति मंदिर से अजमेर दरगाह तक घर्म के धंघे बाज़ इन्ही ५.५% बे ईमानों के शिकार हैं. 
देखिए कुदरत द्वरा माला मॉल देश का सितारा कब तक गर्दिश में रहता है।
*****



No comments:

Post a Comment