Saturday, 27 August 2016

बांग-ए-दरा 74


बांग-ए-दरा

कुरानी निजाम ए हयात 

मैं फिर इस बात को दोहराता हूँ कि मुस्लमान समझता है कि इस्लाम में कोई ऐसी नियमा वाली है जो उसके लिए मुकम्मल है, ये सोच  बिलकुल बे बुन्याद है, 
बल्कि कुरआन की नियम तो मुसलामानों को पाताल में ले जाते हैं. 
मुसलामानों ने कुरानी निजाम ए हयात को कभी अपनी आँखों से नहीं देखा, बस कानों से सुना भर है. इनका कभी कुरआन का सामना हुवा है, 
तो तिलावत के लिए. 
मस्जिदों में कुवें के मेंढक मुल्ला जी अपने खुतबे में जो उल्टा सीधा समझाते हैं, 
ये उसी को सच मानते हैं. जदीद तालीम और साइंस का स्कालर भी समाजी लिहाज़ में आकर जुमा जुमा नमाज़ पढने चला ही जाता है. इसके माँ  बाप ठेल धकेल कर इसे मस्जिद भेज ही देते हैं, वह भी अपनी आकबत की खातिर. मज़हब इनको घेरता है कि हश्र के दिन अल्लाह इनको जवाब तलब करेगा कि अपनी औलाद को टनाटन मुसलमान क्यूँ नहीं बनाया ? 
और कर देगा जहन्नम में दाखिल.
कुरआन में ज़मीनी ज़िन्दगी के लिए कोई गुंजाईश नहीं है, 
जो है वह क़बीलाई है, निहायत फ़रसूदा. क़ब्ल ए इस्लाम, अरबों में रिवाज था कि शौहर अपनी बीवी को कह देता था कि तेरी पीठ मेरी माँ या बहन की तरह हुई, 
बस उनका तलाक हो जाया करता था. इसी तअल्लुक़ से एक वक़ेआ हुवा कि
 कोई ओस बिन सामत नाम के शख्स ने गुस्से में आकर अपनी बीवी हूला को तलाक़ का मज़कूरा जुमला कह दिया. बाद में दोनों जब होश में आए तो एहसास हुआ कि ये तो बुरा हो गया. 
इन्हें अपने छोटे छोटे बच्चों का ख़याल आया कि इनका क्या होगा? 
दोनों मुहम्मद के पास पहुँचे और उनसे दर्याफ़्त किया कि उनके नए अल्लाह इसके लिए कोई गुंजाईश रखते हैं ? कि वह इस आफत ए नागहानी से नजात पाएँ. 
मुहम्मद ने दोनों की दास्तान सुनने के बाद कहा तलाक़ तो हो ही गया है, 
इसे फ़रामोश नहीं किया जा सकता. बीवी हूला खूब रोई पीटी और मुहम्मद के सामने गींजी कि नए अल्लाह से कोई हल निकलवाएँ. 
फिर हाथ उठा कर सीधे अल्लाह से वह मुख़ातिब हुई और जी भर के अपने दिल की भड़ास निकाली, 
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